मध्य प्रदेश का एक शहर, इंदौर, जिसे मिनी मुंबई भी कहा जाता है। इसी शहर से लगभग दस किलोमीटर दूर, शांत और एकांत जगह पर, एक आलीशान महल बना हुआ था, जिसे देख हर आने जाने वाले की नजरेें रुक  जाती थी।  हर कोई सोचता था ,कितने लकी होंगे वह लोग, जो यहाँ रहते होंगे पर वह महल तलाशता रहता था अपना गुड लक और उस घर में रहने वाले लोगों को तलाश थी, शांति की।

 उस शानदार घर के मालिक , विक्रम सिंह, एक बेहद सफल बिजनेसमैन होने के साथ -साथ एक खूबसूरत बेटी, रिया, के पिता भी थे जो कि इस वक्त, उनकी उलझन का सबसे बड़ा कारण बनी हुई थी ।  

 यूँ तो रिया को आदत थी, अक्सर  देर से घर आने की पर आज तो दो  बजने को थे। घर के अंदर विक्रम यहाँ से वहाँ चहलकदमी करते हुए बस यही सोच रहे थे कहाँ गलती हुई उनसे रिया की परवरिश में? क्यों रिया कुछ समझने को तैयार नहीं ?  

अपने ही सवालों में उलझे सोफे पर बैठे ही थे कि गाड़ी रुकने की आवाज़ सुन, गेट पर जा कर खड़े हो गए। सामने से चली आ रही रिया की हालत देख कर विक्रम की भौंहे तन गईं।  वहीं अपनी ही धुन में मस्त, रिया उनको देख एक पल को ठिठक गई। अगले ही पल अपनी बड़ी - बड़ी आँखें ऊपर को चढ़ाती वह  विक्रम के सामने खड़ी हो गई और बोली  

रिया : आप डांटने के लिए इतनी रात तक उठे हुए हैं? तो डाँट लीजिए , क्या फ़र्क पड़ता है?  

उसकी हालत देख विक्रम उसके रास्ते से हट गए और रिया अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। विक्रम ने चैन की सांस ली कि बेटी सही सलामत वापस घर आ गई और यह सोचकर कि सुबह उससे बात करेंगे, खुद भी सोने चले गए।  

सुबह हुई, विक्रम ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर नीचे आए और नाश्ते की टेबल पर बैठकर मेड को रिया को बुलाने भेजा। लेकिन रिया ने चिल्ला कर उसे वहाँ से भगा दिया।  दुखी मन से विक्रम भी ऑफिस की तरफ निकल गए और ऑफिस पहुँच कर काम काज में खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करने लगे।  

रिया के व्यवहार का असर उनके काम पर न पड़े इसलिए उन्होंने भावनाओं को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया पर इस बात का दुख मन ही मन हमेशा रहता था कि आखिर कमी कहाँ रह गई।

उधर शाम ढलते ही रिया, अलग ही एनर्जी के साथ एक पार्टी  में शामिल होने चल देती है।  यह उसका रोज का रूटीन बन गया था ॥ पार्टियों में जाना, अजीब लोगों के साथ उठना बैठना, नशे में धुत होना और फिर उसी हालत में घर पहुंचकर बिस्तर पर लुढ़क जाना॥ आज भी वही हालत थी उसकी॥ नशे में अपने मन में सैंकड़ों बात बड़बड़ाते हुए कभी फर्श पर गिरती, फिर उठती,  कभी किसी के सहारे संभलती ।  

रात साढ़े ग्यारह बजे, रिया हाथ में मोबाइल लिए पार्टी से निकल कर घर जाने के लिए अपनी गाड़ी के पास पहुंची ही थी कि नजर आकाश के मैसेज पर पहुँच गई। आकाश  - रिया का सबसे प्यारा दोस्त और शायद उससे कुछ ज़्यादा भी । पिता से बिगड़ते रिश्ते और परिवार से मिले अपमान के बाद रिया को कोई सुनने वाला मिला था तो वह आकाश था जो असल में दोस्त के भेष में  रिया का सबसे बड़ा दुश्मन था।  

आकाश था एक नम्बर का आवारा और अय्याश  इंसान , जिस पर रिया आँख बन्द कर विश्वास करती थी और हमेशा ठगी भी जाती थी पर वह  हर बार नए बहाने बना कर उसे अपने जाल में उलझा कर रखता था ।  

आज फिर उसका मैसेज आया और उसने रिया को एक ऐसी पार्टी में बुलाया, जहाँ एंजॉयमेंट के अलावा और भी बहुत कुछ रिया को देना चाहता था।  हक़ीक़त से अंजान रिया ने अपने दोस्त पर विश्वास कर तुरंत गाड़ी आकाश के बताए हुए एड्रेस की ओर दौड़ा दी।  रिया नहीं जानती थी जिस रास्ते पर वह  चल पड़ी थी , वहाँ से वापस आना कितना मुश्किल होगा॥  

गाड़ी में बजता म्युजिक भी रिया के तेज़ी से दौड़ते दिमाग़ को शांत नहीं कर पा रहा था।  आकाश की भेजी हुई लोकेशन पर पहुँच कर  रिया हैरान हो गई। लोकेशन भी क्या थी, एक पुराना खंडहर, जैसे कोई भूत बंगला हो। उस बिल्डिंग को देखकर कहा नहीं जा सकता था यहाँ कोई पार्टी चल रही होगी।  रिया ने खिड़की का शीशा नीचे किया, गर्दन बाहर निकाल कर ऊपर तक देखा और कुछ समझ न आने पर अपना फोन निकाल कर आकाश को कॉल किया। आकाश के फोन उठाते ही रिया शुरू हो गई ,  

रिया : यहाँ सुसाइड करने बुलाया है ??  यह कोई जगह है पार्टी के लिए?  दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया तुम्हारा?  

आकाश : कितना बोलती हो,,, ऊपर चली आओ, मैं यहीं हूँ"

रिया का बोलना लगातार जारी था॥ उधर से आई आवाज़ के बाद भी वह  कुछ बोलने वाली थी, पर फोन कट गया।  रिया को अपने मुँह पर किसी का फोन काटना हरगिज नहीं सुहाता था। आकाश का बिहेवियर भी उसे नहीं भाया तो उसने गाड़ी का शीशा चढ़ाया और वापस निकल गई।  शायद किस्मत ने एक और मौका दिया था उसको कि वह  खुद को बचा ले पर आकाश भी अपने हाथ आया मौका कैसे जाने दे सकता था॥ उसने ऊपर से झांककर देखा कि रिया की गाड़ी वापस मुड़ गई, तो लगातार उसे कॉल करना शुरू कर दिया॥ रिया मोबाइल देखते हुए मुस्कुरा रही थी और आगे बढ़ती जा रही थी।  काफी दूर जाकर अचानक गाड़ी रोक दी और फोन रिसीव कर स्पीकर पर डाल दिया। आकाश की आवाज़ गाड़ी में गूँजने लगी ॥  

आकाश : क्या बचपना है रिया ?? तुम वापस क्यों चली गई,? इसलिए बुलाया था क्या तुम्हें मैंने?

रिया चुप थी और मोबाइल को देख कर बस हंस रही थी, तभी फिर आकाश की आवाज़ आई

आकाश : हैलो... हैलो,,, रिया प्लीज़ यार।  ऐसा कौन करता है, चलो जल्दी वापस आओ

रिया अब भी कुछ नहीं बोलती लेकिन उसके चेहरे से  मुस्कुराहट ग़ायब थी। उसकी नजर मोबाइल पर तो थी पर अब वो इमोशनल हो रही थी।  आकाश ने फिर रिक्वेस्ट की :  

आकाश : रिया यार सॉरी ना, माफ कर दे, मजाक कर रहा था, तेरा बोलना ही तो सबसे अच्छा लगता है, जानती नहीं क्या अपने आकाश को

रिया; चल, आती हूँ। 

और फिर एक बार रिया अनजाने ही किसी बड़ी मुश्किल में फंसने चल दी । गाड़ी वापस घुमाकर सीधे फिर उसी बिल्डिंग के बाहर आकर रुक गई जहां इस बार आकाश पहले से ही उसके इंतजार में  खड़ा था। रिया को देख वह खुशी से उछला और झट से उसे गले लगा लिया और हाथ पकड़ कर अपने साथ ले गया । सीढ़ियां चढ़ते हुए रिया बस उसे ही देख रही थी। उसे जरा सा भी आइडिया नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला है। अपने दोस्त पर भरोसा कर ज़हर पीने की तैयारी खुद से ही कर ली थी उसने।  

एक के बाद एक तीन मंजिल सीढ़ियां चढ़कर जब वे ऊपर पहुंचे तो सामने जो सीन था, उसे देख कर रिया उछल पड़ी।  अपने मुँह पर हाथ रख खुशी से आकाश की ओर देख चिल्ला उठी

रिया : वाह ... यार इस खंडहर में इतनी शानदार पार्टी??? अमेजिंग!"

आकाश की नजर रिया पर थी और रिया की नजर सामने हॉल पर थी जहाँ पार्टी में बिंदास डांस चल रहा था। उस पार्टी को देखकर लगता था जैसे किसी आलीशान होटल का हॉल हो और शहर भर की अमीर बिगड़ी औलादों का पसंदीदा ठिकाना भी।  आकाश का हाथ छोड़, रिया म्युजिक पर थिरकते हुए अंदर गई और बियर के दो तीन गिलास एक के बाद एक उठाकर गटागट पी गई। नाचते हुए रिया को होश नहीं था कि कौन किस नजर से उसे देख रहा था , वह अपनी ही मस्ती में मगन थी ।  एक तरफ बैठे दो लड़कों ने इशारे से आकाश से रिया को कंट्रोल करने को कहा।  इशारा पाते ही आकाश रिया के पास पहुँच गया और उसका हाथ पकड़ कर साइड में ले जाने लगा, पर रिया जैसे उस शोर शराबे में अपने सारे टेंशन उड़ा देना चाहती थी।  वह फिर हाथ छुड़ाकर झूमते हुए जाने लगी। आकाश ने उसे मुश्किल से पकड़ कर पास बैठाया और धीरे से उससे कहा :  

आकाश : रिया एक अच्छा ऑफर है,,, बहुत पैसा मिलेगा। 

आकाश की  बात रिया को  किसी मतलब की नहीं लगी।  उसने पूरी लापरवाही से कहा ,  

रिया :  मेरे बाप के पास बहुत पैसा है, मुझे किसी ऑफर की जरूरत नहीं है।   

आकाश : यह पैसा लेकिन तेरा होगा, बाप का एहसान नहीं ।   

आकाश के शब्दों से इस बार रिया का माथा ठनका और वह तुरन्त सम्हल कर बैठ गई। सारा नशा गायब हो गया। रिया के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं था कि उसे अपने पिता के पैसे की जरूरत न पड़े। उसने तुरंत आकाश से सवाल किया

 रिया: क्या करना होगा मुझे

आकाश की नजर उन लड़कों की तरफ गई और उसके चेहरे पर एक कमीनी मुस्कुराहट आई।  उनमें से एक लड़का आया और एक पैकेट आकाश के पास रखकर चला गया।  रिया पहले तो उस जाते हुए लड़के को पलट कर देखती रही फिर आकाश को गौर से देखने लगी।  आकाश ने पैकेट उसके हाथ में देकर कहा :  

आकाश : ये लो, बस इतना सा काम है। इस पैकेट को हमें सही जगह पहुंचाना है। 

रिया : ड्रग्स???  

आकाश ने होंठों पर उंगली रख उसे धीरे बोलने का इशारा किया।  रिया तुरंत उठकर खड़ी हो गई और इस तरह से पैसा कमाने से साफ मना कर दिया।  आकाश ने उसे फिर अपनी बातों में उलझाया और बड़े प्यार से समझाया कि यह कोई क्राइम नहीं है, बल्कि  यंग जनरेशन की जरूरत है।  

आकाश : तेरी और मेरी तरह, कितने ही लोग अपनों से जख्म खाए हुए हैं। वह  लोग अपना थोड़ा सा दर्द इससे कम कर लें और हमें ढेर सारा पैसा मिल जाए तो इससे अच्छा क्या हो सकता है,,, तू खुद सोच, रिया॥  

रिया : मगर पकड़े गए तो??  

आकाश : द ग्रेट बिजनेस मैन विक्रम सिंह की बेटी को कौन पकड़ेगा ?? किसकी औकात है तेरे ऊपर शक भी करे ?  

रिया ने कुछ देर सोचने के बाद हाँ कह दिया।  वह जानती थी कि यह रास्ता गलत है, पर वह आकाश की बातों में आ गई।  आकाश मन ही मन मुस्कुराने लगा।  उसे आँखों के सामने बरसते हुए नोट दिखाई दे रहे थे। रिया ने हाँ तो कर दी थी लेकिन एक अनजाना डर उसे सता रहा था। अचानक रिया की नजर दरवाजे पर पड़ी। दरवाजे पर खड़े शख्स की नजर उस से टकराई और रिया का चेहरा डर के मारे सफेद हो गया  ।  

 

कौन था दरवाज़े पर जिसे देख रिया डर गयी ?

कहाँ ले जाने वाला था ये नया रास्ता रिया को ?

जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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