शिकागो शहर…
अंकिता को एयरपोर्ट से निकल कर लगा जैसे कोई सपना देख रही हो। इंडिया से शिकागो तक सफ़र करके भी उसे विश्वास नहीं हो रहा था, यह सच है। अपनी जगह खड़े खड़े उसने एक बार आँखें बंद करके खोलीं और चारों तरफ़ देखा… फ़िर उसे खुद पर ही हँसी आ गई। जल्दी जल्दी कदम उठाकर उसने एक टैक्सी रोकी, पर किस्मत ने उसे फिर राजशेखर से मिलाया, दोनों एक ही टैक्सी रोककर साथ आकर खड़े हो जाते हैं और एक दूसरे को देखकर खिलखिला कर हँस देते हैं।
अंकिता : - सॉरी, आप जाइए शेखर जी, मुझे लगता है टैक्सी पहले आपने रोकी थी… क्योंकि आप आगे थे। मैं दूसरी टैक्सी देख लूँगी, पाँच दस मिनिट में मिल ही जाएगी। शायद मेरा होटल भी पास है, अsss… मतलब मुझे ऐसा बताया गया था।
शेखर : - अच्छा… वैसे कौन सा होटल है आपका? अsssss … मुझे यहाँ के होटल्स का ज्यादा आइडिया नहीं है पर दो चार ट्रिप कर लीं हैं, इसलिए थोड़ा बहुत पता है। अगर आपका ठिकाना मेरे रास्ते में हो, तो मैं आपको छोड़ते हुए जा सकता हूं… नहीं, मतलब अगर आपको ठीक लगे तो…!
अंकिता पहली बार शिकागो आई थी, उसे यहाँ किसी चीज़ का कोई आइडिया नहीं था, इसलिए उसने शेखर की बात मानना सही समझा। अपना मोबाइल निकालकर उसने एड्रेस चेक किया तो पता चला दोनों को एक ही होटल में जाना है। शेखर को एड्रेस देखकर हँसी आ गई, उसने कहा हमारे रास्ते और मंजिल एक ही हैं मिस अंकिता, चलिए, अब हम साथ चल सकते हैं। अंकिता ने मुस्कुरा कर सामान डिग्गी में डलवाया, और मोबाइल चेक करते हुए बैठ गई। बच्चों के वॉइस मैसेज देख कर अंकिता के चेहरे पर एक चमक आ गई और वह मुस्कुराकर जल्द ही सुनने लगी। शेखर ने एक बार उसकी तरफ देखा और अपना फोन निकालते हुए कहा।
शेखर ; - ( खिड़की से बाहर देखते हुए ) सच में आप बहुत ज्यादा लापरवाह माँ हैं, कैसे आप हर वक़्त अपने बच्चों को याद करती रहती हैं? शिकागो शहर की खूबसूरती को नज़रअंदाज करके आप अपने बच्चों के वॉइस मैसेज सुन रही हैं, जबकि आपको अपने बच्चों की बिल्कुल भी परवाह नहीं है। कुछ अजीब नहीं लगता? जिसकी बिल्कुल फ़िक्र नहीं है, उसी में खोए रहना। आप कहती हैं मेरी बातें आपको समझ नहीं आतीं और मुझे आप ख़ुद ही समझ नहीं आती।
शेखर खिलखिला कर हँस रहा था और अंकिता उसे हैरानी से देखती रही। उसे उन बातों में कुछ भी हँसने जैसा नहीं लगा, लेकिन उसकी बातें उसके मन को गुदगुदा रही थीं। उसका बोलना उसे अच्छा लग रहा था, जरा सी बात पर इस तरह खुल कर हँसना, किसी के बारे में कुछ पूछे बिना उसको समझना, बातों बातों में तारीफ़ कर देना… अंकिता उसे देखते हुए खुद भी हँस देती है। बिना वजह शायद ही कभी अंकिता के चेहरे पर मुस्कान आई हो, पर वह हँस रही थी सिर्फ़ शेखर को हँसते देखकर। उसका खिला चेहरा देखकर शेखर की नज़र उस पर टिक कर रह गई। अंकिता ने मोबाइल हैंड बैग में डाला और बाहर देखते हुए बोली, ‘’मुझे आपकी सारी बातें बहुत अजीब लगती हैं शेखर जी। हर बात में आप हँसने के बहाने ढूँढ लेते हैं। मुझे तो यह दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता है, पर आपकी आदत में शामिल है। आप कैसे अपने आप को इतना ख़ुश मिज़ाज रख पाते हैं? मुझे लगता है ज़िंदगी जीने के लिए मुझे भी आपसे कुछ टिप्स ले लेने चाहिए ताकि जब कभी आप जैसे ज़िन्दादिल इंसान के साथ सफर करना पड़े तो सामने वाला बोर न हो।''
अंकिता को फ़िर बिना वज़ह हँसी आ गई। उसकी बातें शेखर के दिल को छू रही थीं। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी और वह एकटक अंकिता को देख रहा था। वह हँसते हुए उसे और भी खूबसूरत लग रही थी, पर अचानक से उसके चेहरे का रंग उड़ने लगा। कानों में उसे एक लड़की की खिलखिलाहट सुनाई देने लगी। माथे से पसीने की बूंदें टपक रही थीं और वह कानों पर हाथ रखकर धीरे - धीरे बड़बड़ाने लगता है।
“ नहीं ,,,, नहीं नहीं ,,, नहीं,,,,,,,” उसका बड़बड़ाना सुनकर अंकिता ने उसकी तरफ़ देखा तो घबरा गई, वह पूरी तरह पसीने से भीग रहा था। अंकिता उससे पूछना चाहती थी उसे क्या हुआ मगर वह कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था। तभी टैक्सी रुक जाती है और गाड़ी रुकने से एक झटका लगता है, जिससे वह थोड़ा सा नार्मल होता है, अंकिता ने पूछा, “ क्या हुआ आपको? आप ठीक है शेखर जी ?” अंकिता के सवाल पर उसने जबरन मुस्कुराने की कोशिश की और पसीना पोंछते हुए बोला, ‘’हहं… हाँ, म म् … मैं बिल्कुल ठीक हूँ… ऐसी कोई खास प्रॉब्लम नहीं है, आप चिंता मत कीजिए … सब ठीक है… मैं भी ठीक हूँ। चलिए, हमारा होटल भी आ गया। आप अपना सामान देख लीजिए, कुछ रह न जाए। मैं तब तक हमारे रूम कन्फर्म करता हूँ, कहाँ है, मतलब किस फ़्लोर पर हैं? आप अच्छे से सामान चेक करके आइए।''
शेखर जल्दी से उतरकर अपना बैग खींचते हुए आगे चला गया। अंकिता उसे हैरानी से देख रही थी, उसे समझ नहीं आता कि उसने ऐसा क्या कहा कि शेखर के पसीने छूट गए। अभी भी इतना ज़्यादा हड़बड़ाया है, क्या बोल रहा है, उसे ख़ुद ही समझ नहीं आ रहा! वह भी उतार कर अपना सामान लेकर रिसेप्शन तक पहुंची तो शेखर शायद दोनों के लिए चेक इन करवा चुका था। उसने रिसेप्शन से चाबी लेकर एक चाबी अंकिता को दे दी और बिना कुछ बोले लिफ्ट की ओर बढ़ गया।
अंकिता उससे फ़िर कुछ पूछना चाहती थी, पर शेखर बात करने का कोई मौका नहीं देता। लिफ्ट में साथ जाते हुए भी चुप था। अपना रूम नम्बर चैक करते हुए भी दोनों चुपचाप आगे जा रहे थे… फ़िर पता चला दोनों के रूम आमने सामने थे। वहीं शेखर की चुप्पी अंकिता को चुभने लगी थी। वह कुछ बोलने ही वाली थी पर वह अंदर चला गया। कुछ देर पहले तक ख़ुश मिज़ाज दिखने वाला शख्स, अचानक पहेली बन गया।
अंकिता : - ( हैरानी से )क्या इंसान है यह? बेवज़ह हँसता है, बेवज़ह घबरा जाता है। पसीने छूट जाते हैं, बोलते- बोलते चुप हो जाता है। जब मिला था, अलग ही ताजगी से भरा था… कितना ख़ुश, बिंदास था, जैसे परेशानी इससे मीलों दूर रहती हो। फिर अचानक इतना परेशान हो गया कि लगता ही नहीं, इसे हँसते हुए भी देखा होगा किसी ने! कितना मुश्किल है इसको समझना? मैं अगर इसके बारे में ज्यादा सोचती रही तो पागल ही हो जाऊंगी, इसलिए मुझे अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।
अपना कमरा खोलकर अंदर जाने से पहले अंकिता एक बार शेखर के कमरे पर नॉक करके देखना चाहती थी कि शायद वह नॉर्मल हो गया हो, मगर फिर अपना हाथ वापस खींच लेती है। उसके व्यवहार से अंकिता को डर भी लग रहा था और फ़िक्र भी हो रही थी कहीं उसकी तबियत न बिगड़ी हो! सामान अन्दर करके वह दरवाज़ा खुला छोड़कर पहले बच्चों को कॉल करने लगी और वीडिओ कॉल करके उसने दोनों को बालकनी से शिकागो की खूबसूरती भी दिखाई। बच्चे अब काफी खुश लग रहे थे।
अंकिता के सारे टेंशन बच्चों से बात करते हुए खत्म हो जाते थे, वीडियो में उन्हें चहकते देख वह सुकून पा जाती है। बच्चों से बात करके वह आकार को कॉल करती है, मगर आकार हर बार की तरह, “बाद में कॉल करता हूँ” कहकर फोन कट कर देता है। अंकिता उसकी लापरवाही अच्छी तरह जानती थी इसलिए उसे कोई हैरानी नहीं हुई उसके व्यवहार से। तभी उसकी नज़र सामने पड़ी और वह चौंक गई, सामने शेखर खड़ा था। वह कुछ समझती तब तक वह बैग खींचते अंदर चला आता है। बैग अंकिता की ओर बढ़ाकर कहता है, ‘’माफ़ कीजिए मिस अंकिता, बिना नॉक किए आपके रूम में चला आया। अरे आप मेरा बैग देखकर घबराइए मत, मैं आपका रूम शेयर करने नहीं आया, बल्कि अपना सामान लेने आया हूँ। ग़लती से हमारे बैग एक्सचेंज हो गए हैं और देखिए, मैंने तो देख भी लिया, आपको तो अभी तक पता भी नहीं है कि आप ग़लत बैग लेकर आ गईं। खैर छोड़िए, यह रहा आपका बैग और मुझे मेरा सामान दे दीजिए… और हां, मिस अंकिता… अच्छे से देखिए, कही मैंने कुछ चुरा तो नहीं लिया!''
अंकिता जस की तस खड़ी उसे देखती रही, शेखर हँसते हुए कुछ गुनगुनाते बैग लेकर चला गया। उसके जाने के बाद भी अंकिता काफी देर तक वैसे ही खड़ी रही… उसे विश्वास नहीं हो रहा था यह वही शेखर है जो थोड़ी देर पहले अजीब हालत में अपने कमरे में गया था। उसके अजीबो गरीब व्यवहार से अंकिता हैरान थी। फिर सर हिलाते हुए उसे इग्नोर करती है, और बैग उठाकर बेड पर रखती है पर बैग खोलने से पहले उसकी नज़र दरवाज़े पर जाती है जो अभी तक खुला था।
अंकिता दरवाज़ा बंद करने जाती है तभी शेखर फिर सामने आ जाता है, और अंकिता के पास आकर कहता है। “उस बैग के अलावा भी आपके पास कुछ रह गया है मिस अंकिता पटेल, बहुत कीमती सा… देख लीजिए ठीक से।” अंकिता ने पलट कर एक नजर में पूरा कमरा देख लिया पर शेखर की कोई चीज उसे नहीं दिखती। उसने हँसते हुए कहा, “सॉरी शेखर जी मुझे नहीं लगता, और भी कुछ है।” शेखर हँसते हुए अंदर झांकता है, अंकिता पीछे हट जाती है और शेखर अपना चेहरा उसके बिल्कुल पास लाकर कहता है “ ना हो तो अच्छा है” अंकिता कुछ समझती, तब तक शेखर जा चुका था। उसके जाने के बाद वह उसके कमरे के बंद दरवाजे को ताकती रही।
वह अंकिता, जिसके सामने अच्छे अच्छों की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती थी, उसके सामने शेखर निडरता से कुछ भी बोल रहा था और वह उसे रोकना तो दूर, ख़ुद को ही नहीं संभाल पा रही थी। उसके सामने आते ही धड़कन तेज हो जाती थी और उसकी बातें उसके होश छीन लेती थीं।
अंकिता ; - ( मन ही मन ) यह मुझे क्या हो रहा है, मैं क्यों एक अजनबी की तरफ़ खुद को खिंचता हुआ महसूस कर रही हूँ? उसके पास से गुजरने पर जैसे कोई संगीत सा बज उठता है, उसका बोलना मेरे अंदर एक ताजगी भर देता है। नहीं ,,, यह सब ठीक नहीं हो रहा, और फिर मैं जानती कितना हूँ इसे! खुद पर कंट्रोल रख अंकिता पटेल… तू इस तरह किसी की बातों से इम्प्रेस नहीं हो सकती। यहाँ काम के लिए आई है अपने आप को खोने नहीं…।
अंकिता अपने माथे पर हाथ मारकर हँसते हुए अंदर चली जाती है। बैग खोलती है और कपडे निकाल कर नहाने चली जाती है । वॉशरूम से निकलती है तो सामने फिर शेखर खड़ा था… उसे देख अंकिता को एक झटका सा लग जाता है। वह ज़ोर से कहती है, “आप ?”
शेखर उसके कमरे में क्या कर रहा था?
क्या वह शेखर की उदासी की वजह जान पाएगी?
जानने के लिए अगला लगातार गाड़ी के हार्न की आवाज गूँज रही थी। हड़बड़ाई सी अंकिता जल्दी जल्दी बच्चों को खाना खिलाती है, और बैग खींचते हुए बाहर निकल जाती है। दरवाजे के बाहर निकलते ही फिर पलट कर आती है और दोनों बच्चों को गले लगा लेती है। घर का सबसे पुराना, बुज़ुर्ग और विश्वसनीय नौकर भगवन दास आगे आकर कहता है, “जाओ बिटिया, इस तरह तो कभी घर से नहीं निकल पाओगी। बच्चों की बिल्कुल भी चिंता मत करो, मैं अच्छे से संभाल लूँगा।”
अंकिता जानती थी भगवन दास बच्चों का खूब ध्यान रखते हैं, मगर पहली बार एक हफ्ते के लिए बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना उसे दुनिया का सबसे मुश्क़िल काम लग रहा था। उसे अपने पति आकार पर भी गुस्सा आ रहा था। उसे हमेशा ही व्यस्तता रहती है। अगर एक हफ़्ते के लिए वह जा रही थी तो आकार उसके पहले निकल जाता है। अब बच्चों को अकेला छोड़ना पड़ रहा है। आँखें पोंछते हुए अंकिता निकल जाती है पर सात साल का बेटा रजत आकर उससे लिपट जाता है। “मुझे भी ले चलो मम्मा प्लीज़, मैं नहीं रहूंगा... यहाँ दीदी मुझे परेशान करती है। उसके फ्रेंड्स आ जाते हैं और मैं अकेला बोर होता हूँ।”
रजत के रोने से अंकिता की रही सही हिम्मत भी जवाब दे रही थी मग़र उसकी बेटी अश्विनी उसे संभाल लेती है जो अभी सिर्फ़ बारह साल की थी पर ख़ूब सयानी थी। रजत को अपने पास खींचकर कहती है। “मम्मा काम से जा रही है, तुझे नहीं ले जा सकती, समझता क्यों नहीं…, मम्मा आप जाओ गुल्लू ठीक है, मैं उसका ध्यान रखूंगी।” गुल्लू रजत के घर का नाम है। बेटी की बात से अंकिता की आँख भर आती हैं, और जाने की हिम्मत मिल जाती है। दोनों को गले लगा कर कहती है, ‘’देखो तुम दोनों मेरी हिम्मत भी हो, और कमज़ोरी भी। इस तरह तुम लोगों को रोते छोड़कर नहीं जा पाऊँगी मैं, पर अगर मैं नहीं जा पाई तो अपने काम में फेल हो जाऊँगी। अपनी मम्मा को फेल होते देखना तुम लोगों को अच्छा लगेगा क्या?? नहीं न? इसलिए प्यारी सी स्माइल के साथ मम्मा को बाय करो… और हाँ, लड़ाई बिल्कुल नहीं करना, दोनों एक दूसरे का ध्यान रखना… ओके? बाय।''
बच्चों को समझा कर अंकिता, बिना पलटे, जल्द कदमों से गाड़ी में जाकर बैठ जाती है। जब गाड़ी में बैठी तब पता चला उसके साथ और कोई भी जा रहा है, जो उसकी वजह से लेट हो रहा था। अंकिता को लग रहा था, यह इंसान अब भड़कने ही वाला होगा... कब से गाड़ी खड़ी है, लगातार हॉर्न बज रहा है, फ़िर भी उसने लेट किया। उसके कुछ बोलने से पहले ही अंकिता सॉरी बोलना चाहती थी, पर जैसे ही उसकी तरफ़ देखती है वो एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अंकिता को देख रहा था। अंकिता हैरान थी कि उसे गुस्सा क्यों नहीं आ रहा था? वह सॉरी बोलती उससे पहले वह शख़्स हाथ आगे बढ़ा देता है
राजशेखर : - ( अपना परिचय देते हुए ) हैलो I am राजशेखर, आप चाहें तो मुझे राज या सिर्फ़ शेखर कह सकती हैं। वैसे ज़्यादातर लोग मुझे शेखर कहते हैं। तो आप भी मुझे शेखर ही कह सकती हैं। शेखर बोलना अच्छा नहीं लग रहा हो तो राज कह सकती हैं... मुझे अपना नाम कैसे भी सुनना अच्छा लगता है। बस लोगों का चुप रहना अच्छा नहीं लगता… और सॉरी बोलना तो बिल्कुल भी नहीं...
अंकिता की हैरानी अब हँसी में बदल जाती है, राजशेखर का लम्बा परिचय सुनकर वह बहुत थोड़े शब्दों में अपना परिचय देती है, और देर करने के लिए माफ़ी मांगती है। राजशेखर उसे तिरछी नज़र से देखते हुए कहता है “वैसे मुझे सॉरी बोलना बिलकुल भी पसंद नहीं है...” अंकिता फिर वही कहती है - “रियली सॉरी स…” बोलते बोलते फिर याद आता है और खिल खिला कर हँस देती है। राजशेखर गाड़ी रुकवाता है, ड्राईवर को बगल की सीट पर बैठाकर, खुद गाड़ी ड्राइव करता है और फिर गाड़ी हवाओं से बातें करती चलती है।
एक घंटे का रास्ता, शॉर्टकट लेकर पच्चीस मिनट में पूरा हो जाता है और वक्त पर दोनों एयरपोर्ट पहुँच जाते हैं। अंकिता एक सुकून की सांस लेती है और राजशेखर को थैंक्स बोलती है, क्योंकि घर से निकलते हुए उसे डर लगने लगा था कि अब एयरपोर्ट पहुँच पाएगी या नहीं। कहीं फ्लाइट मिस हो गई तो कल ऑफिस में क्या मुँह दिखाएगी! राजशेखर मुस्कुराते हुए हाथ बढ़ाकर आगे चलने का इशारा करता है, और अगले ही पल अंकिता के साथ अपनी सीट पर पर होता है।
अंकिता के लिए यह सफ़र एक सपना पूरा होने जैसा लग रहा था। उसके कानों में अपने पति आकार के शब्द सुनाई देते हैं। सुबह निकलने से पहले उसने कह दिया था कि तुम मैनेज कर लेना, मेरा जाना बहुत ज़रूरी है। आकार का बिहेवियर सोचकर अंकिता उदास हो जाती है। वह सारी जिम्मेदारियाँ ख़ुशी ख़ुशी उठाती है और कभी अपने पति से शिक़ायत नहीं करती। आज पहली बार आकार के लिए कई सवाल मन में उठ रहे थे।
अंकिता ; - ( मन ही मन ) तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास क्यों नहीं होता आकार? तुम्हारे पास कभी घर या बच्चों के लिए वक्त नहीं होता। इस तरह तुम मुझसे ही नहीं अपने बच्चों से भी दूर हो रहे हो। दस दिन में परसों तुम घर आए थे, और आज फिर चले गए। तुमने एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझा कि मैं कैसे सब मैनेज कर रही हूँ? काम सब करते हैं पर तुम तो काम के अलावा कुछ देखना तक नहीं चाहते। बच्चे हम दोनों की जिम्मेदारी है और उन्हें हम दोनों की जरूरत है। पता नहीं तुम कब समझ पाओगे… ???
गहरी सोच में डूबी अंकिता अचानक चौंक जाती है, राजशेखर उसे हिलाते हुए सीट बेल्ट पहनने का इशारा कर रहा था। हड़बड़ाते हुए वह सीट बेल्ट पहनती है और राजशेखर को थैंक्स बोलकर, सीट से सर टिकाकर बैठ जाती है। अंकिता हमेशा कम बोलती है और अपने काम से मतलब रखती है। वहीं राजशेखर न कम बोलता है न कम बोलने वालों के साथ बैठ पाता है। अंकिता का चुपचाप बैठना उसे बेचैन कर रहा था पर अंकिता आँख बंद करके बैठी थी जैसे गहरी नींद में हो। वह बोलना भी चाहे तो कोई मौका नहीं था उसके पास।
थोड़ी देर वह भी अंकिता की तरह आँख बंद करके बैठ जाता है मगर पांच मिनट भी उससे नहीं बैठा जाता। वह झट से अपनी आखें खोलकर सीधा बैठ जाता है। एक लम्बी साँस खींचकर ख़ुद को रिलेक्स करता है फिर अंकिता को देखता है - वह बिना हिले वैसी ही बैठी थी। राजशेखर हैरत में था इतनी देर कोई चुपचाप कैसे बैठ सकता है ??? वह उसकी आँखों के ऊपर हाथ लहराता है पर अंकिता को कोई असर नहीं था वह जैसी थी वैसी ही बैठी रही।
उसकी बंद आँखें चेहरे की मासूमियत को बड़ा रही थीं, बालों की एक पतली सी लट माथे पर लहरा रही थी। राजशेखर उसे अनदेखा करना चाहता था पर नजर फिर वहीं जा रही थी। आख़िरकार वह अपने आप से ही बातें करने लगता है।
राजशेखर ; - ( अपने आप से ) पिछले महीने मैं नेपाल गया था, उसके पहले Canada, उसके पहले शिमला, पूरे दस दिन तक वहाँ रहना पड़ा था। मगर इससे पहले कभी इतना बोरिंग सफ़र नहीं किया… ये देवी जी नहीं जानती इनकी ख़ामोशी जान निकाल रही है। मैं किसी को इतना चुप नहीं देख सकता, मुझे अच्छा नहीं लग रहा। उठ जाइए प्लीज़ आपकी मासूमियत मुझे परेशान कर रही है मिस अंकिता।
अंकिता ; - ( हँसते हुए ) मिसेज अंकिता आकार पटेल,,, मैं एक मैरिड वर्किंग वूमेन हूँ शेखर जी, और ज्यादा गपशप करना मेरे बस की बात नहीं है। मेरा दिमाग सिर्फ मेरे काम के लिए चलता है उससे ज्यादा चलाया तो बंद हो जाता है, इसलिए प्लीज़ मुझसे ज़्यादा बोलने की उम्मीद मत कीजिए।
शेखर ; - ( खिलखिला कर ) दिमाग की जरूरत काम के लिए ही होती है मिस अंकिता, बातों के लिए तो वैसे भी दिल चाहिए। दिल खोलकर बातें करिए न, चुप रहकर अपने दिल को भी परेशान ही करती हैं आप। अपने दिल को आज़ाद छोड़ दीजिए फिर देखना कैसे हवाओं में उड़कर बातें करेगा।
दिल खोलकर..... अंकिता के लिए यह शब्द ही जैसे नया था। वह तो जरूरत के हिसाब से फैसले करती है; दिल की सुनने फुर्सत नहीं थी उसके पास। शेखर की बातें उसे अज़ीब लग रही थीं। वह जो भी बोलता है उसे नया ही लगता है, हमेशा खुश रहता है, बिना वजह हँसता है, बिना जरूरत के बोलता है। अंकिता हैरान थी कि कोई इतना जिंदादिल कैसे हो सकता है? ख़ुद से उसकी तुलना करती है तो एक उदासी हाथ लगती है, उसकी तो दिनचर्या ही इतनी व्यस्त थी कि ख़ुद के लिए वक्त ही कहाँ था।
शेखर की बातें सुनकर जब ख़ुद के बारे में सोचती है तो बच्चे याद आ जाते हैं। उनकी उदासी याद आती है और आँखें नम हो जाती हैं। किसी तरह शेखर से नजर बचाकर अपनी आँख पोंछकर मुस्कुराने की कोशिश करती है, लेकिन शेखर की नज़रों से नहीं बच पाती। वह सामने देखते हुए अपना रुमाल बढ़ा देता है। अंकिता एक बार फिर हैरान हो जाती है। उसने इस तरफ़ देखा भी नहीं और उसके आँसू दिख गए।
अंकिता : - ( हैरानी से ) आप हमेशा ऐसे ही रहते हैं क्या ? मतलब आपकी बातों में अजीब सी ताजगी होती है... कैसे आप ख़ुद को हर वक्त अपडेट रखते हैं? मैं हैरान हूँ आपकी बेफ़िक्री पर, मतलब अच्छा-सा लगता है जब कोई हमारे आसपास खुश रहे, बातें करता रहे। आपकी फैमिली तो बहुत मिस करती होगी न आपको? जब आप बाहर होते होंगे घर में सबको आपकी कमी महसूस होती होगी???
अंकिता ने यूँ ही बातों बातों में पूछ लिया था पर शेखर जैसे अपनी फैमिली के बारे कुछ नहीं बताना चाहता। कुछ गुनगुनाते हुए फ़ोन देखता रहता है। अंकिता को इस बार तो बहुत अजीब लगा, या तो खुद ही इतनी बातें करता है या फ़िर ज़बाव ही नहीं देता और टालता भी है तो इस तरह हँसकर कि सामने वाला नए सवाल में उलझ जाए। अंकिता अब उसमें और नहीं उलझना चाहती थी। मुस्कुराते हुए वह वापस वैसे ही सर टिकाकर बैठ जाती है पर इस बार आँख बंद करते ही शेखर की शक़्ल दिखती है जैसे मुस्कुराते हुए वह उसकी तरफ़ देख रहा हो। अंकिता हड़बड़ा कर सीधी बैठ जाती है। नज़र चुराते हुए वह शेखर को देखती है। वह अब भी मुस्कुरा रहा था। उसकी मुस्कान में अंकिता को अजीब सा अट्रैक्शन लग रहा था... उसकी तरफ़ खिंचती जा रही थी। शेखर नजरे नीचे करके कहता है, ‘’आकाश को छूने के लिए पांव जमीन से उठाने पड़ते है। बंदिशों की जमीन छोड़ कर ही, सपनों का आसमान छू सकते हैं। जब तक आप खुद कुछ करने की नहीं ठान लेते सफल नहीं हो सकते। बस खुद को साबित करने की कोशिश करते रहेंगे, और हर बार फ़ेल होते रहेंगे। इसलिए मैंने आपको मिस अंकिता कहकर पुकारा।''
आसमान छूने के लिए जमीन छोड़नी पड़ती है, मैंने भी छोड़ दी और देखिए बादलों के बीच उड़ रहा हूँ, बिना पंख के जमीन से बहुत ऊपर। हम यहां सिर्फ़ अपने सपनों को जीने आए हैं। जब वापस जमीन पर लौटेंगे तो एक आत्मविश्वास से भरकर लौटेंगे और वापस वहाँ पैर जमा लेंगे।
अंकिता : - ( सख्त लहजे से ) आपकी बातों का मतलब मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया, आपकी बातों में बहुत गहराई है। मैं जिंदगी को इतनी गहराई से नहीं सोचती, जो जैसा चल रहा है ठीक है। बस जमीन से पैर उठाने में डर लगता है कहीं बीच में न लटक जाएं, क्योंकि आसमान किसी को अपने पास हमेशा नहीं रखता…। मेरे हिसाब से ज़मीन हक़ीकत दिखाती है और आसमान सपने।
शेखर को कोई फर्क नहीं पड़ता अंकिता ने क्या कहा। उसके चेहरे का भाव बिल्कुल भी नहीं बदलता, मगर फिर भी अंकिता उसे सॉरी बोलती है क्योंकि यह उसकी सोच है कि जमीन से जुड़े रहना जरूरी है, और शेखर को लगता है जमीन से ऊपर उठना पड़ता है, तभी सफलता मिलती है। बातों बातों में दोनों एक दूसरे से काफ़ी खुल जाते हैं, पर फ्लाइट लैंड होने पर अंकिता अपना सामान लेने अकेली निकल जाती है। शेखर अपना सामान लेता है और दोनों अपने अपने रास्ते पकड़ कर बढ़ जाते हैं…
क्या यहीं तक था अंकिता और शेखर का साथ??
या यह शुरुआत थी उनकी गहरी दोस्ती की??
जानने के लिए हमारा अगला लगातार गाड़ी के हार्न की आवाज गूँज रही थी। हड़बड़ाई सी अंकिता जल्दी जल्दी बच्चों को खाना खिलाती है, और बैग खींचते हुए बाहर निकल जाती है। दरवाजे के बाहर निकलते ही फिर पलट कर आती है और दोनों बच्चों को गले लगा लेती है। घर का सबसे पुराना, बुज़ुर्ग और विश्वसनीय नौकर भगवन दास आगे आकर कहता है, “जाओ बिटिया, इस तरह तो कभी घर से नहीं निकल पाओगी। बच्चों की बिल्कुल भी चिंता मत करो, मैं अच्छे से संभाल लूँगा।”
अंकिता जानती थी भगवन दास बच्चों का खूब ध्यान रखते हैं, मगर पहली बार एक हफ्ते के लिए बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना उसे दुनिया का सबसे मुश्क़िल काम लग रहा था। उसे अपने पति आकार पर भी गुस्सा आ रहा था। उसे हमेशा ही व्यस्तता रहती है। अगर एक हफ़्ते के लिए वह जा रही थी तो आकार उसके पहले निकल जाता है। अब बच्चों को अकेला छोड़ना पड़ रहा है। आँखें पोंछते हुए अंकिता निकल जाती है पर सात साल का बेटा रजत आकर उससे लिपट जाता है। “मुझे भी ले चलो मम्मा प्लीज़, मैं नहीं रहूंगा... यहाँ दीदी मुझे परेशान करती है। उसके फ्रेंड्स आ जाते हैं और मैं अकेला बोर होता हूँ।”
रजत के रोने से अंकिता की रही सही हिम्मत भी जवाब दे रही थी मग़र उसकी बेटी अश्विनी उसे संभाल लेती है जो अभी सिर्फ़ बारह साल की थी पर ख़ूब सयानी थी। रजत को अपने पास खींचकर कहती है। “मम्मा काम से जा रही है, तुझे नहीं ले जा सकती, समझता क्यों नहीं…, मम्मा आप जाओ गुल्लू ठीक है, मैं उसका ध्यान रखूंगी।” गुल्लू रजत के घर का नाम है। बेटी की बात से अंकिता की आँख भर आती हैं, और जाने की हिम्मत मिल जाती है। दोनों को गले लगा कर कहती है, ‘’देखो तुम दोनों मेरी हिम्मत भी हो, और कमज़ोरी भी। इस तरह तुम लोगों को रोते छोड़कर नहीं जा पाऊँगी मैं, पर अगर मैं नहीं जा पाई तो अपने काम में फेल हो जाऊँगी। अपनी मम्मा को फेल होते देखना तुम लोगों को अच्छा लगेगा क्या?? नहीं न? इसलिए प्यारी सी स्माइल के साथ मम्मा को बाय करो… और हाँ, लड़ाई बिल्कुल नहीं करना, दोनों एक दूसरे का ध्यान रखना… ओके? बाय।''
बच्चों को समझा कर अंकिता, बिना पलटे, जल्द कदमों से गाड़ी में जाकर बैठ जाती है। जब गाड़ी में बैठी तब पता चला उसके साथ और कोई भी जा रहा है, जो उसकी वजह से लेट हो रहा था। अंकिता को लग रहा था, यह इंसान अब भड़कने ही वाला होगा... कब से गाड़ी खड़ी है, लगातार हॉर्न बज रहा है, फ़िर भी उसने लेट किया। उसके कुछ बोलने से पहले ही अंकिता सॉरी बोलना चाहती थी, पर जैसे ही उसकी तरफ़ देखती है वो एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अंकिता को देख रहा था। अंकिता हैरान थी कि उसे गुस्सा क्यों नहीं आ रहा था? वह सॉरी बोलती उससे पहले वह शख़्स हाथ आगे बढ़ा देता है
राजशेखर : - ( अपना परिचय देते हुए ) हैलो I am राजशेखर, आप चाहें तो मुझे राज या सिर्फ़ शेखर कह सकती हैं। वैसे ज़्यादातर लोग मुझे शेखर कहते हैं। तो आप भी मुझे शेखर ही कह सकती हैं। शेखर बोलना अच्छा नहीं लग रहा हो तो राज कह सकती हैं... मुझे अपना नाम कैसे भी सुनना अच्छा लगता है। बस लोगों का चुप रहना अच्छा नहीं लगता… और सॉरी बोलना तो बिल्कुल भी नहीं...
अंकिता की हैरानी अब हँसी में बदल जाती है, राजशेखर का लम्बा परिचय सुनकर वह बहुत थोड़े शब्दों में अपना परिचय देती है, और देर करने के लिए माफ़ी मांगती है। राजशेखर उसे तिरछी नज़र से देखते हुए कहता है “वैसे मुझे सॉरी बोलना बिलकुल भी पसंद नहीं है...” अंकिता फिर वही कहती है - “रियली सॉरी स…” बोलते बोलते फिर याद आता है और खिल खिला कर हँस देती है। राजशेखर गाड़ी रुकवाता है, ड्राईवर को बगल की सीट पर बैठाकर, खुद गाड़ी ड्राइव करता है और फिर गाड़ी हवाओं से बातें करती चलती है।
एक घंटे का रास्ता, शॉर्टकट लेकर पच्चीस मिनट में पूरा हो जाता है और वक्त पर दोनों एयरपोर्ट पहुँच जाते हैं। अंकिता एक सुकून की सांस लेती है और राजशेखर को थैंक्स बोलती है, क्योंकि घर से निकलते हुए उसे डर लगने लगा था कि अब एयरपोर्ट पहुँच पाएगी या नहीं। कहीं फ्लाइट मिस हो गई तो कल ऑफिस में क्या मुँह दिखाएगी! राजशेखर मुस्कुराते हुए हाथ बढ़ाकर आगे चलने का इशारा करता है, और अगले ही पल अंकिता के साथ अपनी सीट पर पर होता है।
अंकिता के लिए यह सफ़र एक सपना पूरा होने जैसा लग रहा था। उसके कानों में अपने पति आकार के शब्द सुनाई देते हैं। सुबह निकलने से पहले उसने कह दिया था कि तुम मैनेज कर लेना, मेरा जाना बहुत ज़रूरी है। आकार का बिहेवियर सोचकर अंकिता उदास हो जाती है। वह सारी जिम्मेदारियाँ ख़ुशी ख़ुशी उठाती है और कभी अपने पति से शिक़ायत नहीं करती। आज पहली बार आकार के लिए कई सवाल मन में उठ रहे थे।
अंकिता ; - ( मन ही मन ) तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास क्यों नहीं होता आकार? तुम्हारे पास कभी घर या बच्चों के लिए वक्त नहीं होता। इस तरह तुम मुझसे ही नहीं अपने बच्चों से भी दूर हो रहे हो। दस दिन में परसों तुम घर आए थे, और आज फिर चले गए। तुमने एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझा कि मैं कैसे सब मैनेज कर रही हूँ? काम सब करते हैं पर तुम तो काम के अलावा कुछ देखना तक नहीं चाहते। बच्चे हम दोनों की जिम्मेदारी है और उन्हें हम दोनों की जरूरत है। पता नहीं तुम कब समझ पाओगे… ???
गहरी सोच में डूबी अंकिता अचानक चौंक जाती है, राजशेखर उसे हिलाते हुए सीट बेल्ट पहनने का इशारा कर रहा था। हड़बड़ाते हुए वह सीट बेल्ट पहनती है और राजशेखर को थैंक्स बोलकर, सीट से सर टिकाकर बैठ जाती है। अंकिता हमेशा कम बोलती है और अपने काम से मतलब रखती है। वहीं राजशेखर न कम बोलता है न कम बोलने वालों के साथ बैठ पाता है। अंकिता का चुपचाप बैठना उसे बेचैन कर रहा था पर अंकिता आँख बंद करके बैठी थी जैसे गहरी नींद में हो। वह बोलना भी चाहे तो कोई मौका नहीं था उसके पास।
थोड़ी देर वह भी अंकिता की तरह आँख बंद करके बैठ जाता है मगर पांच मिनट भी उससे नहीं बैठा जाता। वह झट से अपनी आखें खोलकर सीधा बैठ जाता है। एक लम्बी साँस खींचकर ख़ुद को रिलेक्स करता है फिर अंकिता को देखता है - वह बिना हिले वैसी ही बैठी थी। राजशेखर हैरत में था इतनी देर कोई चुपचाप कैसे बैठ सकता है ??? वह उसकी आँखों के ऊपर हाथ लहराता है पर अंकिता को कोई असर नहीं था वह जैसी थी वैसी ही बैठी रही।
उसकी बंद आँखें चेहरे की मासूमियत को बड़ा रही थीं, बालों की एक पतली सी लट माथे पर लहरा रही थी। राजशेखर उसे अनदेखा करना चाहता था पर नजर फिर वहीं जा रही थी। आख़िरकार वह अपने आप से ही बातें करने लगता है।
राजशेखर ; - ( अपने आप से ) पिछले महीने मैं नेपाल गया था, उसके पहले Canada, उसके पहले शिमला, पूरे दस दिन तक वहाँ रहना पड़ा था। मगर इससे पहले कभी इतना बोरिंग सफ़र नहीं किया… ये देवी जी नहीं जानती इनकी ख़ामोशी जान निकाल रही है। मैं किसी को इतना चुप नहीं देख सकता, मुझे अच्छा नहीं लग रहा। उठ जाइए प्लीज़ आपकी मासूमियत मुझे परेशान कर रही है मिस अंकिता।
अंकिता ; - ( हँसते हुए ) मिसेज अंकिता आकार पटेल,,, मैं एक मैरिड वर्किंग वूमेन हूँ शेखर जी, और ज्यादा गपशप करना मेरे बस की बात नहीं है। मेरा दिमाग सिर्फ मेरे काम के लिए चलता है उससे ज्यादा चलाया तो बंद हो जाता है, इसलिए प्लीज़ मुझसे ज़्यादा बोलने की उम्मीद मत कीजिए।
शेखर ; - ( खिलखिला कर ) दिमाग की जरूरत काम के लिए ही होती है मिस अंकिता, बातों के लिए तो वैसे भी दिल चाहिए। दिल खोलकर बातें करिए न, चुप रहकर अपने दिल को भी परेशान ही करती हैं आप। अपने दिल को आज़ाद छोड़ दीजिए फिर देखना कैसे हवाओं में उड़कर बातें करेगा।
दिल खोलकर..... अंकिता के लिए यह शब्द ही जैसे नया था। वह तो जरूरत के हिसाब से फैसले करती है; दिल की सुनने फुर्सत नहीं थी उसके पास। शेखर की बातें उसे अज़ीब लग रही थीं। वह जो भी बोलता है उसे नया ही लगता है, हमेशा खुश रहता है, बिना वजह हँसता है, बिना जरूरत के बोलता है। अंकिता हैरान थी कि कोई इतना जिंदादिल कैसे हो सकता है? ख़ुद से उसकी तुलना करती है तो एक उदासी हाथ लगती है, उसकी तो दिनचर्या ही इतनी व्यस्त थी कि ख़ुद के लिए वक्त ही कहाँ था।
शेखर की बातें सुनकर जब ख़ुद के बारे में सोचती है तो बच्चे याद आ जाते हैं। उनकी उदासी याद आती है और आँखें नम हो जाती हैं। किसी तरह शेखर से नजर बचाकर अपनी आँख पोंछकर मुस्कुराने की कोशिश करती है, लेकिन शेखर की नज़रों से नहीं बच पाती। वह सामने देखते हुए अपना रुमाल बढ़ा देता है। अंकिता एक बार फिर हैरान हो जाती है। उसने इस तरफ़ देखा भी नहीं और उसके आँसू दिख गए।
अंकिता : - ( हैरानी से ) आप हमेशा ऐसे ही रहते हैं क्या ? मतलब आपकी बातों में अजीब सी ताजगी होती है... कैसे आप ख़ुद को हर वक्त अपडेट रखते हैं? मैं हैरान हूँ आपकी बेफ़िक्री पर, मतलब अच्छा-सा लगता है जब कोई हमारे आसपास खुश रहे, बातें करता रहे। आपकी फैमिली तो बहुत मिस करती होगी न आपको? जब आप बाहर होते होंगे घर में सबको आपकी कमी महसूस होती होगी???
अंकिता ने यूँ ही बातों बातों में पूछ लिया था पर शेखर जैसे अपनी फैमिली के बारे कुछ नहीं बताना चाहता। कुछ गुनगुनाते हुए फ़ोन देखता रहता है। अंकिता को इस बार तो बहुत अजीब लगा, या तो खुद ही इतनी बातें करता है या फ़िर ज़बाव ही नहीं देता और टालता भी है तो इस तरह हँसकर कि सामने वाला नए सवाल में उलझ जाए। अंकिता अब उसमें और नहीं उलझना चाहती थी। मुस्कुराते हुए वह वापस वैसे ही सर टिकाकर बैठ जाती है पर इस बार आँख बंद करते ही शेखर की शक़्ल दिखती है जैसे मुस्कुराते हुए वह उसकी तरफ़ देख रहा हो। अंकिता हड़बड़ा कर सीधी बैठ जाती है। नज़र चुराते हुए वह शेखर को देखती है। वह अब भी मुस्कुरा रहा था। उसकी मुस्कान में अंकिता को अजीब सा अट्रैक्शन लग रहा था... उसकी तरफ़ खिंचती जा रही थी। शेखर नजरे नीचे करके कहता है, ‘’आकाश को छूने के लिए पांव जमीन से उठाने पड़ते है। बंदिशों की जमीन छोड़ कर ही, सपनों का आसमान छू सकते हैं। जब तक आप खुद कुछ करने की नहीं ठान लेते सफल नहीं हो सकते। बस खुद को साबित करने की कोशिश करते रहेंगे, और हर बार फ़ेल होते रहेंगे। इसलिए मैंने आपको मिस अंकिता कहकर पुकारा।''
आसमान छूने के लिए जमीन छोड़नी पड़ती है, मैंने भी छोड़ दी और देखिए बादलों के बीच उड़ रहा हूँ, बिना पंख के जमीन से बहुत ऊपर। हम यहां सिर्फ़ अपने सपनों को जीने आए हैं। जब वापस जमीन पर लौटेंगे तो एक आत्मविश्वास से भरकर लौटेंगे और वापस वहाँ पैर जमा लेंगे।
अंकिता : - ( सख्त लहजे से ) आपकी बातों का मतलब मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया, आपकी बातों में बहुत गहराई है। मैं जिंदगी को इतनी गहराई से नहीं सोचती, जो जैसा चल रहा है ठीक है। बस जमीन से पैर उठाने में डर लगता है कहीं बीच में न लटक जाएं, क्योंकि आसमान किसी को अपने पास हमेशा नहीं रखता…। मेरे हिसाब से ज़मीन हक़ीकत दिखाती है और आसमान सपने।
शेखर को कोई फर्क नहीं पड़ता अंकिता ने क्या कहा। उसके चेहरे का भाव बिल्कुल भी नहीं बदलता, मगर फिर भी अंकिता उसे सॉरी बोलती है क्योंकि यह उसकी सोच है कि जमीन से जुड़े रहना जरूरी है, और शेखर को लगता है जमीन से ऊपर उठना पड़ता है, तभी सफलता मिलती है। बातों बातों में दोनों एक दूसरे से काफ़ी खुल जाते हैं, पर फ्लाइट लैंड होने पर अंकिता अपना सामान लेने अकेली निकल जाती है। शेखर अपना सामान लेता है और दोनों अपने अपने रास्ते पकड़ कर बढ़ जाते हैं…
क्या यहीं तक था अंकिता और शेखर का साथ??
या यह शुरुआत थी उनकी गहरी दोस्ती की??
जानने के लिए अगला लगातार गाड़ी के हार्न की आवाज गूँज रही थी। हड़बड़ाई सी अंकिता जल्दी जल्दी बच्चों को खाना खिलाती है, और बैग खींचते हुए बाहर निकल जाती है। दरवाजे के बाहर निकलते ही फिर पलट कर आती है और दोनों बच्चों को गले लगा लेती है। घर का सबसे पुराना, बुज़ुर्ग और विश्वसनीय नौकर भगवन दास आगे आकर कहता है, “जाओ बिटिया, इस तरह तो कभी घर से नहीं निकल पाओगी। बच्चों की बिल्कुल भी चिंता मत करो, मैं अच्छे से संभाल लूँगा।”
अंकिता जानती थी भगवन दास बच्चों का खूब ध्यान रखते हैं, मगर पहली बार एक हफ्ते के लिए बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना उसे दुनिया का सबसे मुश्क़िल काम लग रहा था। उसे अपने पति आकार पर भी गुस्सा आ रहा था। उसे हमेशा ही व्यस्तता रहती है। अगर एक हफ़्ते के लिए वह जा रही थी तो आकार उसके पहले निकल जाता है। अब बच्चों को अकेला छोड़ना पड़ रहा है। आँखें पोंछते हुए अंकिता निकल जाती है पर सात साल का बेटा रजत आकर उससे लिपट जाता है। “मुझे भी ले चलो मम्मा प्लीज़, मैं नहीं रहूंगा... यहाँ दीदी मुझे परेशान करती है। उसके फ्रेंड्स आ जाते हैं और मैं अकेला बोर होता हूँ।”
रजत के रोने से अंकिता की रही सही हिम्मत भी जवाब दे रही थी मग़र उसकी बेटी अश्विनी उसे संभाल लेती है जो अभी सिर्फ़ बारह साल की थी पर ख़ूब सयानी थी। रजत को अपने पास खींचकर कहती है। “मम्मा काम से जा रही है, तुझे नहीं ले जा सकती, समझता क्यों नहीं…, मम्मा आप जाओ गुल्लू ठीक है, मैं उसका ध्यान रखूंगी।” गुल्लू रजत के घर का नाम है। बेटी की बात से अंकिता की आँख भर आती हैं, और जाने की हिम्मत मिल जाती है। दोनों को गले लगा कर कहती है, ‘’देखो तुम दोनों मेरी हिम्मत भी हो, और कमज़ोरी भी। इस तरह तुम लोगों को रोते छोड़कर नहीं जा पाऊँगी मैं, पर अगर मैं नहीं जा पाई तो अपने काम में फेल हो जाऊँगी। अपनी मम्मा को फेल होते देखना तुम लोगों को अच्छा लगेगा क्या?? नहीं न? इसलिए प्यारी सी स्माइल के साथ मम्मा को बाय करो… और हाँ, लड़ाई बिल्कुल नहीं करना, दोनों एक दूसरे का ध्यान रखना… ओके? बाय।''
बच्चों को समझा कर अंकिता, बिना पलटे, जल्द कदमों से गाड़ी में जाकर बैठ जाती है। जब गाड़ी में बैठी तब पता चला उसके साथ और कोई भी जा रहा है, जो उसकी वजह से लेट हो रहा था। अंकिता को लग रहा था, यह इंसान अब भड़कने ही वाला होगा... कब से गाड़ी खड़ी है, लगातार हॉर्न बज रहा है, फ़िर भी उसने लेट किया। उसके कुछ बोलने से पहले ही अंकिता सॉरी बोलना चाहती थी, पर जैसे ही उसकी तरफ़ देखती है वो एक प्यारी सी मुस्कान के साथ अंकिता को देख रहा था। अंकिता हैरान थी कि उसे गुस्सा क्यों नहीं आ रहा था? वह सॉरी बोलती उससे पहले वह शख़्स हाथ आगे बढ़ा देता है
राजशेखर : - ( अपना परिचय देते हुए ) हैलो I am राजशेखर, आप चाहें तो मुझे राज या सिर्फ़ शेखर कह सकती हैं। वैसे ज़्यादातर लोग मुझे शेखर कहते हैं। तो आप भी मुझे शेखर ही कह सकती हैं। शेखर बोलना अच्छा नहीं लग रहा हो तो राज कह सकती हैं... मुझे अपना नाम कैसे भी सुनना अच्छा लगता है। बस लोगों का चुप रहना अच्छा नहीं लगता… और सॉरी बोलना तो बिल्कुल भी नहीं...
अंकिता की हैरानी अब हँसी में बदल जाती है, राजशेखर का लम्बा परिचय सुनकर वह बहुत थोड़े शब्दों में अपना परिचय देती है, और देर करने के लिए माफ़ी मांगती है। राजशेखर उसे तिरछी नज़र से देखते हुए कहता है “वैसे मुझे सॉरी बोलना बिलकुल भी पसंद नहीं है...” अंकिता फिर वही कहती है - “रियली सॉरी स…” बोलते बोलते फिर याद आता है और खिल खिला कर हँस देती है। राजशेखर गाड़ी रुकवाता है, ड्राईवर को बगल की सीट पर बैठाकर, खुद गाड़ी ड्राइव करता है और फिर गाड़ी हवाओं से बातें करती चलती है।
एक घंटे का रास्ता, शॉर्टकट लेकर पच्चीस मिनट में पूरा हो जाता है और वक्त पर दोनों एयरपोर्ट पहुँच जाते हैं। अंकिता एक सुकून की सांस लेती है और राजशेखर को थैंक्स बोलती है, क्योंकि घर से निकलते हुए उसे डर लगने लगा था कि अब एयरपोर्ट पहुँच पाएगी या नहीं। कहीं फ्लाइट मिस हो गई तो कल ऑफिस में क्या मुँह दिखाएगी! राजशेखर मुस्कुराते हुए हाथ बढ़ाकर आगे चलने का इशारा करता है, और अगले ही पल अंकिता के साथ अपनी सीट पर पर होता है।
अंकिता के लिए यह सफ़र एक सपना पूरा होने जैसा लग रहा था। उसके कानों में अपने पति आकार के शब्द सुनाई देते हैं। सुबह निकलने से पहले उसने कह दिया था कि तुम मैनेज कर लेना, मेरा जाना बहुत ज़रूरी है। आकार का बिहेवियर सोचकर अंकिता उदास हो जाती है। वह सारी जिम्मेदारियाँ ख़ुशी ख़ुशी उठाती है और कभी अपने पति से शिक़ायत नहीं करती। आज पहली बार आकार के लिए कई सवाल मन में उठ रहे थे।
अंकिता ; - ( मन ही मन ) तुम्हें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास क्यों नहीं होता आकार? तुम्हारे पास कभी घर या बच्चों के लिए वक्त नहीं होता। इस तरह तुम मुझसे ही नहीं अपने बच्चों से भी दूर हो रहे हो। दस दिन में परसों तुम घर आए थे, और आज फिर चले गए। तुमने एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझा कि मैं कैसे सब मैनेज कर रही हूँ? काम सब करते हैं पर तुम तो काम के अलावा कुछ देखना तक नहीं चाहते। बच्चे हम दोनों की जिम्मेदारी है और उन्हें हम दोनों की जरूरत है। पता नहीं तुम कब समझ पाओगे… ???
गहरी सोच में डूबी अंकिता अचानक चौंक जाती है, राजशेखर उसे हिलाते हुए सीट बेल्ट पहनने का इशारा कर रहा था। हड़बड़ाते हुए वह सीट बेल्ट पहनती है और राजशेखर को थैंक्स बोलकर, सीट से सर टिकाकर बैठ जाती है। अंकिता हमेशा कम बोलती है और अपने काम से मतलब रखती है। वहीं राजशेखर न कम बोलता है न कम बोलने वालों के साथ बैठ पाता है। अंकिता का चुपचाप बैठना उसे बेचैन कर रहा था पर अंकिता आँख बंद करके बैठी थी जैसे गहरी नींद में हो। वह बोलना भी चाहे तो कोई मौका नहीं था उसके पास।
थोड़ी देर वह भी अंकिता की तरह आँख बंद करके बैठ जाता है मगर पांच मिनट भी उससे नहीं बैठा जाता। वह झट से अपनी आखें खोलकर सीधा बैठ जाता है। एक लम्बी साँस खींचकर ख़ुद को रिलेक्स करता है फिर अंकिता को देखता है - वह बिना हिले वैसी ही बैठी थी। राजशेखर हैरत में था इतनी देर कोई चुपचाप कैसे बैठ सकता है ??? वह उसकी आँखों के ऊपर हाथ लहराता है पर अंकिता को कोई असर नहीं था वह जैसी थी वैसी ही बैठी रही।
उसकी बंद आँखें चेहरे की मासूमियत को बड़ा रही थीं, बालों की एक पतली सी लट माथे पर लहरा रही थी। राजशेखर उसे अनदेखा करना चाहता था पर नजर फिर वहीं जा रही थी। आख़िरकार वह अपने आप से ही बातें करने लगता है।
राजशेखर ; - ( अपने आप से ) पिछले महीने मैं नेपाल गया था, उसके पहले Canada, उसके पहले शिमला, पूरे दस दिन तक वहाँ रहना पड़ा था। मगर इससे पहले कभी इतना बोरिंग सफ़र नहीं किया… ये देवी जी नहीं जानती इनकी ख़ामोशी जान निकाल रही है। मैं किसी को इतना चुप नहीं देख सकता, मुझे अच्छा नहीं लग रहा। उठ जाइए प्लीज़ आपकी मासूमियत मुझे परेशान कर रही है मिस अंकिता।
अंकिता ; - ( हँसते हुए ) मिसेज अंकिता आकार पटेल,,, मैं एक मैरिड वर्किंग वूमेन हूँ शेखर जी, और ज्यादा गपशप करना मेरे बस की बात नहीं है। मेरा दिमाग सिर्फ मेरे काम के लिए चलता है उससे ज्यादा चलाया तो बंद हो जाता है, इसलिए प्लीज़ मुझसे ज़्यादा बोलने की उम्मीद मत कीजिए।
शेखर ; - ( खिलखिला कर ) दिमाग की जरूरत काम के लिए ही होती है मिस अंकिता, बातों के लिए तो वैसे भी दिल चाहिए। दिल खोलकर बातें करिए न, चुप रहकर अपने दिल को भी परेशान ही करती हैं आप। अपने दिल को आज़ाद छोड़ दीजिए फिर देखना कैसे हवाओं में उड़कर बातें करेगा।
दिल खोलकर..... अंकिता के लिए यह शब्द ही जैसे नया था। वह तो जरूरत के हिसाब से फैसले करती है; दिल की सुनने फुर्सत नहीं थी उसके पास। शेखर की बातें उसे अज़ीब लग रही थीं। वह जो भी बोलता है उसे नया ही लगता है, हमेशा खुश रहता है, बिना वजह हँसता है, बिना जरूरत के बोलता है। अंकिता हैरान थी कि कोई इतना जिंदादिल कैसे हो सकता है? ख़ुद से उसकी तुलना करती है तो एक उदासी हाथ लगती है, उसकी तो दिनचर्या ही इतनी व्यस्त थी कि ख़ुद के लिए वक्त ही कहाँ था।
शेखर की बातें सुनकर जब ख़ुद के बारे में सोचती है तो बच्चे याद आ जाते हैं। उनकी उदासी याद आती है और आँखें नम हो जाती हैं। किसी तरह शेखर से नजर बचाकर अपनी आँख पोंछकर मुस्कुराने की कोशिश करती है, लेकिन शेखर की नज़रों से नहीं बच पाती। वह सामने देखते हुए अपना रुमाल बढ़ा देता है। अंकिता एक बार फिर हैरान हो जाती है। उसने इस तरफ़ देखा भी नहीं और उसके आँसू दिख गए।
अंकिता : - ( हैरानी से ) आप हमेशा ऐसे ही रहते हैं क्या ? मतलब आपकी बातों में अजीब सी ताजगी होती है... कैसे आप ख़ुद को हर वक्त अपडेट रखते हैं? मैं हैरान हूँ आपकी बेफ़िक्री पर, मतलब अच्छा-सा लगता है जब कोई हमारे आसपास खुश रहे, बातें करता रहे। आपकी फैमिली तो बहुत मिस करती होगी न आपको? जब आप बाहर होते होंगे घर में सबको आपकी कमी महसूस होती होगी???
अंकिता ने यूँ ही बातों बातों में पूछ लिया था पर शेखर जैसे अपनी फैमिली के बारे कुछ नहीं बताना चाहता। कुछ गुनगुनाते हुए फ़ोन देखता रहता है। अंकिता को इस बार तो बहुत अजीब लगा, या तो खुद ही इतनी बातें करता है या फ़िर ज़बाव ही नहीं देता और टालता भी है तो इस तरह हँसकर कि सामने वाला नए सवाल में उलझ जाए। अंकिता अब उसमें और नहीं उलझना चाहती थी। मुस्कुराते हुए वह वापस वैसे ही सर टिकाकर बैठ जाती है पर इस बार आँख बंद करते ही शेखर की शक़्ल दिखती है जैसे मुस्कुराते हुए वह उसकी तरफ़ देख रहा हो। अंकिता हड़बड़ा कर सीधी बैठ जाती है। नज़र चुराते हुए वह शेखर को देखती है। वह अब भी मुस्कुरा रहा था। उसकी मुस्कान में अंकिता को अजीब सा अट्रैक्शन लग रहा था... उसकी तरफ़ खिंचती जा रही थी। शेखर नजरे नीचे करके कहता है, ‘’आकाश को छूने के लिए पांव जमीन से उठाने पड़ते है। बंदिशों की जमीन छोड़ कर ही, सपनों का आसमान छू सकते हैं। जब तक आप खुद कुछ करने की नहीं ठान लेते सफल नहीं हो सकते। बस खुद को साबित करने की कोशिश करते रहेंगे, और हर बार फ़ेल होते रहेंगे। इसलिए मैंने आपको मिस अंकिता कहकर पुकारा।''
आसमान छूने के लिए जमीन छोड़नी पड़ती है, मैंने भी छोड़ दी और देखिए बादलों के बीच उड़ रहा हूँ, बिना पंख के जमीन से बहुत ऊपर। हम यहां सिर्फ़ अपने सपनों को जीने आए हैं। जब वापस जमीन पर लौटेंगे तो एक आत्मविश्वास से भरकर लौटेंगे और वापस वहाँ पैर जमा लेंगे।
अंकिता : - ( सख्त लहजे से ) आपकी बातों का मतलब मुझे बिल्कुल समझ नहीं आया, आपकी बातों में बहुत गहराई है। मैं जिंदगी को इतनी गहराई से नहीं सोचती, जो जैसा चल रहा है ठीक है। बस जमीन से पैर उठाने में डर लगता है कहीं बीच में न लटक जाएं, क्योंकि आसमान किसी को अपने पास हमेशा नहीं रखता…। मेरे हिसाब से ज़मीन हक़ीकत दिखाती है और आसमान सपने।
शेखर को कोई फर्क नहीं पड़ता अंकिता ने क्या कहा। उसके चेहरे का भाव बिल्कुल भी नहीं बदलता, मगर फिर भी अंकिता उसे सॉरी बोलती है क्योंकि यह उसकी सोच है कि जमीन से जुड़े रहना जरूरी है, और शेखर को लगता है जमीन से ऊपर उठना पड़ता है, तभी सफलता मिलती है। बातों बातों में दोनों एक दूसरे से काफ़ी खुल जाते हैं, पर फ्लाइट लैंड होने पर अंकिता अपना सामान लेने अकेली निकल जाती है। शेखर अपना सामान लेता है और दोनों अपने अपने रास्ते पकड़ कर बढ़ जाते हैं…
क्या यहीं तक था अंकिता और शेखर का साथ??
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जानने के लिए पढ़िए हमारा अगला भाग।
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