सूरज मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने दूर खड़े किसी इंसान से अंगूठा उठा कर डन का इशारा किया और युविका के साथ वहां से चला गया। दूसरी तरफ रोशनी भी प्रताप के साथ वहां से चली गयी। अर्जुन समीरा के ग्रुप में चला गया। अक्षरा अब वही बैठ गयी , उसके आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे। अवि और अक्षरा दोनो का हाल एक जैसा ही था। सिद्धार्थ उन लोगों को संभालने की कोशिश कर रहा था लेकिन अकेले सम्भालना मुश्किल था। बड़ी मुश्किल से वह दोनो को सहारा देकर मॉल से बाहर ले कर गया। अवि को अर्जुन के साथ छोड़कर खुद अक्षरा को छोड़ने उसके घर चला गया। इतना सब कुछ होने के बाद भी सिद्धार्थ चुप था उसके मुंह से एक शब्द नही निकला। लेकिन अवि के बाद अगर सबसे ज्यादा किसी को तकलीफ हो रही थी तो वह सिद्धार्थ को हो रही थी क्योंकि युविका उसकी पहली दोस्त थी। उसकी युविका ऐसी कभी नही थी, फिर वह अचानक इतना कैसे बदल गयी उसे समझ नही आ रहा था। अक्षरा को उसके घर छोड़ने के बाद सिद्धार्थ, अवि के रूम पर आया, तब तक अवि अर्जुन के साथ रूम पर पहुँच गया था। अर्जुन अवि को छोड़कर कहीं निकल गया था। अवि अकेला रूम पर बैठा था। शायद यही कारण था कि सिद्धार्थ अपनी तकलीफ नही दिखा रहा था क्योंकि उसे बाकी सबको सम्भालना भी था।
युविका भी अपने रूम पर जाकर फूट फूट कर रो रही थी। उसने आज गुस्से में बहुत कुछ गलत कह दिया था जो शायद उसको नही बोलना चाहिए था। "काश मैंने आज अपना गुस्सा कंट्रोल किया होता तो मेरे सारे दोस्त मेरे साथ होते।" उसने खुद से कहा।
रोशनी घर जाकर बहुत परेशान थी। उसने खुद को रूम में बंद कर लिया और बोली-"कैसे समझाऊं तुम्हे युविका यहां सब तुम्हारी भलाई चाहते है। सूरज अच्छा लड़का नही है। मैंने देखा है उसे किसी और लड़कीं के साथ घूमते हुए, बस मेरे पास कोई सबूत नही है। वह सिर्फ तुम्हारा इस्तेमाल कर रहा है अपने मतलब के लिए और कुछ नही।"
सूरज युविका को छोड़कर बाहर आया और उसने अपने फोन पर एक नंबर डायल किया-" वेलडन! हम जो चाहते थे आखिर हो गया। लेकिन एक बात नही समझ आयी तुमने मेरी हेल्प क्यों की?"
दूसरी तरफ से आवाज आई- "जिस तरह अवि ने मेरा प्यार ठुकराया है न, उसी तरह मैं भी चाहती हूं वह भी अपने प्यार के लिए जिंदगी भर तड़पे।"
सूरज-"अभी जो थोड़ा बहुत हमारा काम बाकी है। हम बहुत जल्दी वह भी खत्म कर देंगे।"
आवाज- "हाँ बिल्कुल, वैसे तुम्हारी गर्लफ्रैंड "कैसी है?"
सूरज- "कौन सी वाली?"
आवाज- "अरे युविका.."
सूरज- "वह गर्लफ्रैंड थोड़ी है वह तो होने वाली घरवाली है। गर्लफ्रैंड बहुत अच्छी है सब।"
आवाज- "सब कितनी है?"
सूरज- "तुम्हे क्यों बताऊँ, तुम्हारा क्या भरोसा आज मुझसे मतलब निकल रहा तो मेरे साथ हो कल किसी और से मतलब निकलने लगा तो किसी और के साथ हो जाओगी। चलो अब रखता हूँ। मैं अजनबियों से ज्यादा मतलब नही रखता।"
इतना कहकर सूरज ने फोन काट दिया। फ्रेंडशिप डे उन सबकी जिंदगी का सबसे बुरा दिन था। उस दिन के बाद किसी ने भी एक दूसरे से बात करने की कोशिश नही की। हर शख्स को अब सिर्फ अपने आप से मतलब था। कोई भी अब वापस वह सब चीजें नही चाहता था और न ही अपने दोस्तों की जगह किसी और को दे सकता था। अर्जुन ने भी रूम चेंज कर दिया था और वह वरुण के साथ दूसरे कमरे में शिफ्ट हो गया। अवि बहुत अकेला हो गया, इसलिए सिद्धार्थ अब अवि के रूम पर रहने लगा क्योंकि अवि को बहुत जरूरत थी एक दोस्त की ,अर्जुन की नाराजगी किसी की भी समझ से परे थी।
अवि आज भी हर रोज सनाया को काल करता था क्योंकि अब वही उसकी आखिरी उम्मीद थी। सब कुछ टूट चुका था। रक्षाबन्धन आने वाला था इसलिए सब घर जाने लगे। अवि और सिद्धार्थ घर नही गए। शायद उनका मन नही था।
युविका भी घर आई, उसे पता चला कि उसकी और सूरज की सगाई फिक्स हो गयी है और आने वाले नवरात्रों में उसकी सगाई है। वह इस बात से बहुत खुश थी। लेकिन अब उसके पास कोई दोस्त नही था जिससे अपनी ये खुशी बांट सके, और वैसे भी उसे अब ये लगने लगा था कि कोई भी नही चाहता कि वह सूरज के साथ रहे, इसलिए उसने किसी को भी कॉल नही किया। फिर उसको सनाया की याद आयी तो उसने सनाया को कॉल लगाया -"उसका फोन बंद था इसलिए उसने सनाया के पापा के नंबर पर कॉल लगाया और सनाया से बात कराने को कहा।
युविका- "सनाया तुझे पता है मेरी सूरज से सगाई है नवरात्र में, फाइनली मैं सूरज की होने वाली हूँ ,आज मैं बहुत खुश हूं।"
सनाया उदास मन से-"कांग्रट्स यार"
युविका- "ऐसे नही मिलकर विश कर..."
सनाया- "यार घर पर कोई नही है। पापा है , उनकी तबियत सही नही है। एक काम कर तू आजा"
युविका-"ठीक है टाइम निकाल कर आती हूँ। ओके अभी रखती हूं मम्मी बुला रही है।"
सनाया- "ओके.."
"मुझे अब अवि को सूरज की डिटेल्स भेजनी ही होगी। ये आएगी तो मैं इसके फोन से अवि का नंबर निकाल कर पापा के फोन से उन्हें कॉल करूँगी। मैं जानती हूं सूरज युविका के लिए सही नही है।" सनाया सोचती है।
अगले दिन युविका टाइम निकाल कर सनाया के पास जाती है तो सनाया उसे ऊपरी मन से विश करती है। फिर युविका उसे अपनी कॉलेज की सारी बातें बताती है जिन्हें सुनकर सनाया को बहुत बुरा लगता है, उसे भी युविका गलत लगती है लेकिन वह उस वक्त उसके सामने कुछ नही बोलती और चुपके से उसके फोन से अवि का नंबर निकाल लेती है, जिसे युविका ने अभी तक बीएफएफ के नाम से सेव कर रखा था। हमारी ये खास आदत है हम भले ही अपने दोस्तों से कितना झगड़ा कर ले, लेकिन उनके नंबर कभी डिलीट नही कर सकते पता नही कब जरूरत पड़ जाए।
थोड़ी देर बाद सूरज युविका को लेने आया और वह चली गयी, थोड़ी देर बाद ही सनाया पापा के फोन से अवि को कॉल करती है। दूसरी तरफ अवि सो रहा था, नया नंबर देखकर सिद्धार्थ फोन उठा लेता है।
सिद्धार्थ- "हेलो कौन?"
सनाया- "मैं सनाया ! मुझे अवि से बात करनी है आप कौन?"
सिद्धार्थ- "मैं सिद्धार्थ बोल रहा हूँ अवि अभी सो रहा है।"
सनाया- "प्लीज़ आप उन्हें जगा दो, बहुत जरूरी काम है।"
सिद्धार्थ- "आप मुझे बता सकती है।"
सनाया- "आप अवि को जगा दो मेरे पास ज्यादा टाइम नही है।"
सिद्धार्थ अवि को जगाता है और उसे बताता है कि सनाया की कॉल है तो अवि तुरन्त फोन ले लेता है और उसपर गुस्सा करने लगता है। सनाया उसे बताती है कि उसका फोन खराब हो गया है इसलिए उसके पास नंबर नही था। आज युविका आयी थी तो उसके फोन से लिया है, साथ ही वह अवि को ये बताती है कि युविका की अगले महीने सूरज से सगाई है। जिसे सुनकर अवि परेशान हो जाता है सनाया कहती है-"अभी हमारे पास एक महीने का टाइम है और मैं तुम्हे उसका सारा बॉयोडाटा सेंड कर रही हूं। उसके बारे में पता लगाना आपका काम है।" इतना कहकर सनाया फोन कट कर देती है और अवि को सूरज के घर का एड्रेस और बाकी सारी डिटेल्स मैसेज कर देती है। जिसे देखकर अवि के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
अर्जुन,अवि और वरुण आज फिर बैराज गए थे। अवि का गंगा जी से बहुत पुराना नाता था। वह बनारस में भी अक्सर घण्टों घाट पर बैठा रहता और गंगा के पानी को निहारता रहता। आज भी वह नीचे जाकर रेत पर खेलने लगा और उसके बाद वही बनी सीढ़ियों पर बैठकर गंगा के पानी को देख रहा था, मैंने पहले ही बताया था कि कानपुर में गंगा बैराज शाम के वक्त घूमने की बहुत ही अच्छी जगह है। गंगा के ऊपर एक किलोमीटर का पुल बना है शाम को वहां पर घूमने वालों की बहुत भीड़ रहती है। पुल के दूसरी तरफ न जाने कितने मैगी पॉइंट है, दोस्तों के साथ वहां पर बैठकर मैग्गी खाने का अलग ही मजा होता है।
हमने कितनी भी बार घर मे मैग्गी खाई हो लेकिन वहां जाकर मैग्गी नही खाई तो हमारा वहां जाना ही बेकार है। अर्जुन,अवि भी पहले घण्टों वही पानी में खेलते रहे उसके बाद मैग्गी पॉइंट पर गए। उन्होंने वहां मैग्गी खाई, फिर जब काफी अंधेरा हो गया तो वापस आ गए। आज अवि ने अर्जुन के साथ खूब मस्ती की। अवि को इस तरह देखकर अर्जुन को पुराने दिनों की याद आ गयी। कॉलेज के पहले साल भी अवि ऐसे ही अर्जुन के साथ घूमता फिरता और मस्ती करता था। उसे लग रहा था कि उसका अवि उसको फिर से मिल गया है। दोनो काफी थक गए थे, उन्हें भूख भी नही थी इसलिए आकर जल्दी ही सो गए क्योंकि अगले दिन से उन्हें अपने काम पर लगना था, सूरज का सच पता करना था। थोड़ा मुश्किल था उनके लिये क्योंकि वह कानपुर को ज्यादा अच्छे से नही जानते थे लेकिन नामुमकिन बिल्कुल नही था। अगली सुबह अवि और अर्जुन दोनों ही जल्दी जग गए। अवि ने मैसेज चेक किया कि हो सकता है सनाया ने एड्रेस सेंड कर दिया लेकिन उसका कोई मैसेज नही था।
दोनों बैठकर सोच रहे थे क्या किया जाए और कैसे किया जाए? जब सुबह के नौ बज गए और सनाया का कोई मैसेज नही आया तो अवि ने सोचा कि मैं ही कॉल करके बोल दूँ। उसने सनाया को कॉल लगाया तो उसका नंबर बन्द आ रहा था। अब दोनों को समझ नही आ रहा था कि करें तो करें क्या? ऐसे ही बैठे बैठे इंतजार करते उन्हें गयारह बज गए लेकिन सनाया का फोन अभी भी बंद था। अवि फिर से परेशान हो गया। कॉलेज भी बंद चल रहे थे। सारे बच्चे अपने अपने घर गए हुए थे। युविका भी घर पर थी।
अवि सोच रहा था कि अगर कॉलेज खुलने के पहले ही उसने सूरज के बारे में पता लगा लिया तो कॉलेज खुलते ही वह सूरज की सच्चाई युविका के सामने ला देगा। तीन दिन बाद कॉलेज खुलने वाले थे, अब उसे एक एक दिन भारी लग रहा था। जल्दी से जल्दी वह सूरज को युविका की लाइफ से दूर करना चाहता था। अर्जुन ने जब अवि को परेशान देखा तो पूछने लगा-"क्या बात है भाई? तू अब क्यों परेशान है?"
अवि-"कुछ नही, मैं सोच रहा था कि जितनी जल्दी इस सूरज की सच्चाई हमे पता चल जाएगी। हम उसे युविका की लाइफ से उतनी ही जल्दी दूर कर पाएंगे।"
अर्जुन-"हाँ भाई, कह तो तू सही रहा है लेकिन अब ये होगा कैसे? सनाया ने आज के लिए बोला था और सुबह से नंबर बन्द करके बैठी है। और तो और हम उस सूरज के बारे में कुछ जानते भी नही है।"
अवि- "वही तो प्रॉब्लम है। हो सकता है सनाया के फोन की बैटरी डेड हो गयी हो। मुझे पूरा यकीन है वह जल्दी ही कॉल करेगी।"
अर्जुन- "भाई मैं भी यही उम्मीद करता हूं।"
उसके बाद दोनों अपने अपने कामों में लग गए। इसी तरह तीन दिन गुजर गए न ही सनाया की कोई कॉल आयी और न उसका नंबर ऑन हुआ। युविका से भी अवि की एक महीने से बात नही हुई थी। उसने न जाने कितनी बार कॉल की थी लेकिन युविका ने उसकी एक भी कॉल रिसीव नही की थी और न ही कभी कॉल बैक की। एक होप जो उसे सनाया के रूप में मिली थी वह भी टूट गयी थी
अगले दिन मंडे था और साथ ही अवि के लिए ये पाँचवें सेमेस्टर का पहला दिन था। युविका अब सेकंड ईयर में पहुँच गयी थी हालांकि रिजल्ट आना अभी बाकी था।
नेक्स्ट डे सब कॉलेज आ गए सिवाय युविका के, अक्षरा को भी अर्जुन पूरे एक महीने बाद देख रहा था, वह बड़े ध्यान से उसकी तरफ हाथ हिलाती चली आ रही थी। अर्जुन अक्षरा को देखने में बिजी था और अवि उसको, जब काफी देर तक अर्जुन ने पलकें नही झपकाई तो अवि उसको चिकोटी काटते हुए बोला-"अरे बस कर भाई वह पास आ गयी है। अब तो घूरना बन्द कर दे।"
अवि के चिकोटी काटने पर अर्जुन का ध्यान अक्षरा से हटकर अवि की तरफ गया और वह हड़बड़ा कर बोला- "हां भाई तू कुछ कह रहा था क्या?"
"बस यही की आप इतने ध्यान से किसको देख रहे थे?" पास आती हुई अक्षरा बोली।
अवि- "वो तो बस तुम....."
अर्जुन हड़बड़ाहट से वहां से जाने लगा तो अक्षरा फिर बोली- "अरे अर्जुन सर क्या हुआ , मेरे आते ही आप कहाँ चल दिये?"
अर्जुन- "अरे कुछ नही मेरे एक फ्रेंड को मुझसे कुछ काम है। वह मुझे अभी बुला कर गया है। वही जा रहा हूँ।"
अक्षरा- "तब ठीक है जाइये मुझे लग रहा था आप मुझसे डर के भाग रहे।"
आखिर क्यों अर्जुन बना रहा था दूरी अक्षरा से? क्या उसके दिमाग में और कुछ चल रहा था? और अक्षरा क्या चाहती थी? मिलेगा इन सभी सवालों के जवाब बस बने रहिए हमारे साथ।
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