श्री - "अय्यो… पकड़िए ज़रा.."

टफ होता है न, यूं इतना सारा सामान एक साथ उठाना।

श्री - "अम्मा भी न… कितना कुछ पैक कर दिया.. अब बताइए ज़रा, कोई भला मुरुक्कु, लड्डू, हलवा, सेव… इतना कुछ एक साथ खा सकता है क्या पर अम्मा.. अम्मा ने सब रख दिया।"

खुद से पहले उतरने वाले पैसेंजर को एक - एक कर अपना सारा सामान पकड़ाते हुए श्री ने उसे ये तक बता दिया है कि उसके दादा की दो शादी हुई थी, उसके अप्पा का स्नैक्स का बिजनेस है, उसकी अक्का की शादी किसी रईस घर में हुई है पर अक्का खुश नहीं है , और बेचारा पैसेंजर… कुछ कर भी नहीं सकता, पिछले 2 दिन के सफर में श्री ने उसे अपना मुँह बोला भाई जो बना लिया है।

श्री - "थैंक यू बाबू भइया। आज आपने बड़ी मदद की… आप नहीं होते तो ये श्री तो…।"

इधर श्री अपना थैंक यू बोलती ही है कि उधर बाबू भइया 'मोष्ट भैलकम' कर निकल लेते हैं।

अक्सर ऐसी रेल यात्राओं में हमें मिल जाते हैं न कुछ लोग, जिनसे ढेर सारी बातें हो जाती हैं और फिर बातों ही बातों में हमें उनमें कभी कोई दोस्त दिख जाता है तो कभी कोई भाई, बहन, दादी… पर उन कुछ लोगों में से कुछ ऐसे निकल जाते हैं जिनसे, सफर खत्म होते - होते हम ऊब जाते हैं या जिनसे जान छुड़ा कर भागना चाहते हैं। हम डर जाते हैं कि कहीं ये हमसे हमारा पता या नंबर न मांग लें। अभी - अभी ऐसा ही कुछ हुआ है बाबू भइया के साथ। वो जैसे - तैसे श्री से अपनी जान छुड़ा कर भाग गए हैं।

"कहाँ जाएँगी मैम जी? हम छोड़ दें आपको?", स्टेशन के बाहर आते ही एक ऑटो वाला भाग कर आता है और उसके पीछे दो चार और भी आते हैं।

श्री - "जाएंगे.. बिल्कुल जाएंगे। किसी अच्छे से हॉस्टल ले चलिए भाईया जी जहाँ पर दाम कम और काम ज्यादा हो सके।"

इतना कहकर श्री जो सबसे पहले आया होता है, उसके हाथ में दोनों बड़े - बड़े बैग थमा देती है और दो बैग खुद उठाकर चल देती है।

"लाइए मैम जी, हम इन्हें भी पीछे रख देते हैं। आप इत्मीनान से आगे बैठिए।"
 

"लगता है मैम जी, आप पहली बार आईं हैं बनारस।" ऑटो वाला शीशे में से श्री को देखता है और फिर साथ चल रहे ऑटो में बैठे ड्राइवर को इशारा करते हुए पूछता है। श्री जो कि आधी ऑटो से बाहर है और आधी अंदर.. कह देती है,

श्री - "सही पहचाना भाईया। पहली बार आई हूँ।" ये सुनते ही, ऑटो वाला एक तरफ ऑटो रोकता है जिसके साथ ही दूसरा ऑटो भी रुकता है। दूसरे ऑटो का ड्राइवर झट से आकर पीछे से दो बैग उठाकर अपने ऑटो में रखता है और फट से ऑटो चालू कर भाग जाता है।

"अरे मैम जी.. आपके बैग..", श्री घबरा जाती है और जैसे ही ऑटो से उतरकर देखती है.. ये ऑटो वाला भी फट से ऑटो चालू कर भाग जाता है। श्री को कुछ समझ नहीं आता और वह बस उस ऑटो के पीछे भागने लगती है… "रुको.. रुको.. मेरा सामान.."

श्री - (रोते हुए) "मेरा सामान.. अब मैं क्या करूंगी? प्लीज।"

रोड के बीचों-बीच खड़ी श्री रोए जा रही है और आस-पास जमा हुई भीड़? उस भीड़ के कुछ लोग ये जानने की कोशिश कर रहे हैं कि हुआ क्या है और कुछ लोग जो हो रहा है उसकी वीडियो बनाने में व्यस्त हैं। कुछ देर में ही सर्र… से एक ऑटो सामने से आता है और श्री के पास आकर रुकता है। श्री भागकर ऑटो के पास जाती है,

श्री - "मेरा सामान.. यस  । माय बैग्स। आपको कैसे मिला भाईया जी? थैंक यू सो मच..!!"

ऑटो वाला श्री को ऑटो में बैठने का इशारा करता है और ऑटो चालू कर भीड़ से आगे ले जाता है, "मैम जी थैंक यू हमें नहीं उन भाईया जी को बोलिएगा.. जिन्होंने आपका सामान उन बदमाशों से बचाया। हम तो बस उनके सारथी बने थे।"

श्री को कुछ समझ नहीं आता और वो ऑटोवाले को सब कुछ डिटेल में बताने को कहती है।

"हमारा नाम रवि मैम जी और हम यहीं काशी के रहने वाले हैं.. सालों से ऑटो चला रहे हैं पर आज पहली बार किसी को किसी अजनबी के लिए इतना करते देखा। आपके ऑटो के पीछे ही हमारा ऑटो चल रहा था… भाईया जी हमारी सवारी थे। हमने और उन्होंने वो सब देखा जो आपके साथ हुआ.. बस फिर क्या था भाईया जी ने कहा भगाओ और हम भगा दिए। क्या कुटाई की थी भाईया जी उन दोनों की.. फिर आपका सामान लिया और हमें यहाँ आपके पास भेज दिया……… बताइए अब आपको कहाँ छोड़ना है?"

श्री  - पहले उस अजनबी लड़के के लिए आभार जताती है और फिर रवि को उसे किसी सस्ते, सुंदर और सुरक्षित हॉस्टल या पीजी पर ले जाने को कहती है। ये सुनते ही, रवि ने अगले सिग्नल पर गाड़ी को सीधे हाथ की lane में मोड़ लिया है। कुछ ही देर में वो एक घर के बाहर जाकर ऑटो रोक देता है।

श्री - “ये कहाँ ले आए आप? किसी अच्छी जगह ले जाने को बोला था.. ये तो कितना पुराना सा है.. 

रवि ऑटो से बाहर निकलता है और गेट के पास जाकर बेल बजा देता है। चंद सेकंड में ही गेट खुल जाता है और सामने खड़ी है एक 60 साल की बुज़ुर्ग महिला। श्री उस महिला को देखती है और फिर रवि को देखती है जो उसे ही देख रहा है, "मैम जी, ये सुजाता Maai  हैं और ये है इनका घर जो बाहर से जितना जर्जर दिख रहा है, उतना ही अंदर से खूबसूरत है। आप यहाँ जितने दिन रुकना चाहें रुक सकती हैं.. सस्ता, सुंदर और एकदम सुरक्षित… Maai  की सिक्योरिटी से लैस ।"

श्री - अब ऑटो से बाहर आती है और सुजाता माई  के साथ घर को अंदर से देखती है। ये घर उसे किसी आम घर सा मालूम नहीं पड़ रहा है… जिसमें चारों ओर कमरे और बीचों-बीच एक बाग बना हुआ है। लाल गुलाब, सफेद मोगरा, पीला गेंदा और गुलाबी बरामासी की क्यारियाँ ऐसी लग रही हैं मानों जैसे इंद्रधनुष ने अपना एक हिस्सा जमीन पर बिखेर दिया हो।

माई   - "बिटिया, हमारे पास सब दूर से आकर लोग रहकर जाते हैं। कभी किसी को कोई शिकायत नहीं हुई। फिर भी तुम तसल्ली कर लो.. देख लो.. ये कमरा है, अटैच बाथ और वहाँ कॉमन किचन है जहाँ हम सबके लिए खाना बनाते हैं।"

 श्री की आँखों की चमक बता रही है कि उसे सुजाता माई का घर बहुत पसंद आया है पर फिर क्यों वो घर से बाहर आकर रवि को एक तरफ ले आई है?

श्री - "मैं तुमको बोली थी न भाई जी कि मुझे किसी सस्ती जगह ले चलो.. यहाँ तो लगता है कि बहुत एक्सपेंसिव हो जाएगा।"

रवि वहीं कोने से सुजाता माई   को आवाज़ देता है, "माई , मैम जी को लगता है कि बड़ा खर्चा होगा उनका यहाँ..।" श्री पहले थोड़ा एम्बैरेस्ड फील करती है और फिर वापस जाने के लिए गेट की ओर मुड़ जाती है।

माई  - "बिटिया, यहाँ जितने दिन चाहो उतने दिन रह सकती हो और रही बात खर्चे की तो पूरे बनारस में इससे सस्ता कमरा नहीं मिलेगा तुम्हें। महीने का 15 हजार जिसमें तीन वक्त का खाना और दो वक्त की चाय शामिल है।"

रवि माई  की बात को ही आगे बढ़ाते हुए कहता है, "आप हमें सच्ची और अच्छी व्यक्ति लगीं मैम जी इसलिये हम आपको माई  के पास ले आए और फिर जो कुछ भी उन बदमाशों ने किया उसके बाद तो …. हमारी मानीं तो रहें यहाँ और सच्चे बनारस से मुखातिब हो…. क्यों माई?" 

मुस्कुरा कर कहती है,  "बिटिया, उन बदमाशों की तो अब खैर नहीं … ऐसे डंडे लगाएगी पुलिस की ऑटो चलाना तो दूर खुद चलना भूल जाएंगे… हाँ और रही बात तुम्हारी तो तुम यहाँ सुरक्षित हो।"

श्री थोड़ा समय लेती है और फिर रवि और माई  को देखकर हाँ में सिर हिला देती है। फिर सामान अंदर लाया जाता है और माई  की रसोई में तीन कप चाय चढ़ाई जाती है। इस तरह श्री को बनारस में रहने के लिए एक कमरा मिल गया है और ये सब होते - होते शाम भी हो गई है। कमरे में अपना सारा सामान जमा कर, नहाने के बाद श्री अब दशाश्वमेध घाट पर होने वाली आरती के लिए तैयार है।

"यहां से उल्टे हाथ पर कुछ कदम चलोगी तो एक बड़ा गेट दिखेगा.. बस वहां से सीधे हाथ पर ऑटो मिल जाएंगे।" सुजाता माई  के बताए हुए रास्ते पर चलते हुए, श्री अपने पूरे दिन के बारे में सोच रही है और फिर उसका ध्यान उस अजनबी व्यक्ति पर जाता है जिसने आज उसकी कितनी बड़ी मदद की है। और सोचते - सोचते श्री बड़े गेट के पास आ पहुँचती है।

श्री - “भाई जी, आरती वाले घाट पर ले चलेंगे?”

"20 रुपया पर सवारी, बैठो अपनी बारी - बारी।" रिक्शे वाले के ये बोल श्री को बड़े कूल लगते हैं और वह उसे फिर एक बार कहने को कहकर, अपने फोन का कैमरा ऑन कर लेती है। 

"कौनों मीडिया वाली है क्या मैम जी?"...

श्री - “ऐसा ही समझ लीजिए भाई जी।”इतना कहकर श्री रिक्शा में सवार हो जाती है और घाट की ओर बढ़ जाती है।

"यहां से आगे पैदल जाइए और असली बनारस का लुत्फ उठाइए.. पान से लेकर लस्सी, लस्सी से लेकर असी"...... जिस चौक पर रिक्शे वाले ने श्री को छोड़ा है, उसका नाम है गोदोलिया चौक। यहां से सीधा लिया तो विश्वनाथ और यहाँ से सीधा लिया तो घाट। श्री चारों तरफ देखते हुए आगे बढ़ती है और यदि आप कभी बनारस गए हो तो आप बिल्कुल समझ सकते हैं कि यहां से घाट तक का मार्ग कितना सुंदर है.. रंग-बिरंगी साड़ियों से लेकर रुद्राक्ष की माला, टमाटर  चाट से लेकर अतरंगी कलाएँ.. इन सभी चीजों का आनंद लेते हुए, श्री अब घाट पर जा पहुँचती है और आरंभ होने वाली आरती में शामिल होने के लिए उसने सीढ़ियों पर अपने लिए एक जगह भी ढूंढ ली है।

देखते ही देखते पूरी सीढ़ियाँ भर जाती हैं और आरती शुरू होती है। बनारस के घाट और घाट पर बैठकर माँ गंगा की आरती में शामिल होना अपने आप में ही एक अद्भुत अनुभव है पर इस अनुभव में कुछ ऐसा भी हो गया है जिसने श्री को अचंभित कर दिया है..

"सारे बैग मिल गए थे न?", श्री के कानों में यह आवाज़ पड़ती है और श्री की आँखें खुल जाती हैं। वह पलटकर देखती है पर उसे देख नहीं पाती…..

क्या श्री इस आवाज़ से कभी मिल भी पाएगी? या इस अधूरी मुलाकात की कहानी कहीं और ही चली जाएगी?

 

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