माई - "क्या बात है बिटिया, नींद नहीं आ रही?"

सुजाता माई  आकर श्री   के पास बैठ जाती हैं जो कि रात के 11 बजे, आसमान के नीचे, घर के पीछे के खुले हिस्से में बैठी हुई हैं।

“ह्म्म्म्म..” एक ‘ह’ और कुछ ‘म’ से बनने वाले इस शब्द को अलग - अलग तरह से इस्तेमाल किया जाता है और इस वक्त श्री  का ये हम्म काफी खाली-सा प्रतीत हो रहा था। खाली से मतलब है कुछ ऐसा भाव जब बोलने वाले को खुद पता नहीं होता कि वो असल में कहां है। और जैसे की तमाम भारत वासी इस अलग-अलग किस्म के हम्म से मुखातिब हैं, सुजाता माई  भी समझ जाती है कि श्री  कहीं नहीं है और है भी।


माई - “सबका पहला दिन अलग होता है बिटिया.. तुम्हारे साथ कुछ अलग हुआ और हमारे साथ कुछ अलग... पता है बिटिया हम जब पहली बार आए थे यहाँ, तब हमारे एक हाथ में एक अटैची थी और दूसरे में दो साल का मुन्ना। हम सीधे घाट चली गई थी क्योंकि दूसरा कुछ और पता ही नहीं था... जिसके पास यहाँ कुछ नहीं होता उसके पास घाट होता है। पूरे 5 दिन रहे वहीं.. सोना, खाना, रोना, गाना... सब वहीं हुआ।”

ये सब सुनते ही श्री  का ध्यान अब उस खाली हम्म से निकलकर माई  की ओर गया और वो जिज्ञासा से भर उठी|

श्री  - “क्या? घाट पर? सच में? तो फिर ये घर? आप बनारस की नहीं हो माई  ?”

श्री -  के आखिरी सवाल पर माई  हँस दी और कहा...

माई - “हैं, बनारस के हैं तभी तो यहाँ आ गए... भला और कितने दिन दूर रहते अपने घर से।"

श्री   को कुछ समझ नहीं आया और श्री  ने माई  से उनकी कहानी बताने को कहा, पर माई  तो माई  थी,

माई - “बिटिया, हमारी कहानी बताएंगे, कोई और दिन...आज का दिन तुम्हारा है, और इस पहले दिन में तुम्हारे साथ बहुत कुछ हुआ है, तो जो हुआ है उसे सहेजने के लिए इस रात को समय दो.. आओ, हम तुम्हारे सर की चंपी किये देते हैं.. बढ़िया नींद आएगी।”

श्री  बिना कुछ कहे उठती है, जाकर तेल की बोतल ले आती है और माई  के सामने आकर, नीचे जमीन पर बैठ जाती है। माई  भी बिना कुछ कहे, बड़े आराम से बोतल से तेल हथेली पर गिराती हैं और फिर अपनी नर्म - नर्म उंगलियों से श्री  के सर में तेल लगाने लगती हैं। चंपी करवाते - करवाते ही श्री  को नींद आ गई और वे वहीं माई  के पैरों में सर रख सो गई। माई  धीरे से उसका सर उठाकर, उसे खड़े होने में मदद करती है और कमरे में सुला आती है।

 

“कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्।”
सदावसंतं हृदयारविंदे, भवं भवानीसहितं नमामि ॥”,

आरती ख़तम होते ही जैसी ही माई  पलट ती है सामने एक हाथ और उसके ऊपर दूसरा हाथ नज़र आता है फिर ऊपर देखने पर चेहरा, और ये खिलखिलाता चेहरा है श्री   का, जो कि नहा धोकर एकदुम तैयार है, बनारस में अपने दूसरे दिन को शुरू करने के लिए.


माई - "क्या बात है, इतनी सुबह - सुबह, नहा-धोकर चक-पक तैयार",

माई  श्री   के हाथ में प्रसाद रखते हुए बोली। फिर उसके माथे पर टीका लगाकर किचन की ओर बढ़ जाती हैं। श्री  भी उनके पीछे - पीछे चलने लगती है,

श्री - "हां माई  , अब काम भी तो शुरू करना है ना, इसलिए सोचा आज सबसे पहले विश्वनाथ के दर्शन कर आऊं।"

"जय बाबा विश्वनाथ की.." इतना कहकर माई  किचन का दरवाजा लगा देती हैं। दो मिनट तक श्री   दरवाजा खुलने का इंतजार करती है और फिर जब कोई भी हलचल होती हुई नहीं दिखती तो वह अपने कमरे में आकर अपना बैग उठाती है और मंदिर जाने के लिए निकल जाती है।


कुछ दूर पैदल चलने के बाद श्री   को सामने से एक ऑटो आता हुआ दिखता है। वे हाथ दिखाकर उसे रुकने का इशारा करती हैं। ऑटो रुकते से ही श्री  ड्राइवर से विश्वनाथ चलने के लिए पूछती है और फिर उसका ध्यान पीछे की सीट पर जाता है जहां पहले से एक सवारी मौजुद है।”

शेयरिंग इज़ केयरिंग मैडम जी.. बैठ जाएँ”,

ऑटो वाला कहता है और उसके ऐसा कहते ही बैठी हुई सवारी सीधे हाथ की ओर खिसक जाती है।


श्री - "मुझे विश्वनाथ मंदिर जाना है भाई जी, आप उधर ही जा रहे हैं?"


"बिल्कुल जा रहे हैं जी"।


श्री   एक बार, एक छोर से दूसरे छोर तक नज़र घुमाकर देखती है और फिर किसी दूसरे ऑटो के न दिखने पर, इसी ऑटो में बैठ जाती है।

श्री - "तो भाई जी कबसे ऑटो चला रहे हैं आप यहाँ?"

किसी भी ऑटोवाले से बात शुरू करने के लिए श्री   अक्सर इस ही सवाल से शुरू करती है। और लगभग सभी ऑटोवाले इस सवाल का जवाब देते-देते अपने अतीत में पहुँच जाते हैं, जैसे कि ये भाई जी भी पहुँच चुके थे।


“करीब 15 साल हो गए मैडम जी.. पिताजी को ढूंढते हुए आए थे जहां और तबसे जहीं के होके रह गए। बो का है ना, हम घर के सबसे बड़ा लड़का हैं और फिर कौन नहीं जाने कि घर के बड़ा लड़का कितनी झिम्मेदारी होत हैं।”


श्री - "ह्म्म्म्म.. तो फिर मिले आपके डैड, मेरा मतलब पिताजी?"

“मिले थे ना.. मिलकर हमें जे ऑटो थमा गए और चले गए बंबई। बो बहां चलात हैं, हम जहा  चलात हैं।”

श्री - “अच्छा…. इतने सालों में तो पूरे बनारस का एक - एक कोना देख लिया होगा आपने”,


पूछते - पूछते श्री   एक बार अपने पास बैठे लड़के की ओर देखती है जिसने हुड पहना हुआ है और मफलर से अपना पूरा चेहरा ढक रखा है।


"अरे कैसा सवाल कर दिया आपने, चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं हम तो बनारस के", ऑटो वाला इतराकर बताता है।

श्री   - “अपने गाँव की…, घर की… याद नहीं आती आपको?”


"जहा  के हैं तभी तो जहीं आ गए ना मैडम जी। भला और कितने दिन दूर रहते अपने घर से।" बो गाँव था, जे बनारस है, जेही घर है ……… लो जी आ गये बाबा विश्वनाथ। 30-30 रुपये..दे दो जी।”

श्री   के उतरते ही, साथ बैठा लड़का भी झट से उतर गया.. ऑटो वाले को 30 रुपये दिए और... “ये शहर नहीं, घर है। हर एक का अपना घर”, कह कर चला गया।

“ये आवाज़ तो जानी पहचानी है…”,  श्री   ने मुड़कर देखा तो वह जा चुका था। और फिर ऑटो वाले ने श्री   को सीधे हाथ पर जाने का रास्ता दिखाया और चला गया। श्री   को कल शाम गंगा आरती के समय सुनाई दी उस आवाज की याद आई और वो समझ गई कि ये वही अंजान व्यक्ति था जिसने कल उसकी मदद की थी, पर क्या ये इत्तेफाक था जो आज वो फिर उसे मिल गया या बात कुछ और है? कहीं वो श्री   का पीछा तो नहीं कर रहा है?


“दीदी टीका..”,  एक छोटी-सी बच्ची श्री   के सामने आकर खड़ी हो गई और उससे टीका लगवाने का पूछती है।

“लगवालो ना दीदी..”,  श्री   पहले मना करती है और फिर लगवा लेती है। अब वह बढ़ तो मंदिर की ओर रही है पर दिमाग में उसके वही लड़के की आवाज घूम रही है। चलते - चलते वह मंदिर के पहले गेट पर पहुंच जाती है और देखती है  कि कई सारे लोग वहां खड़े हुए हैं और लाइन में आगे-पीछे लगने के लिए झगड़ रहे हैं... अगर थोड़ा रुक कर हम इस आगे पीछे लगने की धक्का-मुक्की पर गौर फरमाएं तो एक पते की बात समझ आती है 'जिस शांति की तलाश में हम वहां जा रहे हैं, वो तो इस धक्का-मुक्की में द्वार पर ही भंग कर देते हैं। .और फिर... हा हा हा.. मोक्ष मिलने जैसी बातें करते हैं..'


इस धक्का मुक्की से आगे, श्री   की नज़र उस हुड वाले लड़के पर जाती है जो लाइन में थोड़ा आगे खड़ा हुआ है। श्री   जाकर उसके पास खड़ी हो जाती है। वो एक कदम पीछे हटकर, उसे आगे खड़े होने का इशारा करता है। श्री   आगे आकार खड़ी तो हो जाती है पर वो बार - बार पलटकर उसे देखती है। लड़के ने अभी भी मास्क लगा रखा है।


अगला गेट खुलते ही लाइन आगे बढ़ती है.. श्री   भी आगे बढ़ती है और वो लड़का भी आगे बढ़ता है।


श्री - "देखो ये अगर इत्तेफाक है तो ठीक है पर अगर तुम मुझे फॉलो कर रहे हो तो बता दो", श्री   बहुत मासूमियत से पूछती है।

लड़का कुछ नहीं कहता और जैसे ही वो दूसरे गेट से अंदर जाते हैं, जाकर दूसरी लाइन में लग जाता है। कुछ देर तक श्री   उसे देखती है और फिर..., "कुछ भी... मुझे मंदिर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।"


“काशी विश्वनाथ मंदिर शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ये पवित्र नदी गंगा के पश्चिम तट पर स्थित है और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि एक बार यहाँ के दर्शन और गंगा स्नान कर लिया तो सीधे मोक्ष प्राप्त होता है”, आगे खड़ी एक औरत एक बच्ची को ये सब बता रही है और ये सब सुनकर श्री   अपनी डायरी में लिख रही है।


श्री - "आप भी पहली दफ़ा आ रही हैं यहाँ?",श्री  उस औरत से पूछती है।


“नहीं बेटा जी..हम तो बचपन से ना जाने कितनी बार आ चुके हैं। ये हमारी बहन की बिटिया है…सर्दियों  की छुट्टी में यहाँ आई है तो आज इसे ले आए यहाँ दर्शन करवाने। आप पहली बार आये हो बेटा जी?” लाइन में लगे व्यक्ति को अगर कोई बात करने मिल जाए तो फिर तो वाह भाई वाह। और इस वक्त श्री   ने एक औरत को छेड़ दिया है।


श्री - "हां... पहली बार आई", श्री   बता कर दूसरी ओर देखने लगती है।

“तो अकेले आई हो बेटा जी? पापा मम्मी साथ आये हैं? कहाँ से आयी हो?” एक-एक कर इतने सारे सवाल आ जाते हैं कि श्री   जवाब देते - देते थक जाती हैं और इस औरत से बचने के लिए वह एक बार फिर उस हुड वाले लड़के के पास जाकर खड़ी हो जाती है। वह एक बार फिर एक कदम पीछे होता है और श्री   को आगे खड़े होने का इशारा करता है।


श्री  - "धन्यवाद!"


वसन -  "मेंशन नॉट।"  “आखिरकार.. तुमने कुछ सामने रहकर कहा वरना तुम बस कान में बोलकर चले जाते हो… उस महिला ने तो मुझे परेशान ही कर दिया था… अच्छा हुआ तुम यहाँ हो और मैं यहाँ आ गई।”


वसन - "श्शश.."

अब दोनों दर्शन करने के लिए अपनी - अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ ही देर में उनकी बारी आ जाती है।


मुख्य मंदिर में बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद, चारों तरफ विराजमान बाकी सभी भगवानों के दर्शन कर श्री   अब बाहर आ जाती है पर इस पूरी प्रक्रिया में, उसने उस व्यक्ति को खो दिया है जो अब तक तीन बार मिल चूका है और कई बार मदद कर चुका है.

मंदिर से बाहर निकलते ही, श्री   पर्स से अपना मोबाइल निकालती है और गूगल की मदद से उस फेमस चाय टोस्ट वाले का पता खोज लेती है जिसकी बातें बनारस पर बनने वाली हर रील में की जाती है...


अब एक रास्ता मोबाइल पर दिख रहा है और एक सामने.. दोनों को एक कर, श्री   बढ़ चली है उस चाय टोस्ट वाले की ओर पर क्या एक  बार फिर उसे वो लड़का मिल पाएगा या कहानी में कोई नया ट्विस्ट आएगा? होगा जो भी.. आप और मैं, श्री   के हर एक कदम पर अपनी नज़र बनाये रखेंगे।

 

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