Show Name: Palghar to VT Local
Episode: #01 - Ghar Aaja Pardesi
WC - 2204
"बेटा... तू कब आ रहा है गाँव?" फोन के उस पार उसकी माँ की आवाज़ आई।
मेल्विन झुंझलाकर कुर्सी से उठा और बालकनी में आ गया और बोला, "माँ, अभी नहीं, बोले थे न? अभी काम में बुरी तरह फँसा हूँ।"
"अरे, काम तो चलता रहेगा, तू 2 सालों से यही बोलता आ रहा है। तुझे माँ से भी मिलने का मन नहीं करता?"
मेल्विन ने मोबाइल को कंधे और कान के बीच दबाकर लाइटर से सिगरेट जलाई। एक गहरा कश लेते हुए वो बाहर देखने लगा। सुबह 9 बजे ही बाहर सड़क पर भयानक धूप थी। सड़क पर इक्के दुक्के लोग दिखाई दे रहे थे।
"माँ, मैंने कहा न? अभी नहीं आ पाउँगा। अगले महीने छुट्टियाँ मिलने वाली हैं, तब आ जाऊँगा। इतने प्रोजेक्ट्स और खर्चे ऐसे मैनेज नहीं हो पाएंगे। आपको मैंने बताया तो है न कि कितने लोगों को मुझे जवाब देने पड़ते हैं। "
तभी डोरबेल बज उठी।
"माँ, बाद में कॉल करता हूँ।" मेल्विन ने फ़ोन काट दिया और दरवाजा खोला तो वहां फ़ूड डिलीवरी वाला था। डिलीवरी बॉय ने पसीना पोंछते हुए मेल्विन के हाथ में पार्सल थमाया। मेल्विन के मन में अब भी माँ का ही ख़याल था, वो सोच रहा था कि एक दिन वो अपनी माँ की सभी शिकायतों को दूर कर देगा। बस एक बार ये जॉब में रोज़ की झिकझिक कुछ कम हो जाए। तभी उसका ध्यान डिलीवरी बॉय की तेज़ साँसों की आवाज़ ने तोडा।
वो बुरी हांफ रहा था, शायद सीढ़ियां चढ़ने के कारण। मेल्विन को उसपर तरस आ गया।
"सर, आप लोग ये लिफ्ट ठीक क्यों नहीं करा लेते?" वो झुंझलाकर बोला।
उसकी बात सुनकर मेल्विन हल्के से मुस्कराया, "भाई, मैं सोसायटी का सेक्रेटरी नहीं हूँ। किराए पर रहता हूँ यहाँ, इसके लिए तो फ़्लैट के मालिक से बोलना पड़ेगा तुम्हे!"
मेल्विन की बात सुनकर वो डिलीवरी बॉय टेढ़ी नज़र से मेल्विन की तरफ देखा और बोला, "मालिक से हम नहीं, आप लोग ही बोल सकते हो। खैर, चलता हूँ, बहुत काम बाकी है।"
मेल्विन ने दरवाजे की चौखट पर टिकते हुए पूछा, "इतनी गर्मी में कहाँ भाग रहे हो, पानी तो पीते जाओ?"
लड़के ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया, "नहीं सर, कुछ भी करने का टाइम नहीं है। मुझे ढेर सारी डिलीवरी करनी है।"
“ढेर सारी..?” उसका जवाब मेल्विन को थोडा अटपटा लगा, “मतलब कितनी.?”
लड़का सीढ़ियों की तरफ मुड़ते हुए बोला, "सर, मुझे 12 हज़ार रुपये जमा करने हैं, तभी गाँव जा पाऊँगा। माँ बीमार है न।"
मेल्विन के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई।
"दस हज़ार?"
"हाँ सर, एक डिलीवरी पर बीस रुपये मिलते हैं, सोचा है जल्दी-जल्दी करूँगा तो दो हफ्तों में पूरे हो जाएंगे। फिर माँ के पास जाऊँगा।"
इतना कहकर वो लड़का सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया, तभी मेल्विन ने उसे आवाज़ दी, "रुक जाओ।"
लड़का रुक गया। मेल्विन अंदर गया, वॉलेट उठाया और बिना कुछ कहे 12 हज़ार रुपये उसके हाथ में रख दिए।
लड़का चौंक गया, "सर... ये क्या कर रहे हो?"
मेल्विन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, "जा अपने गाँव। माँ को ज्यादा इंतज़ार मत करवा।"
लड़के के होंठ काँपने लगे, "लेकिन सर, मैं इसे वापस कैसे दूँगा?"
मेल्विन ने हँसते हुए कंधे पर हाथ रखा, "वापस करने कि जरुरत नहीं है, अब से ये तेरे पैसे है..!"
लड़का कुछ बोल नहीं पाया, उसके कांपते होठों से बस इतना ही निकल पाया, "थैंक यू सर...!"
और वो तेज़ी से सीढ़ियों से नीचे उतर गया।
उसके जाने के बाद मेल्विन ने ब्रेकफास्ट किया और अपने ऑफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ने पालघर स्टेशन चला गया।
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"अबे ओ अंकल! ये लेडीज़ सीट है, दिख नहीं रहा क्या?"
मेल्विन फर्नांडिस ने ज्यों ही ट्रेन में कदम रखा तो उसने देखा कि एक 21-22 साल की लड़की फीमेल रिजर्व्ड सीट पर बैठे एक आदमी पर चिल्ला रही थी।
42 साल के मेलविन के लिए ये कहानी कोई नई नहीं थी। आज भी, वो अपने हमेशा के शेड्यूल की तरह सुबह 6:55 बजे की लोकल ट्रेन में चढ़ा, जो पालघर से वीटी तक जाती थी।
उस लड़की को चिल्लाते हुए देखकर मेल्विन बोला, "ये लोकल ट्रेन भी ना..? देखने में तो सब एक जैसी ही लगती है, लेकिन एक जैसी हो कर भी ये बाकी सभी ट्रेनों से अलग है।"
"अच्छा, तो क्या है इस लोकल में? जो बाकी ट्रेनों में नहीं? कुछ लोगों को OBSERVE करना चाहे न आता हो, लेकिन करने का नाटक ज़रूर आता है।" मेल्विन की बात सुनकर वो लड़की बोली।
उन दोनों की यह छोटी सी नोंकझोंक सुनकर डिब्बे में खड़े पैसेंजर्स मुस्कुरा रहे थे, तो वहीं कुछ को इन सभी चीजों से कोई मतलब नहीं था, वे बस अपने मोबाइल की स्क्रीन में घुसे थे।
मेल्विन एक सीट पर अपनी जगह बनाई और झोले से अपना स्केचबुक निकाला और झगड़े का कैरिकेचर बनाने लगा।
"पता नहीं, लोग नियम फॉलो क्यों नहीं कर सकते?" लड़की बड़बड़ाई और मेल्विन को इग्नोर करके खड़ी हो गई।
मेल्विन हँसा, "लोकल में नियम? बेटा, यहाँ तो Darwin का नियम चलता है – Survival of the Fittest.” मेल्विन मुस्कुराया, “जो तेज़ है, वो मज़े में ट्रैवल करेगा और जो स्लो, वो सीट के लिए तरसेगा!"
मेल्विन की बात सुनकर लड़की ने उसे घूरा, "Survival of the Fittest? स्लो यात्री मर जाते हैं क्या? और वैसे आप कौन हैं? लोकल ट्रेंस के फिलॉसफर?"
"नहीं मेरा वो मतलब नहीं था, मैं कार्टूनिस्ट हूँ," मेल्विन ने मुस्कराते हुए कहा, "आम आदमी की परेशानियों को स्केच करता हूँ।"
मेल्विन का जवाब सुनकर लड़की की झुंझलाहट कम हुई। वो बोली, "इंटरेस्टिंग जॉब है आपकी। वैसे, लोकल में क्या सबसे मज़ेदार चीज़ लगती है?"
"यही!" मेल्विन ने पैसेंजर्स की तरफ इशारा किया, "हर दिन एक नया ड्रामा!"
इतने में ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी, एक दुबला-पतला आदमी अंदर घुसा और चिल्लाया, "भैया, ज़रा खिसक लो!"
मेल्विन ने हंसकर लड़की की तरफ देखा, "लो, शुरू हो गया, आज का नया एपिसोड.!"
लड़की भी हंस पड़ी।
मेल्विन ने अपनी स्केचबुक पर कुछ स्केच बनाया और लड़की को दिखाया, जिसमें वो लड़की गुस्से में, एक हाथ में ‘रूलबुक’ लिए हुए थी और वहीं बगल में एक पैसेंजर ‘Darwin Theory’ की किताब पढ़ रहा था।
लड़की हंस पड़ी, "अच्छा, तो आप अपनी कार्टून स्ट्रिप के कंटेंट्स इसी लोकल ट्रेन से जुटाते हैं.?"
“हां..!” मेल्विन ने जवाब दिया, “यहां एक से बढ़ाकर एक कंटेंट्स मिलते हैं..! यकीन न हो तो उधर देखो..!”
मेल्विन ने खिड़की से बाहर इशारा किया। ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी थी और लोग गेट पर भीड़ लगाए घुसने की कोशिश कर रहे थे।
"मुंबई लोकल में घुसना अपने आप में एक ओलंपिक स्पोर्ट है! सुबह की लोकल में चढ़ना मतलब कुश्ती के अखाड़े में उतरना!” मेल्विन हंसते हुए बोला, “सबसे आगे वो लोग होते हैं जो ‘कराटे मास्टर’ की तरह दूसरों को धकेलते हैं, पीछे वो लोग होते हैं जो जाम में फंसे ट्रैफिक की तरह धीरे-धीरे सरकते हैं, और सबसे आखिर में वो बेचारे होते हैं जो आधे अंदर और आधे बाहर ही रह जाते हैं!"
मेल्विन की बात सुनकर उनके साथ बैठा एक पैसेंजर हंस पड़ा और बोला, "सही बोल रहे हो भाई, मैं खुद कई बार ऐसी ही सिचुएशन में फंस चुका हूं!"
ट्रेन उस स्टेशन से चल पड़ी। मेल्विन बोला, "अब, जिसने सीट ले ली, वो ‘राजा’! जिसने नहीं ली, वो आम आदमी! और सीट मांगने के भी अलग-अलग स्टाइल होते हैं।"
मेल्विन की महफिल जम चुकी थी। वो रोज अपना सफर ऐसे ही लोगों को जोक्स से हंसाते गुदगुदाते हुए पूरा करता था।
"पहला तरीका: 'इमोशनल अत्याचार'- भाईसाहब, सुबह से खड़े-खड़े आया हूँ, कमर दुख रही है, बच्चे भी भूखे हैं, प्लीज़ बैठने दो!"
डिब्बे में ठहाके गूंज उठे।
"दूसरा तरीका: 'फ्लेक्सिबल अक्रोबेट'- भाई थोड़ा और सरक लो, थोड़ा और, बस थोड़ा…!' और फिर वो आधा लटक कर सीट पर अपनी एक किडनी टिका लेता है!"
"तीसरा तरीका: 'सीट बुकिंग'- ये लोग गेट से ही चिल्लाएंगे, अरे भाई, मेरा आदमी अंदर बैठा है!”
तभी अचानक से एक पैसेंजर की कॉल आई और वो फोन उठा कर जोर जोर से चिल्लाकर फोन पर बातें करने लगा।
मेल्विन फिर हंसा और बोला, “वो देखो फ्री का एंटरटेनमेंट..! इस लोकल में कुछ लोग ओनली स्पीकर होते हैं, ये किसी की नहीं सुनते, पर पूरी ट्रेन इनकी बातें सुनती है..! और कुछ लोग तो एकदम ही अल्टीमेट होते हैं, एकदम ज्ञानी बाबा की तरह, उन्हें हर चीज़ से दिक्कत होती है! ‘आजकल यूथ में संस्कार नहीं बचे हैं..! ‘सरकार निकम्मी है..! कुछ नहीं कर रही है..!’ और अगर कोई प्वाइंट न मिले तो, आजकल की ट्रेनें भी न स्लो चलने लगी हैं!”
मेल्विन की बातें सुनकर वो लड़की खिलखिला कर हंस पड़ी, “सच कहूं तो पहले आपको देखकर मैने यही सोचा था कि आप भी एक खडूस अंकल होंगे, पर आप बहुत फनी हैं..! वैसे कंटेंट में इतनी मदद करने के लिए आपको लोकल ट्रैन को अपनी कमाई का हिस्सा देना चाहिए।”
मेल्विन फिर बोला, “अरे यही नहीं, आगे सुनो, कुछ लोग गेट पर खड़े लोग ट्रेन के रुकते ही 'एथलीट' बन जाते हैं और ऐसे कूदते हैं जैसे 100 मीटर की दौड़ हो रही हो! और बाहर वाले ऐसे घुसते हैं जैसे ‘फ्लैश सेल’ में फ्री सामान बंट रहा हो!”
इतने में ट्रेन की रफ्तार धीमे होने लगी। शायद कोई स्टेशन आने वाला था। ट्रेन में हलचल होने लगी। ट्रेन में खड़े लोग उतरने की तैयारी करने लगे, तो प्लेटफॉर्म पे खड़े लोग चढ़ने की।
तभी वो लड़की भी उठी और मेल्विन की तरफ देखकर मुस्कुरा कर बोली, “लोकल ट्रेन को लेकर आपका नजरिया मुझे काफी अच्छा लगा..! मुझे यहीं उतरना है..! लेकिन फिर कभी इत्मीनान से आपकी पूरी स्टोरी जरूर सुनूंगी..!”
मेल्विन भी मुस्कुरा दिया और पूछा, “तुमने अपना नाम तो बताया ही नहीं?”
लड़की ने हंसते हुए कहा, “नाम क्या करोगे आप? आपको तो कल ट्रेन में एक नई कहानी मिल जाएगी!”
उस लड़की की हाजिर जवाबी देखकर मेल्विन भी हंस पड़ा और बोला, “ठीक है, तो मैं कल का वेट कर लूंगा..! मैं कल फिर यहीं इसी डिब्बे में मिलूंगा, तब तक शायद तुम्हारा इरादा बदल जाय और तुम नाम बता दो..!”
“कल मैं नहीं आऊंगी..!” लड़की बोली, “घर से कॉल आया था, पापा की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। इसलिए आज शाम को ही गांव जा रही हूं..!”
मेल्विन ने सिर हिलाया, “अच्छी बात है, अपनों से मिलते रहना चाहिए। जिंदगी का क्या भरोसा?”
लड़की ने हंसते हुए सिर हिलाया, “हां, वैसे भी, पापा की डांट सुने ज़माना हो गया!”
स्टेशन आ गया और वो लड़की दरवाजे की तरफ बढ़ गई।
ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकने ही वाली थी। कि तभी अचानक वो हुआ, जो किसी ने सोचा भी नहीं था।
गेट के पास पहुंचते ही लड़की लड़खड़ा गई।
“अरे, संभल के!” मेल्विन चिल्लाया।
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। लड़की का पैर फिसल गया और अगले ही पल वो ट्रैक चलती ट्रेन के नीचे जा गिरी।
ट्रेन की रफ्तार धीमी थी, लेकिन इतनी भी नहीं कि किसी को वक्त मिल पाता।
एक पल के लिए प्लेटफॉर्म पर सन्नाटा छा गया। फिर शोर उठा। लोग चिल्लाने लगे।
लेकिन मेल्विन के लिए सबकुछ सुन्न पड़ गया था।
अभी-अभी... ये लड़की हंस रही थी। अभी-अभी... उसने कहा था कि पापा से मिलने जा रही है। लेकिन अब... अब वो नहीं थी।
कोई मोबाइल निकालकर वीडियो बना रहा था। कोई तमाशा देख रहा था।
लेकिन मेल्विन को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। उसे बस एक चीज़ दिख रही थी, एक अधूरी मुलाकात। एक बेटी, जो अपने पिता से नहीं मिल पाई।
“सोचा था, शाम को जाकर मिल लूंगी…!”
उसकी ये बात मेल्विन के कानों में गूंजने रही थी। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। सांस तेज़ हो गई। उसके हाथ कांप रहे थे।
आज, पहली बार उसने महसूस किया कि वो कितने सालों से अपनी माँ को टालता आ रहा था।
“बेटा, तू कब आ रहा है गाँव?” उसकी माँ की आवाज़ दिमाग में गूंज उठी।
“माँ, अभी नहीं..!”
“अभी नहीं..!”
“क्यों? क्यों नहीं?”
ये लड़की भी यही कह रही थी, शाम को पापा से मिलूंगी। लेकिन वो शाम आई ही नहीं।
मेल्विन एकदम शांत अपनी जगह खड़ा था, और ट्रेन अगले स्टेशन के लिए चल पड़ी थी।
लेकिन उस दिन की घटना के बाद भी, ट्रेन को तो आगे बढ़ना ही था, मानो उसे किसी से कोई सरोकार न हो। शोर-गुल के बीच भी मेल्विन का मन कहीं ठहर-सा गया था। उसकी आँखों के सामने बार-बार वही चेहरा घूम रहा था, जो कुछ सेकंड पहले तक ज़िंदगी से भरा लग रहा था, और अचानक सब खत्म हो गया।
अगले स्टेशन पर उतरकर, उसने दीवार का सहारा लिया और आँखें बंद कर लीं। आस-पास लोग आते-जाते रहे, पर उसे ऐसा लगा जैसे दुनिया की भीड़ में वह बिल्कुल अकेला खड़ा है। उसे अपनी माँ की आवाज़ याद आई—“बेटा, तू कब आ रहा है?”—और उसे एहसास हुआ कि वह कितने दिनों से इस सवाल को टालता आया है।
अपने ख्यालों के अँधेरे में मेल्विन को पता ही नहीं चला कि वो प्लेटफार्म से ट्रैन ट्रैक के कितना करीब आ गया था। किसी सम्मोहन में बंधे इंसान की तरह वो बस चलता जा रहा था। इधर पास के ट्रैक पर आती ट्रैन उस से कुछ ही मीटर दूर थी। जैसे जैसे ये फांसला घट रहा था, वैसे ही कुछ लोगों का ध्यान मेल्विन पर गया।
किसी की आवाज़ गूंजी, “गया ये तो… लगता है नशा किया है, जो मौत नहीं दिख रही।”
क्या आज दूसरा हादसा होने वाला था? क्या मेल्विन समय रहते अपने ख्यालों के अँधेरे से निकलकर मौत से बच पायेगा?
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