Episode 2

‘कौन थी वो…’ 

मेल्विन मौत से कुछ ही दूर था कि तभी एक लड़की के हाथ ने उसे प्लेटफार्म की भीड़ की तरफ खींचा। मेल्विन का ध्यान टूटा तो उसे सारा माजरा समझ में आया। कुछ लोग उसे घेरकर समझाने लगे। लेकिन मेल्विन की नज़र तो उसे बचाने वाली लड़की को ढूंढ रहीं थी। 

“वो कहाँ गई? कहीं वो…”

मेल्विन ने धीमी आवाज़ में जैसे खुद से ही सवाल किया। फिर वो लोगों की हाँ में हाँ मिलाकर घर आया। सदमे में पड़ा वो एक टक छत को देखता देखता कब थक कर सो गया पता ही नहीं चला।

"माँ, मैं आ रहा हूँ! मैं तुझसे मिलने घर आ रहा हूँ।" कुछ घंटों बाद मेल्विन नींद में बड़बड़ा रहा था। वह हादसा अभी उसके दिलों दिमाग में ताजा था।

नींद में बड़बड़ाता हुआ मेल्विन उठकर बैठ गया। उसने जल्दी-जल्दी मेज पर रखे जग को उठाकर तीन-चार घूँट पानी पिया। उसका चेहरा पसीने से तरबतर था।

तभी मेल्विन की नजर घड़ी की ओर गई, "अरे बाप रे, 6 बजकर 10 मिनट हो गए। आज तो गाड़ी छूट गई समझो।"

अचानक जैसे काम ने उसका ध्यान बंटाया, मेल्विन बेड से नीचे कूदा। अगले 45 मिनट में वह मीरा रोड रेलवे स्टेशन पर था।

स्टेशन पर ट्रेन के खुलने की अनाउंसमेंट हो चुकी थी। जैसे ही ट्रेन धड़ से पटरी पर आगे बढ़ी, अपने कंधे पर बैग लटकाए अधेड़ मेल्विन ने बिना सोचे समझे दौड़ लगा दी।

स्टेशन पर रोज के मुकाबले थोड़ी कम भीड़ थी जिससे मेल्विन को ट्रेन की गेट तक पहुँचने के लिए सीधा रास्ता मिल गया। लम्बी-लम्बी साँस लेते हुए आखिरकार वो ट्रेन में चढ़ने में कामयाब हो गया। उसके कम्पार्टमेंट के अंदर कदम रखते ही ट्रेन ने गति पकड़ ली थी।

उसके ट्रेन के अंदर घुसते ही एक शख्स ने उसे बुरी तरह घूरा। यह पीटर था, मेल्विन का खास साथी। मेल्विन के दूसरे साथी भी उसे हैरानी से देख रहे थे।

“पागल हो गए क्या मेल्विन!” किसी ने कहा, लेकिन बुरी तरह हाँफ रहे मेल्विन को जैसे उसकी बात सुनाई नहीं दी थी। पीटर ने अपनी जगह से उठकर उसे बैठने का इशारा किया।

"हमें लगा आज आप नहीं आएँगे।" किसी ने कहा तो मेल्विन ने नजर उठाकर उसकी ओर देखा। यह रामस्वरूप जी थे। उनकी उम्र अब 60 साल हो रही थी। बैंक में कैशियर थे।

मेल्विन ने उनकी बगल में बैठे शख्स की ओर देखते हुए पूछा, "यह महाशय कौन है चचा?"

"ये चाचा चौधरी है।" पीटर का मूड कुछ उखड़ा हुआ था। उसके इतना कहते ही ट्रेन हवा छोड़ते हुए रुक गई। शायद किसी ने चेन पुल कर दिया था।

"यह मेरा लड़का है मेल्विन।" रामस्वरूप जी ने कहा, "जिस बैंक में मैं कैशियर हूँ, वहाँ आज इसकी मैनेजर पद पर जॉइनिंग है।"

"हाँ, पार्टी हो चुकी है। आज तुम लेट आए।" सफेद कोट और ब्लैक फॉर्मल पैंट में बैठे एक शख्स ने कहा। उनकी गर्दन में आला लटका हुआ था।

यह डॉक्टर ओझा थे। जानवरों के डॉक्टर। इनका क्लिनिक विले पार्ले एरिया में था। इनकी उम्र मेल्विन के उम्र के आसपास ही थी।

ट्रेन एक बार फिर आगे बढ़ने लगी थी।

"अरे डॉक्टर ओझा, कल तुम कहाँ थे? "मेल्विन ने उसे देखकर पूछा "सब ठीक तो है न?"

"हाँ। वो दरअसल कुछ दवाइयों के लिए मैं बाहर गया था। मैंने सुना कल दादर में किसी लड़की के साथ हादसा हो गया।"

"हाँ।" पीटर तुरंत बोला, "अपने मेल्विन से बातें करते-करते ही वह नीचे उतर रही थी। कुछ कहने के लिए बेचारी पीछे मुड़ी थी। उसके पैर लड़खड़ा गए, जिस वजह से वह ट्रेन और प्लेटफार्म के बीच फँस गई।“ 

"सोचा था शाम को जाकर मिल लूँगी।" मेल्विन बड़बड़ाया तो सब उसकी तरफ देखने लगे, “यही कहा था उसने। वो अपने पापा से मिसने जाने वाली थी।“

"पीटर, क्या बोल रहा है।“ रामस्वरूप जी ने पीटर को लगभग डाँटने हुए कहा, “वह लड़की उत्साह में थी। ट्रेन से उतर चुकी थी। अगर वह ट्रेन के नीचे फँस गई तो इसमें मेल्विन की क्या गलती।"

पीटर चुप हो गया। फिर उसने मेल्विन से कहा, “सॉरी मेल्विन!”

“सॉरी कहने की जरूरत नहीं है पीटर! शायद तुम सही कह रहे हो। अगर वो मुझसे बात करने के लिए न मुड़ती तो ये हादसा नहीं होता।“

"इस शहर में आए दिन इस तरह की हादसे होते हैं, मेल्विन। इसमें इतना सोचने या अफसोस करने वाली बात नहीं है।" डॉक्टर ओझा ने मेल्विन के उदास चेहरे की ओर देखते हुए कहा। मेल्विन ने अपनी बैग से एक स्केच निकालकर डॉक्टर ओझा को दिखाया, "यही थी वह लड़की। मैं पूरी रात सो नहीं सका। ऐसा लगा जैसे यह मेरे साथ ही थी। मुझसे कह रही थी, मैं तो अपने पापा से नहीं मिल पाई लेकिन तुम तो गाँव जाकर अपनी माँ से मिल ही सकते हो।"

"हाँ मेल्विन! तुम कब से माँ को मिलने के लिए टालते आ रहे हो। जाकर मिल आओ एक बार। इस साल क्रिसमस में भी नहीं गए थे।“ रामस्वरूप ने कहा।

"मिल आऊँगा। इस बार छुट्टी के लिए बोला है। जैसे ही बॉस हाँ कहेंगे माँ से मिलने चला जाऊँगा।"

"अरे मेल्विन, जाने से पहले मेरा एक छोटा सा काम कर दोगे?” डॉ. ओझा ने कहा, “मेरा 12 साल का लड़का है। वह मोबाइल बहुत चलाता है। कभी गेम के बहाने तो कभी पढ़ाई करने या आईपीएल देखने के बहाने। तुम उसे जरा अपने तरीके से समझाओ। उसका रिजल्ट साल दर साल खराब होते जा रहा है। मेरी या अपनी माँ की तो वह बिल्कुल नहीं सुनता।"

डॉक्टर ओझा की बात सुनकर मेल्विन खामोश रहा, तो पीटर कहने लगा, "यह मेल्विन के बस की बात नहीं है डॉक्टर साहब। आपको ही कुछ करना होगा। दीजिए उसे एक कान के नीचे। 12 साल का हो गया है न। एक पड़ेगा तो फिर मोबाइल की तरफ देखेगा भी नहीं। मेरा लड़का भी पहले दिन-रात मोबाइल में घुसा रहता था। अब कोई कह दे कि उसने मेरे बेटे को मोबाइल चलाते हुए देखा।" 

"नहीं पीटर। हो सकता है कि तुम्हारे बेटे ने थप्पड़ खाकर मोबाइल चलाना छोड़ दिया हो लेकिन बच्चों से जुड़ी बातें मारपीट कर नहीं सुलझानी चाहिए। मेरा पोता अभी 7 साल का ही है। मैंने उसकी कई बुरी आदतों को नई बातें सिखा-सिखाकर छुड़ा दीं। डॉक्टर साहब, आपको भी कुछ ऐसा ही करना चाहिए।"

"मेरे वश की बात नहीं है उसे और समझना। मैं पहले ही बहुत कोशिश कर चुका हूँ। थक-हारकर ही मैंने मेल्विन से यह बात कही है।"

अभी डॉक्टर ओझा ने इतना कहा ही था कि उनका स्टेशन आ गया। वह अपनी जगह से उठ खड़े हुए।

"देख लेना मेल्विन टाइम निकाल के।" जाते-जाते डॉक्टर ओझा ने कहा।

उनके जाने के बाद ट्रेन में कुछ देर तक शांति छाई रही। सब एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। उन्हें मेल्विन की ओर से कुछ कहने का इंतजार था। मेल्विन उनकी नजरों को समझते हुए बोला, “मैं कभी इस तरह किसी के घर नहीं गया। फिर बच्चों को मैंने कभी नहीं समझाया। बच्चे हम बड़ों से बहुत अलग होते हैं। उन्हें समझाने के लिए खास तरीकों की जरूरत पड़ती है। इसलिए मैं डॉक्टर साहब को तुरंत नहीं कहा पाया कि मैं उनकी मदद करने के लिए तैयार हूँ।"

“मेल्विन, तुम्हारे समझाने का तरीका सच में बहुत अच्छा है। एक बार कोशिश करके देखो।" इस बार रामस्वरूप ने मेल्विन का कंधा थपथपाते हुए कहा तो मेल्विन बोला, "ठीक है। इस संडे जाकर देख लेता हूँ।"

मेल्विन इतना कहकर चुप हुआ तो पीटर ने पूछा, "तुम कुछ परेशान दिखाई दे रहे हो मेल्विन! क्या बात है आज देर से आए। "

मेल्विन अपनी उदासी नहीं छुपा सका। उसकी थकान कुछ मिटी तो उसने पीटर की उसकी सीट लौटा दी। पीटर के बगल में खड़े होने के बाद मेल्विन ने कहा, “मेरे सपने में आज माँ भी आई थी। सोच रहा हूँ कि इस बार छुट्टी न भी मिले तो एक बार माँ से मिलकर आ जाऊँ। कल जो हादसा उस लड़की के साथ हुआ उसके बाद भी अगर मैं माँ से मिलने नहीं गया तो शायद इससे बड़ा इशारा ईश्वर और कुछ नहीं देगा।"

मेल्विन अभी आगे कुछ कहता कि तभी रामस्वरूप अपने बेटे से कहने लगे "यह है हमारा मेल्विन। हमारे सफर का सच्चा साथी। है तो पेशे से बढ़िया कार्टूनिस्ट लेकिन दूसरों की जिंदगी का स्केच बनाता रहता है।" 

रामस्वरूप का लड़का थोड़ा सख्त मिजाज मालूम होता था। वह सिर्फ मेल्विन की तरफ देखकर रह गया।

ट्रेन आगे बढ़ी तो चढ़ने वाले पैसेंजरों का शोर कंपार्टमेंट में गूँज उठा। आधे लोग पहले ही खड़े होकर सफर कर रहे थे। अब स्थिति बदतर होने लगी थी। इस बार लड़कियों की एक टोली भी ट्रेन में चढ़ी थी। लड़कियों की यह टोली उसी कंपार्टमेंट में घुस आई जिसमें मेल्विन खड़ा था।

"संभलकर लड़कियों! अभी कल ही एक लड़की की मौत हमारी आँखों के सामने हो गई। तुम जैसी ही थी वो।" रामस्वरूप जी ने यह कहा तो लड़कियाँ भड़क उठीं।

"क्या मतलब हम जैसे ही थी वो। ओ अंकल, ज्यादा मुँह न चलाओ।"

"माफ करना देवियों। दरअसल रामस्वरूप जी के कहने का वो मतलब नहीं था।" मेल्विन ने बीच में कहा तो कुछ लड़कियाँ हँसते हुए बोली, "आप कौन है देवता। रामस्वरूप जी के लक्ष्मण स्वरूप भाई।"

"जी नहीं, मैं मेल्विन हूँ। मेल्विन फर्नांडीस। यहाँ भीड़ ज्यादा है। धक्का-मुक्की न हो इसलिए आपसे एक कल की घटना का जिक्र किया गया।"

मेल्विन की बात सुनकर लड़कियाँ चुप हो गई। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि मेल्विन को उनमें से कुछ लड़कियों की शक्ल ही नहीं दिखाई दे रही थी। पीछे खड़ी दो लड़कियाँ अब भी आपस में कुछ बातें कर रही थीं। मेल्विन को लगा जैसे उनमें से एक को वो पहचानता है। उसने चेहरा देखने की कोशिश की लेकिन वह लड़की काफी दूर खड़ी थी जिससे मेल्विन उसका चेहरा न देख सका। वह किसी बात पर जोर-जोर से हँस रही थी। पीटर और मेल्विन के दूसरे साथियों का ध्यान भी उस ओर गया। उनके कम्पार्टमेंट में इस तरह की हँसी पहले कभी भी सुनने को नहीं मिली थी।

तभी अचानक उस भीड़ में मेल्विन को वही चेहरा नजर आया जिससे वह पूरी रात डरा हुआ था। मेल्विन उस दूसरी लड़की का चेहरा भी देखने की कोशिश कर रहा था जिससे वह बातें कर रही थी। इससे पहले कि मेल्विन उसका चेहरा देख पाता पीटर ने उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया।

”मेल्विन, तुमने देखा उस लड़की को?" पीटर की आवाज सुनकर मेल्विन जैसे नींद से जाग उठा था, "तुम्हें उसका स्केच जरूर बनना चाहिए मेल्विन। क्या तुम मेरे लिए यह करोगे?"

मेल्विन अब भी परेशान था। उसे ये बात समझते हुए देर नहीं लगी थी कि जो चेहरा उसे दिखाई दे रहा है, पीटर वो नहीं देख पा रहा है।

मेल्विन उस दूसरी लड़की का चेहरा देखने की लगातार कोशिश कर रहा था। उसकी हँसी उसे परेशान कर रही थी। कौन थी वह लड़की, अभी मेल्विन ये सोच ही रहा था कि पीटर ने फिर कहा, "क्या सोच रहे हो मेल्विन? कहाँ खो गए? जल्दी करो, इससे पहले कि वो चली जाए।" 

"तुम किसका स्केच बनाने की बात कर रहे हो पीटर? मुझे तो यहाँ से कोई भी दिखाई नहीं दे रहा है।"

पीटर यह सुनकर सोच में डूब गया। उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि मेल्विन को आखिर वो लड़की क्यों नहीं दिखाई रही है। आज से पहले तो मेल्विन के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था। वो साधारण सी बातचीत में दिलचस्प चीजें ढूँढ निकलता था। लेकिन आज ऐसा नहीं था। आखिर मेल्विन का ध्यान कहाँ था।

"इस तरफ आओ, जहाँ मैं खड़ा हूँ। यहाँ से तुम्हें सबकुछ दिखाई देगा।" अभी पीटर ने मेल्विन से इतना कहा ही था की ट्रेन अगले स्टेशन पर फिर रुक गई थी। ट्रेन के रुकते ही लोग धड़धड़ाते हुए बाहर निकलने लगें। मेल्विन को उम्मीद जगी कि अब वो उस लड़की का चेहरा जरूर देख लेगा। उस भीड़ के साथ वो लड़की भी ट्रेन से नीचे उतर गई थी। मेल्विन लाख कोशिशें के बावजूद भी उसे लड़की का चेहरा नहीं देख पाया था लेकिन उसकी हँसी अब भी उसके कानों में गूँज रही थी।

ट्रेन से उतरने के बाद भी उस हँसी ने मेल्विन का पीछा नहीं छोड़ा।

ऑफिस पहुँचने ही बॉस ने उसे एक जरूरी काम सौंपते हुए कहा, "मेल्विन, आज दोपहर तक यह काम होना जरूरी है। आज मैगजीन प्रेस में दे रहा हूँ। यह आखिरी काम है जिसे तुम्हें करना है। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम समय पर यह करके मुझे दे दोगे।" मेल्विन के बॉस ने कहा फिर उनका ध्यान मेल्विन के खोए हुए चेहरे की ओर गया, "मेल्विन, क्या तुम मेरी बात सुन रहे हो?"

"हाँ बॉस, मैं समझ गया। मैं तुरंत काम पर लगता हूँ।" मेल्विन अपनी बात खत्म करके जा ही रहा था कि उसके बॉस ने उसे रोकते हुए कहा, “मेल्विन, आज एक अजनबी शख्स किसी को ढूँढते हुए यहाँ आया था। उसने तुम्हारा नाम तो नहीं लिया लेकिन जो कुछ भी उसने कहा उससे साफ लग रहा था कि वह तुम्हें ही ढूँढ रहा है। मैंने उसे कल फिर आने को कहा है। देखो, शायद उसे तुम्हारी जरूरत है।"

"मुझे कोई ढूँढ रहा था?" मेल्विन हैरान हुआ, "आपको ऐसा क्यों लगा बॉस  की वह मुझे ही ढूँढ रहा था जबकि आप कह रहे हैं उसने किसी का नाम नहीं लिया।"

"वह पालघर का नाम ले रहा था। हमारे ऑफिस में पालघर से सिर्फ तुम ही हो। कल वह आ रहा है, तुम मिलकर बात कर लेना। वह कुछ परेशान दिखाई दे रहा था।"

मेल्विन का बॉस जब यह कहकर वहाँ से गया तो मेल्विन की परेशानियाँ और भी बढ़ गईं। अभी तक वह सिर्फ एक अजनबी हँसी को लेकर परेशान था लेकिन अब इस अजनबी शख्स ने उसे और बेचैन कर दिया था।

आज का दिन मेल्विन के लिए रोज से काफी अलग था।

आखिर कौन थी वह लड़की जिसकी हँसी मेल्विन को परेशान कर रही थी और कौन था यह अजनबी शख्स जो पालघर का नाम लेकर मेल्विन को ढूँढते हुए उसके ऑफिस तक आ पहुँचा था? क्या वह वाकई मेल्विन को ढूँढ रहा था या उसकी तलाश कोई और था? 

 

 

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