एपिसोड-03
सूनी सुबह...मंडे मॉर्निंग
“क्या बात है मेल्विन, आज फिर तुम परेशान दिखाई दे रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?" उसे खोया हुआ देखकर डॉक्टर ओझा ने उससे पूछा।
संडे की सुबह मेल्विन डॉक्टर ओझा के घर पहुँचा। वो डॉक्टर ओझा की परेशानी को हल करने के इरादे से आया था लेकिन अब खुद उसके सामने एक परेशानी खड़ी हो चुकी थी। यह परेशानी उसके सामने एक हँसी के रूप में आई थी। एक ऐसी हँसी जो मेल्विन का ट्रेन से लेकर से ऑफिस तक और फिर ऑफिस से लेकर घर तक पीछा कर रही थी। मेल्विन उस हँसी के पीछे का चेहरा बार-बार अपने दिमाग में बनाने की कोशिश करता। लेकिन एक अनजाने खौफ से सहम जाता।
“हाँ डॉक्टर साहब, मैं ठीक हूँ।“ मेल्विन जैसे गहरे ख्यालों से बाहर आता हुआ बोला, “जरा कुछ बातों को लेकर उलझन में था। लेकिन जल्द ही मैं इस उलझन से बाहर आ जाऊँगा।"
डॉक्टर ओझा ने फिर मेल्विन से इस बारे में कुछ नहीं पूछा। हालाँकि उन्हें मेल्विन की समस्या कुछ गंभीर मालूम हो रही थी।
चाय और नाश्ता सामने टेबल पर रखा हुआ था। इतने सालों की जान-पहचान के बाद मेल्विन पहली बार डॉक्टर ओझा के घर आया था।
"मेल्विन, आज पहली बार तुम मेरे घर आए हो, इसलिए खाना खाकर ही वापस जाना।" डॉक्टर ओझा ने विनती की, "सुमित भी अभी स्कूल में है। शाम तक वह वापस लौटेगा। तभी तुम्हारी उससे मुलाकात भी हो जाएगी।"
"डॉक्टर साहब, अगर शाम को लौट जाने की इजाजत दे दें, तो अच्छा रहेगा। कुछ जरूरी काम पेंडिंग है। उसे अगर जल्दी नहीं खत्म किया तो बॉस मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा।"
मेल्विन की बात सुनकर डॉक्टर ओझा सोच में पड़ गए। उनकी पत्नी भी वहीं खड़ी थी। दोनों की नजरे आपस में मिली और फिर इशारों ही इशारों में कुछ तय हुआ। फिर डॉक्टर ओझा ने कहा, “ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो मेल्विन!“
अगले कुछ देर तक चाय और नाश्ते का प्रोग्राम चलता रहा।
शाम को जब सुमित घर लौटकर आया तब डॉ. ओझा की उम्मीद के उलट उसने आते ही मेल्विन को नमस्कार कहा और आगे बढ़कर उसके पैर छू लिए। मेल्विन ने भी खुश होकर उसके सिर पर अपना हाथ रख दिया।
सुमित ने खुश होते हुए मेल्विन से पूछा, "आप मेल्विन अंकल हो न! मैगजीन वाले कार्टूनिस्ट अंकल! मैंने आपके ढेर सारे कार्टूंस देखे हैं। मुझे कार्टून बहुत पसंद हैं। मास्टर चीन कार्टून मेरा पसंदीदा है।"
सुमित ने उत्साहित होते हुए मेल्विन से ये कहा, तो मेल्विन ने अपने फोन की गैलरी से एक कार्टून की इमेज निकालकर उसे दिखाया।
“क्या तुम इसकी बात कर रहे हो?” मेल्विन के मोबाइल स्क्रिन पर चाइनीज कैरेक्टर का कार्टून था, जिसे देखकर सुमित खुशी से उछल पड़ा।
सुमित ने उस कार्टून को देखकर एक रटी हुई लाइन बोलनी शुरू कर दी, “मास्टर चीन, एक खरगोश के मुँह वाला इंसान। पहाड़ियों के बीच बसे एक काल्पनिक गाँव में ये रहता है। लोगों की परेशानियों को दूर करना और उनकी मुश्किलों को आसान बनाना इसकी जिम्मेदारी है। मास्टर चीन का कार्टून हर हफ्ते हमारी मैगजीन में पढ़े।“
इतना कहते-कहते सुमित की साँसें फूलने लगी तो मेल्विन ने आगे कहना शुरू कर दिया, “जिसे बड़े-बूढ़े और बच्चे, सब बेहद पसंद करते हैं।“
डॉक्टर ओझा को अपने बेटे के इस शौक के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। सुमित को मेल्विन के कार्टून पसंद है और वो मेल्विन को पहले से जानता है, ये सब उनके लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था।
मेल्विन ने आगे बताया, “सुमित, मास्टर चीन जो काम करता है वह काम बड़े होने के बाद हम सब करते हैं। इससे मालूम होता है कि जो आदतें हमें बचपन में सीख लेनी चाहिए वह हम बड़े होने के बाद ही सीखते हैं। तुम्हारी उम्र में हम सब बुरी आदतों को ही चुनते हैं। डॉक्टर चीन की कल्पना मैंने इसलिए की थी ताकि बच्चे समय पर अच्छी चीज सीख लेने का महत्व समझ पाए। भविष्य में मास्टर चीन जैसे हीरो की जरूरत न हो, इसलिए मैंने इस कार्टून की रचना की थी। मास्टर चीन दरअसल और कोई नहीं, मैं और तुम्हारे पिता की तरह तमाम वे लोग हैं जो अपने बच्चों को अच्छी चीज सिखाना चाहते हैं।“
सुमित मेल्विन की बात गौर से सुन रहा था। डॉक्टर ओझा को भी लगा कि ये बातें ही बातों में बिल्कुल सही टॉपिक छिड़ गई है। मेल्विन ने आगे डॉक्टर चीन के बारे में सुमित को काफी कुछ बातें बताईं जिसे सुनकर सुमित बहुत प्रभावित हुआ। आज से पहले सुमित को किसी की बात इतने गौर से सुनते हुए डॉक्टर ओझा और उनकी पत्नी ने भी नहीं देखा था।
“अंकल, आप फिर बच्चों के लिए कार्टून बनाएँगे?” सुमित ने पूछा।
“सुमित, मैं तुम्हारे पापा को कुछ अच्छे चाइल्ड कार्टूनिस्ट और उनके कार्टून दूँगा। तुम उन्हें देखना और समझना। वो तुम्हें मेरे इस कार्टून से भी ज्यादा अच्छे लगेंगे।”
जाते-जाते मेल्विन ने सुमित को अपने कुछ कार्टूंस गिफ्ट किए। सुमित उन कार्टूंस को स्वयं मेल्विन के हाथों से लेकर बेहद खुश हुआ था। साथ ही उसने मेल्विन से यह वादा भी किया कि आज के बाद वो अपने माता-पिता की सारी बातें सुनेगा और हमेशा अच्छी बातें ही सीखने की कोशिश करेगा।
शाम होते-होते मेल्विन वापस घर लौट आया। आधी रात के बाद तक वह न जाने किन-किन कल्पनाओं में गोता लगाता रहा। सुबह उसके कमरे में ढेर सारे नए कार्टून कैरेक्टर्स के स्केच बिखरे पड़े थे।
अगली सुबह मेल्विन की नींद 6:00 बजे खुली। चार घंटे की नींद उसके लिए काफी नहीं थी लेकिन फोन की घंटी सुनकर वो उठ बैठा।
“फोन क्यों नहीं उठा रहे थे बेटा?” मेल्विन की माँ ने फोन की दूसरी तरफ से पूछा, “मैं कब से तुम्हें फोन कर रही हूँ।“
“सॉरी माँ! रात को देर से आँख लगी थी इसलिए फोन की घंटी सुनाई नहीं दी।“ मेल्विन ने उबासी लेते हुए कहा।
“क्या तू अभी तक सो रहा था? मुझे लगा तू अब तक ऑफिस के लिए निकल गया होगा। मेल्विन, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न बेटा?”
मेल्विन बेड से उठकर फ्रेश होने के लिए बाथरूम की तरफ जाता हुआ बोला, “हाँ माँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। अब उठ गया हूँ तो जल्दी से तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलूँगा। कोई जरूरी बात न हो तो बाद में फोन करूँ माँ?”
“हाँ, माँ से ज्यादा जरूरी तो तुम्हारे लिए सब कुछ है बेटा!”
“ऐसी बात नहीं है माँ! मुझे दुख होता है।“ मेल्विन ने उदास होते हुए कहा, “कहो, कैसे फोन किया?”
“मेल्विन, तू घर कब आ रहा है बेटा?” मेल्विन की माँ ने फिर वही सवाल किया, तो मेल्विन कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया।
“माँ, मैंने छुट्टी के लिए अप्लाई किया था। मुझे छुट्टी मिल भी गई है, लेकिन एक जरूरी काम है जिसे निपटने से पहले मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकता। जैसे ही वह काम निपट जाएगा मैं सब कुछ छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा। कुछ दिन और इंतजार कर लो माँ।“
फोन पर मेल्विन की माँ धीरे-धीरे सुबकने लगी थी। फिर उन्होंने फोन कट कर दिया।
मेल्विन की आँखें भी भीग आई थी। उसने जल्दी-जल्दी कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई। हँसने की आवाज अब गायब हो चुकी थी। पूरी रात जिस ट्रेन वाली उस लड़की की हँसी ने उसे परेशान कर रखा था। उसके सहारे ही मेल्विन ने अपनी कल्पना को शक्ल देने की कोशिश की थी।
मीरा रोड रेलवे स्टेशन पर खड़ी लोकल ट्रेन की खिड़की से झाँकते हुए डॉ. ओझा बेसब्री से मेल्विन का इंतजार कर रहे थे।
"मेल्विन, यह डॉक्टर साहब क्या कह रहे हैं! डॉ. साहब का बेटा तुम्हें पहले से जानता था।" पीटर ने मेल्विन के आते ही उससे कहा।
"मुझे एक बात समझ में नहीं आई मेल्विन!" डॉक्टर ओझा ने कहा, “आखिर तुम बच्चों के लिए कार्टून कब से बनाने लगे? कल तुमने और मेरे बेटे ने जो बातें की वह मेरे पल्ले नहीं पड़ी।“
“मास्टर चीन कार्टून मेरा एक असफल प्रयोग था डॉक्टर साहब! मैंने अपने करियर की शुरुआत बच्चों के लिए कार्टून बनाने के साथ ही की थी। बच्चों के लिए मैं और भी बहुत कुछ करना चाहता था। लेकिन टीनएज के बाद मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण से प्रभावित होकर मैंने यह रास्ता छोड़ दिया और आम आदमी के लिए कार्टून बनाना शुरू कर दिया। मास्टर चैन और मेरे द्वारा बनाए बच्चों के लिए दूसरे कार्टून्स के बारे में इसलिए आप लोग नहीं जानते क्योंकि यह बात तब की है जब मैं आप सबसे मिला भी नहीं था।“
अभी मेल्विन अपनी बात कह ही रहा था कि ट्रेन अगले स्टेशन पर आकर खड़ी हो गई। अगले ही पल मेल्विन के कानों में वही अजनबी हँसी एक बार फिर गूँजी। मेल्विन के दिल की धड़कन अचानक से बढ़ गई। उसने हड़बड़ाकर उस ओर देखा जिधर से उस लड़की की हँसने की आवाज़ आ रही थी। पीटर और मेल्विन के साथ सफर कर रहे हैं दूसरे लोगों ने मेल्विन की इस बेचैनी को देख लिया।
“मेल्विन, किसे ढूँढ़ रहे हो तुम?” राम स्वरूप जी ने पूछा।
“रामस्वरूप जी, यह हँसी…।“ मेल्विन इतना कहकर चुप हो गया लेकिन पीटर को उसकी बात समझ में आ चुकी थी।
“हँसी... कौन सी हँसी मेल्विन? तुम किसकी हँसी की बात कर रहे हो?”
मेल्विन कहते-कहते रुक गया था क्योंकि वो नहीं चाहता था कि उस हँसी के बारे में वो कुछ कहे और उसके दोस्त उसकी बातों पर हँसने लगे।
इससे पहले कि पीटर मेल्विन का मन टटोलने की कोशिश करता, कुछ नौजवान लड़के भी शोर मचाते हुए उस कम्पार्टमेंट में घुस आए। कम्पार्टमेंट के अंदर घुसते ही वे लड़के अपने आगे खड़े लोगों को धक्का देते हुए घुसने लगे।
“चलो रे, जगह दो। कैसे एक-दूसरे से चिपक-चिपककर खड़े हैं।“ उनमें से एक लंबे लड़के ने पीटर के एकदम करीब आते हुए कहा।
मेल्विन और पीटर ने देखा वे न सिर्फ आदमियों को धक्का दे रहे थे बल्कि अभी-अभी ट्रेन में चढ़ी लड़कियों को भी बेरहमी से धक्का दे रहे थे।
“यह क्या तरीका है इन लोगों का?” रामस्वरूप जी ने धीरे से कहा।
“बेचारी, रास्ते में लड़कियाँ खड़ी हैं, इस बात का ख्याल भी नहीं कर रहे हैं।“ डॉक्टर ओझा ने कहा।
“ट्रेन में इतनी भीड़ है तो इसमें उन लड़कों की क्या गलती। अगर वह जगह नहीं बनाएँगे तो उन्हें कोई अंदर आने भी नहीं देगा।“ रामस्वरूप के लड़के ने कहा।
“लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वह बदतमीजी पर उतर आए।“ इस बार मेल्विन ने भी लड़कों का विरोध करते हुए कहा।
“क्या रे, क्या बोल रहा है तू ?” उसी लंबे लड़के ने मेल्विन को आँख दिखाते हुए पूछा।
“अभी कोई पंगा करने की जरूरत नहीं है मेल्विन!” पीटर ने कहा, “मुझे यह लड़के थोड़े खिसके हुए दिमाग के लगते हैं। शायद इसने पी भी रखी है। हम सब अपने-अपने काम पर जा रहे हैं, इसलिए इस तरह की हरकतों का जवाब न दे तो अच्छा है। घर वापस लौट रहे होते तो बात और थी।“
“तुम कहना क्या चाहते हो पीटर? अगर शाम को यह लड़के इस तरह की बदतमीजी करते तो हम उन्हें जवाब देते लेकिन क्योंकि यह सुबह है और हम अभी ऑफिस जा रहे हैं इसलिए इनकी बदतमीजी को चुपचाप सह लें।“
जब तक मेल्विन और पीटर आपस में बातचीत करते रहे तब तक दो-तीन और लड़के अपने आगे खड़ी लड़कियों को जबरन धक्का देते हुए पीटर के ठीक सामने आकर खड़े हो गए थे।
“और अंकल, क्या हाल-चाल है?” एक दूसरे लड़के ने मेल्विन के बिल्कुल पास आते हुए पूछा। फिर उसे धक्का देते हुए आगे बढ़ गया। मेल्विन अपना शर्ट झाड़ कर चुपचाप खड़ा रह गया लेकिन पीटर से ये बात बर्दाश्त नहीं हुई। उसने उस लड़के का हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया।
“पीटर, जाने दो उसे।“ मेल्विन ने कहा।
“क्यों मेल्विन, अब क्यों जाने दूँ? अब तक यह किसी और से बदतमीजी कर रहे थे, लेकिन अभी हमसे भी बदतमीजी करने पर उतारू हो चुके हैं। हम किसी की बदतमीजी बर्दाश्त करने के लिए यहाँ नहीं खड़े हैं।“
पीटर ने अभी इतना कहा ही था कि एक लड़के ने उसका कॉलर पकड़ लिया। पीटर ने गुस्से में उस लड़के के चेहरे पर एक मुक्का मारा। जवाब में उस लड़के ने भी पीटर की ओर हाथ तान दिया था लेकिन समय रहते ही दो-तीन लोगों ने बीच-बचाव करके मामले को संभाल लिया।
“देखो बच्चे, तुम सिर्फ चार हो। लेकिन जिस कंपार्टमेंट में इस वक्त तुम खड़े हो, यहाँ रोज आने वाले कम से कम 25-30 लोग हैं। अगर तुम बाज नहीं आए तो यह तुम पर भारी पड़ने में ज्यादा वक्त नहीं लेंगे। मेरी बात मानो, चुपचाप यहाँ से चले जाओ।“
उसे लड़के ने मेल्विन की बात पर कुछ देर तक सोच विचार किया। फिर उसने अपना उठाया हुआ हाथ नीचे कर लिया। उन्होंने भी झगड़ा मोल लेना ठीक नहीं समझा। जब सब कुछ निपट गया तो मेल्विन की आँखें एक जगह जाकर टिक गईं। ट्रेन के रुकते ही लाल सूट पहने एक लड़की नीचे उतरी। मेल्विन उसे काफी देर तक जाते हुए देखता रहा।
क्या मेल्विन ने उस लड़की का चेहरा देख लिया था? आखिर कौन थी वो लड़की? क्या मेल्विन का कभी भी उससे आमना-सामना होगा?
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