अर्जुन: अरे हाय! मेरा पैर... आख़िर तुम पत्थरों की मुझसे दुश्मनी क्या है? हर बार मेरे रास्ते में आ जाते हो। रुक, तुझे अभी ठिकाने लगाता हूँ...
अर्जुन इस सुनसान, घने जंगल में बेखौफ़ होकर ऐसे घूम रहा था, जैसे वह इस खतरनाक जंगल के कोने-कोने से वाक़िफ़ हो। तभी... उसका पैर एक पत्थर से टकराया और वह दर्द से चीख पड़ा। अर्जुन उसी जगह पर अपना पैर पकड़कर बैठ गया।
अचानक उसे कुछ याद आया,
अर्जुन : मैं इस रास्ते से कितनी बार आया-गया हूँ, लेकिन मैंने इससे पहले यहाँ बीच रास्ते में पत्थर नहीं देखा? फिर आज कैसे? वह भी ज़मीन में धंसा हुआ?
अर्जुन उस पत्थर को देखकर सोच में पड़ गया। दरअसल, वह पत्थर ज़मीन में गड़ा था और बस थोड़ा-सा हिस्सा ही ऊपर दिखाई दे रहा था। अर्जुन के पैर में दर्द हो रहा था और उसके ज़हन में ग़ुस्सा था। उसने ठान लिया था कि आज इस पत्थर को हटाकर ही रहेगा।
अर्जुन: तुझे पता नहीं है, तूने किससे पंगा ले लिया है। अगर तुझे थोड़ा भी मेरे बारे में पता होता, तो ऐसी ग़लती नहीं करता। मैंने अपनी ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी चट्टानों का इतिहास और भूगोल, दोनों बदल दिया है, फिर तू मेरे सामने क्या चीज़ है?
अर्जुन पूरी तरह से पागल हो चुका था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे आज वह बड़ी से बड़ी चट्टान को भी टुकड़े-टुकड़े कर देगा। उसने एक छोटा पत्थर उठाया और एक के बाद एक, वार करता रहा। लेकिन वह पत्थर भी अर्जुन की तरह ही ज़िद्दी था। अर्जुन की इतनी कोशिशों के बाद भी वह टस से मस नहीं हुआ।
अर्जुन के माथे से पसीना बहता ही जा रहा था। उसका शरीर अब जवाब देने लगा और वह थककर एक पेड़ की छांव में जाकर बैठ गया। उसकी हालत ऐसी थी, जैसे विश्व-विजेता सिकंदर एक आम आदमी से हार गया हो। अर्जुन थोड़ी देर तक कुछ सोचता रहा... और अचानक उठकर उस पत्थर पर अपनी पूरी ताकत से वार किया।
इस बार अर्जुन जीत गया और वह पत्थर मिट्टी चीरता हुआ बाहर आ गिरा।
अर्जुन : अरे ये क्या... ये कैसा पत्थर है? ये तो बहुत पुराना लग रहा है। कहीं ये फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का गाड़ा हुआ पत्थर तो नहीं था?
जैसे ही अर्जुन ने उस पत्थर को पलटा... उसकी आंखें चमक उठीं, क्योंकि वह कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि एक प्राचीन शिलालेख का टुकड़ा था, जिसमें सदियों का इतिहास दर्ज था। अर्जुन का दिल ख़ुशी और आश्चर्य से धड़क उठा। यह उसी शिलालेख का टुकड़ा था, जिसकी खोज उसे केरल के इस घने जंगल तक खींच लाई थी।
अर्जुन: क़िस्मत का खेल भी ग़ज़ब है, जिसके लिए मैं सालों से इस जंगल में भटक रहा था, वह मिला भी तो इस तरह। वाह, क्या बात है अर्जुन, आज तो तेरी क़िस्मत खुल गई।
अर्जुन ने शिलालेख का टुकड़ा उठाया। उस पर बहुत ही प्राचीन लिपि में एक पंक्ति लिखी थी:
“जहाँ सन्नाटा बोलता है और अँधेरा राज करता है, वहीं छुपा है इस दुनिया का अनंत ज्ञान।”
अर्जुन की आँखें चमक उठीं। वह समझ गया कि अपनी टीम को फिर से सक्रिय करने का समय आ गया है। अर्जुन अपना दर्द भूल कर अपने कैम्प की तरफ़ बढ़ गया। अब उसके दिमाग़ में एक ही बात थी, अपनी टीम को इकट्ठा करना और जुट जाना मिशन तलाश में।
अर्जुन आख़िर किस खतरनाक मिशन को अंजाम देने वाला है? यह समझने से पहले हमें उसका इतिहास समझना होगा।
दरअसल, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लगातार खोजें होती रही हैं। कुछ खोजें आपको उन कहानियों पर यक़ीन दिलाती है जिन्हें सुन कर आप बड़े हुए और कुछ खोजें ऐसी होती हैं, जो समय को चीरकर उसके रहस्यों से पर्दा उठा देती हैं।
अर्जुन मेहरा, एक ऐसा नाम... जो कहने को तो एक आर्कियोलॉजिस्ट था, पर उसकी नजरें पुराने खंडहरों से ज़्यादा उन कहानियों पर रहती थीं, जिनका इतिहास की किताबों में ज़िक्र तक नहीं था।
अर्जुन, लगभग 40-45 साल का दुबला-पतला और बिलकुल साधारण दिखने वाला आदमी था, पर उसके भीतर के जुनून और ज्ञान की गहराई उसके चेहरे पर साफ़ झलकती थी। बड़े बाल, हल्की दाढ़ी और हमेशा काम में डूबे रहने वाला स्वभाव। इन्हीं सब खूबियों की वज़ह से उसकी टीम उसे "मास्टर" कहती थी।
अर्जुन ने जंगल से निकलकर अपनी टीम को एक सीक्रेट सिग्नल भेजा। थोड़ी देर में ही उनकी टीम के तीनों सदस्य उनसे कनेक्ट हो गए, बस एक इंसान को छोड़कर।
आइशा खान उम्र 25 साल, यह अर्जुन की टीम की सॉल्यूशन स्पेशलिस्ट थी। वह पिछले 8 साल से अर्जुन की टीम का हिस्सा थी। जब भी टीम किसी बड़ी समस्या में फँसती, आइशा ही सबको हर मुश्किल से बाहर निकालती थी।
31 साल की डॉ. मीरा अय्यर, पुरातत्व और प्राचीन लिपियों की विशेषज्ञ थीं और विक्रम सिंह, जंगल में जीवित रहने की कला में माहिर था। हालाँकि विक्रम की उम्र दूसरे लोगों के मुकाबले कम थी, लेकिन उसमें टैलेंट उसकी उम्र से दोगुना था।
ये तीनों आज 4 साल बाद अपने मास्टर को रु-ब-रु देख रहे थे और इसकी ख़ुशी उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी। आइशा ने थोड़ा बनावटी गुस्सा दिखाते हुए अपने मास्टर से पूछा:
आइशा खान: मास्टर... कैसे हैं आप? वैसे हैं कहाँ अभी आप? लगता है, आप हमें भूल गए हैं, तभी तो 4 साल बाद आज याद किया है आपने!
अर्जुन: अगर मुझे पता होता कि तुम इतना बोलने लगी हो, तो मैं तुम्हें कभी याद ही नहीं करता!
अर्जुन ने ये बात जिस अंदाज़ में कही थी, सुनकर सभी लोग हँस पड़े। अर्जुन थोड़े सख्त मिज़ाज के थे, लेकिन उनकी टीम के लोग उनसे डरते भी थे और उनकी इज़्ज़त भी करते थे।
विक्रम ने थोड़े डरते हुए पूछा:
विक्रम सिंह: मास्टर, आप इतने दिनों से कहाँ थे? मुझे आपकी चिंता होने लगी थी, लेकिन मेरे पास आपसे संपर्क करने का कोई ऑप्शन नहीं था। आपके पास तो ऑप्शन था, फिर भी आपने हमें कभी याद नहीं किया, ऐसा क्यों?
अर्जुन: विक्रम! क्या तुम्हें मेरी शर्त याद नहीं? याद करो मैंने क्या कहा था, जब तक मिशन नहीं होगा, मैं तुमसे संपर्क नहीं करूँगा। भूल गए क्या?
डॉ. मीरा: नहीं मास्टर, हमें आपकी शर्त याद है, लेकिन मास्टर, आख़िर हम इंसान हैं और इंसानों को अपनों की परवाह तो रहती ही है, है ना?
डॉ. मीरा के इस इमोशनल काउंटर अटैक का, अर्जुन के पास कोई जवाब नहीं था। तभी अर्जुन को अचानक अपने चौथे सदस्य, सम्राट की याद आई। उन्होंने उसके बारे में टीम से पूछा, लेकिन सम्राट के बारे में कोई नहीं जानता था।
अर्जुन: ये इंसान, अपनी ज़िन्दगी में कभी सीरियस नहीं होगा। आज 4 साल बाद तुमसे कनेक्ट हो रहा हूँ, फिर भी लापता है। अब कहाँ खोजें इस बेवड़े को? 4 सालों में कहीं किसी ट्रक के नीचे आकर मर तो नहीं गया होगा?
विक्रम: मास्टर, मुझे उसका एक ठिकाना पता है। अगर हमारी क़िस्मत अच्छी रही तो वह वहीं मिलेगा, वरना उसे खोजना मुश्किल ही नहीं, लगभग नामुमकिन है।
अर्जुन ने सम्राट को खोजने की जिम्मेदारी विक्रम को दे दी थी। आइशा ने अर्जुन से अचानक संपर्क करने का कारण पूछा। अर्जुन ने तीनों को अपने अगले मिशन के बारे में बताते हुए कहा,
अर्जुन: हम अपने अगले सीक्रेट मिशन पर जा रहे हैं और यह मिशन हम सभी की ज़िन्दगी का सबसे महत्त्वपूर्ण और ख़ास मिशन है। बाक़ी बातें मैं तुम लोगों से मिलकर बताऊंगा। जल्दी से डिसाइड करो कि कहाँ मिलना है और मुझे बताओ।
डॉ. मीरा: लेकिन मास्टर, आप अभी किस जगह पर हैं? हम सब वहीं आ जाते हैं न।
अर्जुन: केरल।
केरल का नाम सुनकर टीम के सदस्य ऐसे चौंक गए, जैसे अर्जुन ने केरल नहीं बल्कि युगांडा कहा हो। अचानक उन्हें याद आया कि उनके मास्टर दुनिया के किसी भी कोने में जा सकते हैं, तो केरल क्यों नहीं? ठीक दो दिन बाद फिर से संपर्क करने का कहकर अर्जुन ने सिग्नल काट दिया था।
टीम के लोग केरल जाने की तैयारी करने लगे। विक्रम ने सम्राट को ढूँढने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाया। आखिरकार, सम्राट के बिना ही ये तीनों लोग मास्टर से मिलने के लिए केरल के सफ़र पर निकल पड़े।
अर्जुन टैलेंट और साहस का अनोखा संगम थे। ज़रूरत पड़ने पर वे किसी भी चीज़ का आविष्कार कर सकते थे। उनके बनाए हुए वैज्ञानिक उपकरण देखकर उनकी टीम दंग रह जाती थी। उन्होंने "सिग्नल" नाम का एक उपकरण बनाया था, जिससे वे किसी भी समय अपनी टीम से बात कर सकते थे। इस उपकरण की सबसे बड़ी खूबी इसकी "इनविज़िबिलिटी" थी, जिससे यह साधारण आँखों से दिखाई नहीं देता था। इसलिए टीम को एक स्पेशल चश्मा पहनना पड़ता, जिसे ख़ुद अर्जुन ने ही इन्वेंट किया था।
अर्जुन की इसी प्रतिभा के कारण उनकी टीम उन पर आँख बंद करके भरोसा करती थी। सम्राट उनसे अक्सर मज़ाक में कहता था कि आपको तो आइंस्टाइन जैसा वैज्ञानिक बनना था, आप यहाँ इन खंडहरों में हमारी ज़िन्दगी बर्बाद कर रहे हैं। मास्टर उसकी बात सुनकर चिढ़ जाते और कहते,
अर्जुन: इन खंडहरों की धूल साफ़ करना ही मेरा पैशन है और मैंने तुम्हारा हाथ नहीं पकड़ रखा है। अगर जाना चाहते हो तो आज ही जा सकते हो।
अपने मास्टर की बात पर सम्राट अक्सर ज़ोर से हँस पड़ता था। वह जानता था, मास्टर के बिना वह कुछ नहीं है।
आज सम्राट टीम के साथ नहीं था। आइशा, विक्रम और डॉ. मीरा एक लंबा सफ़र पूरा करके केरल पहुँच चुके थे। अब उन्हें अपने मास्टर के सिग्नल का इंतज़ार था। विक्रम पर सफ़र की थकान हावी हो चुकी थी, इसलिए उसने थोड़ी देर सोने का प्लान बनाया।
विक्रम की जस्ट नींद लगी ही थी कि एक तेज़ आवाज़ उसके कानों में पड़ी। वह हड़बड़ाकर उठकर बैठ गया। दरअसल, वह आवाज़ अर्जुन की थी। अर्जुन को अपने सामने देख वह चौंक गया।
विक्रम: मा... मास्टर, आप यहाँ? आप कब आए?
अर्जुन: मुझे यहाँ नहीं होना चाहिए क्या? मैंने तुम लोगों को यहाँ सोने के लिए बुलाया है क्या? सोना ही था, तो आए ही क्यों यहाँ? 10 मिनट देता हूँ तुम्हें, जल्दी तैयार होकर मीटिंग के लिए आओ।
चार साल बाद अर्जुन को देख विक्रम को महसूस हुआ कि मास्टर की आवाज़ अब भी वैसी ही कड़क थी। वह जल्दी से तैयार होकर डरते हुए मीटिंग रूम में पहुँचा।
विक्रम: मास्टर, आप कैसे हैं? मैं... थोड़ा थक गया था, इसलिए नींद आ गई थी।
अर्जुन: कोई बात नहीं विक्रम, मैं भी तुमसे मज़ाक कर रहा था। अब तुम तीनों मेरी बात ध्यान से सुनो। यह मिशन हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण और खतरनाक है, इसलिए हमें हर क़दम सोच-समझकर उठाना होगा।
अर्जुन की बात ख़त्म होते ही आइशा ने पूछा,
आइशा: मास्टर, पहले यह तो बताइए, हम इस मिशन पर क्यों और कहाँ जा रहे हैं?
अर्जुन ने टेबल पर अपना काले रंग का बैग रखा, जो एक सीक्रेट कोड से ही खुलता था। उन्होंने उसमें कोड डाला और एक बॉक्स निकाला। उस बॉक्स को देख के सभी चौक गए। यह वही बॉक्स था जो लास्ट मिशन में अर्जुन को मिला था और इसमें एक खांचा बना हुआ था जो खाली था। अर्जुन ने जैसे ही वह बॉक्स खोला सभी उस खाली खांचे में रखे पत्थर के टुकड़े को देख कर हैरान रह गए। यह वही पत्थर था जो अर्जुन को थोड़े दिनों पहले मिला था। यह था प्राचीन शिलालेख का एक टुकड़ा। उनकी टीम को यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि उनके मास्टर की कही बात एक दिन सच हो जाएगी।
डॉ. मीरा: इसका मतलब ऐसी जगह असल में भी मौजूद है, मास्टर?
डॉ. मीरा की नज़र अचानक पत्थर पर लिखी एक प्राचीन पंक्ति पर गई। उसने उसका मतलब पूछा,
अर्जुन: इस पंक्ति का मतलब है, एक ऐसी जगह जहाँ हर तरफ़ सिर्फ़ सन्नाटा और खतरनाक अँधेरा होगा। उसी जगह पर इस दुनिया का अनंत ज्ञान मिलेगा। हमें बिना समय गँवाए जल्दी से उस जगह को खोजने के मिशन पर लगना होगा, क्योंकि मुझे संकेत मिले हैं कि कुछ और लोग भी इस जगह की तलाश में हैं।
डॉ. मीरा: यह प्राचीन भाषा हमें उस स्थान की ओर ले जा सकती है, जहाँ पांडुलिपि छिपी हो सकती है और इसके अनुसार, हमें पश्चिम दिशा में जाना होगा।
विक्रम : लेकिन जंगल में जाना आसान नहीं होगा। पश्चिमी घाट का यह हिस्सा बहुत खतरनाक है और यहाँ हमें सिर्फ़ प्राकृतिक चुनौतियों से ही नहीं, बल्कि शायद कुछ और भी खतरों का सामना करना पड़ सकता है।
अर्जुन सभी की बातें ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने थोड़ी देर सोचा और फिर निर्णय लिया,
अर्जुन: हम मीरा की बात मानते हुए पश्चिम घाट की ओर बढ़ेंगे और विक्रम हमारी सुरक्षा का इंतज़ाम करेगा।
इसके साथ ही अर्जुन और उनकी टीम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गए थे। उन्हें नहीं पता था कि यह यात्रा उनकी सोच से भी ज़्यादा खतरनाक होने वाली थी। ऐसे में क्या विक्रम उनकी सुरक्षा कर पाएगा? क्या उन्हें मिल पाएंगे शिलालेख के और भी हिस्से? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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