सुबह-सुबह केरल के उस इलाके की खूबसूरती देखकर सबका मन खुश हो गया था। लेकिन वह इलाक़ा जितना मन को भाने वाला था, उससे कहीं ज़्यादा जोखिम भरा भी था। अर्जुन की टीम में सभी लोग अनुभवी थे और पूरी टीम अपना काम अच्छे से करना जानती थी। अर्जुन ने सबको ज़रूरत का सारा सामान और उपकरण इकट्ठा करने के लिए कहा।

अर्जुन - "सभी लोग यहाँ आ जाओ... मुझे आपको बताने की वैसे तो ज़रूरत नहीं है, लेकिन फिर भी मैं आपको एक बार आगाह कर देना चाहता हूँ कि हम जिस जगह जा रहे हैं, वहाँ ख़तरा होगा। हम अपना सफ़र ठीक छह घंटे बाद शुरू करेंगे। आप सब लोग अपनी ज़रूरत का सामान इकट्ठा कर लीजिए। हम सभी बारह बजे यहाँ से निकलेंगे। किसी को कोई सवाल पूछना हो तो बाद में पूछ लेना। अब काम पर लग जाओ।"

इसके बाद सभी वहाँ से चले गए और अर्जुन योजना बनाने में जुट गए। केरल के पश्चिम घाट के बाहरी जंगलों तक गाड़ी जा सकती थी, इसलिए थोड़ी देर बाद, अर्जुन, पास के एक कस्बे से गाड़ी का इंतज़ाम कर लाए थे। पूरी टीम सुबह 10 बजे तक सारी चीज़ें लेकर पहुँच गई।

विक्रम- "मास्टर, मेरी सारी तैयारी पूरी हो चुकी है।"

डॉ. मीरा- "हाँ मास्टर, मैं और आइशा भी तैयार हैं। ज़रूरी सामान भी रख लिया है।"

अर्जुन- "ठीक है, फिर हमारी गाड़ी भी तैयार है। यह जीप हमें जंगल के बाहरी इलाक़े तक छोड़ देगी और फिर वहाँ से आगे का रास्ता हमें पैदल तय करना होगा। मुझे आप सबकी काबिलियत पर भरोसा है। हमें अपनी इस खोज में कई मुश्किलों का सामना करना होगा, इसलिए हमेशा चौकन्ना रहना। अगर शिलालेख पर लिखी बात सही हुई तो हमारी यह खोज मानव इतिहास की सबसे बड़ी पुरातन खोज होगी। हमारा दुनिया को समझने का तरीक़ा बदल जाएगा। दोस्तों, चलो... यह सफ़र हमारी ज़िंदगी बदल सकता है। हमें अब निकलना होगा।"

मिशन पर जाते समय सब लोग उत्साहित थे। जीप उन्हें जंगल के बाहर तक छोड़कर चली गई। दिन की गर्मी में तीन घंटे cमिशन पर जाते समय सब लोग उत्साहित थे। जीप उन्हें जंगल के बाहर तक छोड़कर चली गई। दिन की गर्मी में तीन घंटों तक चलने के बाद, सभी घने जंगल में पहुँच गए। शाम को बादल गरजने लगे और तेज़ आँधी से उनका सामना हुआ। अर्जुन को जंगल में सुरक्षित रहने का अच्छा ज्ञान था। वह जानता था कि हर मौसम के हिसाब से अलग-अलग ख़तरे हो सकते हैं।

अर्जुन- "इस तेज़ आँधी में हम आगे नहीं बढ़ सकते, हमें कुछ देर यहीं रुकना होगा।"

विक्रम- "मास्टर, बारिश के पूरे आसार हैं। हमें जल्दी ही ऊपर की तरफ़ जाना होगा, क्योंकि अगर बारिश हुई तो यहाँ नीचे कीचड़ में हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे।"

अर्जुन- "तुम सही कह रहे हो, तुम आगे चलो, हम तुम्हारे पीछे आते हैं।"

पूरी टीम ऊपर एक समतल जगह पर पहुँच गई। सबने अपने रेनकोट पहन लिए थे। कुछ देर बाद हवा और आँधी थम गई। अब आगे बढ़ा जा सकता था, लेकिन कुछ घंटों बाद ही रात होने वाली थी।

डॉ. मीरा- "थैंक गॉड, हवा रुक गई, अब हम आगे बढ़ सकते हैं।"

विक्रम- "हवा तो रुक गई है, लेकिन हमें अँधेरा होने से पहले यहाँ कैंप लगाना होगा, क्योंकि अँधेरा होते ही जंगली जानवरों का ख़तरा बढ़ जाएगा। वैसे भी इस जंगल में भेड़िए ज़्यादा हैं और मुझे उनका डिनर नहीं बनना।"

अर्जुन- "सुरक्षा के लिए आज रात यहीं रुकना होगा। विक्रम, तुम तीनों कैंप लगाओ। मैं आगे का रास्ता देखने जाता हूँ। कुछ आगे जाकर ही समझ आएगा।"

विक्रम- "मास्टर, जैसा आप कहें, लेकिन ज़्यादा दूर मत जाइएगा। बारिश कभी भी हो सकती है।"

अर्जुन- "फ़िक्र मत करो, मैं यहीं आस-पास ही रहूँगा।"

अर्जुन वहाँ से आगे निकल गए। विक्रम ने अपने बड़े से बैग में से ज़रूरी सामान निकाला। आइशा और मीरा की मदद से टेंट जल्दी ही लग गए। विक्रम ने जंगल से बाँस काटे और टेंट के आस-पास एक सुरक्षा कवच बना लिया। अचानक बादल फिर से गरजने लगे और बारिश शुरू हो गई। रात होने में अभी भी वक़्त था।

विक्रम- "चलो जल्दी से टेंट के अंदर बैठ जाओ।"

आइशा- "लेकिन मास्टर बाहर ही हैं, हमें उन्हें ढूँढना चाहिए।"

विक्रम- "नहीं, मास्टर अपना ध्यान रख सकते हैं, उन्होंने बड़ी-बड़ी मुश्किलों का सामना किया है।"

दूसरी तरफ़ अर्जुन आगे बढ़ रहे थे। बारिश के आते ही वह एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। कुछ देर बाद बारिश बंद हो गई। अर्जुन ने अपना नक़्शा निकाला और थोड़ा आगे बढ़े। नक़्शे के हिसाब से वहीं कहीं आस-पास एक छोटा खंडहर होना चाहिए था। कुछ देर बाद आस-पास के कई पत्थरों को उठाकर देखने के बाद उन्हें एक और शिलालेख का टुकड़ा मिला, जिस पर प्राचीन भाषा में एक पहेली लिखी हुई थी। वह उसे लेकर कैंप की तरफ़ बढ़ने लगे। रास्ते में उन्हें कई बार ऐसा लगा जैसे कोई उनका पीछा कर रहा हो।

उन्होंने एक-दो बार पलट कर भी देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। उन्होंने सोचा शायद यह उनका भ्रम था। लेकिन कुछ देर बाद फिर से ऐसा महसूस हुआ, जैसे उनके पीछे झाड़ियों में कोई था। वे बिना रुके आगे बढ़े। थोड़ा आगे बढ़ने पर उन्हें कुछ दूरी पर एक भेड़िया दूसरी तरफ़ जाता हुआ दिखाई दिया। वे सतर्क हो गए। एक पेड़ के पीछे छिपकर उन्होंने उसके निकलने का इंतज़ार किया। कुछ देर बाद, छिपते हुए वे कैंप तक पहुँचे और उन्होंने सबको आगाह किया, साथ ही विक्रम को आस-पास नज़र रखने के लिए कहा। उनके चेहरे पर अलग ख़ुशी झलक रही थी, जो हैरानी की बात थी। यह देखकर मीरा ने उनसे पूछा:

डॉ. मीरा- "मास्टर, आप इतने खुश क्यों हैं, आपको कहीं कोई ख़ज़ाना तो नहीं मिल गया?"

अर्जुन- "हाँ, कुछ ऐसा ही समझो। हम नक़्शे के हिसाब से सही जा रहे हैं। मुझे एक और शिलालेख मिला है।"

अर्जुन ने वह पत्थर निकालकर उनके सामने रख दिया। सबसे पहले डॉ. मीरा ने उस पर नज़र डालते हुए उसे अच्छी तरह देखा। काफ़ी सोचने के बाद उन्होंने कहा:

डॉ. मीरा- "यह वैसा ही पत्थर है जैसा हमें पहले मिला था। लेकिन फिर भी यह अलग है, क्योंकि इस शिलालेख पर पिछली वाली भाषा से भी प्राचीन भाषा में लिखा है।"

आइशा- "मास्टर, इस पर क्या लिखा हुआ है?"

अर्जुन- "इस पर भी एक पहेली ही लिखी हुई है, लेकिन अधूरी है। इस पर लिखा है, ' पूरे चाँद की रोशनी में जिन्हें मिली आज़ादी।"

डॉ. मीरा- "अब इसका क्या मतलब होगा, मास्टर?"

अर्जुन- "पहेलियाँ सुलझाने में आइशा सबसे अच्छी है। मुझे तो समझ नहीं आ रहा, शायद आइशा इसका मतलब बता देगी।"

यह नई पहेली इस खोज में अर्जुन और उनकी टीम के लिए ज़रूरी थी, लेकिन फिलहाल इसका मतलब किसी को समझ नहीं आया। दूसरी तरफ़ अब अँधेरा हो चुका था और आज की रात पूरी टीम को इस ख़तरनाक जंगल में बितानी थी। कुछ देर बाद ही जंगली जानवरों की आवाज़ों से पूरा जंगल गूंज उठा। विक्रम अब भी कैंप के पास पहरा दे रहा था, अचानक उन्हें भेड़ियों की आवाज़ बहुत पास से सुनाई दी।

आइशा- मास्टर... भेड़िए... क्या वह इंसानों को मार देते हैं? क्या वह हमें भी...?

अर्जुन- आइशा, सुनो... घबराओ मत, विक्रम पहरा दे रहा है। वह हमें कुछ नहीं होने देगा।

विक्रम ने नीचे की तरफ़ भेड़ियों के एक झुंड को देखा और सबको चुप रहने का इशारा किया।

विक्रम- सब लोग टॉर्च बंद कर लो और आग भी मत जलाना, वरना रोशनी देखकर भेड़िए यहाँ आ जाएँगे। सब लोग टेंट के अंदर ही रहो... मैं नीचे जा रहा हूँ। दूसरी तरफ़ जाकर कपड़ों के कुछ टुकड़े फैलाकर भेड़ियों का रास्ता भटकाने की कोशिश करूंगा, ताकि वे दूसरी दिशा में चले जाएँ।

डॉ. मीरा- विक्रम, वह भेड़िए हैं, तुम यहीं रहो, मत जाओ।

विक्रम- अगर मैं नहीं गया तो वे यहाँ आ जाएँगे। मैं जा रहा हूँ, मास्टर, आप ये चाकू रख लीजिए।

विक्रम सावधानी से एक के बाद एक कपड़ों के टुकड़े छोड़ते हुए आगे बढ़ रहा था। तभी उसे पास में भेड़ियों की आहट सुनाई दी। उसने पीछे मुड़कर देखा, तो एक भेड़िया नज़र आया। भेड़िए उम्मीद से जल्दी वहाँ पहुँच गए थे। घबराकर, वह तेजी से भागा। भेड़िए उसकी ओर बढ़ रहे थे, उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। कुछ देर बाद वह पूरी तरह से थक चुका था।

उसे शायद भेड़ियों ने अभी तक देखा नहीं था, इसलिए वह अब तक सुरक्षित था। आगे जाकर, वह बड़ी चट्टानों के पीछे छिप गया। लेकिन भेड़ियों का झुंड वहाँ तक पहुँच गया था। हर तरफ़ भेड़िए थे, लेकिन उन्होंने उसे नहीं देखा। एक भेड़िया उसी चट्टान पर खड़ा था, जिसके पीछे वह छिपा हुआ था।

कुछ देर बाद भेड़िए वहाँ से आगे बढ़ गए। फिर भी, विक्रम 10 मिनट तक वहीं छिपा रहा।

आइशा- मास्टर, बहुत देर हो गई है। विक्रम क्यों नहीं आया? आप एक बार उसे सिग्नल भेजिए।

अर्जुन ने सिग्नल भेजा और कनेक्शन होते ही दूसरी तरफ़ से विक्रम की आवाज़ आई।

विक्रम- जी, मास्टर, कहिए।

अर्जुन- तुम ठीक हो, ना? अभी तक आए क्यों नहीं?

विक्रम- मैं ठीक हूँ, मास्टर। भेड़िए भी चले गए हैं और मैं बस आ ही रहा हूँ।

विक्रम ठीक था और भेड़िए भी जा चुके थे। विक्रम ने अपनी सूझबूझ से पूरी टीम को बचा लिया था। सचमुच, उसे जंगल में बचाव के तरीके अच्छी तरह से आते थे। सबको यह सुनकर तसल्ली हुई।

आइशा- मास्टर, आप मुझे वह मैप दिखाइए। मुझे लगता है कि मुझे पहेली की पहली लाइन समझ आ गई है।

अर्जुन ने मैप खोला और आइशा ने उस पर बने जानवर के पंजे के छोटे-छोटे निशानों को देखा। वे भेड़िए के थे।

आइशा- मास्टर, इस जंगल की छोटी-छोटी चीज़ें भी संकेत का काम करती हैं, जैसे भेड़िए। जब चाँद पूरा होता है, तब भेड़िए अपनी पूरी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं। "पूरे चाँद की रौशनी में जिन्हें मिले आज़ादी"। पहेली का जवाब है-वह जगह जहाँ भेड़िए हैं।

अर्जुन- बहुत अच्छा काम किया, आइशा। इसका मतलब हम सही जगह पर हैं।

डॉ. मीरा- यू आर अ जीनियस, आइशा।

पहेली का जवाब मिल चुका था और भेड़ियों से छुटकारा भी। सुबह होते ही सारा सामान समेटकर टीम आगे बढ़ने लगी। वे अब घने जंगल में बहुत अंदर तक पहुँच चुके थे। अचानक उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वे अकेले नहीं थे। वे सब आगे जाकर छिप गए। कुछ देर बाद एक आदमी आगे निकला। विक्रम ने उस पर पीछे से वार किया, जिससे वह ज़मीन पर गिर पड़ा। वह ज़ोर से चिल्लाया।

सम्राट- मास्टर... मास्टर, मैं हूँ... सम्राट।

उस जानी-पहचानी आवाज़ ने सभी को चौंका दिया। वह सम्राट था, अर्जुन की टीम का चौथा साथी।

अर्जुन- तुम यहाँ कैसे...? हमने विक्रम को तुम्हें लेने के लिए भेजा था, लेकिन तुम नहीं मिले और अब अचानक यहाँ कैसे पहुँचे? क्या तुम ही थे जो कल से हमारा पीछा कर रहे थे?

सम्राट- मैं सब बताता हूँ, मास्टर... विक्रम ने मेरे पास मैसेज छोड़ा था, उसी की वज़ह से मैं केरल तक पहुँचा।

अर्जुन- लेकिन तुम्हें यह कैसे पता चला कि हम इस जंगल में आए हैं?

सम्राट- कल रात जब आपने सिग्नल एक्टिवेट किया, तब मैंने आपका पता लगाया। कस्बे में पूछताछ की, तो एक कार ड्राइवर ने बताया कि उसने चार लोगों को इस जंगल में छोड़ा है। मैं समझ गया कि वे आप ही होंगे।

अर्जुन- चलो, देर आए दुरुस्त आए। हमें तुम्हारी ज़रूरत भी थी।

सम्राट- मास्टर, वैसे आपका यहाँ कोई और भी पीछा कर रहा है। मास्टर, आपकी जीप के ड्राइवर ने बताया कि लौटते वक़्त उसने एक कार में पाँच और लोगों को इस तरफ़ आते हुए देखा था। इसका मतलब है कि कोई आपके थोड़ी देर बाद आया था और शायद वह हमारा पीछा करने के लिए ही आया हो। मुझे ऐसा लगता है कि वह हमें इस वक़्त देख भी रहा होगा।

सम्राट की बात सुनकर पूरी टीम चौंक उठी, लेकिन बात सच थी, दो लोग लगातार अर्जुन और उसकी टीम पर निगाह रखे हुए थे।

आख़िर कौन थे वे लोग, जो अर्जुन और उसकी टीम का पीछा कर रहे थे? उनका मकसद क्या था? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

 

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