जंगल के अन्दर से आती आवाज़ें सुनकर 15 बरस का गोलू घबरा गया और रूद्र को नींद से जगाते हुए बोला कि रुद्र भैया… रूद्र भैया उठिए… उठिए जल्दी…
रुद्र: नारायण… गोलू यार, सपना खराब कर दिया तूने।
गोलू को डर लग रहा था। क्योंकि इस जंगल के पास वैसे भी कोई नहीं आता था… और इन आवाज़ों से उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी। गोलू तपाक से बोला कि सपना छोड़ो भैया और चलो यहाँ से… वो उधर जंगल से… कुछ अजीब सी आवाज़ें आ रही हैं…!
रूद्र ने अंगड़ाई लेते हुए एक नज़र जंगल की तरफ़ देखा और गोलू से कहा…
रुद्र: तू घर जा… मुझे यहीं रुकना है। वो आने वाले हैं।
कौन आने वाले हैं?... गोलू ने हैरानी से पूछा। रूद्र ने एक गहरी साँस ली और कहा…
रुद्र: वही… जिन्हें उस… हृदय गुफ़ा तक जाना है।
ये सुनते ही गोलू हँस पड़ा… और बोला कि वो हृदय गुफ़ा... क्या भैया… वो गुफ़ा सच में थोड़े ही है। ये सब तो गाँव वालों की बनाई कहानियाँ हैं, ताकि कोई जंगल में ना जाए और जंगल बचा रहे… तभी, जंगल के अन्दर से फिर आवाज़ें आई और घबराते हुए गोलू आगे बोला कि ये सब कहानी ही है ना रूद्र भैया?...
कहानी? 15 बरस के गोलू को लग रहा है कि वो हृदय गुफ़ा बस एक कहानी है लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ कहानियाँ ऐसी होतीं हैं जो सिर्फ़ कहानियाँ नहीं होती, हकीक़त होती हैं। उत्तराखंड के चमोली से बहुत आगे एक पहाड़ की तलहटी में छोटा सा एक गाँव है। गाँव का नाम, ना ही बताऊँ तो बेहतर है… किसी बड़े महापुरुष ने कहा है कि नाम में क्या रखा है। वैसे भी उस गाँव तक जाने का रास्ता लोग अब भूल चुके हैं। वहाँ अब कोई नहीं जाता। गाँव के लोग चाहते भी नहीं कि बाहर से कोई उनके गाँव में आए क्योंकि इससे उनकी शांति भंग होती थी। कोई कैमरा लेकर आ जाता था रील बनाने तो कोई खोज वाली टीम के साथ, तो कभी न्यूज़ वाले पहुँच जाते थे अपनी अजीब कहानी गढ़ने। गांववालों को अपना इतिहास पता है… वे जानते हैं कि जो भी यहाँ आयेगा, वो कभी लौटकर वापस नहीं जाएगा। गुज़रे हुए वक़्त में देखने पर साफ़ दिखता है कि उस गाँव में जब भी कोई आया… सिर्फ उसी की तलाश में आया… वो जिसका नाम है हृदय गुफ़ा! रहस्यों से भरी एक रहस्मयी गुफ़ा, एक जादूई गुफ़ा या शायद एक श्रापित गुफ़ा। कितने ही नाम से लोग उसे याद करते हैं, गाँव के लोग अपने बच्चों को हृदय गुफ़ा की कहानियाँ सुनाते हैं ताकि कोई ना जाए, कभी ना जाए गाँव के दक्षिण में मौजूद उस बड़े से जंगल में। उसी जंगल के बीच में कहीं पर है, हृदय गुफ़ा, वो गुफ़ा जिसकी खोज में कितने लोग आए। कुछ ऐसे भी थे जिन्हें खाली हाथ लौटना गंवारा ना था, सो वे कभी वापस ही नहीं लौटे। उन्हें वो जंगल खा गया या वो गुफ़ा ख़ुद उन्हें निगल गयी, ये कोई ठीक से बता नहीं सकता। हाँ, अपनी समझ से मुताबिक, कहानियाँ ज़रूर गढ़ लेते थे। गाँव का कोई भी इंसान दक्षिण दिशा में जंगल के अन्दर की तरफ़ नहीं जाता था। गाँव के बुज़ुर्गों का कहना है - दक्षिण में यम का वास है और यम का घर है वो हृदय गुफ़ा जो उन्हीं के लिए अपने दरवाज़े खोलती है जो उसकी तलाश करते हैं।
आज बरसों बाद, हृदय गुफ़ा की तलाश फिर शुरू होने वाली है। चमोली से निकलकर आदित्य की कार उसी रास्ते की तरफ तेज़ी से बढ़ रही है जो रास्ता उसे हृदय गुफ़ा के जंगल तक ले आयेगा। आदित्य एक जियोलॉजिस्ट है, जियोलॉजिस्ट यानी भू-वैज्ञानिक। धरती की बनावट और उसके बदलते रूप को साइंस के चश्मे से देखना-परखना उनका काम है। आदित्य के अलावा उसके तीन दोस्त और हैं… योगा टीचर और स्पिरिचुअल सीकर संध्या, सेना के पूर्व मेजर श्रीधर और राइटर काव्या।
आदित्य कार ड्राइव कर रहा है। श्रीधर के कान में ईयरफोन्स लगे हैं। अपनी पसंद का म्यूज़िक सुनते हुए वो आँखें बंद करने की कोशिश करता है लेकिन अगले ही पल उसकी आँखों कुछ ऐसी यादें आ जाती हैं कि श्रीधर आँखें खोल लेता है। श्रीधर को खुद भी याद नहीं कि आखिरी बार वो चैन की नींद कब सोया था। पीछे की सीट पर बैठी है संध्या और साथ में है काव्या। संध्या, कार की विंडो से बाहर देख रही है। देवदार के पेड़ों को संध्या अपनी आँखों में कैद कर रही है। तभी काव्या ने बारी-बारी से सबकी तरफ देखने के बाद इरिटेट होते हुए कहा…
काव्या: यार, तुम लोग साइलेंट मोड में क्यों बैठे हो? थोड़ी बातें कर लोगे तो कोई तूफ़ान आ जाएगा क्या?
काव्या की बात का किसी पर कोई असर नहीं हुआ। वो समझ गयी कि कोई उससे बात करने में इंट्रेस्टेड नहीं है या शायद कोई भी बात करने में ही इंट्रेस्टेड नहीं है। काव्या ने बैग से अपना टैब निकाला और हृदय गुफ़ा पर लिखे गए एक पुराने आर्टिकल को पढ़ने लगी। काफ़ी रिसर्च के बाद काव्या को सिर्फ़ यही इकलौता आर्टिकल मिला था पर, ये आर्टिकल लिखा किसने था, ये वेबसाइट पर कहीं भी मेंशन नहीं है। संध्या की नज़र तेज़ी से भागते देवदार के पेड़ों पर टिकी हुई थी तभी उसकी आँखों के सामने बचपन का वो दृश्य आ गया जब स्कूल के एक लड़के ने उसे वाशरूम में लॉक कर दिया था। संध्या अचानक ही घबरा गयी, उसने फ़ौरन कहा…
संध्या: “कार रोको… आदित्य, स्टॉप द कार!”
आदित्य: “व्हॉट द हैल संध्या… हाइवे है ये, कोई गली नहीं है के जब मन आया ब्रेक लगा दिया।”
संध्या कार से बाहर आ गयी। उसने एक गहरी साँस ली और खुद को ये यकीन दिलाया कि वो अभी वॉशरुम में लॉक्ड नहीं है। वो सेफ़ है। तभी संध्या ने कुछ दूरी पर लगे देवदार के पेड़ों को देखा, एक पेड़ के पास उसे कोई दिखा जो अगले ही पल आँखों से ओझल भी हो गया। वो इंसान था या कुछ और, संध्या को कुछ समझ नहीं आया। संध्या ने मन ही मन खुद से कहा...
संध्या: कोई तो था वहाँ, लेकिन अब… अब तो कोई नहीं है।
उधर कार में बैठे आदित्य को गुस्सा आ रहा था, ये सब उसके लिए वक़्त की बर्बादी थी। आदित्य ने काव्या से कहा…
आदित्य: इतना पेशंस नहीं है मेरे पास कि मैं कार रोक के संध्या के लौटने का वेट करूँ। संध्या को वापस आने के लिए बोलो नहीं तो मैं उसको यहीं छोड़ के चला जाऊँगा और मुझे ज़रा भी फ़र्क नहीं पड़ेगा, यू नो काव्या.
काव्या: या, आई नो, मैं बुलाकर लाती हूँ उसे।
आँखें बंद कर, संध्या हाथ जोड़े हुए खड़ी थी, उसके होंठ हिल रहे थे, काव्या ने उसे देखा तो वो समझ गयी कि संध्या कोई प्रार्थना कर रही है लेकिन काव्या आदित्य का गुस्सा जानती है, उसे यकीन है कि आदित्य सच में उनके बिना भी आगे चला जाएगा। काव्या ने संध्या के कंधे पर हाथ रखा तो संध्या ने आँखें खोल ली। काव्या कुछ कहती उससे पहले ही संध्या बोल पड़ी...
संध्या: वहाँ, वहाँ कोई था…
काव्या: वहाँ कोई नहीं है संध्या।
संध्या: हाँ, अभी नहीं है लेकिन…
काव्या: अभी कार में वापस चलते हैं, नहीं तो आदि का गुस्सा तो तुम जानती ही हो...
संध्या: उसकी प्रॉब्लम क्या है? हर बात पे इतना गुस्सा?
काव्या: छोड़ो उसे, वो हमेशा से ऐसा ही है... अब जल्दी चलो, मुझे सर्दी लग रही है। कुछ देर और रुके तो कसम से, अपनी कुल्फी जम जाएगी यहाँ।
संध्या: हाँ चलो।
अपनी नज़र में बर्बाद हुए वक़्त की भरपाई के लिए आदित्य ने कार को पहले से ज्यादा स्पीड में दौड़ा दिया। काव्या जो पूरी तल्लीनता के साथ हृदय गुफ़ा पर लिखे गए आर्टिकल को पढ़ रही थी, एकदम से तेज़ आवाज़ में बोली…
काव्या: “गाय्ज़ लिसन टू दिस ... इस आर्टिकल में लिखा है कि हृदय गुफ़ा कोई आम गुफ़ा नहीं है, वो एक मायाजाल है... एक ऐसा मायाजाल जो सबको निगल जाता है। हम हृदय गुफ़ा में जाते भी उसी की मर्ज़ी से हैं और वहाँ से बाहर भी उसी की मर्ज़ी से आ सकते हैं। हृदय गुफ़ा सिर्फ़ दिखने के लिए एक गुफ़ा है… असल में वो कुछ और है… कुछ ऐसा जिसे बयान नहीं किया जा सकता। सिर्फ जिया जा सकता है लेकिन ऐसा वही कर सकता है जो जीने से ज्यादा मरने के लिए तैयार हो। इस सबका क्या मतलब है यार?... किस पागल ने लिखा है ये आर्टिकल?”
काव्या ने आखिर में जो कहा वो सुनते ही एक्स- आर्मी मेजर श्रीधर ने धीरे से खुद ही से कहा…
श्रीधर: जीने से ज़्यादा मरने के लिए तैयार… ये जगह तो फिर मेरे लिए परफेक्ट है।
श्रीधर ने वापस से कानों में ईयरफ़ोन लगा लिए। काव्या ने आर्टिकल से जो भी पढ़ा उसपर किसी ने ज़्यादा सोचा नहीं है। आदित्य और उसके दोस्त ये तय करके आये हैं कि हृदय गुफ़ा को ढूंढकर और उसके राज़ जानकर ही दम लेंगे। उधर जंगल के शुरआती हिस्से में एक बड़े से पत्थर पर बैठे रूद्र ने गोलू से कहा…
रुद्र: गोलू मेरे दोस्त, मानो तो सब हकीक़त है और ना मानो तो सब कुछ… बस एक कहानी है लेकिन हृदय गुफ़ा… वो एक ऐसी हकीक़त है जो इस जंगल के बीच में कहीं छुपी हुई है, आँखों के आगे होते हुए भी नज़र नहीं आएगी।
जैसे कस्तूरी-मृग को नज़र नहीं आती, अपने भीतर छुपी हुई कस्तूरी… हम सब वही एक मृग हैं, बेचैन, विचलित, भाग रहे हैं, एक खुशबू के पीछे… जितना हम भागते हैं, वो खुशबू भी हम से भगति रहती है। तूने कभी रेगिस्तान देखा है? रेगिस्तान में पानी देखा है?... तपती धूप में जब गला सूखता है तब पता नहीं कैसे लेकिन रेगिस्तान में पानी दिखाई देता है। प्यासे राही को कुछ नहीं चाहिए होता, सिवाय पानी के और पानी… वो तो वहाँ होता ही नहीं… होती है तो बस… वो। वो जो नचा रही है, खेल रही है… सबके साथ, सब उसके हाथों की कठपुतली हैं। वो लोग तेज़ रफ़्तार से यहीं आ रहे हैं, इसी तरफ़, इसी जंगल में… वो तुझसे रास्ता पूछेंगे… उन्हें यहाँ भेज देना… मैं यहीं उनका इंतज़ार करूँगा।
ये सब सुनकर गोलू हैरानी से बोला कि यहाँ तो बाहर से कोई आता ही नहीं तो भला रास्ता कौन पूछेगा?... कभी कभी कुछ भी बोलते हो आप रूद्र भैया। तभी गाँव में सब लोग आपको पागल बोलते हैं… वैसे ये तो बताओ कि वो कौन है जिसके हाथों की सब कठपुतली हैं? बताओ न रुद्र भैया, कौन है वो?
रुद्र ने आसमान में चलती घटाओं को देखा और धीरे से बोला…
रुद्र: माया… वो माया है रे… माया।
गोलू जंगल के शुरूआती हिस्से से निकलकर अपने घर की तरफ जा रहा था तभी उसके सामने एक कार आकर रुकी। ड्राइविंग सीट पर बैठे आदित्य ने गोलू की तरफ देखा और उससे हृदय गुफ़ा तक जाने का रास्ता पूछा। गोलू को फ़ौरन ही रूद्र के कहे शब्द याद आ गए, उसने जंगल की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा - “उस तरफ चले जाइए लेकिन वहाँ आप सबको पैदल ही जाना होगा। जंगल के अन्दर एक कच्चा रास्ता है, वहाँ से दायीं तरफ मुड़ जाना… रूद्र भैया वहीं आपका इंतज़ार कर रहे हैं।”
काव्या: अब ये रूद्र कौन है?
आदित्य: हमारा टूर गाइड.
3 घंटे तक, बिना एक भी शब्द बोले आदित्य और उसके दोस्त रूद्र के पीछे पीछे चलते रहे। अचानक ही रूद्र ने सबको रुकने का इशारा किया। आसमान में बादल छाये हुए थे, तभी एक तारा चमका और रूद्र ने धीरे से कहा…
रुद्र: नारायण…
अगले ही पल कहीं से एक तेज़ रौशनी आई और सबकी आँखें बंद हो गयी। आँख खुली तो हृदय गुफ़ा सामने थी। हृदय गुफ़ा का द्वार खुला हुआ था। रूद्र ने सबको अन्दर जाने का इशारा किया। बिना कुछ सोचे आदित्य और उसके दोस्त रूद्र के पीछे दौड़ते हुए हृदय गुफ़ा के अन्दर चले गए। तभी अचानक से, गुफ़ा का द्वार बंद हो गया। वहाँ बिलकुल अँधेरा था। संध्या ने फ़ौरन ही टोर्च जला दी। उसने चारों तरफ देखा और हैरानी से बोली…
रुद्र: ये, रूद्र कहाँ चला गया… अभी तो यहीं था?...
संध्या और बाकी लोग कुछ समझ पाते कि तभी गुफ़ा से अलग अलग आवाज़ें आने लगी… फिर एक ज़ोरदार आवाज़ हुई… ऐसी कि जैसे किसी शेर की दहाड़। संध्या समझ चुकी थी कि उनसे गलती हो गयी। उन्हें इस गुफ़ा में नहीं आना चाहिए था…
रूद्र अचानक से गायब कैसे हो गया?
क्या है हृदय गुफ़ा का रहस्य?
क्या संध्या और उसके दोस्त, हृदय गुफ़ा से कभी बाहर निकल पायेंगे?
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