कभी किसी कमरे में बंद हुए हैं? जहाँ लाइट न हो, और न बाहर निकलने का रास्ता? शायद नहीं। क्या हाल हो रहा होगा आदित्य और उसके साथियों का जिनके लिए ह्रदय गुफ़ा ने अपने द्वार बंद कर लिए थे। गुफ़ा के अन्दर से अलग अलग तरह की आवाज़ें आ रही थीं। कभी इंसान की आवाज़ तो कभी किसी जानवर की। गुफ़ा में कुछ हलकी-हलकी सी लाइट फड़फड़ा रहीं थीं। लेकिन वहां कोई वाइरिंग या बल्ब नहीं थे, तो कोई ये समझ नहीं पा रहा था कि ये लाइट आ कहाँ से रही है। संध्या मान चुकी थी कि ये गुफ़ा सच में श्रापित है और उसने यहाँ आकर गलती कर दी है। संध्या ने कोशिश की लेकिन गुफ़ा का दरवाज़ा नहीं खुला। तभी आदित्य ने करीब आकर ग़ौर से गुफ़ा के उस प्रवेश द्वार को देखा और बोला…
आदित्य: तुम बेकार ही कोशिश कर रही हो संध्या। ये देखने में तो दरवाज़ा लग रहा है लेकिन ये कोई दरवाज़ा नहीं है। ये इतना बड़ा पत्थर इसी गुफ़ा का हिस्सा है… दरवाज़ा बंद नहीं हुआ है, इस गुफ़ा ने अपना मुँह बंद किया है।
संध्या: मुँह बंद किया है???
काव्या: लेकिन आदि, इसे खोलने का कोई तरीका भी तो होगा।
आदित्य: इसे खोलना क्यूँ है, काव्या? ये डिस्कवरी है हमारी… हमने खोजा है इस गुफ़ा को और तुम, तुम भूल गयी कि तुम यहाँ क्यूँ आना चाहती थी… क्या अब रिसर्च नहीं करनी? तुम्हें तुम्हारी पहली बेस्ट सेलर नहीं लिखनी? यहाँ का सच सबके सामने नहीं लाना है?
काव्या: सच से ज़्यादा क़ीमती अपनी जान होती है आदि… यहाँ आना तुम्हारा आइडीअ था… हम सब साथ आए हैं सिर्फ़ तुम्हारे कहने पर।
आदित्य: तुम्हें नहीं आना था तो मना कर देती, मैंने फोर्स तो नहीं किया था ना?... तुम लोगों को क्या लगा था कि ये सब एक खेल है, हम लोग पिकनिक पे जा रहे हैं। अरे तुम लोगों को तो खुश होना चाहिए कि हमें ये गुफ़ा मिल गयी, ये कितनी बड़ी डिस्कवरी है तुम लोगों को अंदाज़ा भी है और ये आवाजें… ये कुछ नहीं है, इल्यूजन है सिर्फ। जस्ट सटे टुगेदर सब सही होगा।
संध्या ने आदित्य और काव्या की बातों पर ध्यान नहीं दिया, उसने टॉर्च उठाई और थोड़ा सा आगे जाकर चारों तरफ देखा लेकिन रूद्र अभी भी कहीं नहीं था। संध्या को समझ नहीं आ रहा था कि रूद्र आखिर गया कहाँ?... संध्या ने याद किया कि रूद्र गुफ़ा के अन्दर सबसे पहले आया था फिर उसके पीछे बाकी सब फिर एक ही झटके में गुफ़ा का दरवाज़ा बंद हुआ और रूद्र गायब हो गया।
संध्या: और रूद्र… हमारा टूर गाइड, वो गायब है… उसका क्या? इसका क्या एक्स्प्लनैशन है तुम्हारे पास, आदित्य?
आदित्य: रूद्र कहीं गायब नहीं हुआ है… वो होगा यहीं कहीं… ये बहुत बड़ी गुफ़ा है, यहाँ कोई भी खो सकता है, इसीलिए मैंने कहा कि अगर हम साथ रहेंगे तो कोई दिक्कत नहीं होगी… और अब कोई सवाल नहीं होगा… मैं आगे जा रहा हूँ, ये देखने कि क्या कुछ है यहाँ… जिसे साथ चलना हो वो चल सकता है, जिसे नहीं जाना वो बैठा रहे यहीं क्यूंकि गुफ़ा का दरवाज़ा अब खुलने से रहा।
आदित्य ने अपना बैग उठाया और गुफ़ा के दायें हिस्से की तरफ बने रास्ते पर चल दिया, मेजर श्रीधर भी उसके साथ था। संध्या और काव्या के पास और कोई रास्ता नहीं था… वो दोनों भी साथ साथ चलने लगी। संध्या ने पीछे मुड़कर देखा कि एक रास्ता बायीं तरफ भी है लेकिन वो ग्रुप से अलग नहीं होना चाहती थी तो सबके साथ ही चलती रही।
उस हृदय गुफ़ा को लेकर संध्या और काव्या के दिमाग में डाउट आ चुके थे लेकिन आदित्य और श्रीधर के मन में ना कोई डाउट था और ना ही ज़रा भी डर।
मेजर श्रीधर एक एक्स आर्मी ऑफिसर है और उसे किसी चीज़ से डर नहीं लगता। ना किसी हथियार से, ना किसी जानवर से, ना इंसान से और ना ही मौत से। आदित्य के कहने पर श्रीधर यहाँ आया क्यूंकि वो अपने घर में अकेले नहीं रहना चाहता था। सरहद पर आख़िरी जंग जो उसने लड़ी थी, उसके ज़ख्म अभी भी हरे थे। श्रीधर को एक एस्केप चाहिए था सो उसने आदित्य की बात मान ली और इस क्वेस्ट में आदित्य के साथ आ गया।
जहाँ तक बात आदित्य की है उसके लिए ये एक बड़ा मौक़ा था, वो कब से यही तो चाहता था। यही एक सपना तो उसने देखा था। जिस हृदय गुफ़ा को आसानी से खोजा नहीं जा सकता और जिसमें जाने के बाद आज तक कभी कोई बाहर नहीं आया, आदित्य ने इतनी आसानी से उस गुफ़ा को खोज लिया और अपनी रिसर्च पूरी करने के बाद वो यहाँ से बाहर जब निकलेगा तो उसका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, लोग उसके नाम की मिसालें देंगे और उसे सदियों तक याद रखा जाएगा और अपने इस सपने को पूरा करने के लिए आदित्य कुछ भी कर सकता है, वो किसी भी हद जा सकता है… किसी भी खतरे से लड़ सकता है। गुफ़ा के अन्दर अब एकदम सन्नाटा था, कहीं कोई आवाज़ नहीं थी… सबके हाथ में टॉर्च थी फिर अचानक ही सारी टॉर्च एक साथ बंद हो गयी। टॉर्च बंद होते ही सब रुक गए।
आदित्य: अब ये टॉर्च को क्या हुआ?... शायद बैटरी खराब हो गयी हैं।
संध्या: चारों टॉर्च के बैटरीज़ ? एक साथ खराब हो गए?... क्या इत्तेफ़ाक है, है ना काव्या?
काव्या: हाँ कुछ ज्यादा ही कमाल का इत्तेफ़ाक है। ऐसे इत्तेफ़ाक ना ही हों तो ज़्यादा अच्छा है।
इत्तेफ़ाक था या नहीं, ये आप तय करना, पर इस बीच आदित्य टॉर्च ठीक करने की कोशिश कर रहा था कि तभी श्रीधर को सामने कुछ दूरी पर एक हलकी सी रौशनी दिखी। श्रीधर ने जेब से लाइटर निकाल कर जलाया और काव्या को देते हुए बोला…
श्रीधर: तुम लोग टॉर्च ठीक करो, मैं बस अभी आया।
काव्या: अकेले मत जाओ प्लीज… हम सब साथ ही आगे चलेंगे। आगे अँधेरा है और ये गुफ़ा ठीक नहीं है, कोई ख़तरा भी हो सकता है…
श्रीधर: मेरी फ़िक्र मत करो… जिसे पाँच गोलियां नहीं मार पाई, उसका ये गुफ़ा क्या बिगाड़ लेगी।
श्रीधर अकेले ही आगे बढ़ गया। उसे वो रौशनी फिर दिखी, इस बार उसने गौर से देखा… वो एक बड़े आकार का जुगनू था। श्रीधर उस जुगनू के पीछे पीछे चलता रहा, कुछ देर बाद वो जुगनू एक दीवार से जा टकराया और ज़मीन पर गिरके मर गया। श्रीधर ने जेब से दूसरी टॉर्च निकाली और दीवार के करीब आकर देखा। श्रीधर ने जो सामने देखा वो देखकर उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। श्रीधर का पूरा शरीर कांपने लगा। ज़मीन पर अब कोई मरा हुआ जुगनू नहीं था, वहां थी श्रीधर के साथी फ़ौजी, कैप्टन अजय की लाश। श्रीधर नीचे बैठ गया, पसीने से तरबतर, उसे लगा रहा था जैसे उसके शरीर की पूरी ताकत ख़त्म हो चुकी है। श्रीधर ने कैप्टन अजय का हाथ अपने हाथ में लिया और रुंधे हुए गले से बोला…
श्रीधर (भरे गले से, रोते हुए): अजय, अजय मुझे नहीं पता था कि ऐसा होगा… मुझे, मुझे तेरी बात… मान लेनी चाहिए थी। आई ऐम सॉरी अजय…
श्रीधर माफ़ी मांग रहा था, अपने सबसे करीबी दोस्त से जो छोटे भाई जैसा था, जिससे वादा करते हुए कहा था कभी कि जब तक मुझमें साँस है अजय… तुझे कुछ नहीं होने दूंगा। तुझ तक आने वाली हर मुसीबत और हर गोली को पहले मुझसे लड़ना होगा। अपने आखिरी वक़्त में अजय कुछ कह रहा था लेकिन अपनी बात कहने से पहले ही वो चला गया। श्रीधर को बस एक बार ये जानना है कि अजय क्या कहना चाहता था लेकिन वो ये भी जानता है कि ये कभी नहीं होगा… मौत के बाद का पता नहीं लेकिन वो जीते जी तो कभी ये नहीं जान पायेगा कि अजय क्या कहने वाला था। श्रीधर की आँख से आंसू का एक कतरा ज़मीन पर गिरा तभी पीछे से एक हाथ उसकी गर्दन पर आया और किसी ने कस के उसकी गर्दन को दबोच लिया। श्रीधर खुद को बचाने की कोशिश करने लगा। जिसने श्रीधर की गर्दन दबोची हुई थी, वो कोई और नहीं था… खुद श्रीधर था… एक और श्रीधर… एक अलग श्रीधर जिसकी आँखें लाल थी।
श्रीधर डोपेलगैंगर: तेरी वजह से… वो तेरी वजह से मरा… तूने मारा उसे… गोली किसी और की थी लेकिन बन्दूक चलाने वाले हाथ… वो तेरे ही थे… तूने ही मारा उसे…
मैंने उसे नहीं मारा... अँधेरे में अपने-आप से हाथापाई करते हुए श्रीधर बोला।
कोलाहल सुनकर बाकी तीनों भी श्रीधर के पास आ पहुंचे थे। काव्या ने झट से पानी की बोतल निकाली और श्रीधर के चेहरे पर पानी मारा। आदित्य ने श्रीधर से पूछा कि वो कैसा महसूस कर रहा है, पर श्रीधर ने कुछ जवाब नहीं दिया। खुद को ऐसे हालत में पाकर श्रीधर खीझकर उठ बैठा। , काव्या ने धीरे से संध्या को कहा। श्रीधर ने पानी की बोतल आदित्य के हाथ से लेकर पानी पीया और दीवार से टेक लगाकर एकदम शांत होकर बैठ गया। बाकी सब भी वहीं बैठे थे लेकिन किसी ने भी श्रीधर से कोई सवाल नहीं किया। काव्या उसके करीब ही बैठी थी, उसने गौर किया कि श्रीधर बार बार अपने लेफ्ट साइड में देख रहा है, ज़मीन की तरफ… कुछ देर बाद जब श्रीधर को लगा कि अब वो ठीक है, उसने अपना बैग उठाते हुए कहा…
श्रीधर: चलो, आगे चलते हैं। टॉर्च भी ठीक हो गए हैं अब तो।
आदित्य: हाँ, चलो… चलते हैं और सब साथ साथ रहेंगे… कोई अकेले नहीं जाएगा कहीं।
आदित्य ने जो कहा वो सबने सुन लिया… सबने मतलब सबने… उस गुफ़ा ने भी। सब लोग टॉर्च लेकर साथ साथ चल रहे थे। काव्या सबसे पीछे थी… उसके दिमाग में अभी भी यही चल रहा था कि उनके आने से पहले आखिर श्रीधर के साथ यहाँ हुआ क्या था?... काव्या ने किसी से कुछ नहीं कहा लेकिन उसने देखा था… श्रीधर की गर्दन पर एक निशान था रस्सी जैसा… जैसे किसी ने उसकी गर्दन को रस्सी से दबाया हो… काव्या की टॉर्च अचानक ही फिर से बंद हो गयी और तभी लेफ्ट साइड से एक आवाज़ काव्या के कानों में पड़ी… एक जानी पहचानी आवाज़… जिसने काव्या को पुकारते हुए कहा - “काव्या… मेरी दवा का वक़्त हो गया है… कमरे से मेरी दवा तो ले आ।”
काव्या ने चौंकते हुए अपनी बायीं तरफ देखा, पर वहाँ कोई नहीं था। काव्या नर्वस थी। अँधेरी गुफ़ा में, माँ कैसे हो सकती है? वो आवाज़ जो काव्या के कानों में पड़ी थी, वो उसकी माँ की ही थी… काव्या ने दोबारा अपनी बायीं तरफ देखा। जहां पहले एक दीवार थी, अब वहाँ एक संकरी-सा रास्ता दिखा उसे। काव्या को माँ की आवाज़ फिर से सुनाई दी… उन्होंने अपनी बात फिर दोहराई कि मेरी दवा का वक़्त हो गया है बच्चे… कमरे से मेरी दवा ले आ।
काव्या: माँ... माँ?... तुम कहाँ हो माँ? माँ…
अपनी माँ को आवाज़ देते हुए काव्या उस छोटे से रास्ते के अन्दर चली गयी… तभी पत्थरों के हिलने की आवाज़ हुई। काव्या के दोस्तों ने फ़ौरन ही पीछे मुड़कर देखा। सबके हाथ-पाँव सुन्न पड़ गए क्यूंकि काव्या वहां नहीं थी… वो कहीं नहीं थी… और अब वहां वो छोटा रास्ता भी नहीं था… उस रास्ते की जगह थी… सिर्फ… दीवार।
आखिर कहाँ गयी काव्या?...
क्या आदित्य अपनी बचपन की दोस्त को ढूँढ पायेगा?...
और क्या हृदय गुफ़ा के मायाजाल से बच पायेंगे, ये चार दोस्त?...
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