मीरा : ​

​​ बोलो रोहन! कभी तो बोल दो... तुम बस मुझे ट्रिगर करना जानते हो और फिर शांति से तमाशा देखते हो जब मैं चीखती हूँ, चिल्लाती हूँ, ताकि बाद में तुम मुझ पर ब्लेम कर सको कि कैसे मैं प्रॉब्लमैटिक इंसान हूँ। ​

 

रोहन -

​​ तो क्या ग़लत कहा मैंने? एक बार देखो अपने आपको। ये तुम्हारा बर्ताव नॉर्मल है? बात-बात पर घर से भागी हो तुम और कब तक मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आऊँ? कितना ख़्याल है तुम्हें मेरी इज़्ज़त का? ​

 

मीरा:

​​तुम पहले मेरी फीलिंग्स का ख़्याल करना सीखो, अपनी इज़्ज़त की परवाह बाद में करना। लेकिन मेरी फीलिंग का ख़्याल करोगे कैसे? तुम्हारा सारा वक़्त तो अपनी माँ और बहन का ख़्याल करने में निकल जाता है और बाक़ी बचे टाइम में तुम्हारा काम और तुम्हारे दोस्त। ​

 

रोहन -

​​मीरा तुम्हें समझ भी आ रहा है हम इस वक़्त गोवा में बैठे हैं, गोवा में। हम यहाँ हमारे बीच की चीजें ठीक करने के इरादे से आए थे लेकिन यहाँ भी वही चल रहा है। ​

 

मीरा -

​​वो एक चीज़, जब तक तुम वह एक चीज़ ठीक नहीं करते तब तक कुछ भी ठीक नहीं हो सकता रोहन। ​

 

रोहन -

​​तुम्हें बात करनी है न? आज करते हैं बात। लेकिन ये हमारी आखिरी बात होगी। ​

 

मीरा -

​​मतलब? आखिरी बात मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो? ​

 

रोहन -

​​ बताता हूँ। सामने आकर बैठो मेरे। ​

 

अचानक कानों में आवाज़ आती है और फिर कुछ सेकंड्स बाद बंद हो जाती है, दोनों वर्तमान में आ जाते हैं. ​

 

​एक आलीशान ऑफिस, जिसकी दीवारें सफेद थीं और फर्नीचर भी। अंदर एक कुर्सी पर रोहन बैठा था तो दूसरी कुर्सी पर मीरा। बीच में टेबल, टेबल पर तरह-तरह की फाइल्स रखी हुई थीं और टेबल के बीचों-बीच एक नेमप्लेट। जिस पर नाम था एडवोकेट अर्जुन सिंह। ​

​​उसी टेबल के उस पार बैठे थे ख़ुद एडवोकेट अर्जुन सिंह। ​

​​अर्जुन सिंह की उम्र तकरीबन पचास-पचपन के आसपास थी। वह आंखों पर मोटा-सा चश्मा पहनते थे और उनके सिर पर नाम के लिए कुछ बाल बचे हुए थे। ​

​​ऑफिस में उनकी असिस्टेंट एडवोकेट अदिति भी मौजूद थीं। हाथ में कुछ फाइल्स लेकर वह अर्जुन जी के बगल में खड़ी थीं। अर्जुन जी उन्हीं फाइल्स में से एक फाइल को पढ़ने में गड़े हुए थे। काफ़ी सन्नाटा छाया हुआ था। ​

​​रोहन और मीरा बेचैनी से अर्जुन जी के कुछ कहने का इंतज़ार कर रहे थे ​​इसीलिए हमारे घर के बड़े बुज़ुर्ग हमेशा से कहते आए हैं कि कोर्ट-कचहरी की सीढ़ी ज़िन्दगी में न ही चढ़नी पड़े तो बेहतर है लेकिन बड़े बुजुर्गों का ये भी कहना है कि आजकल के बच्चों को कौन ही समझाए! ​

​​अर्जुन जी ने अपनी गर्दन बिना उठाए, चश्मे के ऊपर से रोहन और मीरा की ओर देखा। सामने बैठे रोहन और मीरा ये देखकर और बेचैन हो गए कि अर्जुन जी एकदम से हंसने लगे। उनकी हंसी के साथ-साथ उनका बड़ा-सा पेट हिलने लगा। ​

​​रोहन और मीरा एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि हंसने वाली कौन-सी बात हो गई थी। ​

 

अर्जुन  -​

​​देखिए, मिस्टर और मिसेज कपूर। मैंने तो आप दोनों से पहले ही कहा था कि ये कपल थेरेपी वगैरह के चक्कर में मत पड़िए लेकिन आप लोगों ने मेरी बात नहीं मानी। कहा ये थेरेपी वगैरह, ये बस इन लोगों के पैसे लूटने के तरीके हैं। ये आपकी परेशानियाँ उठाकर आपको ही बेचकर उससे पैसे छापते हैं। ​

​​पर आप दोनों को तो आपके रिश्तेदारों की सुननी थी। मेरे 20 साल के तजुर्बे में मैंने देखा है। कुछ नहीं होता इस सब से। जो शादी टूटनी है वह टूटती है। चाहे कुछ भी कर लो। ​

 

​​ये कहकर अर्जुन जी फिर से हंसने लगे और खांसने लगे। एडवोकेट अदिति ने झट से टेबल के ऊपर से पानी का ग्लास उठाकर उनके हाथ में दे दिया। ​

​​रोहन और मीरा टेंशन के साथ अर्जुन जी की कही बातें सुन रहे थे। ​

 

रोहन -

​​ लेकिन मिस्टर सिंह। अभी इस सब का सॉल्यूशन क्या है? हमने सब कुछ करके देख लिया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। ​

 

अर्जुन -

​​ वही तो मैं भी कह रहा हूँ। इसका बस एक ही सॉल्यूशन है, म्यूचुअल डिवोर्स। कोर्ट में लड़ने से आप दोनों का ही नुक़सान है। इतना तो लड़ लिए इसलिए ये नौबत आ गई, अब कोर्ट में और क्या लड़ना। ​

 

​​अर्जुन जी फिर से ठहाके लेकर हंसने लगे। ​

 

अर्जुन -

​​ मेरी बात मानो तो ये एक-दूसरे पर लगाए केस पीछे लेकर म्यूचुअली ये केस ख़त्म करते हैं। मीरा जी आप भी अपनी बड़ी-बड़ी मांगें थोड़ी कम कर दीजिए जिन पर रोहन जी को कोई आपत्ति न हो और 6 महीने के अंदर आपका डिवोर्स हो जाएगा। मैं करवा दूंगा गारंटी के साथ। जल्दी बताइए क्या करना है? ​

​​रोहन और मीरा एकदम से कुछ तय नहीं कर पा रहे थे। वह दोनों कन्फ्यूज होकर एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। ​

 

अर्जुन -

​​अरे भाई जल्दी बताइए। इतना वक़्त न मेरे पास है न आपके पास। कब तक एक-दूसरे के साथ टाइम पास करते रहेंगे। आगे भी तो बढ़ना है ज़िन्दगी में, है कि नहीं?  ​

​​मुझे तो अभी निकलना पड़ेगा। मिस अदिति यही हैं। आपका डिसाइड हो जाए तो इन्हें बता दीजिए। अभी मैं चलता हूँ। ​

 

​​अर्जुन जी अपना कोट उठाकर वहाँ से चले गए और उनकी असिस्टेंट अदिति भी रोहन और मीरा को प्राइवेसी देने के लिए वहाँ से चली गईं। ​

​​उनके जाने के बाद, रोहन टेबल पर रखे पेपर वेट को हाथ में लेकर खेलने लगा और मीरा अपने एक नाखून की नेल पॉलिश दूसरे नाखून से कुरेद-कुरेद कर निकालने लगी। दोनों की बेचैनी साफ़ नज़र आ रही थी। फिर रोहन ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा। ​

 

​​रोहन-​

​​ ठीक है। मैं तैयार हूँ। मैं हमारा अपार्टमेंट तुम्हारे नाम पर करने के लिए रेडी हूँ। इससे ज़्यादा मैं और कुछ नहीं दे सकता। ​

 

मीरा ने नज़रें नीचे रखते हुए ही जवाब दिया। ​

 

​​मीरा-​

​​ ठीक है। मैं भी तैयार हूँ। वह अपार्टमेंट और बर्बरी मेरे पास रहेंगे। ​

 

​​रोहन-​

​​बर्बरी कहाँ से बीच में आ गई। उसका ज़िक्र तो मैंने किया ही नहीं। ​

 

​​मीरा-​

​​ तो? आख़िर उसे घर में लेकर कौन आया था, उसका नाम किसने रखा था। ​

 

​​रोहन-​

​ उस नाम से ही तो हमेशा से दिक्कत है मुझे। बर्बरी! ये भी कोई नाम है। मुझे ये नाम कभी पसंद नहीं था। ​

 

​​मीरा-​

​​तो अच्छा है ना। उसे मुझे सौंप दो और वैसे भी उसे मुझसे ज़्यादा लगाव है, तुमसे नहीं। तुम तो एक बार गलती से उसे रास्ते पर छोड़कर आए थे, जब वह छोटी थी। तुम्हें तो ये भी नहीं पता कि वह खाना कब खाती है, बीमार कब पड़ती है। तुम्हें बस शौक के लिए कुत्ता पालना है, जो मैं होने नहीं दूंगी। ​

 

​​रोहन-​

​​ तो भूल जाओ फिर ये म्युचुअल डिवोर्स। कोर्ट में लड़ेंगे और देख लेंगे बर्बरी किसके पास रहेगी। ​

 

​​मीरा-​

​​ठीक है। मुझे मंजूर है। ​

 

​​अर्जुन-​

​​अरे अरे। मैं थोड़ी देर के लिए आप दोनों को अकेले क्या छोड़कर गया, आप दोनों में तो लड़ाई शुरू हो गई। हमें लड़ाई ख़त्म करनी है, बढ़ानी नहीं। कोर्ट कोई मज़ाक नहीं है कि आप दोनों एक नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहे तो कोर्ट का कीमती वक़्त जाया करोगे। ​

​​मीरा जी, आपको क्या दिक्कत है? आप रख लीजिए ना वह अपार्टमेंट और आपकी जो कुतिया है, क्या नाम है उसका ...? ​

 

​​मीरा-​

​​बर्बरी! ​

 

​​अर्जुन-​

​​हाँ ब्लूबेरी, जो भी है, उसे रहने दीजिए ना रोहन जी के पास। आप कहाँ अकेली उसका ख़र्चा उठाएंगी, फिर अपना ख़र्चा उठाएंगी। रोहन जी देख लेंगे वह सब। आप बीच-बीच में जब आपका मन करे तब मिल लीजिए आपकी रुस-बेरी से। है कि नहीं? 

 

​​दोनों सोचने लगे और फिर दोनों ने एक साथ कहा। ​

​​रोहन और मीरा-ठीक है। मैं तैयार हूँ। ​

फिर दोनों एक-दूसरे की ओर देखने लगे। पिछले साल भर में पहली बार वह किसी मुद्दे पर साथ आए थे। लेकिन सोचने वाली बात तो यह थी कि अलग होने का फ़ैसला आज उन दोनों ने साथ मिलकर लिया था। ​

अर्जुन जी को अपना फ़ैसला बता कर दोनों मिस अदिति के साथ बाहर आ गए। अदिति जी ने उनके हाथ में कुछ डॉक्युमेंट्स की लिस्ट थमा दी। कल उन दोनों को इन डॉक्युमेंट्स के साथ फिर से अर्जुन के ऑफिस आना था। ​

रोहन वहाँ से अपने घर आया और घर के अंदर क़दम रखते ही उसे एकदम से एहसास हुआ कि अब से घर उसका नहीं रहने वाला। यह घर मीरा के नाम होते ही उसे यह घर छोड़ना पड़ेगा। यह ख़्याल मन में आते ही रोहन बहुत उदास हो गया। उसने अपनी कार की चाबी टेबल पर रखी और सोफे पर बैठकर वह अपने जूते उतारने लगा। तभी बर्बरी अंदर के कमरे से आकर रोहन से लिपट गई और उस पर प्यार जताने लगी। वह देखकर रोहन के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गई। वह बर्बरी को सहलाने लगा। ​

 

​​रोहन-​

​​ चलो ये घर नहीं मगर तुम तो मेरे साथ रहोगी। ढूँढ लेंगे कोई अच्छा घर हम दोनों के लिए। इतने बड़े शहर में कोई अच्छा घर मिल ही जाएगा। ​

 

​​अगले दिन रोहन और मीरा वक़्त से अर्जुन जी के ऑफिस पहुँच गए थे। दोनों ही शांति से अर्जुन के सामने बैठे थे जब अर्जुन जी उनका दिया एक-एक डॉक्युमेंट बारीकी से देख रहे थे। सारे डॉक्युमेंट्स एक-एक कर देखने के बाद उन्होंने रोहन और मीरा से कहा। ​

 

​​अर्जुन-​

​​ म्युचुअल डिवोर्स फाइल करने के लिए मुझे कुछ पेपर्स रेडी करने होंगे। तब तक आप हमारे यहाँ की स्पेशल अनार-दाने वाली चाय का लुत्फ उठाइए। मैं बस अभी आया। ​

 

​​अर्जुन जी के जाने के बाद रोहन और मीरा के लिए चाय आ गई। दोनों शांति से चाय पीते-पीते एक-दूसरे से बिना बात किए बैठे थे। मीरा ऑफिस में लगे इंटीरियर को निहार रही थी, तभी रोहन ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा। ​

 

​​रोहन-​

​​तो ... जहाँ, तुम अभी रह रही हो वह तुम्हारा नया वाला अपार्टमेंट कैसा है? ​

 

​​मीरा-​

​​ अच्छा है और रेंट भी ज़्यादा नहीं है। ​

 

​​रोहन-​

​​हम्म ... मुझे भी ये डिवोर्स के बाद, कोई नया घर देखना पड़ेगा। ​

 

​​मीरा-​

​​तो तुम एक काम क्यों नहीं करते? ये जो मेरा अभी का अपार्टमेंट है, तुम मेरे वहाँ से निकलने के बाद वहीं शिफ्ट हो जाना। मतलब तुम्हारा नया घर ढूँढने में वक़्त भी जाया नहीं होगा।

 

​​रोहन हंस पड़ा। ​

 

​​रोहन-​

​​हुह! तुम्हें कब से मेरे वक़्त की फ़िक्र होने लगी। ​

 

​​मीरा-​

​​मैं बस तुम्हारा काम आसान करने के लिए कह रही थी। तुम्हें नहीं चाहिए तो करो मेहनत, ढूँढो नया घर। मुझे क्या? ​

 

​​रोहन-​

​​जब से तुम्हारे साथ शादी की है मेहनत ही कर रहा हूँ। कौनसी नई बात है मेरे लिए। ​

 

​​मीरा-​

​​ तुम फिर शुरू हो गए। पहले जब बोलना चाहिए था तब तो ज़ुबान सिली हुई रहती थी तुम्हारी। अब तुम बहुत बोल रहे हो? ​

 

​​रोहन-​

​​ पता नहीं कब तक कोर्ट के चक्कर काटने पड़ेंगे और पता नहीं कब तक तुमसे डील करना पड़ेगा। ​

 

​​मीरा–​

 मैं इंसानियत के नाते तुम्हारी हेल्प करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन तुम्हें उसमें भी लड़ना है। ​

रोहन-​

​​ ये इंसानियत पहले दिखाती और नहीं करती जो तुमने मेरे साथ किया है। ​

​​मीरा-​

​​ तो तुम क्या कहना चाह रहे हो कि ये दिन सिर्फ़ मेरी गलती की वज़ह से देखना पड़ रहा है? शुरुआत तुमने की थी रोहन और तुमने उस रात गोवा में हमारा बचा-खुचा रिश्ता भी ख़त्म कर दिया। ​

​​रोहन-​

​​वाह! मेरी पीठ में छुरा घोंपा तुमने और रिश्ता ख़त्म किया मैंने? ​

 

​​मीरा-​

​​नहीं तो क्या? तुम्हें सब कुछ पता था तो उस रात तक का इंतज़ार क्यों किया तुमने। उसके पहले ये बात मुझसे तुमने क्यों छुपाई। साइको हो तुम साइको। अच्छा ही है जो मुझे तुमसे छुटकारा मिल रहा है। ​

 

​​रोहन कुछ कहने ही वाला था कि उतने में मीरा के मोबाइल पर किसी का फ़ोन आया। मीरा ने झट से अपना फ़ोन टेबल से उठाकर फ़ोन उल्टा रख दिया लेकिन फिर भी रोहन ने फ़ोन पर झलक रहा नाम देख लिया था। ​

"रणबीर कपूर न्यू"

​​वो देखकर कुछ पलों के लिए रोहन की धड़कनें रुक गईं क्योंकि मीरा उसे प्यार से रणबीर कपूर बुलाती थी। तो फिर अब ये “रणबीर कपूर न्यू” है कौन? ​

​​क्या हुआ था गोवा में दोनों के साथ? आख़िर ऐसे क्या बात है जिसके कारण बात डिवोर्स तक आ पहुँची। ​

 

जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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