​​चाँद की रोशनी में जगमगाता मुंबई शहर जहाँ ठहरने का मतलब अक्सर नाकामयाबी माना जाता है। यहाँ रुकने के बारे में शायद ही किसी ने कभी सोचा हो। सबका ध्यान बस आगे बढ़ते रहने पर होता है—बिना रुके, बिना थमे।​

​​उसी मुंबई शहर के हवाई अड्डे के बाहर, भीड़ का हिस्सा होते हुए भी, एक चेहरा सबसे अलग नज़र आ रहा था। तीस वर्षीय, गोरा-चिट्टा, लंबा कद, और घने-घुँघराले बालों वाला नौजवान, अश्विन म्हात्रे। वह सिगरेट के कश लेते हुए धुएँ से छल्ले बना रहा था। वह अपने उस शहर को आख़िरी बार, ध्यान से देख रहा था। उसके चेहरे पर निराशा झलक रही थी, और उसकी भूरी आँखों में गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था।  ​

​​अश्विन: - “ये? सपनों का शहर है? सब बकवास है!”​  

​​यह वही सपनों का शहर मुंबई है, जिससे अश्विन बेइंतहा प्यार करता था। सच्चाई मगर यह भी है कि सभी के सपने पूरे हों, ऐसा कहाँ होता है?  

​इसी शहर में आश्विन ने कई सपने देखे और हक़ीक़त में बदले! यही वह शहर है, जहाँ उसका बचपन गुज़रा, पढ़ाई-लिखाई की। कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ शहर की सड़कों में खूब मस्ती की..  चाहे गणपति बप्पा का स्वागत हो या  विसर्जन, या फिर दिवाली में बम-पटाखे फोड़ने का उत्साह—मुंबई की हर धड़कन में उसकी यादें बसी थीं।​

​​यह वही शहर है जहाँ बारिश के दिनों में अश्विन अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेला करता था। इसी शहर में उसने पहली बार प्यार का एहसास किया था, और पहली बार उसका दिल भी टूटा था। यही वह जगह है, जहाँ उसे उसकी पहली नौकरी मिली थी, और उस पल उसे लगा था कि अब उसे कोई नहीं रोक सकता।​

​​यह वही शहर है, जहाँ उसने अपनी गर्लफ़्रेन्ड रिया के साथ फैन्सी कॉफ़ी शॉप में पहली बार महँगी कॉफ़ी का स्वाद चखा था और अपने कलीग्ज़ के साथ रात से सुबह तक पब्ज़ में पार्टी की थी। यहीं पर उसने अपने आई-बाबा को पहली बार फ़ाइव स्टार होटल में खाना खिलाकर गर्व महसूस किया था लेकिन अब, वह उसी शहर को अलविदा कहने जा रहा था।​

​उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन भी आएगा, जब उसे मुंबई छोड़कर जाना पड़ेगा लेकिन वह रुकता भी तो कैसे, और क्यों? मुंबई में उसके पास रुकने की अब कोई वजह नहीं बची थी। उसका इस शहर में अब कोई अपना नहीं था, सिवाय बूढ़े आई-बाबा के।​

​​उसके बाबा, बासठ साल के मेहनती शिव म्हात्रे अपनी छोटी सी मिठाई की दुकान चलाते हैं और उसकी आई, मेघलता म्हात्रे, पचपन साल की एक गृहिणी हैं जो कभी-कभी दुकान पर बाबा का हाथ बँटाने चली जाती हैं। अश्विन का दिल उनसे दूर जाने को तैयार नहीं था, लेकिन हालात ने उसे ऐसा करने पर मजबूर कर दिया था।​

​​अश्विन ने दूसरी सिगरेट सुलगाई, आँखें बंद कीं, और एक गहरी साँस लेते हुए अपनी सोच में डूब गया। उसके कानों में बार-बार उसके आई-बाबा के शब्द गूँजने लगे। उसकी आई का मायूस और रोता हुआ चेहरा उसकी आँखों के सामने एक बार फिर आ गया।​

​​ऐसा क्या हुआ था, जिसने अश्विन को इस क़दर मजबूर कर दिया कि वह मुंबई, अपने घर, और अपनों को छोड़कर जाने का फ़ैसला कर बैठा? कौन सी ऐसी मुसीबत थी, जिसने उसे इस राह पर लाकर खड़ा कर दिया था?    ​

​​लगभग तीन महीने पहले तक अश्विन की ज़िंदगी बिल्कुल ठीक चल रही थी। वह एक मशहूर ऐड एजेंसी में काम करता था, जहाँ उसका क्रिएटिव दिमाग़ हमेशा नए-नए आइडियाज़ से भरा रहता था। अश्विन को मन में यह एहसास होने लगा था की अब वहाँ उसकी क्रिएटिविटी का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा था।​

​​हर दिन उसे अपने बॉस और क्लाइंट्स की एक जैसी, दोहराई जाने वाली माँगों से नफ़रत होने लगी थी। उनकी उम्मीदें और काम करने का स्टाइल उसकी अलग सोच और अप्रोच को कुचल रहे थे। धीरे-धीरे, उसका मन काम से और उस माहौल से हटने लगा था।​

​​एक पिच मीटिंग के दौरान, अश्विन ने अपने बॉस और टीम के सामने कुछ क्रिएटिव आइडियाज़ पेश किए, जो उसकी नज़र में बेहद शानदार थे। जैसे ही उसने अपनी बात पूरी की, उसके बॉस ने वही पुरानी माँगें सामने रख दी। ​​"क्लाइंट का नाम कम से कम चार बार दिखना चाहिए! ये हमारा प्रोटोकॉल है," ​​अश्विन के बॉस ने वही घिसा-पिटा जुमला दोहराया, जैसे कि उन्होंने रट्टू तोते की तरह इसे रट लिया हो।​

​​अश्विन का मानना कुछ और था। उसकी सोच थी कि क्रिएटिविटी को इस तरह के प्रोटोकॉल में बाँध देना, उसे मारने जैसा है। हर बार जब उसकी क्रिएटिव सोच को इन नियमों की बेड़ियों में जकड़ा जाता, तो उसका मन और ज़्यादा खराब हो जाता।​ ​उसी वजह से अश्विन के अंदर का ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा था, जो कि उस दिन फट पड़ा। ​

​​अश्विन: "प्रोटोकॉल? ये ​​रेवोल्यूशनरी​​ आइडिया वाला ऐड है, सर लेकिन आपको उससे क्या लेना-देना? आपको तो बस वही घिसा-पिटा तरीका चाहिए, ताकि क्लाइंट खुश रहे, और क्रिएटिविटी भाड़ में जाए!"​

​​अश्विन ने ग़ुस्से में बॉस से बहस छेड़ी ही थी कि बॉस उसके तेवर देखकर भड़क गए। उन्होंने टेबल पर ज़ोर से हाथ मारा और एक कड़क आवाज़ में अश्विन को डाँट दिया। बात इतनी बढ़ गई कि गुस्से में बॉस ने साफ़ कह दिया, "अगर तुम्हें यहाँ नौकरी करनी है, तो मेरे हिसाब से चलना होगा, वरना तुम जा सकते हो।"​

​​उनकी बात सुनते ही, अश्विन ग़ुस्से में आगबबूला होकर, बिना कुछ सोचे-समझे बॉस के केबिन से बाहर निकल गया। डेस्क पर पहुँचते ही, उसने तुरंत अपना रेज़िग्नेशन मेल कर दिया। फिर तमतमाते हुए, अपना सामान उठाया और बिना पलटकर देखे, ऑफिस से बाहर निकल गया।​

​​वहीं, अश्विन को ग़ुस्से में ऑफिस से जाते देखकर, उसका दोस्त रजत उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। उसे आवाज़ देने लगा लेकिन अश्विन कहाँ रुकने वाला था! ​

​​अश्विन के बाहर जाते ही, ऑफिस में यह बात आग की तरह फैल गई कि उसने बॉस से झगड़ा कर लिया था और इसी वजह से बॉस ने उसे धक्के मारकर नौकरी से निकाल दिया।​

​​अश्विन अच्छे से जानता था कि उस पल के बाद उसके पास वापस जाने का कोई ऑप्शन नहीं बचेगा लेकिन अब उसे इस सबकी परवाह नहीं थी। बॉस और क्लाइंट्स की एक जैसी माँगें न केवल उसकी क्रिएटिविटी को लिमिट कर रही थीीं, बल्कि इतने सालों तक वहाँ काम करने के बावजूद उसकी ग्रोथ को भी रोक रही थी। यही वजह थी कि उसने आखिरकार नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया।​

​रजत: "भाई यार, तू जॉब क्यों छोड़ रहा है? देख, तू मुझसे ज़्यादा एक्सपीरियन्स्ड है। तुझे पता है न कि अभी मार्केट डाउन है और जॉब मिलना मुश्किल है। तू एक बार ना उस ऐड़े बॉस से बात कर ले.. तू जानता है न कि तू अपनी कंपनी का ऐसेट है, और उसे भी ये बात पता है। क्या पता, वो मान जाए?"​

​​रजत ने कई बार अश्विन को यह कहकर समझाने-बुझाने की कोशिश भी की थी, मगर उसके लिये अब अपने फ़ैसले से पीछे हटना, नामुमकिन था। ​

​जब अश्विन ने घर पर अपने जॉब छोड़ने की बात बताई, तो उसके बाबा ने वही मिडल क्लास वाली बात कही, "कहीं दूसरी जगह नौकरी तो लग गई होगी?" पर अश्विन का जवाब सुनते ही उनके चेहरे पर गहरी चिंता छा गई, और वे कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहे।​

​​इसके बाद, पिछले तीन महीनों में, अश्विन ने न केवल मुंबई बल्कि देश के कई शहरों में नौकरी की तलाश की। लगभग एक हफ्ता पहले, उसे दिल्ली की एक बड़ी ऐड एजेंसी में नौकरी का ऑफर मिला, जिससे उसे थोड़ी राहत मिली।​

​​जब अश्विन ने अपने घरवालों को नई नौकरी की बात बताई, तो आई-बाबा एक ओर खुशी महसूस कर रहे थे, पर दूसरी ओर, अपने बेटे से दूर होने की चिंता उन्हें सताने लगी।​

​​वहीं, दूसरी तरफ, अश्विन की गर्लफ्रेंड रिया, जो उसी ऐड एजेंसी में काम करती थी जिसे अश्विन ने लात मार दी, उसके जॉब छोड़ने और दूसरे शहर में सेटल होने के फैसले को लेकर बेहद नाराज़ थी।​

​​रिया: "तुम्हें पता है न, अश्विन, तुम्हारे इस फैसले से हमारे रिलेशनशिप पर कितना असर पड़ेगा? लॉन्ग डिस्टेंस नहीं चल पाता यार! हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी! अगर तुम मेरे साथ अपना फ्यूचर देखते हो, तो अपना डिसिशन बदलो, वरना मुझे टाइम पास करने का कोई शौक नहीं है।"​

​​अक्सर रिया उसे समझाने की कोशिश करती, उसे रोकने के लिए ढेरों लॉजिक देती, लेकिन अश्विन ने उसकी हर बात को नकार दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों के बीच झगड़े बढ़ने लगे और उनके रिश्ते में दरार आ गईं।​

​​मुंबई जैसे बड़े शहर में अश्विन के पास ऐसा कोई नहीं था जिसे वह दिल से अपना कह सके, सिवाय अपने आई-बाबा और दोस्त रजत के।​

​​कुछ समय पहले ही रजत उसे हवाई अड्डे पर छोड़ने आया था। दोनों ने साथ में सिगरेट पी और थोड़ी देर बातें कीं। उसके बाद रजत उसे वहीं ’बाय’ बोलकर चला गया।​

​​अश्विन अब अपनी ज़िंदगी के बीते पलों को याद कर रहा था। उसे लगा था कि उसके पास वह सब था जिसके लिए लोग स्ट्रगल करते हैं—अच्छी नौकरी, अच्छी सैलरी, और एक बड़ा शहर। इन सबके बावजूद उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी ज़िंदगी कहीं ठहर गई हो।​

​​अश्विन:"हटाओ यार, किसे चाहिए ऐसी ज़िंदगी, ऐसी नौकरी, ऐसा प्यार? अब तो सब कुछ नया चाहिए।"​

​​अश्विन ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोलीं, एक गहरी साँस ली, और सिगरेट बुझाकर अपना बैग उठाया और एयरपोर्ट के अंदर चला गया। मुंबई से दिल्ली की फ़्लाइट का समय भी नज़दीक आने लगा था।  ​

​​अश्विन: “मुझे भी टेक-ऑफ़ करते हुए प्लेन के जैसी स्पीड पकड़नी होगी, बाकी जो होगा, दिल्ली पहुँचकर देखा जाएगा।​    

​​दिल में एक नयी उम्मीद, आँखों में नये सपने और ख़ुद को साबित करने के जुनून के साथ, उसने एक नये शहर की ओर बढ़ने का मन बना लिया। अश्विन ने बोर्डिंग पास लिया और अपनी मंज़िल की ओर पहला कदम बढ़ाया।​

​​एक तरफ, वह अपने फैसले को लेकर दुविधा में था कि कहीं दिल्ली में भी उसे वही हालात न झेलने पड़ें जो उसने मुंबई में झेले। दूसरी तरफ, उसे कुछ बड़ा हासिल करने का विश्वास और जुनून उसे आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट कर रहा था। नयी शुरुआत की उम्मीद के साथ, अश्विन ने अपने सफ़र की पहली उड़ान भर ली। दिल्ली पहुँचते ही, अश्विन ने गहरी साँस ली, और मन ही मन सारकास्टिक होकर बोला।  ​  

​​अश्विन: "वैसे तो दिल्ली का एयर पॉल्यूशन खतरनाक लेवल पर है मगर फिर भी, यहाँ पहुँचकर मुझे राहत की साँस लेने का मौका मिला है।"​

​​फिर अपना मोबाइल फ़ोन ऑन करते ही, उसे टेक्स्ट मैसेज मिला,  ​​“तुम्हारी किस्मत, तुम्हारा इंतज़ार कर रही है, सातबेली में।”​​ इस मैसेज को पढ़ते ही अश्विन ने मज़ाक में कहाँ।​

​अश्विन: "अबे, ये कैसा वेलकम मैसेज है? इस तरह के मैसेज लिखने वालों को तो फायर कर देना चाहिए। जिस जगह का नाम ही मैंने आज तक नहीं सुना, वो क्या मेरी किस्मत डिसाइड करेगी! सातबेली??? रियली!"​

​​उसकी ज़िंदगी की नई शुरुआत से पहले ही, एक अनजान रहस्य ने उसके दरवाजे पर दस्तक दे दी थी।  
क्या है सातबेली में जो आश्विन के क़िस्मत को बादल देगी?  जानने के लिए पढ़ते रहिए। ​

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