सुबह के 5 बज रहे हैं। श्री घाट पर बैठी हुई है और आस-पास जो कुछ भी हो रहा है उसे देख रही है… एक बूढ़ी माँ गंगा की आरती उतार रही है, दो बच्चे सीढ़ियों पर उचक - उचक कर कोई खेल खेल रहे हैं, एक बुज़ुर्ग अपने बेटे के साथ डुबकी लगा रहे हैं, तीन साधु बाबा आपस में कुछ चर्चा कर रहे हैं, एक आदमी पतला सा कपड़े धो रहा है और एक नाव दूसरे छोर पर जाकर ठहर गई है।
यह सब देखने के बाद, श्री कुछ देर के लिए आँखें बंद कर लेती है और अपना पूरा ध्यान पानी की आवाज़ पर केंद्रित कर लेती है। यह कुछ देर अब आधे घंटे में बदल गई है…
बाबा - "आँखें बंद कर लेने से, जो सामने है वो कहीं चला नहीं जाएगा। सामना करना होगा।"
बाबा की आवाज़ कानों में पड़ते ही श्री आँखें खोल लेती है और उन्हें अपने पास बैठा पाती है।
श्री - "अच्छी लग रही थी आवाज़ इसलिये सुन रही थी। मैं किसी से नहीं भाग रही।"
जवाब देकर श्री उठ जाती है और जाकर कुछ सीढ़ियाँ नीचे बैठ जाती है। बाबा अब भी वही बैठे हुए हैं। कुछ देर तक बाबा जब कुछ नहीं बोलते तो श्री पलट कर देखती है। बाबा अब भी वहीं बैठे हुए हैं और अब उनकी आँखें बंद हैं।
बाबा - "अब क्यों देख रही है मुझे?"
श्री हैरान है,
श्री - "इन्हें कैसे पता कि मैं इन्हें देख रही हूँ.. आँखें तो इनकी बंद हैं।"
बाबा - "वैसे ही जैसे मुझे ये पता है कि उस लड़के के साथ कुछ बड़ा होने वाला है.. ज़िंदगी बदल जाएगी उसकी.. वैसे ही जैसे मुझे पता है कि तू क्यों परेशान है कल से।"
बाबा की कही इस आखिरी बात को सुनने के बाद, श्री उठकर वापस ऊपर आ जाती है और उनके पास बैठ जाती है। बाबा की आँखें अभी भी बंद हैं.. वो धीरे से अपनी आँखें खोलते हैं और श्री को देखते हैं। श्री एक अलग सी ऊर्जा महसूस करती है और फिर बाबा से एक सवाल करती है,
श्री - "बताइये, क्यों परेशान हूँ मैं कल से?"
बाबा दूर खड़ी उस बोट को देखते हैं और बताना शुरू करते हैं,
बाबा - "अतीत। अतीत में हुआ था वही जो कल हुआ था.. हुआ था ना?"
श्री सिर हिलाकर हाँ में जवाब देती है और फिर उसकी आँखों से आंसू निकल आते हैं।
बाबा - "आज बह जाने दे इन्हें.. ये ना जाने कितने सालों से अंदर थे। पर एक बार जो ये निकल जाएं तो दोबारा कभी इन्हें बाहर आने की ये वजह ना देना.."
श्री को बाबा की ये बात समझ नहीं आती और वो उनकी ओर देख कर मतलब बताने को कहती है। बाबा अब मुस्कुरा देते हैं और अपना हाथ उठाकर उसे सामने उस बोट की ओर देखने को कहते हैं,
बाबा - "इस पार से उस पार जाना है तो इस किनारे से निकलना होगा। वो जो भी अतीत में हुआ वो अतीत था.. पर जो कल हुआ वो तेरा आज बनेगा.. आज में रहेगी तो पार पहुँच जाएगी.. बाकी तो सब वो जाने"
श्री पूछती है कौन? .. बाबा आसमान की ओर देख कर बोलते हैं,
बाबा - "वो.. डमरू वाला!"
इसके बाद बाबा अपनी आँखें बंद कर लेते हैं और ध्यान में चले जाते हैं। श्री बैठे-बैठे, बाबा की बातों को समझने की कोशिश करती है.. और उस दिन में चली जाती है जब वो 8 साल की थी और उसके चाचा उसे अपने साथ घुमाने के लिए एक पार्क में ले गए थे। चाचा और श्री जब पार्क में पहुँचे तो उनकी मुलाकात, उनकी पड़ोसन पिल्लई आंटी की भांजी यानी कि उनके भाई की बेटी, चेरी, से हुई। चाचा ने श्री को कैंडी फ्लॉस दिलाया और एक बेंच पर बैठा दिया.. फिर चाचा चेरी से बातें करते-करते श्री के सामने घूमा करते थे.. कुछ देर बाद चाचा और चेरी आगे बढ़ गए और फिर कुछ देर में.. श्री को नजर आना बंद हो गया। चाचा भूल गए थे कि वो श्री के साथ आए थे और वो चेरी को बाइक पर बैठाकर वहाँ से चले गए.. श्री बेंच से उतरी और चाचा को पूरे पार्क में ढूंढती रही पर चाचा नहीं मिले। श्री डर गई और जाकर एक झूले के पीछे छुप गई… पार्क में आए उसे अब पूरे 6 घंटे हो गए थे और भूखी प्यासे श्री बेहोश हो गई… जब उसकी आँखें खुली तब श्री ने खुद को अपने घर में देखा.. सामने उसकी अम्मा थी, अक्का थी, अप्पा थे और चाचा भी खड़े थे.. जो उसे भूल आए थे। श्री के लिए पार्क में बिताए वो कुछ घंटे बेहद खौ़फनाक थे.. किसी भी बच्चे के लिए होते और जब ऐसा कुछ बचपन में किसी के साथ घट जाता है तो वो अतीत बनकर बार-बार सामने आता है।
कल जब वसन ने भी वैसा ही कुछ किया.. तो वही घबराहट श्री को महसूस हुई जो तब हुई थी.. वही डर उसे कल फिर लगा.. और वो वसन के लौट आने के बाद भी घबराई हुई थी। पर आज जब बाबा के सामने श्री रो ली है तो उसे काफी अच्छा महसूस हो रहा है.. जैसे सालों के छुपे किसी दर्द को मरहम मिल गई हो… श्री एक बार फिर बाबा की ओर देखती है और देख कर अब वो मुस्कुरा रही है। बाबा अब भी ध्यान कर रहे हैं.. श्री उठकर पीछे बनी हुई एक टपरी पर आ जाती है और एक चाय का बोलकर.. फिर उस बोट को देखने लगती है। बोट अब उस छोर से इस छोर पर आ रही है..
चायवाला - "ये लीजिए आपकी चाय।"
अब इधर चाय खत्म हो रही है और उधर बोट नजदीक आती जा रही है और श्री बाबा की बातों को सोचे जा रही है,
श्री (to herself) - "क्या अब इस बोट से मैं इस छोर से उस छोर जा सकती हूँ?"
चायवाला सुन लेता है और कहता है कि श्री को एक बार गंगा के उस पार जाना चाहिए.. और ये जो बोट आ रही है, ये उसे उस पार ले जा सकती है। श्री चायवाले को चाय के पैसे देती है और बोट की ओर भागती है, जो कि अब आखिरी सीढ़ी पर आकर रुक गई है। श्री जैसे ही बोट के पास जाती है, वो देखती है कि उसमें वसन बैठा हुआ है। वो उस किनारे से इस किनारे आया है.. वसन को देखने के बाद, श्री बाबा को देखने के लिए पलटती है पर बाबा अब वहाँ नहीं हैं,
श्री (to herself) - "अभी जब मैं नीचे आई तब तो बाबा यहीं थे।"
दूर-दूर तक देखने पर भी श्री को बाबा नजर नहीं आते पर वसन उसे साफ-साफ नजर आ रहा है और अब वह बोट से उतरकर श्री के सामने आकर खड़ा हो गया है। बोट वाला श्री को उस पार जाने के लिए पूछता है.. श्री कुछ नहीं बोलती पर वसन उस बोट वाले को मना कर देता है और बोट वहाँ से चली जाती है।
श्री - "तुमने उन्हें मना क्यों किया?"
वसन - "क्योंकि तुमने हाँ नहीं किया।"
श्री - "पर मुझे जाना था उस पार.."
वसन - "फिर कभी साथ चल देंगे… अभी चलो आओ, तुम्हें एक मस्त जगह की चाय पिलाता हूँ।"
श्री - "मैंने अभी कुछ देर पहले ही पी है चाय.. और अब मैं घर वापस जा रही हूँ। माई को भी बता कर नहीं आई।"
कहकर ही श्री जाने के लिए मुड़ जाती है पर उसके एक सीढ़ी चढ़ते ही वसन उसका हाथ पकड़ लेता है। वसन का यूं श्री को छूना पहले भी हुआ है.. पर ये पहली बार है जब श्री की धड़कन बढ़ गई है। वो वहीं खड़ी रह जाती है.. गाल हलके गुलाबी हो गए हैं उसके.. श्री एक बार फिर पलटती है और फिर नज़रें उठाकर वसन को देखती है,
श्री - "क्या हुआ?"
वसन - "तुमसे कुछ कहना था।"
श्री - "क्या कहना था?"
वसन - "पहले मेरे साथ चलकर चाय पीओ.."
इस बार श्री मना नहीं करती और धीरे से अपना हाथ छुड़ाकर साथ चलने का इशारा करती है। दोनों साथ सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, आगे बढ़ते हैं और घाट के गेट से बाहर आकर सीधे हाथ पर बनी एक छोटी सी दुकान के पास आकर खड़े हो गए हैं। वसन दो चाय देने का कहकर, पास ही की दूसरी दुकान से बिस्किट लेने चला गया है। श्री कंखियों से उसे देख रही है। चाय बन गई है, वसन भी बिस्किट ले आया है और दोनों दो स्टूल लेकर उन पर बैठ गए हैं।
श्री एक चुस्की लेती है और फिर वही सवाल करती है,
श्री - "क्या कहना था तुम्हें?"
वसन - "मुझे .. तुम्हें थैंक यू कहना था।"
थैंक यू सुनने के बाद.. श्री का वो गुलाबीपन चला गया है और उसने आँखों को एक बार बंद कर फिर से खोला है तो अब सब नॉर्मल लग रहा है.. जैसे ख्वाबों की किसी गली से वो बाहर आ गई हो।
श्री - "थैंक यू.. पर क्यों?"
वसन - "मुझे अपने साथ सारनाथ ले जाने के लिए। अच्छा लगा कल वहाँ जाकर.. मानो जैसे सालों से सोचा हुआ, कल पूरा हुआ हो।"
श्री मुस्कुरा देती है और फिर घर जाने की बात करके बात बदल देती है।
श्री - "अच्छा सुनो.. चाय भी पी ली और तुम्हारा थैंक यू भी ले लिया.. अब मुझे घर के लिए जाना है.. आज काफी जल्दी आ गई थी और माई को बता कर भी नहीं आई थी… और हाँ, थैंक यू।"
वसन - "वो क्यों?"
श्री - "चाय के लिए।"
और श्री उठकर चली आई है। वसन भी उठकर चला गया है। पर आज की मुलाकात में कुछ बदल गया है। श्री के दिल ने जोर से धड़कना शुरू कर दिया है.. जिस श्री के पास शब्दों की कमी नहीं रहती थी, आज वो बात को टाल कर, बस उठकर चली आई है।
श्री घर में घुसते ही सबसे पहले किचन की ओर जाती है और माई को अपने वापस आने का बताती है। माई उसे देखकर मुस्कुराती हैं और उसे झट से तैयार होकर आने को कहती हैं.. ताकि वो दोनों आराम से बैठकर नाश्ता कर सकें। माई के कहे अनुसार श्री जाकर नहा कर तैयार होकर आती है और बगिया में आकर बैठ जाती है।
माई - "आज हम इडली बनाए हैं.. तुम्हारे लिए .."
माई प्लेट आगे बढ़ाती हैं और श्री को पकड़ाकर बैठ जाती हैं।
माई - "खाकर बताओ कैसी बनी है। हम पहली बार बनाए हैं।"
पहला निवाला खाते ही, श्री माई को एक फ्लाइंग किस देती है और इतनी अच्छी इडली बनाने के लिए शुक्रिया करती है।
श्री - "अम्मा की याद आ गई माई.. बहुत ही ऑसम बनी है इडली और चटनी तो .. मैं अब क्या ही कहूँ.. बेस्ट है।"
माई मुस्कुरा देती हैं।
श्री - "माई.. आपने पूछा नहीं कि मैं कहाँ गई थी वो भी बिना बताए.."
माई - "बिटिया.. थोड़ी फिक्र हुई थी सच कहें तो पर फिर हम जानते हैं कि तुम कितनी हिम्मत वाली हो। भोलेनाथ से तुम्हारी रक्षा करने को कहे और अपने काम में लग गए.. अब बता दो, कहाँ गई थी? और ये भी बताना कि कल जब लौटी थी तो क्यों परेशान थी?"
श्री - "मैं घाट पर गई थी माई.. कल थोड़ी ज्यादा थक गई थी, वहाँ जाकर अच्छा लगा। और क्या है ना सुबह आप सो रही थीं तो आपकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी इसलिये बिना बताए ही चली गई.."
श्री ज्यादा डिटेल में सब नहीं बताती और माई भी ज्यादा कुछ नहीं पूछती। अब श्री अपने कमरे में उठकर आ गई है और आकर अपने लैपटॉप पर कुछ सर्च कर रही है। क्या श्री बदल रही है? क्या कहानी कहीं और बढ़ रही है? क्या जो कुछ भी हुआ है वो फिर कभी होगा या श्री और वसन का रास्ता अब फिर कभी नहीं मिलेगा… अनुमान लगाते रहिये और जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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