माई : “देखो बच्चों, मैं अब ठीक हूँ। कल से बहुत बेहतर महसूस कर रही हूँ, तो मेरी वजह से तुम्हें सारनाथ जाना कैंसल नहीं करना चाहिए।”
श्री : “पर माई…”
माई : “हाँ, श्री ... कल तुमने कहा कि माई, आप किचन में नहीं आएंगी, तो मैंने तुम्हारी बात मानी, ना? क्योंकि वो भी ज़रूरी था। पर आज, आज मैं सच में अच्छा महसूस कर रही हूँ। बच्चा सुबह उठकर तुम्हें यहाँ लेने आया, और तुमने उससे ऐसे बात की। ग़लत बात है, बिटिया। जाओ अब जाकर तैयार हो जाओ, मैं नाश्ता बनाकर लाती हूँ।”
श्री , वसन को घूरकर देखती है और फिर उठकर अपने कमरे में चली जाती है।
वसन : “मुझे सच में लगा कि यह कोई मज़ाक कर रही है, वरना मैं ऐसे नहीं आता।”
माई : “हम बिटिया को जानते हैं, बेटा। और तुम्हारी बात पर भी विश्वास कर रहे हैं। क्या है ना, कल जो कुछ भी हुआ, उसके बाद वो हमें लेकर थोड़ी डर गई है। किसी को कुछ बताएगी नहीं, पर हम जानते हैं कि उसे इस बात का डर है कि कहीं वो लड़की वापस आकर कुछ और ना कर दे। बेहतर होगा कि तुम साथ ले जाओ उसे।”
वसन : “पर आपकी सेफ्टी भी तो ज़रूरी है, माई। मुझे लगता है, आज ना जाना ही बेहतर होगा।”
माई , वसन को अपने साथ किचन के बाहर ले आती है और वहीं एक कुर्सी रख देती है। अब माई पोहा बनाते-बनाते, वसन को बताती है कि वो कई सालों से इस घर में अकेली रह रही हैं और इससे भी कठिन परिस्थितियों का सामना उन्होंने अकेले किया है।
माई की बातें सुनते-सुनते वसन मन ही मन सोचने लगता है कि क्या ये वही माई हैं, जिनके बारे में उसने पहले कई सारी बातें सुनी हैं। और इतने में श्री तैयार होकर आ जाती है। उसने oversized सफेद शर्ट और ढीली पैंट पहनी हुई है। साथ में एक बैगपैक है, जिसमें उसका कैमरा, टोपी और कुछ ज़रूरी चीज़ें हैं।
वसन उसे देखता है और देखता ही रह जाता है।
माई : “ये तुमने क्या पहन रखा है, बिटिया। कितनी बड़ी शर्ट है, दो लोग बन जाएंगे इसमें तो। और पैंट... ये पैंट तुम्हारा ही है ना?”
वसन अब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगता है। श्री फिर उसे घूरती है और माई को फैशन, स्टाइल और ना जाने क्या-क्या ज्ञान देने लगती है। अब तीनों साथ बैठकर नाश्ता करते हैं और फिर वसन और श्री सारनाथ जाने के लिए निकल जाते हैं।
श्री : “देखो, तुम धीरे चलाओ बाइक। मुझे स्पीड से डर लगता है।”
वसन बाइक की थोड़ी स्पीड और बढ़ा देता है। अब श्री बाइक के पीछे के हैंडल को छोड़कर वसन को कसकर पकड़ लेती है। श्री के छूते ही वसन घबरा सा जाता है और बाइक को एकदम से रोक देता है। अब वह बाइक से उतरकर सड़क के किनारे आकर खड़ा हो गया है। श्री उसके पास आती है।
श्री : “हे आइ ऐम सॉरी ,मुझे सच में डर लगता है ऐसे। वो एकदम से मैंने तुम्हें पकड़ लिया। प्लीज़, तुम ग़लत मत समझना।”
वसन अपने कानों को अपने हाथों से बंद कर लेता है और श्री की ओर मुड़कर उसे आगे कुछ भी और कहने से मना कर देता है।
वसन : “अब कुछ मत बोलना। प्लीज़, इसके आगे कुछ भी मत बोलना।”
श्री चुप हो गई है और आकर बाइक के पास खड़ी हो गई है। वसन कुछ देर बाद जब उसके पास आता है, तो वह अपना सीधा हाथ आगे बढ़ा देती है।
वसन : “क्या?” वसन पूछता है।
श्री : “चाबी। बाइक की चाबी।”
वसन बिना कुछ कहे, उसके हाथ में चाबी रख देता है। श्री बाइक पर बैठकर, बाइक स्टार्ट करती है और वसन को पीछे बैठने का इशारा करती है। जो 10 किलोमीटर का रास्ता आधे घंटे में कवर किया जा सकता था, उसे श्री ने 1 घंटे में कवर किया है। और इस एक घंटे में ना श्री ने कुछ कहा है और ना ही वसन ने कुछ बोला है।
सारनाथ पहुँचते ही, श्री बाइक को पार्किंग स्टैंड की तरफ मोड़ लेती है और गेट पर ही वसन को उतर जाने को कहती है। फिर वह बाइक पार्क करके आती है, तो वसन उसे गेट पर नहीं मिलता। वह उसे ढूँढती हुई आगे बढ़ती है और पाती है कि वसन कुछ दूरी पर ही दो छोटे-छोटे बच्चों को कैंडी फ्लॉस दिला रहा है। श्री उसके पास जाती है।
श्री : “मैं तुम्हें वहाँ देख रही थी और तुम यहाँ हो।”
वसन : “हम्म।”
वसन खड़ा हो जाता है और उन दोनों बच्चों को बाय करके, श्री से अपने व्यवहार के लिए सॉरी बोलता है।
श्री : “मैं समझती हूँ... अब चलो, हम चलकर अशोक स्तंभ देखते हैं।”
इस तरह श्री और वसन के बीच बातचीत शुरू हो गई है और दोनों अशोक स्तंभ देखने के लिए आगे बढ़ गए हैं।
श्री : “तुम्हें यहाँ के बारे में कुछ पता है?”
वसन : “यहाँ गौतम बुद्ध ने पहला धर्म उपदेश दिया था... वो देखो धम्मचक्र... आओ, पहले ये देखते हैं।”
यह सब बताते हुए श्री को वसन के चेहरे पर एक अलग सा संतोष दिख रहा है। आज वह उसे पहली बार इतना उत्साहित दिख रहा है।
वसन : “देखो... यहाँ से देखोगी तो लगेगा कि ये अभी भी घूम रहा है।”
श्री , वसन के आगे आकर खड़ी हो गई है और चक्र को देख रही है।
श्री : “सच में यार... सही कह रहे हो तुम।”
यह देखने के बाद, दोनों अशोक स्तंभ की ओर बढ़ते हैं और वसन , श्री को बताता है कि कैसे बुद्ध धर्म के प्रचार के लिए अशोक स्तंभ का निर्माण किया गया था।
वसन : “वो जो ऊपर देख रही हो, the lion head... that is our national symbol। तुम्हें सम्राट अशोक के बारे में पढ़ना चाहिए... काफ़ी कुछ जानने को मिलेगा।”
और वसन यह सब बताकर आगे बढ़ जाता है। उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे वह पहले भी यहाँ कभी आया है और श्री पूछ ही लेती है।
श्री : “क्या तुम पहले यहाँ आ चुके हो?”
वसन मना कर देता है और दूसरे स्तूपों के बारे में बताना शुरू कर देता है। और फिर... फिर उसे पार्क में वही लड़की नज़र आ जाती है। वसन , श्री को उसकी रिसर्च करने का कहकर... पार्क की तरफ चला जाता है। श्री पहले उसे देखती है कि वह कहाँ जा रहा है और फिर उसे कुछ बौद्ध भिक्षु दिख जाते हैं, तो वह उनसे सारनाथ के बारे में जानने उनके पास चली जाती है।
ड्रीम सीक्वन्स स्टार्टस –
इधर वसन , उस लड़की के पीछे-पीछे, मुख्य परिसर के बाहर पेड़ों के बीच आ पहुँचा है।
वसन : “देखो, अब रुक जाओ... मुझसे बात करो ना, प्लीज़।”
लड़की रुक जाती है और एक टूटे हुए पेड़ पर जाकर बैठ जाती है। वसन पेड़ के पास जाता है और दूसरे छोर पर बैठ जाता है।
वसन : “ज़्यादा पास आऊँगा तो तुम फिर दूर चली जाओगी। और फिर ना जाने कब नज़र आओगी?”
लड़की मुस्कुरा रही है और वसन की ओर देखे जा रही है। वसन बोलना जारी रखता है।
वसन : “तुम्हें पता है, जब से यहाँ आया हूँ, तब से कई सारे लोगों से मिल चुका हूँ। पर यह जो एक लड़की है, इससे दोस्ती हो गई है। तुम नाराज़ तो नहीं हो ना? देखो, अगर तुम्हें कोई प्रॉब्लम है इस सब से, तो मैं फिर बात भी नहीं करूँगा किसी से भी... तुम बता दो।”
लड़की उठती है और वसन के पास आती है। और अपने हाथ से उसके चेहरे को छूती है। वसन की आँखें बंद हो गई हैं। उसके चेहरे को देखकर यह कहा जा सकता है कि वह ना जाने कितने दिनों से इस सुकून को ढूँढ रहा था। कुछ देर बाद, जब वह अपनी आँखें खोलता है, तो देखता है कि लड़की जा चुकी है और वह एक बार फिर अकेला रह गया है।
(ड्रीम सीक्वेंस समाप्त)
वसन : “तुम यहाँ क्यों बैठी हो?”
श्री : “कहाँ चले गए थे तुम?”
वसन : “बस यहीं घूम रहा था... क्यों?”
श्री : “वसन, सच बताओ, कहाँ थे तुम?”
वसन , श्री के सवाल का जवाब तो नहीं देता पर उसे डिस्ट्रैक्ट कर देता है।
वसन : “वो देख रही हो वहाँ... कहते हैं वहाँ बैठकर बड़ी शांति मिलती है... चलो, आओ, वहाँ चलकर देखते हैं।”
अब दोनों बौद्ध भिक्षुओं के ध्यान करने की जगह पर जाते हैं और कुछ देर वहाँ शांति से बैठते हैं। फिर कुछ देर बाद श्री , वसन को बाहर जाने का इशारा करती है और दोनों उठकर बाहर आ जाते हैं।
श्री : “यार, अब बड़ी भूख लग रही है।”
वसन : “हाँ... चलो, मेन गेट के बाहर चलते हैं। आते समय मैंने देखा था एक रेस्टोरेंट... वहीं कुछ खा लेंगे।”
श्री , वसन को बाइक की चाबी दे देती है और कुछ नहीं बोलती। श्री को यूँ चुप-चाप देखकर वसन अचंभित है, पर वह उससे इसके पीछे की वजह अभी नहीं पूछता और झट से जाकर पार्किंग में से बाइक ले आता है। बाइक के सामने रुकते ही, श्री उस पर सवार हो जाती है और कसकर पीछे के हैंडल को पकड़ लेती है।
वसन : “आ गया रेस्टोरेंट।”
श्री बाइक से उतरती है और रिसेप्शन पर जाकर रेस्ट रूम का पूछती है। वसन भी उसके पीछे-पीछे आ जाता है और बाहर ही खड़ा हो जाता है। पाँच मिनट बाद, जब श्री बाहर आ जाती है, तो वसन उसे टेबल पर जाकर बैठने को कहता है।
श्री : “मैं वहाँ, उधर बैठूँगी... तुम आ जाना उधर ही।”
वसन वॉशरूम में चला जाता है और श्री टेबल के पास आकर बैठ जाती है। वेटर आता है, दो ग्लास पानी और मेनू रखकर चला जाता है। कुछ देर में वसन भी आ जाता है।
वसन : “क्या खाओगी?”
श्री : “मसाला डोसा और पहले एक कॉफ़ी।”
वसन , वेटर को बुलाता है और दो मसाला डोसा और दो कॉफ़ी लाने को कहता है।
वसन : “क्या हुआ?”
श्री : “किसे क्या हुआ?”
वसन : “तुम्हें, क्या हुआ? बात क्यों नहीं कर रही हो तुम?”
श्री : “कर तो रही हूँ।”
वसन : “श्री , तुम जानती हो कि तुम कितनी बातें करती हो और अभी जितना भी तुम बोल रही हो... वो बस तुम जवाब दे रही हो। कुछ हुआ है क्या? किसी ने कुछ कहा?”
श्री इधर-उधर देखने लगती है और जैसे ही उसे वेटर दिखता है, वह उससे जल्दी उनका ऑर्डर किया हुआ खाना लाने को कहती है। वसन उसकी ओर देख रहा है, पर श्री पहले कुछ नहीं बोलती। फिर वह कहती है।
श्री : “मुझे भूख लग रही है... बस इतनी सी बात है।”
वसन आगे कुछ नहीं पूछता। कुछ ही देर में कॉफ़ी आ जाती है और फिर डोसा आ जाता है। दोनों खाकर वापस बनारस आने के लिए निकल पड़ते हैं। और अब रास्ता ज़्यादा खामोश है, क्योंकि श्री खामोश है, वसन खामोश है।
आधे घंटे का रास्ता भी आधे घंटे में ही तय हो गया है। श्री घर आ गई है और वसन चला गया है। श्री आकर, माई के गले लग जाती है और उसकी आँखों से आँसू छलक जाते हैं। माई , उसे बैठाकर पानी पिलाती हैं और फिर उसका सिर अपनी गोद में रखकर उसे अपने पास ही सुला लेती हैं।
श्री का यूँ चुप हो जाना, वसन के पूछने पर भी उसका कुछ नहीं बताना और घर आकर माई के यूँ गले लग जाना... नॉर्मल नहीं है। श्री के केस में तो बिलकुल भी नॉर्मल नहीं है। पर क्या श्री, किसी को भी कुछ बताएगी... या कहानी यहाँ से कोई अलग ही मोड़ ले जाएगी। अनुमान लगाते रहिए,... क्या होगा आगे, ये जानने के लिए, एपिसोड आगे बढ़ाते रहिए।
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