जब सब डिनर लेने आते हैं तब पता चलता है कि आज का डिनर श्री ने बनाया है और जब श्री से माई के बारे में पूछा जाता है तो वह सबको माई के पास बगिया में भेज देती है। सब बगिया में जाकर, एक साथ माई से पूछते हैं कि उन्हें क्या हुआ है? आज उनकी जगह श्री क्यों खाना बना रही है?
माई सभी को बताती हैं कि पैर फिसलने से उनके सर पर चोट आ गई और डॉक्टर ने उन्हें आराम करने को कहा है… और सभी को आज उनके साथ बैठकर खाना खाने को पूछती हैं। सब एक स्वर में हां बोलते हैं और अपनी-अपनी थाली लेकर वहीं घेरा बनाकर नीचे ज़मीन पर बैठ जाते हैं। फिर माई एक-एक करके सबसे उनके काम और घर परिवार के बारे में पूछती हैं। कुछ ही देर में श्री आती हैं और दो कंटेनर रख कर चली जाती हैं.. फिर वो दो कंटेनर और लाती हैं और रख कर सबको सर्व करने लग जाती हैं।
माई - “बिटिया आओ.. तुम भी आकर बैठ जाओ.. आज सब साथ खा रहे हैं..”
श्री आकर माई के पास बैठ जाती हैं,
श्री - “पर ये चमत्कार हुआ कैसे?”
इस सबके बीच सबने खाना शुरू कर दिया है और सब एक दूसरे को देखकर अजीब-अजीब से मुंह बना रहे हैं..
माई बताती हैं कि चमत्कार तो बस हो गया.. और पहला निवाला बनाकर, श्री की ओर बढ़ा देती हैं। श्री खाते ही, उठकर भागती हैं और नाली के पास जाकर, मुंह का सब बाहर निकाल देती हैं। सब लोग अब जोर से हंसने लगते हैं.. माई दूसरा निवाला बनाकर खाने को ही होती हैं कि श्री आकर उनका हाथ पकड़ लेती हैं और बाकी सबको भी कढ़ी पकौड़ा खाने से मना करती हैं। माई अपना हाथ छुड़ा लेती हैं और उस निवाले को खा लेती हैं।
श्री और बाकी सभी अब माई को देख रहे हैं, जिनके चेहरे पर एक बड़ी ही प्यारी सी मुस्कान है।
माई - “ऐसी कढ़ी हमारी बहन बनाया करती थी और दीदी के हाथ की वो कढ़ी हमें बड़ी पसंद आती थी.. वो ऐसे ही हल्की सी शक्कर डाल देती थी और उनका ढेर सारा प्यार.. पर इसमें शक्कर थोड़ी ज़्यादा ही हो गई है..?”
श्री सभी को सॉरी बोलती हैं और माई की ओर निराश होकर देखने लगती हैं,
श्री - माई.. मुझे पता ही नहीं चला.. कि वो नमक नहीं बल्कि शक्कर थी। अब सब कैसे खाएंगे, क्या खाएंगे.. सब गड़बड़ हो गया?
ऊपर की मंजिल पर बने पहले कमरे में रहने वाली सौम्या उठकर श्री के पास आती हैं और उसे अपना फोन स्क्रीन दिखाती हैं..
सौम्या - “मैंने हम सबके लिए पिज्जा और माई के लिए खिचड़ी ऑर्डर कर दिया है.. डोंट वरी।”
यश, सौम्या को थम्ब्स अप दिखाता है और फिर श्री की ओर देखते हुए बोलता है, “तुमने इतना सोचा और हम सब के लिए खाना बनाया, यही कितनी बड़ी बात है श्री.. अब तुम उदास मत हो.. क्यों माई? सही कहा ना?”
माई - “सौम्या ने भी सही किया और यश भी सही कह रहा है.. कोशिश की और वो भी बहुत अच्छी कोशिश की.. और यूं नमक और शक्कर वाली गलती ज़िन्दगी में एक बार नहीं की तो फिर क्या ही किया.. हां हां ह.. उदास नहीं होना श्री बिटिया.. देखो, तुमने तो हमें हमारी दीदी की याद दिला दी और इन सबको इनके घर की.. क्यों?.. हां ह..”
सौम्या सिर हिलाती है और बोल पड़ती है,
सौम्या - “एकदम सही कह रही हैं माई.. अब तो जब भी खाने में कुछ गड़बड़ लगता है, घर की ही याद आ जाती है और जब घर पर रहा करते थे तो कितने नखरे दिखाते थे.. मां के हाथ के खाने का स्वाद.. मmmmm.. सबसे बेस्ट होता है वो तो..”
श्री अब उठकर सभी कंटेनर एक-एक कर किचन में रखने लगती है कि तभी माई पूछती हैं,
माई - “एक में कढ़ी है, दूसरे में रोटी, एक में सलाद .. ये तीनों तो खा कर देख लिए… चौथे प्लेट में क्या है बिटिया?”
श्री धीमे स्वर में बोलती है,
श्री - “वो मैंने खीर बनाई थी डेज़र्ट के लिए..”
माई - “अरे तो चखाओ तो बिटिया.. ये तो तुमने खिलाई ही नहीं..”
श्री हिचकिचाते हुए बताती है कि जैसे कढ़ी में नमक की जगह शक्कर डाल दी गई है, खीर में शक्कर की जगह नमक डाल दिया है .. और अब श्री कंटेनर लेकर किचन की ओर भाग जाती है। सब जोर-जोर से हंसने लगने लगते हैं… माई को भी हंसी आ जाती है और वो भी जोर-जोर से हंसने  लगने लगती हैं… पर हंसी के साथ, उनकी आंखों में आंसू भी झलक आते हैं.. और इन आंसुओं पर कमरे नंबर 2 में रहने वाले अमन का ध्यान चला जाता है।
अमन - “माई.. आप रो रही हैं? सब ठीक तो है ना माई? आपको दर्द तो नहीं हो रहा ना”
अमन को सुनते ही, बाकी सब हंसी बंद कर देते हैं और माई की ओर देखने लगते हैं… माई आंसू पोंछती हैं,
माई - “हम ठीक हैं अमन.. अरे क्यों चुप हो गए आप सब? ये आंसू तो खुशी के हैं..”
श्री आकर वहीं अमन के पास बैठ जाती है और जो कुछ भी बात चल रही है उसका हिस्सा हो जाती है..
यश अचंभा जताते हुए पूछता है,
यश - “खुशी के आंसू? मतलब?”
माई - “मतलब हम खुश हैं.. बहुत खुश हैं, आप सब लोगों को यहां इकट्ठा देख कर.. आज हमारी खराब तबियत और श्री के बनाए खाने के कारण ही सही पर आप सब लोगों ने साथ बैठकर चार बातें तो की.. हमारे साथ समय तो बिताया.. और वो क्या कहते हैं.. डिनर पार्टी हो गई... वरना.. वरना तो कहां ही बातचीत होती है हमारी और आपकी?”
माई के ये शब्द अब सभी को इमोशनल कर देते हैं और सब आकर, माई के गले लग जाते हैं। श्री भाग कर जाकर अपने कमरे से कैमरा ले आती है और इस खूबसूरत पल को कैप्चर कर लेती है। माई खुश हैं। सब खुश हैं.. घर खुश हो गया है.. (काइंडा पोएटिक फ्रेज)।
इतने में दरवाजे की घंटी बजती है और श्री जाकर पिज्जा पार्सल लेकर आती है। फिर सब मिल बांटकर पिज्जा खाते हैं और माई खिचड़ी खाती हैं। और अब सब अपने-अपने कमरे में आ गए हैं पर श्री और माई उठकर घर के पीछे वाले हिस्से में आ गए हैं। माई बेंच पर बैठ गई हैं और श्री टहल रही है…
माई - “थैंक यू बिटिया।”
श्री - “वो क्यों माई?”
माई - “बचपन में मां ख्याल रखती है और फिर बड़े होकर बच्चे  अपनी मां का ख्याल रखते है पर हमारे नसीब में मां तो आई, बच्चा नहीं आया.. आज तुमने वो बच्चा बनकर हमारा ध्यान रखा..”
श्री आकर माई के पास बैठ जाती है और उनका हाथ थामकर उनसे पूछती है, “आपकी मां भी एकदम आप जैसी ही रही होंगी ना माई.. सुंदर सी, प्यारी सी.. सबको बस प्यार देने वाली।”
ये सुनते ही माई के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और वो श्री को अपनी मां की कई बातें बताती हैं… फिर अचानक से श्री को कुछ याद आ जाता है और वो माई को उनके कमरे में लेकर, दवाई खिला कर.. अपने कमरे में आ जाती है,
श्री (अपने आप से) - “माई की तबियत ठीक नहीं है.. तो अभी मुझे बनारस के बाहर नहीं जाना चाहिए… ऐसा करती हूं कि वसन  को बोल देती हूं कि कल सारनाथ नहीं जाएंगे.. फिर एक दो दिन बाद चल देंगे।”
वसन  - “हैलो!”
श्री - “हैलो वसन , श्री हियर !”
वसन  - “हां.. बोलो।”
श्री (हिचकिचाते हुए) - “वो मुझे ये बताना था कि.. कि”
वसन  - “तुम, और बोलने में हिचकिचा रही हो.. कहो, कहो क्या बात है?”
श्री अब एक गहरी सांस लेती है और एक ही सांस में बोल देती है,
श्री - “हम कल सारनाथ नहीं जा रहे हैं…”
वसन  - “और ऐसा क्यों?”
श्री - “क्योंकि,.. अच्छा मैं तुम्हें शुरू से सब बताती हूं। हुआ यूं कि मैं आज जब शाम में सोकर उठी और अपने कमरे से बाहर निकली तो मैंने कीर्ति को देखा…”
और अब श्री ऐसी शुरू हुई है कि उसने जो कुछ भी शाम से अब तक हुआ है, वसन  को वो एक-एक बात बता दि..
श्री - “हैलो.. हैलो… वसन  तुम सुन रहे हो ना?”
फोन की दूसरी साइड से कोई आवाज नहीं आती.. वसन  सो गया है और श्री को भी अब ये समझ आ जाता है तो उसने फोन कट कर दिया है और वो अपने बेड पर लेट गई है… लेटने के बाद उसका ध्यान दीवार पर टंगे पंखे पर चला गया है जो बंद है..
श्री (अपने आप से) - “आज कितना कुछ हुआ.. पहले सुबह मंदिर गई, वसन  से बातचीत हुई और फिर शाम में ये सब। मैं जबसे बनारस आई हूं, एक भी दिन ऐसा नहीं रहा कि कुछ एडवेंचरस ना हुआ हो। हर रात ऐसा लगता है कि जैसे इस शहर ने मुझे अपने पास बुलाया ही ये सब दिखाने के लिए है.. पर वो बाबा.. आज काल  भैरव मंदिर के बाहर वो बाबा मुझे कैसे देख रहे थे। उनकी आंखों में कुछ तो था.. कुछ ऐसा जो मैंने पहले कभी किसी की आंखों में नहीं देखा.. गॉड नोज़, अब और क्या - क्या होने वाला है मेरे साथ.. पर जो भी होगा अच्छा ही होगा इस व्हाट आई बिलीव।”
श्री उठकर लाइट बंद करती है और फिर आकर सो जाती है। उसके लिए आज का दिन काफी थकान भरा था..
माई अपने समय अनुसार उठ गई हैं और कल से बहुत बेहतर महसूस कर रही हैं। उनकी नित्य क्रियाएं करने के बाद, जैसे ही वो आरती करने मंदिर की ओर जा रही होती हैं, दरवाजे की घंटी बजती है।
माई जाकर दरवाजा खोलती हैं और देखती हैं कि बाहर वसन  खड़ा हुआ है,
वसन  - “प्रणाम माई।”
माई - “प्रणाम.. आप?”
वसन  - “जी मैं वसन .. वो श्री का…”
श्री का नाम सुनते ही माई समझ जाती हैं और वसन  को अंदर आकर बैठने को कहकर, पहले आरती करती हैं और फिर श्री को बुलाने चली जाती हैं। वसन  बगिया में बैठा-बैठा माई को यहां से वहां जाते हुए और सब काम एक-एक कर करते  हुए देख रहा है।
माई - “बिटिया.. बिटिया उठो, तुम्हारा दोस्त आया है।”
श्री गहरी नींद में होती है और एक बार में नहीं उठती.. माई फिर उसे आवाज़ देती हैं …
श्री - “सोने दो ना माई.. नींद आ रही है।”
माई - “वसन  आया है.. उठो जल्दी, और बाहर आओ।”
वसन  का नाम सुनते ही श्री उठकर बैठ गई है और अगले 5 मिनट में हाथ मुंह धोकर वो कमरे से बाहर आ जाती है,
श्री - “तुम यहां? यहां क्या कर रहे हो?.. ”
वसन  - “सारनाथ नहीं जाना?”
श्री - “कल फोन पर बताया तो था सब..”
वसन  दिमाग पर जोर डालते हुए बोलता है,
वसन  - “तुमने कहा नहीं जाएंगे और फिर पता नहीं क्या क्या बताना शुरू कर दिया.. I slept. मुझे लगा की वो सब मजाक था तो मैं आ गया।”
श्री - “वाह.. तो एक बार आने से पहले ही फोन करके फिर पूछ लेते…”
वसन  - “जाकर अपना फोन देखो पहले.. दो बार कॉल किया। पहले खुद ही बोली और फिर खुद ही cancel भी कर दिया.. मैंने तो बाइक भी ले ली रेंट पर.. तुम्हें क्या बार-बार मजाक करना अच्छा लगता है.. दूसरे की टाइम की तो जैसे कोई वैल्यू ही नहीं है”
श्री को अब गुस्सा आ जाता है,
श्री - “एक तो मेरी बात पूरी नहीं सुनी, ऊपर से अभी यहां आ गए। अब सारा ब्लेम मुझ पर ही डाल रहे हो.. अरे माई की तबियत ठीक नहीं है इसलिए cancel किया। कल उन्हें किसी ने जोर का धक्का दिया और उससे उनके सर पर चोट आ गई है.. ऐसे में मैं कैसे उन्हें छोड़कर, बनारस से बाहर चली जाऊं?”
हाथ में चाय की ट्रे लिए खड़ी माई, सब सुन लेती हैं और फिर नज़दीक आकर श्री और वसन  को चाय देती हैं। दोनों अब कुछ ना बोलते हुए, अपना पूरा ध्यान चाय पर लगा लेते हैं। चाय खत्म होते ही, वसन  उठ खड़ा होता है और माई को चाय के लिए धन्यवाद व अपना ध्यान रखने को कहकर दरवाजे की ओर बढ़ जाता है। माई, श्री को उसे रोकने के लिए कहती हैं पर श्री उनकी एक नहीं सुनती। फिर वो खुद ही वसन  को आवाज़ देती हैं,
माई - “वसन .. बेटा एक मिनट इधर आओ..”
वसन  पलट कर वापस आता है और माई के पास खड़ा हो जाता है। श्री सिर उठाकर उसे देख रही है और माई उन दोनों को देख रही हैं। अब आगे क्या होगा, ये जानना मेरे और आपके लिए बेहद दिलचस्प होगा.. और जानने के लिए आपको पढ़ते रहना होगा,  श्री वसन ।

 

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