चाट भंडार पर चाट खाने के बाद श्री घर वापस आ जाती है और कुछ देर आराम करने के बाद जब वो अपने कमरे से बाहर निकलती है तो देखती है कि कीर्ति, माई के कमरे के बाहर खड़ी हुई है। श्री उसे आवाज देकर पूछती है कि सब ठीक है न.. पर कीर्ति उसे कोई जवाब नहीं देती और वहाँ से सीधे बाहर के दरवाजे से होकर बाहर चली जाती है। श्री को ये सब, कुछ सही सा नहीं लगता और वो माई को पूछने उनके पास उनके कमरे में आ गई है… और कमरे में आते ही वो देख रही है कि माई नीचे ज़मीन पर गिरी हुई हैं और उनके सिर पर चोट लगी हुई है।
श्री - माई.. माई आप ठीक हैं न?.. कैसे हुआ सब? माई.. आँखें खोलिए… माई
माई की थोड़ी-थोड़ी आँखें खुल रही हैं और वो श्री को कुछ बताने की कोशिश कर रही हैं पर श्री को कुछ भी समझ नहीं आ रहा है.. अब पहले वो माई को उठाकर, बेड पर लिटा देती है और फिर बाहर आकर आवाज़ देती है..
श्री - कोई है.. कोई है क्या? माई को चोट आई है.. जल्दी आओ..
घर में सिर्फ यश है, बाकी सब अपने-अपने काम से बाहर गए हुए हैं और श्री की आवाज़ जैसे ही यश के कानों में पड़ती है, वो भागकर माई के कमरे में आता है..
यश - क्या हुआ माई को?... बताओ न.. क्या हुआ इन्हें?
श्री - “ आइ डोंट नो .. मैं खुद यहाँ अभी 2 मिनट पहले आई और देखा तो माई यहाँ बेड के नीचे गिरी हुई थी… सुनो.. तुम ऐसा करो यहाँ माई के पास रुको, मैं डॉक्टर को लेकर आती हूँ।”
यश को माई के पास छोड़कर, श्री अपने कमरे में जाती है और अपना पर्स लेकर.. घर के बाहर आकर रिक्शा ढूंढ़ती है.. एक भी रिक्शा नहीं मिलता तो वह आगे गेट तक चलकर जाती है… और वह देखती है कि गेट के सीधे हाथ पर कीर्ति खड़ी हुई है.. उसके पास दो बैग हैं और वह पसीने से तर हो रही है। श्री के पास आकर हरिया का रिक्शा रुकता है। श्री ने हरिया को, और हरिया ने श्री को पहचान लिया है..
श्री - “ आपको मेरा एक काम करना होगा हरिया भाई जी”
हरिया - “ बताएं दीदी..”
श्री - “ माई को गिरने से, सिर पर चोट आई है.. आप प्लीज़ जाकर किसी अच्छे से डॉक्टर को ले आइए.. जितना भी खर्चा होगा मैं दे दूंगी आपको..”
माई का नाम सुनते ही हरिया झट से मान जाता है और डॉक्टर को लेने के लिए निकल जाता है। और श्री कीर्ति के सामने जाकर खड़ी हो जाती है।
श्री - “ तुम सीधे-सीधे साथ चल रही हो घर या अब भी चिल्ला-चिल्ला कर तमाशा शुरू कर दूं यहीं?”
कीर्ति मुंह बनाते हुए बोलती है,
कीर्ति - “ मेरी ट्रेन है.. मुझे स्टेशन जाना है, हटो सामने से।”
अब श्री अपनी जेब से रुमाल निकालती है और कीर्ति की ओर बढ़ती है,
श्री - “ पोंछ लो पसीना.. फिर दिखाना हिम्मत स्टेशन जाने की.. मैं 5 तक गिनूंगी, उसके बाद यदि तुम मेरे साथ नहीं आगे बढ़ी तो तुम अच्छे से जान जाओगी कि मैं कौन हूं… वो जो सुबह देखा था न तुमने कि मैंने कितने अच्छे से तुम्हें बचाया था.. उससे कई अच्छे से अभी दिखाऊंगी तुम्हारा सच सबको…… 5…, 4…, 3…, 2….”
कीर्ति आस-पास देखती है और फिर श्री को देखती है, जो इस वक्त बहुत गुस्से में है।
श्री - “ एईई..”
और श्री के एक बोलने से पहले ही कीर्ति उसे रोक देती है,
कीर्ति - “ मैं चलूंगी साथ..”
इतने में हरिया भी डॉक्टर को ले आया है.. अब सब साथ घर आ गए हैं और डॉक्टर को माई के कमरे में भेज, श्री ने कीर्ति को उसके कमरे में अंदर जाने को कहकर, कमरे का दरवाजा बाहर से लॉक कर दिया है और खुद माई के कमरे में आ गई है।
श्री - “ डॉक्टर.. माई ठीक तो हैं न?”
डॉक्टर - “ बेड के कोने से टकराने से सिर पर चोट आई है, इन्हें आराम करवाइए.. अभी मैंने दवा लगाकर बैंडेज लगा दिया है और दर्द के लिए ये कुछ दवाइयां लिख दी हैं.. आप जाकर मेडिकल से ये दवा ले आइए।”
श्री सिर हिलाकर दवाइयों का पर्चा डॉक्टर से ले लेती है और यश को मेडिकल से वो दवाइयाँ लाने को कहती है। यश और डॉक्टर अब जा चुके हैं और श्री माई के पास आकर बैठ गई है। माई की आँखें बंद हैं.. श्री उनके सिर पर हाथ फेर रही है,
श्री - “ माई, मैं आज समय से नहीं आती तो? अगर मैं बनारस ही नहीं आई होती तो? तो… कौन आता आपको देखने?.. मैं घबराई थी माई.. पर मैंने हिम्मत दिखाई और जो एक्शन्स लेने चाहिए थे.. वो लिए।”
श्री की सभी बातें माई सुन रही हैं पर आँखें अब भी बंद हैं उनकी। ये हम सब कभी न कभी करते ही हैं क्योंकि कुछ समय के लिए ही सही पर हमें अच्छा लग रहा होता है वो सब जानना जो दुनिया में हमारे सोने पर हो रहा होता है। सरल शब्दों में कहूं तो जागते हुए भी आँखें बंद कर सब सुनते रहने में, हम अपने लिए अपनों का व्यवहार देख रहे होते हैं जैसे इस वक्त माई कर रही हैं।
श्री को अब ध्यान आता है कि वो कीर्ति को कमरे में बंद कर आई थी तो वह वापस उसके पास जाती है और दरवाजा खोलकर, उसका हाथ पकड़ कर उसे माई के कमरे में ले आती है। माई ने अब आँखें खोल ली हैं…
श्री - “ देख रही हो कितनी चोट आई है उन्हें?.. क्यों किया तुमने ऐसा?.. बताओ मुझे, क्यों किया तुमने ये सब?”
कीर्ति - “… क्योंकि इस बुढ़िया ने.. तुम्हें यहाँ रखकर सब खराब कर दिया है.. हर वक्त बस श्री ऐसी, श्री वैसी.. श्री से पूछ लो, श्री करवा देगी… अरे सुबह अच्छा खासा, उस यश को गलत साबित करने वाली थी कि तुम आ गईं और आकर महान बन गईं.. हह, अब इस घर में रहना था तो तुमसे वो माफी का ढोंग भी करना पड़ा..”
ये सब सुनकर श्री को बड़ा शॉक लगता है और कीर्ति बोलना जारी रखती है,
कीर्ति - “ इस बुढ़िया को मैंने क्या मस्त कहानी बनाकर पटाया था.. तबसे ये मुझे फ्री में यहाँ रहने दे रही थी.. खाने-पीने का भी सॉर्टेड था, बस फिर तुम आ गईं.. वैसे मान तो तुम भी गईं थी न.. हाहाहाहा और दया दिखाकर पैसे भी दे दिए… हह बेवकूफ!”
ये सब सुनने के बाद श्री कीर्ति से पूछती है कि जब सब सॉर्टेड चल ही रहा था तो फिर आज उसने माई के साथ ये सब क्यों किया? उन्हें चोट क्यों पहुँचाई?
कीर्ति - “ क्योंकि आज बुढ़िया ने मुझे यहाँ कमरे में बुलाकर कहा कि मैं कमरा खाली कर दूं.., ऐसे कैसे कर दूं खाली? मैंने ऐसे कहा तो बोलती है करना तो पड़ेगा… अब तुम ही बताओ महान श्री..
क्या बुरा नहीं लगेगा जब कोई अचानक से ऐसे बोल दे तो.. हां?... अच्छा चलो, ये भी मैं मान गई.. तो मैंने इसे कहा कि कहीं और कमरा लेने के पैसे दो तो बोलती काहे के पैसे… क्या तुम महान लोग सिर्फ बैकग्राउंड में होने वाली कोई गरीब सी स्टोरी जैसे माँ बीमार है, बाप का एक पैर नहीं है.. घर में कमाने वाली अकेली लड़की है.. क्या इन सब पर ही दया दिखाते हो?..... देने चाहिए था न इसे पैसे मुझे?... फिर इसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे कमरे से बाहर निकालना चाहा… तब मेरी सटक गई, और ऐसा धक्का दिया कि जिंदगी भर याद रखेगी बुड़िया… माई, बड़ी आईं माई।”
श्री आगे बढ़ती है और कीर्ति को एक जोर का तमाचा लगाती है,
श्री - “ और तुम्हें क्या लगा कीर्ति? तुम ये सब करके आराम से दबे पांव निकल लोगी?”
कीर्ति - “ पहली बात तो ये कि मेरा नाम कोई कीर्ति वेर्टी नहीं है.. राउडी रानी बोलते हैं मुझे.. और दूसरा ये कि हां! मैंने सोचा था और कर भी रही थी पर तुम्हें तो शौक है इस बुड़िया की बिटिया बनने का… आ गईं मेरे रास्ते में..”
ये सब सुनने के बाद श्री पुलिस को बुलाने का कहकर नंबर डायल करने लगती है पर माई उसे ऐसा करने से रोक देती हैं।
माई - “ नहीं बिटिया.. मत बुलाओ पुलिस को। हम ये सब नहीं करना चाहते और तुम कीर्ति.. रानी.. जो कोई भी हो तुम, तुम चली जाओ यहाँ से। पर हां जाने से पहले एक बात सुनती जाओ.. हमें तुम्हारा गीत गाना बहुत पसंद था.. कभी-कभी जब नींद रूठकर कहीं भाग जाती थी तब तुम्हारे गीत सुनाई देते थे। जहाँ भी रहो, जैसे भी रहो.. गीत गाना नहीं छोड़ना…”
इतना कहकर माई श्री को अपनी अलमारी में से, उनका सफेद रुमाल लाने को कहती हैं। श्री वो रुमाल लेकर आती है और माई, उसमें बंधे कुछ नोट निकालकर कीर्ति को पास बुलाकर उसे दे देती हैं..और कहती हैं,
माई - “ हमने भोलेनाथ से तुम्हारे घर और तुम्हारी माँ की सलामती के लिए मन्नत मांगी थी.. ये रुपये उसी के लिए बचाकर रखे थे.. जाते-जाते, इन रुपयों का कुछ खरीद कर प्रसाद चढ़ा देना और फिर गरीबों में बांट देना..”
श्री माई को ये सब करने से रोकती है पर माई अपनी बात पूरी करते हुए कीर्ति के सिर पर हाथ रखती हैं और उसे कहती हैं,
माई - “ तुमने जो किया सो किया.. पर हमारा महादेव से ये वादा पूरा करके ही बनारस से जाना… विश्वनाथ सदा तुम्हारी रक्षा करें..”
कीर्ति माई से नज़रें नहीं मिला पाती और वो पैसे लेकर अपने कमरे में आ जाती है। फिर कमरे में से अपना सामान लेकर घर से चली जाती है। यश दवाइयाँ लेकर लौट रहा होता है और कीर्ति को घर के बाहर देखता है। यश उससे सुबह के लिए सॉरी बोलकर, माई के कमरे में आ जाता है और दवाइयाँ श्री को पकड़ाते हुए वो माई से पूछता है,
यश - “ माई, अभी मैंने कीर्ति को बाहर देखा.. उसके हाथ में बैग्स भी थे। उसे सुबह वाली बातों का ज़्यादा बुरा लग गया क्या?.. मैंने तो सॉरी भी कहा उसे अभी.. वो घर छोड़कर जा रही है क्या?”
माई यश की ओर देखकर मुस्कुराती हैं और श्री उसे पूरी बात बताती है। फिर तीनों ये तय करते हैं कि इस सब के बारे में घर में रहने वाले किसी भी अन्य सदस्य को कुछ नहीं बताएंगे।
अब श्री माई को दवा खिलाकर अपने कमरे में आ गई है और जो कुछ भी हुआ, उसके बारे में सोच रही है।
अक्का - “हैलो श्री।”
श्री - “अक्का.. कैसे हो?”
अक्का - “फाइन.. फाइन.. मैं तुम्हें कुछ बताना चाहती थी।”
श्री - “हां.. अक्का, बताओ न।”
अक्का - “वो .. असल में.. मैं..”
फोन अचानक से कट जाता है। श्री दोबारा डायल करती है तो उसकी अम्मा फोन उठाती हैं और नेटवर्क खराब होने का कहकर, उससे उसका हालचाल पूछती हैं फिर फोन रख देती हैं। ऐसे पहले फोन का कट जाना और फिर अक्का की जगह अम्मा का फोन उठाना.. पहले श्री को कुछ सही नहीं लगता और वो कुछ-कुछ सोचने लग जाती है और फिर,
श्री - “होगा कुछ तो बता देंगे.. मैं नहीं ले रही टेंशन….. उई मैं कहां यहाँ आकर लेट गई, मुझे तो आज रात का डिनर तैयार करना है..”
अब श्री हाथ-पाँव साफ करके किचन में आ गई है पर आज उसके साथ उसका हेड शेफ नहीं है।
श्री - “ हेड शेफ नहीं तो क्या हुआ.. इंटरनेट तो है..”
इस तरह, फोन ऑन कर लिया गया है, इंटरनेट पर कोई ममता आंटी कढ़ी पकौड़ा बनाना सिखा रही हैं और श्री उनके इंस्ट्रक्शन्स को फॉलो कर कुछ तो बना रही है.. कुछ तो इसलिए कहा क्योंकि वो कढ़ी पकौड़ा जैसा तो बिलकुल नहीं लग रहा है..
माई - “बिटिया.. बिटिया क्या कर रही हो?”
श्री - “अरे आप यहाँ क्यों आईं माई?.. आपको अभी आराम की ज़रूरत है।”
माई - “हम ठीक हैं बिटिया.. लाओ हम करते हैं अब।”
श्री गुस्से से माई की ओर देखती है,
श्री - “कहा न मैंने, नहीं.. वहीं रुकिए आप… और ज़्यादा है तो बस आप वहाँ बगिया में कुर्सी डालकर बैठ सकती हैं। होने वाला है डिनर तैयार.. मैं लेकर आती हूँ।”
श्री के गुस्से के आगे माई क्या ही कर सकती हैं.. सच कहूं तो, आज उनकी हालत काम करने की है भी नहीं इसलिए वो चुपचाप बगिया में आकर बैठ गईं हैं और फूलों को देखते-देखते किसी और ही दुनिया में चली गईं हैं..
राउडी रानी का पर्दाफाश कर तो श्री ने माई का दिल एक बार फिर जीत लिया है पर क्या उसका बनाया हुआ डिनर उन्हें पसंद आएगा? या सबका हाजमा आज खराब हो जाएगा.. आगे क्या-क्या और होने वाला है ये जानने के लिए आपको यहाँ बने रहना होगा, पढ़ते रहिए श्री वसन।
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