​कुमार (जैसे जुनूनी हो मोहब्बत में): "मैथिली सिर्फ़ मेरी है...सिर्फ मेरी... और आज मैं उससे शादी करके रहूंगा...आप लोगों ने मेरी मैथिली को डरा धमकाकर चुप करा दिया है। मैं सबको एक बार फिर कह रहा हूँ! अगर हमारे बीच कोई आया तो इस पूरे मंडप को मैं जला दूंगा। " 
​ 
​कुमार एक 16 साल का लड़का था। उसने जैसे ही यह कहा तो आसपास के लोग दंग रह गए और  कुमार को हैरान नज़रों से देखने लगे। ​​कुमार के आत्मविश्वास से कही बात को सुनकर मैथिली के मां-बाप के साथ-साथ बाकी गांव वाले भी हैरान हो गए थे। अगले ही पल मैथिली की मां ने अपनी बेटी को शादी के मंडप में बुलाया। कुमार ने मैथिली के माथे पर सिंदूर देखा, जिसे देखते ही उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसने चिल्ला कर कहा,​

​​कुमार (गुस्से से): "मैथिली, किसने किया यह तुम्हारे साथ... कौन है वो, तुम मुझे उसका नाम बताओ... तुम जानती हो ना कि तुम सिर्फ़ मेरी हो..."​

 

​कुमार चिल्ला रहा था कि तभी अचानक से वहां पर एक शख़्स आया, उसका चेहरा कुमार को दिख नहीं रहा था। कुमार ने मंडप से जलती लकड़ी को उठाया और अपनी जेब से एक बोतल निकाली जिसमें पेट्रोल था। वह दौड़ते हुए उस शख्स के पास गया और पेट्रोल छिड़कर उसे आग के हवाले कर दिया! उसकी इस हरकत को देख कर हर कोई हैरान हो गया था। मैथिली ने जब कुमार को ऐसा करते देखा तो उसने भी खुद को आग के हवाले कर दिया। यह देखते ही कुमार ज़ोर से चिल्ला उठा​

कुमार(जोर से चिल्लाते हुए): मैथिली!!!!! यह तुमने क्या कर दिया!!! नहीं बचाओ कोई तो बचाओ, मेरी मैथिली को बचालों  

​​कुमार हड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठ कर बैठ गया। उसने जब अपने आस-पास देखा तो पाया वह अपने बिस्तर पर पसीने से लथपथ पड़ा हुआ है। कुमार ने अपना सिर खुजाते हुए कहा, "बड़ा ही बेकार सपना था... यह कभी सच नहीं हो सकता.... मैथिली सिर्फ़ मेरी है..."

कुमार यह कह ही रहा था कि अचानक से उसकी नज़र घड़ी पर पड़ी, जिसे देखते ही कुमार परेशान हो गया, उसने खुद से कहा, "यार, आज तो बहुत देर हो गई... कहीं वह चली ना गई हो..." कहते हुए कुमार उठा और जल्दी-जल्दी पानी से अपने बाल सेट करके घर से तैयार होकर निकल गया।​

​​इस वक्त सुबह के 8 बज रहे थे। गाँव के मंदिर में काफ़ी भीड़ थी। सारे लोग लाइन में खड़े होकर धक्का-मुक्की कर रहे थे, तभी पंडित जी ने सभी पर चिल्लाते हुए कहा, "शांत हो जाइए आप सब... भगवान के दर्शन आपको एक-एक करके करने को मिलेंगे... इस तरह शोर करने से कुछ नहीं होगा...." तभी गांव का एक पहलवान-टाइप दिखने वाला आदमी आगे आकर खीजते हुए बोला, "अरे जब आपको पता है की इतनी भीड़ होती है हर बार तो आप व्यवस्था सही क्यों नहीं करते?” पहलवान की बात पर पंडित जी थोड़ा खीज गए और वह उसे जवाब देने ही वाले थे कि वहां पर एक मीठी सी आवाज़ सुनाई पड़ी,​

​​मैथिली (मंत्र मुग्ध कर देने वाली आवाज़ में): " 
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।"​ 

​इस आवाज़ को सुनते ही सारे लोग चुपचाप लाइन में खड़े हो गए और शिव जी की मूर्ति के सामने खड़ी लड़की को देखने लगे - यह कोई और नहीं बल्कि मैथिली थी। वह जितनी सुंदर थी उसकी आवाज उतनी ही मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी। थोड़ी ही देर में मैथिली हाथ में प्रसाद की थाल लिए मंदिर से बाहर आकर सभी को प्रसाद देने लगी, ठीक उसी वक्त कुमार दौड़ता हुआ वहां आया। उसने जैसे ही मैथिली को देखा, वह अपनी पलकें झपकाना भूल गया। मैथिली ने आज लाल रंग की साड़ी पहनी थी, और हाथों में मैचिंग चूड़ियां, खनक रही थीं। कुमार ने मैथिली को देखते ही मन ही मन कहा,  ‘मेरी मैथिली गांव में सबसे सुंदर है.... उस पर साड़ी कितनी अच्छी लगती है…’


​कुमार यह सब ख़ुद से कह ही रहा था कि मैथिली ने उसे देखते हुए कहा,​ ‘’कुमार…. तुम अभी तक तैयार नहीं हुए हो… स्कूल नहीं जाना है क्या…आज अगर लेट आए न तो क्लास में घुसने नहीं दूँगी” 

​​कुमार मैथिली की बात सुनते ही हड़बड़ा गया, उसे समझ नहीं आया की वो क्या जवाब दे, मैथिली उसे ही घूर रही थी कि तभी कुमार ने दिमाग़ लगाते हुए कहा, 

​​कुमार (झिझकते हुए): “मैथिली… मेरा मतलब मैम…. मैं मंदिर में पूजा करने आया था…. अभी घर जाकर तैयार होकर स्कूल ही आऊँगा वो भी टाइम से पहले। ” 
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​​कुमार का जवाब सुन मैथिली मुस्कुराती हुई कुमार के बगल से निकली, इसी बीच उसके गजरे का एक फूल ज़मीन पर गिर गया। कुमार ने देखा पीछे आ रहे पंडित जी उस फूल पर पैर रखने ही वाले थे कि कुमार ने उनका पैर पकड़ लिया। पंडित जी ने कुमार की इस हरकत को देख उससे पूछा, "लड़के... तुमने मेरा पैर क्यों पकड़ा, नीचे प्रसाद का दाना नीचे गिरा हुआ था क्या?" इस पर कुमार ने ज़मीन से उस फूल को उठाते हुए कहा,​

कुमार (फूल को देखते हुए, जैसे प्यार में डूब हो): "प्रसाद से भी ज़्यादा कीमती है यह पंडित जी... आपको समझ नहीं आएगा...(Pause)... वह तो सही समय पर मेरी नज़र पड़ गई, नहीं तो आप इस अनमोल फूल को कुचल देते! जानते है कितना बड़ा अनर्थ हो सकता था! आपकी जान भी जा सकती थी!!! ...." 
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​इतना कहते हुए कुमार उस फूल को लेकर जाने लगा, पंडित जी कुमार की बातें सुन कर सोच में पड़ गए थे। इधर दूसरी तरफ़ थोड़ी ही देर में कुमार अपने कमरे के अंदर आया और अपने स्टडी टेबल के पास गया। टेबल के ऊपर चादर बिछी थी जो उस टेबल से काफी बड़ी इसलिए वह नीचे तक लटक रही थी। कुमार ने तबेल के नीचे से एक पेटी निकाली जिसमे 3 ताले लगे हुए थे। कुमार ने अपने में बंधी चाबियों को निकाल और उस पेटी को खोला। उस पेटी में मैथिली की कई सारी तस्वीरे थी और बहुत ही अजीब सामान भी था। मैथिली, कुमार की टीचर थी, उसे मैथिली से प्यार कब और कैसे हुआ और वह कैसे जुनून बन गया, इसके पीछे भी एक कहानी है, एक प्यारी सी  कहानी, जिसमें छिपा है एक दर्दनाक हादसा।​ कुमार ने उस फूल को उस पेटी में रखते हुए ख़ुद से कहा,​


​कुमार (मुस्कुराते हुए): "आज एक और निशानी मुझे मिल गई मैथिली... देखना एक दिन आएगा, जब मैं तुम्हें यह सारी चीज़ें दिखाऊंगा, तब तुम्हें पता चलेगा कि इस दुनिया में मुझसे ज़्यादा प्यार तुम्हें कोई नहीं कर सकता... कोई नहीं….. दुनिया के सामने मैं तुम्हारा स्टूडेंट हूं और तुम मेरी टीचर। एक दिन आएगा जब हमारा यह रिश्ता बदलेगा और हम पट्टी पत्नी कहलाएंगे। 


​यह कहते हुए कुमार पेटी में रखे चूड़ी के कुछ टुकड़ों को देख कर मुस्कुराने लगा। उस पेटी में एक फटी हुई चुनरी भी रखी हुई थी। चुनरी फटी हुई थी फिर भी कुमार ने उसे बहुत ही संभाल कर रखा था। अचानक से कुमार को याद आया कि स्कूल जाने में उसे देरी हो गई है। उसने जल्दी से अपना बस्ता लिया और तेज़ी से घर से निकला, क्योंकि आज कुमार का स्कूल जाना बहुत जरूरी था, अपने लिए नहीं... बल्कि कुछ और कारण से।​

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इधर दूसरी तरफ़ मैथिली भी जल्दी-जल्दी स्कूल के अंदर आई, तभी उसने देखा उसकी सबसे अच्छी दोस्त रीमा गेट पर ही खड़ी थी। मैथिली को देखते ही रीमा ने हड़बड़ाकर कहा, "कहां रह गई थी तू... जीतेंद्र सर तुझे ही ढूंढ रहे हैं...."​


​मैथिली (हांफते हुए): "हां, वह आज मंदिर में देरी हो गई.... आओ चलते हैं…." 


​यह कहते हुए मैथिली, रीमा के साथ स्कूल के मैदान की ओर जाने लगी। मैथिली पढ़ाने के साथ-साथ स्कूल में लड़कियों को बैडमिंटन भी सिखाती थी। बैडमिंटन की प्रैक्टिस स्कूल के बाहर ही एक छोटे से मैदान में होती थी। कुछ ही घंटों में बैडमिंटन की प्रैक्टिस शुरू हो गई, कई सारी लड़कियां आज ट्रायल देने आई थीं। स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर का नाम था जीतेंद्र और सभी लोग यह जानते थे की जीतेंद्र मैथिली को पसंद करता था। प्रैक्टिस शुरू होने से ठीक पहले ही कुमार भी वहाँ पहुँच गया। वह मैदान की ओर जा ही रहा था कि एक टीचर ने उसे यह कह कर रोक लिया कि यह वक्त लड़कियों के प्रैक्टिस का है, कोई लड़का उधर नहीं जा सकता, इस बात पर कुमार ने तपाक से कहा,​


​कुमार (अपने अंदाज़ में मस्तमौला होते हुए): "वो मुझे मैथिली… मतलब मैथिली मैम ने बुलाया था कुछ किताब उनसे लेना है…." 

कुमार का यह बहाना उस व्यक्ति को समझ में आ गया था। उसने तुरंत ही जवाब देते हुए कहा ​"मुझसे बहस यानि ज़िंदगी तहस-नहस... जाओ अपने क्लास में... वहां बात करना मैम से...बीटा अगर तू ग्राउन्ड के आस पास भी दिखा ना तो बैडमिंटन से पिटाई कर दूंगा तेरी, समझ! चल निकल यहाँ से।" 

​​कुमार (धीरे से बड़बड़ाते हुए): "ऐसा है बुड्ढे, वह तो आज मेरा मूड ठीक है, नहीं तो बैडमिंटन खेलना मैं भी जानता हूँ, तेरी मुंडी ऐसी उड़ाऊँगा की नीचे नहीं आ पाएगी कभी।" 


अगले ही पल कुमार को एक आइडिया आया, वह जाकर सामने एक पेड़ के ऊपर चढ़ गया, जहां से मैदान साफ़-साफ़ दिखाई देता था। ​कुमार मैथिली को खेलता हुआ देखकर खुश हो रहा था कि अचानक से उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। उसने देखा सामने मैदान में मैथिली का दोस्त और स्पोर्ट्स टीचर जीतेंद्र, मैथिली का हाथ पकड़कर उसके साथ मुस्कुराते हुए बातें कर रहा है। "

कुमार: ये मास्टर जीतू मेरी मैथिली के पीछे हाथ-मुँह, नाक-कान सब धो कर पड़ गया है…..इसलिए देश आगे स्पोर्ट्स में नहीं बढ़ पा रहा है! ध्यान तो कही और ही है ना इन लोगों का"

कहते हुए कुमार पेड़ की डाली पर और आगे बढ़ने लगा, ताकि वह उनकी बातें सुन सके। तभी उसके कानों में थोड़ा कुछ सुनाई पड़ा, जब जीतेंद्र ने हंसते हुए कहा, "

जीतेंद्र: मैथिली... अगले हफ्ते से स्कूल में स्पोर्ट्स प्रतियोगिता शुरू हो जाएगा….. मुझे उम्मीद है, बैडमिंटन में हर बार की तरह मेडल हमारे स्कूल को ही मिलेगा…."​


​मैथिली (मुस्कुरा कर): "हां सर... मैं अपनी जान लगा कर बच्चों को प्रैक्टिस कराऊंगी…..."​

​मैथिली के इतना कहने के बाद जीतेंद्र ने हंसते हुए एक मजाकिया लहजे में उससे कहा, "वह सब तो ठीक है... पर तुम मुझे सर मत बोला करो यार..."

पेड़ की डाली पर खड़ा कुमार यह सब बातें सुनकर जलन की आग में दहकने लगा। उसे यह एहसास नहीं था कि डाली कमजोर है। कुमार जैसे ही आगे खिसका, डाली टूटने की आवाज़ आई और वह धड़ाम से नीचे गिर गया। पेड़ से अचानक कुमार को गिरता देख मैथिली और रीमा बुरी तरह से डर गईं! उनको चिल्लाते देख जीतेंद्र ने दोनों को वहां से जाने को कहा। मैथिली ने कुमार का चेहरा नहीं देखा, उसे चिंता हो रही थी कि जो शख़्स पेड़ से गिरा है, उसे कहीं चोट तो नहीं लगी है, मगर जीतेंद्र के बार-बार कहने पर रीमा, मैथिली को वहां से ले जाने लगी। मैथिली को वहां से जाता देख कुमार ने अपना सिर पकड़ लिया। जीतेंद्र ने उसे देखते हुए चौंक कर पूछा, "बच्चे तुम ठीक हो... मैं डॉक्टर को बुलाऊं....?"​


​कुमार (बड़बड़ाकर, धीरे से): “पहले ठीक था अब नहीं हूँ... और जिससे मैं ठीक होता... तुमने उसे भगा दिया....कैसे खेल के टीचर हो! मेरा खेल ही सारा बिगाड़ दिया”

​कुमार को बड़बड़ाता देख जीतेंद्र को कुछ समझ नहीं आया।  वह कुमार को उठाने ही वाला था कि उसने रुकने का इशारा किया और खुद धूल झाड़ता हुआ उठ गया। कुमार ने तभी जीतेंद्र के दाहिने हाथ को देखा, जिससे उसने मैथिली से हाथ मिलाया था और कहा


​कुमार (अजीब टोन में): "जाकर हाथ अच्छे से धो लेना... और हां मैं बच्चा नहीं हूं, ठीक उसी तरह जैसे आप मैथिली मैम के लिए सर नहीं हैं।" 

​इतना कहते हुए कुमार वहां से चला गया। जीतेंद्र अब भी अपने सिर पर हाथ रखे खड़ा सोच रहा था कि आखिर उस लड़के के कहने का मतलब क्या था? ​ थोड़े ही दिनों में वह दिन आ गया, जिसका इंतज़ार मैथिली और जीतेंद्र को बेसब्री से था। कुमार भी काफी एक्साइटेड था, क्योंकि ऐसे समारोह में मैथिली स्टेज पर anchoring भी करती थी। इवेंट वाले दिन कुमार टाइम से पहले ही स्कूल पहुंच गया और गेट के बाहर खड़ा होकर, मैथिली के आने का इंतजार करने लगा। 

​​कुमार (बेसब्री से): “आज तो मैथिली से हाथ मिला कर सबसे पहले मैं ही उसे बेस्ट ऑफ लक कहूंगा…”

यही बात मन में सोचते हुए कुमार, मैथिली के आने का इंतजार करने लगा। उसे एक-एक पल घंटों के जैसे लग रहे थे, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मैथिली इतना देर क्यों कर रही है? "लड़के तुम यहां इस तरह गेट पर खड़े होकर क्या कर रहे हो… अंदर मैदान में जाओ, स्पोर्ट्स इवेंट शुरू होने वाला है।" एक टीचर ने जैसे ही यह कहा, कुमार चौंक गया, पर वह बेशर्मों की तरह वहीं खड़ा रहा। उसे समझ नहीं आया कि आखिर मैथिली अभी तक आई क्यों नहीं।  उसने मन ही मन सोचा,

कुमार: "मैथिली कहीं फिर से मंदिर तो नहीं चली गई… अगर वह सही वक्त पर नहीं आएगी तो प्रॉब्लम हो जाएगी…"

​काफी देर तक सोचने के बाद अचानक से कुमार को एक आइडिया सूझा। वह स्कूल की पिछली दीवार को फांदकर स्कूल से बाहर आ गया और तेज़ी से भागते हुए अपने मोहल्ले में आया। मैथिली के घर बड़ा सा ताला देख वह हक्का-बक्का रह गया। पूरे दो घंटे तक धूप में भटकने के बाद कुमार थका हारा, वापस स्कूल पहुंचा, तो इवेंट खत्म हो चुका था। “मैथिली कहां हो तुम?” कहते हुए कुमार आगे बढ़ा ही था कि अचानक से उसकी नज़र किनारे की तरफ़ गई। ​

​​कुमार (चौंक कर): “ये कैसे हो सकता है…. ये मैं क्या देख रहा हूँ! नहीं! नहीं!”​

​​कुमार ने वहां ऐसा कुछ देखा, कि उसकी आंखें हैरानी से फटी की फटी रह गई। ऐसा क्या देख लिया कुमार ने वहाँ? 

जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग। 

 

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