कुमार ने जैसे ही स्कूल के पार्किंग एरिया की तरफ़ देखा, उसे सामने मैथिली दिखी जो जीतेंद्र के साथ खिलखिला कर हंसते हुए बात कर रही थी। "कम ऑन जीतेंद्र तुम भी बड़े फनी हो...." मैथिली की ये बात कुमार के कानों में जैसे ही पड़ी, उसका पूरा शरीर गुस्से से कांपने लगा।
कुमार(मन में, गुस्से से) : "ये कैसे हो सकता है….कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा….(Pause)... मैं आज सुबह से मैथिली के लिए परेशान हो रहा हूं... और ये जीतेंद्र यहां उसे अपनी बातों से हंसा रहा है... "
कुमार अगले ही पल जाकर एक दीवार के पीछे छुप गया, जहां से वो मैथिली और जीतेंद्र की बातें अच्छे से सुन सकता था। उसने मैथिली को जीतेंद्र से कहते हुए सुना,
मैथिली (ख़ुशी से) : "आज मुझे बैडमिंटन में गोल्ड मेडल मिला है, इसकी वजह तुम हो... तुमने अगर मुझे कल रात को स्कूल रुक कर प्रैक्टिस करने को नहीं कहा होता तो आज मैं हड़बड़ाती हुई घर से आती और गेम पर फोकस नहीं कर पाती..."
मैथिली की बात सुनते ही कुमार को एहसास हुआ कि मैथिली रात को स्कूल में ही रुक गई थी। कुमार को गुस्सा तो आ रहा था मगर वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था। वो मन ही मन बस यही मना रहा था कि जल्द से जल्द जीतेंद्र, मैथिली से दूर जाए ताकि कुमार मैथिली के पास जाकर बात कर सके। अचानक जीतेंद्र ने मैथिली को आंख बंद करने को कहा, मैथिली को पहले हैरानी हुई, मगर उसने जैसे ही अपनी आँखें बंद की, जीतेंद्र ने अपनी जेब से एक ब्रेसलेट निकालते हुए कहा, "ये मेरी तरफ़ से एक छोटा सा गिफ्ट है, मुझे लगता है तुम्हें पसंद आएगा!
मैथिली ने जैसे ही ब्रेसलेट को देखा, वो खुशी से झूम उठी।
मैथिली (खुशी से) : "थैंक यू जीतेंद्र!... सच में ये बहुत प्यारा है...."
मैथिली और जीतेंद्र जहां एक तरफ़ खुश थे, वहीं कुमार दीवार के पीछे गुस्से से लाल रहा था। उसे जीतेंद्र का मैथिली को ब्रेसलेट देना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वो अपने आप में ही अभी झल्ला रहा था कि उसके कानों में जीतेंद्र की आवाज़ पड़ी, "
जीतेंद्र: मैथिली अगर तुम्हें ठीक लगे तो क्या हम स्कूल के बाहर कहीं मिल सकते हैं..."
कुमार ने जैसे ही ये सुना, उसके कान खड़े हो गए, वो दीवार के पीछे से झांक कर मैथिली के चेहरे को देखने लगा। उसने ख़ुद से कहा, "नहीं मैथिली...इस जीतेंद्र को मना कर दो... ये तुम्हारे लिए ठीक नहीं है...(Pause)... मुझे पता है मैथिली जाने से मना कर देगी....वह ऐसी लड़की नहीं है!"
कुमार अभी ये सब बड़बड़ा ही रहा था कि अचानक से मैथिली के मुंह से निकला, "जीतेंद्र... गांव में लोग देख लेंगे...." मैथिली के मुंह से इतना निकला ही था कि कुमार अपनी जगह पर खुशी से झूमने लगा कि तभी उसके कानों में मैथिली की आवाज़ फिर से पड़ी,
मैथिली(सोचते हुए) : "एक काम कर सकते हैं, गांव के बाहर जो कैफै है, वहां हम मिल सकते हैं।"
मैथिली का जवाब सुनते ही जीतेंद्र का दिल बाग बाग हो गया, वहीं कुमार जो अब तक खुश हो रहा था, उसकी खुशियों पर मैथिली ने पानी फेर दिया था। कुमार को यकीन नहीं हो रहा था कि आख़िर मैथिली कैसे जीतेंद्र को हां कह सकती है। कुमार एक घायल आशिक की तरह महसूस कर रहा था, उसने गुस्से में दीवार पर एक मुक्का दे मारा और उसके हाथों से ख़ून बहने लगा। कुमार ने कांपते हुए कहा, (गुस्से और जुनून से) : "ये मैं नहीं होने दूंगा... मैथिली तुम्हारे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा, मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता....(Pause)... इस जीतेंद्र का कुछ करना पड़ेगा अब”
यह कहते हुए कुमार ने एक पत्थर उठाया और उन दोनों की ओर फेंक दिया। पत्थर सीधा जीतेंद्र के सिर पर जाकर लगा और यह देखते ही मैथिली चीख उठी। उसने घबराते हुए इधर उधर देखा पर कोई नजर नहीं आया। हल्का खून जीतेंद्र के सिर से बहने लगा। वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और जेब से रुमाल निकाल कर अपने सिर पर लगा लिया। मैथिली काफी परेशान हो गई और उसने जीतेंद्र से डॉक्टर के यहाँ जाने को कहा। यह सब देख कर कुमार एक कोने में खड़ा हंस रहा था।
रात के क़रीब 9 बज रहे थे, गाँव में सन्नाटा पसरा हुआ था, मगर इसी सन्नाटे में कोई बेचैनी से छटपटा रहा था। तभी एक भारी आवाज़ आई, “शशशशश!!.... किसी को बताना मत…मैं जैसा कहता हूं, वैसा करो…” कहते हुए वो शख़्स हंसने लगा। ठीक उसी वक्त एक छोटे बच्चे के चीखने की आवाज़ आई, “बचाओ…. मुझे कोई बचाओ…मुझे यहां नहीं रहना है…मुझे इस घर से दूर ले चलो…बचाओ….”
कुमार हड़बड़ाते हुए अपने बिस्तर से उठ गया। उसने जैसे ही अपने आस पास देखा, वो अपने कमरे में बैठा हुआ था। उसकी सांस फूल रही थी, कुमार ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा, “कब तक…कब तक ये सब मेरे सपनों में आता रहेगा…हफ़्ते में कई बार ऐसा होता है, जब ये सपना मुझे आता है और मैं सो नहीं पाता….(Pause)... आंख बंद करते ही मुझे वो सब दिखने लगता है….”
कुमार का गला भर चुका था, उसे जब चैन नहीं मिला तो उसने वह पेटी बाहर निकाली जिसमे मैथिली का सामान इकट्ठा किया हुआ था। वह उसे देखने लगा और मैथिली की एक तस्वीर निकाल ली
कुमार(धीरे से) : “अगर तुम नहीं होती तो क्या होता मैथिली….मेरे उस दर्द को अगर कोई मिटा सकता है तो वो है तुम्हारा प्यार…सिर्फ़ तुम्हारा प्यार मैथिली….एक बार हमारी शादी हो जाए फिर ये भयानक सपने भी आना बंद हो जाएंगे। ”
कुमार कह ही रहा था कि अचानक से उसे जीतेंद्र और मैथिली बातें याद आ गई। कुमार ने अगले ही पल मुट्ठियां भींचते हुए कहा, “मैं जीतेंद्र को मेरी मैथिली के पास नहीं जाने दूंगा.. मुझे कुछ करना होगा….” इतना कहते हुए कुमार बिस्तर से उठ गया और कुछ योजना बनाने लगा। वो जानता था कि जीतेंद्र कल ज़रूर कुछ ना कुछ ऐसा करेगा मैथिली के साथ कि मैथिली ना चाहते हुए भी कुमार से दूर हो जाएगी।
अगले दिन शाम के करीब 5 बजे मैथिली और जीतेंद्र के आने से पहले ही कुमार उस कैफै के पास पहुंच गया। उसने अपने सिर पर एक कैप पहन रखा था और अपना हुलिया पूरी तरह से बदल लिया था। उसे देख कोई भी नहीं कह सकता था कि वो कुमार था। उसे सामने से मैथिली और जीतेंद्र आते हुए दिखे। जीतेंद्र, मैथिली के एकदम नज़दीक होकर चल रहा था। दोनों के हाथ एक दूसरे से टकरा रहे थे, जिसे देखकर कुमार का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। मैथिली हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन कर आई थी, जिसे देख कुमार एक पल के लिए अपना सारा गुस्सा भूल गया। वो जीतेंद्र और मैथिली को हंसी मज़ाक करते हुए देखने लगा। कुमार ने मैथिली को देखते हुए ख़ुद से कहा, "कितनी प्यारी हंसी है मेरी मैथिली की, वो जब भी बात करती है, ऐसा लगता है कि किसी ने कानों में मिश्री घोल दी हो...."
यह कहते हुए कुमार कुछ सोचने लगा, जिसके तुरंत बाद, उसके चेहरे पर हल्का सा दर्द उभर आया। उसने मन ही मन सोचा, "
कुमार (थोड़ा रोते हुए): बचपन में मेरे मां बाबा ने ना तो मुझे समझा और ना मेरे प्यार को.... और आज मैंने जिससे प्यार किया....उसे कोई और मुझसे दूर ले जाने की तैयारी कर रहा है..."
इस ख्याल के आते ही कुमार की मुट्ठियां भींच गई, उसने अपने आंसुओं को पोंछते हुए ख़ुद से कहा, ‘नहीं.... मैं इस जीतेंद्र को अपने प्यार को छीनने नहीं दूंगा.... मैथिली से मैं प्यार करता हूं...वो मेरी है.... सिर्फ़ मेरी.…’
कहते कहते कुमार की आंखों में एक पागलपन दिखाई देने लगा, उसे इस वक्त सिर्फ़ मैथिली ही दिखाई दे रही थी। इधर दूसरी तरफ़ मैथिली और जीतेंद्र बैठ कर आपस में बातें कर रहे थे। मैथिली, जीतेंद्र को अपने बचपन की कहानी सुना रही थी। जीतेंद्र तल्लीन होकर मैथिली को देखते हुए, उसकी हर बात सुन रहा था। वहीं पेड़ के पीछे से कुमार, जीतेंद्र को देख कर गुस्से की आग में दहक रहा था। थोड़ी ही देर में, जैसे ही मैथिली ने कहना ख़त्म किया, जीतेंद्र ने उसके ब्रेसलेट को देखते हुए कहा, "वैसे ये तुम्हारी कलाई पर काफी खूबसूरत लग रहा है" कहते हुए जीतेंद्र ने मैथिली का हाथ पकड़ लिया।
जीतेंद्र ने जब देखा कि किसी की नज़र उन पर नहीं है, तो वो मैथिली के और पास आ गया। उसने मैथिली के बालों को कान के पीछे करते हुए कहा, "तुम आज वाकई बहुत खुबसूरत लग रही हो... और मैं तुम्हारा जितना शुक्रिया अदा करूं... कम है... क्योंकि तुम यहां तक मेरे कहने पर आई...."
जीतेंद्र की बातों को सुन कर मैथिली बस मुस्कुरा रही थी। मैथिली की नज़रें झुक गई थी, उसने धीरे से कहा, "जीतेंद्र आस पास लोग हैं...." मैथिली की इस बात पर जीतेंद्र ने उसे कहा, "यहां हमारी तरह और भी कई कपल्स आए हैं..." जीतेंद्र के मुंह से कपल शब्द सुन कर मैथिली थोड़ी हैरान हुई। उसने जीतेंद्र की तरफ देखकर कहा, "हां....मगर हम तो कपल नहीं है.... हम दोनों एक स्कूल में साथ काम करने वाले लोग है! समझे मिस्टर स्पोर्ट्स टीचर।
जीतेंद्र ने मैथिली को प्यार से ज़वाब देते हुए कहा, "मैथिली...तुमने सुना नहीं है कि एक लड़का और लड़की कभी भी दोस्त नहीं हो सकते....”
जीतेंद्र की इस बात को सुन कर मैथिली खिलखिला कर हंस पड़ी। जीतेंद्र ने अगले ही पल अपने दाहिने हाथ से मैथिली के गाल को छुआ, इधर दूसरी तरफ़ पेड़ के पीछे खड़ा कुमार ने जब ये देखा, वो बर्दाश्त नहीं कर पाया। उसने अपने आस पास देखा और जब कोई नहीं दिखा तो उसने अपनी जेब से 2 अंडे निकाले। एक कुटिल मुस्कान के साथ उसने वह अंडे मैथिली और जीतेंद्र की ओर फेंक दिए और छुप गया। अंडे उन दोनों में से किसी को लगे नहीं पर दोनों ही चौंक कर खड़े हो गए। जीतेंद्र ने चारों तरफ देखा पर कोई दिखाई नहीं दिया तबही वहाँ वेटर ने आकर उससे पूछा की क्या उन्हें कुछ चाहिए? जिसपे जीतेंद्र ने कहा की किसी ने यहाँ उनपर अंडे फेंके है। इस बात को सुनते ही वेटर थोड़ा हैरान हो गया और माफी मांगते हुए उन दोनों से अंदर जाकर बैठने को कहा। कुमार का प्लान काम कर गया क्योंकि अंदर काफी सारे लोग थे और ऐसे भीड़ में जीतेंद्र इस तरह मैथिली के करीब आने की कोशिश नहीं कर सकता था।
अंदर हल्का हल्का म्यूजिक चल रहा था। एक बार फिर जीतेंद्र ने महोल को बदलते हुए मैथिली से कहा “मिस मैथिली माथुर…. क्या आप मेरे साथ डांस करना पसंद करेंगी….” मैथिली भी मना नहीं कर पाई। दोनों वहीं पर एक दूजे का हाथ पकड़ कर डांस करने लगे। कुमार ये सब देखे जा रहा था। देखते ही देखते जीतेंद्र मैथिली के और क़रीब जाने लगा। इधर पेड़ के पीछे खड़ा कुमार अब बर्दाश्त नहीं कर पाया। "इसकी ये मजाल कि इसने अपने गंदे हाथ से मेरी मैथिली को छुआ…” ख़ुद में बड़बड़ाते हुए कुमार ने अपनी कैप को सही किया, ताकि उसका चेहरा दिखाई ना दे। उसने अपनी जेब से कुछ निकाल और उन दोनों की तरफ बढ़ने लगा। क्या करने वाला है कुमार अब?
जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग।
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