मैथिली के क़रीब जीतेंद्र को जाता देख, कुमार से रहा नहीं गया। उसने अपनी जेब से एक कांच का टुकड़ा निकाल और वह उन दोनों की तरफ गुस्से से जाने लगा। वह आगे बढ़ ही रहा था कि अचानक से उसे पीछे से एक आवाज़ आई, ​"​​​रुक जाओ...क्या कर रहे हो ये?" ​​  

​​​इस आवाज़ को सुनते ही कुमार के कदम अपने आप रुक गए, उसने जब पीछे देखा तो वह हैरान रह गया। उसके सामने ठीक उसी के जैसा एक शख़्स खड़ा था, उसकी आवाज़ भी कुमार जैसी ही थी। वो अभी कुछ कहता कि इससे पहले ही उस शख़्स ने बताया कि उसे घबराने की ज़रूरत नहीं है, वो उसी का अंतर्मन है, जो उसे यहां समझाने आया है। ये सुनते ही कुमार ने तपाक से सवाल किया,​​ "तुम मुझे यहां समझाने आए हो...और वहाँ वो जीतेंद्र मेरी मैथिली के साथ डांस कर रहा है। ऐसे ही चलता रहा तो वह कल उससे शादी भी कर लेगा और मैं यहाँ तुम्हारे चक्कर में बैठा रह जाऊंगा।" ​​  

​​​कुमार इतना कह कर चुप हुआ ही था कि उसके अंतर्मन ने कुमार को समझाते हुए कहा, ​" तुम्हें क्या लगता है, तुम अभी जो करने जा रहे हो, उससे मैथिली तुम्हारे प्यार में गिर जाएगी.....(Pause)... ऐसा कुछ नहीं होगा, वो तुम्हें एक गुंडा समझ लेगी और ख़ुद ही तुमसे दूर हो जाएगी.... इसलिए शांत दिमाग़ से एक बार सोचो कि तुम्हें क्या करना चाहिए, जवाब तुम्हारे अंदर ही है...."​​  

​​​कुमार ने जब अपने अंतर्मन की बात सुनी, वो थोड़ा शांत हुआ और सोचने लगा। काफी देर तक सोचने के बाद जब कुमार ने आस पास देखा, तो वहाँ कोई नहीं था। ​"​​​कहां गया वो...मुझे इस तरह अकेला छोड़ कर....अब आगे क्या करूं मैं?"​​​​ कहते हुए कुमार अपने अंतर्मन को इधर उधर देखने लगा, ठीक उसी वक्त उसके अंदर से आवाज़ आई, ​"​​​जवाब तुम्हारे अंदर है कुमार.... तुम्हें शांत होने की ज़रूरत है।​​"  ​​​कुमार अपने आप को शांत करने की कोशिश करने लगा। उसे अपने अतीत की कुछ बातें याद आने लगी,

​रात के क़रीब 8 बज रहे थे, कुमार अपने घर में अकेला दरवाज़े के पास अंधेरे में बैठा हुआ था। ​​  

​​कुमार: ​"मेरे सभी दोस्तों को उसके मां बाबा समय देते हैं, उनके साथ खेलते हैं, लेकिन मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं होता...क्या मेरे मां बाबा मुझसे प्यार नहीं करते...."​​​  

​​कुछ इस तरह का ख़्याल कुमार के मन में आ रहा था। थोड़ी ही देर में उसे सामने से उसके मां बाबा आते हुए दिखाई पड़े, जिन्हें देखते ही कुमार के चेहरे पर खुशी आ गई और वो दौड़ते हुए दोनों के पास गया। ​​  

​​​कुमार(उछलते हुए) : "मां बाबा...आपने कितनी देर कर दी...आपको पता है, आज दिन भर मैंने क्या क्या किया... मैंने न..."​​  

​​​कुमार आगे कहता कि इससे पहले ही उसके बाबा ने उसे डांटते हुए कहा​, "​​​घर आया नहीं कि तेरी दिन भर की कहानी शुरू हो गई, देख नहीं रहा है हम लोग दिन भर काम करके थक गए हैं।"​​ ​कुमार को समझ नहीं आया कि आख़िर उसकी क्या गलती है, वो अपनी मां के पास गया। उसकी मां ने भी उस पर चिल्लाते हुए कहा,​​  ​"ये घर पर इतना अंधेरा क्यों है, तुझे कितनी बार समझाया है कि शाम होते ही घर में बत्ती जला दिया कर...दिन भर मस्ती करता रहता है...."​​  ​अपने मां बाबा को ऐसे देखकर कुमार बुरी तरह से सहम गया। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वो कुछ कहे। ​​​​काफ़ी देर हो जाने के बाद, कुमार जब खाना खाने बैठा तो उसने अपने बाबा के साथ एक ही थाली में खाने की ज़िद की, मगर तभी कुमार के बाबा ने उस पर चिल्लाते हुए कहा, ​​​​"कुमार क्या बचपना है ये...आखिर कब अकल आएगी तुझे? मैं तुझे अभी ही बता दे रहा हूं कि हम गांव के ग़रीब लोग हैं, अगर तुझे अपनी ज़िंदगी को सही ढंग से जीना है, तो तुझे अभी से ही जिम्मेदार बनना होगा... नहीं तो हमारी तरह एक दिन कोयले के खदान में काम करते करते ऐसे ही पड़े रह जाएगा।"​​  ​​​

कुमार अभी ये सब बातें सुन ही रहा था कि उसकी मां ने उसे समझाते हुए कहा,​​ ​"बेटा तू तो देख ही रहा है, हम दोनों दिन भर जानवरों की तरह खदान में काम करते हैं, और उससे जो पैसा मिलता है, आधा कर्ज़ चुकाने में लग जाता है। उसके बाद ही हमें दो वक्त की रोटी नसीब होती है, ऐसे में हम दोनों नहीं चाहते कि बड़े होकर तेरी भी जिंदगी ऐसे ही गुजरे, इसलिए तुझे अभी से ही जिम्मेदार बनना होगा, बाकी बच्चों से अलग बनना होगा..."​​  

​​​कुमार को अपनी मां की बात का मतलब समझ आ रहा था, मगर उसने ज़िद करते हुए कहा,​​ "नहीं...मुझे कुछ नहीं पता... जैसे मेरे दोस्तों के मां बाप उनके साथ रहते हैं, उन्हें घुमाने ले जाते हैं, मुझे भी…”​​  

 

​​​"कुमार... बकवास बंद करो और खाना खा कर सोने जाओ...."​​​​ कुमार के बाबा ने जैसे ही ये बात चिल्ला कर कही तो वह सहम गया। वो अपने मां बाबा से कुछ और कहना चाहता मगर उसकी अब हिम्मत नहीं हो रही थी। कुमार का अपने मां बाबा से वक्त मांगने का कारण कुछ और ही था, उसे उन्हें कुछ बहुत जरूरी बात बताना थी। उसने खुद से कहा,​​  

​​​कुमार(मन में) : “मैं कैसे कहूं अपने मां बाबा से….(Pause)... बाबा से तो मुझे कोई उम्मीद नहीं है…. वो भी बाकी मर्दों की तरह ही हैं…. मां से मुझे उम्मीद है, मगर मां कभी भी मुझपर ध्यान नहीं देती…वो हमेशा बाबा की बात सुनती है…”​​  

​​​काफ़ी देर तक कुमार मन ही मन यही सब सोचता रहा और चुप चाप खाना खाने के बाद, अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गया। उसकी आंखों के सामने बार-बार अपने मां का चेहरा आ रहा था, कुमार इस वक्त काफ़ी ईमोशनल हो चुका था। उसने ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(मन में खीजते हुए) : "मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ गलत कहा है…मां बाबा को क्या पता…मेरे साथ क्या होता है…. मुझे किस दर्द के साथ जीना पड़ता है……(Pause).... जब मैं बड़ा हो जाऊंगा, तब मैं अलग तरह का इंसान बनूंगा, मैं दुनिया के बाकी मर्दो की तरह नहीं बनूंगा…. और एक दिन आयेगा, जब मुझे भी कोई प्यार करेगा, मुझे वक्त देगा, मेरे साथ हंसी मज़ाक करेगा, मेरी सारी बातें सुनेगा.... हां उस वक्त का मुझे इंतज़ार है....."​​  

​​​कुमार अचानक से अपने वर्तमान में आ गया था, उसकी आंखों के सामने पुरानी बातें घुम रही थी।  अगले ही पल कुमार ने जब मैथिली और जीतेंद्र की तरफ़ देखा तो पाया की मैथिली, जीतेंद्र से दूर हो गई थी। उसे इस तरह जीतेंद्र का पास आना पसंद नहीं आया था। मैथिली को देखते हुए एक बार फ़िर से कुमार का सारा गुस्सा, सारी बेचैनी शांत हो गई। उसने मन में कहा,​​  

​​​कुमार(जुनून से) : "मैथिली...समझदार लड़की है! वह इस जीतू के जाल में नहीं फँसने वाली है। और रही बात इस जीतू की तो इसको सबक सिखाना पड़ेगा। मास्टर के हाथ में अब प्लैस्टर लगाना ही पड़ेगा। "​​  

अगली सुबह​ कुमार अपने घर की छत पर टहल रहा था कि तभी अचानक से उसे सामने सड़क पर मैथिली दिखाई पड़ी, सुबह सुबह वो तैयार होकर कहीं जा रही थी। ​

​​कुमार (खुद से) ​"आज सही मौका है... मैं तुम्हें किनारे ले जाऊंगा और जीतेंद्र के बारे में कहूंगा कि वो उससे दूर रहे, वो ठीक लड़का नहीं है...."​​​  

​​ख़ुद से इतना कहने के बाद कुमार झट से अपने घर के बाहर आया और मैथिली के पीछे-पीछे जाने लगा। वो इस तरह चल रहा था कि किसी को भी उस पर शक ना हो कि वो मैथिली का पीछा कर रहा है। कहीं ना कहीं एक सच ये भी था कि मैथिली कुमार की टीचर थी।​​  ​​​कुमार आगे बढ़ ही रहा था कि अचानक से उसकी नज़र मैथिली की कलाई पर पड़ी, जिसमें ब्रेसलेट का स्टोन चमक रहा था, ये वही ब्रेसलेट था, जो जीतेंद्र ने दिया था।  कुमार ने बड़बड़ाते हुए ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(गुस्से से) : "सारा मूड ख़राब हो गया....(Pause)... नहीं....नहीं ये मूड ख़राब करने का वक्त नहीं है, मुझे अभी वो करना चाहिए, जिसके लिए मैं यहां आया हूं..."​​  

​​​कुमार चलते हुए गांव के बाज़ार आ गया था। वो आगे बढ़ कर मैथिली के पास जाने ही वाला था कि अचानक से उसके कानों में मैथिली की आवाज़ पड़ी, ​"​​​हां कल मेरे चाचा के घर शादी है, उसी की शॉपिंग करने आई हूं मैं...."​​​​ मैथिली के मुंह से जैसे ही ये निकला, एकाएक ही कुमार के दिमाग़ में कुछ चलने लगा। उसने ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(cunning smile से) : "ओह!!!. शादी..... इसका मतलब कि कल शादी में ज़रूर जीतेंद्र भी आएगा.... क्यों ना वहीं मैं धमाका कर दूं..."​​  

इतना ​​कहते हुए कुमार मुस्कुराने लगा। अचानक से मैथिली और उसके बगल में खड़ी, रीमा मुड़ी और कुमार से टकरा गई। कुमार हड़बड़ाता हुआ ज़मीन पर गिर गया और रीमा के हाथ से सामान छूट कर नीचे गिर गया। कुमार ने अगले ही पल सामान उठा कर मैथिली को देते हुए कहा,​​ "सॉरी.... वो मैंने देखा नहीं... आपको चोट तो नहीं लगी..."​​  

रीमा ने जब यह देखा की कुमार उसकी जगह मैथिली को सॉरी कह रहा है तो उसने कुमार से कहा ​​​"तुम मुझसे टकराए हो लड़के, तुम्हें मुझसे पूछना चाहिए..." ​​​​रीमा ने जैसे ही ये कहा, कुमार बड़बड़ाया, ​​​​"हर बार कोई ना कोई कबाब में हड्डी आ जाता है..."​​​​ कुमार को बड़बड़ाता देख रीमा ने मुंह बना लिया, वहीं कुमार बार-बार मैथिली को देख रहा था, जो हाथ में एक कागज़ पकड़े हुए सामानों की लिस्ट देख रही थी। तभी मैथिली ने कुमार को देखते ही पूछा,​​ “कुमार तुम…तुम यहां बाज़ार में क्या कर रहे हो?”​​  

​​​रीमा ने जैसे ही मैथिली की बात सुनी, अचानक से उसे भी याद आया कि कुमार उसके ही स्कूल का स्टूडेंट है, वहीं कुमार को कुछ समझ नहीं आया और उसने हड़बड़ाते हुए कहा,​​ “बैंगन…. हां मैं वो मां के कहने पर बैंगन लेने आया था…मगर मुझे समझ ही नहीं आया कि सही वाला कौन सा है?”​​  

 

​​​कुमार की बातों ने मैथिली को मुस्कुराने पर मजबुर कर दिया, उसने अपने थैले से तीन चार बैंगन कुमार को देते हुए कहा, “​​​​इसे रख लो…और घर जाकर पढ़ाई करो….परीक्षा नज़दीक आने वाली हैं…” ​​ ​इतना कहने के बाद मैथिली कुमार के बालों पर हाथ फेरते हुए​​​​ रीमा के साथ वहां से जाने लगी। अचानक ही मैथिली को एहसास हुआ किया उसका ब्रेसलेट शायद कुमार के थैले में गिर गया है। वह मुड़ी और उसने कुमार से पूछा की क्या उसका ब्रेसलेट गिर है वहाँ? इसके जवाब में कुमार ने वह ब्रेसलेट निकाल और मैथिली को देने के लिए आगे बढ़ा। जैसे ही मैथिली ने वह ब्रेसलेट पकड़ की अचानक ही कुमार जोर से छींका। उस छींक की वजह से वह ब्रेसलेट जो दोनों के हाथों में फंसा हुआ था वह टूट कर बिखर गया। यह देखते ही मैथिली थोड़ी उदास हो गई और कुमार उसे बार बार सॉरी कहने लगा। मैथिली ने कुमार से कहा की इसमे उसकी कोई गलती नहीं है। यह सुनते ही कुमार मुड़ा और उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई। उसने यह सब जानके किया था लेकिन बाईचारी मैथिली यह समजह नहीं पाई थी।

​​कुमार (मदहोश): “​​​​आज ब्रेसलेट टूटा है! अगर जीतू भैया शांत नहीं हुए तो कल को उनकी हड्डियाँ भी टूट सकती यही।  वाह यह देखो! प्यार में अक्सर लोग फूल देते हैं, मगर मेरी मैथिली ने मुझे बैंगन दिया है…(pause).... इसे संभाल कर रखना होगा, नहीं तो मां मेरे प्यार के गिफ्ट की सब्ज़ी बना देगी…”​​  

​​​कुमार अब भी उसी जगह पर खड़ा होकर बड़बड़ा रहा था। उसे एहसास नहीं था कि वो बीच रास्ते पर खड़ा है। तभी एक साइकिल वाला उसके एकदम बगल से गुजरा, जिसके कारण कुमार उससे टकरा गया। उसके हाथ से बैंगन छूट कर नीचे गिर गया। ठीक उसी वक्त सामने से आ रहे एक टेम्पो ने उन बैंगन को एक के बाद एक कुचल दिया। कुमार ने जैसे ही यह देखा, उसका ख़ून खौल गया। ​“​​​ए रुक…भागता कहां है…”​​​ ​कहते हुए कुमार टेम्पो के पीछे दौड़ा। आस पास के लोग ये देखकर हैरान हो गए कि जिस साइकिल वाले ने कुमार को टक्कर मारी थी, उस पर चिल्लाने के बजाय कुमार टेम्पो वाले पर चिल्लाते हुए भाग रहा था।​​  

​​​कुमार भागते भागते बाज़ार के किनारे आ गया था, आख़िर में जब टेम्पो वाला नहीं रुका, कुमार ने एक पत्थर उठाया और टेम्पो पर दे मारा जिससे उसका कांच फूट गया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि कुछ मामूली बैंगन के लिए कुमार इस हद तक भी जा सकता है। पर कुमार के लिए वह मामूली नहीं थे। वह उसे मैथिली ने दिए थे ​​ ​​​इधर दूसरी तरफ़ मैथिली और रीमा बाजार के आखिरी हिस्से में पहुंच गई थी। रीमा बार-बार मैथिली को देख रही थी, जो कहीं खोई हुई नज़र आ रही थी। काफ़ी देर बाद अचानक से रीमा ने बात छेड़ते हुए मैथिली से पूछा, ​"​​​तो तुने बताया नहीं...कल क्या हुआ.... कैसी रही तेरी पहली डेट मैथिली..."​​​ ​ यह ​​सुनते ही मैथिली ने पहले तो कुछ नहीं कहा, मगर रीमा के दुबारा पूछने पर मैथिली ने बताया,​​  

मैथिली(झिझकते हुए) : “क्या हम कुछ और बात करें?”​​  

​​​इतना कहते हुए ​मैथिली के चेहरे के expressions change हो गए, वो थोड़ी सोच में पड़ गई। रीमा को समझ नहीं आया कि आख़िर मैथिली को हुआ क्या अचानक से? उसने जब कारण पूछा तो मैथिली ने काफ़ी सोचते हुए कुछ ऐसा कहा जिसे सुनते ही रीमा हैरान हो गई। ऐसा क्या हुआ था कल वहाँ जिसने मैथिली का दिल दुखा दिया था? 

जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग। 

 

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