रीमा ने जब मैथिली से जीतेंद्र और उसकी मुलाकात के बारे में पूछा तो उसे अच्छा नहीं लगा। उसने रीमा से कहा

​​​मैथिली(सोचते हुए) : "जीतेंद्र जिस तरह कल अचानक से मेरे क़रीब आने की कोशिश कर रहा था वह मुझे अच्छा नहीं लगा। ... मैं समझ नहीं पाई कि क्या कहा जाए या कैसे react किया जाए....(Pause)...मैंने सोच था हम बातें करेंगे पर उसका ध्यान जैसे बस करीब आने पर था। मुझे उसकी यह हरकत बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी…”​​  

रीमा ने जब मैथिली की बात सुनी तो उसे भी अच्छा नहीं लगा। वही उनकी बात छुपकर कुमार भी सुन रहा था जो बहुत खुश हो रहा था। ​​​कुमार कुछ सोचते हुए अपने घर की तरफ़ भागने लगा, वो तेज़ रफ़्तार से भाग रहा था, आस पास के लोग उसे इस तरह देख हैरान थे। ​​ ​​​थोड़ी ही देर में कुमार घर आया और ख़ुद को अपने कमरे में बंद कर लिया। इसके बाद कुमार मैथिली से जुड़ा सारा सामान उस पेटी से] निकालने लगा। देखते ही देखते पूरा कमरा अलग अलग सामानों से भर गया, उन सारे सामानों को देख कर अचानक ही कुमार को कुछ एहसास हुआ। वो हर एक चीज़ को बड़े प्यार से देखने लगा। कुमार ने मैथिली का एक फटा हुआ दुपट्टा अपने चेहरे से लगाते हुए कहा,​​  "ये क्या कर रहा था मैं....अपनी मैथिली पर शक! हे भगवान मुझे माफ कर देना। मेरा प्यार इतना कमज़ोर नहीं है.... और तो और अभी तक मैथिली को पता कहां है कि एक ऐसा इंसान है, जो उसे जी जान से प्यार करता है, उसकी हर छोटी चीज़ को वो अपने सीने से लगा कर रखता है.... हां मैथिली को जब ये पता चलेगा, उसकी सोच बदल जाएगी... मैंने अपनी मैथिली को किसी देवी से कम नहीं पूजा है...."​​  

​​​इतना कहने के बाद कुमार बिखरे हुए सामान को एक-एक करके समेटने लगा। उसने आगे कहा,​​ "कल शादी में मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताऊंगा मैथिली.... तुम्हें कल पता चलेगा कि तुम्हारे प्यार के लिए मैं कितने सालों से भटक रहा हूं....तुम मेरे जीने की वजह बन चुकी हो मैथिली... कल सबके सामने मैं तुम्हें अपने दिल की बात कहूंगा...."​​  

​​​अगली सुबह कुमार उस जगह पहुंच गया जहां पर शादी की तैयारियां चल रही थी। कुमार कोई न कोई काम करने के बहाने से वहीं पूरा दिन रहा। वो कोई भी मौका नहीं गवाना चाहता था। पूरा दिन काम करते हुए कब निकल गया, कुमार को पता ही नहीं चला। शाम होते ही कुमार ऐसे तैयार हुआ मानो, उसी की शादी हो। शीशे में अपने आप को देखते हुए कुमार ने कहा,​​  "कुमार... आज जंग जीत कर आना है.... चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हें मैथिली को अपने दिल की बात बतानी ही होगी..."​​  


​ ​​​काफ़ी देर हो चुकी थी, कुमार को फिर शक होने लगा कि आख़िर मैथिली आई क्यों नहीं है अभी तक? तभी उसे सामने से रीमा आती हुई दिखाई पड़ी, कुमार ने मन ही मन कुछ सोचा और रीमा के सामने जाकर खड़ा हो गया। रीमा ने कुमार को एक झटके में पहचान लिया, ​​​​"तुम...तुम यहां क्या कर रहे हो?"​​   ​​​रीमा के कहते ही कुमार ने बताया, ​​​

​​कुमार: "मैडम शादी में आया हूं.... जैसे आप आई हो... वैसे आपकी दोस्त…मेरा मतलब मैथिली मैडम नहीं दिखाई दे रही...कहां है वो?"​​  

​​​कुमार के इस सवाल पर रीमा को थोड़ा अजीब लगा, मगर कुछ देर सोचने के बाद रीमा ने कहा,​​ ​उसके चाचा के बेटे की शादी है.... होगी अंदर... तुम्हें उससे क्या... खाना खाकर घर जाओ... और पढ़ाई पर ध्यान दो…”​​ ​रीमा कहते हुए जाने लगी, कुमार ने ख़ुद से बड़बड़ाते हुए कहा, ​​​

​​कुमार (बड़बड़ाते हुए चिढ़कर) "तुम्हें अपनी और मैथिली की शादी में झाड़ू लगाने के लिए रखूंगा...देख लेना...मगर उससे पहले मेरी दुल्हन तो मिल जाए...."​​  

 

इतना ​​​कहते हुए कुमार वहां से सीधा स्टेज की तरफ़ भागा, कुमार थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि अचानक से उसकी नज़र मैथिली पर पड़ी, जो लाल लहंगे में बेहद ही खुबसूरत लग रही थी। मैथिली किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। कुमार उसे देखते ही अपनी पलकें झपकाना भूल गया, तभी उसे सामने से जीतेंद्र आता हुआ नज़र आया, उसे देखते ही कुमार ने ख़ुद से कहा,​​  

​​​कुमार(बेकरार होकर) : "सही कहा है किसी ने, लातों के भूत बातों से नहीं मानते। कहा तो यह भी है की chewing गम यदि बाल में चिपक जाए तो उतनी जगह के बाल काटने पद जाते है। इस जीतेंद्र का कुछ अब तो करना ही पड़ेगा"​​  

​​इतना ​कहते हुए कुमार आगे बढ़ने लगा। सामने एक बड़ा सा गमला था, जिसमें लाल गुलाब लगाए गए थे। कुमार उन गुलाबों को देखते ही ख़ुद से बोला, "​​​

​​कुमार: मैथिली को गुलाब देकर अपनी दिल की बात कहूंगा, तो उसे और भी अच्छा लगेगा।" ​​  

​​​ख़ुद से बातें करने के बाद कुमार ने एक गुलाब लिया और आगे बढ़ने लगा। ​​ ​​​इधर दूसरी तरफ़ मैथिली कुछ मेहमानों से बातचीत कर रही थी। उसे ज़रा सा भी अंदाज़ा नहीं था कि आगे उसके साथ क्या होने वाला है। मैथिली अभी मेहमानों से बात ही कर रही थी, इसी बीच कुमार उसके सामने आ खड़ा हुआ। मैथिली ने पहले तो उस पर ध्यान नहीं दिया, मगर जब कुमार वहीं खड़ा रहा तो मैथिली को थोड़ा अजीब लगा। वो अपने चेहरे पर स्माइल लिए ही मेहमानों से बात करती रही। वहीं कुमार ख़ुद को समझाने लगा, ​​​

​​कुमार: "क्या कर रहा है कुमार.... ऐसा मौका दोबारा नहीं आयेगा, तेरी मैथिली तेरे सामने खड़ी है, आज उसे बता दे कि तू दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार मैथिली से ही करता है।"​​  

​​​कुमार ने काफ़ी देर तक खुद समझाने के बाद अचानक ही कहा, "​​​​मैथिली..."​​ ​​​कुमार ने आज मैथिली को मैडम नहीं कहा, ​​​​उसकी आवाज़ सुनते ही मैथिली का ध्यान कुमार की तरफ़ आया, वो हैरान नज़रों से कुमार को देखने लगी।  उसे समझ नहीं आया कि आख़िर कुमार क्या कर रहा है? अगले ही पल कुमार ने गुलाब का फूल मैथिली को देते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(प्यार और थोड़ा nervous होते हुए) : "मैथिली मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं...तुम सोच भी नहीं सकती, मैं कितने सालों से तुमसे प्यार करता हूं.... आज बहुत मुश्किल से तुम्हें यह बोल पाया हूं..."​​  

कुमार ने जी ही अपनी बात खत्म की उसे एक जोरदायर तमाचा पड़ा और वह जमीन पर गिर गया। उस तमाचे का शोर इतना ज़ोरदार था की वहा खड़े सभी लोग अब उन दोनों को ही देख रहे थे। मैथिली का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था और कुमार को यह साफ दिख रहा था। इससे पहले की कुमार खड़ा होता मैथिली ने बोला

मैथिली (गुस्से से): तेरी हिम्मत कैसे हुई ये बदतमीजी करने की? पागल कहिके! शक्ल देखी है अपनी आईने में? डो चार शब्द प्यार से क्या कह दिए तो तूने क्या सोच मैं प्यार करती हूँ तुझसे?

मैथिली के गुस्से ने सभी को हैरान कर दिया था! कुमार अब धीरे धीरे खड़ा हुआ और उसने मैथिली से नजरें मिलाने की कोशिश की। तभी वहाँ पर जीतेंद्र आ गया और उसने मैथिली का हाथ पकड़ लिया। यह देखकर कुमार को ज्यादा गुस्सा आने लगा। जीतेंद्र ने कुमार से कहा की उसकी शादी मैथिली से होने वाली है। आस पास खड़े सभी लोग कुमार को देख कर हंसने लगे। कुमार से अब बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी पेंट से एक चाकू निकाल कर मैथिली का गला काट दिया। उसके गले से खून बहता हुआ देख कुमार रोने लगा और बोला, ‘’मुझे माफ कर दो मैथिली! मैं ऐसा नहीं करना चाहता था मुझे माफ कर दो''  

कुमार को अचानक वहाँ तालिया सुनाई देने लगी। उसने अपनी पलके झपकाई और उसे एहसास हुआ की यह सब वह सपने में देख रहा था। उसके चेहरे पर पसीना साफ साफ दिखाई दे रहा था। एक बार फिर मैथिली उसके सामने आकार खड़ी हो गई। अगले ही पल कुमार ने गुलाब का फूल मैथिली को देते हुए कहा,​​"मैथिली मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं...तुम सोच भी नहीं सकती, मैं कितने सालों से तुमसे प्यार करता हूं.... आज बहुत मुश्किल से तुम्हें यह बोल पाया हूं..."​​  

​​​कुमार ने जैसे ही अपना बोलना ख़त्म किया, मैथिली ने उसे ध्यान से देखा, आस पास खड़े लोग दोनों को ही देख रहे थे। मैथिली ने एक फीकी मुस्कान के साथ गुलाब को कुमार को वापस देते हुए कहा,​​  

​​​मैथिली(शांत भाव से) : "thank you.... बच्चे…तुम मेरे एक अच्छे स्टूडेंट हो….अब जाओ खाना खाओ... और ये गुलाब तुम्हारे कोट पर ज़्यादा अच्छा लग रहा है...इसे अपने पास ही रखो।"​​  

​​​मैथिली इतना कह कर फीकी मुस्कान के साथ वहां से जाने लगी, वो जानती थी कि अगर वो कुछ कहेगी या कुमार के सामने ज़्यादा देर तक रुकेगी तो बवाल खड़ा हो जाएगा। उसने मन ही मन सोच लिया था कि वो कल स्कूल में कुमार की क्लास लेगी।​​ ​​​ मैथिली के ऐसे रिएक्शन को देख कर कुमार हक्का बक्का रह गया, साथ ही उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैथिली ने उसे ज़्यादा कुछ कहा क्यों नहीं? जैसे कुछ देर पहले कुमार सोच रहा था!  उसने ख़ुद को कोसते हुए कहा,​​  

​​​कुमार(चिढ़ कर) : "मैं भी कितना पागल हूं.... मैंने मैथिली को गुलाब देकर, बाकी लड़कों की तरह प्रपोज कर दिया....ऐसा थोड़ी होता है... मुझे पहले उसे बताना होगा कि मैं उसे कितना प्यार करता हूं.... उससे जुड़ी हुई हर चीज को मैंने सालों से संभाल कर रखा है, जो उसे भी याद नहीं है।"​​  

​​​कुमार ने काफ़ी देर तक ख़ुद को समझाया और फ़िर वो जल्दी से भागता हुआ अपने घर की तरफ़ जाने लगा।​​ ​​​वहीं शादी में मौजूद मैथिली ने जब दूर से कुमार को जाते हुए देखा तो उसने चैन की सांस ली। ​

मैथिली (चिढ़ते हुए) ​​​“ये कुमार को क्या हो गया आज… इसने मुझे ऐसा क्यों कहा कि ये मुझसे प्यार करता है। "​​  

​​​मैथिली अभी अपने आप से सवाल ज़वाब कर रही थी कि अचानक से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा, मैथिली बुरी तरह से चिल्ला पड़ी। अगले ही पल रीमा उसके सामने आई और उसे समझाने लगी कि उसी ने मैथिली के कंधे पर हाथ रखा था। रीमा ने गौर किया कि मैथिली के माथे पर शिकन नज़र आ रही थी, उसने जब इसके पीछे का कारण पूछा तो मैथिली ने रीमा को सब कुछ बताया, रीमा ने भी अपनी तरफ से कहा,​​ ​“मुझे ये लड़का कुछ ठीक नहीं लग रहा है….अभी थोड़ी देर पहले ये मुझसे तेरे बारे में ही पूछ रहा था…”​​  

​​​मैथिली(शांत मन से) : ". मुझे तो लगता है वो किसी तरह की शरारत ही कर रहा था..."​​  

मैथिली की बाते सुनते ही रीमा ने हँसते हुए कहा! ​"मैथिली.. तू भी कितना सोचने लगी है, वो एक 16 साल का लड़का है... और तू है ही इतनी खूबसूरत कि किसी को भी तेरे से प्यार हो जाए.....उसी तरह वो लड़का भी तुझे अपना क्रश मानता होगा.... इसलिए इतना मत सोच... और शादी में ध्यान दे...​​ ​रीमा ने अपनी दोस्त मैथिली को समझा तो दिया था मगर मैथिली का मन मानने को तैयार नहीं था कि कुमार उसे सिर्फ़ क्रश मानता है। मैथिली अभी सोच ही रही थी कि अचानक से कुमार दौड़ता हुआ उसके पास आया। वो काफ़ी हांफ रहा था, कुमार को देख मैथिली ने रीमा को वहां से चलने के लिए कहा, क्योंकि मैथिली शादी के उस माहौल में कोई हंगामा नहीं चाहती थी। दोनों वहां से जाने ही वाले थे कि कुमार ने मैथिली का हाथ पकड़ते हुए कहा, ​​  

​​​कुमार(serious tone में) : "एक मिनट मैथिली... तुम पहले मेरी बात सुन लो... उसके बाद चली जाना...."​​  

​​​मैथिली ने अगले ही पल थोड़ा rude होकर जवाब दिया,​​  

​​​मैथिली(झल्ला कर) : “कुमार मेरा हाथ छोड़ो, भूलो मत मैं तुम्हारी टीचर हूं….सबके सामने मैं तुम्हें थप्पड़ नहीं मारना चाहती…”​​  

​​​कुमार(प्यार और जुनून से) : “आज तुम थप्पड़ भी क्यों ना मार लो…मगर मैं नहीं रुकूंगा, क्योंकि तुम्हारे सामने आज तुम्हारा कोई स्टूडेंट नहीं बल्कि तुम्हें चाहने वाला एक दीवाना खड़ा है….”​​  

​​​कुमार की बातें सुन मैथिली और रीमा हैरान हो रही थी। आस पास के लोग उन तीनों को ही देख रहे थे। वहां का माहौल काफ़ी गंभीर हो गया था। तभी उस जगह पर एक भारी आवाज़ आई, ​​​​“क्या ड्रामा हो रहा है यहां पर…?”​​ ​​​कुमार ने जैसे ही सामने देखा, वो घबरा गया।​​​ कौन था यह शख्स जिसे देख कुमार घबरा गया? 

जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग। 

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