सुबह के 6:30 बजे थे । आसमान में पक्षी भी अभी कुछ अलसाए हुए से लग रहे थे पर  एंटिलिया हाउस में हलचल शुरु हो गई थी । अभी तक नेहा के कमरे में सूरज की रोशनी भी नहीं पहुंच पायी थी कि उससे पहले ही उसके कमरे की बत्ती जल गई, जिससे उसकी आँख खुल गयी । उसकी नज़र सामने सोफ़े पर बैठे मृत्युंजय पर पड़ी जो   सूट-बूट पहने तैयार था  और लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। नेहा ने बैठते हुए नींद भरी आवाज़ में पूछा |

नेहा: "कहाँ जा रहे हो?"

मृत्युंजय: " ऑफिस।"

नेहा: "कितना बज रहा है?"

मृत्युंजय: "लगभग 6:30 |"

नेहा: "इतनी जल्दी ऑफिस?" कोई ज़रूरी काम है क्या ?"

मृत्युंजय: "हाँ, एक important मीटिंग है। करोड़ों की डील साइन होनी है तो उससे पहले सब देखना होगा।"

नेहा: "अच्छा, थोड़ी देर में चले जाना। मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"


मृत्युंजय: “अच्छा, हाँ! तुम कल अपनी माँ के यहाँ गई थी। सॉरी, मैं नहीं आ पाया। कैसी है वो? सब ठीक है?”

नेहा एक दिन पहले अपने पेरेंट्स के यहाँ गई थी, जहां का माहोल हमेशा की तरह बहुत खुशनुमा था । सब लोग आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे और बातें कर रहे थे। इस गैदरिंग में मृत्युंजय को भी इनवाइट किया गया था, लेकिन वो अपने क्लाइंट्स के साथ कुछ इंपोर्टेंट मीटिंग्स की वजह से नहीं पहुँच पाया था । नेहा चाहती थी कि मृत्युंजय भी वहां होता और उस समय का हिस्सा बनता। उसने सोचा था कि जब मृत्युंजय ऑफिस से आएगा, तो वो इस बारे में उससे बात करेगी। मृत्युंजय ने भी फ़ोन पर कहा था कि वो दोनों इस बारे में आराम से ऑफिस से आने के बाद बात करेंगे पर रात में मृत्युंजय को आने में काफी लेट हो गया था और तब तक नेहा सो चुकी थी |

रात में देर से आने के बाद भी अब जब नेहा ने मृत्युंजय को ऑफिस जाते देखा तो वह खुद को रोक नहीं पायी क्योंकि वह मृत्युंजय के लिए बार-बार बहाने बना-बना कर थक चुकी थी । कल भी उसे अपने पेरेंट्स के सामने शर्मिंदा होना पड़ा था।

नेहा (शिकायती अंदाज़ में): "मृत्युंजय पहले मुझसे बात करो उसके बाद तुम्हें जहाँ भी जाना हो चले जाना |”

मृत्युंजय: "डार्लिंग! शाम को बात करें ? मीटिंग बहुत इम्पोर्टेन्ट और अर्जेंट है जिसमें थोड़ा बहुत लेट होने की भी गुंजाइश नहीं है मेरे पास |”

मृत्युंजय की बात से नेहा का मन दुखी हो गया और उसे गुस्सा आ गया | उसने मन में सोचा, आखिर कब रहता है मृत्युंजय के पास उसके लिए टाइम? कभी कोई इंपोर्टेंट मीटिंग होती है, या कोई बिज़नेस ट्रिप। हमेशा बाहर ही रहते है मृत्युंजय।

नेहा की ओर से कोई जवाब न सुनकर मृत्युंजय को लगा  कि नेहा को शाम को बात करने में कोई दिक्कत नहीं है ।

मृत्युंजय: "थैंक्स, डार्लिंग! ऑफिस से आकर पक्का बात करेंगे।"

नेहा (तेज आवाज में): "मृत्युंजय, कल हमारी एनिवर्सरी थी। इसीलिए माँ-पापा ने ये get together रखा था और तुम फिर भूल गए।"

मृत्युंजय: "ओह, सॉरी! सॉरी!  डार्लिंग. मुझे बिल्कुल भी ध्यान नहीं रहा। क्यों न हम आज रात किसी डिनर डेट पर चलें?"

नेहा (उदासी भरी मुस्कान के साथ): "ठीक है। पर यह प्लान मत भूलना, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"

मृत्युंजय: "आई प्रॉमिस! अच्छा, चलो मैं निकलता हूँ, वरना लेट हो जाऊँगा।"

 

इतना कहकर मृत्युंजय जल्दी जल्दी अपनी फाइल्स और लैपटॉप बैग में रखने लगा ताकि ऑफिस के लिए समय से निकल जाए। तभी नेहा ने उसे नाश्ता करके जाने के लिए कहा | मृत्युंजय ने पहले तो ये कहकर मना कर दिया  कि उसे पहले ही बहुत लेट हो रहा है। लेकिन नेहा के बार-बार इंसिस्ट करने पर कि इस तरह से रोज़ रोज़ मील्स स्किप करना ठीक नहीं है, मृत्युंजय मना नहीं कर पाया और आखिरकार मान गया।

 

उसने अपनी घड़ी में समय देखा और खुद को समझाया कि कुछ मिनटों का नाश्ता उसकी दिनभर की भागदौड़ में मदद ही करेगा। मृत्युंजय की हाँ सुनकर नेहा खुश हो गयी और तुरंत किचन की ओर बढ़ गई | वह जल्दी-जल्दी नाश्ता बनाने में लग गयी, ताकि मृत्युंजय को देर न हो | इस बीच, मृत्युंजय अपने फोन में मीटिंग्स की लिस्ट चेक करते हुए काम के बारे में सोचने लगा तभी उसकी नज़र kitchen में काम करती नेहा पर पड़ी जो जल्दी जल्दी नाश्ता बनाने में लगी हुयी थी | खुद के लिए नेहा को चिंता करते देखकर उसे मन ही मन बहुत ख़ुशी महसूस हुयी |  

 

किचन में:


मृत्युंजय दोबारा से अपने फ़ोन में लिस्ट check करने लगा और साथ साथ time का भी ध्यान रख रहा था |

मृत्युंजय: “नेहा और कितनी देर लगेगी, मुझे लेट हो रहा है |”

नेहा: "बस दो मिनट | तब तक तुम ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिए कहो । जब तक ड्राइवर गाड़ी निकालेगा, तब तक सैंडविच भी बनकर तैयार हो जाएगा।"

 

मृत्युंजय ने ड्राइवर को कॉल करके फ़ौरन गाड़ी निकालने को कहा ताकि वो नाश्ता करके तुरंत वहां से निकल सके। तभी मृत्युंजय के मोबाइल पर एक कॉल आया जिसे देखकर वह तुरंत बैग लेकर जल्दी में  बाहर चला गया।  

नेहा (पीछे से ): "मृत्युंजय, सैंडविच!"

 

नेहा सैंडविच लेकर मृत्युंजय के पीछे दौड़ी, पर जब तक वह बाहर पहुँची, तब तक मृत्युंजय गाड़ी में बैठकर जा चुका था।

(SFX- गाड़ी स्टार्ट होकर चले जाने की आवाज़)

नेहा मायूस होकर वापस घर की ओर मुड़ गयी।

नेहा (खुद से बात करते हुए): " बस दो मिनट और रुक जाता तो कौन सा पहाड़ गिर जाता । मैं ही बेवकूफ हूँ जो बार बार मृत्युंजय के पीछे भागती रहती हूँ और हर बार पीछे छूट जाती हूँ | अब क्या करूँ इस सैंडविच का?"

 

यह कहकर नेहा ने सैंडविच को किचन काउंटर पर पटका और कमरे में जाने लगी। तभी वह सीमा से टकरा गई; सीमा एंटिलिया हाउस की मैनेजर थी । नेहा से ज़्यादा अगर इस घर को कोई जानता था , तो वह सीमा थी । सीमा को एंटिलिया परिवार के साथ काम करते हुए 10 साल हो चुके थे; जब नेहा एंटिलिया परिवार की बहू बनकर पहली बार आई थी, तब सीमा ने ही उसे घर के सारे काम समझाए थे।

सीमा: "सॉरी, मेमसाब, मैंने देखा नहीं आपको।" 


नेहा ने जैसे तैसे अपने आँसू रोके , लेकिन उसके चेहरे से उदासी साफ़ झलक रही थी जिसे देखकर सीमा ने परेशान होते हुए पूछा कि कहीं उसे चोट तो नहीं लगी। सीमा का चेहरा डर और चिंता से भरा हुआ था। उसे लगा कि शायद उसकी किसी गलती से नेहा को तकलीफ हुई है ।

 

सीमा ने घबराकर तुरंत डॉक्टर कबीर को बुलाने को भी कहा, लेकिन नेहा ने खुद को नार्मल करते हुए कहा कि उसे कोई चोट नहीं लगी है इसलिए वो बिना वजह चिंता ना करे और अपने कमरे में जाए | सीमा थोड़ा हिचकिचाई पर नेहा का मिजाज़ देखकर वह धीरे-धीरे वापस चली गई।

 

सीमा के जाने के बाद नेहा ने गहरी सांस ली और अपनी आँखों से आँसू पोंछे। वह खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मन में उठते भावनाओं के तूफान को शांत करना आसान नहीं था।

 

नेहा अपने कमरे की ओर जाने लगी, तभी नेहा को कुछ याद आया और वो अचानक से सीमा की तरफ़ मुड़ी।

 

नेहा: "किचन काउंटर पर जो रखा है, उसको फेंक देना। और काउंटर साफ कर देना। मैं अपने कमरे में जा रही हूँ और हाँ, ध्यान रखना कि कोई भी  मुझे डिस्टर्ब न करे।"

सीमा चुपचाप सिर हिलाकर किचन में चली गई। नेहा भी अपने कमरे में गई और बिस्तर पर जाकर रोने लगी। उसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा था कि कब उसके और मृत्युंजय के बीच इतनी दूरियाँ आ गई थीं। नेहा और मृत्युंजय की शादी को 8 साल हो चुके है।

नेहा (खुद से): "क्या हो गया है मृत्युंजय को? शुरुआत में तो सब कुछ ठीक था। मृत्युंजय के पास मेरे लिए हमेशा टाइम रहता था। और आज ये दिन आ गया कि मृत्युंजय को हमारी एनिवर्सरी भी याद नहीं।"

नेहा अपने ख्यालों में डूबी हुई थी, तभी साइड टेबल पर रखा अलार्म क्लॉक बजने लगा। उसने घड़ी की तरफ़ देखा और थकी हुई साँस छोड़ी।

8 बज रहे थे, और मृत्युंजय को गए डेढ़ घंटे से ज्यादा हो चुका था पर अब तक उसका ना तो   कोई मैसेज आया था और ना ही कोई कॉल। नेहा के दिल में हल्की खीझ सी भर गयी और  उसने ठान लिया कि इस बार वह खुद पहल नहीं करेगी और देखेगी कि मृत्युंजय उसे मैसेज करता भी है या नहीं।

वह बिस्तर से उठी, आँसू पोंछे और वॉशरूम चली गई। वहाँ नेहा ने आईने में खुद को देखा। उसकी आँखों में थकावट और तकलीफ की गहराई साफ झलक रही थी | उसने ठंडे पानी से चेहरा धोया और खुद को समझाया कि personal life की tension की वजह से वो अपनी professional life नहीं disturb कर सकती |

नेहा बाथरूम से बाहर आ गयी और office के लिए कपड़े निकालते हुए सोचने लगी कि पता नहीं आज का दिन कैसा रहेगा। उसके मन में हलचल तो थी, लेकिन फिर उसने तय किया कि वह अपने काम पर फोकस करेगी। वह जानती थी कि यह आसान नहीं होगा पर मजबूत बने रहना ही इस वक़्त उसके लिए सबसे सही रास्ता था।

नेहा को खुद से बातें करने की आदत हो गयी थी, शायद अकेलेपन और अक्सर मृत्युंजय की नामौजूदगी इसकी वजह थी | नेहा नहाने के लिए अभी बाथरूम की ओर जा ही रही थी कि तभी किसी ने कमरे का दरवाज़ा खटखटाया |

नेहा: "कौन?"

सीमा: "मैडम, नाश्ता।"

नेहा: “तुम जाओ, मैं कुछ देर में आती हूँ।”

कुछ ही देर बाद, नेहा तैयार होकर नाश्ते की टेबल पर आ गई। वह खुद में खोयी खोयी सी थी जो सीमा ने महसूस कर लिया |

सीमा (सकुचाते हुए): "क्या हुआ, मैडम? सब कुछ ठीक तो है ना?"

नेहा (उदासी भरी मुस्कान के साथ): "सब परफेक्ट है! फल, ओट्स, और टोस्ट, सब कुछ मेरे मुताबिक ही तो बना है। बिल्कुल वैसा, जैसा मुझे पसंद है।"

 

यह कहते-कहते नेहा की आंखों में आंसू आ गए। खुद को हज़ार दलीलें और तर्क देने के बावजूद भी अब वो अपने आंसू नहीं रोक पायी और तुरंत टेबल से उठकर अपने रूम की ओर भागने लगी। सीमा भी नेहा का पीछा करते हुए उसके रूम के दरवाजे तक गई, लेकिन तब तक दरवाजा अंदर से बंद हो चुका था ।

सीमा (आवाज़ देते हुए): "मेमसाहब... मेमसाहब... दरवाजा खोलिए। क्या हुआ?"

नेहा: "तुम जाओ, सीमा। प्लीज, मुझे अकेला छोड़ दो!"

सीमा वहां से नहीं गयी । आखिरकार, नेहा को दरवाजा खोलना पड़ा  ।

नेहा (रोते हुए): "मुझसे क्या गलती हुई है, सीमा? तुम मृत्युंजय को मुझसे ज्यादा जानती हो। मृत्युंजय पहले ऐसे नहीं थे। फिर ऐसा क्या हुआ है, सीमा? क्या मृत्युंजय की लाइफ में मेरी कोई इंपॉर्टेंस नहीं बची है?"

सीमा: "ऐसा नहीं है, मेमसाहब। साहब आजकल बिजी हो गए है। इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है। बस एक बार वो काम हो जाए, जिसके लिए साहब इतनी मेहनत कर रहे है, फिर आप देखना, साहब आपको अपना सारा टाइम देंगे।"

नेहा: "पता नहीं, कब वो दिन आएगा। मुझे बस इस बात का डर है सीमा, कहीं बहुत देर न हो जाए। मेरी भी बर्दाश्त करने की एक लिमिट है।"

सीमा: "मेमसाहब, आप हौसला रखिए। बहुत जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

तभी नेहा का मोबाइल बजा। नेहा ने मोबाइल उठाकर देखा तो स्क्रीन पर मृत्युंजय का नाम था, ये देखकर उसे कुछ सुकून मिला । सीमा नेहा के चेहरे की ख़ुशी देखकर समझ गई कि साहब का कॉल होगा।

सीमा: "मैंने कहा था न, मेमसाहब, धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

सीमा के ये कहते ही नेहा के चेहरे पर हलकी-सी मुस्कराहट आ गई जैसे कि उसे दुनिया भर की ख़ुशी मिल गई हो। सीमा भी मुस्कराते हुए रूम से चली गई।.

नेहा: "हैलो?"

मृत्युंजय: "हैलो, नेहा!"

नेहा (उम्मीद भरी आवाज़ में): "हाँ, मृत्युंजय! बोलिए।"

मृत्युंजय: "तुम ऑफिस के लिए निकल गई?"

नेहा: "नहीं, मैं बस निकलने ही वाली थी। क्यों, तुम  घर आ रहे हो क्या?"

मृत्युंजय: "अरे नहीं! मुझे तुम्हारी हेल्प की ज़रूरत है।"

नेहा (उदास होते हुए): "क्या हुआ?"

मृत्युंजय: “हमारे बेडरूम के टेबल पर एक फाइल रखी है। मैं शंभू को भेज रहा हूँ, क्या तुम प्लीज वो फाइल उसे दे दोगी?”

मृत्युंजय की ये बात सुनकर नेहा थोड़ी उदास हो गयी। उसकी चुप्पी और नाराजगी के बारे में मृत्युंजय को कोई अंदाजा ही नहीं था। मृत्युंजय को यह महसूस ही नहीं हुआ कि उसकी सुबह की छोटी सी हरकत ने नेहा को कितना दुख पहुँचाया था । वह अपनी दुनिया में बिज़ी था , जबकि इधर नेहा अपने और मृत्युंजय के बीच बदलते हुए रिश्ते से परेशान थी।  

मृत्युंजय ने जब नेहा को फिर से टोका, तो वह अचानक होश में आई। उसने ज़रा सा जवाब दिया और फिर सवाल किया कि शंभू कब तक आएगा। उसकी आवाज में हल्की सी बेचैनी थी, जैसे वह मृत्युंजय के मुंह से कुछ सुनना चाह रही हो।

मृत्युंजय ने बताया कि शंभू को निकले 10 मिनट हो चुके है और वह जल्द ही पहुँचने वाला होगा, मृत्युंजय ने ये कहकर जल्दबाजी में फोन काट दिया।

तभी अचानक ही नेहा के मुंह से निकला कि डिनर डेट पर कितने बजे चलना है। इतना बोलकर वह जवाब की उम्मीद करने लगी लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला, कटे हुए कॉल से जवाब आता भी कैसे? नेहा ने एक निराशा के साथ फ़ोन कान से हटा लिया |

पूरा दिन बीत चुका था और रात के 8 बज रहे थे... नेहा बेसब्री से मृत्युंजय का इंतजार कर रही थी | उसने आज मृत्युंजय की फेवरेट ड्रेस पहनी थी और घर के नौकरों को भी छुट्टी दे दी थी। बार बार घड़ी की तरफ देखकर उसके मन में ख्याल आता कि मृत्युंजय अभी तक नहीं आये पर अगले ही पल वो खुद को यह कहकर दिलासा देती कि अभी बस 8 ही तो बजे है; डिनर तो रात में कभी भी किया जा सकता है पर फिर भी मन में आते ख्यालों और सवालों पर उसका काबू नहीं था |

नेहा (खुद से): “इतनी देर हो गई... कहां फंसे है मृत्युंजय? कहीं कुछ हुआ तो नहीं? नहीं, नहीं, कुछ नहीं हुआ होगा। मृत्युंजय जरूर ट्रैफिक में फंस गए होंगे।”

तभी नेहा के फोन की घंटी बजी.

घंटी की आवाज़ सुन नेहा के दिल की धड़कने तेज़ हो गयीं। मोबाइल पर मृत्युंजय का नाम देख नेहा ने फ़ौरन फ़ोन उठाया।

नेहा: "हैलो, मृत्युंजय? तुम कब तक आ रहे हो?"

मृत्युंजय (थोड़ी झिझक के साथ): "नेहा, सॉरी। मुझे अचानक एक urgent मीटिंग में जाना पड़ रहा है उसी डील की सिलसिले में जिसके बारे में मैंने तुम्हें सुबह बताया था |"

नेहा (धक्के से): "क्या? तुमने तो वादा किया था आज डिनर पर जाने का। ये हमारी सालगिरह थी!"

मृत्युंजय: "i understand नेहा पर इस डील में करोड़ों लगे है, मैं चाहकर भी कोई रिस्क नहीं ले सकता |"

नेहा (निराश और गुस्से से): “समझने के अलावा मेरे पास और कोई चारा है क्या | काम में तुम ज़रा सा भी रिस्क नहीं ले सकते पर हमारे रिश्ते में जो तुम खिलवाड़ कर रहे हो उसका क्या, मृत्युंजय ? उसके प्रति तुम्हारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है | ”

नेहा की बातों का मृत्युंजय के पास कोई जवाब नहीं था, जो उसकी चुप्पी साफ़ बयान कर रही थी | उसकी खामोशी ने नेहा को और भी परेशान कर दिया। नेहा ने  गहरी साँस लेते हुए   खुद को शांत करने की कोशिश की , लेकिन उसके अंदर मच रही उथल-पुथल को वह शांत नहीं कर पा रही थी  |

अंत में मृत्युंजय ने धीमी आवाज़ में कहा कि वह सच में बहुत शर्मिंदा है और वादा किया कि वे कल कहीं बाहर जाएंगे | नेहा ने बिना कुछ और कहे फोन काट दिया। उसकी आँखों में आँसू है, लेकिन इस बार उसने उन्हें रोकने की नहीं कोशिश की। वह कुछ देर तक फोन की स्क्रीन को एक टक देखती रही | उसकी आँखों में एक नाउम्मीदी थी |

उसे उस घर में घुटन हो रही थी | उसके मन के साथ साथ उसका शरीर भी खुद को कैद महसूस कर रहा था | वो बस कैसी भी उस घर से बाहर जाना चाहती थी पर कहाँ ये वह खुद भी नहीं जानती थी |

फिर भी, नेहा ने अपने खयाल कुछ हद तक किनारे करते हुए चाबी उठाई और घर से बाहर की तरफ जाने लगी । उसके कदम धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, मन में एक भारी सा बोझ महसूस हो रहा है. उसे भी नहीं पता की वो कहाँ जा रही है ?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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