गुस्से में नेहा ने ये फैसला तो लिया था कि वह घर छोड़कर जायेगी पर साथ ही वह यह भी जानती थी कि यह इतना आसान नहीं है उसके लिए । जो हमेशा से इंतज़ार करने की आदत से जूझ रही हो उसके लिए एक झटके में वो आदत छोड़ना बहुत मुश्किल था | मन में मृत्युंजय के लिए नाराज़गी और गुस्सा होने के बावजूद उसका मन इंतज़ार कर रहा था कि शायद मृत्युंजय अचानक से आकर उसे surprise देगा | वो नाउम्मीदी में भी एक उम्मीद कर रही थी | वह घर की हर चीज़ को देख रही थी जिसे उसने खुद सजाया संवारा था | हर चीज़ उसे किसी बीत याद में ले जा रही थी | उसकी आँखें भर आयीं | एक पल को उसके कदम रुकने लगे पर तभी उसे कुछ वक़्त पहले मृत्युंजय से हुयी बात याद आ गयी जहाँ उसने एक बार फिर से उनकी खुशियों से ऊपर अपने काम को रखा था | एक पल को उसके रुकते हुए कदमों ने दोबारा से तेज़ी पकड़ ली | सुकून देने वाली हर याद, हर चीज उसे चुभन देने लगी |
घर में नेहा को एक पल भी रुकना मुश्किल होने लगा जैसे वो घर उसे काटने दौड़ रहा हो। उसके मन में एक ही ख्याल आने लगा कि ऐसे घर का क्या फायदा, जहाँ सब कुछ है, लेकिन वह नहीं है जो असल में उसे चाहिए। न कोई इंसान है जिससे वह बात कर सके, न ही कोई खुशियों बची है। घर की चुप्पी और अकेलापन उसे अब खुद से ही दूर ले जा रहा था |
नेहा बीच hall में अकेली खड़ी फूट फूटकर रोने लगी। अब वह एक पल भी सिर्फ ईंटों से बने इस मकान में नहीं रह सकती थी । रोने की आवाज़ सुनकर सीमा भी बाहर आ गयी जिसने देखा कि नेहा तेज़ी से घर से बाहर जा रही थी | नेहा को बाहर जाते देखकर सीमा भी तेज़ कदमों से उसके पास बढ़ी और car का दरवाज़ा खोलती नेहा को रोका |
सीमा (घबराते हुए): अरे मेमसाब! इस वक़्त आप अकेले कहाँ जा रही हैं? साहब गुस्सा करेंगे!
नेहा (दुःख भरी हंसी हँसते हुए): तुम्हारे साहब के पास इतनी फुर्सत होगी क्या जो वो मेरे हाल चाल पूछें |”
सीमा: क्या हुआ मेमसाब? आप ऐसे क्यूँ कह रही हैं और आज तो आप और साहब डिनर पर जाने वाले थे ना ?
नेहा (दुःख भरी मुस्कान के साथ): जाने वाले थे सीमा, शायद उस वक़्त तुम्हारे साहब खाली होंगे तो उन्होंने plan कर लिया होगा पर अब काम आ गया तो जाना cancel | आखिर मैं उनके काम से ज्यादा जरूरी तो नहीं हो सकती ना। शायद उन्होंने मुझसे शादी भी अपना खाली समय गुजारने के लिए ही करी थी |
सीमा: ऐसा नहीं है मेमसाब। साहब जरूर कहीं फंस गए होंगे इसलिए नहीं आ पाए। वह आपसे बहुत प्यार करते है।
नेहा: काश सीमा जो तुम कह रही हो वो मुझे भी महसूस होता पर अफ़सोस, प्यार सिर्फ काश शब्द में ही सिमटकर रह गया है |
सीमा: मेमसाब, आप थोड़ा शांत हो जाइए। एक बार साहब को आ जाने दीजिए, सब क्लियर हो जाएगा।
नेहा: नहीं सीमा, जो कुछ clear होना था सब हो चुका है, अब clear होने के लिए कुछ होना भी तो चाहिए |
इतना कहकर नेहा गाड़ी में बैठकर वहां से चली गई। सीमा की बहुत कोशिशों के बाद में नेहा नहीं रुकी |
रात के 11 बज रहे थे | मृत्युंजय डिनर करके एंटीला हाउस पहुंचा । मृत्युंजय जानता था कि डिनर डेट कैंसिल होने की वजह से नेहा बहुत नाराज होगी, लेकिन साथ ही उसे यह भी विश्वास था कि वो उसकी मजबूरी को समझेगी और उसे माफ कर देगी।
मृत्युंजय घर पहुँचते ही सीधा अपने कमरे में गया | कमरे में उसे नेहा नहीं दिखी | उसने washroom का दरवाज़ा धीरे से knock करते हुए नेहा को आवाज़ दी पर उसे कोई जवाब नहीं मिला | नेहा को कमरे में ना पाकर उसने सोचा कि बाहर होगी | वो नेहा को ढूंढते हुए बाहर hall में आ गया और आवाज़ देने लगा | उसने नेहा को kitchen में भी देखा पर वह उसे कहीं नहीं मिली | अब उसे थोड़ी चिंता सताने लगी, साथ ही उसने महसूस किया कि घर में उसकी उम्मीद के मुताबिक कोई हलचल नहीं थी।
मृत्युंजय: नेहा, कम से कम जवाब तो दो। (थोड़ा जोर से) नेहा… अरे बाबा, आई एम रियली सॉरी! मैं फंस गया था। मर्रा जाना बहुत urgent था वर्ना client बिना डील sign किये ही चले जाते |
पर अभी भी कोई जवाब नहीं आया | सीमा मृत्युंजय की आवाज़ सुनकर बाहर आ चुकी थी और एक तरफ थोडा घबराई हुयी सी चुप चाप खड़ी थी |
मृत्युंजय: नेहा, तुम सुन भी रही हो? ये क्या बचपना है, नाराज़गी अपनी जगह है पर कम से कम सामने तो आओ….नेहा…अच्छा अब अगली बार ऐसा नहीं होगा, आई प्रॉमिस! आई एम रियली सॉरी! देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं।
अभी भी नेहा के सामने ना आने पर मृत्युंजय थोड़ा झुंझला गया और थोड़ा tension में भी आ गया | उसे महसूस हुआ कि नेहा घर पर नहीं है |
मृत्युंजय: नेहा यार, कहां हो तुम?
उसने नेहा का फ़ोन try किया पर वह switched off आ रहा था | मृत्युंजय ने थोडा चिढ़ते हुए सीमा को आवाज़ दी पर तभी उसकी नज़र कोने पर खड़ी सीमा पर गयी | मृत्युंजय सीमा के पास गया और पूछा नेहा कहां है ? सीमा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया पर उसकी आँखों में चिंता और घबराहट साफ नजर आ रही थी जिसे मृत्युंजय ने भांप लिया | उसकी चुप्पी ने मृत्युंजय को और भी परेशान कर दिया।
मृत्युंजय: सीमा, मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूं, जवाब दो नेहा कहां है?
सीमा: साहब, मेमसाब घर पर नहीं है।
मृत्युंजय: यह मुझे भी दिख रहा है कि नेहा घर पर नहीं है, पर कहां गई है, यह तो बताओ।
सीमा: पता नहीं, साहब।
मृत्युंजय: क्या मतलब पता नहीं? रात के 11:00 बज रहे है, नेहा घर पर नहीं है, और तुमने मुझे एक भी बार बताना ज़रूरी नहीं समझा |
सीमा: साहब, मैंने आपको कॉल किया था, पर आपने उठाया नहीं ।
मृत्युंजय ने तुरंत अपना मोबाइल चेक किया जिसमें सीमा के 12 मिस्ड कॉल पड़े हुए थे साथ ही नेहा के भी 10 मैसेज थे, और हर मैसेज में नेहा का एक ही सवाल था कि मृत्युंजय ठीक तो है ना, तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं है, और कब तक आओगे । ये सारे messages नेहा से उसकी आखिरी बार बात होने से पहले के थे | अब मृत्युंजय को थोड़ा गिल्ट महसूस होने लगा तभी सीमा ने मृत्युंजय को नेहा से बारे में बताया कि वो कैसे घर से गयी थी जिसे सुनकर वो हैरान रह गया |
मृत्युंजय को नेहा की नाराज़गी का अंदाज़ा हो गया था | उसने सीमा से पूछा कि क्या उसे कुछ अंदाजा है कि नेहा कहां गई होगी जिसे सुनकर सीमा ने ना में सर हिलाकर अपनी आँखें नीची कर लीं | मृत्युंजय ने सीमा से कहा कि अगर नेहा का कॉल आए या वह खुद आए, तो उसे तुरंत बताएं। सीमा ने हामी भर दी और मृत्युंजय तुरंत अपनी car से नेहा को ढूँढने के लिए निकल गया |
उसने आसपास के सारे होटल, रेस्टोरेंट और कैफे में पता किया लेकिन नेहा उसे कहीं नहीं मिली। अंत में हारकर मृत्युंजय को एंटीला हाउस वापस आना पड़ा। सीमा मृत्युंजय का दरवाजे पर ही इंतजार कर रही थी।
मृत्युंजय: नेहा वापस आई?
सीमा: नहीं साहब, आपको कुछ पता चला क्या ?
मृत्युंजय: मैंने वह हर जगह देख लिया जहां नेहा जा सकती थी, पर वह कहीं भी नहीं थी। उसका फ़ोन अभी भी स्विच ऑफ आ रहा है?
सीमा: हां, साहब, मैंने भी कई बार उन्हें फ़ोन किया पर हर बार फ़ोन switched off ही बता रहा था | पता नहीं कहाँ होंगी मेमसाब?
मृत्युंजय (गुस्से में): तुम्हें अब चिंता हो रही है? तुम्हें उसी वक़्त कैसे भी करके उसे जाने से रोकना चाहिए था।
सीमा चुपचाप खड़ी हो गई, मृत्युंजय थका हुआ सा सोफे पर अपना सर पकड़कर बैठ गया।
मृत्युंजय (खुद से): आखिर नेहा इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है? मानता हूं, मैंने गलती की, पर इस तरह घर छोड़कर चले जाना कैसी बचकानी हरकत है।
मृत्युंजय नेहा का इंतजार करते-करते सोफे पर ही सो गया।
सुबह के 6 बज गए थे कि तभी अचानक मृत्युंजय की नींद खुली। उसने देखा कि नेहा दरवाजा खोलकर अंदर आ रही थी।
मृत्युंजय के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी और उसने राहत की सांस ली पर अगले ही पल उसे नेहा की हरक़त पर गुस्सा आने लगा और उसने नेहा से गुस्से में पूछा कि रात भर वह कहां थी और वो कितना परेशान था उसके लिए |
नेहा ने मृत्युंजय की बातों को पूरी तरह अनसुना करते हुए बेडरूम की ओर बढ़ना शुरू किया। उसका यह रवैया मृत्युंजय के गुस्से को और बढ़ा गया, और वह भी उसके पीछे-पीछे बेडरूम में चला गया।
मृत्युंजय: ये क्या तरीका है नेहा | गुस्सा अपनी जगह है और इस तरह की रवैया | जवाब दो नेहा | तुम्हें मुझसे बात करनी ही होगी, इस तरह से ignore नहीं कर सकती तुम मुझे |
नेहा (sarcastic smile के साथ): चलो मेरे जाने की वजह से ही सही मुझे तुम्हारे मुंह से ये सुनना तो नसीब हुआ कि तुम्हें मुझसे बात करनी है, वर्ना तो ज़माने बीत गए थे हमारे बीच फॉर्मैलिटी के अलावा कोई और बात हुए |
नेहा की कड़वी बातें मृत्युंजय को बहुत चुभ रही थीं | वह नेहा के इस रवैये को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था |
मृत्युंजय (चिढ़ते हुए): नेहा, हर वक़्त ताने मारना बंद करो । थक गया हूं तुम्हारे ताने सुन-सुनकर।
नेहा: तो फिर हर बार तुम मुझे हर्ट क्यों करते हो? मुझे भी कोई शौक नहीं है तुम्हें ताने मारने का।
मृत्युंजय: बोल तो तुम ऐसे रही हो जैसे सब कुछ मैं अपने लिए कर रहा हूं।
नेहा: तो किसके लिए कर रहे हो?
मृत्युंजय: हमारे लिए। हमारे होने वाले बच्चों के लिए।
नेहा: कौन सा बच्चा? वही जिसकी प्लानिंग हम अभी तक नहीं कर पाए।
मृत्युंजय: बस एक बार सब कुछ सेटेल हो जाने दो, फिर करते है न प्लानिंग।
नेहा (झुंझलाते हुए) मृत्युंजय, तुम्हारा कभी कुछ भी सेटेल नहीं होगा। और वैसे भी, अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती।
मृत्युंजय: नेहा, तुम कहना क्या चाहती हो? इतना थक गई हो मुझसे?
नेहा (रोते हुए) मृत्युंजय, मैं तुमसे नहीं थकी हूं, बस हालात से हार चुकी हूं। नहीं करना अब और इंतजार।
मृत्युंजय: बेबी, इतना बड़ा इंपायर मैं हम दोनों के लिए ही तो खड़ा कर रहा हूं। बस कुछ समय और। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। I promise।
नेहा (समझाते हुए): मृत्युंजय, तुम समझ नहीं रहे हो। मुझे तुम्हारे करोड़ों के इंपायर की कभी जरूरत थी ही नहीं। मैंने कभी तुमसे यह आलीशान घर या महंगी गाड़ी नहीं मांगी। मैंने हर बार सिर्फ और सिर्फ तुमसे तुम्हारा समय मांगा है। और तुमने हर बार मुझे वही नहीं दिया ।
मृत्युंजय (झुंझलाते हुए): अगर जरूरत नहीं है, तो क्यों हो यहां पर? क्यों जी रही हो ऐसे ऐशो-आराम की ज़िन्दगी ? ये सब सिर्फ कहने की बातें हैं नेहा, जिस दिन ये सब नहीं मिलेगा ना उस दिन से रह नहीं पाओगी तुम |
मृत्युंजय की बात सुनकर नेहा का दिल धक् से रह गया | उसके समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे |
नेहा: मुझे तो लगता था कि मैं यहां पर तुम्हारे लिए हूं पर शायद तुम्हें लगता है कि मैं यहाँ इस ऐशो आराम के लिए हूँ | मैं ही गलत थी। एक बात आज मैं समझ गयी हूँ मृत्युंजय कि तुम्हें मेरी जरूरत नहीं है। तुम्हारे लिए तुम्हारी कंपनी और तुम्हारा काम काफी है।
मृत्युंजय: नेहा तुम हर बात को गलत समझती हो | पता है नेहा, मुझे लगता था कि तुम मुझे समझोगी। तुमने मेरी मेहनत देखी है पर मैं गलत था | तुम्हारे नज़रों में मेरी मेहनत की कोई अहमियत नहीं है| अगर तुम मुझे ऊपर नहीं उठा सकती, तो कम से कम नीचे तो मत गिराओ।
नेहा: ठीक है मृत्युंजय! अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं तुम्हारे और तुम्हारी मंजिल के बीच में आ रही हूँ तो आज के बाद मैं तुमसे कुछ नहीं कहूंगी। कोई ताना नहीं, कोई उम्मीद नहीं, आज से हम दोनों अजनबी। हम एक छत के नीचे जरूर रहेंगे, पर हमारा एक-दूसरे से कोई नाता नहीं रहेगा, अब ठीक है न।
मृत्युंजय: ओह गॉड…मेरा यह मतलब नहीं था नेहा।
नेहा: तुम्हारा जो भी मतलब हो मृत्युंजय, पर अब ऐसा ही होगा। तुम भी खुश रहोगे और मुझे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
इतना कहकर नेहा वहां से चली गयी | मृत्युंजय को एहसास हुआ कि उसे नेहा से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी और अपनी बात को सही तरीके से समझाना चाहिए था, साथ ही नेहा की बात भी समझने की कोशिश करनी चाहिए थी | उसके दिमाग में अभी यही सब चल रहा था कि तभी अचानक से उसे गाड़ी start होने की आवाज आई | वो दौड़कर बाहर गया तभी नेहा उसकी आँखों के सामने से फिर से गाड़ी लेकर कहीं चली गई थी । मृत्युंजय को नेहा की चिंता होने लगी क्यूंकि नेहा ने अभी नई-नई गाड़ी चलाना सीखा था, और इतने गुस्से में उसका गाड़ी चलाना भी safe नहीं था । और तो और उसे इस बात की भी चिंता हो रही थी कि नेहा आखिर गाड़ी लेकर गई कहाँ है?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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