नेहा, मृत्युंजय की बात से काफी दुखी थी। मृत्युंजय का यह कहना कि वह उसके साथ उसकी शान-ओ-शौकत के लिए है, जो सुन कर उसे बहुत बुरा लगा था। नेहा एक शांत स्वभाव की लड़की है; उसके और मृत्युंजय के बीच कभी ऐसी लड़ाई नहीं हुई है जैसे अभी हो रही है। उसने कभी गुस्से में घर नहीं छोड़ा था, लेकिन आज वह दो बार घर छोड़कर जा चुकी थी।
किसी तरह कल की रात उसने होटल में बिता ली थी, पर अब वह कहाँ जाए? नेहा के माता-पिता उसी शहर में रहते है, लेकिन वह अपने माता-पिता के यहाँ नहीं जाना चाहती थी। उसे पता था कि अगर वह वहाँ गई तो उसे बहुत सारे सवालों का जवाब देना होगा, जो वह नहीं देना चाहती थी। बहुत सोचने के बाद भी नेहा को कुछ समझ नहीं आया और अपने माता-पिता के पास जाने के अलावा नेहा के पास कोई और रास्ता नहीं था।
इधर मृत्तुंजय लगातार नेहा को फोन कर रहा था, पर नेहा उसकी कोई भी कॉल रिसीव नहीं कर रही थी। मृत्युंजय अब बहुत ज्यादा फ्रस्ट्रेट हो चुका था। नेहा ने कभी भी ऐसा नहीं किया था जैसा वह अब कर रही थी। नेहा पहली बार इस तरह घर छोड़कर गई थी। मृत्युंजय को भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह इस सिचुएशन को कैसे हैडल करे।
सुबह के 8 बज चुके है, मृत्युंजय को अब ऑफिस के लिए भी निकलना था। उसने सीमा को आवाज लगाई, सीमा दौड़ते हुए आई।
मृत्युंजय: "अगर नेहा घर आती है तो तुरंत मुझे कॉल करना। और उसे कहीं जाने मत देना। अगर उसे रस्सी से बांधना पड़े तो बांध देना, बस उसे कहीं जाने मत देना।"
सीमा ने चुपचाप सिर हिला दिया। मृत्युंजय उसे जाने को कहकर खुद ऑफिस के लिए तैयार होने चला गया। नेहा आखिरकार अपने माता-पिता के घर पहुँच चुकी थी, पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कार से बाहर निकलकर घर के अंदर जाए। यही वह घर था जहाँ से उसकी डोली 8 साल पहले एंटिलिया हाउस के लिए निकली थी। नेहा ने कभी नहीं सोचा था कि आज इस तरह उसे अपने घर वापस आना पड़ेगा। अभी नेहा अपने ख्यालों में खोई ही थी कि अचानक उसे खिड़की पर दस्तक की आवाज़ आई। नेहा हड़बड़ाकर अपनी खिड़की की ओर मुड़ी, तो देखा कि उसके पापा एक बड़ी-सी मुस्कान लिए खड़े है। शायद उसके पापा ने नेहा को आते हुए देख लिया था। नेहा ने तुरंत अपना मुँह दूसरी तरफ़ मोड़कर आँसू पोंछे और मुस्कान के साथ कार का दरवाजा खोला।
नेहा: "पापा, आप क्यों बाहर आ गए? मैं अंदर आ तो रही थी।"
मिस्टर सिंघानिया: "मैंने तुम्हें आते देख लिया था। मुझसे रहा नहीं गया। आखिर मेरी रानी बिटिया जो आई है।"
मिस्टर सिंघानिया: "शिल्पा देखो कौन आया है।"
मिसेज़ सिंघानिया: “कौन आ गया इतने सवेरे?”
जैसे ही मिसेज़ सिंघानिया हॉल में आईं, नेहा दौड़कर उनके गले लग गई। मिसेज़ सिंघानिया ने नेहा से कहा कि उसे पहले बताना चाहिए था कि वह आ रही है, ताकि वह उसकी पसंदीदा डिश बना कर रखती। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पिछली बार जब वह आई थीं, तो नेहा ने कुछ नहीं खाया था।
यह सुनते ही नेहा की आँखों में आँसू आ गए। पिछली बार मृत्युंजय के साथ न आने की वजह से उसका मूड खराब था, और इस बार तो वह मृत्युंजय से लड़कर ही आई थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने ईमोशन को कैसे छिपाए।
मिसेज़ सिंघानिया ने नेहा से उसका हाल-चाल पूछा और फिर मृत्युंजय के बारे में भी सवाल करने लगीं।
नेहा ने कुछ जवाब नहीं दिया, मिसेज़ सिंघानिया को तुरंत समझ में आ गया कि कुछ ठीक नहीं है।
मिस्टर सिंघानिया: "कुछ बोलोगी, बेटा?"
मिसेज़ सिंघानिया अपने पति को शांत कराकर नेहा को अंदर कमरे में ले जाती है।
मिसेज़ सिंघानिया: "क्या हुआ है, नेहा?"
नेहा कुछ नहीं बोलती है। मिसेज़ सिंघानिया के बार-बार पूछने पर नेहा उन्हें सब कुछ बता देती है।
नेहा: “मम्मी, मैं अब वहाँ नहीं जा सकती। जहाँ मेरी इज्जत नहीं, उस घर में रहकर क्या फायदा।”
मिसेज़ सिंघानिया जानती थीं कि अभी नेहा को कुछ भी समझाने का कोई फायदा नहीं है; वह नेहा को शांत कराती है।
मिसेज़ सिंघानिया ने नेहा से बोला कि वह जल्दी से हाथ-मुँह धोकर डाइनिंग टेबल पर आ जाए, ताकि वह साथ में नाश्ता कर सकें।
नेहा ने गहरी सांस ली और सिर हिलाया। मिसेज़ सिंघानिया ने नेहा को कमरे में अकेला छोड़कर बाहर चली गईं।
इतना कहते ही मिसेज़ सिंघानिया खाने की टेबल सजाने लगीं, और मिस्टर सिंघानिया अपना अखबार लेकर ड्रॉइंग हॉल में चले गए।
थोड़ी देर में, नेहा कमरे से नीचे आई; अब वह थोड़ी बेहतर लग रही थी, और उसने अपनी पुरानी स्कर्ट पहनी है, जिसे वह शादी से पहले पहनती थी; उसे उस स्कर्ट में देखकर मिस्टर सिंघानिया हंसने लगे।
मिस्टर सिंघानिया: मैं तो तुम्हें सिर्फ साड़ी और सूट में देखकर तंग आ गया था। कभी-कभी ये सब भी पहन लिया करो।"
नेहा को समझ आ रहा था की उसके पापा नेहा का मूड ठीक करने के लिए ऐसी बातें कर रहे है।
नेहा (मुस्कुराते हुए): "जी कैप्टन !"
मिस्टर सिंघानिया और नेहा डाइनिंग टेबल पर जाकर बैठते है…मिसेज़ सिंघानिया नाश्ता लेकर आती है नेहा को साफ दिख रहा था, कि उसके माता-पिता परेशान है। वे उससे कुछ बात करना चाहते थे, लेकिन नेहा कोई भी बात करने के मूड में नहीं थी, इसलिए वह चुपचाप नाश्ता करने लगती है। मिस्टर और मिसेज़ सिंघानिया भी समझ गए थे कि नेहा अभी उनसे बात नहीं करेगी।
मिस्टर सिंघानिया: "तो नेहा, कितने दिनों के लिए आई हो यहाँ?"
नेहा: "क्यों? मैं अपने घर दिन गिनकर आऊँ?"
मिस्टर सिंघानिया: "अरे बेटा, मेरा ऐसा मतलब नहीं था। मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था।"
नेहा एक नकली सी मुस्कान लिए नाश्ता करने लगती है। नेहा को कोई अंदाज़ा नहीं था कि अब इसके आगे उसे क्या करना चाहिए। मृत्युंजय के पास वापस जाने का कोई सवाल नहीं था, लेकिन आखिर वह कितने दिन तक अपने माता-पिता के सवालों से बच सकती थी?
उधर मृत्युंजय ऑफिस पहुंच गया था, पर उसका मन ऑफिस में बिल्कुल भी नहीं लग रहा था। सुबह से वह अपनी दो अपॉइंटमेंट्स पहले ही मिस कर चुका था। नेहा से हुई लड़ाई अब उसके काम पर असर डालने लगी थी, मृत्युंजय को यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं था।
मृत्युंजय (खुद से): "इतनी बार कॉल किया मैंने नेहा को। कम से कम एक बार उठाकर यह तो बता सकती है कि कहाँ है। ऐसा भी क्या बुरा बोल दिया। गुस्से में कभी-कभी इंसान ज्यादा बोल देता है। इसका मतलब यह तो नहीं कि घर छोड़कर चली जाएगी।"
तभी मृत्युंजय का फोन बजता है। कॉल उठाने पर एक गंभीर आवाज में किसी ने "हैलो" कहा, और मृत्युंजय समझ गया कि यह कॉल नेहा के पापा, मिस्टर सिंघानिया का है।
मृत्युंजय ने प्रणाम करते हुए पूछा कि आज अचानक उनका कॉल कैसे आ गया.
मिस्टर सिंघानिया ने बताया कि यहाँ सब कुछ ठीक है, लेकिन उन्हें ऐसा लग रहा है कि नेहा और मृत्युंजय के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
मृत्युंजय ने राहत की सांस ली, यह जानकर कि नेहा सही-सलामत अपने पेरेंट्स के घर है। इस खबर से उसे खुशी हुई, फिर उसने मिस्टर सिंघानिया को समझाया कि यह बस एक छोटी सी मिसअंडरस्टैंडिंग है और वह आज शाम को वहां आकर सब कुछ ठीक कर देगा।
इतना कहकर मृत्युंजय ने कॉल कट कर दी, और अब वह अपने काम पर ध्यान लगा सकता है. उसने अपनी सेक्रेटरी को कॉल करके शाम का अपना शेड्यूल फ्री करने को कहा, क्योंकि वह नेहा को अपने पेरेंट्स के घर से वापस ले जाना चाहता था।
नेहा, खराब मूड के चलते ऑफिस नहीं गई थी और उसका मन बिल्कुल भी ऑफिस जाने का नहीं कर रहा है। वह अपने कमरे में बैठकर कुछ सोच रही होती है, तभी बेल बजती है।
जैसे ही नेहा ने दरवाजा खोला, उसे मृत्युंजय को देख कर शॉक लग जाता है। तभी पीछे से नेहा के पापा आ जाते है।
नेहा समझ जाती है कि मृत्युंजय को उसके पापा ने बुलाया है, ताकि नेहा और मृत्युंजय की लड़ाई सुलझ सके। नेहा को इस बात पर बहुत गुस्सा आता है, वो बिना कुछ बोले अपने रूम की तरफ़ जाने लगती है।
मिस्टर सिंघानिया: अरे बेटा, कहां जा रही हो। मृत्युंजय आया है। बैठो, उससे बात करो।
इतना कहकर मिस्टर सिंघानिया वहां से चले जाते है, लेकिन नेहा का मृत्युंजय से बात करने का बिल्कुल भी मन नहीं होता।
नेहा: यहां क्यों आए हो मृत्युंजय?
मृत्युंजय: तुम्हें लेने।
नेहा: मुझे नहीं आना । मैं यहां खुश हूं।
मृत्युंजय: और मेरा क्या नेहा? मेरे बारे में कभी सोचा है? क्या करूंगा मैं अकेला वहां?
नेहा के चेहरे पर एक नकली सी मुस्कान आ जाती है। वो सोचती है कि अभी भी मृत्युंजय को अपनी ही पड़ी है। मृत्युंजय ने एक बार भी अपनी कल की बातों के लिए सॉरी तक नहीं बोला।
नेहा: मृत्युंजय, मैं नहीं आ रही अभी वहां। मुझे जब लगेगा कि मैं वापस आने के लिए तैयार हूं, मैं खुद आ जाऊंगी। अभी तुम यहां से जाओ।
ये सुनकर उसका मुंह लटक सा जाता है, पर मृत्युंजय को पता है कि अगर वो नेहा को फोर्स करेगा, तो बात और बिगड़ सकती है। मृत्युंजय बिना कुछ बोले वहां से चला जाता है, इतने में मिस्टर सिंघानिया और मिसेज़ सिंघानिया वहां आते है। और मृत्युंजय को कमरे में ना देखकर नेहा से पूछते है, की मृत्युंजय आखिर कहा गया? और नेहा का जवाब होता है कि वो जा चुका है … दोबारा सवाल करने पर नेहा अपनी नाराज़गी जताती हुए बोली,
नेहा: पापा, मुझे पता है कि आपको मेरी चिंता है। अगर आप चाहते है कि मैं यहां पर रहूं तो प्लीज आइंदा से मुझसे बात किए बिना मृत्युंजय को घर पर नहीं बुलाइएगा।
इससे पहले की मिस्टर सिंघानिया कुछ कह पाते, नेहा अपनी बात अपने पापा के सामने रख कर कमरे से बाहर चली जाती है, हालांकि नेहा का ये रवैया उसके पापा के मन में ये सवाल ज़रुर बैठा देता है कि क्या वाकई नेहा अब अपने ससुराल यानि एंटिलिया हाउस वापस नहीं जाएगी…?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.