अहमदाबाद के कालूपुर इलाके के बीचों-बीच है एक छोटा-सा दो कमरों का मकान। ​​बाहर का कमरा ऐसा, जैसे किसी ऑफिस के वेटिंग एरिया का रिसेप्शन हो।  ​​वहाँ लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां लगी हुई हैं। सामने एक रिसेप्शन टेबल रखी है, जहाँ कोई भी अपना नाम दर्ज करवा सकता है और अंदर वाला कमरा... वो एक केबिन की तरह है। इसी कमरे में डॉक्टर राघव कालरा बैठते हैं।​

​​डॉक्टर राघव कालरा का नाम, कभी अहमदाबाद शहर के मशहूर सर्जन्स  में गिना जाता था। उस आदमी ने अपने करियर में कितनी ही ज़िंदगियाँ बचाईं हैं। पर अब... अब वही डॉक्टर राघव कालरा अपनी ही गलतियों के बोझ तले दबा हुआ है। उसके हाथ, जो कभी सर्जरी की बारीकियाँ बखूबी समझते थे, अब सर्जरी के नाम से ही काँपने लगते हैं। ​

​​राघव की गहरी सांसें सुनाई दे रहीं हैं, जैसे वह कुछ सोच रहा हो। ​​उसके हाथों में सर्जरी की एक पुरानी रिपोर्ट है, जिसे वो पलट-पलट कर देख रहा था। उसकी उँगलियाँ भले ही रिपोर्ट की लाइनों पर चल रहीं थीं, लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था। ​

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राघव का बचपन से बस, एक ही सपना था—एक सफल सर्जन बनकर लोगों की ज़िंदगियाँ बचाना। वह उन बच्चों में से था जिनके माँ-बाप को कभी पढ़ाई के लिए डांटने या चिल्लाने की ज़रूरत नहीं पड़ी, वो खुद ही किताबें उठाकर पढ़ने लगता था।​

​​एक दिन, एक गलती ने उसकी पूरी ज़िंदगी बदल दी। एक सर्जरी में, एक छोटी सी भूल की वजह से, उसका सब कुछ छिन गया—नाम, रुतबा, मसरूफ़ियत! अब अगर उसकी ज़िंदगी में कुछ बचा है, तो बस ख़ालीपन।​

​​राघव फिर एक गहरी साँस लेकर उस फ़ाइल को बंद कर देता है। कमरे में हल्की सी खामोशी छा जाती है। राघव के सामने एक बड़ी सी मेज़ रखी है, जिस पर उसके ऑफिस का सामान बिखरा पड़ा है। उसी बिखरे सामान के बीच उसकी नज़र घंटी पर जाती है। जैसे ही वह उसे उठाकर दबाने की कोशिश करता है, उससे पहले उसका फ़ोन बजने लगता है।​

​​फ़ोन की स्क्रीन पर एक अनजान नंबर चमकता है। वह थोड़ी देर के लिए रुकता है, फिर झिझकते हुए फ़ोन उठाता है। ​

​​राघव: "हाँ? मैं बस दस मिनट में निकल जाऊँगा... हाँ, तुम खाना खा लेना। अब सारे अपॉइंटमेंट्स खत्म हो गए हैं, तो मैं बस निकलने वाला हूँ।"​

राघव के सर्जरी छोड़ने पर उसकी पत्नी ने उससे कई सवाल किए, लेकिन डॉक्टर राघव ने कभी अपने परिवार को सच नहीं बताया। दरअसल, हिम्मत नहीं हुई।  उस एक दिन का सच, जिसने डॉक्टर राघव कालरा की ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल दी थी।​

​​आख़िर ऐसा क्या हुआ था, जिसकी वजह से शहर का एक मशहूर सर्जन , सर्जरी छोड़कर बन गया एक आम कन्सल्टन्ट? ​

​​क्या वो डर था, पछतावा था, या फिर एक गहरी चोट, जिसे राघव कभी ठीक नहीं कर सका?​

​​राघव फोन वापस मेज़ पर रखते हुए बड़बड़ाता है:​

​​राघव: "सब कुछ ठीक चल रहा था... काश उस दिन कुछ कर पाता।"​

​​वो रात, हर रात की तरह शांत थी। राघव अपने बीते हुए कल के खयालों में खोया ही हुआ था कि अचानक किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। राघव ने घड़ी की तरफ़ देखा। रात के 11 बज रहे थे। ​

​​राघव: “इतनी रात को कौन हो सकता है?”​

एक डॉक्टर होने के नाते राघव किसी को भी मना नहीं करता था, चाहे वो दिन हो या रात। ​

​​राघव, अपनी चप्पल पहनकर, अपने मेन डोर की ओर चल पड़ता है। उधर, दरवाज़े की दूसरी ओर से कुछ पैरों की आहट सुनाई देती है। ​

​​राघव: “आया भाई.. आया!”​  

 राघव ने दरवाज़ा खोला और देखा कि सिर से पांव तक काले कपड़े पहने एक आदमी खड़ा था। चेहरे पर मास्क लगाए इस शख्स के हाथ में एक लिफ़ाफ़ा था। ​

​​राघव: “हां जी कौन? कौन हैं आप? क्लिनिक का टाइम 5 से 9 बजे है। कोई इमर्जन्सी है?”​

​​वो अनजान आदमी धीरे से कहता है, “डॉक्टर कालरा, मैं आपको एक मौका देने आया हूँ जिससे आप अपनी सबसे बड़ी गलती सुधार सकते हैं।”​

​​डॉक्टर राघव हैरान हो जाता है। वो आदमी धीरे से वो लिफ़ाफ़ा उसकी ओर बढ़ाता है। राघव उसे शक की निगाहों से देखते हुए लिफ़ाफ़ा ले लेता है।​

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समंदर की लहरों की तरह राघव के मन में हज़ारों सवाल उठ रहे थे कि आखिर ये अनजान शख्स है कौन? यह मुझे जानता कैसे है? क्या इसे उस सर्जरी के बारे में मालूम है? मैंने तो कभी किसी को नहीं बताया। क्या यह आदमी उसी गलती को सुधारने की बात कर रहा है? यह कैसे पॉसिबल है!!!​

​​काँपते हाथों से राघव लिफ़ाफ़ा खोलता है। अंदर सिर्फ़ एक कागज है। राघव उस कागज़ पर लिखी पंक्तियों को पढ़ता है। पढ़ते-पढ़ते उसके चेहरे के भाव बदल जाते हैं और उलझन की लकीरें साफ़ नज़र आने लगती हैं।​

 

​​राघव​: ​“मुझे पता है कि तुम अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी ग़लती से पीछा छुड़ाना चाहते हो और तुम ऐसा कर भी सकते हो। इसके लिए बस तुम्हें एक लाइब्रेरी में जाना होगा। तुम्हारे सारे सवालों के जवाब वहीं मिलेंगे। ध्यान रहे, यह मौका तुम्हें एक बार ही मिलेगा इसलिए जो भी कदम उठाना चाहते हो, सोच समझ के उठाना। कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने पछतावे से कभी बाहर ही न आ पाओ। ​

राघव के हाथों ने उस कागज़ को जकड़ रखा था। चिंता और परेशानी उसकी आंखों में तैरती हुई साफ नज़र आ रही थी। ​

​​उस कागज़ पर उस लाइब्रेरी की लोकेशन थी- ‘मसिनागुड़ी, नीलगिरी घाटी’। एक लाइब्रेरी , जहां वह अपने पछतावे से छुटकारा पा सकता है? क्या वाकई ऐसा हो सकता है? या कोई मुझे फँसाने की साज़िश तो नहीं रच रहा है? राघव के दिमाग में वही काली रात घूमने लगती है, वह ऑपरेशन टेबल, वह आखिरी सांसे, और फिर डॉक्टर के तौर पर हुई उसकी सबसे बड़ी चूक। अब यह अजनबी कह रहा है कि इस गलती को ठीक किया जा सकता है! कैसे?​

​​राघव उस कागज़ पढ़ने के बाद, भारी मन से उसे टेबल पर रख देता है। वह आदमी तब भी दरवाजे पर खड़ा था और उसकी आंखें अंधेरे में चमक रही थीं।​

​​राघव: ​“क्या बकवास है ये? मैं अब उस गलती को कैसे सुधार सकता हूँ? ईट्स इम्पॉसिबल!”​

वह अनजान आदमी कहता है, “डॉक्टर साहब, कभी-कभी लाइफ़ हमें दूसरा मौका दे देती है, लेकिन यह हम पर डिपेंड करता है कि हम उसे कैसे देखते हैं। आपके पास भी एक मौका है, डॉक्टर साहब। चाहो तो ट्राई मार लो।”​

​​राघव उस आदमी की आँखों में देखता है, लेकिन कुछ समझ नहीं पाता। उसकी बातें उसे उलझा रही हैं। वह आदमी धीरे से मुड़कर चला जाता है, उसके कदमों की आवाज़ दूर तक सुनाई देती है और फिर सन्नाटा छा जाता है।​

​​राघव, मेज़ पर रखे उस काग़ज़ को गौर से देखता है और उसके दिमाग़ में एक बार फिर हज़ारों सवाल कौंधने लगते हैं।​

​​राघव को समझ नहीं आ रहा था कि जो हो रहा है, वह वाकई में हक़ीक़त है या कोई सपना? उसकी आँखों के सामने वही काली रात, वो ऑपरेशन टेबल, वो बच्ची, वो मनहूस घड़ी दौड़ने लगती है जब उसकी एक गलती ने उस बच्ची की ज़िंदगी छीन ली थी।​

​​राघव उस आदमी के पीछे जाता है और आवाज़ लगाता है,​

​​राघव: "आखिर आप हैं कौन?"​

जब तक राघव कुछ समझ पाता, वो आदमी जा चुका था।​

​​राघव​: ​“क्या सच में यह मुमकिन हो सकता है? और अगर धोखा हुआ तो?  
मैं तो पहले से ही सब-कुछ खो बैठा हूँ… और खोने को है ही क्या? और अगर यह सच है, तो क्या मैं इस मौके को हाथ से जाने दूँ?”​

कमरे में घड़ी की टिक-टिक की आवाज गूंजने लगती है। राघव अपनी कुर्सी पर बैठ जाता है, उसकी नज़रें अब भी कागज़ पर टिकी हुई हैं। उसका दिमाग तेजी से सोच रहा है, और उसकी उंगलियां कागज के किनारे को सहला रही हैं। ​

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उसके दिमाग में अभी भी कई सवाल हैं। ये कैसी लाइब्रेरी है? क्या होगा वहाँ जाकर?  क्या यह मौका सच में उसकी ज़िंदगी बदल सकता है? या यह सिर्फ़ एक और छलावा है, जो उसे और गहरे अंधेरे में धकेल देगा?​

​​वह दोबारा कागज़ में लिखी लाइंस पढ़ता है, जैसे उसके शब्दों का मतलब समझने की एक और कोशिश कर रहा हो।​

​​राघव​: ​“अगर मुझे सच में यह मौका मिल सकता है, तो शायद... शायद मैं अपनी सबसे बड़ी गलती को सुधार सकूं।”​

राघव टेबल के किनारे पर बैठ जाता है। एक तरफ उसके मन में उम्मीद की एक किरण भी है और दूसरी तरफ़ वो अभी भी उस आदमी पर शक कर रहा है।​

​​राघव के सामने अब सिर्फ़ दो रास्ते हैं—या तो वह इस मौके को नज़र अंदाज कर दे और अपनी जिंदगी उसी खालीपन में बिताए, जो उसने खुद चुना है। या वह उस अजनबी की बात मान कर उस लाइब्रेरी तक पहुंचे, और शायद, बस शायद, अपनी सबसे बड़ी गलती को सुधार सके।​

​​राघव के चेहरे के भाव बदलने लगते हैं, मानो उसने कोई फैसला कर लिया हो। उसे ठीक वैसा ही महसूस होने लगता है, जब उसने अपने पिता जी से अपने सर्जन बनने की इच्छा ज़ाहिर की थी.. और फिर आया वह दिन जब वह डॉक्टर राघव से सर्जन राघव बन गया। उसके एक्सप्रेशन्स से साफ़ पता चल रहा था कि उसने कोई फ़ैसला ले लिया है लेकिन ये फैसला आखिर था क्या?​

​​क्या वो अपनी ज़िंदगी को एक बार फिर से रफ़ू करने के लिए तैयार हो चुका था? क्या राघव उस काग़ज़ पर लिखी लाइब्रेरी में अपनी किस्मत आज़माने जाएगा...​

​​क्या वाकई उसे दूसरा मौका मिल सकता है? या यह सब सिर्फ़ एक भ्रम है?​

​​और ये कैसी लाइब्रेरी  है, जहाँ अपने अतीत की गलतियों को सुधारा जा सकता है? ​

​​आपके मन में भी यही सवाल तैर रहे होंगे, हैं न? पर आप अकेले नहीं हैं। डॉक्टर राघव कालरा की तरह! 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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