धाँय - धाँय करके दो - तीन बार गोलियाँ चलने जैसी आवाज आई, आकार नीचे हॉल में खड़ा था और वह आवाज सुनकर आकार की जान निकल गई। छत तक जाने की हालत नहीं हो रही थी, वह पूरा काँप रहा था। अपनी जगह जड़ बना खड़ा था, तभी फिर एक धमाके सी आवाज़ आई और इस बार आकार चीखते हुए छत की तरफ भागा। “अंकिताअअअ,आ,,,” हाँफते हुए वह छत पर पहुँचा और वहाँ भीड देखकर ठगा सा खड़ा रह गया। पूरी छत जगमगाती रौशनी से सजी थी, कॉलोनी के कुछ बच्चे, कुछ बड़े और कुछ अंकिता के फ्रेंड्स, सभी अंकिता को घेरकर खड़े थे।

बीच में अंकिता, बर्थ डे क्रॉउन पहन कर खड़ी थी। आकार ने वहाँ बच्चों के हाथ में पटाखा शॉट्स देखे तो उसे समझ आया कि वह आवाज गोलियों की नहीं, बल्कि उन शॉट्स की आई थी। आकार ने चैन की साँस लेकर अंकिता को देखा, उसके सिर पर लगा बर्थ डे क्राउन देखकर याद आया कि आज अंकिता का बर्थ डे है, पर आकार अंकिता को सही सलामत देखकर इतना ख़ुश हो गया कि वह बर्थ डे विश करने की बजाय उसे गले लगाकर रो पड़ा।

आकार : – ( घबराते हुए ) ऐसा कौन करता है अंकिता,,, मैं कितना डर गया था। पूरा घर छान मारा, कितनी जगह कॉल कर लिए। ना तुम्हारा पता था, ना बच्चों का, तुम नहीं जानती मेरी क्या हालत थी,,, बहुत अकेला सा महसूस कर रहा था। तुम मेरी ताकत हो, अंकिता, अब कभी मेरे साथ ऐसा मत करना। तुमने जो कहा था न हमेशा वह याद रखना लड़ना, झगड़ना, जो भी चाहे कर लेना, मग़र अलग होने का कभी मत सोच लेना। तुम सोच भी नहीं सकतीं, आज मैं किस क़दर डर गया था।

आकार को अपने डर और घबराहट में यह बिल्कुल याद नहीं था कि वह अंकिता से माफ़ी मांग रहा है। कुछ देर पहले तक उसे लग रहा था कि उसने अपना परिवार खो दिया है और उस घबराहट में, उनका ऐसे सामने आना, उसे दुनिया की सबसे बड़ी ख़ुशी जैसा लग रहा था। आस - पास सभी तालियां बजा रहे थे और बच्चे गा रहे थे,,, हैप्पी बर्थ डे टू यू, हैप्पी बर्थ डे टू यू डियर अंकिता आंटी। हैप्पी बर्थ डे टू यू,,,,

आकार ने अंकिता को गले लगाया तो उसे कसके पकड़ रखा था। उसका डर, अंकिता उसकी पकड़ से महसूस कर रही थी। उसने ख़ुद को आकार से अलग किया और उसे केक खिला दिया, पर आकार ने वापस उसे केक खिलाना चाहा तो उसने हाथ आगे करके उसे रोक दिया।आकार उदास होकर उसे देखता रहा और वह उसे नज़र अंदाज़ करते हुए बच्चों के बीच चली गई। पार्टी ख़त्म होने पर अंकिता बच्चों को साथ लेकर सुलाने जा रही थी, तभी पीछे से आकार ने उसे टोक दिया।

आकार : – ( उदास होकर ) तुमसे बात करनी है अंकिता…। देखो, मैं जानता हूँ, तुम गुस्से में हो और मुझसे कोई बात नहीं करना चाहती,पर मुझे भी तो सफ़ाई देने का अधिकार है ना? क्या हुआ कैसे हुआ, मेरी कितनी ग़लती है, सुने बिना ही तुम मुझे इस तरह नज़र अंदाज़ क्यों कर रही हो? तुम्हें हमेशा वह सही लगता है, जो तुम सही समझती हो, पर तुम भी ग़लत हो सकती हो अंकिता। प्लीज़ दस मिनट मेरी बात सुन लो, बच्चों को फिर सुला देना।

अंकिता ने रुककर उसे सुना और उसकी तरफ़ देखे बिना आगे बढ़ गई, पर इस बार आकार से पहले अश्विनी ने उसे रोक दिया। “क्या हुआ है मम्मा, आप घर आकर रो भी रहे थे और पापा कह रहे हैं आप उनसे गुस्सा हो? एक बार पापा की बात सुन लो न, हो सकता है आपका गुस्सा ख़त्म हो जाए। आप गुस्से में भी पापा की बात तो सुन सकती हो न" अश्विनी की बात सुनकर अंकिता मुस्कुराई, और उन दोनों को बेडरूम में छोड़कर आई तो आकार नीचे हॉल में बैठा दिखा। अंकिता जाकर उसके सामने बैठ गई, मगर उसे सामने देखकर, आकार हड़बड़ा गया। उसे समझ नहीं आ रहा था, कहाँ से शुरू करे। वह उठकर अंकिता के पास बैठ गया और हिचकिचाता सा बड़बड़ाता रह गया। थोड़ी देर तक अंकिता एक टक उसे देखती रही फ़िर खड़ी होते हुए बोली।

अंकिता : – ( सख़्ती से ) दस मिनिट से ज्यादा हो गए आकार, मुझे नहीं लगता तुम्हारे पास कहने को कुछ है। बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, मैं जा रही हूँ। तुम भी आराम कर लो, पार्टी के चक्कर में तुम्हें भी काफ़ी लेट हो गया। क्या पता,,, आज की तरह कल कौन सी बिज़नेस मीटिंग हो, और अगर तुम लेट हो जाओगे, तो तुम्हारी कम्पनी को लॉस हो जाएगा। मेरा क्या है, मैं तो घर में ही हूँ, कभी भी, दस मिनट, बीस मिनट बैठकर बात कर सकते हो। सो जाओ जाकर, गुड नाइट।

अंकिता आकार की बात बिना सुने चली गई… आकार क्या कहना चाहता था, यह सुनने में उसका कोई इंटरेस्ट नहीं था। वह आकार, जो अंकिता के बार - बार कोई बात पूछने पर एक जवाब मुश्किल से दे पाता था, आज अंकिता से कुछ बात करना चाहता था, पर अब, अंकिता के पास वक्त नहीं था। अंकिता को अपने बच्चों से ज्यादा किसी की फ़िक्र भी नहीं थी। आकार वहीं हॉल में सोफे पर बैठे बैठे सो गया। सुबह आकर अंकिता ने उसे देखा, तो ठिठक कर रह गई। आकार कभी इतने टेंशन नहीं पालता कि जहाँ चाहे पड़ा रहे…  उसे अपना उठना - बैठना, सोना सब सिस्टेमैटिक ही पसंद था।

अंकिता ने उसे जगाकर बैडरूम में जाने को कहा तो वह नींद में हड़बड़ाया सा उठकर खड़ा हो गया। अंकिता को सामने देखकर, अपने आसपास देखते हुए ऊपर चला गया। उसकी हालत देखकर अंकिता को उस पर तरस आ रहा था, पर उसने अंकिता की नजरों में ख़ुद को इतना गिरा लिया था कि अब नज़र नहीं मिला पा रहा था। आकार वहाँ से चला गया। सीढ़ियों पर उसे जाते, गौर से देखते हुए अंकिता, अपने आप से बात करने लगी।

अंकिता : – ( उदास होकर ) यह हालात तुमने ख़ुद बनाए हैं आकार...  तुम जैसे थे, मैंने तुम्हें वैसे ही स्वीकार किया था। तुम्हें मेरी कोई क़दर नहीं थी, बच्चों पर भी तुमने कभी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। घर के लिए तुम्हें कभी फुर्सत नहीं मिली.. छोटे - छोटे बच्चे पापा, पापा चिल्लाते रहते थे और मैं उन्हें समझाती रही, पापा बहुत काम करते हैं, थक जाते हैं। तुम्हारे पास, किसी से बात करने या किसी की बात सुनने की फुर्सत नहीं थी, पर तुम्हारा वह नया रूप देखकर, तुम मुझे दुनिया के सबसे फ्रॉड इंसान लग रहे हो। तुम्हारे बच्चे, तुमसे जरा से वक्त के लिए रिक्वेस्ट करते रहते हैं, और तुम अपना वक्त किसी पर इतने मजे से लुटा देते हो? एक बार भी तुम्हें बच्चे याद नहीं आते??

आकार की हरकत अंकिता की आँखों से नहीं हट रही थी, किसी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। मेड को नाश्ता बनाने का बोलकर वह डायनिंग टेबल पर आकर बैठ गई। माथे पर हाथ रखकर वह आँखें बंद करके उदास बैठी थी, आकार तैयार होकर नाश्ता करने आया पर अंकिता को बैठा देखकर उसके पास आकर बैठ गया। आकार, अंकिता का गुस्सा अच्छे से जानता था, उसने जब अपना पहला बच्चा खोया तो उसके बाद आकार की कंपनी ही छोड़ दी थी, जिससे कंपनी को बहुत लॉस हुआ था।

जो प्रॉजेक्ट उस वक्त उसके हाथ से निकल गया था,  उसके बाद आकार ख़ुद को दस साल पीछे मानता था, पर इस बार उसे डर था कि वह बच्चों को लेकर कहीं दूर न चली जाए। आकार को लगने लगा था कि अंकिता को सच बताना जरूरी हो गया, पर अंकिता अब कुछ नहीं सुनना चाहती थी। उसके रूखे व्यवहार से आकार चिड़चिड़ा गया, मग़र अंकिता को उसके चिड़चिड़ाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। वह उदास होकर वैसे ही उसकी तरफ़ देखती रही। अंकिता की गहरी उदासी देखकर, आकार फ़िर सफ़ाई देने की कोशिश करने लगा।

आकार : – ( चिल्लाकर ) तुम समझ क्यों नहीं रही हो अंकिता, कितनी बार कहूँ मैं कि मुझे तुमसे बात करनी है। तुम्हें मेरी बात सुननी तो चाहिए, ऐसा मैंने क्या कर दिया कि तुम्हें नया लग रहा है! तुम जो भी करो वह सब सही हो जाता है, और मुझे बोलने का भी मौका नहीं मिलता। तुम क्यों नहीं समझती अंकिता, तुमने जो देखा सिर्फ़ वही सच नहीं है, एक लंबी कहानी है मुझे मौका तो दो कि मैं कुछ बता पाऊँ।

अंकिता : – ( मुस्कुरा कर ) मेरे पास वक्त ही वक्त है आकार, मुझे कोई काम नहीं है, पर मुझे कुछ भी बताने के लिए तुम वक्त कहाँ से लाओगे? तुम्हारे पास तो किसी की सुनने का वक्त नहीं होता, अब अपनी सुनाने के लिए कहाँ से निकलेगा… खैर छोड़ो यह सब, मुझे तुम्हारे किसी भी कारनामे से कोई दिक्कत नहीं है, पर आकार बात तो यह है कि तुमने झूठ बोला। झूठ क्या, बल्कि तुमने दगा दिया।

अंकिता और आकार की बहस बहुत ज़्यादा बढ़ गई, तुम ग़लत मैं सही की ज़िद में, दोनों ही झुकने तैयार नहीं थे। आकार गुस्से में उठकर चल गया।  बहस के बाद वह  अपने कमरे में बैठा कीर्ति से अपनी पहली मुलाक़ात याद कर रहा था जिसे वह अभी तक नहीं भूला था। तब आकार आठवीं क्लास में था, बचपन था और बचपना भी मगर आकार उस वक्त को कभी नहीं भूलता।

गर्मियों की छुट्टी में आकार, अक्सर अपनी बुआ के घर जाता था। बुआ की ज्वाइंट फैमिली थी तो काफ़ी लोग एक साथ रहते थे, इसलिए भी आकार हर बार, छुट्टियाँ शुरू होते ही, बुआ के यहाँ पहुँच जाता था। उस साल बुआ के पड़ोस में छुट्टियाँ मनाने एक लड़की भी आई थी और वह लड़की कीर्ति परिहार थी, जो आज आकार के साथ थी। उसे याद करते हुए आकार अपने आप को दोष देने लगा।

आकार : – ( खोया हुआ ) तुम तब ही मेरी हो जातीं कीर्ति, पर उस वक्त मैंने तुम्हारी जरा भी कद्र नहीं की। काश तभी मुझे एहसास हो जाता कि मैं अपनी ज़िंदगी में तुम्हारी जगह किसी को नहीं दे पाऊँगा, तो कम से कम अंकिता और बच्चों की ज़िंदगी में यह उदासी नहीं होती। तुम्हारे जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं अधूरा रह गया... ना किसी को मेरा साथ मिल सका, ना ही मैं ख़ुद किसी का हो सका, और फिर तुम मुझे वापस मिल गईं। मुझे फ़िर से जीना आ गया, अंकिता और बच्चों ने मुझे इस तरह कभी नहीं देखा, पर इसमें मेरी ग़लती कहाँ है, मैं नहीं जानता। पता नहीं क्यों कीर्ति, तुम्हारा साथ होना मुझे ज़िंदगी की खूबसूरती से मिला देता है।

एक तरफ़ आकार कीर्ति को सोचकर रोमांचित हो रहा था, दूसरी तरफ़, अंकिता के होने से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता मग़र उसके ना होने से भी वह घबरा भी जाता था। वह किस पहेली में उलझ रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था। अंकिता से जो ग़लती हुई थी, आकार वही ग़लती जान बूझकर कर रहा था, मग़र अंकिता ने सोच लिया था, कि वह अपने बच्चों के लिए आकार को सही रास्ते पर जरूर लाएगी। आकार पर अभी कीर्ति के नाम का नशा सा चढ़ रहा था, कीर्ति के अलावा उसे और कुछ सही नहीं लगा रहा।

अंकिता रोते हुए दरवाज़े पर खड़ी थी कि फ़िर एक अनजान नंबर से फ़ोन आया, जिसे देख कर वह डर गई। फिर किसी नए नम्बर से कॉल आया है, फ़िर कोई आकार के बारे में नई खबर सुनाएगा…, अंकिता ने डरते हुए फ़ोन रिसीव किया और सामने से सुनी आवाज के बाद अंकिता घबरा गई, सांस तेज़ चलने लगी, फ़ोन कटते ही उसने एक लम्बी चीख मार दी,,,  “आकार,,,....”

 

क्या आकार फ़िर किसी मुश्किल में पड़ गया था,,,,??

क्या अंकिता अपनी बिखरती गृहस्थी बचा पाएगी???

या सपनों से समझौते करने के बाद भी अंकिता अकेली हो जाएगी???

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

 

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