अंकिता को फोन पर एक एड्रेस मिला था, बिना देर किए वह उस एड्रेस पर पहुँच गई। उसने टाइम देखा तो एक बजने में पांच मिनट की देर थी, एक बजे आकार आने वाला था। अंकिता बाहर ही खड़ी होकर उसका इंतज़ार करने लगी। थोड़ी देर में ही एक रेड कलर की कार आकर रुकी और हैरानी से अंकिता की आँखें खुली रह गईं। आकार उस कार से निकलते दिख रहा था, अंकिता के कानों में उस दिन की बात गूँज गई, जब अंकिता को आकार के साथ ऑफिस जाना होता था। उसे जल्दी ऑफिस पहुँचना था, आकार की गाड़ी सर्विसिंग के लिए गई थी तो अंकिता ने उसे यही कार निकालने को कह दिया था। उस वक्त  आकार गुस्से में चिल्लाया था।

आकार ; — ( चिल्ला कर ) दिमाग़ ख़राब है तुम्हारा, तुम्हें वह गाड़ी ऑफिस जाने के लिए चाहिए? कीमत पता है तुम्हें उसकी? अरे अंकिता ऐसी गाड़ियाँ सपना होती हैं, हम छोटे छोटे बिज़नेसमेन के लिए,,, थोड़ा जल्दी जल्दी क़दम उठाओ और आगे से टैक्सी लेकर निकल जाओ। वह गाड़ी तो हमने किन्हीं खास इवेंट्स के लिए ली है,,, अ,,, चलो ठीक है मैं किसी को बोलता हूँ, तुम्हें छोड़ दे।

आज अंकिता के सामने आकार उसी गाड़ी से निकल रहा था और अंकिता सोचने लगी कि आज कौन सा स्पेशल इवेंट था जिसके लिए उस ने यह गाड़ी निकाली। वह अपनी सोच से बाहर निकलती, उससे पहले एक और झटका लग गया। आकार ने गाड़ी का दूसरा दरवाजा खोला और गाड़ी से एक बहुत ही सुन्दर सी लड़की निकल कर खड़ी हो गई। वहाँ जो कुछ हो रहा था, देखकर अंकिता को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

वेस्टर्न ड्रेस पहने हुए वह लड़की किसी सेलेब्रिटी सी लग रही थी, घुंघराले बाल लहराकर कंधे पर लुढ़क रहे थे, काला चश्मा पहन रखा था। उसके गाड़ी से निकलते ही, हर कोई उसे पलट कर देख रहा था। अंकिताहैरानी से कभी उस लड़की को देखती तो कभी आकार को देख रही थी। आकार ने उसके सामने हाथ बढ़ाया और एक घुटने को जमीन से टिकाकर बैठते हुए कहा।

आकार ; – ( मुस्कुरा कर ) अगर मेरे इस हाथ में हाथ देकर, मेरे साथ तुम दो क़दम भी चलती हो... तो यकीन मानो, मैं ख़ुद को इस दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझूँगा। अगर तुम मेरे हाथ में ज़िंदगी भर के लिए अपना हाथ दे देती हो, तो मेरे लिए यह दुनिया जन्नत से भी ज्यादा खूबसूरत हो जाएगी। अगर तुम मेरे क़दम से क़दम मिला कर, मेरे साथ चलते हुए, मेरी हमसफ़र बन जाती हो, तो मैं ख़ुद को दोनों जहाँ की खुशियों का मालिक समझ लूँगा। बोलो कीर्ति, क्या ज़िंदगी भर के लिए मेरा साथ तुम्हें मंज़ूर है?

यह वही लड़की थी, जिसे अंकिता ने jewellery शो रूम पर देखा था। उसने हँसते हुए एक हाथ से अपना चश्मा उतारा और दूसरा हाथ आकार के हाथ में रख दिया। उसका हाथ पकड़ कर आकार जैसे ही खड़ा हुआ, वह आकार के गले से लिपट गई। अंकिता को उस अजनबी फोन कॉल पर आई आवाज़ याद आ गई, “आज आकार आपको अलग ही रूप में दिखेगा”। सचमुच आकार का यह रूप अंकिता ने कभी नहीं देखा था, वह इतना रोमांटिक भी हो सकता है, यह तो अंकिता सोच भी नहीं सकती थी। अंकिता भीगी पलकों से आकार को देख रही थी, तभी पीछे से किसी ने धीरे से कहा।  

“आँसू बहाकर ख़ुद को मत जलाइए मिसेज़ पटेल, अपने पति को सबक सिखाइए। जरा देख लीजिए, उनकी 45 करोड़ की गाड़ी, बाहर खड़ी है, जिसे वह बहुत ही कम बाहर निकालते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं, उस पर किसी ने स्क्रैच कर दिया हो?” गाड़ी पर स्क्रैच सुनकर अंकिता ने झटके से पलट कर देखा और बोलने वाले उस शख़्स की कॉलर पकड़ ली, पर उसे ध्यान से देखा तो याद आया, यह वही आदमी था जो शॉपिंग मॉल में बिना पूछे आकार के बारे में बता रहा था। उसकी कॉलर से अंकिता की पकड़ ढीली पढ़ गई। उसने अंकिता का हाथ हटाते हुए फिर कुछ कहा और अंकिता उसके सामने उंगली दिखाकर गुस्से में बोली।

अंकिता ; — ( गुस्से में ) मिस्टर, तुम जो कोई भी हो, मेरे घर में आग लगाकर घी डालने का काम मत करो। अपने पति को मैं देख लूँगी, आप निकलिए यहाँ से, और हाँ,,, उस गाड़ी की तरफ़ आँख उठाकर भी मत देखिएगा, आँखें नोच लूँगी। क्या समझ लिया, उस दो टके की हीरोइन के लिए, मैं अच्छी खासी गाड़ी पर स्क्रैच मार दूँगी। पागल लग रही हूँ मैं?

अंकिता को गुस्सा तो आकार के लिए आ रहा था, पर वह एक अजनबी पर निकल गया। वह आदमी उसके चिल्लाने पर हँस रहा था, जैसे वह समझ गया था कि अंकिता उस पर अपनी भड़ास निकाल रही है। उसके हँसने पर, अंकिता और भी ज़्यादा तिलमिला गई। वह घूर कर उस आदमी को देखते हुए वहाँ से जाने के लिए पलट गई, पर वह आदमी उससे कुछ कहना चाहता था, इसलिए उसने जाती हुई अंकिता का हाथ पकड़ कर उसे रोका। अंकिता ने आस - पास देखे बिना पलट कर एक जोरदार तमाचा उसके गाल में जड़ दिया।

दो मिनट पहले अंकिता का मज़ाक उड़ाकर, हँसने वाला वह शख़्स, अपना गाल पकड़ कर खड़ा था। चेहरे से हँसी तो गायब थी ही, नजरें भी झुक गई थीं। थप्पड़ की आवाज इतनी जोरदार थी कि आस - पास सब पलट कर देखने लगे। आकार तब अंदर जा रहा था पर अंकिता पर पीछे से नजर गई तो वह भी रुक कर देखने लगा। अंकिता वहाँ से जा ही रही थी, पर आकार को वहाँ देखा, तो अनदेखा करते हुए उसी आदमी की तरफ़ देखकर बोली।

अंकिता ; — ( गुस्से से ) कभी अपने आप को भी आईना दिखा लिया करो। कभी अपनी जुबान से निकली बातें याद कर लिया करो। किसी पर इल्ज़ाम लगाने के लिए जो घटिया शब्द निकलते है, उन्हें कभी अपनी घटिया नीयत के लिए यूज कर लिया करो। अपने गंदे कैरेक्टर की तरह हर किसी पर छीँटे मत उछाला करो, और अगर बात समझ आ गई हो तो अपनी बेशर्म नज़र झुकाकर रखना मेरे सामने, क्योंकि मैंने कभी किसी का विश्वास नहीं तोड़ा। किसी से झूठ नहीं बोला।

अंकिता ने उस आदमी पर उंगली उठा रखी थी और आकार पर वार किया था। बोलते हुए अंकिता की आँखों में नमी दिख रही थी मगर ख़ुद को मज़बूत बनाकर उसने अपनी बात पूरी की और वहाँ से चली गई। जाते हुए अंकिता, आकार की कार के पास रुकी और उसमें लात मारकर वहीं थूक कर चली गई। आकार को आने वाले ख़तरे का आभास हो चुका था। कीर्ति के साथ होते हुए भी, अब उसका दिमाग़ अंकिता में ही लगा था, क्योंकि अब बहाना बनाने के लिए कोई वजह नहीं थी।

एक तो लड़की साथ थी, दूसरी वह गाड़ी, जिसके लिए उसने अंकिता को मना किया था, तीसरा कीर्ति के लिए इतना रोमांटिक प्रपोजल। अंकिता के लिए इस तरह प्यार जताना तो दूर, कभी उसे कुछ खास भी महसूस नहीं कराया। उसके सामने तो ख़ुद को एक व्यस्त बिज़नेसमैन बना रखा था, और उसने वैसा ही आकार को स्वीकार भी किया था, मग़र अब पहली बार आकार को अंकिता के सामने जाने में डर महसूस हो रहा था। कीर्ति उससे कोई बात कर रही थी, जिसे वह बिल्कुल नहीं सुन पा रहा था। उसे बस अंकिता का भयानक रूप दिख रहा था, और मन ही मन वह अपने आप से बातें कर रहा था।

आकार ; — ( मन में ) अंकिता को समझाना अब बहुत मुश्किल है। क्या कहूँगा उससे, कि मैंने सिर्फ़ उसे कभी कुछ नहीं समझा, बाकी तो यहाँ वहाँ लड़कियाँ घुमाता फ़िर रहा हूँ, और वह भी अपनी सबसे महंगी गाड़ी में। इस गाडी को मैं सपनों की कार कहता रहा, पर कभी अंकिता को उस कार में नहीं बैठाया,,, आज तो कुल मिलाकर सब ग़लत हो गया। अब ना तो अंकिता को समझाने के लिए शब्द हैं, और ना ही ऐसे हालात हैं कि वह कुछ समझ पाए। अब जिन्दगी उलझनों में फंसी लग रही है, मुझे कुछ तो करना ही होगा।

आकार को घर जाना, अब किसी खाई में कूदने जैसा लग रहा था। उसे वह सारी बातें याद आ रही थीं जो उसने अंकिता के लिए बोली थीं। किसी तरह ख़ुद को मज़बूत बनाकर वह घर तो पहुँच गया, मगर घर में कोई भी नहीं था। पूरा घर सुनसान पड़ा था। आकार को लगा अंकिता ने बच्चों को सुला दिया होगा, वह सबसे पहले बच्चों के कमरे में गया पर वहाँ बच्चे नहीं थे। आकार घबरा गया, वह जल्दी से अपने बैडरूम में गया वहाँ भी कोई नहीं था। उसने पूरे घर में एक - एक कमरा खोलकर देख लिया मगर घर में कोई नौकर तक नहीं था। आकार घबराने लगा कि अंकिता बच्चों को लेकर कहाँ चली गई। मन में कितनी ही आशंकाएं घर कर रही थीं। घबराया हुआ आकार हताश सा सोफे पर बैठ गया।

आकार : — ( घबराते हुए ) कहाँ हो तुम अंकिता,,, यह सही नहीं है, मुझसे कोई बात भी नहीं की और तुमने घर छोड़ दिया! माना मुझसे गलती हुई है, मगर तुमने तो उसके लिए मुझे सजा ही दे दी। एक बार तुमसे भी तो ऐसी ही गलती हो चुकी है, बल्कि तुमने तो मुझसे बड़ी ग़लती की है, पर मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया था। अब तुम भी लौट आओ अंकिता, प्लीज… तुम इस तरह बच्चों को लेकर कैसे जा सकती हो ? तुमने ख़ुद कहा था, लड़ झगड़ लेना, जैसा चाहे व्यवहार करना, पर अलग कभी मत होना… और आज मेरी बात सुनने से पहले तुम घर से चली गईं?

आकार को फ़िक्र यह नहीं थी कि अंकिता कहाँ गई, बल्कि यह डर था कि कहीं कोई गलत कदम ना उठा ले। यहाँ-वहाँ टहलते हुए उसकी घबराहट बढ़ रही थी मगर समझ कुछ नहीं आ रहा था, क्या करे ? काफी देर बाद उसे याद आया कि अंकिता को फोन लगा ले, मगर अंकिता का मोबाइल वहीं टेबल पर पड़ा था। आकार की धड़कन तेज चलने लगी थी, उसने बाहर निकलकर गाड़ी चेक की, मगर गाड़ियाँ भी वहीं थीं। आकार के माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगी थीं। अंकिता की हरकत पर वह घबरा कर चिल्लाया।

आकार ; — ( गुस्से से ) यह कैसी बेवकूफी की है तुमने अंकिता, मुझसे बात किए और मेरा सच जाने बिना, मुझे सजा देने वाली, तुम कौन होती हो! तुम क्या जानती हो, कीर्ति के बारे में? उसे मेरे साथ देखकर एक बार मुझसे पूछ तो लेती कि क्या रिश्ता है मेरा उससे। कैसे आई वह मेरी जिंदगी में! तुम ऐसा कैसे कर सकती हो अंकिता ??? तुम तो मुझसे ज्यादा समझदार हो।

आकार घर आने से पहले डरा हुआ था, मगर घर आकर यह होगा, उसने नहीं सोचा था। उसने अंकिता के कुछ फ्रेंड्स को कॉल करके भी पूछ लिया, क्या अंकिता आई थी, मगर कहीं से कुछ पता नहीं चला। आकार ने उदास होकर पुलिस में कंप्लेंट करने का मन बना लिया, अंकिता और बच्चों की फ़ोटो मोबाइल में देखकर वह घर से निकल रहा था कि गोली चलने जैसी कुछ आवाजें चारों तरफ़ गूँज गईं। आकार ठिठक कर रुक गया, उसने आवाज पर ध्यान दिया तो वह उसके घर की छत से ही आ रही थीं,,, मन में किसी अनहोनी की आशंका से आकार ने एक तेज़ चीख मार दी,,,

 

क्या था छत पर गोलियाँ चलने का सच???

क्या अंकिता के साथ कोई हादसा हुआ था ???

या अंकिता ने खुद अपने बच्चों के साथ कोई कदम उठाया था ???

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

 

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