एक बड़े से शोरूम में रजत और अश्विनी एक दूसरे के लिए अपनी पसंद के ड्रेसेस दिखा रहे थे और अंकिता अपनी जगह पर जड़ बनीं खड़ी थी। अंकिता को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं होता, उसके सामने से आकार आ रहा था। सुबह - सुबह तो वह घर से यह कहकर निकला था कि दो दिन के लिए शहर से बाहर जा रहा है, फिर शॉपिंग मॉल में कैसे हो सकता है? अंकिता उससे बात करने जा रही थी, पर एक कदम भी नहीं चल पाई कि एक लड़की आकर उसकी बाहों में झूल गई। उस लड़की ने घुटने से ऊपर तक की स्कर्ट और फुल स्लीव टॉप पहन रखी थी। आँखों पर काला चश्मा और कंधे तक आते, खुले लहराते बाल।
उन दोनों को देखकर अंकिता को समझ नहीं आ रहा था क्या करे, तभी उसे अश्विनी और रजत किसी बात पर झगड़ते हुए वहीं आते दिख गए। अंकिता ने उन दोनों को बहला कर वहाँ से लौटा दिया और दोनों को गेमिंग जोन में छोड़कर वापस आकार को ढूंढने लगी। फ़िर आकार उसे एक jewellery शो रूम में दिखा, वह लड़की ज्वेलरी पहन कर दिखा रही थी और आकार उसे इशारे से हाँ और न बता रहा था। शॉपिंग करके जैसे ही आकार बिल पे करके निकला अंकिता ने बिल काउंटर ही पर जाकर पूछ लिया।
अंकिता ; – ( हड़बड़ाते हुए ) सुनिए, यह ,,, यह जो अभी - अभी बिल पे करके गए हैं, आकार पटेल हैं क्या?? नहीं मतलब, उनके साथ,,, नहीं नहीं, जो अभी अभी गए हैं, मिस्टर एंड मिसेज आकार पटेल थे न??? मुझे लगा मैंने कहीं देखा है इनको, पर अब याद आ रहा है। ज़रूर यह आकार पटेल और उनकी वाइफ ही हैं… अरे आप बताएंगे, आपसे पूछ रही हूँ???
अंकिता लगातार बोलती जा रही थी, उसे यह ध्यान नहीं था कि सामने वाले को उसने बोलने का मौका ही नहीं दिया। काउंटर पर खड़ा लड़का हँस पड़ा, अंकिता गुस्से में कुछ कहने वाली थी तभी पीछे से आवाज आई। “आपने सही पहचाना मिसेज़ पटेल, यह आपके पति आकार पटेल ही थे और उनके साथ उनकी ही कंपनी में काम करने वाली लड़की कीर्ति परिहार थी।”
अंकिता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थीं, वह ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। अंकिता ने पलट कर देखा तो जबाव देने वाला वह शख़्स ज्वेलरी देखने में व्यस्त हो गया। उसे आकार के बारे में जानकार हैरानी तो थी मगर उससे ज्यादा उस आदमी पर शक था कि जब उससे जवाब नहीं माँगा तो उसने क्यों दिया, और उससे बड़ा सवाल यह कि वह आकार और अंकिता को कैसे जानता था। अंकिता ने उसके पास जाकर पूछा।
अंकिता ; – ( सख्ती से ) कौन हैं आप और मुझे कैसे जानते हैं? आकार पटेल से आपकी क्या दुश्मनी है, उनके बारे में यह मनगढ़ंत कहानी सुनाकर आपको क्या फायदा होने वाला है? किसी शरीफ इंसान को बदनाम करना, आप जैसे ही घटिया लोगों का काम है। जब मैंने आप से नहीं पूछा तो आपने क्यों बताया? मेरी मदद कर रहे थे या अपनी किसी साज़िश को अंजाम देना चाहते हो??? सच - सच बताओ, कौन हो और क्या चाहते हो???
अंकिता के ढेरों सवालों के जवाब में वह शख़्स केवल मुस्कुरा रहा था। फिर अंकिता के हाथ में एक पर्ची पकड़ाते हुए बोला। “आकार पटेल मेरा दुश्मन नहीं है, मगर अब दोस्त भी नहीं रहा। आपके पास अभी वक्त है, सँभालना है तो संभाल लीजिए उसे, वरना कब कीर्ति परिहार मिसेज़ कीर्ति आकार पटेल बन जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।” वह आदमी वहाँ से चला गया, पर उसे रोकना भी अंकिता को सही नहीं लगा। उसकी बातों में कितनी सच्चाई थी, यह पता अंकिता को ही लगाना था।
अपने आप से सवाल जबाव करते वह बच्चों को लेकर घर आ गई। बच्चों के सामने खुश होने का नाटक भी उससे नहीं हो रहा था इसलिए सरदर्द का बहाना करके बच्चों को खाना खिलाकर सुला दिया, पर जैसे ही खुद जाकर लेटी तो आँखों के सामने से आकार और कीर्ति खिलखिला कर हँसते हुए गुजर गए। अंकिता तुरंत उठकर बैठ गई। सोते हुए अपने बच्चों को देखकर कराह उठी।
अंकिता ; – ( मन ही मन ) तुम कैसे बहक सकते हो आकार, जैसे - तैसे अभी सब ठीक हुआ है। बच्चे खुश हैं और मैं भी तुम्हारे हर क़दम पर साथ चलने तैयार हूँ। मैंने अपने सारे सपने, अपनी कामयाबी, सब कुछ साइड में रख दिया तुम्हारे लिए क्योंकि तुम मेरे बच्चों के पापा हो, और बच्चों के लिए हमारा साथ होना बहुत जरूरी है। तुम यह बात कैसे भूल सकते हो? काम के नाम पर घर में झूठ बोलकर तुम अपना खाली समय इस तरह बर्बाद कर रहे हो?
अपने आप से बातें करती अंकिता रो पड़ी। वह आकार, जो कभी त्यौहारों पर भी घर समय से नहीं पहुँचता, अपनी व्यस्तता बताकर बच्चों को कभी घुमाने नहीं ले जा पाता, आज दो घंटे तक किसी के हाथ में हाथ डालकर शॉपिंग करते मिला। आकार के बहकते क़दमों से अंकिता घबरा रही थी, अगर उससे बात करती है तो झगड़े शुरू हो जाएँगे और अगर उससे नहीं पूछा तो वह पूरी तरह गलत रास्ते पर चला जाएगा। अंकिता को अपने सामने ही बच्चों का भविष्य बर्बाद होते दिख रहा था। मॉल में मिले उस आदमी की बात बार - बार याद आ रही थी। “अभी वक्त है संभाल सकती हो तो संभाल लो उसे।”
उस आदमी की बात पूरे घर में गूँजने लगी थी। खिड़की, दीवारें, पर्दे, घर की हर एक चीज से जैसे आवाज़ आ रही थी कि आकार को बहकने मत देना। अंकिता हड़बड़ा कर उठकर खड़ी हो गई और अपने कानों पर हाथ रखकर रो पड़ी। अगले दिन भी आकार समय से घर नहीं आया। रात के साढ़े बारह बजे थे, अंकिता बेडरूम में टहल रही थी, गाड़ी की आवाज़ सुनकर खिड़की से देखा तो आकार गाड़ी से निकलते दिख गया। हमेशा की तरह अंदर आकर बैग मेज पर रखा और सोफे पर सर टिकाकर बैठ गया। थोड़ी देर आँख बंद करके बैठने के बाद आकार ने ध्यान दिया कि अंकिता सामने बेड पर बैठी उसे ही देख रही है। अंकिता को देखकर थकान का नाटक करते हुए वह अपनी व्यस्तता बताने लगा।
आकार ; – ( थकान भरे लहजे में ) सॉरी अंकिता, मैं आज फिर लेट हूँ। कितनी भी कोशिश कर लूँ मगर वक्त पर घर नहीं पहुँच पाता। मेरे आने तक रोज़ बच्चे सो जाते हैं। इतना काम इतनी मेहनत सब कुछ करने के बावजूद मैं अपनी कम्पनी को उस ऊँचाई तक नहीं पहुँचा पा रहा जहाँ से मुझे शहर का कोई भी बिजनेस मैन मुझसे आगे दिखाई न दे।
अंकिता ; – ( सख्ती से ) फ़िर इतनी मेहनत का क्या फ़ायदा, क्यों इतना वक्त बर्बाद कर रहे हो? इतने साल हो गए दिन - रात मेहनत करते हुए, मगर तुम जहाँ थे, वहीं हो। इतनी मेहनत करके तो कोई भी अभी तक, शहर क्या, देश की टॉप पोज़िशन पर बैठा होता। पता नहीं तुम्हारा इतना काम जाता कहाँ है?
अंकिता के बोलने के तरीके से आकार को लग रहा था, कुछ हुआ है, मगर वह कुछ पूछता उसके पहले अंकिता कमरे से बाहर निकल गई। आकार, अंकिता के अचानक बदलते व्यवहार को समझने की कोशिश करता बेड पर बैठे - बैठे ही सो गया, और अंकिता हॉल में जाकर बैठी तो आकार के पुराने झगड़े याद आने लगे। अभी कुछ महीने पहले ही आकार ने उसे कैरेक्टर लैस कहकर डायवोर्स के लिए एप्लाई कर दिया था, और ख़ुद तो बिल्कुल ही गिरी हुई हरकतों पर उतर आया।
अंकिता के दिमाग में आकार के बार - बार बदलते चेहरे चल रहे थे। पहले अंकिता की ग़लती के लिए उसका चिल्लाना, झगड़ना, और फ़िर ख़ुद किसी के साथ इतनी मस्ती से घूमना। व्यस्तता के नाम पर आकार अपने छोटे - छोटे बच्चों से भी इतने दिन से झूठ बोल रहा था। अंकिता उसे अब तक लापरवाह समझती थी पर अब उसे वह धोखेबाज लग रहा था। अपनी बदकिस्मती और उलझते सवालों में डूबती अंकिता बिगड़ते हालात पर रो पड़ी।
अंकिता : – ( रोते हुए ) तुम इतने सेल्फिश क्यों हो आकार? कितने और समझौते करूँ मैं अपनी ज़िंदगी से! तुमसे रिश्ता निभाते हुए, मैंने अपने आप से ही रिश्ता तोड़ दिया है। तुम्हारा यह सच बर्दाश्त नहीं हो रहा मुझसे। इतने साल की शादी शुदा ज़िंदगी में मुझे याद नहीं कि कभी तुम वक्त पर घर आए हो, और तुम किसी के लिए पूरे दो घंटे सिर्फ़ एक शॉपिंग मॉल में बर्बाद कर देते हो! मेरे लिए न सही, क्या अपने बच्चों के लिए भी तुम्हें अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं होता? क्या तुम्हारी अब तक की केयर, काम के लिए भागदौड़, सब कुछ दिखावा है?
मोबाइल का अलार्म सुनकर अंकिता की आँख खुली तो हड़बड़ा कर आस - पास देखने लगी। ख़ुद को फर्श पर बैठे देखकर याद आया कि रात को गुस्से में बेडरूम से बाहर निकल आई थी, और फ़र्श पर बैठे - बैठे नींद लग गई। अंकिता ने ऊपर देखा, बेडरूम की लाइट ऑन थी, शायद आकार भी नहीं सोया था, या शायद लाइट ऑफ करने उठ नहीं पाया। मोबाइल पर लगातार अलार्म बज रहा था, अंकिता ने उठकर मोबाइल बंद किया और अपने काम में लग गई।
आकार की आँख खुली तो अलार्म की आवाज़ आ रही थी, उसने उठकर देखा तब तक अंकिता ने मोबाइल बंद कर दिया। आकार उसे देखकर वापस बेडरूम में चला गया। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि अंकिता को क्या हुआ है! बेड पर बैठे - बैठे वह अंदाज़ा लगाने लगा कि कल ऐसा क्या हुआ है, जो अंकिता बिल्कुल बदली - बदली लग रही है।
आकार : – ( मन ही मन ) कल सुबह तक तो सब ठीक था, बच्चे भी ठीक थे,,, फ़िर अचानक रात को क्या हुआ? खाना तो ज़्यादातर बाहर ही खाकर आता हूँ, रात में घर भी हमेशा लेट ही आता हूँ। इसके अलावा और कुछ भी हुआ क्या? मुझे लगता है मुझे पूछना चाहिए, क्योंकि अगर इस तरह अंकिता को उदास छोड़कर गया तो बात और बढ़ जाएगी। वहीं कोई काम आ गया तो,,, किससे कहूँगा!!!
आकार उठकर नहाने चला गया और अंकिता नाश्ता लगाकर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने लगी। टिफिन बैग में रखकर वह बच्चों को बस तक छोड़ने चली गई, और जब लौटकर आई तो आकार नाश्ता करते मिला। अंकिता हैरान थी, रोज तो प्लेट लेकर वह पीछे - पीछे जाती थी कि थोड़ा बहुत कुछ खाकर जाओ, मग़र टाइम नहीं होता था! अंकिता उससे कुछ नहीं बोली, उसके सामने टिफिन रखकर खाली बर्तन लेकर किचिन में चली गई। आकार ने नाश्ता करके टिफिन बैग में रखा और अंकिता को आवाज़ लगाकर बोला। “जा रहा हूँ अंकिता आज काम बहुत है,,, अगर फ़ोन न उठा पाऊँ तो मैसेज छोड़ देना” आकार ने निकलते हुए आवाज़ लगाई थी, अंकिता बाहर आई, तब तक वह गाड़ी में बैठ चुका था। उसके निकलते ही अंकिता गुस्से से चिल्ला गई।
अंकिता : – ( गुस्से में ) बहुत काम है,,, बहुत काम है,,, यही सुनते - सुनते इतने साल निकल गए, कभी यह सुनने के लिए नहीं मिला, आज फुर्सत है, चलो कहीं बाहर चलते हैं, या कुछ देर साथ बैठ कर बात कर लेते हैं। थोड़ा सा बच्चों के साथ खेल लेते हैं, इतना वक्त बर्बाद कर दिया बाहर अब अपने परिवार के लिए जी लेते हैं, पर नहीं आकार, तुम्हारा वक्त सिर्फ़ तुम्हारा ही रह गया, तुम किसी के अपने नहीं हो सकते…
घर में अंकिता के अलावा कोई नहीं था चारों तरफ़ उसकी आवाज़ गूँज रही थी। अकेले में चिल्लाते, अंकिता फूट - फूट कर रो पड़ी। वहीं मोबाइल की घंटी लगातार बज रही थी, फ़ोन रिसीव करके अंकिता कुछ नहीं बोली, वहाँ से आवाज़ आई, “अपने पति का असली रूप देखना है तो सुपर कैफे पहुँचिए, आकार पटेल आज अलग ही रूप में मिलेगा…” अंकिता चिल्लाती रही “कौन हैं आप? कौन बोल रहे हैं”, पर फोन कट गया।
क्या आकार का कोई और भी चेहरा था???
क्या इस नई मुसीबत से अंकिता अपनी गृहस्थी बचा पाएगी???
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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