शेखर अपनी बेटी को काँधे से चिपका कर बाहर गार्डन में टहल रहा था। अचानक, एक गाड़ी आकर उसके घर के सामने रुकी, और गाड़ी से अंकिता को निकलते देखा तो वह हैरान रह गया। एक दिन पहले ही अंकिता ने आकार का इतना भयानक गुस्सा देखा था और आज फिर बेटी से मिलने चली आई। अंकिता ने अंदर आते हुए शेखर को गार्डन में खड़ा देखा तो वहीं चली आई। शेखर उसे देखते ही मुस्कुरा गया।      

शेखर ; – ( मुसकुराते हुए ) मुझे पता है अंकिता कि ममता अंधी होती है, पर इतनी नासमझ नहीं होती कि अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करे। खुदको अच्छी तरह समझाओ और सम्भालो, वरना अपनी गृहस्थी की बर्बादी की वजह तुम खुद बनोगी। मैं जिस अंकिता को जानता हूँ, आजकल दिखती ही नहीं। इस बच्ची के मोह में तुम क्या अनदेखा कर रही हो, तुम्हें पता ही नहीं है। आकार कल बहुत गुस्से में था, आज मेरे पास फोन भी आया था।

आकार का फोन आने की बात सुनकर अंकिता रो पड़ी। शेखर को लग रहा था वह फिर से बच्ची के पीछे चली आई मगर उसके रोने से लग रहा था कुछ गलत हुआ है। शेखर ने उसे गार्डन में रखी बेंच की तरफ इशारा करते हुए बैठकर बात करने को कहा। अंकिता ने अपने आँसू पोंछकर एक पैकेट शेखर की तरफ़ बढ़ा दिया, और बेंच पर बैठकर फ़फ़क कर रो पड़ी। शेखर ने नर्स मेड को बुलाकर बेटी उसकी गोद में दे दी, और जैसे ही पैकेट से पेपर निकाल कर देखे तो टेंशन में आ गया।  अंकिता के पास बैठकर वह पेपर आगे करते हुए बोला, “ओह्ह, तो आकार ने यह पेपर भेजे हैं, अब तुम क्या चाहती हो?” अंकिता के लिए यह सवाल ही दर्दनाक था, वह क्या चाहती है, इससे किसी को मतलब कहाँ रहता था!

अंकिता ; – ( रोते हुए ) मैं क्या चाहती हूँ यह सोचना भी मैंने बंद कर दिया है, पर मेरे बच्चों के ख़िलाफ़ मैं कुछ नहीं होने दूँगी। तुम कोई रास्ता निकालो या आकार खुद समझ जाए, पर मैं किसी भी कीमत पर आकार को नहीं छोडूँगी। कल मेरी क्या गलती थी शेखर, मैं यहाँ अपनी दो दिन की मासूम बच्ची के लिए आई थी। इतनी सी बात, आकार क्यों नहीं समझ रहा ???

शेखर ने अंकिता को समझाया और घर जाकर आकार से बात करने की सलाह दी, तो अंकिता ने घर पहुँचने पर जो हुआ था, वह सारी बात शेखर के सामने रख दी। “आकार के गुस्से के बाद भी मैंने बात को सँभालने की बहुत कोशिश की। मैंने सोच लिया था कि आखिरी बार तुमसे मिलकर अपनी बेटी को सीने से लगा लूँगी और फिर आकार को कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी, पर शाम को दरवाज़े पर यह पेपर… ” शेखर हैरान था, आकार को तलाक की इतनी जल्दी है या पहले से प्लान था!

अंकिता के सामने शेखर कुछ नहीं बोला, उसे समझाकर उसने घर भेज दिया और मन ही मन बोला। “मैं तुम्हारी सारी परेशानियाँ ख़त्म कर दूँगा अंकिता, तुम्हारा आकार तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगा।” अंकिता घर आई तो बच्चे हॉल में ही मिले, रजत अश्विनी की गोद में सर रखकर सो रहा था। अंकिता को अंदाज़ा लगा कि बच्चे किसी टेंशन में हैं, पर वह अनजान बनने की कोशिश करते हुए कहती है। “क्या बात है, बड़ा प्यार आ रहा है अपने शैतान भाई पर?”  अंकिता की आवाज सुनते ही रजत उठकर उससे लिपट गया।

“मुझे छोड़कर मत जाना मम्मा प्लीज़… मैं आपके बिना नहीं रहूँगा, आप अपना  नया बेबी यहीं ले आओ, मैं कुछ नहीं बोलूँगा,,, पर मुझे छोड़कर मत जाना।” रजत की बात सुनते ही अंकिता के हाथ काँप गए। वह बच्चों से ऐसी कोई बात नहीं करना चाहती थी जिससे उनके बचपन पर असर हो। उसने रजत को समझाया और गुस्से से तिलमिलाती हुई बेडरूम की तरफ़ चली गई। वहाँ चारों तरफ़ देखा… आकार नहीं था, पर अंकिता से उसके आने का इन्तजार नहीं हो रहा था। उसने फोन लगाया और रिसीव होते ही बरस पड़ी।

अंकिता ; – ( गुस्से में ) तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, मेरे बच्चों से बकवास बातें करने की? क्या समझते हो तुम खुद को??? एक बात ध्यान से सुन लो आकार, तुम जो चाहते हो वह किसी कीमत पर नहीं हो सकता। बच्चों को हॉस्टल भेजने का ख्याल भी दिमाग से निकाल दो। ना मैं तुम्हें छोडूँगी और ना अपने बच्चों पर कोई मुश्किल आने दूँगी। आखिरी बार बता रही हूँ, मेरे और शेखर के बीच ऐसा कुछ नहीं है कि तुम्हें तलाक लेना पड़े। तुम्हें विश्वास हो या न हो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर ख़बरदार जो बच्चों से इस तरह बात की तो।  

अंकिता एक सांस में बोलती चली गई, और आकार का बस छोटा सा ज़वाब आया, “घर आता हूँ तो बात करते हैं” और फ़ोन कट गया। अंकिता जानती थी आकार किसी मीटिंग में होगा इसलिए जवाब नहीं दे पाया, घर आकर गुस्सा ज़रूर दिखाएगा। उसने बच्चों को खाना खिलाया और ज़ल्दी सुला दिया। आकार आया तो वह खाने की टेबल पर बैठी मिली, उसे देखकर अनदेखा करते आकार सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया। अंकिता ने उसे रोककर तलाक़ के पेपर सामने रख दिए, आकार गुस्से से उंगली दिखाते हुए कुछ बोलने वाला था पर बोलते - बोलते रुक गया। आकार को याद आ गया, कुछ घंटे पहले ऑफिस में जो हुआ था…

आकार अपने काम में लगा था, उसके पास फोन आया, “सर कोई राजशेखर आपसे मिलना चाहते हैं”। राजशेखर नाम सुनकर आकार की भौंहें तन गई, उसने गुस्से से कहा। “भेज दो उसे” अगले ही पल शेखर उसके सामने था। आकार के कुछ बोलने से पहले ही शेखर ने बोलना शुरू कर दिया और आकार उसकी बातें सुनते हुए उठकर खड़ा हो गया। शेखर बोल रहा था और आकार सिर्फ सुन रहा था। अपनी बात पूरी करके शेखर बाहर निकल गया और अगले ही सेकंड वापस आकर बोला।

शेखर ; - ( सख्ती से ) मिस्टर आकार पटेल, आज घर पहुँचते ही आप अपने भेजे हुए पेपर फाड़कर फेंक देंगे, क्योंकि आप क्या चाहते हैं और क्यों चाहते हैं, यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। एक बात याद रखिए, अंकिता अपने बच्चों से बहुत प्यार करती है और मैं अंकिता से। किसी भी वजह से मैं उसे दुखी नहीं होने दूँगा। उस की ज़िंदगी में शेखर या आकार से ज्यादा बच्चों की जगह है और उसके बच्चे आप के साथ ही खुश रहेंगे। मैं अपनी बेटी को लेकर चला जाऊँगा, हमेशा के लिए।

शेखर ने आकार से कुछ ऐसा कहा या कोई ऐसा सच बताया कि आकार गुस्सा दबाकर उसे चुपचाप सुनता रह गया।  उसके जाने के बाद भी वह दरवाजा ताकता रहा और फिर गुस्से में टेबल पर रखा ग्लास उठाकर खिड़की पर मार दिया। कांच टूटने की आवाज से सब आकार के कैबिन की तरफ देखने लगे। आकार सर पर दोनों हाथ टिकाकर थोड़ी देर बैठा रहा और अचानक से खिलखिला कर हँस पड़ा।

आकार ; – ( हँसते हुए ) मैं गलत फहमी में था कि यह राजशेखर अंकिता के साथ काम करने वाला कोई सीनियर इम्पलॉयी होगा, पर यह तो मेरी ही आँखें खोल गया। समझ नहीं आता, इसने दो बच्चों की माँ अंकिता में क्या देखा! मेरे ऑफिस पर आकर, यह मुझसे मेरी गृहस्थी बचाने को कह रहा है। समझ नहीं आता, मुझे इस पर गुस्सा क्यों आया। इसकी बेवकूफी पर तो मुझे हँसना  चाहिए।

घर में अंकिता के सामने खड़ा आकार मुस्कुरा रहा था। अंकिता उसके बदलते हाव - भाव देखकर हैरान थी। आकार ने पेपर उठाकर फाड़ दिए और फटे हुए टुकड़े अंकिता के हाथ में देकर चला गया। अंकिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था, आकार को क्या हुआ है, अचानक से बदल क्यों जाता है,  लेकिन जो भी हुआ सही हुआ था। अंकिता खुश थी कि आकार को समझ आ गया। उसके पीछे ऊपर गई तो आकार हाथ में टॉवेल लिए वाशरूम से निकल रहा था। अंकिता ने हाथ पकड़ कर उसे  बेड पर बैठाया और खुद जमीन पर बैठकर बोली।

अंकिता ; – ( उदास होकर ) पिछले कुछ दिनों से हमारी ज़िंदगी में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए सबसे ज्यादा मैं ही जिम्मेदार हूँ। मुझे पता है, मेरा बहकना, हमारी गृहस्थी उजाड़ सकता था पर विश्वास करो आकार, मेरे लिए मेरा परिवार सबसे पहले है। मैं अपने बच्चों के लिए, तुम्हारे लिए अपनी हर ख़ुशी छोड़ सकती हूँ…  अपने परिवार से दूर, कहीं सुकून नहीं है, आकार। मुझे यह खूब समझ आ गया, और तुम भी गुस्से में कुछ भी बोल लेना, पर कभी भी ऐसा फ़ैसला दोबारा मत लेना, यह बहुत खतरनाक था।

आकार अंकिता का हाथ अपने हाथ में लेकर मुस्कुरा गया। सब कुछ ठीक होते ही अंकिता ने शेखर को बताने मोबाइल उठाया, मगर शेखर के मैसेज पहले से ही डले थे। “मैं अपनी बेटी को लेकर जा रहा हूँ अंकिता, आकार से प्यार से बैठकर बात कर लेना, वह समझ जाएगा। प्यार किसी जादू की तरह होता है जो इंसान को बदलकर रख देता है, तुम्हारा आकार भी बदल जाएगा। वह अच्छा इंसान है, उसका विश्वास बनाकर रखो। मैं और मेरी बेटी तुम्हें कभी परेशान नहीं करेंगे। यह नंबर भी अब बंद कर रहा हूँ… गुड बाय।”

शेखर के मैसेज देखकर अंकिता उदास हो गई, जबकि वह खुद भी यही करना चाहती थी कि शेखर और उसकी बेटी से ना मिले, मगर शेखर का जाना उसे दर्द दे रहा था। उसे अपनी इंटरनेशनल ट्रिप भी याद आ रही थी, शेखर के साथ ख़ुशी ख़ुशी गुजरे वह दिन, याद बनकर उसकी आँखों से बहने लगे थे। अंदर से कुछ टूटता सा लग रहा था। अपनी आँखें पोंछकर उसने आकार को शेखर के मैसेज दिखाते हुए कहा। “शेखर अपनी बेटी को लेकर चला गया आकार, शायद अब कभी इंडिया वापस भी न आए। उसने कहा तुम बहुत अच्छे इंसान हो।” शेखर का मैसेज सुनकर आकार हँस पड़ा।

आकार ; – ( मुस्कुरा कर ) मैं कितना अच्छा इंसान हूँ, यह तो कोई तुमसे पूछकर देखे, पर तुम बहुत जिम्मेदार वुमन हो अंकिता। मेरी कितनी ही गलतियों को अनदेखा करके, अपने सारे फ़र्ज़ अच्छे से निभा देती हो। मैं सच में लापरवाह हूँ, जो तुम्हारी कद्र नहीं कर पाया, पर अब हम सब ठीक कर लेंगे। मुझे अपनी कम्पनी को एक अच्छी पोज़िशन पर पहुंचाना था और उस धुन में मैंने अपनी जिम्मेदारियों को ही नजर अंदाज  कर दिया।  

शेखर के जाने के बाद अंकिता की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई। उसका मिलना जितना सुखद था उसका जाना उतना ही दुखदायी, मगर अंकिता को तसल्ली थी कि आकार बदल गया। शेखर ने जाते हुए क्या समझाया या उसको ख़ुद क्या समझ आया, अंकिता इन सब में नहीं पड़ना चाहती थी। वह तो खुश थी क्योंकि उसके बच्चे खुश थे… उनके पापा अब उन्हें पूरा टाइम देने लगे, जो उन्हें चाहिए था। वक्त तेजी से गुजर रहा था। अंकिता अपनी सफ़ल कामकाज़ी महिला की छवि एक तरफ़ रखकर अपनी गृहस्थी में खुश थी।

सुबह का समय था, अंकिता रोज़ की तरह जल्दी उठकर अपने काम में लग गई। वह नाश्ता बनाने किचिन में जा रही थी कि सीढ़यों पर नज़र पड़ गई, आँखें मलते हुए रजत चला आ रहा था। अंकिता ने हँसते हुए उसे टोका “आज बिना जगाए कोई उठकर कैसे आ रहा है?” रजत पास आकर बोला। “मम्मा आज संडे है, आज हम शॉपिंग करने जाएँगे न?” अंकिता उसकी उत्सुकता देखकर खिलखिला कर हँस पड़ी और उसे दूध देकर नाश्ता बनाने लगी।

आकार के निकलने के बाद अंकिता ने जल्दी - जल्दी काम ख़त्म किया और बच्चों को लेकर शॉपिंग करने चली गई।  शॉपिंग मॉल में घुसते ही रजत चिल्ला गया। “पापाsssssss… मम्मा, उधर देखो, पापा भी आए हैं।” अंकिता ने आस - पास देखा और रजत को डाँट दिया।

अंकिता ; – ( डाँटते हुए )  ऐसे नहीं चिल्लाते, गुल्लू बेटा। तुम्हारे पापा काम से बाहर गए हैं, यहाँ कैसे हो सकते हैं! हम यहाँ शॉपिंग करने आए हैं और पापा के पास शॉपिंग मॉल में घूमने की फुर्सत तो बिल्कुल नहीं है। चलो, अब हम पहले गुल्लू के लिए कुछ देखते हैं, उसके बाद गुल्लू की दीदी के लिए…  

अंकिता के डाँटने पर रजत चुप हो गया पर अश्वनी के पास जाकर, उसने धीरे से फिर वही कहा। “मैंने देखा है, पापा ही हैं! मम्मा से नहीं कहना, उनको बुरा लगेगा।” अंकिता रजत की बात सुनकर मुस्कुरा दी और कपड़े देखते हुए पलटी तो आँखें खुली रह गईं। आकार सामने से आ रहा था अंकिता उसे आवाज देने वाली थी कि तभी एक लड़की आकर उसके गले से लिपट गई…

 

क्या अंकिता की गृहस्थी में फिर ग्रहण लगने वाला था???

क्या अंकिता को सँभालते हुए आकार खुद बहक गया था ???

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

 

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