अंकिता अपनी गोद में सोती बच्ची को देख मुस्कुरा रही थी। शेखर हालात को और नहीं बिगाड़ना चाहता था, उसे डर था कि कहीं आकार उसे ढूंढते हुए यहाँ न पहुँच जाए। उसने अंकिता की गोद से बच्ची को उठाना चाहा, मगर अंकिता ने चीख मार दी।

अंकिता ; – ( चिल्ला कर ) : दूर हट जाओ शेखर,,, ख़बरदार जो मेरी बेटी को हाथ भी लगाया। इतनी सी जान, इतनी बुरी तरह रो रही थी। कैसे बाप हो तुम, जरा भी दर्द नहीं हुआ तुम्हें?? अपनी बच्ची के इस तरह तड़पने पर, एक फोन नहीं लगा सकते थे??? अरे, और कुछ नहीं तो बच्ची को लेकर मेरे घर आ जाते। तुम इतने कठोर कैसे हो सकते हो शेखर? मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई जो तुम्हें अपनी दो दिन की बच्ची सौंप दी,,,

अंकिता अपनी बच्ची के रोने से इतनी टूट गई कि उसे एहसास भी नहीं था कि उसका यह क़दम उसकी बेटी के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। शेखर अंकिता की हालत देखकर घबरा रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि अंकिता को कैसे समझाए। अगर आकार को पता चला कि अंकिता उसके घर आई है तो पता नहीं कैसा व्यवहार करेगा। उसे याद था कि हॉस्पिटल में उसने शेखर को अंकिता के सामने भी नहीं जाने दिया था, और अभी अंकिता, अकेली, आधी रात को उसके घर चली आई। वहीं अंकिता बच्ची को गोद में पाकर सब भूल चुकी थी। शेखर ने उसे  समझाकर याद दिलाने की कोशिश की कि उसने किसलिए इस बच्ची को जन्म दिया है।  

शेखर ; – ( उदास होकर ) होश में आओ अंकिता, तुम्हें इस बच्ची पर ममता लुटाने का कोई अधिकार नहीं है। तुम खुद इसके लिए अपने सारे अधिकार ख़त्म कर चुकी हो। मैंने इसे अडॉप्ट किया है और अब इस पर सिर्फ मेरा अधिकार है। बात को समझने की कोशिश करो अंकिता… तुम अगर यहाँ आती रहोगी तो बच्ची तुम्हें पहचानने लगेगी, फिर उसे तुमसे दूर रखना और मुश्किल हो जाएगा। यह सही नहीं है, प्लीज़, मेरी बात समझने की कोशिश करो।

अंकिता ; – ( रोते हुए ) भाड़ में गए तुम्हारे रूल्स, और तुम्हारी दुनियादारी। भाड़ में गया आकार का गुस्सा, मैं किसी भी डर या कसम के लिए अपनी बच्ची को मरने नहीं छोड़ सकती। मैं यह कैसे भूल जाऊँ कि मैंने इसे जन्म दिया है, अपनी दो दिन की बच्ची को भूख से तड़पता नहीं छोड़ सकती। यह बात तुम्हें और आकार दोनों को समझनी पड़ेगी।

अंकिता ने पूरी दुनिया ताक पर रख दी पर उसे अपनी ममता से समझौता मंजूर नहीं था। उसने सोती हुई बेटी को उठाकर सीने से लगा लिया और फफक कर रो पड़ी। शेखर हैरान था, इतना सोच समझ कर फैसले लेने वाली अंकिता ऐसे कैसे कोई भी नादानी कर सकती है। उसे समझाना शेखर को मुश्किल लग रहा था, और उसके वहाँ होने से डर भी लग रहा था। दिमाग़ में बार - बार आकार का ख़्याल आ रहा था, अगर वह जाग गया होगा तो अंकिता को ढूंढते यहीं आएगा। शेखर थोड़ी देर सोचकर अंकिता के पास बैठ गया और मुस्कुराते हुए, अंकिता की गोद में सोती अपनी बच्ची के सर पर हाथ रख दिया। अंकिता भी मुस्कुरा रही थी और शेखर ने मौका पाते ही अंकिता को समझाना शुरू किया।

शेखर : “यह वही बच्ची है अंकिता जिसे तुम जन्म नहीं देना चाहती थीं। तब मुझे लग रहा था, तुम सेल्फिश हो, अपने ही बच्चे की जान लेना चाहती हो, पर आज समझ आया, तुम ऐसा क्यों चाहती थीं। आज के हालात तुम्हारे कंट्रोल से बाहर हैं। जरा याद करो अंकिता, क्या - क्या मुश्किलें पार करके हम अपनी बेटी को ज़िंदगी दे पाए हैं, क्या तुम चाहती हो कि वही मुश्किलें फिर सामने आ जाएँ।”

शेखर का बच्ची को दुलारना अंकिता को विश्वास दिला रहा था कि वह उसे बहुत प्यार से संभाल लेगा। बच्ची के साथ - साथ उसका ध्यान शेखर की बातों पर भी जाने लगा था। शेखर ने उसे याद दिलाया कि उसके ऊपर दो बच्चों की जिम्मेदारी और है जिसे वह नज़र अंदाज़ करके आई है, और उसके दोनों बच्चे अपनी माँ से अब कोई बच्चा नहीं चाहते थे। शेखर की बात सुनते हुए अंकिता को रजत की ड्रॉइंग याद आ गई, जिसमें वह एक बच्चे को लेकर अकेली खड़ी थी। अंकिता अपने हालात को सोचकर काँप गई, और शेखर ने सही समय देखकर बच्ची को उसकी गोद से उठाकर झूले में सुला दिया। अंकिता को हालात पर रोना आ रहा था, उससे न तो दो दिन बेटी को छोड़ा जा रहा था न अपने बाकी दो बच्चों की नाराज़गी बर्दाश्त हो सकती थी। शेखर ने अंकिता को रोते हुए देखा तो उसे गले लगा लिया।

अंकिता ; – ( सिसक कर ) मेरी हालत अब कोई नहीं समझेगा शेखर, दो दिन पहले मैंने अपनी जिस बच्ची को जन्म दिया है, आज मेरा उस पर कोई अधिकार नहीं। नौ महीने से यह बच्ची मेरे साथ थी शेखर, मैं कैसे उसे रोते छोड़ जाऊँ…! मैं आकार और बच्चों को समझा लूँगी, तुम बस कुछ दिन मुझे यहॉं अपनी बेटी के पास रहने दो। जैसे ही वह चम्मच से दूध पीना सीख जाएगी, मैं यहाँ से चली जाऊँगी।

शेखर ; – ( नम आँखों से ) मैं तो तुम्हें हमेशा के लिए यहाँ रखना चाहता हूँ अंकिता, पर वक्त और हालात को देखते हुए कुछ फैसले अपनी मर्जी के ख़िलाफ़ भी लेने ही पड़ते हैं। अपनी बेटी की बिल्कुल भी फ़िक्र मत करो, मैं उसका बहुत ध्यान रखूँगा। अभी तुम घर जाओ, अगर आकार ने तुम्हें यहाँ देखा तो सहन नहीं कर पाएगा, और आकार ही क्या, उसकी जगह कोई भी हो, अपनी पत्नी को इस तरह किसी के घर जाते सहन नहीं करेगा। बात को समझो अंकिता, घर जाओ… और कभी वापस पलट कर यहाँ मत देखना।

शेखर अंकिता को जिस खतरे से बचा रहा था वह उसके दरवाजे पर ही खड़ा था। अंकिता और शेखर इस बात से बिल्कुल बेख़बर थे कि आकार वहीं खड़ा होकर सब देख रहा है। आकार जब शेखर के घर पहुँचा तो अंकिता की गाड़ी खड़ी देखकर ही गुस्से से तिलमिला गया था, और जब अंदर गया तो अंकिता को शेखर की बाँहों में देखकर ठिठक कर रह गया। शेखर क्या कह रहा था और अंकिता क्यों रो रही थी, आकार को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। उसे तो बस सामने दिख रहा था कि शेखर की बाँहों में कैद अंकिता रो रही थी, शेखर कुछ बोल रहा था और फिर उसका माथा चूम लिया। आकार की बर्दाश्त करने की शक्ति जबाव दे चुकी थी।

आकार ; – ( गुस्से में चिल्ला कर ) अंकिताआआआअ… और कितनी बेशर्मी दिखाओगी, कुछ तो मर्यादाओं का सम्मान रहने दो। मेरे विश्वास का मज़ाक उड़ाते हुए तुम्हें जरा भी दर्द नहीं होता? और कितना गिरोगी अंकिता, कितनी बार धोखा दोगी मुझे? मैंने तुम्हें आजाद कर दिया था तभी क्यों नहीं थामा तुमने इसका हाथ? क्यों बार - बार मुझे नीचे दिखाना चाहती हो ???

आकार चिल्लाते - चिल्लाते रो पड़ा था, अंकिता कुछ कहना चाहती थी मगर आकार ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया और गुस्से में वहाँ से चला गया। अंकिता उसके पीछे दौड़ती जा रही थी कि  तभी बच्ची का रोना फिर शुरू हो गया और अंकिता के दौड़ते कदम रुक कर रह गए। उसने पलट कर बच्ची को देखा, शेखर ने उसे गोद में उठा लिया था मगर वह रोए जा रही थी। वहीं आकार जाकर गाड़ी में बैठ चुका था। अंकिता बीच में खड़ी थी… न जा सकती थी न रुक सकती थी।

शेखर ने उसे आवाज देकर कहा, “तुम जाओ अंकिता, मैं अपनी बच्ची को संभाल लूँगा। अभी तुम्हारा घर जाना बहुत जरूरी है, आकार ने तुम्हें वापस मुड़ते देखा तो तुम्हारी गृहस्थी बर्बाद हो जाएगी।” अंकिता, आकार की तरफ़ बढ़ गई मगर बच्ची की आवाज ने उसे फिर रोक दिया। वह दौड़कर वापस आई और बच्ची को गोद में लेकर उसे सुलाकर, रोते हुए वहाँ से चली गई। घर पहुँची तो सन्नाटा था, बेडरूम में आकार भी सो चुका था या शायद सोने का नाटक कर रहा था। अंकिता वहीं बेड के आसपास टहलती रही। सुबह के पाँच बज गए और अंकिता अपने रोजमर्रा के काम में लग गई।

अंकिता नाश्ता लगा रही थी, आकार दोनों बच्चों के साथ नीचे आया और सोफे पर बैठ गया। रजत दौड़ते हुए आकर अंकिता से लिपट गया, और रोते हुए बोला,  “मुझे हॉस्टल नहीं जाना मम्मा,,, मैं यहीं अपने घर में रहूँगा। पढ़ाई भी अच्छे से करूँगा, प्लीज़ मुझे हॉस्टल मत भेजो न” रजत की बातें सुनकर अंकिता अंदर तक हिल गई। उसे यह तो अंदाज़ा था कि आकार चुप नहीं रहेगा मगर उसने यह बिल्कुल नहीं सोचा था कि वह बच्चों को बीच में लाएगा। अंकिता हालात को सँभालना चाहती थी, उसने मुस्कुराते हुए रजत से कहा।

अंकिता ; – ( मुस्कुरा कर ) तुम कहीं नहीं जा रहे हो बेटा, यहीं रहोगे अपने पापा मम्मा के साथ। तुम आजकल पढाई पर ध्यान नहीं दे रहे हो न, इसलिए पापा तुम्हें डरा रहे थे, लेकिन पापा को यह नहीं पता कि गुल्लू अपनी मम्मा की सारी बातें मानता है इसलिए उसे हॉस्टल भेजने की कोई जरूरत नहीं है। पापा सिर्फ डरा रहे थे बेटा! वह खुद अपने गुल्लू से बहुत प्यार करते हैं, उसे हॉस्टल भेज देंगे तो खुद भी कैसे रहेंगे! बताओ ?

अंकिता ने दोनों बच्चों को समझाया और उनके कमरे में भेज दिया। आकार बीच में कुछ भी नहीं बोला, उसकी नज़र फर्श पर टिकी थी और वह इतना गुस्से में था कि अंकिता उसके सामने तो खड़ी थी, मगर कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। वह हाथ जोड़ कर आकार के सामने घुटने के बल बैठ गई, आकार उठा और अंकिता के हाथ नीचे करके वहाँ से चला गया। अंकिता उसे रोककर बात करना चाहती थी मगर उसका गुस्सा देखकर लग रहा था कि अगर उसे छेड़ा तो भयानक विस्फोट हो जाएगा। अंकिता को अपनी गलती का एहसास था इसलिए वह चुप थी, मगर आकार जाते हुए रुक गया और वापस आकर अंकिता के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

आकार ; – ( सख़्ती से ) इस रिश्ते को अब और नहीं ढोया जा सकता अंकिता। तुम्हारा दिल लग गया शेखर से, तुम उसके बिना नहीं रह सकतीं, इसलिए तुम आराम से जाकर उसी के घर में रहो। अपनी खुशियाँ सम्भालो, छोटी बच्ची को पालो। हमारे बच्चों को हॉस्टल भेज देते हैं और उनकी बाकी जिम्मेदारी मैं अपने हिसाब से उठा लूँगा। तुम्हारे पास शेखर और तुम्हारी बेटी होगी तो बच्चों के दूर होने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। साथ रहकर हम रोज़ झगड़ते रहें, एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाते रहें, इससे तो अच्छा है कि हम अलग हो जाएँ और सुकून से रहें।

आकार जो बोल रहा था अंकिता को किसी कीमत पर मंजूर नहीं था, उसने कांपते होंठो से कहा। “तुम्हें गलत फ़हमी हुई है आकार”, अंकिता पूरा बोल भी नहीं पाती और आकार ताली बजाते हुए खिलखिलाकर हँस पड़ा। अंकिता को जिस वक्त और जिस हाल में आकार ने शेखर के साथ देखा था, गलत फहमी की गुंजाईश ही नहीं थी। आकार को अंकिता पर गुस्से से ज़्यादा ख़ुद पर हँसी आ रही थी, उसने अंकिता की इतनी बड़ी ग़लती नज़र अंदाज़ कर दी और वह फिर से उसे गलत फहमी कहकर, उसे बहला रही थी। हालात इतने ज्यादा बिगड़ चुके थे कि अंकिता के हाथ से अपनी गृहस्थी की डोर छूटती जा रही थी।

अंकिता फिर अकेली ही कटघरे में खड़ी थी जबकि वह जानती थी कि इन हालात के लिए आकार और शेखर बराबर जिम्मेदार हैं। अगर विदेश जाने पर आकार ने उसका ध्यान रखा होता, उसे फोन लगाकर अपना प्यार जताया होता, उसकी कमी का उसे एहसास दिलाया होता तो शायद अंकिता ने शेखर में प्यार नहीं ढूँढा होता। वहीं शेखर अगर उसकी गलती के बाद उसके साथ खड़ा हो जाता, अबॉर्शन के फैसले में रोक न लगाता तो आज हालात ऐसे नहीं होते। अंकिता सोच में डूबी कोई रास्ता ढूँढ रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी। अंकिता ने जाकर देखा तो पार्सल आया था और पार्सल खोलकर देखा तो अंकिता को चक्कर आ गया…

 

पार्सल बनकर क्या कोई नया तूफ़ान अंकिता के हाथ में था ???

या अंकिता के लिए नए इम्तिहान का आमंत्रण था ???

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।


 

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