अंकिता : सिस्टर, मेरा बच्चा??

हॉस्पिटल में बेड पर लेटी अंकिता को हल्का हल्का होश आ रहा था। आँखें खोलते हुए खुद को हॉस्पिटल में देखकर घबरा गई। उसे याद आया कि वह सीढ़ी से गिर गई थी, और उसके बाद अब वह हॉस्पिटल में है। मन में पहला ख्याल यही आया कि आखिर उसने अपना बच्चा खो दिया। वह बच्चा जो पहले दिन से उसे मुसीबत लग रहा था, जब आज नहीं रहा, तो अंकिता को अपने आप से नफ़रत हो रही थी। उठकर बैठते हुए उसने चारों तरफ़ देखा और वहां खड़ी एक नर्स से पूछा “सिस्टर मेरा बच्चा” अंकिता काफ़ी डरते हुए पूछ रही थी। नर्स ने पास आकर कहा “आपका बच्चा पेट में ही… पर आप घबराइए मत, भगवान की कृपा से दो बच्चे तो हैं आपके पास” उस नर्स की बात सुनते ही अंकिता ने तेज़ चीख़ मार दी, और उसके हाथ से ड्रिप निकाल रही नर्स चौंक कर दूर हट गई। उसने घबराकर पूछा “क्या हुआ मैम, आप ठीक तो हैं??” अचानक अंकिता ने आँखें खोलकर इधर उधर देखा, वह नर्स नहीं थी जिससे वह अपने बच्चे के बारे में पूछ रही थी, तब उसे समझ आया कि वह जो देख रही थी एक सपना था, मगर खुद को हॉस्पिटल में देखकर मन आशंकाओं से भर रहा था।

अंकिता ; – ( घबराते हुए ) हे भगवान् सब ठीक हो…। मुझे अच्छे से याद है मैं सीढ़ी से गिरी थी, इसलिए हॉस्पिटल में हूँ, पर अगर बच्चे को कुछ हुआ होगा तो मेरा क्या होगा? क्या जबाव दूँगी शेखर को? उसे तो विश्वास भी नहीं होगा कि यह एक्सीडेंट हो सकता है। मैं कभी ख़ुद से नजर नहीं मिला पाऊँगी, मैंने अपने होने वाले बच्चे की कोई केयर नहीं की। प्लीज, उसे कुछ न हुआ हो, भगवान जी…!  

अंकिता ड्रिप लगा रही नर्स को ध्यान से देख रही थी, वह जैसे ही वापस जाने लगी अंकिता ने उसे रोककर कहा। “सुनो, क्या तुम बता सकती हो मुझे यहाँ एडमिट क्यों किया गया है?” उस नर्स ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “आप अपने घर में सीढ़ी से गिर गई थीं… और देखिए, इतने बड़े एक्सीडेंट के बाद भी आप और आपका बच्चा दोनों ठीक हैं। इसे ईश्वर का चमत्कार ही कह सकती हैं”। अंकिता नर्स की बात सुनकर ख़ुशी से रो पड़ी। वक्त और हालात से लड़ते हुए उसे अपना बच्चा कोख़ में ही बहुत स्ट्रांग लग रहा था। अंकिता अकेली में मुस्कुरा रही थी, तभी आकार घबराते हुए वहाँ आ गया।  

आकार ; – ( घबरा कर )  अंकिता,,, क्या हुआ तुम्हें? सीढ़ी से कैसे फिसल गईं? तुम्हें देखकर चलना चाहिए, अभी कुछ गलत हो जाता तो? तुम्हारा तो पता नहीं अंकिता, पर मैं खुद को कभी माफ़ नहीं का पाता। एक बार यह हादसा हो चुका है, फिर तुम इतनी लापरवाही से कैसे चल सकती हो?

अंकिता ; – ( मुस्कुराकर ) यह बच्चा मेरी तरह बहुत मजबूत हो गया है, आकार। अब न मैं हालात से घबराकर बिखरती हूँ, न यह बच्चा घबराया, और इसलिए इस हादसे के बाद भी सही सलामत है…  

(कुछ सेकंड का pause जैसे अभी realise किया हो) अरे, आकार, तुम अगर अब आए हो तो फिर मुझे हॉस्पिटल लेकर कौन आया? घर पर तो मेड भी नहीं थी, और बच्चे भी स्कूल जा चुके थे।  

अंकिता की बात से आकार भी हैरान था, उसके पास तो हॉस्पिटल से फोन आया था कि अंकिता एडमिट है। यहाँ आकर डॉक्टर से पता चला कि अंकिता सीढ़ी से गिर गई थी, मगर यह अच्छा हुआ कि फिसलते हुए वह सीधी गिरी जिससे पेट में बस हल्की धमस ही आई, बच्चे को कोई नुक्सान नहीं हुआ। एक दो दिन अंकिता को हॉस्पिटल में रखना पड़ सकता है, पर खतरे जैसी कोई बात नहीं है। आकार खुश था कि अंकिता और बच्चा दोनों ठीक हैं, यह पूछना भूल ही गया कि अंकिता को यहाँ लेकर कौन आया!

आकार डॉक्टर से बात करने जा ही रहा था, तभी दरवाजे से आवाज आई “अंकिता को हॉस्पिटल लेकर मैं आया था”। आकार और अंकिता ने दरवाजे पर देखा तो शेखर खड़ा था। अंकिता के चेहरे पर मुस्कराहट छा गई, खुश होकर उसके मुँह से एकाएक निकल गया “शेखर,,, मुझे पूरा विश्वास था कि आकार नहीं था तो तुम ही आए होगे, हमेशा सही समय पर पहुँच कर मुझे बचा लेते हो। थैंक यू सो मच शेखर।” अंकिता, शेखर को सामने देखकर, यह भूल गई थी कि आकार भी वहाँ है और उसे बुरा भी लग सकता है। आकार का लटका हुआ चेहरा देखकर शेखर ने बात संभालने की कोशिश की।

शेखर ; – ( सख़्ती से )  मैं तो तुम्हारे घर, तुमसे और मिस्टर आकार पटेल से बात करने आया था। वहाँ देखा तो घर में कोई नहीं था, तुम बेहोश पड़ी थीं तो इंसानियत के लिए इतना तो कोई कर सकता था, मेरा तो फिर भी स्वार्थ था… अच्छा तो मैं चलता हूँ, अपना ध्यान रखना, और सीढ़ियों पर बर्तन रखना बंद कर देना ताकि फिर किसी के साथ हादसा न हो।

शेखर चला गया, अंकिता उसके जाने के बाद भी दरवाजा देखते हुए मुस्कुरा रही थी। आकार अंकिता को देखते हुए शेखर के पीछे चला गया। शेखर गाड़ी में बैठने वाला था कि आकार ने आवाज लगाकर उसे रोक लिया और जाकर बोला। “मेरी बीवी की जान बचाने के लिए तुम्हारा शुक्रिया,,, आज तुम नहीं आते तो पता नहीं क्या हो जाता!” शेखर आकार की बात सुनकर हँस पड़ा और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला,

“मैं नहीं आता तो कोई और आता, जिसे जिंदगी मिलनी है उसे मिलकर रहती है। वैसे शुक्रिया अदा तो मुझे आपका करना चाहिए, आप बहुत अच्छे इंसान हैं मिस्टर पटेल।”  आकार भी शेखर की जिंदादिली पर हैरान हो गया। आकार को लगा था वह कुछ बोलेगा और शेखर को चिढ़ा देगा मगर उसने तो एक पल के लिए आकार को सब भुला दिया, और जब तक उसे याद आया, शेखर निकल गया। आकार उसे दूर तक देखता रहा और सोचने लगा।

आकार ; – ( मन ही मन ) यह इंसान सच में ही सबसे अलग है। इसने अंकिता के अकेलेपन का फायदा उठाया या उसके अकेलेपन को कम किया, यह तो सिर्फ यही जानता होगा, मगर अंकिता ने अगर इस पर विश्वास किया तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं हो सकती। यह देखने में जितना हेंडसम है हालात को संभालने में उतना ही स्मार्ट भी… मुझे इससे बहुत होशियार रहना होगा।

दो हफ्ते तक हॉस्पिटल में रहने के बाद अंकिता को डिस्चार्ज तो मिला, मगर डॉक्टर ने सख्त निर्देश दिया कि जरा सी लापरवाही, माँ और बच्चा, दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है। अंकिता अब पूरी तरह निश्चिन्त थी, क्योंकि जब उसने उम्मीद छोड़ दी थी तब वह खतरे से निकल आई थी, अब उसे किसी खतरे से डर नहीं लग रहा था। शेखर और आकार दोनों का सपोर्ट, उसकी हिम्मत बन गया था। चार महीने का वक्त जितनी मुश्किल से निकला था, बाकी के पांच महीने का अंकिता को भी पता नहीं चला, कब निकल गए, और वह दिन आ गया जब अंकिता ने अपने तीसरे बच्चे को जन्म दिया।

अंकिता खुद जाकर एडमिट हो गई थी, फिर आकार और शेखर को फोन लगाया था। आकार घबराहट में यहाँ से वहाँ घूम रहा था और शेखर एक जगह बैठा प्रार्थना कर रहा था। डॉक्टर डिलीवरी रूम से बाहर निकली और मुस्कुराते हुए बोली, “बधाई हो मिस्टर पटेल, बेटी हुई है।” डॉक्टर के शब्द शेखर के कानों में शहनाई की तरह गूँज रहे थे। वहीं आकार ने झट से सवाल किया “अंकिता कैसी है डॉक्टर?” डॉक्टर ने उसे आश्वस्त किया कि माँ और बच्ची दोनों बिल्कुल ठीक हैं, और वह अभी जाकर अंकिता से मिल भी सकता है। आकार के साथ शेखर भी अंदर जाना चाहता था मगर आकार ने उसे रोक दिया।

आकार ; – ( सख़्त होकर ) आप जो कोई भी हों, मिस्टर शेखर, याद रखो, अंदर मेरी बीवी है। आपको बच्चा देने की बात हुई थी तो मिल जाएगा, मेरी बीवी से ज्यादा सिम्पेथी दिखाने की जरूरत नहीं है। एक बार उसे अपनी बातों से बहका चुके हो, पर मैं बेवकूफ नहीं हूँ, इसलिए अपनी हद में रहो और अपनी बेटी को लेकर हमारी जिंदगी से हमेशा के लिए चले जाना।

शेखर को आकार की बातें चुभ रही थीं, मगर वह अपनी बेटी के आने पर इतना खुश था कि आकार ने जो कहा सब उसने अनसुना कर दिया। अंकिता की गोद में बच्ची थी और आकार खुश होने का नाटक कर रहा था क्योंकि शेखर मौका देखकर अंकिता से मिलने तैयार खड़ा था। दो दिन बाद अंकिता हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई और शेखर ने उसकी गोद से अपनी ही बच्ची अडॉप्ट कर ली। आकार अंकिता को थामकर खड़ा था, शेखर ने उसकी गोद से बच्ची उठाई और सीने से लगा ली। अंकिता की आँखों में नमी थी और दिल में गहरा सुकून था। आकार को उसकी बच्ची देकर जैसे उसने कोई बड़ा पुण्य का काम कर दिया था।

शेखर अपनी बेटी को लेकर वहाँ से चला गया और आकार अंकिता को लेकर अपने घर आ गया। शेखर के हाथों में अपनी बेटी को सौंपते हुए अंकिता को जो सुकून मिला था, वह घर आते - आते ख़त्म होता जा रहा था। नौ माह कोख में रखने के बाद गोद में आते ही बच्ची का दूर होना अंकिता के लिए असहनीय हो रहा था। अपनी सूनी गोद देखकर वह रो पड़ी थी, आकार ने उसको प्यार से बैठकर समझाया।

आकार ; – ( मुस्कुरा कर )  तुम जितना उस बच्ची के लिए सोचोगी, उतना ही ज्यादा दर्द होगा। शेखर समझदार है, उसने बहुत अच्छी व्यवस्था की होगी अपनी बेटी के लिए। अब इस दर्द को अनदेखा करके अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ो। अपने इन दो बच्चों को देखो अंकिता, यह दोनों भी अपनी मम्मा से बहुत प्यार करते हैं। वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।

आकार के समझाने पर अंकिता ने सर हिला कर हाँ तो कह दिया मगर अपनी दो दिन की बच्ची के लिए अपनी तड़प कम नहीं कर पाई। जैसे - तैसे दिन निकल गया था, रात होते - होते अंकिता की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। आकार खाना खाकर आया तो उसके हाथ में ट्रे था जिसमें बच्चों के दूध के गिलास रखे थे, अंकिता ने वह गिलास देखे और उसे अपनी बेटी की भूख याद आ गई। उसे याद आ रहा था कि शेखर को उसे ढंग से गोद में लेना भी नहीं आ रहा था, वह दूध कैसे पिला पाएगा। थोड़ी देर में आकार तो सो गया मगर अंकिता की घुटन बढ़ रही थी। अचानक उसके कानों में बच्ची के रोने की आवाज गूँजने लगी और घबराकर वह उठ कर बैठ गई । अब बर्दाश्त करना अंकिता के बस में नहीं रहा, वह उठी और गाड़ी निकालकर सीधे शेखर के घर पहुँच गई। गाड़ी से निकलते ही अंकिता के कानों में बच्ची की आवाज तेजी से आने लगी। अंकिता का अंदाजा सही था, बच्ची वाकई बुरी तरह रो रही थी। अंकिता भागती हुई गई और ज़ोर - जोर से दरवाजा खटखटाने लगी, शेखर ने आकर देखा तो घबरा गया। रात के दो बजे अंकिता अकेली आकर उसके दरवाजे पर खड़ी थी, उसने झट दरवाजा खोला पर अंकिता ने आते ही शेखर की गोद से अपनी बेटी को ले लिया और अंदर जाकर फर्श पर ही बैठकर उसे दूध पिलाने लगी। बच्ची का रोना बंद हो गया था और शेखर की आँखें भीग गईं।

शेखर ; – ( मन में ) कितना भी कुछ प्लान कर लो, कोई भी रूल्स बना दो, मगर माँ की ममता नहीं रुक सकती। तुम ममता का समंदर हो अंकिता, तुम अपनी बच्ची से कैसे दूर रहती। यह तो मुझे सोचना था कि तुम्हें अपने घर का पता ही क्यों बताया। तुम्हें हालात को समझना होगा अंकिता, इतनी रात को यहाँ आना तुम्हारी गृहस्थी में बवाल मचा देगा।

यहाँ शेखर अंकिता की गृहस्थी के लिए सोच रहा था, वहाँ आकार की आँख खुली और वह अंकिता को देखने लगा। उसने फोन लगाया मगर मोबाइल वहीं बेड पर पड़ा था। आकार को अंकिता पर गुस्सा भी आ रहा था और चिंता भी हो रही थी। उसने बाहर आकर देखा तो अंकिता की गाड़ी भी नहीं थी। गुस्से में आकार ने अपनी गाड़ी निकाली और सीधे शेखर के घर पहुँच गया…

 

क्या आकार अंकिता की हालत समझ पाएगा ???

क्या अंकिता और आकार के रिश्ते में नई दरार बन जाएगी ???

क्या उनके बिगड़ते रिश्ते का फायदा शेखर को मिल जाएगा ?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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