अंकिता दोनों बच्चों के साथ डिनर के लिए नीचे आ रही थी… पहली ही सीढ़ी पर उसके पांव ठिठक कर रूक गए, नीचे हॉल में आकार घुटने टेक कर बैठा था और अपना सर घुटनों में छिपा रखा था। बच्चे आँखें फाड़कर अपने पापा को देख रहे थे। अंकिता ने अश्विनी को इशारा किया कि वह जाकर पूछे, क्या हुआ है! अश्विनी ने पास जाकर कहा। “क्या हुआ पापा, आपकी तबियत ठीक नहीं क्या? आकार ने अश्विनी को देखा और अंकिता की तरफ़ इशारा करके कहा। “अपनी मम्मा से पूछो बेटा, उसी ने बैठाया है।” अंकिता गुस्से में जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ उतरकर उसके पास गई और उसे उठाने के लिए हाथ बढ़ाते हुए बोली।
अंकिता ; – ( गुस्से में ) पागलपन मत करो आकार, जो भी काम है सीधे सीधे बता दो। मैं अच्छी तरह जानती हूँ, मुझसे कोई काम होता है तब तुम अचानक बदल जाते हो। अभी कोई बड़ा काम आ गया होगा जो घुटनों के बल मेरे सामने बैठे हो, इसलिए माफ़ी मांगने का नाटक तो बिल्कुल भी मत करो, तुम्हें अपनी गलतियों का एहसास कभी हो ही नहीं सकता।
आकार : - ( उदास होकर ) मैं किसी काम के लिए नहीं आया अंकिता, सचमुच तुमसे माफ़ी मांगने आया था। तुम्हें अकेलापन देने के लिए, तुम्हारी भावनाओं को अनदेखा करने के लिए… तुम्हारे साथ रहकर भी तुम्हारा ना होने के लिए… तुम्हारे एक एक दर्द के लिए, मेरे कारण मिली सभी मुश्किलों के लिए... तुम्हारी ज़िंदगी में इतने सारे टेंशन देने के लिए… तुम्हारे सारे समझौतों के लिए… किस - किस ग़लती के लिए माफ़ी माँगू? मैंने अब तक सिर्फ़ गलतियाँ ही तो की हैं।
आकार की आँखें सच बता रही थीं जिसे अंकिता एक बार नजर अंदाज़ करके जा चुकी थी। अंकिता के सामने दो घंटे पहले का सीन चल रहा था, जब वह घर आई थी तब भी आकार यहीं बैठकर माफ़ी मांग रहा था और तब अंकिता को नौटंकी लगी थी। अंकिता को पूरा विश्वास था कि आकार का यह रूप सच नहीं हो सकता। उसने कभी अपनी गलती स्वीकार नहीं की तो माफ़ी मांगने का सवाल ही नहीं उठता। तब आकार से कोई जवाब नहीं मिलने पर अंकिता उसे ऐसे ही छोड़कर सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गई थी। आकार उदास होकर उसे जाते हुए देख रहा था।
अंकिता बच्चों के कमरे में गई तो दोनों पढ़ाई कर रहे थे। बच्चों को पढ़ते देख वह सुकून की सांस लेकर मुस्कुरा उठी। आकार क्यों बैठा था और क्या चाहता था, उसके दिमाग से निकल गया था। दो घंटे बाद जब बच्चों को खाना खिलाने आई तो आकार वहीं बैठा मिला, और इस बार अंकिता उसकी बातों में झलक रहे सच को नजरअंदाज नहीं कर पाई, मगर हैरान थी, एक दिन में आकार कैसे बदल सकता है! कल वह अंकिता को गालियाँ देने पर उतर आया था, और आज उसे गलती का एहसास हो गया?? अंकिता अंदर उठते सवालों से घबरा रही थी कि कहीं आकार कोई साजिश तो नहीं रच रहा, पर आसपास खड़े दोनों बच्चे भागकर आकार के पास पहुंच गए, और अंकिता को उसे माफ़ करने के लिए रिक्वेस्ट करने लगे। अंकिता ने आकार को हाथ पकड़ कर उठाया और बोली।
अंकिता : - ( मुस्कुराते हुए ) उठो आकार, मुझे तुमसे माफ़ी नहीं मंगवानी, बल्कि मैं तो ख़ुद तुमसे बात करना चाहती थी, कि हमें अपने रिश्ते को कुछ वक्त देना चाहिए। अब अगर तुम ख़ुद समझ गए हो तो इससे अच्छी कोई बात ही नहीं। बच्चे भी यही चाहते हैं कि उनके पापा उन्हें थोड़ा सा वक्त दें। मुझसे जो ग़लती हुई है उसके लिए मैं ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर सकती, पर उस वक्त मैं इतनी अकेली थी कि किसी का जरा सा अपनापन क्या मिला, पिघलती चली गई, इसलिए मैंने उसके लिए तुम्हें भी जिम्मेदार मान लिया।
आकार अब अंकिता के दिए सारे इल्ज़ाम सुन रहा था और अपनी गलती भी मान रहा था। खाने के बाद अंकिता बच्चों को सुलाने ले जा रही थी कि रजत ने रुककर कहा। “मम्मा, थोड़ी देर कोई गेम खेलते हैं, अभी नींद नहीं आ रही।” अंकिता ने उसे आँखें दिखाई और चलकर सोने को कहा, रजत मुँह फुलाकर जाने लगा पर आकार ने उसे रोक दिया। “आज मुझे भी नींद नहीं आ रही, क्या कोई मेरे साथ थोड़ी देर गेम खेल सकता है? कैरम ही खेल लो…” अंकिता के साथ दोनों बच्चे भी पलट कर देखते रह गए… आकार बच्चों के साथ गेम खेलना चाहता था, किसी को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था कि जो सुना वह आकार ने ही बोला? उन तीनों को हैरान देखकर आकार ने फिर कहा “कोई है इस घर में जिसे नींद न आ रही हो, और मेरे साथ गेम खेलना चाहे?”
आकार की बात पूरी होने से पहले ही अश्विनी बुदबुदाई “नींद तो आपको देख देखकर ही उड़ती जा रही है पापा, क्या चमत्कार हो रहा है आज?” अश्विनी दबी सी हंसी से हंस रही थी पर अंकिता ने उसका हाथ दबाया और आँख दिखाकर चुप रहने का इशारा किया। आकार उन दोनों को देखते हुए कुछ और भी कहने वाला था कि रजत आगे आ गया “मुझे खेलना है पापा”, पर आकार ने उसे पास बुलाया तो रजत अंकिता को देखने लगा। अंकिता ने उसे इजाजत दे दी और खुश होकर दोनों बच्चे आकार के साथ खेलने लगे। बच्चों के चेहरे की ख़ुशी और घर में गूंजती उन तीनों की आवाज से अंकिता भी खिलखिला उठी थी, मगर अचानक से उसे अपना तीसरा बच्चा याद आया। वह जो शेखर को एक उम्मीद देकर आई थी, उसका क्या होगा? अपनी गलती के लिए तो आकार से माफ़ी मांग ली मगर बच्चे के लिए तो कोई बात नहीं हुई। अंकिता आगे सोचकर घबराने लगी।
अंकिता ; – ( मन ही मन ) आकार क्यों शेखर के बच्चे को जन्म देने देगा? कैसे कहूँ उससे कि मुझे शेखर का बच्चा उसे देना है? किस्मत भी क्या - क्या मज़ाक करती है, जब शेखर को समझा रही थी तो वह नहीं मान रहा था, फिर उसने फ़ैसला मेरे ऊपर छोड़ दिया, तब मैंने उसे बच्चे की आशा दिखा दी। नई उम्मीद लेकर अब वह बच्चे का इंतज़ार कर रहा है, और यहाँ आकार अपने बच्चों के साथ नई शुरुआत कर रहा है। मैं न आकार को रोक सकती हूँ न शेखर को समझा सकती हूँ। अब मैं कहाँ जाऊँ???
अंकिता की आँखें भर रही थीं, आकार के साथ खेलते हुए बच्चे इतने खुश थे कि वह उस ख़ुशी को कम करने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। वहीं शेखर की ख़ुशी, उसका नया घर याद आते ही रोना आ रहा था। हालात फ़िर वही थे, न शेखर को दुःखी कर सकती थी न आकार को नाराज़ होने दे सकती। शेखर ने एक ऐसी आशा पाल ली थी कि उसके टूटने के बाद उसकी जिंदगी शायद मौत से भी बद्तर हो जाएगी। आकार का विरोध करके अंकिता बच्चे को जन्म दे सकती थी मगर बच्चों को दुःखी नहीं कर सकती। बच्चों को आकार के साथ छोड़कर, अंकिता ने अलग जाकर शेखर को फ़ोन लगाया और फ़ोन रिसीव करते ही शेखर ने खुश होते हुए कहा, “वीडियो कॉल रिसीव करो अंकिता, देखो मैंने बच्चे के कमरे को कितनी खूबसूरती से सजाया है। सितारे भी फीके लगेंगे तुम्हें, मेरे बच्चे का कमरा देखोगी तो।”
अंकिता ने वीडिओ कॉल रिसीव किया तो शेखर चारों तरफ़ मोबाइल घुमाकर उसे कमरा दिखाने लगा, उसने कमरे की दीवारें फ़र्श छत सब खिलौनों से सजा रखी थीं। अंकिता के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला आँसू पोंछते हुए उसने फ़ोन काट दिया। फोन कटते ही फिर शेखर का फोन आ गया, अंकिता ने रोते हुए फोन उठाया, शेखर घबरा रहा था।
शेखर ; – ( फ़ोन पर ) हैलो अंकिता,,, क्या हुआ तुम्हें, मुझे तुम्हारी आँखों में आँसू दिखे थे। तुम रो क्यों रही हो? आकार ने फिर कुछ कहा क्या, और हमारे प्लान का क्या हुआ? देखो अंकिता तुम ज़्यादा मत सोचो और कोई टेंशन मत लो,,, मुझे बताओ क्या हुआ है? मैं कोई रास्ता निकालता हूँ, तुम्हारी सारी परेशानियां अभी हवा हो जाएंगी।
अंकिता ; – ( रोते हुए ) आकार ने माफ़ी मांगी है शेखर… मैं जिस दुविधा में पहले थी, वापस वहीं आ गई। अब आकार से नहीं लड़ सकती क्योंकि बच्चे उसके साथ हैं, और बहुत खुश हैं। मैं उनकी ख़ुशी से खिलवाड़ नहीं कर सकती। मुझे पता है आकार एक दिन में नहीं बदल सकता पर उसने बच्चों के साथ नई शुरुआत की है। उसे हराने के लिए, मै अपने बच्चों को उदास नहीं करूँगी। मुझे माफ़ कर दो शेखर,,, मैंने तुम्हें उम्मीद दिखाई, और…
“और क्या अंकिता” शेखर ने तेज चीख मार दी, मगर अंकिता फोन काट चुकी थी। शेखर गुस्से और दर्द से तड़प उठा, अंकिता की बातों में और उसके आँसुओं में उसे धोखा दिख रहा था। हर बार यही तो करती है… आकार से परेशान होती है तो सहारा ढूंढती आ जाती है और आकार से जरा सा सपोर्ट मिला तो भूल जाती है। शेखर की नजरों में अंकिता की छवि रितिका जैसी बन रही थी, उसे दोनों खुद पर हँसते दिख रही थीं। अपने आप को संभालने की कोशिश करते हुए भी शेखर बिखरता जा रहा था। वहीं अंकिता के आँसू नहीं रुक रहे थे उसे एक रास्ता मिला था, अपने बच्चे को बचाने का, वह भी बंद होते दिख रहा था। अपने कमरे के बाहर बालकनी में खड़ी वह सड़क पर आती - जाती गाड़ियों को देख रही थी, मगर उसे सारे रास्ते उलझे उलझे दिख रहे थे। पीछे से आकार ने आकर कंधे पर हाथ रखा तो उसकी चीख निकल गई। आकार ने दोनों हाथ से उसे थामकर कहा।
आकार ; – ( मुस्कुरा कर ) इतना मत घबराओ अंकिता… मैं जानता हूँ इस वक्त तुम्हारे दिल में क्या उलझन है! देखो, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ है, उसकी तुम अकेली जिम्मेदार नहीं हो। तुम खुद भी तो यही मानती हो न? जब इसके लिए मैं भी जिम्मेदार हूँ तो थोड़ी सी जिम्मेदारी मुझे भी उठानी होगी और तुम्हारे उस दोस्त को भी। हम इस बच्चे को अपना नाम देंगे अंकिता और तुम्हारे दोस्त से कहो, वह हमसे यह बच्चा अडॉप्ट कर ले। हमारे बच्चे भी परेशान नहीं होंगे और उसे भी बच्चा मिल जाएगा।
आकार को बोलते देख अंकिता की नजरें नहीं हट रही थीं। मन में बार - बार सवाल आ रहा था, यह कौनसा आकार है! इतने सालों में कभी आकार का यह रूप अंकिता ने नहीं देखा था। कितनी बार उसको समझाने की कोशिश की थी पर वह अपनी ही धुन में रहता था। उसकी जिद के कारण अपना पहला बच्चा तक खो चुकी थी मगर आकार को फिर भी नहीं बदल पाई, और अब अचानक खुद ही बदल गया, बिना कोई बात किए ही। आकार उसकी हैरानी को अच्छी तरह समझ रहा था उसने अंकिता को गले लगाकर कहा। “घबराओ मत अंकिता, यह तुम्हारा ही आकार है, बिल्कुल बदला हुआ” अंकिता को समझाकर आकार अंदर ले गया और उसे सुलाकर खुद भी सो गया।
अंकिता लेटी तो रही मगर रात आँखों में ही कट गई क्योंकि सुबह होने का इन्तजार नहीं कर पा रही थी। मन में चिंता भी थी कि शेखर की रात कैसे कटी होगी, उससे बात ही नहीं होती तो अच्छा होता। सुबह नाश्ते के बाद आकार ऑफिस चला गया… अंकिता बच्चों को स्कूल भेजकर शेखर से बात करने वाली थी कि आकार का फोन आ गया। उसे कुछ डॉक्युमेंट्स के फ़ोटो चाहिए थे। अंकिता मोबाइल टेबल पर छोड़कर जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ चढ़ती ऊपर चली गई.. अचानक सीढ़ी पर रखी एक प्लेट पर उसका पैर पड़ गया जिससे फिसल कर लुढ़कते हुए वह नीचे हॉल में आ गिरी…
अंकिता का सीढ़ियों से गिरना महज हादसा था या कोई साज़िश ???
क्या इस हादसे के बाद भी अंकिता बच्चे को बचा पाएगी ???
क्या शेखर अंकिता को माफ़ कर पाएगा ???
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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