शेखर : “यहाँ कब तक बैठी रहोगी अंकिता, घर जाओ बच्चे वेट कर रहे होंगे।”
यूँ तो शेखर उस को हमेशा के लिए अपनी ज़िंदगी में रख लेना चाहता था लेकिन इस वक्त कुछ ऐसा होने वाला था जो उसे यह शब्द कहने पड़े। ज़िंदगी में कुछ फ़ैसले ग़लत होते हुए भी, किसी की ज़िंदगी बनाने वाले होते हैं। उस के लिए अंकिता का गुस्सा पहले ही आकार के कुछ गलत शब्दों के कारण ख़त्म हो गया था, और शेखर ने अब अपने बच्चे का फैसला भी उस पर छोड़ दिया था। वह जो कह रहा था वह कल्पना करना भी मुश्किल था, पर उस की सलाह, अब तक के सारे फैसलों से अच्छी थी। अंकिता को उस की बातें अच्छे से समझ आ रही थीं पर ख़ुद को तैयार करना मुश्किल लग रहा था लेकिन शेखर तो उस की मुश्किलों को उसकी आँखों में देखकर ही समझ जाता था। उसने उस का हाथ पकड़ कर उसे बिठाया और फिर से समझाया।
शेखर ; – ( गहरी साँस खींचकर ) बहुत ही सिंपल सी बात है, तुमने अपने लिए ढेरों मुश्किलें पाल रखी हैं, और मैं तुम्हें उन मुश्किलों से निकालने की कोशिश कर रहा हूँ। यह मेरा फ़ैसला नहीं है कि तुम्हें मानना ही पड़े, तुम्हें जो सही लगे तुम वही करो। मैं तुम्हारे हर फ़ैसले में साथ हूँ बस तुमने अपने आस - पास जितना दर्द इकट्ठा कर रखा है न, उसे कम कर लो। एक बात याद रखो, सारे फ़र्ज़ तुम्हारे हैं, सारी जिम्मेदारियाँ तुम्हारी हैं पर इन सबके बीच एक तुम्हारी ज़िंदगी है,जो सिर्फ़ तुम्हारी है... उसे नज़र अंदाज़ मत करो।
अंकिता : - ( घबराते हुए ) जितना आसान तुम्हें लग रहा है उतना नहीं है शेखर। मैं यह सब... मुझसे नहीं होगा । मैं आकार से झूठ नहीं बोल सकती। वह मुझ पर विश्वास करे या ना करे, मैं हमारे रिश्ते का बहुत सम्मान करती हूँ। उसे आज नहीं तो कल समझ आ जाएगा कि मैंने कुछ भी ग़लत नहीं किया। जो कुछ भी हुआ...!
शेखर गौर से उस को देख रहा था और बेसब्री से सुनना चाहता था कि “जो कुछ हुआ…”, क्या था लेकिन अंकिता आगे कुछ नहीं बोल पाई। वह अधूरी बात पर भी मुस्कुरा गया और उस से घर जाने को कहकर खुद भी जाने के लिए पलट गया। आगे जाकर उसने पलटकर देखा तो वह वहीं बैठी थी। शेखर ने आवाज़ लगाकर पूछा, “यहाँ कब तक बैठी रहोगी, घर जाओ बच्चे वेट कर रहे होंगे।” आवाज़ देकर, वह वहीं खड़ा रहा और जब वह कुछ नहीं बोली तो उसने पास जाकर फिर वही सवाल किया। वह धीरे से बोली, “मैं अभी घर नहीं जाना चाहती... तुम जाओ तुम्हें काम होगा,,,”
वह उसकी हालत समझ रहा था, ऐसे में उसे अकेला छोड़ कर जाना सही नहीं लग रहा था। अंकिता अपनी जगह चुप बैठी थी, वह थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहकर कुछ सोचता रहा, फिर उस का हाथ पकड़ कर ले गया और अपनी गाड़ी में बैठाकर, गाड़ी बढ़ा दी। शेखर को देखते हुए वह सोचने लगी, “काश, आकार ऐसे ही पूरे अधिकार से, मेरे लिए फ़ैसले ले लेता, शायद फिर यह हालात भी नहीं होते।” तभी गाड़ी रुकने से झटका लगा और उस को होश आया कि वह उस को एकटक देख रही है। उस ने गाड़ी एक बड़े से बंगले के सामने खड़ी कर दी, और फिर उस का हाथ पकड़कर अंदर ले गया।
अंकिता चारों तरफ हैरानी से देख रही थी कि वह कहाँ ले आया। बंगले के चारों तरफ़ बड़ा सा गार्डन बना था, कई तरह के फूलों की खुशबू माहौल में घुल रही थी। अन्दर जाते हुए उस को वह घर ,जन्नत सा सुंदर लग रहा था। अंदर पहुँचते ही वह पूछना चाहती थी पर तभी शेखर उसके सामने घुटने के बल बैठ गया, और उस घर की तरफ़ इशारा करके बोला, ‘’यह हमारा गरीबखाना है अंकिता, मतलब मेरा नया घर। अपने स्वार्थ में थोड़ा सा अंधा हो गया था, मुझे लगा तुम आकार को छोड़कर आओगी और हम तीनों बच्चों के साथ यहाँ रहेंगे। मुझे लगा मैं तुम सबको इतना प्यार दे सकता हूँ कि तुम और बच्चे उस को भूल जाओगे, पर मैं प्यार की परिभाषा नहीं समझ पाया। जिस आदमी के लिए इतने सालों में तुम कोई फीलिंग्स नहीं बना पाईं, उसी का साथ छोड़ना तुम्हें इतना दर्द दे रहा है… वाकई यही प्यार है। आज मुझे एहसास हुआ कि मुझे तुम से प्यार है और तुम्हारी खुशी के लिए सब कुछ छोड़ देना मेरे प्यार की सफलता है।''
अंकिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे! उस को वहीं छोड़ कर वह पूरा घर देखती घूमती रही, फिर सीढ़ियाँ देखकर एक मिनट रुकी और कुछ सोचते हुए ऊपर चली गई। एक कमरे का दरवाज़ा खोला तो चौंककर अपने मुँह पर हाथ रख लिया। दरवाज़े के सामने दीवार पर अंकिता, रजत और अश्विनी की तस्वीर लगी थी। अंदर गई तो देखा पूरा कमरा खिलौने से भर रहा था। वह भागते हुए वहाँ से बाहर आ गई, उस घर की एक एक चीज़ उसे अपनी सी लग रही थी जैसे सबकुछ उसके हिसाब से सजाया गया था। सोचती रह गई कि क्या क्या अनदेखा करे, उस घर के लिए शेखर के सपने, उसकी उम्मीदें और खुद उस के वहाँ होने का आभास। सीढ़ियों से वह आता दिखा और अंकिता ने खुद से अपना कन्ट्रोल खो दिया… दौड़कर उसके गले लग गई।
अंकिता : - ( रोते हुए ) मुझे माफ़ कर दो शेखर, मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती। अब अगर मैं फिर से बहक जाती हूँ तो कुछ भी नहीं बचेगा, सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। आकार को समझाना अब वैसे भी मुश्किल हो गया है, और कोई नई ग़लती नहीं करना चाहती...। तुम शादी कर लो ना ,,,??? प्लीज़…
शेखर : – ( खिलखिलाकर हँसते हुए ) अजीब बात है न अंकिता, दो बार प्यार हुआ, दोनों ही शादी शुदा निकलीं। यही कम नहीं है, कि तुम मेरे प्यार की क़दर करती हो, मेरी फीलिंग्स समझती हो। मुझे अब वक्त से, किस्मत से, अपने हालात से, तुमसे या किसी से कोई शिकायत नहीं। अपनी ख़ुशी के लिए थोड़ा सा सेल्फिश हो गया था, सोच रहा था कुछ तो मिलेगा मुझे भी ज़िंदा रहने के लिए, पर मैं ग़लत था। किसी की ज़िंदगी से सुकून छीनकर, हम अपने लिए जीने की वजह नहीं ढूंढ सकते।
उस की बातें सुनकर अंकिता की ख़ुद से शिक़ायत अपने आप कम हो गई, अगर उसकी ज़िंदगी में किसी आदमी की एंट्री हुई थी तो एक् बहुत ही अच्छे इंसान की। उस के लिए यह कम नहीं था कि शेखर जो उसे बर्बाद कर सकता था, अब उसकी हिम्मत बनकर खड़ा है और आकार, जिससे हिम्मत चाहिए थी, वह उसे अपने हाल पर छोड़ कर चला गया। अभी भी फ़ैसला उसे अकेले ही करना था, अकेले ही लड़ाई लड़नी थी, मग़र शेखर ने उसमें कोई भी जंग जीतने का साहस भर दिया था।
अपने घर में उसे एक घुटन महसूस हो रही थी लेकिन शेखर के घर में उसे फ़ैसला करने की ताकत आ गई। किसी की थोड़ी सी परवाह ही, ज़िंदगी को मुस्कुराना सिखा देती है और आज अंकिता बिल्कुल विपरीत हालातों में भी मुस्कुरा रही थी। इतना ही तो चाहती थी वह आकार से, फिर उसका जो भी फ़ैसला होता, उसे मंज़ूर था मगर उसने अपनी लापरवाही से उसको भी कमज़ोर बना दिया था। वह शेखर को जवाब देने आई थी और उसी के फ़ैसले में शामिल हो गई।
अंकिता : - ( सख्ती से ) मैं तुम्हारी सलाह से सहमत हूँ, तुमने जो कहा, वह मानना चाहती हूँ मग़र तुम्हें भी मेरी बात माननी होगी। मुझे अपनी गृहस्थी हर हाल में बचानी है, इसलिए मैं अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ लूंगी। आकार के लिए मेरे दिल में एहसास हैं या मर चुके, मुझे इससे बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता, पर हमारा रिश्ता हमारे बच्चों का भविष्य तय करता है, और बच्चे मेरी ज़िम्मेदारी ही नहीं, मेरे जीने की वजह भी हैं। मैं उस को कभी नहीं छोड़ सकती, उसे मेरी कदर भले ही ना हो, पर मेरे लिए वह बहुत खास है।
अंकिता उस की बात मानने तैयार हो गई, इतना सुनकर ही शेखर खुशी से उछल पड़ा। गार्डन में उसने डरते – डरते उस के सामने अपनी बात रखी थी पर उसने बिल्कुल नहीं सोचा था कि वह मान जाएगी। उसके हाँ कहने पर उसको अपनी बात फिर याद आ गई।।
"तुम जो करना चाहती हो मुझे सब मंजूर है अंकिता… बस एक बार मेरी बात सुन लो, अगर सही लगे तो मान लेना। तुम आकार से झगड़ा करके आई हो, वह तुम्हें जन्मों के कहे जाने वाले रिश्ते से आज़ाद करना चाहता है। तुम खुद बिना बताए उसका घर छोड़ दो। उससे कहना कि अगर उसे लगे, तुम्हारी ज़रूरत है, तो बुला ले, तुम हमेशा उसके पास लौटने तैयार हो। इस बीच तुम हमारे बच्चे को जन्म भी दे सकती हो। मैं बच्चे को लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा और तुम वापस अपनी गृहस्थी में लौट जाना। जाने से पहले बच्चों को अच्छे से समझा देना कि वह अपने पापा को पटा लें, मम्मा को वापस बुलाने।”
कुछ घंटे पहले तक वह आकार से झूठ बोलने तैयार नहीं थी, पर अब उसे भी शेखर की सलाह सही लगने लगी। वह अपने बच्चे के लिए कोई भी शर्त मानने तैयार था, अंकिता जो करवाना चाहे, बिना सोचे समझे कर सकता था।
शेखर : - ( उछलते हुए ) तुम्हारी हर शर्त मंज़ूर है अंकिता। मैं तो आसमान ज़मीन पर ले आऊं अपने बच्चे के लिए। थैंक यू सो मच, तुम नहीं जानती क्या दिया है तुमने मुझे। मेरी पूरी ज़िन्दगी तुम्हारी कर्जदार रहेगी, तुम जब चाहो, कैसे भी मेरी ज़िन्दगी दाव पर लगा सकती हो। मैं इतना खुश हूँ कि मेरे पास शब्द नहीं हैं अपनी खुशी तुम्हें बताने के लिए…।
उस को खुश देख अंकिता को अपने बच्चे के नसीब पर गर्व हो रहा था। क्या हुआ अगर उसे माँ का प्यार नहीं मिलेगा, शेखर उसे इतना प्यार दे सकता है कि उसे माँ की जरूरत भी नहीं रहेगी। अपने बच्चों के लिए ऐसी ही खुशी वह आकार की आँखों में ढूँढती रहती थी, पर आज तक नहीं मिल सकी। अपने दो बच्चों को अपने हिसाब से संभालती रही, कभी उस से कोई सपोर्ट नहीं मिला था। आज शेखर की खुशी देख कर पता चल रहा था, कि पिता भी बच्चों के लिए माँ जितना excited हो सकता है। अंकिता ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा।
अंकिता : – ( भावुक होकर ) तुम्हें अपना बच्चा... सॉरी, मेरा मतलब, तुम्हारा बच्चा तुम्हें देकर मुझे बहुत खुशी होगी शेखर। तुमने मुझे एक बहुत बड़ा गुनाह करने से बचा लिया है, वरना मैं अपने ही बच्चे की जान लेना चाहती थी। सोचकर भी कितना भयावह लगता है, पर अब बहुत ही हल्का सा महसूस हो रहा है…।। चलो ठीक है, फिर मैं अभी घर जाती हूँ, आकार भी पहुँचने वाला होगा और बच्चे भी दिन भर से अकेले हैं।
उस की हाँ से शेखर को जीने की वजह मिल गई। जाते हुए वह अंकिता को दूर तक देखता रहा। ज़िंदगी में पहली बार उस को इतनी बड़ी खुशी मिली थी, और वह भी अपने बच्चे को जन्म से पहले मार डालने का गुनाह करने से बच गई थी। दोनों खुश थे… उनके लिए अलग-अलग मगर सही रास्ते मिल गए थे।
अब उस को अपनी ग़लती के लिए कोई पछतावा नहीं था, क्योंकि शेखर के साथ उसने अपनी ज़िंदगी के कुछ पल जी भर के जी लिए थे वरना तो वह ज़िंदगी को ढो ही रही थी। एक नई energy के साथ वह घर पहुँची मगर दरवाजा खुला देखकर घबरा गई, भागते हुए अंदर आई तो कोई नहीं दिखा। चारों तरफ़ देख कर भागती हुई वह बच्चों के कमरे की तरफ़ जा रही थी तभी पीछे से आवाज़ आई। "आई ऐम रियली सॉरी अंकिता"। आवाज़ कानों में पड़ते ही उस ने झटके से पीछे पलट कर देखा, तो आकार घुटने के बल बैठा था और सर झुकाकर उस से माफ़ी मांग रहा था।
क्या आकार को वाकई अपनी ग़लती का एहसास हो गया था?
आकार के माफ़ी मांगने के बाद क्या अंकिता बच्चे के लिए अपना फ़ैसला बदल देगी?
और क्या शेखर फिर से अपने टूटते सपनों पर चुप रह पाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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