ये देश का हीरो नहीं, चोर है चोर! चोर बाप की चोर औलाद...
"मारो… साले को पत्थर मारों,” "इसने हमारे देश का नाम बदनाम कर दिया… इसने तिरंगे पर दाग लगा दिया…" मारो।
वक्त... और किस्मत… ये अगर साथ हो, तो गधे के तारे गर्दिश में भी बुलंद होते है। लेकिन अगर ये ही खराब हो तो अच्छे खासे ऊंट पर बैठे इंसान को भी कुत्ता काट लेता है। कुछ ऐसा ही हुआ देश के तिंरगे को अपने बदन पर लपेटे स्टेज पर गोल्ड मैडल उठाकर खड़े भारत के घुड़सवार गजेन्द्र के साथ। जिसने चंद मिनट पहले देश में आयोजित सबसे बड़े घुडसवार कॉप्टिशन में देश ही नहीं, बल्कि विदेश से आये बड़े-बड़े महारथी को हरा कर ये गोल्ड मैंडल जीता था, और तब जयपुर के इस शाह कोटला स्टेडियम का नजारा ही बिल्कुल अलग था। अभी जो लोग घुड़सवार गजेन्द्र को पत्थर से मार रहे हैं, वहीं लोग चीख-चीख कर गजेन्द्र की जीत को लेकर चिल्ला रहे थे।
"गजेन्द्र… गजेन्द्र… गजेन्द्र...।"
स्टेडियम में भीड़ गूंज रही थी, घोड़े हवा से बात करते हुए दौड़ रहे थे…और कुर्सियों पर बैठे भारतीयों की जुबान पर एक ही नाम था, गजेन्द्र का। जहां एक तरफ लोगों की चीख कान फाड़ रही थी, तो वहीं दूसरी ओर जीत का फाइनल मोड़ भी आ गया था। तभी अनाउंसर स्टेज से चिल्लाया...
"सबसे आगे है घोड़ा नंबर 7 – गजेन्द्र सिंह!" भारत की आन-बान-शान गजेन्द्र सिंह ने एक बार फिर सबित कर दिया, कि उनसे बड़ा घुड़सवार इस पूरी दुनिया में कोई नहीं है।"
अनाउंसर के इतना कहते ही मीडिया के सारे कैमरे गजेन्द्र की तरफ घूम गए। कोई उसकी हंसी कैप्चर कर रहा था, तो कोई उसके जीत के जश्न को…कोई उसकी बॉडी पर फोकस कर रहा था, तो कोई उसके घोड़े पर...। गजेन्द्र का चेहरा– फोकस में, होंठों पर हल्की मुस्कान, लेकिन आँखों में कुछ अनकहा और चारों तरफ मानों… जैसे किसी को तलाश रही हो। कि तभी किसी की चिल्लाने की आवाज आई।
"गजेन्द्र सर, गजेन्द्र सर… बहुत-बहुत बधाईयां...। जीत की खुशी में क्या कहेंगे?"
रिपोर्टर का ये सवाल सुनते ही गजेन्द्र का सीना जो कि 46 इंच का था फूल कर 56 का हो गया, और वो चेहरे पर 32 इंच की स्माइल करते हुए बोला, "ये दौड़ मैंने अपने पिता के नाम की है। वो पक्का पूणे में टीवी के आगे बैठे मेरी जीत का जश्न मना रहे होंगे… और मुहल्ले के लोगों को ये सब दिखा रहे होंगें। और ये ट्रॉफी मेरे पापा के लिए है। उन्होंने हमेशा मुझे सिखाया है – मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं होता… आज उन्हीं की सीख काम आई।"
गजेन्द अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही वहां एक लड़की की आवाज आई, और उसने कुछ ऐसा कहा- जिसे सुन एक सैंकेड में वहां का नजारा सर से पैर तक बदल गया।
“जिस जीत का ढोंग रच रहे हो… वो जीत नहीं, एक खरीद है। गजेन्द्र सिंह – तुम रेस के चैंपियन नहीं, फिक्सिंग के आरोपी हो।”
माइक लिये खड़ी ये लड़की कोई आम लड़की नहीं, बल्कि देश की सबसे फेमस रिपोर्टर रिया शर्मा है। उसकी इस आवाज और सवालों के साथ… एक सैंकेड में वहां का नजारा और माहौल दोनों ही बदल जाता है। इतना ही नहीं असली हंगामा तो तब होता है, जब जर्नलिस्ट रिया शर्मा स्टेज पर चढ़ते हुए गजेन्द्र के आरोपी होने के सबूत तक बड़े पर्दे पर पूरे स्टेडियम को लोगों को लाइव टेलिकास्ट पर दिखाती है। और अपनी तीखी आवाज में फिर गजेन्द्र से पूछती है- "तो क्या कहेंगे आप, मिस्टर मैच फिक्सर गजेन्द्र सिंह… "ये रहा आपके गोल्ड मैडलिस्ट होने का असली सबूत – कैश ट्रांज़ैक्शन, कॉल रिकॉर्डिंग… और वो समझौता, जिसके लालच में आपने खेल और तिरंगे दोनों को कंलकित कर दिया।"
रिया शर्मा के हाथ में पेपर्स, रिकॉर्डिंग डिवाइस, बैंक ट्रांज़ैक्शन के सारे सबूत देखते ही स्टेडियम में मौजूद भीड़ अपना आपा खो बैठती है और आस-पास पड़े पत्थर से लेकर कचरे तक, जिसके हाथ में जो आया… वो उसे उठाकर सीधे स्टेज पर गोल्ड मैंडल लिये खड़े गजेन्द्र सिंह के उपर फेंकने लगा। हद तो तब हो जाती है, जब उस भीड़ को चीरता हुआ एक आदमी हाथ में सफेद रंग के डब्बे में काली स्याही भर कर लाया और उसे सीधे गजेन्द्र के मुंह पर फेंकतें हुए चिल्लाया-
“चोर की औलाद, चोर ही निकलेगी ना… बाप भी मैच फिक्सर था और बेटा भी मैच फिक्सर निकला… देश का नाम बदनाम कर दिया। मारों”
इतना कहते-कहते वो आदमी गजेन्द्र के बेहद नजदीक आ गया और अपने दोनों हाथ गजेन्द्र की गर्दन की तरफ बढ़ाते हुए उसके गले में पड़े गोल्ड मैंडल को झटके से खींच लिया और स्टेज से धक्का देकर उसे स्टेज से नीचे फेंक दिया। वहीं दूसरी ओर गजेंन्द्र के घर का नजारा तो और भी भयानक था।
पूणे के एक छोटे से घर के बड़े से टीवी पर अपने बेटे गजेन्द्र के साथ स्टेज पर हो रही मार-पीट की खबर देख रहे 45 साल के मुक्तेश्वर सिंह की सांसे फूलने लगी, मानों जैसे बीपी बढ़ रहा हो। वो अपने मुहल्ले में रहने वाले लोगों से मदद की गुहार लगाने के लिये चिल्ला भी रहे थे, लेकिन लोगों के अंदर टीवी पर गजेन्द्र की खबर देखने के बाद इंसानियत मानो जैसे मर सी गई थी। मुहल्ले का एक भी आदमी मुक्तेश्वर की मदद के लिये आगे नहीं आया, बल्कि दो-चार लड़के, कुछ औरतें आई और मुक्तेश्वर के मुंह पर कालिख पोत, उसके घर के दरवाजे की सफेद दीवारों पर बड़े-बड़े काले अक्षरों में कुछ लिखने लगे।
ये क्या कर रहे हो तुम लोग… ऐसा मत करों… वो तुम लोगों का हीरों है, वो कुछ गलत नहीं कर सकता...।
हीरों नहीं जीरो है… वो जीरो...। सुन रोहन, जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगा और बड़े-बड़े अक्षरों में लिख दिया - सटेबाज बाप की सटेबाज औलाद…चोरों का घर।
उस लड़के के ये शब्द सुनते ही मुक्तेश्वर सिंह बेहोश हो जाता है, लेकिन कोई मदद के लिये आगे नहीं आता। दूसरी ओर अपने पिता से 1,183 किमी. दूर गजेन्द्र सिंह को स्टेज से गिरने और लोगों के पत्थरों की मार खाने से कई चोटों आती है, लेकिन वो अपना दर्द भूल एक अलग ही सोच में डूबा हुआ नजर आ रहा था।
"ये लोग क्या कह रहे है… क्या सच में मेरे पापा मुक्तेश्वर सिंह कभी एक घुड़सवार हुआ करते थे? और अगर ऐसा था, तो उन्होंने घुड़सवारी छोड़ी क्यों? क्या ये ही वजह है कि पापा को घोड़ों से इतना प्यार है? आखिर पापा ने मुझसे ये सच क्यों छिपाया…?
ये ही सब सोचता हुआ गजेन्द्र अपने हाथ पर लगे खून को पोछ अपनी दाई जेब से फोन निकाला, तुरंत एक नंबर डायल करता है। फोन की घंटी लगातार बजती है, लेकिन दूसरी ओर से कोई फोन नहीं उठाता। गजेन्द्र लगातार तीन-चार से ज्यादा बार फोन ट्राई करता है… घबराहट के मारे अब उसके हाथ-पैर कांपने लगते है, कि तभी वो जर्नलिस्ट रिया, स्टेज से उतरकर फिर से उसकी नजरों के सामने आ जाती है और माइक उसके मुंह के आगे बढ़ाते हुए कैमरा पर्सन को आंखों से अजीब सा इशारा करती है।
"तुम जीत गए… पर तुम्हारा ज़मीर हार गया। मिस्टर स्कैमर गजेन्द्र सिंह"
रिया अपने तानों और जुबानी कड़वाहट में आगे कुछ कहती उससे पहले ही वहां एक पुलिस की पूरी टीम आ गई और गजेन्द्र के हाथों में हथकड़ी लगा उसे वहां से ले जाने लगी। तभी भीड़ के दाई और से एक पत्थर उड़ता हुआ आया और गजेन्द्र के सर पर लगा… उसके सर से खून की धार बहने लगी, लेकिन चेहरे पर डर और दर्द की एक लाइन भी नहीं थी। मानों उसकी घूरती आंखे चिल्ली-चिल्ला कर उस भीड़ से कहना चाहती हो, कि वो गुन्हेगार नहीं है, झूठा नहीं है, स्कैमर नहीं है। लेकिन जर्नलिस्ट रिया के पेश किये सबूत उसकी हर गवाही पर भारी थे।
"ले जाइये… देश की इज्जत और तिरंगे की शान को तार-तार करने वाले इस लालची स्कैमर गजेन्द्र सिंह को।"
"हां-हा ले जाओं...और देशद्रोह के जुर्म में फांसी पर लटका दो इसे…”
भीड़ के शोर, पुलिस की सायरन, और सर से बहते खून के बीच गजेन्द्र को पुलिस की जीप में बैठाकर ले जाया जा रहा था। इस दौरान चारों तरफ से कैमरों की फ्लैश लाइटें उसकी आंखों में चुभ रही थीं, लेकिन गजेन्द्र का ध्यान कहीं और था। उसका मन अब उस एक सवाल पर अटक गया था — "क्या मेरे पिता वाकई एक घुड़सवार थे और आखिर उन्होंने मुझसे ये सच क्यों छिपाया?"
जीप के भीतर गजेन्द्र की जेब में रखा फोन अचानक से वाइब्रेट हुआ। स्क्रीन पर वही नंबर फ्लैश हो रहा था, जिसे उसने बार-बार कॉल किया था — "पापा"। लेकिन कॉल फिर कट गया और वो दुबारा उस नंबर पर कॉल कर पाता, उससे पहले पुलिस ने गजेन्द से उसका फोन छीन लिया। दूसरी ओर-मुक्तेश्वर सिंह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा था। आंखें अधखुली थी, लेकिन होश ठिकाने पर नहीं थे, वो लगातार बड़बड़ा रहा था। तभी डॉक्टर ने मुक्तेश्वर को समझाते हुए कहा- “आपका बीपी खतरे के स्तर पर पहुंच गया था, फिलहाल हम दवाइयों से कंट्रोल कर रहे है, लेकिन आपकों आराम की सख्त जरूरत है।”
तभी मुहल्ले का एक पुराना दोस्त, किशोर, जो आज तक गजेन्द्र की हर रेस मुक्तेश्वर के साथ बैठ कर उसके घर में देखता था, धीरे से मुक्तेश्वर के पास बैठता और उसके कान में बोला- “अब तो बता दे भाई… इतने साल चुप रहा… लेकिन अब तो गजेन्द्र को सब बताने का वक्त आ गया है।”
मुक्तेश्वर की आंख से एक आंसू बह निकलता है और एकाएक उसकी नजरों के साथ एक अजीब सा नजारा घूमने लगता है, वहीं दूसरी ओर जर्नलिस्ट रिया शर्मा गजेन्द्र के पीछे-पीछे अपना माइक उठाये पुलिस स्टेशन तक पहुंच जाती है।
“मिस्टर गजेन्द्र सिंह, सबूत खुद बोलते हैं। रिकॉर्डिंग, ट्रांजैक्शन – ये सब हवा में नहीं बना।”
जवाब में गजेन्द्र भी इस बार अपना मुंह खोलता है और कुछ ऐसा बोलता है जिसे सुन रिया चौक जाती है- "अगर तुमने सिर्फ एक बार मुझसे पहले बात की होती, तो मैं तुम्हें वो रिकॉर्डिंग देता… जो इन सब रिकॉर्डिंग्स से कहीं ज्यादा सच है।"
"कौन सी रिकॉर्डिंग?"
गजेन्द्र जेब से एक पुरानी पेन-ड्राइव निकालता है और उसे रिया की तरफ बढ़ाते हुए कहता है- "इसमें वो बातचीत है जो मेरी और उस आदमी के बीच हुई थी जिसने मुझसे रेस फिक्स करने को कहा… तुमने जो लाइव टेलिकास्ट किया, वो सब आधा-अधुरा है… पूरा सच तो मेरे पास है।"
रिया वो पेन ड्राइव लेकर चुप-चाप वहां से निकल जाती है। रिया को अपने लाये सबूतों पर यकीन तो होता है, लेकिन ना जाने क्यों उसे गजेन्द्र की आंखों में एक अजीब सी कशिश और सच्चाई नजर आती है, जिसके बाद वो इस पूरे मुद्दें की छानबीन करनें का फैसला करती है।
दूसरी ओर अस्पताल के बैड पर अपने ही ख्यालों में गुम मुक्तेश्वर-
फ्लैशबैक - 25 साल पहले
घुड़सवारी का एक और मुकाबला। भीड़ में एक यंग मुक्तेश्वर सिंह जीत के आखिरी मोड़ पर होता है, लेकिन तभी... स्टेडियम के मालिक का पर्सनल असिसटेंट आता है और मुक्तेश्वर से कहता है — "रेस हार जा, वरना तेरा करियर खत्म कर देंगे। और तेरे बाप को अपनी जूती की नोक चाटने पर मजबूर कर देंगे… तो सोच-समझ कर"
उस शख्स की धमकी के बाद भी मुक्तेश्वर दौड़ हारने के इरादे से नहीं खेलता… लेकिन जीत के आखरी छोर पर पहुंचने से कुछ सैंकड पहले स्टेडियम की भरी भीड़ में उसकी नजर एक ऐसे नजारे पर पड़ती है, जिसे देख वो अपने घोड़े की रस्सी तेजी से खींच देता है और घोड़ा जीत के रिबन से चार कदम पहले ही डगमगा कर गिर जाता है और मुक्तेश्वर हार जाता है। उसके बाद खेल से बैन, बदनामी और गरीबी मानों जैसे मुक्तेश्वर के नसीब का हिस्सा बन जाती है।
वहीं आज का दिन, जयपुर पुलिस स्टेशन में कॉन्सटेबल से लेकर एसपी, डीएसपी तक गजेन्द के साथ बुरा बर्ताव करते हैं। लेकिन वो किसी की बात का कोई जवाब नहीं देता और अपने ही ख्यालों में गुम अपने पापा के झूठ के बारे में सोचता रहता है।
दरअसल गजेन्द्र के पिता मुक्तेश्वर सिंह ने उसे अकेले ही पाल-पोस कर बड़ा किया था। उसे अपने परिवार और पापा के कारोंबार को लेकर सिर्फ इतना ही पता था, कि उसके जन्म के तुरंत बाद उसकी मां जानकी सिंह की मौत हो गई थी और उसके पापा को घोड़ों की देखभाल करना और अस्तबल में काम करना बेहद पसंद हैं। इस समय गजेन्द्र की जिंदगी चौतरफा उलझ जाती है, और उसे कुछ समझ नहीं आता क्या करें।
दूसरी ओर पुलिस स्टेशन के बाहर रिया रिकॉर्डिंग सुनकर दंग रह जाती है। उसमें गजेन्द्र और उस शख्स से बात-चीत का जो सच सामने आता है, उसे सुनने के बाद रिया, जो अब तक गजेन्द्र को “देशद्रोही” समझती थी, अब खुद शर्मिंदा थी। वो धीरे से कहती है — "गजेन्द्र… तुम्हारा ज़मीर नहीं हारा था। हम सब हार गए थे… तुम्हें बिना सुने।"
वो उस रिकॉर्डिंग को सुनने के बाद वापस पुलिस स्टेशन के अंदर जाने के लिये बढ़ती है, कि तभी वहां चमचमाती लाल रंग की मर्सिडिंज बैंज कार और उसके पीछे-पीछे काली 20 से भी ज्यादा कारे आती है। सभी एक साथ एक के पीछे एक रुक जाती है और उनमें से काले-काले कपड़े पहने मोटे-मोटे सांड जैसे बॉडीगार्ड बाहर निकलते हैं। जिनमें से एक गार्ड सबसे आगे खड़ी लाल रंग की मर्सिडिज का दरवाजा खोलता है, और उस कार से सूट-बूट पहने जो शख्स बाहर आता है उसे देख रिया शर्मा सर से पैर तक कांप जाती है।
अगले एपीसोड में इस शख्स की पहचान से लेकर इसके गजेन्द्र के साथ संबध तक खुलेंगे वो राज, जो उड़ा देंगे आपके और जर्नलिस्ट रिया शर्मा दोनों के होश… तो कहीं मत जाइये और पढ़ते रहिये राजघराना की ये दिलचस्प कहानी…
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