जर्नलिस्ट रिया शर्मा जैसे ही उस लाल मर्सिडीज से उतरते शख्स को देखती है, उसके चेहरे का रंग उड़ जाता है। और धीमे स्वर में उसके होंठों से निकलता है— “य...ये..ये तो देश के सबसे बड़े राजघराने के हॉर्स रेसिंग प्रमोटर और राजस्थान के पावरफूल पॉलिटिशियन ‘गजराज सिंह’ हैं।" ये यहां इस पुलिस स्टेशन में उस मैच फिक्सर से मिलने क्यों आये है? खैर वो सब छोड़ रिया… अच्छी और बड़ी स्टोरी है, कवर करना तो बनता है।"

इतना कहने के साथ रिया एक बार फिर अपने असली अवतार में आ जाती है और अपना काले-सफेद रंग का माइक उठा गजेन्द्र के मुद्दे को भूल राजस्थान के किंग कहे जाने वाले गजराज सिंह के पीछे-पीछे चलने लगती है।
 
गजराज की एंट्री किसी फिल्मी विलेन जैसी थी। हालांकि वो इस कहानी में विलयन है या नहीं, ये तो आगे ही पता चलेगा।
 
रिया शर्मा के दिमाग में अपनी खबर को लाइव दिखाने के लिये कुछ ऐसी ही पावरफूल ब्रेकिंग न्यूज की लाइनें चल रही थी। दूसरी ओर राजघराने के किंग गजराज सिंह के आने की खबर मिलते ही थाने के बड़े-बड़े आलाअधिकारी तक उन्हें सलाम ठोकनें भागे-दौड़े आ रहे थे। इन सब के बीच अपने लंबे मोटे सांड जैसे बॉडीगार्ड्स के घेरे में खड़ा गजराज सिंह पुलिस स्टेशन के अंदर दाखिल होता है, और अपनी एक ही लाइन से सबके होश उड़ा देता है — “डीएसपी साहब, ये केस अब हमारा है… इस लड़के को छोड़ दीजिए।”
 
देश के सबसे मशहूर हस्ती गजराज सिंह को पुणे के एक मामूली से लड़के गजेन्द्र के लिये बोलता देख वहां मौजूद सभी लोग दंग रह जाते है। जहां एक तरफ ये बात सुनते ही डीएसपी भौच्चका हो इधर-उधर देखने लगा, तो वहीं दाई तरफ खड़ी रिया शर्मा ने अपना माइक गजराज की तरफ बढ़ा दिया और सवाल दागते हुए बोलीं - आखिर क्या रिश्ता है आपका हॉर्स जॉकी गजेन्द्र से…? एक मामूली से खिलाड़ी के लिये राजस्थान के राजघराने का किंग खुद चलकर क्यों आये है...? और जब पुलिस स्टेशन आये ही है, तो ये भी जानते होंगे कि गजेन्द्र पर रेस फिक्सिंग का आरोप लगा है, ऐसे दागदार खिलाड़ी से आपका क्या रिश्ता है…?”

एक के बाद एक रिया के सवाल सुन गजराज सिंह भड़क जाता है और अपने गार्डस को उसे वहां से बाहर निकाल फेंकने का ऑर्डर दे देता है। वहीं रिया शर्मा को पुलिस स्टेशन से निकाल देने के बाद जब गजराज सिंह अपनी बात वापस दोहराता है, तो जवाब में डीएसपी राणविजय कुछ ऐसा कहता है, जिसे सुन गजराज का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच जाता है।

“प..प...पर... सर, ये रेस फिक्सिंग का केस है। मीडिया ने लाइव दिखाया है…गजेन्द्र को इसी हफ्ते कोर्ट में भी पेश करना होगा”
 
जवाब में गजराज सिंह गुस्से भरे अंदाज में कहता है - “ये केस राजघराने के खून से जुड़ा है, और अब ये सिर्फ केस नहीं, उसकी सुरक्षा का मामला बन चुका है, समझे। बहुत कुछ है जो तुम नहीं जानते, तो जितना कहा है उतना करो… भूलों मत राजस्थान की जमींन पर खड़े हो और राजघराना किंग अभी भी हम ही है, तो यहां कचहरी भी हमारी और फैसला भी हम ही सुनाते है।”

गजराज सिंह के इस फरमान के साथ ही पुलिस स्टेशन का नजारा सर से पैर तक बदल गया। डीएसपी रणविजय खुद गजराज के लिये चाय-बिस्कुट सर्व कर रहा था, कि तभी एसआई मनोज तिवारी गजेन्द्र को लॉकअप से बाहर ले आया। हालांकि जैसे ही गजेन्द्र कुर्सी पर बैठे 70 साल के गजराज को देखता है, वो कुछ ऐसा पूछता है, जिसे सुन डीएसपी के भी कान खड़े हो जाते है।
 
“नमस्कार सर, मैं हूं गजेन्द्र सिंह... लेकिन मैंने आपकों पहचाना नहीं…? क्या आप बता सकते है, कि आप मुझे कैसे जानते है और आपने मेरी जमानत क्यों कराई है?”

गजेन्द्र ने जैसे ही ये सवाल किया, सामने बैठा 70 साल का गजराज झटके से खड़ा हो गया और एक टक बिना कुछ बोले बस गजेन्द्र को निहारने लगा। 

ये सब देख जहां डीएसपी रणविजय से लेकर पूरे पुलिस स्टेशन के कर्मचारी हैरान-परेशान थे, तो वहीं गजेन्द्र को ये तक नहीं आ रहा था कि वो जिससे ये सवाल कर रहा है, वो राजस्थान के सबसे रईस राजघराने का मालिक गजराज सिंह है। गजराज ने गजेन्द्र के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया और गजेन्द्र को गाड़ी में बैठ सीधे अपने घर ले जाने की रिकवेस्ट करते हुए कहा - "तुम्हारे और मेरे सारे सवालों के जवाब तुम्हारे पिता मुक्तेश्वर सिंह के पास है। मुझे उसके पास ले चलों"

“यानि आप मेरे पापा को भी जानते है, पर कैसे…? मेरे पापा तो कभी राजस्थान आये ही नहीं। मैं पुणे से हूं और मेरे पापा बताते है कि उनका जन्म भी वहीं हुआ था”
 
गजेन्द्र की बातें गजराज के दिल पर किसी तीर की तरह लग रही थी। उसका बूढ़ा शरीर और बूढ़ी आंखे उन तीरों के दर्द को संभाल नहीं पाई और आंखों से आंसू छल्क पड़े। ये देख गजेन्द्र आगे बढ़ा और बोला - अरे-अरे दादा जी, रोते क्यों है… चलिये मैं आपकों अपने घर ले चलता हूं।

गजेन्द्र ने गजराज को अपने घर ले चलने की बात तो कह दी, लेकिन इसके साथ ही हजार सवाल उसके दिमाग में घूमने लगे। वहीं जब पुलिस स्टेशन से बाहर आकर गजेन्द्र ने गजराज की कारों के काफिले को देखा, तो उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। इतना ही नहीं वो गजराज की लाल रंग की मर्सडिज बैंज को देखते ही तपाक से बोल पड़ा-

“सर, य...य...ये तो मर्सडिज बैंज का लेटेस्ट मॉडल है ना, जिसकी कीमत 211 करोड़ रूपये है।”
 
“हां ये वहीं है। क्या ये तुम्हें पसंद है?”

“अरे सर, ये कार किसे पसंद नहीं होगी… अफ्कोर्स, मुझे पसंद है।”

जैसे ही गजेन्द्र ने एक्साइटमेंट भरे शब्दों में ये कहा, वैसे ही गजराज ने अपने ड्राइवर से कार की चाभी मांगी और उसे गजेन्द्र की तरफ बढ़ाते हुए कहा - "ये चाभी तुम्हारी हो सकती है, अगर तुम मेरी एक शर्त मान लो तो… सोच-समझ कर जवाब देना।"

गजेन्द्र ने आव-देखा, ना ताव… लाल रंग की नई चमचमाती मर्सडिज बैंज कार देख, वो सब कुछ भूल बैठा और बिना शर्त सुने हां कर दी, लेकिन उसे क्या पता था कि उसकी ये हां कुछ घंटे बाद उसे खून के आंसू रूलाने वाली थी। गजेन्द्र की हां सुनते ही गजराज ने अपनी कार की चाभी गजेन्द्र के हाथों में थमा दी और कार ड्राइव करने को कहा - "चलों, हमें अपनी कार से ही अपने घर ले चलों। हमें आज ही तुम्हारे पापा मुक्तेश्वर से मिलना है।"

गजेन्द्र ने चाभी ली और कार को हवा से बात कराते हुए अपने घर की तरफ सड़क पर दौड़ा दिया। इतनी मंहगी कार को चलाते हुए गजेन्द्र को एक्साइटमेंट तो हो रही थी, लेकिन साथ ही उसके दिमाग में अपने पिता के हॉर्स रेसर होने से लेकर उनके फिक्सिंग केस में फंसने और साथ ही कार में साथ बैठे उस रईस आदमी के साथ संबंध तक के सैकड़ों सवाल घूम रहे थे। ये ही वजह थी कि वो चाहकर भी गजराज से कोई सवाल नहीं कर पाया। 

दूसरी ओर बूढ़े राजघराना किंग गजराज के होठों पर भी कार में बैठे हुए पूरे रास्ते एक अजीब सी चुप्पी थी। मानों जैसे वो मन ही मन सवालों का कोई अंबार खड़ा कर रहा हो। 13 घंटे 45 मिनट के सफर में ना एक बार भी गजेन्द्र ने कार रोकी और ना ही गजराज ने कार रोकने को कहा, लेकिन जैसे ही कार गजेन्द्र के घर के आगे रुकी और गजेन्द्र ने कहा - "चलिये सर, मेरा घर आ गया।"

ये सुनते ही गजराज सैकेंड भर में झटके से कार से बाहर निकला और घर का दरवाजा खटखटाने के लिये आगे बढ़ा, लेकिन तभी उसकी नजर घर के दरवाजे की सफेद दीवारों पर गई। जिनपर काली स्याही से कुछ ऐसा लिखा था, जिसे पढ़ने के साथ ही वो 20 साल पुरानी यादों में खो गया। 

20 साल पहले-

उस दिन डीएसपी रणविजय एक क्लब में बैठा था, और उसके सामने बैठा था एक नौजवान – मुक्तेश्वर सिंह। रणविजय वाइन का एक ग्लास हाथ में लिये उसे उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहता है - "घुड़सवारी में जीत कर क्या करेगा, जब दुनिया हारने वालों को ही याद रखती है... हार जा और हम तुझे हॉर्स रेसिंग की दुनिया का किंग बना देंगे।"

मुक्तेश्वर उसकी बात नहीं मानता, और उसे बदले में जिंदगी भर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। दरअसल डीएसपी रणविजय उन दिनों राजस्थान के सबसे बड़े हॉर्स रेसिंग माफिया गिरोह के लिये काम करता था। ऐसे में अगले दिन जब हॉर्स रेसिंग माफिया वाले खुद मीडिया के सामने मुक्तेश्वर का नाम लेते हुए उसे अपनी टीम का मेंबर कहकर बदनाम कर देते है, तो रेसिंग की दुनिया के सीनियर तो छोड़ों… खुद उसके परिवार के लोग भी उसकी बात तक सुनने से इंकार कर देते है। 

"मेरे नाम को इस तरह मिट्टी में मिलाने से अच्छा तो तू जन्म लेते ही मर गया होता… या फिर तेरी मां बांज होती। मेरी नजरों से दूर हो जा मुक्तेश्वर, कहीं मैं कोई अर्नथ ना कर बैठूं।"

“प..प...पर पिता जी मैंने सच में कुछ नहीं किया, वो तो हॉर्स माफिया के लोगों ने…”
 
“बंद कर अपना मुंह और निकल जा मेरे महल की चौखट से बाहर…”
 
"ऐसा मत कहिये पिताजी… मैं कहां जाउंगा।"

जैसे ही 20 साल के मुक्तेश्वर के पिता ने ये बात सुनी, उन्होंने मुक्तेश्वर के सामने महल में रहने की एक ऐसी शर्त रख दी, जिसे सुनते ही उसके पैरों तले की जमींन मानों एक झटके में छीन गई।
 
“तूझे आज और अभी जैसलमेर के रघुंवशी खानदान की बेटी मोहिनी से शादी करनी होगी। अब उसके नाम का तेरे नाम के साथ जुड़ना ही तुझे इस बदनामी के दाग से बचा सकता है।”
 
"प...प...पर पापा मैं जानकी से प्यार करता हूं, वो मेरे बच्चे की मां बनने वाली है, शादी की है हमने मंदिर में...। फिर किसी दूसरी लड़की से शादी तो धोखा होगा।"

“बीस लाख की नोटों की गड्डियां उसके मुंह पर मार, फिर देख वो जानकी कैसे तुझे और खुद को अपनी उस पाप की कोख से मुक्त करती है।”
 
अपनी अजन्मी औलाद के लिये पाप जैसे शब्द सुन मुक्तेश्वर का खून खौल जाता है। इसके बाद वो बिना कुछ कहे अपने पिता के महल से बाहर निकल जाता है और उस दिन के बाद से आज तक वो कभी उस महल की चौखट पर कदम नहीं रखता। 

वही आज का दिन-

"क्या हुआ दादा जी आप यहां रुक क्यों गए, अंदर चलिये और दरवाजे पर लिखी इन बातों पर ज्यादा गौर मत करिये। खिलाड़ियों की जिंदगी में ऐसे दिन आते-जाते रहते है। हमारे फैंस जब गुस्सा होते है, तो हमें इसी तरह हमारे दरवाजे पर आकर कोसते और गालियां देते है। आप अंदर चलिये।"

20 साल के गजेन्द्र के मुंह से इतनी समझदारी वाली बाते सुन गजराज को काफी गर्व महसूस होता है और एक बार फिर उसकी आंखों से आंसू छल्क जाते हैं। जिन्हें देखते ही गजेन्द्र कहता है - "ये आप बार-बार अपनी आंखों की टोटी क्यों चालू कर देते है, आखिर क्या कनेक्शन है आपका मेरे और मेरे पापा से..?”

इतना कह गजेन्द्र अंदर चला जाता है, तो वहीं उसके पीछे-पीछे गजराज भी घर के अंदर कदम रखता है, लेकिन जैसे ही वो घर के हॉल में पड़े एक छोटे से सोफे पर लेटे मुक्तेश्वर को देखता है। उसकी हालत देख उसकी आंखे फटी की फटी रह जाती है। वो किसी बेजान मूर्ती की तरह बस एक टक मुक्तेश्वर को देखता है। दूसरी ओर मुक्तेश्वर की नजर जैसे ही गजराज पर पड़ती है, उसकी आखों के सामने 20 साल पुरानी वो रात घूम जाती है, जब-

हवा में हल्की सी सर्दी थी। गांव के मंदिर की घंटी की आवाज़ उसके कानों में गूंज रही थी। 20 साल का मुक्तेश्वर, जो उस दौर में एक नौजवान घुड़सवार था, वो मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा था और उसके बगल में उसका हाथ पकड़े बैठी थी उसकी पत्नी जानकी, बेहद खूबसूरत और मासूम, जिसके चेहरे पर हल्की चिंता की परछाई है।
 
“क्या हम सही कर रहे हैं, मुक्ति?”
 
“प्यार अगर छुपाना पड़े तो गलत लगता है… और जो सही लगे, उसे छीनना भी पड़े तो मंजूर है मुझे।”

“तुम्हारे पापा हमें कभी माफ नहीं करेंगे… तुम्हारे खानदान में भी कोई हमें अपनाएगा नहीं।”
 
“अगर उन्होंने हमें ठुकराया, तो मैं अपनी दुनिया खुद बनाऊंगा… अपना घर, अपना राजघराना। बस तुम साथ देना जानकी…हम हमारे बच्चे के साथ एक नए शहर में एक नई दुनिया बसायेंगे”

वहीं आज का दिन - पापा… पापा किन ख्यालों में खोये है, ये मैं ही हूं आपका गजेन्द्र। 
 
गजेन्द्र की आवाज कानों में पड़ते ही मुक्तेश्वर अपने बीस साल पुराने अतीत से एक झटके में बाहर आ जाता है, और चिल्लाते हुए दरवाजे पर खड़े गजराज सिंह से सवाल करने ही वाला होता है कि तभी उसके दाई तरफ रखे सोफे पर बैठे उसके दोस्त किशोर की आवाज धीमें से उसके कानों में पड़ती है।

“तेरे बीते कल की आग लौट आई है, कहीं इस आग में तेरा और तेरे बेटे गजेन्द्र का रिश्ता जल ना जाये… शांति और दिमाग से काम लेना, हंगामा मत करना मुक्तेश्वर।”
 
अपने दोस्त कमल की बात सुनते ही मुक्तेश्वर धीरे से पलट कर जवाब देता है और कांपती हुई आवाज में कहता है, “गजेन्द्र को सब बताना होगा… अब और चुप नहीं रहा जाएगा…”

जहां एक तरफ गजेन्द्र के घर में ये सारा तमाशा चल रहा होता है, तो वहीं दूसरी ओर रिया शर्मा एक बार फिर से, पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी पेनड्राइव में रिकॉर्डिंग सुन रही है।

रिकॉर्डिंग की आवाज़ आती है….

गुमनाम शख्स (रिकॉर्डिंग में) - “अगर तू जीत गया, तो हमारे करोड़ों डूब जाएंगे… पाँच करोड़ ले ले और हार जा। वरना तेरे बाप की तरह तुझे भी घोड़ों की साफ-सफाई में लगवा देंगे… और इस बार बचाने कोई नहीं आएगा।”
 
गजेन्द्र (रिकॉर्डिंग में) - "मेरे पापा ने सिखाया है…जीत अगर ईमानदार न हो, तो वो हार से भी ज्यादा शर्मनाक होती है। फोन रख, वर्ना अगली रेस तेरे और पुलिस वालों के बीच होगी।"

रिया की आंखों में आंसू आ जाते हैं, उसका हाथ कांपता है, और वो धीरे से बुदबुदाती हुए कहती है - "ओह गॉड… ये तो पूरी कहानी ही उलट गई…" मुझे जल्द से जल्द ये सच दुनिया के सामने लाना होगा, लेकिन इसके लिये मुझे सबसे पहले गजेन्द्र से मिलना होगा।"
 
इतना कह रिया शर्मा फटाफट अपनी स्कूटी स्टार्ट करती है और एयरपोर्ट की तरफ जाने लगती है, लेकिन तभी उसकी स्कूटी का पीछा करती हुई दो कारे आती है और उसे पीछे से टक्कर मारकर वहां से फरार हो जाती है। टक्कर इतनी जोरदार होती है, कि रिया की स्कूटी आधा किलोमीटर तक सड़क पर रगड़ खाती है।

सड़क पर चल रहे लोग दौड़ कर रिया की मदद के लिये आगे आते है और खून से बूरी तरह लथपथ उसे तुरंत अस्पताल में एडमिट कराते है, जहां डॉक्टर उसकी हालत बेहद गंभीर बताते हुए पुलिस को कॉल कर उसके परिवार वालों को बुलाने की रिक्वेस्ट करते है।
 
वहीं दूसरी ओर गजेन्द्र के घर का नजारा काफी गंभीर हो जाता है। गजराज और मुक्तेश्वर सिंह बिना कुछ कहे बस एक टक एक दूसरे को घूरते रहते है। और ये सब देख गजेन्द्र अपनी आवाज से उस कमरे में फैलें सन्नाटे को दूर करते हुए कहता है - कोई कुछ बोलेगा, या बस एक-दूसरे को घूरते ही रहेंगे आप दोनों…? क्या कोई मुझे बतायेगा कि यहां चल क्या रहा है? आप दोनों एक-दूसरे को कैसे जानते है?

गजेन्द्र के सवालों की बौछार सुन जहां मुक्तेश्वर, जिसे कुछ दिन पहले ही पहला हार्ट अटैक का झटका लगा था, वो एक बार फिर अपना सीना पकड़ लेता है। तो वहीं गजराज खुद को सही साबित करने की दौड़ में गजेन्द्र के पास जाता है और उसे सीने से लगाते हुए कहता है - "सुनो, गजेन्द्र… मैं तुम्हारा दादा साहेब हूं और फिलहाल तुम्हारे पिता से अकेले में बात करना चाहता हूं। तो क्या तुम हमें कुछ देर के लिये अकेला छोड़ दोगों…?”
 
"क्या, कहा… मेरे दादा साहेब…? प...प...पर कैसे...? और इसका मतलब मैं कोई गरीब लड़का नहीं, बल्कि राजस्थान के सबसे अमीर राजघराने का वारिस हूं...? यानि आपका पोता हूं...?

राजघराना के इस खेल में कौन राजा बनेगा और कौन गद्दार, ये जानने के लिए पढ़िये "राजघराना” का अगला एपीसोड।

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a
Anonymous

16 Jun 2025

Great
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