पुणे (महाराष्ट्र)
मिश्रा हाऊस सुबह सात बजे का वक्त हो रहा था। तकरीबन 19-20 साल की एक लड़की जिसने ब्लू जीन्स और येलो टॉप पहना था। रंग गोरा, कंधे तक आते भूरे कर्ली बाल और आखों पर गोल चश्मा जो उसकी छोटी छोटी सी आखों को और भी ज्यादा खूबसूरत बना रहा था।
वो बरामदे से होते हाथों में चाय का कप लिए बोली, “आयू दी…!” बोलते बरामदे से ही लगे एक कमरें में चली आई।
अंदर आते ही उसने चाय का कप टेबल पर रखा और रूम की खिड़की से पर्दे हटाने लगी-"हे भगवान! ये दी भी ना अभी तक सो रही है? जब तक मम्मी की डांट नहीं पड़ती है तब तक ना तो इनके दिन की शुरूआत होती है और ना ही इनका दिन बनता है। दी उठो"
"सोने दे ना पिहू" बेड पर चादर ओढ़े सो रही लड़की बोली….पिहू बेड के पास आई और चादर खींचने लगी।
"उठो ना, फिर मम्मी डांटेगें दी!" "तेरी मम्मी को इसके अलावा कोई काम आता भी है क्या?"
चादर में करवट बदलते वो लड़की फिर बोली, "हां नहीं आता है आपकी मामी जी यानि मेरी मम्मी की यही तो स्पेशलिटी है। सविता मिश्रा जी को डांटने के अलावा आता ही क्या है, वो आपके पीछे तो ऐसे पड़ी रहती है जैसे एक बिल्ली चूहे के और तो और सब राजश्री बुआ आपकी माता जी जैसे भी तो नहीं होते, जिनकी डांट भी प्यार से प्यारी और मिठ्ठी होती है।"
पिहू ने मुस्कुराते हुए कहा, "मेरी मां जैसा कोई नहीं… पिहू कोई भी नहीं!"
"आप हो ना, बिल्कुल बुआ की परछाई"
"नहीं यार ये तुझे लगता है, मैं कितनी भी कोशिश कर लूं पर मां जैसी नहीं बन सकती, मां तो मां है मेरे पढ़ाकू बच्चा!"
पिहू अपने आखों पर लगा चश्मा सही करते हुए बोली- "अब मुझे जो लगता है मैनैं कह दिया और मुझे तो सही लगता है आप बुआ की डिटो कॉपी हो चाहे आप मानों या फिर ना मानो,अब मेरे लिए ना सही बुआ के लिए तो उठ जाओ?"
पिहू का ये कहना हुआ कि चादर ओढ़ सो रही लड़की चादर फैंक उठ बैठी, बाईस -तेईस साल की खूबसूरती सी लड़की, दूध सा गोरा रंग, गोल गोल चहरा, पतली सी नाक, काली गहरी आखें, गुलाबी पतले होंठ, काले घने लंबे बाल।
"थैंक्स गॉड, अयाना जी उठ गयी" पिहू हाथ जोड़ ऊपर की ओर देखते बोली कि अयाना ने चेहरे से बाल हटाए और उसकी बाहं पर थप्पड़ दे मारा- "थैंक्स गॉड की बच्ची....मां के नाम से ट्रार्चर करना जरूरी है क्या?"
पिहू हंस दी- "यस, मेरी मां की डांट आपको ना पड़े इसलिऐ मुझे आपकी मां के नाम का सहारा लेना पड़ता है।"
"डांट मुझे पड़ती है तुझे क्यों इतना बुरा लगता हैं?"
अयाना उबासी लेते बोली, पिहू कमर से हाथ टिकाते - "क्यों ना लगे,आयू दी आप बहन हो मेरी, जब मैं कांड करती हूं तो मुझे डांट गालियां यहां तक की मार भी पड़ती है वो तो समझ आता है पर आप तो कुछ गलती भी नहीं करती हो फिर भी मम्मी आपकी कलास ले लेती है यार दी बुरा तो लगता है ना।"
अयाना हंस दी - "पागल वो डांट नहीं मामी का प्यार होता है और पिहू प्रसाद तो सबको मिलना चाहिए ना, उस पर सबका हक होता है।"
“आप तो महान हो, अब मम्मी की फटकार भी आपको प्यार लगती है, खैर छोड़ो दी आप तो अपनी चाय पियो…वो भी इलायची आयू दी स्पेशल गर्मागर्म चाय।” यह कहते पिहू ने चाय का कप अयाना के हाथ में थमा दिया।
अयाना ने कप की ओर देखा- "क्या बात है पिहू इलायची वाली चाय तैयार है वो भी मेरे उठने से पहले?"
पिहू अयाना के पास बेड पर बैठ गयी - "हां तो मुझे पता है आपको चाय कितनी पंसद है, सुबह उठते ही बेड पर आपको चाय मिल जाए तो आपका दिन बन जाता है और आपकी पिहू ये बात ध्यान में रखती है सो जल्दी पी लो, बाद में मम्मी का भाषण शुरू हो गया तो ये चाय भी नसीब न होगी।
"हे भगवान मम्मी एक्सेंज का कोई तो ऑफर होता तो कितना बढ़िया होता"
"पागल कहीं की" यह कहते अयाना ने पिहू के सिर पर चपत लगाई और दोनों फिर हंस पड़ी।
पिहू - "अच्छा दी जल्दी बताओ आज क्या सपना देखा आपने? कौन आया सपनें में?"
अयाना ने पिहू की ओर गौर से देखा और बोली- "ओह तो अब समझ आ रहा है माजरा क्या है? पिहू मैडम को मेरे सपनों के बारें में जानना है और इसलिए ये इलायची वाली चाय मुझे मिली है।"
पिहू ने बतीसी दिखाते हुए कहा - "अयू दी अब आपको जो समझना है आप समझ लो, लेकिन प्लीज बताओ ना दी!"
अयाना - "बिल्कुल भी नहीं और मैनैं आज कोई सपना नहीं देखा!"
पिहू - "ऐसा हो ही नहीं सकता, जो लड़की खुली आखों से उस शख्स के बारें में सोचती है जो उसकी लाइफ में आएगा, ख्वाब़ों में भी उस शख्स से जरूर मुलाकात होती होगी। बताओ ना दी अब तो देखो चाय भी दी है रिश्वत में....प्लीज!"
अयाना हंसने लगी - "सबसे पहले तो तुम अपनी ये नौटंकी बंद करो….ख्वाब मेरे होते है पर तुझे क्यों इतना इंटरेस्ट है बोल?"
पिहू मुस्कुराई फिर बोली - "इंटरेस्ट तो होगा ना, आपकी हर बात, हर ख्याल, हर सपना, कितना इंटरस्टिंग होता है अयू दी, ब्लॉक बस्टर मूवी के जैसे।
“किसी को मक्खन कैसे लगाना है वो तुझसे सीखे”
"अरे दीदी आप ब्रेड थोड़ी हो जो मक्खन लगाऊँगी….वो तो आप बड़ी हो और मैं छोटी तो सब आपको ही देख के सीखूँगी।"
"अच्छा पिहू की बच्ची यहाँ एग्जाम चल रहे है उन पर ध्यान दो तुम्हारे लिए वो ज्यादा जरूरी है” यह बोलते अयाना ने पिहू के गाल पर हल्का सा थप्पड़ लगा दिया।
"आह दी मार क्यों रही हो? एग्जाम की सारी तैयारी कर ली है और वैसे भी एग्जाम के दिन इतना भी नहीं पढ़ना चाहिए। दी…अब बताओ भी ना अपने प्रिंस चार्मिंग के बारे में प्लीज दी, मेरी प्यारी दी।"
यह सुनते अयाना कुछ सोचते गुनगुनाने लगी और उसके मुंह से एक गाना निकल पड़ा - "जाने दिल में कब से है तू जब से मैं हूं तब से है तू.…"
पिहू ने खुशी के मारे अयाना के गाल खींचते हुई बोला - "वाह क्या बात है अयू दी? हां तो आगे बताओ आपको कैसा लड़का चाहिए?"
अयाना चाय के कप की ओर इशारा करती हुई बोली, "आपकी इजाजत हो तो पहले चाय पी लूं, क्योंकि तेरी बकबक तो स्टॉप होनी नहीं पर चाय ठंडी जरूर हो जाएगी।"
"हां दी आपको रोकने की हिम्मत किसमें हैं?"
अयाना ने जैसे ही चाय का कप उठाया कि तभी सविता जी उसके कमरे में आ गई - "लो महारानी उठ गई और तो और हंसी ठिठोली कर चाय पी जा रही है, काम धाम तो कोई है नहीं। एक तो मां बीमार पड़ी है और ऊपर से बेटी भी बिस्तर तोड़ रही है।"
ये सुन पिहू बेड से उठी और सविता जी की ओर मुड़ते बोली - "मम्मी क्या बोल रहे हो आप? दी उठ तो गई है।"
सविता जी बोलीं - "तो क्या आरती उतारूं इसकी? उठो महारानी कोई काम धंधा कर लो मुफ्त में रोटियां नहीं मिलती यहाँ।"
"मम्मी.... अब बस भी करो आप?"
"सॉरी मामी मुझे ध्यान नहीं रहा, आप चिंता मत कीजिए मैं अभी सारे काम निपटा दूंगी!"
यह सुनते सविता जी ने अपनी नाक सिकोड़ते हुए कहा - “महारानी जी कहने से नहीं होगें सारे काम, उसके लिए करने भी पड़ते है। चलो जल्दी बाहर आओ….तुम्हारे मामा जी को दफ्तर भी जाना है।”
अयाना को डांट सविता जी वहां से चली गयी, उनके जाते ही पिहू बरस पड़ी - “दी क्या था ये? आपने कुछ बोला क्यों नहीं और मुझे भी रोक लिया?”
अयाना उसकी बात सुनने के बाद मंद मंद हंसते हुए बोली - "पिहू वो बड़ी हैं हमसे और हमारी भलाई के लिए ही उन्होंने ऐसा कहा।"
यह सुनते ही पिहू की भौहें तन गई और वो अयाना की ओर गुस्से से देखते हुए बोली - "समझ आ गया ना? तो जाओ लग जाओ गधा मजदूरी पर!"
अयाना - "क्या है पिहू? तुझे कितनी बार कहा है मामी से ऐसे मत बोला करो और जब तुम ऐसे बोलोगी तो मैं टोकूंगी ही ना तुझे…आखिर मम्मी है वो तेरी।"
पिहू - "लेकिन.…!"
अयाना - "लेकिन वेकीन कुछ नहीं, वो हमसे बडी हैं तो इस तरह बात नहीं की जाती और वैसे भी ठीक तो कहा है मामी ने, मैं देर तक सो रही थी डांट तो पड़ेगी ही ना?"
पिहू - "दी उन्हें भी उठे घंटो नहीं हुए है, अभी बिस्तर से उठीं और सीधे आपको ताने दे कर चली गईं।"
अयाना पिहू के पास बेड पर बैठी और उसके गाल पर हाथ रखते बोली - "शांत शांत बच्चा, इतना गुस्सा करना अच्छा नहीं होता। चिल मेरी पढ़ाकू क्यों अपना मूड ऑफ कर रही है और अब तो मामी की डांट की आदत हो गई है….मानो इसके बिना मेरी तो सुबह ही नहींं होती।"
पिहू - "हो गया आपका प्रवचन?"
"अच्छा सुन मेरी बात, जल्दी से अपना मूड ठीक करो मैं तुम्हारा फेवरेट नाश्ता बना के लाती हूं वो भी फटाफट। आज तुम्हारा एग्जाम है ना तो तुम उसकी तैयारी करो और हां रात को बताऊंगी तुझे मेरे सपनों के बारें में ओके।"
यह कहकर अयाना पिहू का माथा चूम कर उस कमरे से चली गयी। उसके जाते ही पिहू ने टेबल की ओर देखा और बुदबुदाई - “एक कप चाय भी मम्मी चैन से नहीं पीने देती अयू दी को। मैं जानती हूँ कि आपको भी बुरा लगता है दी….बस आप अपनी मुस्कुराहट के पीछे उसको छुपा लेती हो।”
पिहू मायूस हो कर स्टडी टेबल की तरफ बढ़ी और अपनी बुक समेटती हुई बुदबुदाई, “हे भगवान मेरी दी को ऐसा लाईफपार्टनर देना जो उन्हें बेड से तब तक उतरने ना दे जबतक मेरी दी के गले से सुबह की चाय न उतर जाए और वो खुद ही चाय भी बना के लाए।”
वहीं दूसरी तरफ गाड़ी के होर्न की आवाज सुन गार्ड्स ने फट से बड़ा सा गेट खोला और चमचमाती एक ब्लेक गाड़ी लॉन में आकर रूकी। गाड़ी से तकरीबन 30 साल का शख्स बाहर निकला। आकर्षक व्यक्तित्व जिसे देखते ही आंखे जम सी जाए, अचानक वो तेजी से चलता हुआ अंदर एक कमरे के दरवाजे तक जा पहुंचा और उसने पुकारा - "साक्षी!"
इतना सुनते ही एक दूसरी आवाज आई, “सार्थक तुम आ गये?” यह कहते एक प्यारी सी लड़की उसके सामने आ खड़ी हुई।
"हां साक्षी मैं आ गया।"
यह सुनते ही साक्षी उसके सीने से लग जाती है और सार्थक भी उसे कसकर अपनी बाहों में भर लेता है।
"लगता है बहुत मिस किया मेरी जान ने मुझे।"
"नहीं किया बिलकुल भी नहीं" यह कहते साक्षी उससे अलग हो गयी।
"अच्छा सच में?"
"हां सच में!" साक्षी ने सार्थक को घूरते हुऐ कहा कि तभी सार्थक उसे अपने करीब खींच लेता है और उसके होठों पर अपने होंठ रख देता है…. पर तभी किसी शख्स के चिल्लाने की आवाज आई और साक्षी सार्थक से दूर हुई।
"ओह ये माही" सार्थक दुखी मन से बोला, "सच कहता हूं साक्षी हमारे प्यार का दुश्मन है तुम्हारा भाई।"
"शटअप सार्थक! माही हमारे प्यार का दुश्मन होता ना तो तुम यहां नहीं होते" यह बोलते ही साक्षी बाहर की ओर चल दी।
सार्थक उसके पीछे जाते हुए - "साथ है क्योंकि हमारा प्यार सच्चा था, तुम्हारे भाई ने देखा मैं उसकी बहन से कितना प्यार करता हूं।"
"सार्थक पता है माही ने प्यार नहीं, बल्कि मेरी खुशी देखी। तुम अच्छे से जानते हो प्यार व्यार माही को समझ नहीं आता।"
“आएगा भी कैसे साले साहब को? प्यार दिल का काम है दिमाग का नहीं और तुम्हारा भाई तो सिर्फ दिमाग से ही काम लेता है क्योंकि दिल पर तो ताले लगे है। सच कहता हूं, जिस दिन माही को प्यार हुआ ना उस दिन समझ आएगा उसे प्यार से दूर रहना कैसा होता है, जब देखो मुझे तुमसे दूर भेज देता है।”
“अच्छा तो बहुत तड़पते हो मेरे लिए?”
तड़प... क्या ही कहूँ जब मैं वापस आता हूं और मैं प्यार के कुछ पल अपनी बीवी के साथ बिताना चाहता हूं तो फिर मेरे सेल साहब कबाब में हड्डी बन जाते हैं। सारे रोमांस का कचरा कर देता है!"
"ओह हों इतनी शिकायतें वो भी आते के साथ ही?"
"मैडम जिस पर बीते उसी को पता होता है!"
"मैडम को कहने की जगह माही को बोला करो ना?"
"कौन दीवार में सर फोड़े!"
“ओह दीवार! खबरदार जो मेरे भाई को कुछ बोला भी तो।"
“किसी ने सच ही कहा है की सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का भाई एक तरफ। मैं दुआ करता हूं माहिर खन्ना को भी जल्द ही प्यार हो!"
"अरे तुम्हारी नहीं सुनी जाएगी इसलिए जो पॉसिबल ही नहीं वो दुआ करने का क्या फायदा?"
"यहां कुछ भी नामुमकिन नहीं!"
"सार्थक… वो माहिर खन्ना है माहिर खन्ना, प्यार उसके सामने खड़ा हो ना तो वो नजरें फेर लेता है।"
"माहिर खन्ना की जिंदगी में उस लड़की को आने तो दो फिर देखना उसकी जिंदगी ही नहीं उसे भी बदल कर रख देगी। देखना फिर प्यार नाम से नफरत करने वाला शख्स प्यार में कैसे दीवाना होता है।"
"देखते है बट फिलहाल चलकर वो देखते है की माही क्यों गुस्सा कर रहा है!"
“हां तो जा रहे है ना वैसे माही का गुस्सा करना कोई बड़ी बात नहीं है, तुम्हें इतना परेशान नहीं होना चाहिए।”
"मैं माही के लिए नहीं उसके लिए परेशान हो रही हूं जिसकी शामत आई है। पता नहीं किस पर और क्यों कहर बरसा रहा है माही, वो भी सुबह सुबह?"
दोनों अपने रूम से निकल हॉल से गुजर सिढियों से होते ऊपर पहुंचे तो देखा माहिर खन्ना अपने रूम के बाहर टॉवल में खड़ा एक सर्वेंट को डांट रहा था। उस पर गुस्से से चिल्ला रहा था जो उसके सामने नजरें झुकाए खड़ा था और वहीं पास में जमीन पर ट्रे और कॉफी मग टूटा हुआ पड़ा था। साक्षी और सार्थक माहिर के पास चले आए। साक्षी ने सर्वेंट की ओर देखते माहिर से पूछा - "क्या हुआ माही?"
"आज के बाद मेरे बेड पर खाने पीने की कोई भी चीज रखी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। वो सोने की जगह है खाने पीने की नहीं इडियट!"
माहिर एक बार फिर सर्वेट पर गुर्राया और उसे घूरते अपने रूम में चला गया और अंदर से दरवाजा भी बंद कर दिया। उसके जाते ही सार्थक सर्वेंट से बोला - "क्या किया?"
सर्वेट नजरें झुकाए झुकाए ही - "वो मैं माहिर सर के लिए कॉफी लेकर गया था। सर ने टॉवल मांगा तो गलती से मैनैं कॉफी टेबल की जगह बेड पर रख दी, उठा पाता बोड से कॉफी उससे पहले सर ने देख लिया। वो बहुत गुस्सा हो गये फिर मुझ को और कॉफी दोनों को रूम से बाहर फेंक दिया।"
साक्षी माहिर के रूम के बंद दरवाजे को देखकर सर्वेट से बोली - "जानते हो ना माही को बिल्कुल नहीं पंसद बेड पर कोई भी खाने पीने की चीज। पता होते हुए भी ऐसी लापरवाही? वो कभी पानी का गिलास भी अपने बेड पर नहीं लेता है और तुमने वहां कॉफी रख दी।"
सर्वेट - "एम सॉरी मैम, बट मैनैं जानबूझकर नहीं किया।"
सार्थक - "वो माहिर खन्ना है माहिर खन्ना, इसलिए ये बात भूलनी नहीं है जानबूझकर तो क्या आज जो हुआ वो अनजाने में भी फिर ना हो। आगे से ध्यान रखना नहीं तो अगली बार माहिर खन्ना के हाथों सिर्फ रूम से नहीं इस घर से भी बाहर फेंक दिये जाओगे।"
सर्वेट - "जी सर, आगे से गलती नहीं होगी।"
सार्थक - "अच्छा अब जल्दी से ये साफ करवाओ वो भी माही के बाहर आने से पहले।" यह बोल सार्थक ने साक्षी का हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ रूम में ले आया।
"छोटी सी बात पर साले साहब कितना गुस्सा करते है।"
“सार्थक हमारे लिए छोटी सी बात होगी लेकिन माही के लिए ये बहुत बड़ी बात है। आज तक ना तो खुद अपने बेड पर उसने कुछ खाया पिया है, ना ही किसी और को खाने पीने दिया। ऐसा करते दूसरों को भी देखता है तो मुंह बनाता है इस बात पर माही हमेशा से चिढ़ता आया है।”
"भगवान करे उसे एक ऐसी लड़की मिले जो उसके सारे नियम कानून तोड़ के उसे उसकी नानी याद दिल दे।"
क्या सार्थक की बात सच हो जाएगी?
क्या सच में माही के लिए एक ऐसी लड़की इंतजार कर रही है जो उसके जीवन का सर सुकून लूट लेगी?
अगर हाँ तो कब और कैसे होगा दोनों का सामना?
आगे जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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