अभी तक आपने सुना कि, सभी बड़े तांत्रिकों ने मिल कर किसी हड्डी की मदद से एक आकृति का निर्माण कर के उसमे अपना रक्त भरना शुरू कर दिया था और एक तांत्रिक अपने हाथों में 2 हड्डियाँ और कंधे पर विचित्र चीजों का झोला लिए घंटाघर के pravesh द्वार पर, अंदर जाने के लिए तैयार खड़ा था। अब सुनते हैं आगे…

तब तक कोई नहीं जानता था कि अंदर क्या हो रहा था, लेकिन जो भी था, वह बहुत खतरनाक था। दरवाजे के बाहर खड़े तांत्रिक सहित सभी गांव वालों का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। तांत्रिक ने एक गहरी साँस ली और फिर आसमान की तरफ देख मंत्रोच्चार शुरू कर दिया। मंत्रोच्चार पूरा होते ही उस तांत्रिक की आँखें सुर्ख लाल हो गयी थीं और उसने बड़े तांत्रिकों की ओर देखते हुए, घंटाघर के पिछले दरवाजे को एक जोरदार लात मारी।

तांत्रिक के अंदर की शक्ति देख लग रहा था कि जैसे उसके शरीर में किसी और आत्मा का भी वास हो गया था। जो दरवाजा, कई गांव वालों की मशक्कत के बाद भी पहले नहीं खुल रहा था, तांत्रिक के वार से वही दरवाजा कई टुकड़ों में टूट कर बिखर गया था। मानो वह दरवाजा कुछ बेजान पत्तियों का बना हुआ था। दरवाजा टूटते ही तांत्रिक ने घंटाघर में प्रवेश किया।

उस तांत्रिक के घंटाघर में प्रवेश करते ही वह टूटा पड़ा दरवाजा खुदबखुद जुड़ने लगा, मानो कोई उसे अपने हाथों से जोड़ रहा था। दरवाजा जुड़ जाने के बाद, उसे देख कर ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि किसी ने उसे कुछ ही देर पहले तोड़ा था।

तांत्रिक के घंटाघर में प्रवेश करते ही, सभी बड़े तांत्रिक अपने-अपने आसनों पर वापस आ गए थे और फिर से  आहुति  देते हुए मंत्रोच्चार शुरू कर दिया था। पिछले कुछ मिनटों में जो कुछ भी हुआ था उसने सभी गांव वालों को हैरान कर दिया था। सभी लोग  मूक  दर्शक  बने घंटाघर के दरवाजे को ही घूरे जा रहे थे।

उस तांत्रिक को घंटाघर में गए हुए कुछ मिनट ही बीते थे कि तभी हवन में बैठे एक बड़े तांत्रिक का शरीर अकड़ने लगा। शरीर अकड़ने के साथ ही उस तांत्रिक की आँखें सफेद हो गई थीं। उस तांत्रिक के शिष्यों में से ही एक ने उस तांत्रिक को उसकी जगह से हटाते हुए खुद उसकी जगह ले ली थी और मंत्रोच्चार करते हुए, आहुति देना शुरू कर दिया था।

पहले से ही घबराये हुए गांव वाले, तांत्रिक की वह हालत देख कर और घबरा गए थे और चिल्लाते हुए वहां से भागने लगे थे। हवन के पास ही खड़े तांत्रिकों में से एक ने सभी को शांत रहने के लिए कहा और उन्हें बताया कि घबराने की जरूरत नहीं है। उस बड़े तांत्रिक पर उनके गुरु की सवारी आ गई थी, जो उन्हें घंटाघर के अंदर की गतिविधियों के दर्शन करा रही थी।

उस तांत्रिक की बात सुन गांव वाले शांत हो गए थे और वापस उस बड़े तांत्रिक की ओर बड़े ध्यान से देख रहे थे। मंत्रोच्चार की आवाज काफी तेज थी लेकिन तब पढ़े जा रहे मंत्र, पहले के मंत्रों से अलग और बड़े थे। हवन की आग भी पहले से ज्यादा तेज हो चुकी थी और उसकी लपटें 8-10 feet तक ऊपर उठ रही थीं।

गांव वालों की घबराहट बढ़ती जा रही थी, और हर गुजरता क्षण एक युग जैसा महसूस हो रहा था। दरवाजे की ओर देख रहे लोग जैसे सांसें रोक कर खड़े थे, मानो कुछ अशुभ  होने वाला था। तांत्रिकों के मंत्रों के साथ हवन कुंड से उठता धुंआ अब पूरे क्षेत्र में फैल गया था। वह धुंआ गाढ़ा काला होकर आसमान में ऐसे फैल रहा था, जैसे कोई बुरी शक्ति खुद को छुपाने की कोशिश कर रही हो। कुछ गांव वालों को ऐसा लग रहा था कि उन्होंने धुंए में चेहरों की झलक देखी है—भयानक, विकृत चेहरे जो  क्रोध और पीड़ा  में चिल्ला रहे थे।

राधा ने अपने पिता नरोत्तम दास की तरफ देखा, उनकी आँखों में डर था, लेकिन साथ ही एक उम्मीद भी कि जो कुछ भी हो रहा था, उसका अंत गांव के भले के लिए होगा। तांत्रिक, अपने मंत्रों में और तेज़ी ला रहे थे, उनके चेहरे पसीने से चमक रहे थे, लेकिन उनके भावों में संकल्प साफ़ झलक रहा था। "ये अंतिम चरण है," एक बड़े तांत्रिक ने धीरे से फुसफुसाते हुए कहा। गांव वालों के दिलों की धड़कनें मंत्रों के साथ ताल मिलाने लगी थीं, जैसे सभी एक  सामूहिक चेतना  में बंध गए हों।

अचानक ही मन्त्रों की गूंज को धीमा करती, किसी आदमी की एक दर्द भरी चीख, घंटाघर के अंदर गूँज उठी थी।

उस चीख के शांत होते ही घंटाघर का अगला दरवाजा खुला और एक शरीर उस दरवाजे से उड़ता हुआ बाहर आया और दरवाजा फिर से बंद हो गया था।

उस शरीर के बाहर आते ही कुछ गांव वालों ने यह जानने के लिए कि आखिर वह शरीर किसका था, उस तरफ जाने की कोशिश की थी लेकिन हवन कुंड के पास खड़े तांत्रिकों ने सभी को रोक दिया था।

उस शरीर के बाहर आने का कोई भी असर उन तांत्रिकों पर नहीं पड़ा था, मानो उन्हें पहले से ही पता था कि ऐसा कुछ होने वाला था।

उस शरीर के बाहर आने के कुछ ही समय बाद, घंटाघर का पिछला दरवाजा खुला और, जो तांत्रिक अभय के बाद घंटाघर में गया था, वह भी बाहर आ गया। तब तक अभय के ठीक-ठाक बाहर आने की उम्मीद बांधे बैठे, सभी गांव वालों सहित, उसके पिता और राधा की उम्मीद भी डगमगाने लगी थी। सभी को यही लग रहा था कि अगले द्वार से जो शरीर उड़ता हुआ बाहर आया था, वह अभय का ही था।

कुछ गांव वाले जो घंटाघर के पीछे के द्वार के पास खड़े हुए थे वह उस तांत्रिक के शरीर से टपक रहे  खून  को देख कर उससे दूरी बनाते हुए अपनी-अपनी जगह से पीछे हटते जा रहे थे। पिछले दरवाज़े  से बाहर आया तांत्रिक ऐसे चलते हुए हवन कुंड की तरफ बढ़ रहा था, जैसे अंदर हुई किसी भी गतिविधि से उसके शरीर की ऊर्जा पर को फर्क़ ही नहीं पड़ा था।

हवन कुंड के पास पहुंचते ही वह तांत्रिक गिर पड़ा और बेहोश हो गया। जिस बड़े तांत्रिक पर उसके गुरु की सवारी आ गई थी, उसके शरीर की अकड़न भी खत्म हो गयी थी लेकिन वह भी गहरी साँसें लेता हुआ, अपनी आँखें बंद कर के अपनी जगह पर लेटा हुआ था।

अचानक, हवन कुंड की लपटें और भी तेज हो गई थीं, मानो आग के भीतर कोई असाधारण शक्ति जाग्रत हो रही थी। तांत्रिकों का मंत्रोच्चारण और भी तेज होता जा रहा था, वे हर शब्द को रुक-रुक कर बोल रहे थे। उनके मंत्रोच्चार सुन ऐसा लग रहा था, जैसे हर शब्द में एक नया सामर्थ्य छिपा हुआ था। लेकिन हवन कुंड में जलती हुई अग्नि के बीच, एक नई हलचल महसूस हो रही थी। सभी तांत्रिक अपनी-अपनी जगह से उठ खड़े हुए थे और एक ही हवन कुंड के पास एकजुट हो गए थे, जैसे कोई गहरी चुनौती सामने आ गई हो।

हवन कुंड के पास खड़े गांव वालों की आँखों में डर साफ झलक रहा था। एक ओर जहां उन्हें तांत्रिकों की शक्तियों पर विश्वास था, वहीं दूसरी ओर घंटाघर से बाहर आए शरीर ने उनके मन में एक नई आशंका पैदा कर दी थी। राधा और नरोत्तम दास जी, जिनकी आँखों में उम्मीद थी कि अभय सुरक्षित बाहर आ जाएगा, अब अपनी चिंताओं को छिपा नहीं पा रहे थे।

जैसे-जैसे हवन की लपटें बढ़ रही थीं, गांव वालों के अभय का नाम पुकारने की आवाज़ें भी घने अंधेरे में गूंजने लगी थीं। राधा, अभय के पिता और नरोत्तम दास जी अपनी आँखें बंद किए ईश्वर से उसके सही-सलामत बाहर आ जाने की कामना करने में लगे हुए थे। कुछ समय बाद, तांत्रिकों ने अचानक अपने मंत्रों को रोक दिया और हवन में किसी अजीब सी कंटीली चीज कीी आहुति देने लगे। उस  विचित्र  चीज  की आहुति से, वातावरण में  असाधारण  बदलाव आ रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे तांत्रिकों की  क्रिया एक  निर्णायक  मोड़ पर पहुंचने वाली थी।

कुछ देर बाद, अचानक ही घंटाघर के दरवाजे में एक तेज़ झंकार की आवाज आई, जैसे भीतर किसी ने लाखों घुँघरू एक साथ बजा दिए थे। तांत्रिकों का मंत्रोच्चारण फिर से शुरू हो गया था। अचानक, घंटाघर का पिछला दरवाजा बहुत तेज हिलने लगा था और दरवाजे के पास खड़े सभी लोग अपने कदम पीछे हटाने लगे थे। कुछ देर बाद, दरवाजा एक भयंकर चीख के साथ खुद-ब-खुद खुल गया।

सभी तांत्रिकों ने मंत्रोच्चारण में और अधिक गति दी, जैसे कि उन्हें आने वाली चुनौती पहले ही दिख रही थी। दरवाजा खुलते ही एक विशाल काली छाया बाहर आई, और दर्द भरी चीख के साथ मदार के पेड़ से जा लड़ी।

उस छाया के मदार के पेड़ से लड़ने के साथ ही मदार का पेड़ जलने लगा था और घंटाघर का दरवाजा फिर से बंद हो गया था।

मदार के पेड़ के साथ ही वह छाया भी दर्द भरी आवाज के साथ जल रही थी और उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे आग की वे लपटें एक चीखते हुए चेहरे का निर्माण कर रही थीं।

उस छाया की दर्द भरी चीखें खत्म नहीं हुई थीं कि अचानक ही घंटाघर का पिछला दरवाजा फिर से खुल गया था। गांव वालों का मन भय और एक अजीब सी बेचैनी से भर गया था। कोई भी नहीं जानता था कि क्या हो रहा था। राधा की आँखें लगातार घंटाघर के दरवाजे पर टिकी हुई थीं। उसके दिल में एक भय था कि अब जो कुछ भी होने वाला था, वह अभय के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे गांव के लिए एक बड़ी परीक्षा होगी।

हर बार के विपरीत, दरवाजा खुलने के बाद बंद नहीं हुआ था। लेकिन अचानक, हवन कुंड की लपटें एक साथ तेज़ हो गई थीं, वहां मौजूद सभी तांत्रिक फिर से एक-एक शब्द पर जोर देते हुए, एक साथ मंत्रों का उच्चारण करने लगे थे। उनकी आवाजें एक साथ मिल कर सामूहिक शक्ति को दिखा रही थीं। हर शब्द संयमित लेकिन जैसे बिखरे हुए थे और वातावरण में अजीब सा तनाव था।

तांत्रिकों के मंत्रोच्चार से अलग, सभी की निगाहें केवल उस दरवाजे पर थीं, जहाँ हर पल कुछ नया हो रहा था।

और फिर, घंटाघर के दरवाजे पर एक और आवाज हुई, जैसे कोई ढेर सारा बोझ अचानक गिरा हो।

फिर, एक तेज़ आवाज़ के दरवाजा वापस से बंद हो गया, और एक काले धुएं के गुबार के साथ अभय बाहर गिर पड़ा था।

भय का शरीर ज़मीन पर पड़ा था, उसकी आँखें पूरी तरह से बंद थीं, और उसका चेहरा किसी अजनबी जैसा था। गांव वाले, राधा, नरोत्तम दास जी और तांत्रिक उस दृश्य को देखकर हैरान थे। हालांकि, किसी को यह यकीन नहीं हो रहा था कि वह अभय था या कोई और।

कुछ तांत्रिकों ने जल्दी से, दरवाजे के पास पहुंच कर अभय के शरीर को उठाया और उसे हवन कुंड के पास रखा, जहां एक और आहुति दी गई। तांत्रिकों ने कहा कि अभय की यह स्थिति अस्थायी थी, और उसे जल्द ही ठीक किया जा सकता था।

फिर अचानक, उस हवन के बीच, किसी आदमी की एक गहरी, भयंकर आवाज़ गूंज उठी।

उस आवाज के बंद होते ही एक औरत की, भयानक हंसी सुनाई दी, जो साफ़ तौर शैतानी थी। यह वही आवाज़ थी जिसे पहले भी, राधा सुन चुकी थी, वही माया की आत्मा, सभी गांव वालों में भय बढ़ा रही थी।

तांत्रिकों ने तुरंत ही मंत्रों को और तेज़ किया। हवा के झोंके से हवन कुंड की आग और तेज़ जलने लगी थी। सभी का ध्यान, उस समय बस एक ही चीज़ पर था—क्या यह शक्ति खत्म हो पाएगी या वह दुष्ट आत्मा, तब भी गांव में अपनी हुकूमत कायम कर पाएगी?

लेकिन तभी, हवन कुंड के पास एक नए तांत्रिक ने कदम रखा, जो पहले तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, वह वृद्ध तो था लेकिन काफी प्रभावशाली दिख रहा था। अचानक ही उस तांत्रिक को देख सभी गांव वाले अचरज में पड़ गए थे।

जैसे ही उस वृद्ध तांत्रिक ने अपने हाथ में पकड़ी लकड़ी की एक लंबी छड़ी जमीन पर पटकी, वातावरण में अचानक ठंड बढ़ गई थी।

जमीन पर पटकने के बाद तांत्रिक ने अपनी छड़ी को हवन कुंड के पास ले जाकर, फिर से मंत्रों का उच्चारण शुरू किया, और एक चमत्कारी दृश्य देखने को मिला। हवन कुंड से एक विशाल ज्वाला उठी, जो सीधी उस औरत की आवाज़ की दिशा में बढ़ी।

यह सब देखते हुए, राधा और नरोत्तम दास जी अपनी चिंताओं में डूबे थे, लेकिन तब सभी को केवल तांत्रिकों की शक्ति पर भरोसा था। क्या यह शक्तियाँ उस आत्मा को गांव से दूर कर सकेंगी, या फिर यह शक्तिशाली आत्मा इस गांव के भविष्य पर अपना कब्जा जमा लेगी?

कुछ मिनटों तक कोई हलचल नहीं हुई। सबकी निगाहें उस आग की ओर थीं, जो अब एक विशाल लपट के रूप में समाने थी।

क्या तांत्रिक अपने मंत्रों और आहुति की शक्ति से उस आत्मा को परास्त कर पाएंगे? क्या अभय पूरी तरह से ठीक हो पाएगा? और क्या गांव को इस खतरनाक स्थिति से मुक्ति मिलेगी? इन सवालों के जवाब के लिए, राधा और गांव वालों को कितना और इंतजार करना पड़ेगा?

जैसे-जैसे वह अंदर जाता गया, वह महसूस कर रहा था कि उसके चारों ओर कुछ था, कुछ अदृश्य और खतरनाक। अंधेरे में घिरी उस जगह को देखकर उसे यह आभास हुआ कि यह सिर्फ एक घड़ी नहीं थी, बल्कि वह खुद एक जाल में फंस चुका था।

घंटाघर के अंदर घुसते ही, जैसे ही अभय ने एक कदम और बढ़ाया, उसे एक कड़ी ठंडी हवा का एहसास हुआ। उसका शरीर काँपने लगा। उसने चारों ओर देखा, लेकिन वहां सिर्फ अंधेरा और एक खौ़फनाक सन्नाटा था। तभी उसे एक गहरी, गूंजती आवाज सुनाई दी। यह कोई और नहीं, बल्कि वही अदृश्य शक्ति थी, जो घंटाघर को नियंत्रित कर रही थी।

यह आवाज सीधे अभय के कानों में गूंजने लगी, जैसे वह शक्ति उसे अपनी गिरफ्त में ले रही हो। "तुम मुझे रोकने नहीं आ सकते, अभय," आवाज ने कहा। “तुम उस घड़ी को छूने के काबिल नहीं हो। तुम जितना चाहोगे, उतना मुझे और मजबूत करोगे।”

अभय को समझ आ गया कि वह सिर्फ एक साधारण इंसान नहीं था जो इस खेल में जीत सकता था। उसे खुद को इस शक्ति से लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार करना था।

अभी तक अभय पूरी तरह से असमंजस में था। लेकिन तभी वह याद करता है कि तांत्रिकों ने उसे क्या कहा था – “तुम्हें खुद को सबसे ज्यादा मजबूत बनाना होगा। तुम्हारी आत्मा में वह ताकत है, जो इस घड़ी और उस शक्ति को खत्म कर सकती है।”

अभय ने अपनी सोच को केंद्रित किया। उसने सांस ली, और खुद को पूरी तरह से शांत किया। वह जानता था कि यह उसके डर और हिम्मत के बीच की लड़ाई थी। उसने एक और कदम बढ़ाया, और जैसे ही उसने घंटाघर के केंद्रीय घड़ी के पास कदम रखा, उसे एक बड़ी हलचल महसूस हुई। घड़ी की आवाज तेज हो गई, जैसे वह जीवन की दिशा बदलने के लिए तैयार हो। लेकिन अब, यह अभय पर निर्भर था कि वह घड़ी की कलाई पर अपना हाथ रखे या नहीं।

अभय ने घड़ी की कलाई पर हाथ रखा। जैसे ही उसका हाथ कलाई से जुड़ा, एक तेज़ आवाज गूंज उठी, और वह महसूस कर रहा था कि किसी ने उसकी आत्मा को जकड़ लिया था। लेकिन उसी क्षण, उसकी यादें भी तेज हो गईं, और उसने अपनी पूरी ताकत जुटाकर उस आत्मा से मुकाबला करने का निर्णय लिया।

अभय की आँखें बंद हो गईं, और वह पूरी तरह से अपने अंदर की ताकत को महसूस करने लगा। जैसे ही उसने घड़ी के कलेवर को दबाया, उसके शरीर में एक अजीब सी हलचल हुई, और घड़ी की आवाज बंद हो गई। एक गहरी खामोशी ने वातावरण को घेर लिया।

क्या अभय उस आत्मा को हरा कर गांव को मुक्ति दिला पाएगा? क्या वह इस घड़ी को अपने हाथ में ले सकेगा, या यह केवल उसका सपना बन कर रह जाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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