टीम गांडीव का मिशन अब पहले से कहीं ज्यादा उलझ चुका था। मास्टरमाइंड की रहस्यमयी आवाज ने टीम को यह बता दिया था कि रफीक सिर्फ एक मोहरा था, और असली खेल अब भी उनके हाथ से बाहर था। टीम के पास अब एक ही विकल्प था—उस रैकेट का पता लगाना, जिसने जहरीली गैस भारत पहुंचाई थी।
लो-लाइट रूम में टीम गांडीव रिसर्च में लगी हुई थी। मीरा नक्शा और रिपोर्ट्स को देख रही थी, कबीर कंप्यूटर पर काम कर रहा था, और अदिति अपने नेटवर्क से इनपुट जुटा रही थी। अदिति के फोन पर एक कॉल आती है। वह तुरंत इसे सुनती है। दूसरी ओर एक धीमी और घबराई हुई आवाज सुनाई देती है। "अदिति मैडम, मैं जो बताने जा रहा हूं, वह बहुत बड़ा राज़ है। इस इलाके में तीन गिरोह ऐसे हैं, जो ब्लैक मार्केट में जहरीली गैस की तस्करी करते हैं।"
अदिति: “नाम बताओ। कौन हैं ये लोग?”
"पहला है रेड हाइना, जिसका लीडर इकबाल शरीफ है। वह ढाका और आसपास के इलाकों में सबसे बड़ा सप्लायर है। दूसरा है ब्लैक कोबरा गैंग, जिसकी कमान राशिद मलिक के हाथ में है। और तीसरा, सबसे खतरनाक है डेजर्ट विंड नेटवर्क, जिसका लीडर सैफ-उल-हक है।" रेड हाइना, ब्लैक कोबरा गैंग, और डेजर्ट विंड नेटवर्क—ये तीन नाम अदिति के नेटवर्क से सामने आए। अदिति अपनी जानकारी टीम को बताती है। मीरा दीवार पर मैप लगाकर गैंग के इलाकों को मार्क करती है।
मीरा: ये तीनों गिरोह मिलकर ब्लैक मार्केट का सबसे बड़ा हिस्सा चलाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि इनमें से किसने गैस की सप्लाई की?"
कबीर: अगर हमें इनके इलाकों और लेन-देन की पूरी जानकारी मिल जाए, तो हम पता लगा सकते हैं कि कौन जिम्मेदार है।
अदिति: मेरे सूत्र ने यह भी बताया कि रेड हाइना गैंग हाल ही में जहरीले पदार्थों की एक बड़ी डील कर चुका है। यह हमारे लिए पहला सुराग हो सकता है।
सहदेव: तो हम पहले रेड हाइना को निशाना बनाते हैं। इनका कोई पता ठिकाना है?
टीम गांडीव का अगला लक्ष्य था—यह पता लगाना कि इस गैंग का भारत में किससे कनेक्शन है। जहरीली गैस की सप्लाई एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा थी, और यह साफ था कि भारत के अंदर कोई गिरोह इससे मिल हुआ था। टीम को अब इस कड़ी को तोड़ना था।
कबीर लैपटॉप पर रेड हाइना की डिटेल्स निकालने में जुट गया। स्क्रीन पर कंटेनर की शिपिंग डिटेल्स और ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड्स दिख रहे हैं।
कबीर: यह देखो। ये शिपमेंट बांग्लादेश के रेड हाइना गैंग ने भारत के एक फर्जी ट्रेडिंग फर्म को भेजा है। कंपनी का नाम है शारदा एक्सपोर्ट्स, जो कोलकाता में रजिस्टर्ड है।
मीरा: "शारदा एक्सपोर्ट्स? यह नाम सुना हुआ लगता है।
कबीर: बिल्कुल। इसका सीधा कनेक्शन है ब्लू स्कॉर्पियन गैंग से। इस गैंग का लीडर अमन शेख है, जो कोलकाता के अंडरवर्ल्ड का बड़ा नाम है। ब्लू स्कॉर्पियन का काम है ब्लैक मार्केट नेटवर्क को भारत में सपोर्ट करना और देश के अंदर पहुंचाना।
अदिति: अगर अमन शेख इसमें शामिल है, तो यह सिर्फ गैस सप्लाई का मामला नहीं है। यह कुछ बड़ा हो सकता है।
अमन शेख, कोलकाता के सबसे कुख्यात गैंग लीडर्स में से एक। इसने पिछले 15 साल में अपने ब्लू स्कॉर्पियन गैंग को भारत के सबसे बड़े ब्लैक मार्केट नेटवर्क में बदल दिया है। इसका नेटवर्क भारत के कई शहरों में फैला हुआ है जिसमें कोलकाता, मुंबई, पटना, और दिल्ली मैन है। टीम एक रणनीति तैयार करती है। मीरा सभी को देख कर कहती है "हमें शारदा एक्सपोर्ट्स के ठिकाने तक पहुंचना होगा। लेकिन सीधे नहीं जा सकते, हमें या तो सप्लाइअर बन के जाना होगा या फिर डिस्ट्रिब्यटर।
अदिति: मुझे शारदा एक्सपोर्ट्स के एक बड़े क्लाइंट का नाम मिला है—व्यास ट्रेडर्स, मुंबई में। यह कंपनी एक और गैंग से जुड़ी है, जिसका नाम है रेड ड्रैगन कार्टेल। इसका लीडर रणदीप त्यागी है।
रेड हाइना से लेकर ब्लू स्कॉर्पियन और अब रेड ड्रैगन कार्टेल तक, टीम गांडीव को यह एहसास हो चुका था कि यह मामला सिर्फ गैस सप्लाई का नहीं, बल्कि एक बड़े आपराधिक नेटवर्क को बेनकाब करने का था। अब उनका अगला कदम था—कोलकाता में शारदा एक्सपोर्ट्स के ठिकाने तक पहुंचना और ब्लू स्कॉर्पियन गैंग के लीडर को पकड़ना।
टीम ने कोलकाता के लोकल पुलिस और अदिति के नेटवर्क का इस्तेमाल करके शारदा एक्सपोर्ट्स की गतिविधियों पर नजर रखी। पता चला कि कंपनी के गोदाम से रात के समय बड़ी मात्रा में माल लोड किया जाता था। विक्रम को सभी डिटेल्स बताते ही टीम तुरंत ही कोलकाता के लिए रवाना हो जाती है।
मीरा और सहदेव एक रात में एक गोदाम में घुसते हैं।गोदाम में बहुत शांति थी, लेकिन गार्ड्स के पैट्रोलिंग से पता चलता है कि यहां कड़ी सुरक्षा है। अंदर घुसने के बाद, उन्हें माल के बक्से दिखते हैं। उनमें से कुछ बक्सों पर अंतरराष्ट्रीय शिपिंग कंपनियों के लेबल थे। मीरा एक बक्से को खोलती है और उसमें छोटे-छोटे सिलेंडर मिलते हैं। दोनों आपस में फुसफुसाते हुए यही बात कर रहे थे की शायद यहीं वो छोटा सिलिन्डर होगा जिसका इस्तेमाल कर के वह जहरीली गैस भारत आई होगी। मीरा और सहदेव बक्सों का मुआयना कर रहे होते है। मीरा को एक छोटे ऑफिस में एक कंप्यूटर दिखता है। वह कबीर की मदद से उसे हैक करने की कोशिश करती है। कंप्यूटर से एक ट्रांजेक्शन रिपोर्ट मिलती है, जिसमें रेड ड्रैगन कार्टेल के लिए माल भेजे जाने की पुष्टि होती है। अचानक ही कंप्युटर से एक अजीब स साउन्ड आता है जिससे सभी गार्ड्स अलर्ट हो जाते है। गोदाम के अंदर भगदड़ मच जाती है और गार्ड्स इन दोनों को वहाँ देख लेते है। गार्ड्स गोलियां चलाने लगते हैं। मीरा और सहदेव भी फ़ाइरिंग करते हुए बाहर निकलने की कोशिश करते हैं और कामयाब हो जाते है।
सहदेव और मीरा वापस वार रूम पहुंचते है। कोलकाता में मिली जानकारी के दम पर अदिति एक बड़ा खुलासा करने वाली होती है और इसलिए उसने विक्रम और आयुष को भी बुला लिया था। उसने अपने नेटवर्क के जरिए उस जहरीली गैस का पूरा रूट पता कर लिया था। जैसे ही सब वहाँ जमा हो गए तब अदिति ने बोलना शुरू किया। सबकुछ दुबई से शुरू हुआ। यह वह जगह थी, जहां से जहरीली गैस के इस लॉट को को पहली बार पैक किया गया और बांग्लादेश के चटगांव पोर्ट पर भेजा गया। दुबई के ब्लैक मार्केट में यह गैस एक नीलामी के जरिए बेची गई थी। "चटगांव पोर्ट पर गैस को 'रेड हाइना गैंग' ने रिसीव किया। बांग्लादेश के इस कुख्यात गैंग ने इसे छोटे कंटेनरों में पैक किया, ताकि इसे किसी भी सुरक्षा जांच में पकड़ा न जा सके। गैस के कंटेनरों को साधारण रसायनों के रूप में दिखाने के लिए उन पर नकली लेबल लगाए गए।"
गैस को चटगांव से भारत में प्रवेश कराने के लिए सिलीगुड़ी का इस्तेमाल किया गया। यह जगह, जो भारत और बांग्लादेश के बीच एक इम्पॉर्टन्ट ट्रांजिट पॉइंट है, अंतरराष्ट्रीय तस्करी के लिए एक आसान मार्ग बन चुकी है। रेड हाइना ने गैस को ट्रांसपोर्ट करने के लिए एक फर्जी कंपनी—ईस्टर्न लॉजिस्टिक्स—का सहारा लिया। इस कंपनी ने हर दस्तावेज और अनुमति को नकली रूप से तैयार किया, ताकि भारत की सीमा पार करने में कोई समस्या न हो। सिलीगुड़ी पहुंचने के बाद, गैस को एक गोदाम में रखा गया। इस गोदाम का इस्तेमाल पहले भी अवैध तस्करी के लिए किया जा चुका था। वहां से गैस को दिल्ली भेजने की तैयारी की गई। लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था।
"सिलीगुड़ी से दिल्ली तक गैस को एक ट्रांसपोर्ट ट्रक के जरिए भेजा गया। यह ट्रक, जिसमें गैस के कंटेनरों को कड़ी सुरक्षा के साथ छुपाया गया था, एक लंबी यात्रा पर निकला। इस ट्रक को दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित एक गोदाम पर लाना था। दिल्ली पहुंचने के बाद, गैस को फिर से छोटे-छोटे कंटेनरों में ट्रांसफर किया गया। इन कंटेनरों को इस तरह डिजाइन किया गया था कि वे साधारण सफाई सामग्री की तरह दिखें। हर कंटेनर पर सरकारी लेबल नकली तरीके से चिपकाया गया, ताकि किसी भी सुरक्षा जांच में इन्हें संदेह न हो।
दिल्ली के बाहरी इलाके का वह गोदाम, जहां गैस को असेंबली तक भेजने के लिए तैयार किया गया था, असली साजिश का केंद्र बन चुका था। इस गोदाम को एक और नकली कंपनी, 'सेंट्रल ट्रांसपोर्ट्स', द्वारा चलाया जा रहा था। इस कंपनी के दस्तावेज और लाइसेंस भी पूरी तरह से फर्जी थे। लेकिन यह सब इतने शातिर तरीके से किया गया था कि किसी को भी शक नहीं हुआ।"
"गैस को असेंबली परिसर तक पहुंचाने के लिए, एक छोटे ट्रक का इस्तेमाल किया गया। इस ट्रक के पास असेंबली में प्रवेश के लिए नकली सरकारी पास था। ट्रक के ड्राइवर को पहले से ही ट्रेन किया गया था कि अगर उसे कोई रोके, तो वह क्या जवाब देगा।
"असेंबली परिसर के अंदर, गैस को माइक सिस्टम में इंस्टॉल कर दिया गया। यह प्रक्रिया रफीक जैसे मोहरे के जरिए अंजाम दी गई। वह जानता था कि उसे क्या करना है—सिर्फ माइक के अंदर सिस्टम लगाना और जाते वक्त रीमोट को डस्टबिन में फेंक देना। उसके लिए बस इतना ही काफी था। बाकी सबकुछ, मास्टरमाइंड की ओर से पहले से तैयार था।"
टीम को अब इस पूरे रूट की सटीक जानकारी मिल चुकी थी। दुबई से चटगांव, सिलीगुड़ी से दिल्ली और अंत में असेंबली तक। लेकिन इस यात्रा में जो बातें सामने आईं, उन्होंने यह साफ कर दिया कि यह सिर्फ एक आदमी या एक गैंग का काम नहीं था। छोटी छोटी कड़ियों में अलग अलग लोगों को कान्ट्रैक्ट दिया गया था ताकि अगर एक भी कोई पकड़ जाए तो दूसरे का पता ना चले।
अदिति ने इस पूरी प्रक्रिया को टीम के सामने बहुत बारीकी से समझाया। जैसे-जैसे वह अपनी ब्रीफिंग खत्म कर रही थी, बैकग्राउंड में कबीर अपने कंप्यूटर पर इन शेल कंपनियों की गहराई में जा चुका था।
कबीर ने इन फर्जी कंपनियों के डिजिटल रिकॉर्ड को खंगालना शुरू किया। स्क्रीन पर डेटा की लंबी सूचीें तेजी से स्क्रॉल हो रही थीं—बैंक अकाउंट्स, ट्रांजेक्शन हिस्ट्री, और शेयरहोल्डर्स की डिटेल्स। जैसे ही अदिति ने अपनी ब्रीफिंग पूरी की, कबीर की उंगलियां अचानक रुक गईं। स्क्रीन पर एक नाम चमक रहा था, जिसने उसे हैरान कर दिया।
विपुल चोपड़ा। यह वही विपुल चोपड़ा था, जो भारत की संसद में विपक्ष के नेता थे।"
विक्रम ने हैरानी से स्क्रीन की ओर देखा और तुरंत सवाल किया:
विक्रम: अगर तुम्हारी यह इनफार्मेशन सच है कबीर तो यह एक बहुत बड़ा धमाका हो सकता है! विपुल चोपड़ा विपक्ष का नेता नहीं, भारत की राजनीति में एक बड़ा नाम है। तो हमें कोई भी एक्शन लेने से पहले 100 बार सोचना होगा।
टीम पर अब एक नई जिम्मेदारी थी। रफीक और ब्लू स्कॉर्पियन गैंग के जरिए शुरू हुई यह खोज अब भारत की राजनीतिक दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोगों तक पहुंच चुकी थी। विपुल चोपड़ा का नाम सामने आना न केवल साजिश की गहराई को उजागर करता था, बल्कि यह भी बताता था कि उस अनजान मास्टरमाइंड का खेल कितना बड़ा था।
"क्या टीम गांडीव इस साजिश को पूरी तरह बेनकाब कर पाएगी? या यह खेल अब उनके लिए और भी खतरनाक साबित होगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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