कुछ पल के लिए मीरा को विश्वास ही नहीं हुआ कि मनीषा ने राघव का नाम लिया और यह भी बताया की उसे कहां देखा है। जहां तक मीरा को याद था कि उसने कभी भी मनीषा के सामने राघव का नाम नहीं लिया था।
सबसे ज्यादा बेचैन तो कबीर हो गया था, वह झट से मनीषा के पास आया और रोमांचित स्वर में पूछा, ‘’क्या सच में आपने इन्हें देखा है? कब देखा है और कहां देखा है? इन्हें ही देखा है ना?‘’
मनीषा खुद हैरान थी, कि ये लोग इस साधारण से आदमी के लिए इतना परेशान क्यों हैं?
मनीषा ने कहा, हां हां इन्हें ही देखा था, और करीब एक हफ्ते पहले ही देखा था, धर्मशाला के आगे एक कुमकुम नाम का गांव है, जिसकी बहुत ऊंची चढ़ाई है, हम लोग वहां गए थे। एक्चुली लोग उस गांव के बारे में कहते हैं कि वह बहुत ही शांत गांव है, जहां टेक्नोलॉजी के नाम पर कुछ नहीं है, वहां पर किसी के पास मोबाइल फोन नहीं है, वे लोग दुनिया से लगभग कटकर रहते हैं, किसी से बहुत ज्यादा मतलब नहीं रखते और बहुत ही कम सुविधाओं में भी अच्छी और खुशहाल जिंदगी जीते हैं। अधिकतर दिमाग के मरीज, जिन्हें डिप्रेशन रहता है वहां आते हैं और लोगों को कम सुविधाओं में भी सुकून से जिंदगी बिताते देखते हैं, हम भी वहां गए थे, वहीं पर ये हमें मिले थे, बहुत ही सिम्पल इंसान हैं, कुंमकुम गांव का इलाका बहुत ही बीहड़ है, भूलभूलैया जैसे रास्ते हैं, ये लोगों की बहुत मदद करते हैं पर बदले में एक भी पैसा नहीं लेते हैं, लेकिन बड़े ही खोए खोए से रहते हैं, ज्यादातर अकेले ही रहना पसंद करते हैं, और किसी से बहुत बात नहीं करते। बहुत पूछने पर अपना नाम बताया था, बोले कि मैं तो अपना नाम भूल चुका हूं, किसी समय लोग मुझे राघव के नाम से जानत थे। ये बड़े ही अलग किस्म के इंसान थे, इसलिए याद हैं।
पर इनकी फोटो यहां कैसे?‘’ मनीषा ने कहा।
अब मनीषा के सवालों का जवाब देने की फुर्सत किसी को नहीं थी, शशांक ने तुरंत गूगल से कुमकुम गांव के बारे में पता किया, ‘यह सच में वीरान सा गांव था जहां पर मुश्किल से चालीस या पचास परिवार होंगे, सर्दियों के समय यहां बहुत बर्फबारी होती है, जिससे वह आसपास के गांवों से कट जाता था, बहुत ही दुर्गम और पथरीला रास्ता है, वहां पैदल ही जाना पड़ता है, मेन शहर से करीब सात घंटे पैदल का रास्ता है, कोई इमरजेंसी हुई तो गांव से घोड़ागाड़ी का इंतजाम हो जाता है, वैसे पैदल ही चलना पड़ता है।
यह सब कुछ सुनकर मीरा ने कहा, ‘’मैं जाउंगी, सात घंटे तो क्या सत्तर घंटे भी पैदल चलना पड़े तो भी कोई बात नहीं।‘’
‘’दीदी, मुझे बताओ तो क्या बात है?‘’ मनीषा बड़े असमंजस में होकर मीरा से बोली।
मीरा ने जल्दी-जल्दी में मनीषा को सबकुछ बता दिया, मनीषा की आंखे अचरज से फैल गई, ‘’अरे दीदी क्या सच में, ये आपके वो थे?‘’
मीरा बोली, ‘’वो कभी बन ही नहीं पाए, पर मैंने भी ठान लिया है कि अगर ये वही राघव हैं तो मैं इन्हें वापस लेकर आउंगी।‘’
मीरा के मना करने के बाद भी शशांक और कबीर नहीं माने, उनका कालेज स्टार्ट होने में अभी समय था, और उन्हें हॉस्टल में ही तो रहना था। आश्रम का काम कुछ वरिष्ठ और अनुभवी लोगों को सौंपकर मीरा, शशांक और कबीर निकल पड़े राघव की खोज करने।
दिल्ली से शिमला की दूरी उन्होंने ट्रेन से की और फिर शिमला से धर्मशाला की यात्रा बस से। एक दिन पूरा इसी में निकल गया, अगले दिन उन्हें सात आठ घंटो की पैदल यात्रा करनी थी इसलिए आराम करना बहुत जरूरी था।
जहां कबीर राघव को सरप्राइज देने के लिए रोमांचित हो रहा था, वहीं मीरा का भी दिल धकधक कर रहा था, ’’हे भगवान, वे राघव ही हों, मुझे पता है आपने मेरी सारी प्रार्थनाएं सुनी है, यह भी सुनेंगे, अब आप मेरा इंतजार खत्म जरूर करवाएंगे।‘’
अगले दिन एक गाइड भी उनके साथ था, उसने इन तीनो से खाने पीने का सामान खूब सारा रख लेने के लिए और पानी की बोतल चाय काफी जो भी पीते हों वह भी पर्याप्त मात्रा में रखने को कहा।
गाइड ने यह भी कहा कि सात घंटे तो यहां के लोकल लोगों को लगते हैं कुमकुम गांव में पहुंचने को, आप लोग बाहरी है, ऐसे पहाड़, पत्थरो और घुमावदार सड़कों पर चलने की आदत नहीं होगी तो और भी टाइम लग सकता है, करीब दस घंटे से भी ज्यादा, घोड़ागाड़ी भी मिल सकती है पर कीमत बहुत ज्यादा होगी।
‘’मैं तैयार हूं, पैदल ही चलूंगी।‘’ मीरा ने कहा।
और साथ में शशांक और कबीर ने कहा, ‘’हम भी।‘’
सुबह नौ बजे तक वे भरपेट नाश्ता करने के बाद एकदम रेडी हो गए थे। शुरूआती यात्रा तो अच्छी थी, जगह-जगह देवदार के झूमते पेड़ मीरा का मन मोह रहे थे। चार घंटे कैसे बीत गए पता ही नहीं चला, कुछ देर सुस्ताने और लंच करने के बाद उन्होंने अपनी यात्रा फिर से शुरू कर दी।
गाइड ने इन तीनो को देखकर कहा, ‘’आप लोग तो एकदम तरोताजा लग रहे हैं, ऐसा लग ही नहीं रहा है कि पहली बार ऐसी जगह पर जा रहे हैं, वरना कुछ टूरिस्ट तो दो तीन घंटे आराम करने के बाद ही आगे बढ़ते हैं।‘’
अब मीरा और कबीर उस गाइड को क्या बताते कि वे किसके लिए यह यात्रा कर रहे थे, वे तो राघव के लिए एवरेस्ट भी चढ़ने को तैयार हो जाते यह सात घंटे की यात्रा क्या है।
‘’जिस हिसाब से आप लोग चल रहे हैं, हम चार घंटे में कुमकुम गांव पहुंच जाएंगे।‘’ गाइड ने प्रसंशनीय स्वर में कहा।
अगला चार घंटा वाकई कष्टप्रद था, शशांक के चेहरे पर थकान दिखने लगी थी, पर कबीर और मीरा राघव से मिलने के खुशी में सबकुछ भूले बैठे थे। आखिर वे कुमकुम गांव पहुंच ही गए थे, शशांक के पैरों में बहुत ही भयानक दर्द शुरू हो गया था, दर्द तो मीरा और कबीर के पैरों में भी हो रहा था लेकिन अब वे जल्दी से राघव को देखना चाहते थे उनके दर्द की यही दवा ली।
गाइड अपने पैसे लेकर वापस चला गया। गांव में घुसते ही सबसे पहले उन्हें बड़ा सा गौशाला दिखाई दिया... मनीषा ने बताया था कि राघव गौ सेवा करता है।
क्या वह इस समय यहां होगा?
गौशाला में इस समय कोई आदमजात नहीं था…शाम का समय था, और गांव में सन्नाटा पसरा था, वे थोड़ा और अंदर गए तो पुजारी जैसा एक लड़का दिखा, उसके हाथ में फूलों से भरी एक टोकरी और दूसरे हाथ में अगरबत्ती थी, कबीर झट से उसके पास पहुंचा और बोला, ‘’भाई साहब यहां राघव नाम के कोई रहते हैं, वे कहां मिलेंगे?‘’
उस पुजारी ने कंधे उचकाकर इशारे से कहा कि इस नाम के किसी इंसान को मैं नहीं जानता।
फिर कबीर ने अपने मोबाइल में राघव की फोटो उसे दिखाई, फोटो देखते ही उस आदमी की आंखे चमक उठी, वह बोला, अच्छा ये, ये तुम्हें सरोवर किनारे मिलेगा, यहां से सीधे चले जाओ और बाई ओर मुड़ जाना वहां से सीढ़ियां नीचे की ओर जा रही हैं, वही पर यह आदमी मिलेगा।
शुक्रिया कहकर कबीर ने खिले चेहरे से मीरा की ओर देखा, मीरा की दिल की धड़कने कई गुनी हो गई थी। सीढ़ियों के नीचे नदी किनारे गुमसुम सा बैठा वो आदमी दिखा, जिसे मीरा ने इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार किया था। कबीर अपने जीवनदाता को देख रहा था, आज अगर वह इस सुंदर दुनिया में सांस ले रहा था तो केवल राघव के कारण।
सीढ़ियों से तेज पदचाप की आवाज सुनकर राघव का ध्यान टूट गया, उसने अपनी गरदन घुमाई तो सामने खड़े लोगों को देखकर दंग रह गया…मीरा और राघव की नजरें मिली, सारा संसार मानों उसी पल में सिमट कर रह गया, दोनों में से किसी की पलकें झपकने को तैयार ही नहीं थी।
मीरा...’’ राघव के मुंह से निकला, मीरा का रोम रोम जैसे पवित्र हो उठा, इतना सुकून इतनी खुशी उसे सालों बाद महसूस हुई थी।
कबीर ने झट से राघव के पैर पकड़ लिए, राघव हड़बड़ा गया, उसे सवालिया निगाहों से देखने लगा।
‘’मैं आपका कबीर हूं भैया, मुझे छोड़कर क्यों चले गए?‘’
कबीर नाम सुनते ही राघव की आंखे भर आई, ‘’अरे तुम कितने बड़े हो गए हो, और हैंडसम भी।‘’
राघव मीरा को देखकर अभी भी आश्चर्य से भरा था, मीरा मुग्ध दृष्टि से राघव को देख रही थी। रात होने वाली थी, वे सब अब एक लकड़ी के मकान में बैठे थे, सामने एक अलाव जल रहा था, मीरा ने राघव के सामने कई सवालों की झड़िया लगा दी थी, पर इनमें से एक भी सवाल नाराजगी और गुस्से वाला नहीं था, सारे सवाल प्यार और मनुहार वाले थे।
‘’मुझ में क्या कमी थी राघव, मैंने तुम्हारे साथ बेवफाई नहीं की थी, आर्यन से मिलना तो बस एक संयोग था, मेरे दिल में तुम हमेशा से थे।‘
‘’मैं बता नहीं सकता मीरा, बस मैं तुम्हारी तकलीफ और नहीं बढ़ा सकता था, यह मान लो कि मैं यमराज की चौखट पर खड़ा हूं और मुझे एक हार्टअटैक आ चुका है।’’
यमराज की चौखट से वापस तुम्हें यह सावित्री करेगी, तुम शहर चलो, मैं तुम्हारा इलाज करवाउंगी।‘’
‘’नहीं मीरा, फिर भी हम एक नहीं हो सकते हैं।‘’
‘’क्यों…क्यों नहीं हो सकते हैं? क्या मेरी बेवफाई के कारण? मैं जानती हूं और मानती भी हूं कि मैंने दो अलग-अलग पुरूषों से प्रेम किया है, लेकिन आर्यन से मेरा प्रेम केवल एक भ्रम था वह छलावा था, मैंने कभी उसे टूटकर प्यार भी नहीं किया था, उसने अपनी रईसी दिखाकर मुझे भटका दिया था, मैं बह गई थी पर मैंने अपनी कोई हद पार नहीं की थी।
उस समय मंदिर में जब मैं घायल हो गई थी तो लगा कि अब मेरा अंतिम समय आ गया, बस एक गहरी पीड़ा थी कि तुम्हें नहीं पा सकी पर मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि वे मुझे बचा ले ताकि कम से कम इस जन्म में तो तुम्हें पा लूं। तुम आशा की किरण बनकर आए, मैं जानती हूं तुम मुझसे आज भी बहुत प्यार करते हो, जितना मैं तुम्हें महसूस करती हूं उससे ज्यादा तुम मुझे महसूस करते हो।‘’
‘’मीरा प्लीज, इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं है।‘’
‘’मतलब है, बिल्कुल मतलब है।‘’
‘’मेरे पास कुछ भी नहीं है’’
‘’मुझे कुछ नहीं चाहिए, अगर तुम कहोगे तो मैं यहीं रूक जाउंगी, जो तुम करते हो वही सब करूंगी, गौशाला साफ करूंगी, लकड़ियां बीनकर लाउंगी, चूल्हें पर खाना बनाउंगी, बस राघव मुझे अपना लो, मत ठुकराओ मुझे।‘’
कहते कहते मीरा की आंखो से आंसू झरझर होकर बहने लगे। राघव को कुछ घबराहट सी लगने लगी, उसने पानी से भरे बाल्टी की ओर इशारा किया, मीरा ने गिलास में भरकर पानी दिया, लेकिन मुंह में ले जाने से पहले गिलास एक ओर गिरा और राघव दूसरी ओर।
मीरा सन्न रह गई, कुछ देर के लिए मानो उसके दिल की धड़कने ही बंद हो गई। शशांक और कबीर भी सकते में आ गए पर वे तुरंत बाहर आ गए और आसपास के घरों के दरवाजे खुलवाकर मदद मांगने लगे।
गांव के वैद्य ने राघव की जांच की और कहा, शायद हार्ट अटैक आया है, इन्हें पहले भी आ चुका है, अब तीसरा आया तो जानलेवा हो सकता है, अब आपरेशन जरूरी है, पर वह तो शहर में ही होगा।
मीरा के तो होश फाख्ता हो गए। उसी समय एक घोड़ागाड़ी का इंतजाम किया गया, जो कि बहुत ही ज्यादा इमरजेंसी के लिए यूज होती थी, चार गुनी कीमत पर, पर मीरा के लिए इस समय राघव से बढ़कर कुछ भी नहीं था।
घोड़ागाड़ी को भी धर्मशाला पहुंचने में चार घंटे लग गए थे, कबीर ने राघव का सिर अपने सीने से चिपकाया था, मीरा राघव के तलवों को सहला रही थी।
आधी रात से ज्यादा का समय हो गया था, वे हास्पिटल पहुंच गए थे….डाक्टर ने जांच करके कहा की हार्टअटैक तो नहीं था, गैस थी जो सीने में चढ़ गई थी, उसी का दर्द था पर आपरेशन जरूरी है।
मीरा ने पूछा, ‘’क्या हम इन्हें दिल्ली ले जा सकते हैं?‘’
‘’बिल्कुल, वहां तो एक से बढ़कर एक अच्छे कार्डियोलाजिस्ट है।‘’
मीरा के लिए दिल्ली में राघव का इलाज करवाना सहज हो जाता, और राघव के परिचित भी तो थे।
दिल्ली के एम्स में राघव के दिल का सफल आपरेशन हो चुका था, राघव की फैमिली भी वहां पहुंची थी और बार-बार मीरा का शुक्रिया अदा कर रही थी।
एक हफ्ते के बाद….राघव को हास्पिटल से घर ले जाने की अनुमति मिल गई थी, मीरा ने तय कर लिया था कि वह पहले राघव को अपने आश्रम ले जाएगी, शेखर को इससे कोई एतराज नहीं हुआ, क्योंकि उसी के कारण तो राघव का पता चल पाया था।
मीरा, राघव के सामान की पैकिंग कर रही थी, राघव के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, मीरा के चेहरे पर सुकून।
अचानक राघव ने कहा,’’उस दिन तुमने मुझसे कुछ कहा था मीरा, आज मैं तुमसे कहना चाहता हूं। तुमने मेरे इंतजार में अपना पूरा जीवन लगा दिया, पता नहीं क्यों मुझ में जीने की इच्छा ही खत्म सी हो गई थी, दोबारा से तुम्हारे पास आना चाहा तो इस बीमारी ने घेर लिया था, इलाज करवाने की इच्छा नहीं हुई, तुम्हें फिर से कष्ट नहीं देना चाहता था, पर तुम्हारी तड़प ने मुझे मजबूर कर दिया है मीरा….मुझसे शादी करोगी मीरा?‘’
आगे कुछ कहने सुनने को शेष बचा ही नहीं था, मीरा की आंखे छलछला गई और वह राघव की खुली बाहों में समा गई। सालों बाद मीरा फिर से दुल्हन बनी थी, वही गुलाबी रंग का लंहगा पहने, राघव ने भी गुलाबी रंग की मैचिंग शेरवानी पहन रखी थी। मंडप में जन्म जन्मातंर के दो प्रेमी शादी की सारी रस्में निभाने लगे थे।
आश्रम के एक बुजुर्ग दम्पत्ति ने मीरा का कन्यादान किया, वहां उपस्थित सभी जनों की आंखे भीग आई थी, कबीर की नजरों मे राघव और मीरा की जगह किसी मां बाप से कम नहीं थी, भले ही वह इन्हें भैया और दीदी ही कहता था।
सभी मेहमानो को विदा करते करते रात हो गई थी। मनीषा ने मीरा और राघव को एक सुंदर से सजे हुए कमरे में पहुंचा दिया, वह कमरा गुलाब चमेली के फूलों से सजा हुआ था।
मीरा का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसकी नजरें नींची हो गई, राघव ने झुककर उसके माथे को चूम लिया…मीरा सकुचाकर पीछे हो गई।
राघव ने कहा, ‘’रात गुजर जाएगी यूं शरमाते सकुचाते, उन प्यार भरे एहसासों को हम महसूस कब करेंगे, तुम्हारी झुकी हुई नजरों की तपिश से मैं पिघल रहा हूं, माथे पर सजाए मेरे नेह का बंधन, अंधेरों पर फैली ये मीठी मुस्कान, सदियों का सफर अब बीत चुका है, मीठे लम्हें हमारे हैं, तुम्हारी खुशबू से मेरी रूह का कोना-कोना महक उठा है।‘’
मीरा ने आंखे उठाकर राघव को देखा और पूछा, ‘’अरे वाह, अभी भी शायरियां चोरी करते हो।‘’
राघव ने ना में सिर हिलाते हुए कहा,’’ना…यह शायरी नहीं यह तो मेरे जज्बात हैं, शायरी तो यह है, हां इसे चोरी का कह सकती हो….
‘’बिंदिया, काजल, गजरा, झुमके सब हटा दो, खींचकर बांधो जुल्फों को, एक लट गाल पर रहने दो।‘’ कहकर राघव ने मीरा को अपनी बाहों में भर लिया।
आसमान का चमकता चांद, हवा के झोंके से झूमते पेड़ पौधे और सारा जहां इनके प्यार की गवाही दे रहा था।
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