कुछ पलों के लिए मीरा का दिमाग मानों शुन्य सा हो गया, वह कबीर को एकटक देखे जा रही थी, उसे पहचानने की कोशिश कर रही थी। पूरे बारह साल बाद वो कबीर को देख रही थी, उस समय यह पांच साल का नन्हा सा, क्यूट से चेहरे वाला बच्चा था, अब चेहरे पर हल्की दाढ़ी मूंछ आ गई थी। अब वह पहचान में आ गया था, अगर कबीर न बताता कि वह कौन है तो शायद ही मीरा उसे पहचान पाती।
‘दीदी, क्या हुआ?‘ शशांक ने मीरा का कंधा पकड़कर हिलाते हुए पूछा।
मीरा ने अपना माथा सहलाते हुए कहा, ‘’नहीं, नहीं…कुछ नहीं।‘’
फिर शशांक ने कबीर से पूछा, ‘’क्या तुम मेरी दीदी को जानते हो?‘’
‘’हां, बिल्कुल जानता हूं, यह तो मेरे जीवनदाता की बहुत ही प्यारी सी दोस्त हैं।"
अब मीरा ने शशांक से पूछा, ‘तुमने मुझे पहचाना कैसे? क्योंकि जब मैं तुमसे मिली थी तब तुम केवल पांच साल के थे और इतनी छोटी सी एज में कोई बच्चा किसी का फेस कैसे याद रख सकता है?‘
‘’हां दीदी, सही कहा आपने, पर राघव भैया के पास आपकी कई सारी फोटो थी और मैं पांच साल का जरूर था पर आपने जो मुझे बचाया था वह मुझे अच्छे से याद था। मगर राघव भैया अक्सर आपकी फोटो को देखते थे और मैं उनसे पूछता था कि ये वही दीदी हैं ना जिन्होंने मुझे बचाया था और जिनके शोरूम से आप मेरे लिए ड्रेस लेकर आए थे। आपकी कुछ फोटो मेरे पास भी पड़ी है, आप अभी तक बिल्कुल वैसी की वैसी ही हैं, एक इंच का फर्क नहीं हुआ है।
मीरा का रोम रोम जैसे सिहर उठा....यह राघव को राघव भैया क्यों बोल रहा है?
‘’क्या तुम राघव के साथ नहीं रहते हो?‘’
‘’नहीं दीदी, राघव भैया तो कब का मुझे छोड़कर जा चुके हैं, वे कहां गए मुझे नहीं पता, मैं तो इतने सालों से उन्हें ढूंढ रहा हूं। क्या आपको पता है?‘’
मीरा ने बड़े ही अविश्वास से ना में सिर हिला दिया।
‘’तो…तो तुम किसके साथ रहते हो?‘’
‘’मैं तो अपने मम्मी डैडी के साथ रहता हूं, एक्चुली वह चीफ यानी आर्यन देखमुख न्यू बॉर्न बेबी पर एक एक्सपेरिमेंट कर रहा था, नोएडा के एक हास्पिटल में मेरा जन्म हुआ था, मैं मिडिल क्लास फैमिली से था, मेरे जन्म के अगली रात मुझे किसी ने हास्पिटल से मेरी मां के बगल से चुरा लिया था, और फिर राघव भैया ने मुझे बचाया था।
मेरी बॉडी पर पैदाइशी कुछ निशान थे जिसके बारे में बताकर मेरे मां बाप कई बार अखबार में इश्तिहार देकर मुझे ढूंढने की कोशिश कर रहे थे, पांच साल तक वे मुझे नहीं ढूंढ पाए थे, लेकिन उन लोगों ने उम्मीद नहीं छोड़ी, एक दिन राघव भैया ने पेपर में लिखा वह इश्तिहार पढ़ लिया था और मेरे पेरेंट्स ने अपने खोए हुए बेटे के शरीर पर जो निशान बताए थे वह हुबहु मेरी बॉडी पर भी थे, तो राघव भैया ने उनसे कान्टेक्ट किया और अपनी तसल्ली के लिए मेरा डीएनए टेस्ट भी करवाया, वे मेरे ही पेरेंट्स थे, राघव भैया ने निश्चिंत होकर मुझे उन्हें सौंप दिया और खुद दिल्ली आ गए, ये उसी समय हुआ था जब आप मुंबई से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में हम से मिलने आई थी।‘’
मीरा ने फिर पूछा, ‘’तुम्हारी और राघव की आखिरी मुलाकात कब हुई थी?
कबीर ने कहा, ‘’आर्यसमाज मंदिर में जो कांड हुआ था, आपको हास्पिटल पहुंचाने के बाद वे मुझसे मिलने आए थे और कहा था कि मैं मेहनत करूं, खूब पढ़ाई लिखाई करूं और वे चले गए। मीरा दीदी क्या आपको पता है कि राघव भैया कहां है? वे देवता इंसान हैं, मैं उन्हीं के कारण तो जिंदा हूं, मैं बहुत समय से उन्हें ढूंढ रहा हूं, न्यूज पेपर में भी इश्तिहार दे चुका हूं, उनका कहीं से कोई सुराग नहीं मिला, उनकी कोई फोटो नहीं है मेरे पास।‘’
मीरा को ऐसा लगा कि वह अभी इसी वक्त जमीन पर गिर जाएगी, उसने एक टेबल को कसकर पकड़ लिया।
‘’दीदी, आप ठीक तो हैं ना?
‘’हां…हां मैं ठीक हूं। मीरा ने अपना माथा सहलाते हुए कहा, काश वह कबीर से पहले ही मिल लेती तो शायद राघव को ढूंढ सकती थी, बारह साल से शशांक और कबीर एक दूसरे के दोस्त हैं, पर मीरा से उसकी मुलाकात आज हुई, पहले क्यों नहीं ख्याल आया कि यह कबीर वही कबीर हो सकता है, शशांक इसके बारे में कितनी बातें करता रहता था। पर राघव कहां चला गया? क्यों चला गया? मुझे तो लगा था कि वह कबीर की परवरिश कर रहा होगा।
मीरा कबीर की बर्थडे पार्टी का उत्साह उमंग और खुशी कम नहीं करना चाहती थी, वह कबीर को ढांढस देते हुए बोली, ‘’हम राघव को जरूर ढूंढ लेंगे, पर आज तो सेलिब्रेशन की रात है ना, चलो केक काटो।‘’
कबीर अपने पेरेंट्स की परमिशन लेकर आज की रात आश्रम में ही रूक गया था।
आधी रात का समय हो चला था, पूरे आश्रम में सन्नाटा पसरा था केवल आश्रम के मेन गेट पर बैठे रात के दो गार्ड जगे हुए थे, और कुछ पालतू डाग भी थे जिनके भौंकने के हल्के फुल्के स्वर आश्रम के सीमित जगह तक ही सुनाई दे रहे थे पर वे इतने धीमें थे कि किसी की नींद में खलल नहीं डाल सकते थे।
एक मीरा ही थी जिसकी आंखो से नींद एकदम गायब थी। वह आश्रम की एक बिल्डिंग की छत पर खड़ी थी, आंखे नम थी और दिल में बेतहाशा दर्द भरा हुआ था।
अगर राघव ने कबीर को उसके मां बाप के पास पहुंचा दिया तो मेरे पास लौटकर क्यों नहीं आ गया? अब हमें साथ रहने में शादी करने में कोई रूकावट नहीं थी, सबकुछ तो ठीक हो चुका था।
फिर मीरा ने जैसे खुद को ही याद दिलाया कि कहां सबकुछ ठीक था, तुमने तो आर्यन को अपने दिल में बसा लिया था, उसकी शादी का प्रस्ताव स्वीकार करने वाली थी, यह घटना कहीं ना कहीं हमारे फिर से मिलने में आड़े आ चुका था।
तभी हल्की बारिश शुरू हो गई। मीरा के मन में भी एक बारिश शुरू हो चुकी थी, वह बारिश एक तेज सैलाब की तरह थी, वह खुद को बारिश से बचाने के लिए ना तो छत पर एक कोने बने शेड के अंदर गई और ना ही नीचे।
वह भीग जाना चाहती थी, उसकी आंखे लाल हो चुकी थी, राघव कहां हो तुम?…रह रहकर राघव का वह चेहरा याद आ रहा था जिसे उसने आखिरी बार देखा था। उस आर्यमंदिर में जब मीरा का सिर पत्थर की रेलिंग से टकराया था वह राघव बड़े ही प्यार अपनेपन और चिंतित स्वर में उसे दिलासा दे रहा था, कुछ नहीं होगा तुम्हें मीरा, मैं तुम्हें बचा लूंगा, बस अपनी आंखे खुली रखना मीरा।
पर मीरा का शरीर जवाब दे रहा था, इतने दर्द में भी मीरा की नजरें राघव पर ही टिकी थी।
वह राघव को ऐसे देखने का मौका नहीं छोड़ना चाहती थी, वह चाहती थी राघव अब उसके पास रूक जाए, जिंदगी में एक ठहराव आ जाए, एक सुकून आ जाए।
बारिश अब तेज हो गई थी और हवा भी जिससे मीरा के लम्बे बाल हवा में लहराने लगे थे, अचानक उसे राघव पर गुस्सा आ गया। आखिर यह सब करके वह साबित क्या करना चाहता था? कहीं….कहीं उसे कोई और लड़की तो नहीं पसंद आ गई जिसके कारण वह मुझे बचाने और कबीर को उसके अपने मां बाप को सौंपने के बाद चला गया हो, आखिर उसे भी तो एक लाइफ पार्टनर की जरूरत होगी, सुमेधा से तो उसकी शादी एक नाटक था एक दिखावा, जो कभी हुआ ही नहीं पर क्या पता? उसे कोई मिल गई हो।
पर मीरा के दिल की गहराई से आवाज आई...जब तक उससे मिल नहीं लेती कोई भी राय बनाना ठीक नहीं है, मैं राघव को ढूंढ निकालूंगी, उसका कोई हक नहीं बनता इस तरह से मुझे और कबीर को छोड़कर जाने का। राघव को पता था कि आर्यन ने मुझे बेवकूफ बनाकर मेरे जज्बातों के साथ छल किया था, प्यार तो मैं हमेशा केवल राघव से ही करती थी।
अगले दिन नाश्ते के बाद मीरा ने कबीर से पूछा, ‘तुम राघव को कैसे ढूंढ रहे हो?
कबीर ने कहा, ‘जैसा मैंने आपको कल बताया था कि न्यूज पेपर पर कई बार उनके लिए मैसेज छोड़ा, अपना फोन नंबर भी दिया और सोशल मीडिया के जरिए भी उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की…कहीं से कोई सुराग नहीं मिला, एक्चुली मेरे पास उनकी कोई फोटो भी नहीं है, और वे बारह साल पहले मुझे छोड़कर चले गए थे, अब मुझे उनका चेहरा बहुत अच्छे से याद भी नहीं है, वरना मैं उनका स्केच बनवा कर सारे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देता, क्या पता वे अब तक मिल ही गए होते?‘’
मीरा ने एक गहरी सांस ली और कहा, ’’तुम्हें उनका चेहरा नहीं याद है पर मुझे तो याद है, मैं राघव का स्केच बनवाउंगी।‘’
यह सुनते ही कबीर खिल उठा और बोला,’’अरे वाह, इससे तो हमारा काम आसान हो जाएगा और हम उस स्केच को ग्राफिक डिजाइन से कलर करके काफी हद तक राघव भैया जैसा बना सकते हैं, इससे वे इस दुनिया के किसी भी कोने में होंगे तो मिल जाएंगे।‘’
शशांक ने मीरा से कहा, ‘’दीदी, अपने इस आश्रम में दो तीन बच्चे हैं जो स्केच बहुत अच्छा बनाते हैं, हम उनकी मदद ले सकते हैं, मैं उन्हें अभी बुलाकर लाता हूं।‘’ शशांक ने कहा और रूम के बाहर निकल गया।
मीरा ने राघव के तीन चार स्केच बनवा लिए थे, एक तो वह जिसमें वह बिना दाढ़ी मूंछ के एकदम दुबला पतला सा राघव था, जब मीरा की शादी उससे होने वाली थी और दूसरा जब वह एक अंडरकवर ऑफिसर के रूप में काम कर रहा था…उसमें राघव ने अपना वेट बढ़ाया हुआ था, और घनी दाढ़ी मूछें रखी हुई थी.
पता नहीं अब वह किस लुक में रह रहा होगा?‘ मीरा ने सोचा।
स्केच बनवाने के बाद कबीर और शशांक ने एआई और ग्राफिक डिजाइन की मदद से राघव की फोटो को और भी ज्यादा क्लीयर कर दिया।
मीरा लम्बे समय केवबाद राघव की कोई फोटो देख रही थी, भले ही हाथ की बनी हुई थी, पर ऐसा लग रहा था कि उसे कैमरे से खींचा गया हो। यह शशांक और कबीर की टेक्नोलॉजी के नालेज का कमाल था।
पर अभी भी मीरा को एक शंका हो रही थी, वह शशांक और कबीर से बोली, ‘’करीब बारह साल हो गए हैं, पता नहीं अब वह कैसा दिखता होगा, शायद और भी मोटा या फिर बहुत पतले भी हो सकते हैं, क्या पता उन्होंने अपना हुलिया भी बदल लिया हो? क्या पता? कोई संन्यासी बन गए होंगे, या कहीं किसी एकांत जगह शांति से अपनी जिंदगी बिता रहा होंगें?‘’
कबीर ने मीरा से कहा, ‘’दीदी, वे अब किसी भी हुलिये में हों, हम उन्हें ढूंढ निकालेंगे। आप इतने सालों बाद मुझे मिली हैं….शशांक के जरिए, दीदी ऊपर वाला जरूर कोई ना कोई रास्ता हमें जरूर दिखाएगा वे खुद ही जरिया बना देंगे जिससे हम राघव भैया तक पहुंच सकें, उनसे मिलकर मैं उनसे नाराज हो जाउंगा, देखिए ना मीरा दीदी, कम से कम एक बार मिलने तो आना चाहिए, कोई मैसेज भी नहीं किया, वे मुझे मनाएंगे उसके बाद ही मैं उनसे बात करूंगा।‘’
मीरा, कबीर को इस भोलेपन पर द्रवित हो उठी, मीरा से ज्यादा तड़प तो कबीर के अंदर थी राघव से मिलने की। पूरी तैयारी करने के बाद शशांक और कबीर ने अपने-अपने सोशल मीडिया के सारे अकाउंट में राघव की फोटो और अपना फोन नंबर डाल दिया। उसमें राघव के बारे में पूरी जानकारी दे दी गई थी, उसे आखिरी बार कब और किसने देखा था यह भी लिख दिया गया था।
राघव के बारे में केवल मीरा और कबीर ही नहीं, बल्कि उसके स्कूल कालेज के दोस्त....उसकी फैमिली के लोग और खुद जतिन भी जानने के लिए बेचैन हो रहे थे, पर उन लोगों ने इतनी शिदृत से राघव की खोज करने के बारे में नहीं सोचा था।
सभी को यही लग रहा था कि राघव कबीर के साथ कहीं एकांत में गुमनाम जिंदगी बिता रहा है। राघव के जानने वाले सभी लोगों ने राघव के इस फोटो को खूब शेयर किया और राघव के बारे में कोई भी जानकारी देने पर उसे उचित इनाम की घोषणा भी कर दी गई।
करीब महीना भर होने को आया था, पर मामला ज्यों का त्यों था, राघव के बारे में कहीं से कोई खबर नहीं मिली थी।
यह हैरानी की बात थी, इस जमाने में जब चीजें तेजी से वायरल हो जाती हैं और कोई खोया हुआ इंसान चौबीस घंटे के अंदर मिल जाता है, वहां राघव के बारे में कोई सुराग न मिलना एक आश्चर्य की बात थी।
जितने उत्साह से कबीर और मीरा ने राघव को ढूंढने का प्रयास किया था, एक महीना पूरा होते-होते वह निराशा में बदल गया।
शशांक, कबीर और मीरा अपने कमरे में दुखी और उदास होकर बैठे थे, आगे की पढ़ाई के लिए शशांक को हिमाचल और कबीर को मुंबई के लिए निकलना था।
राघव की तीन चार स्केच वाली फोटो जिसे मीरा ने फ्रेम करवाकर दीवार पर लगाया था, उसकी ओर देखकर शशांक ने कहा, ‘’मुझे लगता है कि अब शायद राघव भैया इस दुनिया में नहीं है.....’’
यह सुनते ही मीरा सिहर उठी और कबीर को भी कंपकंपी छूट गया, कबीर ने उसका हाथ पकड़कर कहा, ‘’ऐसा मत बोल मेरे भाई, शुभ शुभ बोल।‘’
‘’मैं आप दोनों को हर्ट नहीं करना चाहता हूं, पर आखिर अभी तक इनके बारे में कोई मैसेज क्यों नहीं आया? अगर ये देश के किसी कोने में होते तो जरूर मिल जाते।‘’
मीरा खुद को सामान्य करते हुए बोली, ‘’मुझे लगता है कि अब तुम दोनों को अपनी पैंकिग स्टार्ट कर देनी चाहिए, बाकी राघव को तो हम लोग ढूंढ ही रहे हैं।‘’
तभी मीरा के रूम में दो छोटी छोटी बच्चियों ने प्रवेश किया। एक की उम्र चार साल थी, एक की छ: साल, ये दोनों मनीषा की बेटियां थी, मनीषा अपने ससुराल से आश्रम आई थी, यही आश्रम उसका मायका था। मीरा ने दोनों बच्चियों को गोद उठाकर दुलारते हुए कहा, ‘’अरे मेरी हनी-बनी कैसी हैं?‘’
फिर मनीषा भी अंदर आते हुए मीरा से लिपट गई, और बोली, दीदी कैसी हो?‘’
मीरा बोली, ‘’मैं तो एकदम ठीक हूं, तुम बताओ, तुम्हारा हिमाचल टूर कैसा रहा? सुना है वहां खूब साधू संतों से मुलाकात हुई है।‘’
‘’हां दीदी, यह तो बस ऐसे ही, मेरे हसबैंड का गांव वहीं है, वे अपनी कुलदेवी की पूजा करने के लिए साल में एक बार गांव जरूर जाते हैं, इस बार बेटियों का मुंडन भी वहीं करवाया है।‘’
तभी मनीषा की नजर दीवार पर लगी राघव की फोटों पर गई, वह चौंक गई, ‘’अरे यह तो राघव जी की फोटो हैं ना, हिमाचल के धर्मशाला के एक छोटे से गांव में रहते हैं, इनकी फोटो यहां कैसे?‘’
मनीषा ने कहा, तो मानो शशांक, कबीर और मीरा उछल ही पड़े थे।
क्या होगा आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'बहरूपिया मोहब्बत'!
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