शशांक मीरा के कमरे में उसके गोद में लेटा हुआ था, मीरा ने कुंती से रिक्वेस्ट कर के शशांक को अपने पास रहने की परमिशन मांग ली थी। कुंती भला अपनी बेटी को किसी चीज़ के लिए कैसे मना कर सकती थी, हालांकि कुंती के लिए शशांक का दुख ऐसा कोई बहुत बड़ा दुख नहीं था, यहां तो यह सब अक्सर होता रहता था, लोग अनाथ बच्चों को गोद लेते थे, उन बच्चों के साथी कुछ दिन दुख मनाते थे, फिर भूलकर नए दोस्त बना लेते थे। कुंती अक्सर ऐसे बच्चों को कुछ समय के लिए ऐसे ही अकेला छोड़ देती थी जिससे वे अपने दुख से उबर जाएं, कुंती जानती थी कि आज नहीं तो कल शशांक को भी कोई ना कोई बेऔलाद माता पिता अपना लेंगे।
मीरा की गोद में लेटे हुए शशांक ने अचानक ही मीरा से पूछा, ‘’अच्छा दीदी, यह बताइए इस समय यशस्वी क्या कर रहा होगा?‘’
मीरा चौंक उठी, वह तो कुछ और ही सोच रही थी….वह राघव के बारे में सोच रही थी, अपने सच्चे प्रेमी के बारे में सोच रही थी, जिसे कुछ समय पहले मीरा ने दगाबाज और बहरूपिया कहा था।
मीरा ने घड़ी देखी, रात के दस बज रहे थे, मीरा ने सोचते हुए कहा, ‘’इस समय वह अपनी मां की गोद में लेटकर तुम्हारे बारे में ही सोच रहा होगा।‘’
शशांक झट से उठकर बैठ गया और चहकते हुए बोला, ‘’सच में दीदी, मैं भी यही सोच रहा था, वह अपनी नई मां को मेरे बारे में बता रहा होगा।‘’ फिर दो तीन सेकेंड चुप रहने के बाद शशांक ने फिर कहा, ‘’दीदी, आप मुझे उसके पास लेकर चलेंगी? ‘’
सुनकर मीरा ने अपने होंठ भींच लिए, इतना तो वह जानती थी कि गोद लेने के बाद अनाथ आश्रम का कोई भी इंसान बेवजह बच्चा गोद लिए कपल से नहीं मिलता है, और यह तो दूसरा केस था, यहां तो दो बिछड़े दोस्तों की बात थी।
किसी तरह शशांक का मन बहलाना होगा, उसे यशस्वी को भूलना होगा दूसरे बच्चों से दोस्ती करनी होगी। शशांक अभी बच्चा है कुछ ही दिनों में उसका दिमाग डाइवर्ट हो जाएगा।
मीरा बोली, ‘’हां….हां क्यों नहीं, पर उसके पहले आपको मुझे यह आश्रम पूरा दिखाना होगा।‘’
‘’बाप रे, यह पूरा आश्रम, यह तो बहुत बड़ा है, एक दिन में पूरा घूम ही नहीं सकते। आपको शायद नहीं पता यहां आश्रम में छोटे-छोटे खेत भी हैं। वो सब घुमेंगी तो हालत खराब हो जाएगी, बहुत जल्दी घुमेंगी तो भी दो दिन तो लग ही जाएंगे।‘’
‘’तो ठीक है, दो दिन में घुमा दो, तब मैं भी आपकी कोई बात मानूंगी।‘’
शशांक के लिए यशस्वी से बढ़कर कोई नहीं था, उससे मिलने के लिए शशांक कुछ भी कर सकता था।
‘’हां…हां दीदी, क्यों नहीं? कल मैं आपको आश्रम का स्कूल और बगीचा और स्वीमिंग पूल दिखाउंगा।‘
मीरा के ओके कहते ही शशांक का चेहरा भी खिल उठा, मीरा फिर बोली, ‘’देखो रात के ग्यारह बजने वाले हैं, अब अच्छे बच्चों की तरह सो जाओ।‘’
मीरा की बात मानते हुए शशांक बेड के एक ओर आंखे बंद करके लेट गया।
मीरा ने शशांक का एडमिशन आश्रम के स्कूल से हटाकर बाहर के एक नए स्कूल में करवा दिया था, ऐसा इसलिए ताकि वह यशस्वी को ज्यादा याद न कर सके।
कुछ दिन बीत गए…
शशांक मीरा और मनीषा के साथ इतना घुल मिल गया कि वह यशस्वी को लगभग भूल ही गया था, इसके अलावा उसके पास नए स्कूल की भी बहुत सारी बातें थी। पहले तो हर बात पर शशांक उसी का जिक्र करता था, मैं और यशस्वी यहां स्वीमिंग करते थे, यहां पर आम तोड़ते थे, हम लोग तालाब में मछलिया भी मारते थे।
फिर धीरे-धीरे यशस्वी का नाम कम होने लगा, और फाइनली वह दिन भी आया जब शशांक मीरा के साथ पौधों में पानी दे रहा था, वह बार-बार अपने स्कूल के एक नए दोस्त का नाम खूब ले रहा था। मीरा ने राहत की सांस ली कि चलों शशांक उसे भूल गया, आई होप यशस्वी भी इसे भूल गया होगा।
भगवान करे शशांक अपने इस नए दोस्त के साथ खूब खुश रहे।
‘’तुम्हारे इस नए दोस्त का नाम क्या है?‘’
‘’कबीर‘’ शशांक ने कहा।
कबीर नाम सुनते ही मानो मीरा के हाथ थम गए...कबीर...वही कबीर जिसे राघव ने बचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। पर यह कैसे हो सकता है? राघव तो कहीं अनजान जगह चला गया है फिर कबीर यहां कैसे हो सकता है?
तभी शशांक की आवाज मीरा के कानो में पड़ी, ‘’अरे दीदी, इस गमले में पानी भर गया है, देखिए तो मिट्टी बह रही है।‘’ शशांक ने कहा तो मीरा का ध्यान भंग हो गया।
ध्यान हटने के कारण मीरा ने पानी देने वाले पाइप को एक ही गमले में लगा दिया था, फिर मीरा ने अपने सिर पर हल्की सी चपत लगाकर खुद से ही मन ही मन कहा, ‘क्या कबीर नाम का एक ही लड़का है इस दुनिया में, इस आश्रम में भी तीन लड़के हैं जिनका नाम कबीर है, दो छोटे बच्चे हैं और एक बुजुर्ग, मैं भी कुछ ज्यादा ही सोचने लगती हूं।‘
फिर शशांक आगे बोला, ‘’पता है दीदी, कबीर डेली नए-नए लंच लेकर आता है, कभी नूडल्स, कभी एग रोल, कभी सैंडविच, कभी फ्रेंच फ्राई तो कभी कटलेट, आज तो वह चिकन टिक्का लेकर आया था, वह बहुत ही टेस्टी था। दीदी मैं केवल पराठा अचार या पराठा सब्जी ही लेकर जाता हूं, मुझे अच्छा नहीं लगता है कि मैं अपने दोस्त को रोज एक जैसा लंच खिलाउं।‘’
यह सुनकर मीरा को थोड़ा बुरा लगा लेकिन अनाथ आश्रम में मौजूद दो सौ से भी ज्यादा बच्चों के लिए इतने तरह के स्कूल लंच बनाना पॉसिबल नहीं था, और अंडा मांस मछली तो कुछ वेजिटेरियन बुजुर्गों के कारण नहीं बनता था।
शशांक फिर बोला, ‘’दीदी, मुझे भी कुछ बढ़िया लंच में लेकर जाना है, और कबीर को खिलाना है।‘’
‘’अच्छा मैं कुंती मां से बात करूंगी, कल मैं तुम्हें चीज सैंडविच बनाकर दूंगी, ओके और कोशिश करूंगी कि तुम भी कुछ अच्छा लेकर जाओ।‘’
थैंक्यू दीदी‘’ कहकर शशांक मीरा से लिपट गया।
मीरा का मन नहीं मान रहा था, उसे लग रहा था कि कहीं यह कबीर वही कबीर हुआ तो, मीरा ने शशांक से पूछा, अच्छा बताओ कबीर के घर में कौन कौन हैं?
शशांक ने कहा, ‘’उसके मम्मी पापा और एक छोटी सी गोलू मोलू सी सिस्टर है, जो अपनी मम्मी की गोद में रहती है।‘’
मीरा ने गहरी सांस ली, यह राघव का कबीर नहीं होगा।
एक दिन मीरा, शशांक और दस बारह बच्चों को होमवर्क करवा रही थी कि मनीषा ने कमरे में प्रवेश करते हुए शशांक और बाकी अन्य बच्चों से कहा, ‘’तुम लोग जल्दी से अपना हुलिया ठीक कर लो, एक कपल आएं हैं उन्हें बच्चा गोद लेना है, वे लोग पांडिचेरी के हैं, वही जहां से समुद्र बहुत साफ दिखता है, कल तुम लोगों ने टीवी पर पांडिचेरी देखा था ना, देखो किसकी किस्मत जागती है, तुम मे से कौन पांडिचेरी जाता है।‘’
यह सुनकर तो सारे बच्चे खुश हो गए पर शशांक अपने में ही सिमट गया, वह जानता था कि पांडिचेरी बहुत दूर है, उसका दोस्त कबीर छूट जाएगा।
मीरा को अपने अंदर कुछ चुभन महसूस हुई, इस आश्रम से अक्सर ही कोई न कोई बच्चा गोद लिया जाता था, यह अच्छा भी था क्योंकि उन सभी अनाथ बच्चों को एक परिवार मिल जाता था लेकिन मीरा उनमें से कई से दिल की गहराई से जुड़ गई थी, खासकर शशांक से तो जैसे मां बेटे का रिश्ता बन गया था। वह ज्यादातर मीरा के साथ ही रहता था, अगर उस कपल ने शशांक को ही पसंद कर लिया तो।
शशांक को छोड़कर सारे बच्चे तैयार होने चले गए और शशांक मीरा से लिपटते हुए बोला, ‘’दीदी, मुझे कहीं नहीं जाना है, आप ही मेरी मम्मी डैडी हो और कबीर भी तो यहीं है।‘’
मीरा फिर से शशांक को वैसा ही दुखी नहीं देख सकती थी जैसा यशस्वी के जाने से वह हुआ था।
मीरा ने मनीषा से इशारे में कुछ कहा।
मनीषा बोली, ‘’कोई बात नहीं दीदी, वैसे भी इतने बच्चे हैं, किसी को ध्यान नहीं आएगा कि शशांक हॉल में नहीं है, आप शशांक के साथ यही रहिए, मैं सबकुछ संभाल लूंगी।
पांडिचेरी वाले कपल एक बच्चा पसंद करके उसे पूरी कानूनी कार्यवाही के बाद गोद लेकर चले गए थे। कुछ बच्चे उदास थे और कुछ खुश।
समय अपनी लय में बीतता चला जा रहा था….आज मनीषा दुल्हन बनी थी, और बारात के आने का इंतजार कर रही थी, कुंती का यह प्रयास रहता था कि कम उम्र में जो लड़कियां विधवा हो गई हैं और अपने ससुराल से निकाली जा चुकी हैं, उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर उनकी दूसरी शादी करवा दी जाए।
इसमें समाज का भी बहुत विरोध झेलना पड़ा था, पर मीरा ने कुंती के इस काम को पूरे दमखम से किया, हालांकि मीरा की इमेज समाज में बहुत अच्छी थी, अब उसने कुंती के बहुत सारे काम संभाल लिए थे, और अपने प्रयास से आश्रम की कई विधवाओं को अच्छी जगह नौकरी करके शादी करने के लिए प्रेरित भी किया। इसी प्रयास में मनीषा की भी शादी तय हो गई थी।
‘’बारात आ गई है, चलो‘’ मीरा ने कमरे में प्रवेश करते हुए लाल जोड़े में दुल्हन बनी मनीषा से कहा।
मनीषा की आंखों में आंसू थे, इस आश्रम में एकमात्र मीरा ही उसकी सहेली थी।
मीरा ने उसके आंसुओं को देखकर कहा, ‘’अरे अभी मत रो, इसे विदाई के लिए बचाकर रखो।‘’
मनीषा, मीरा से लिपटते हुए बोली, ‘’दीदी, मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकती।‘’
मीरा ने उसकी चिन को ऊपर उठाकर उसके चेहरे का आंसू पोंछते हुए कहा, ‘’अरे पगली, तुम तो यहां से केवल आधे घंटे की दूरी पर हो, जब कहोगी मैं स्कूटी उठाकर तुम्हारे घर पहुंच जाउंगी या फिर जब भी तुम्हारा मन करे तुम यहां अपने हसबैंड के साथ आ जाना, यह हमेशा तुम्हारा मायका रहेगा, और मीरा जब तक जिंदा रहेगी तुम्हारे लिए हाजिर रहेगी।‘’
कुछ साल और बीत गए, दिल का दौरा पड़ने के कारण कुंती ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था...बलवंत सिंह की मौत बहुत पहले ही हो चुकी थी, और अमरीश को उम्रकैद की सजा हुई थी जिसे वे तिहाड़ जेल में काट रहे थे।
मीरा का भाई चिराग कभी-कभी मीरा से मिलने आ जाया करता था, उसने एक दो बार मीरा को शादी करके घर बसा लेने के लिए कहा पर मीरा ने मना कर दिया था।
अब मीरा ने आश्रम का पूरा कार्य भार संभाल लिया था, आश्रम को भरपूर चंदा मिलता था जिससे मीरा ने आश्रम को और भी बड़ा बनवा दिया था और इसके साथ-साथ मीरा ने मेंटली और फिजिकली डिस्टर्ब बच्चों के लिए एक हास्टल बनवा दिया था, अब वह बड़े-बड़े सेमिनार में जाती थी, विधवा विवाह को उसने खूब प्रोत्साहन दिया।
मीरा ने समाज के कल्याण के लिए केवल आश्रम ही नहीं बल्कि बाहर भी काम करना शुरू कर दिया। वह सड़क किनारे रहने वाले गरीब बच्चों को अपने ही आश्रम के स्कूल में पढ़ाती थी।
शशांक ने बारहवीं पास कर ली थी और अब वह कालेज जाने की तैयारी कर रहा था, इतने सालों तक कबीर के साथ पढ़ने के बाद अब उससे बिछड़ने का गम हो रहा था, शशांक बीटेक करने के लिए हिमाचल जा रहा था और कबीर मेडिकल की पढ़ाई के लिए मुंबई।
मीरा ने शशांक को समझाया कि कोई बात नहीं, इस वीडियो कॉल के जमाने में तुम लोग हर समय एक दूसरे से जुड़े रह सकते हो, और एक समय के बाद तो सबको अलग-अलग रास्ते पर निकलना ही पड़ता है, सबकी अलग-अलग मंजिल होती है, सपने होते हैं, तुम्हारी दोस्ती हमेशा सलामत रहेगी।‘’
‘’दीदी, कल कबीर का बर्थडे है तो क्या हम आश्रम में सेलिब्रेट कर लें?‘’ शशांक ने मीरा से पूछा।
‘’अरे यह भी कोई पूछने वाली बात है क्या? बिल्कुल करो, तुम और भी दोस्तों को इनवाइट कर लेना।‘’
अगले दिन शाम के समय आश्रम के बगीचे के बीचों-बीच कबीर के लिए बर्थडे पार्टी रखी गई, शशांक और कबीर की दोस्ती करीब दस ग्यारह साल पुरानी थी पर वह कभी इस आश्रम नहीं आया, मीरा भी बिजी रहती थी और शशांक अक्सर कबीर के घर ही चला जाता था।
शाम के छ: बजे तक शशांक, कबीर को लेकर आ गया था, ‘’आओ मैं तुम्हें अपनी दीदी से मिलवाता हूं।‘’ शशांक ने कबीर से कहा, और रंगबिरंगी लाइट और गुब्बारों से जगमग हो रहे बगीचे को देखकर कबीर खिल उठा, वह शशांक से बोला, ‘’अरे वाह, यह सब मेरे लिए किया गया है।‘’
‘’आफकोर्स तुम्हारे लिए।‘’
‘’यह मेरी लाइफ का सबसे अच्छा बर्थडे होने वाला है‘’ कबीर ने कहा।
‘’हां, वह तो है।‘’
मीरा स्नैक्स और डिनर टेबल पर लगवा रही थी, छोटे बच्चे उतावले हो रहे थे कि कब केक कटेगा कब वे डांस करेंगे और कब वे टेस्टी टेस्टी खाना खाएंगे।‘’
शशांक ने कबीर का परिचय मीरा से करवाया, ‘’दीदी, यह मेरा बेस्ट फ्रेंड कबीर।‘’
मीरा मुड़ी और मुस्कुराती हुई कबीर से कहा, ‘’हैलो, बेटा….कैसे हो?‘’
मीरा को देखते ही कबीर की आंखे मानों बुत हो गई, वह स्तब्ध होकर मीरा को देख रहा था।
कबीर क्या हुआ? शशांक ने पूछा।
कबीर ने कहा, ‘मीरा दीदी, आप….आप यहां हैं?‘
‘’सॉरी, क्या कहा तुमने मैं समझी नहीं?‘’ मीरा ने सवालिया नजरों से कबीर को देखकर कहा।
‘’मीरा दीदी, आपने मुझे नहीं पहचाना मैं कबीर, वो छोटा सा बच्चा राघव भैया के साथ मुंबई में आपको मिला था। एक बार स्कूल में मेरा एक्सीडेंट हो गया था तो आप ही तो मुझे मेरे घर लेकर गई थी।‘’
मीरा को जैसे चार सौ चालीस वॉल्ट का झटका लग गया हो, ‘’वो….वो कबीर तुम हो।‘’
यह मुलाकात क्या रंग लाएगी?
कबीर किन लोगों के साथ रहता है?
कबीर ने मीरा को कैसे पहचान लिया?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'बहरूपिया मोहब्बत'!
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