मंदिर की आरती देखने के बाद मीरा और मनीषा एक-एक दीया लेकर यमुना के किनारे उसी जगह पर आ गई जहां पर वे बैठी हुई थी, वही पर जलता हुआ दीया रखकर मनीषा ने हाथ जोड़कर आंखे बंद कर ली और मन ही मन कोई मंत्र बुदबुदाने लगी। हालांकि मीरा बहुत ज्यादा पूजापाठ तो नहीं करती थी पर मनीषा को ऐसा करते देख कर मीरा ने भी हाथ जोड़कर आंखे बंद कर ली और जो भी मंत्र की लाइने उसे याद थी वह मन ही मन पढ़ने लगी।
पूजा करने के बाद मीरा अंदर ही अंदर कुछ हल्का सा महसूस कर रही थी। रात होते-होते वे आश्रम पहुंच गई थी, इस समय आश्रम के बगीचे से मिले-जुले फूलों की सुंगध फैली हुई थी।
दिल्ली शहर की चिल्ला चोट से एकदम दूर…आश्रम की दूसरी ओर एक बरामदा था जिसमें आश्रम में मौजूद सभी के लिए खाना बनता था, खाना बुजूर्ग औरतों की देख रेख में आश्रम की विधवाएं बनाती थी। स्वादिष्ट खाने की भीनी गंध मीरा की नाक में पहुंची, उसे ध्यान आया कि दोपहर से उसने कुछ खाया भी नहीं था और एक्सीडेंट के असर से उसे अभी तक कमजोरी महसूस हो रही थी।
मन में आया मनीषा से बोल दे कि उसके लिए खाने को कुछ ले आए। तभी कुंती को सामने से आता देख, जैसा की कुंती को आशंका थी कि राघव और अपने परिवार के बारे में जानने के बाद मीरा उदास और दुखी चेहरा लेकर आएगी, पर ऐसा कुछ नहीं था। मीरा के चेहरे पर हल्का सुकून था, वह कहीं से भी दुखी नहीं लग रही थी, हां तबीयत के कारण थोड़ी थकी हुई थी लग रही थी।
कुंती ने मीरा से कहा, ‘’बहुत देर लगा दी, तुम्हारी दवाई का टाइम भी हो गया है, मैं तो फोन करने वाली थी…तुम अपने रूम में चलो मैं तुम्हारा खाना वहीं भिजवा देती हूं।‘
‘’क्यों यहां सब अपने-अपने रूम में खाते हैं क्या?" मीरा ने पूछा।
‘’नहीं तो, बरामदे के पास एक हॉल है सब वहीं खाते हैं।’’
‘’तो फिर मुझे अलग से क्यों खिला रही हैं? मैं भी सबके साथ खाउंगी।‘’
कुंती के चेहरे पर लम्बी मुसकुराहट खिंच गई, ‘’यह तो बहुत ही अच्छी बात है।‘’ फिर कुंती एक लड़की को अपने पास बुलाकर उससे पूछती हैं कि, ‘’खाना तैयार हो गया है क्या?‘’
‘’हां चाची, अब सारे अंकल आंटी, दादी और दादाजी को बुलाने जा रही हूं‘’ उस लड़की ने कुंती से कहा।
ठीक है, उनके साथ मीरा का भी खाना लगा देना।
‘’जी चाची‘’ कहकर वह लड़की चली गई।
मीरा ने कुंती से पूछा, ‘’मां, ये सारे अंकल,आंटी और दादा दादी कौन हैं?‘’
‘’अरे इस आश्रम के बुजुर्ग, कुछ को उनके बच्चों ने यहां छोड़ा है, कुछ तो अपनी मरजी से यहां आए हैं, कुछ के बच्चे फारेन में सेटल हो गए हैं तो वे भी अपना टाइम पास करने के लिए यहां आकर रहते हैं, यहां सबसे पहले खाना आश्रम के सारे बुजुर्गों को परोसा जाता है, उसके बाद बच्चे खाते हैं फिर जो औरतें हैं, वे सबसे बाद में खाती हैं।‘’
‘’ओह, बहुत ही अच्छा सिस्टम हैं।‘ तभी मीरा की नजर दूर एक चमकते बोर्ड पर पड़ी, उसपर स्कूल का नाम लिखा था, ‘’यहां पर स्कूल भी है क्या?‘’
‘’हां, हमने अपने यहां के अनाथ बच्चों के लिए एक स्कूल भी खोला है, जो अभी केवल पांचवी तक है, एक बार उसे मान्यता मिल जाए तो हमारी कोशिश रहेगी कि हम बारहवीं तक का स्कूल खोल दें, यहां पर जितने बुजुर्ग हैं उनमें से कुछ रिटायर टीचर और स्कूल के प्रिंसिपल भी हैं, वे ही बच्चों को पढ़ाते हैं।‘’
अरे वाह मां यह तो बहुत ही अच्छी बात है, बच्चों को भी अच्छे टीचर मिल जाएंगे और बुजुर्गों का भी टाइम पास हो जाएगा।‘’
कुंती मीरा को हॉल की ओर ले जाते हुए बोली, ‘’हां, हमारी कोशिश यही रहती है कि यहां आकर किसी को अपने घर की कमी न महसूस हो, और कोई बोर न हो, सबको बिजी रखने के लिए हमने कुछ न कुछ काम दे रखा है, यहां कुछ औरतें तो अपना खुद का बिजनेस भी करती हैं।‘’
मीरा ने कहा, ‘’हां मां, मनीषा ने मुझे बताया था कि वे कपड़े सिलती हैं, स्वेटर बुनती हैं, क्रोशिए का काम करती हैं और खिलौने भी बनाती हैं।‘’
‘’अच्छा, इसके अलावा यहां की औरतें अचार पापड़ बड़ियां भी बनाती हैं, अच्छे दाम भी मिल जाते हैं। कभी-कभी मेरी समझ में नहीं आता है कि इतनी हुनरमंद औरतों को इनके घरवालें क्यों छोड़ देते हैं?‘’
मीरा के लिए यह सब नई जानकारी थी...सच में जिस मीरा को कुछ समय पहले अपनी तकलीफ बहुत बड़ी लग रही थी, इन औरतों, बच्चों और बुजुर्गों के बारे में जानकर अपना दुख तो कुछ लग ही नहीं रहा था।
आखिर मुझे दुख क्या है...जिससे प्यार करती थी वह छोड़कर चला गया, उसका अपना एक मकसद जिसे पूरा करना था, वह वापस लौटा तब हमारे पास एक होने का कोई चांस नहीं था, हमारे बीच बहुत सी चीजें आ चुकी थी...वह फिर से चला गया, क्योंकि उसे लगा होगा कि अब हमें एक होना ही नहीं है, क्योंकि कोई वजह ही नहीं बची, शायद हमारी किस्मत में एक साथ और एक होना लिखा ही नहीं था।
मीरा क्या सोच रही हो, आओ बैठो ना।‘’ कुंती ने मीरा का कंधा हिलाते हुए कहा।
वह हॉल में आ गई थी, वहां पर अनगिनत बुजुर्गों का रेला था, कुछ तो हट्टे-कट्टे और अपनी उम्र से कम दिख रहे थे, वे ये लोग थे जिनके बच्चे बाहर रहते हैं और टाइम पास करने के लिए इसी आश्रम में आ गए थे। कुछ तो शरीर से इतने लाचार थे कि उन्हें उठाने बैठाने के लिए दो कंधो की जरूरत थी, कुछ व्हीलचेयर पर थे, कुछ के दिमाग ने शायद काम करना बंद कर दिया था, वे अपने हाथ से खाना भी नहीं खा पा रहे थे।
मीरा का दिल द्रवित हो उठा....आखिर क्यों लोग मां बाप को ऐसे समय में छोड़ देते हैं? जब उन्हें अपने बच्चों की सख्त जरूरत रहती है, यही मां बाप अपने बच्चों के लिए अपना कीमती समय अपनी जीवानी, अपना शौक कुर्बान कर देते हैं, फिर यही बच्चे अपने मां बाप को बोझ समझकर आश्रम में डाल देते हैं।
मनीषा मीरा के लिए थाली में खाना लेकर आई थी, मीरा ने मनीषा से पूछा, ‘’यहां सब लोग एक साथ खाना क्यों नहीं खाते हैं? मेरा मतलब है कि सारे बुजुर्ग, और बच्चे, तुम लोग और पूरा स्टाफ।‘’
मनीषा मीरा की बगल वाली चेयर पर बैठकर बोली, ‘’दीदी, यहां कुछ बुजुर्ग हैं जिन्हें शांति से खाना पसंद है, और आप जानती हैं ना कि बच्चे शैतानी करते हैं, शोर मचाते हैं और दूसरी बात हम इन बुजुर्गों के सम्मान के लिए भी ऐसा करते हैं। इन्हें ऐसा न फील हो कि ये यहां बोझ की तरह हैं, जैसे आम घरों में बड़े बूढ़ों को सबसे पहले खाना दवाई पानी चाय पूछा जाता है वैसे यहां भी होता है, इसके बाद बच्चे अपना खाना इंजॉय करते हैं, वे शोर मचाते हैं, हंसी मजाक करते हैं, कुंती चाची का यह आर्डर है कि किसी को यह फील नहीं होना चाहिए कि वे पराए घर में हैं।‘’
‘’ओह।‘’
‘’दीदी, आप खाना खा लीजिए, आपकी दवाई का टाइम हो रहा है।‘
‘’हां…कहकर मीरा खाना खाने लगी, उधर कुंती सभी बड़ों का हालचाल ले रही थी, खाना कैसा बना है इसके बारे में पूछ रही थी।
मीरा सोचने लगी, कुंती मां का जीवन भी कितना कष्टप्रद रहा है, कुंआरी मां बनी, और जिंदगी भर अपनी ही बेटी से दूर रही, बल्कि उसके भविष्य के लिए उसके अपने बाप से भी दूर कर दिया। फिर अपना पूरा जीवन लोगों का भविष्य संवारने में लगा दिया।
मीरा ने अपना खाना खत्म कर के एक बड़े से ड्रम में अपनी झूठी थाली डाल दी, जैसा की सारे बुजुर्ग कह रहे थे, इसके बाद वे सब कुंती से विदा लेते हुए बाहर निकलने लगे, अब बच्चों के खाना खाने की बारी थी।
मनीषा, मीरा के पास आकर बोली, ‘’दीदी, चलिए आपको मैं आपके रूम तक पहुंचा देती हूं, आपको दवाईंया भी दे देती हूं आप रेस्ट कीजिए, कल सुबह मैं आपको यह आश्रम घुमाउंगी।‘’
मीरा का वहां रूम में जाकर अकेले रहने का मन नहीं कर रहा था और अभी तो नींद भी नहीं आ रही थी।
वह मनीषा से बोली, ‘’मैं थोड़ी देर अभी यहीं रहना चाहती हूं।‘’
पर आपकी दवाई का टाइम हो गया है, कुंती चाची ने कहा था कि साढ़े आठ बजे आपको दवा देनी है।‘’
मीरा ने कहा, ‘’ओके, तो तुम जाकर मेरी दवाईयां ले आओ, मैं यहीं खा लेती हूं…वैसे भी मुझे अभी नींद नहीं आएगी।‘’
अच्छा ठीक है, कहकर मनीषा हाल से बाहर निकल गई।
हाल के सारे बुजुर्ग जैसे ही बाहर निकले वैसे ही मानो कुछ विस्फोट सा हो गया, अनगिनत बच्चें शोर मचाते हुए हाल में प्रवेश करने लगे, वे सभी अपनी-अपनी पसंद की कुर्सी पर बैठने के लिए लालायित थे। आश्रम का स्टाफ जो खाना परोस रहा था सबको चुपचाप बैठने के लिए कह रहा था, ‘’एकदम चुप, सब चुप, वरना खाना नहीं मिलेगा, कितनी बार कहा है कि खाना खाते समय शोर नहीं मचाते हैं।‘’
उस स्टाफ के मेंबर की ये सारी बातें बच्चों के सिर के ऊपर से निकल गई, वे उतनी ही ताकत से शोर मचा रहे थे….मनीषा ने सही कहा था, अगर इन्हें उन बड़े बूढ़ों के साथ खाने के लिए बैठा दिया जाता तो उनकी नाक में दम हो जाता और वे चैन से खाना भी नहीं खा सकते।
तबतक मनीषा, मीरा की दवाईयां लेकर आ गई थी, ‘ये लो दीदी, आप खा लो, मैं जरा इन शैतानों को देख लेती हूं, जब बड़े खाना खाते हैं तो स्टाफ के चार पांच लोग ही अच्छे से संभाल लेते हैं पर इन शैतानों को संभालने के लिए आश्रम का पूरा स्टाफ भी कम पड़ता है।‘
मीरा ने अपनी दवाईयां खा ली और एक चेयर लेकर एक कोने में बैठ गई...कुछ बच्चे तो खाने पर ऐसे टूट पड़े मानो उन्हें कई दिनों से खाना ही नहीं मिला हो।
कुछ बच्चे इतने शैतान थे कि अगर उन्हें रोटी नहीं खानी थी तो चुपचाप अपने बगल वाले बच्चे के प्लेट में रख दे रहे थे। फिर एक प्यारा झगड़ा शुरू हो जाता था।
एक कोने की ओर एक बच्चा बहुत ही शांत बैठा था, चेहरे से वह बहुत ही दुखी लग रहा था, अपने आसपास के बच्चों को बड़ी खाली नजरों से देख रहा था। मीरा ने उसे देखकर मनीषा को अपने पास बुलाया और पूछा, ‘’मनीषा…यह बच्चा इतना उदास क्यों हैं, इसे खाना नहीं पसंद है क्या?‘’
मनीषा ने उस ओर देखा और अफसोस भरे स्वर में कहा, ‘’ओह वह बच्चा, शशांक। एक्चुली कल उसका दोस्त चला गया।‘’
‘चला गया कहां?‘
कल एक कपल आए थे, वे शशांक के दोस्त यशस्वी को पसंद कर के गोद लेकर चले गए। यह और यशस्वी बहुत ही अच्छे दोस्त थे, इसी आश्रम में इन्होंने होश संभाला था, हर काम साथ-साथ करते थे, ब्रश करना, ब्रेकफास्ट करना, क्रिकेट खेलना, आश्रम की साफ सफाई करना, सब्जी फल लाना, पेड़ पौधो को पानी देना, साथ में सोना, पर कल से अकेला हो गया है, वे कपल जिन्होंने यशस्वी को गोद लिया है, उनसे हमने सीधे-सीधे तो नहीं पर यूं ही कहा था कि यशस्वी और शशांक बहुत अच्छे दोस्त हैं, ये तो एक दूसरे से अलग रह ही नहीं सकते हैं, ऐसा लगता है ये अलग-अलग शक्ल वाले जुड़वा भाई हैं। यशस्वी भी शशांक को छोड़कर नहीं जाना चाहता था, पर हमने यशस्वी को बहुत समझाया कि तुम्हें माता पिता मिलेंगे, घर मिलेगा एक परिवार और अच्छी शिक्षा मिलेगी। फिर शशांक ने भी यशस्वी को समझाया तब यशस्वी जाने को तैयार हुआ, वह चला गया और बेचारा शशांक अकेला रह गया।‘’
मीरा को अपने अंदर बड़ा ही गहरा दर्द महसूस किया। सच में इतनी भीड़ में भी वह एकदम अकेला हो गया है।
मीरा उठकर शशांक के पास जाकर बैठ गई और प्यार से उसका सिर सहलाते हुए बोली, ‘’आपको अपने दोस्त की याद आ रही है।‘’
शशांक चौंक गया और मीरा को गहरी खामोश भरी आंखो से देखने लगा, वे नन्हीं मासूम आंखे नम होकर भर आई थी।
मीरा द्रवित हो उठी, ‘अरे नहीं, इतनी छोटी सी उम्र के बच्चों के दिल में इतनी तकलीफ नहीं होनी चाहिए।‘
मीरा फिर बोली, ‘’कोई बात नहीं, आपको तो खुश होना चाहिए कि आपके दोस्त को एक प्यारा सा घर मिला है और आपने ही तो उसे यहां से जाने के लिए कहा था।‘’
शशांक ने हां में सिर हिलाया ओर उसकी आंखो से दो बूंद आंसू निकलकर गाल पर लुढ़क आए।
‘’हे भगवान, मेरे पास इसका दुख दूर करने के लिए कुछ भी नहीं है। काश मेरे पास कोई जादू की छड़ी होती और मैं उसे घुमाकर पलभर में ही इसका दुख दूर कर देती, काश इसका दुख मैं ले लेती।‘’
मीरा उसके गाल के आंसू पोछते हुए बोली, ‘’कोई बात नहीं आपके और भी अच्छे दोस्त बनेंगे...अच्छा शुरूआत मुझसे कर लो, मैं भी यहां नई आई हूं और मुझे यहां के बारे में कुछ नहीं पता है, क्या आप मेरे दोस्त बनोगे और मुझे यहां घुमाओगे? ‘’ कहकर मीरा ने अपनी एक हाथ दोस्ती करने के भाव से शशांक की ओर बढ़ा दिया।
शशांक ने तो पल भर के लिए मीरा को एकटक देखा और उसे न जाने क्या सूझी उसने भी अपना हाथ बढ़ाकर मीरा से हैंडशेक कर लिया और उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई, दो बूंद आंसू फिर से शशांक के गाल पर लुढ़क गए।
क्या मीरा शशांक का दर्द कम कर पाएगी?
क्या वह खुद को इस आश्रम के लायक बना पाएगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्बत।
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