न्यूयॉर्क का "इमिग्रेंट डिटेंशन सेंटर" 

घड़ी की सुइयाँ धीमी चाल से आगे बढ़ रही थीं। बंद दीवारों के भीतर कैद सैकड़ों लोग बस एक ही इंतज़ार में थे कि कब उन्हें यहाँ से निकाला जाएगा और उनके भविष्य का फैसला सुनाया जाएगा। ना जाने कितने सपने, कितनी उम्मीदें, और कितनी जिंदगियाँ इस ठंडे, बेरंग इमिग्रेंट सेंटर में ठहर गई थीं।

नीना भी उन्हीं में से एक थी। कोलंबिया से निकलकर वो अमेरिका आई थी और एक गुमनाम ज़िंदगी जी रही थी, उसे डर था कोई उसे पहचान ना ले। सालों तक कोलंबिया के उन पुराने खौफनाक यादों और लोगों से खुद को छुपाए रखने वाली नीना आज एक कैदी की तरह  कुर्सी पर बैठी अपने हाथों को कसकर भींचे हुए लगातार दरवाजे की ओर देख रही थी। उसके नाम की पुकार कभी भी हो सकती थी। 

तभी दरवाज़ा खुला और एक कड़क वर्दी में ऑफिसर ने प्रवेश किया। उसके हाथ में फाइलों का एक बंडल था। कमरे में सन्नाटा छा गया।

सिक्योरिटी ऑफिसर कड़क आवाज़ में बोला, “नीना वास्केज़! आगे आओ!”

एकदम से उसकी सांसें तेज़ हो गईं। तभी सिक्योरिटी ऑफिसर फ़ाइल देखते हुए, ज़्यादा कड़क आवाज़ में चिल्लाया, “नीना वास्केज़! आखिरी चेतावनी!”

नीना  घबराई हुई सी खुद से बोली, “नहीं… नहीं… मैं नहीं जा सकती। वहां मौत है... सिर्फ मौत।”

नीना के अंदर एक तूफान उठ रहा था। उसके दिमाग में अतीत के पन्ने तेज़ी से पलट रहे थे,कार्टेल के आदमियों की धमकियां, उसका गांव जो अब उसके लिए कब्रिस्तान बन चुका था।

नीना  आंखों में आंसू, आवाज़ में डर लिए आहिस्ता से बोली, “मैं मरना नहीं चाहती। प्लीज़... प्लीज़…!”

अचानक नीना की आंखों में एक चमक आई। वो कुर्सी से उठी और तेजी से दरवाजे की ओर दौड़ी। उसने रास्ते में एक कुर्सी को धक्का दिया जो गार्ड के पैरों में जा गिरी।

चारों तरफ शोर मच गया। लोग चीख रहे थे, कुछ उठ खड़े हुए थे।

सिक्योरिटी ऑफिसर चिल्लाते हुए बोला, “उसे रोको! सभी दरवाजे बंद करो!”

नीना  हॉल के अंत तक पहुंची लेकिन दूसरे गार्ड्स पहले से ही वहां थे। वो पीछे मुड़ी लेकिन अब वो घिर चुकी थी। तभी दो गार्ड्स ने झपटकर उसे पकड़ लिया और उसे गर्दन से पकड़ कर फर्श पर पटक दिया। दर्द से बेचैन नीना  लगभग अपनी किस्मत से हार ही चुकी थी कि उसे याद आया अगर वो अंधी हो जाए तो उसे अमेरिका से नहीं भेजा जाएगा। बस ये ख्याल आते ही वो बिना कुछ सोचे समझे घबराती हुए चिल्लाई,

“मैं… मैं कुछ नहीं देख पा रही… अंधेरा… सब अंधेरा…!”

कमरे में अफरा-तफरी मच गई। एक गार्ड ने नीना  को सँभाला जबकि दूसरा तुरंत रेडियो पर डॉक्टर्स को बुलाने के लिए बोला, "मेडिकल इमरजेंसी सेक्शन “सी” में! हमें तुरंत एक डॉक्टर की जरूरत है! बंदी सिर में चोट लगने से गिर पड़ा है!

थोड़ी ही देर में, डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ वहां आ गए। वे नीना  को एक स्ट्रेचर पर लिटाया, जो अब आधी बेहोशी में कराह रही थी या ड्रामा कर रही थी।

डॉक्टर ने उसकी आंखों में टॉर्च मारते हुए पूछा, “मिस वास्केज, क्या आप कुछ देख पा रही हैं? इस लाइट को फॉलो करें।” (Miss Vascase, can you see anything? Follow the light?)

नीना पलकें झपकाती थी, लेकिन उसकी नज़रों में कोई फ़ोकस नहीं दिखता था। वो अपनी आंखों को इधर-उधर घुमाती थी जैसे उसे कुछ भी नज़र नहीं आ रहा हो। उसके गालों पर आंसू बह रहे थे।

नीना  सिसकते हुए बोली, “नहीं… कुछ भी नहीं… सिर्फ काला अंधेरा… मेरा सिर... दर्द…!”

डॉक्टर ने उसकी पुतलियों को देखा, ब्लड प्रेशर चेक किया, और फिर उंगली उसके सामने हिलाई।

डॉक्टर ने गार्ड्स से कहा, “सर पर लगी चोट की वजह से इसे टेंपररी ब्लाइंडनेस हो गई है,अगर सही से इलाज़ नहीं हुआ तो ये हमेशा के लिए अंधी हो सकती है।”

"हमें पूरा न्यूरोलॉजिकल टेस्ट करना होगा और शायद एक एमआरआई भी करानी होगी। जब तक हम उसकी चोटों की गहराई नहीं समझ लेते, तब तक उसे हिलाया या सवाल नहीं किया जा सकता।

("We need to do a full neurological exam and possibly an MRI. She cannot be moved or questioned until we determine the extent of her injuries.")

सिक्योरिटी अफसर का चेहरा तमतमा गया। लेकिन मेडिकल एक्सेम्पशन के नियमों के तहत, वे उसे जबरन डिपोर्ट नहीं कर सकते थे।

सिक्योरिटी ऑफिसर गंभीर लहजे में बोला, “ठीक है। उसे मेडिकल यूनिट में आगे की निगरानी के लिए शिफ्ट करो। लेकिन मैं चाहता हूँ कि वहाँ 24/7 एक गार्ड तैनात रहे।”

मेडिकल ऑफिसर ने कहा, “ये जरूरी नहीं होगा। मेडिकल विंग सुरक्षित है। बाय द वे माय कन्सर्न इज़ हर हेल्थ, नॉट हर फाइल। नाउ एक्सक्यूज़ अस।”

नीना  को व्हीलचेयर पर बैठाया गया। उसके चेहरे पर दर्द और घबराहट का भाव था, लेकिन उसके भीतर... वो जानती थी, कि उसने खुद को बचाने के लिए मौत को मात दे दी थी। अभी और नाटक करना था, लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी।

न्यूयॉर्क शहर जहां सपनों की रोशनी जगमगाती है, लेकिन नीना  के लिए ये शहर अब अंधेरे में डूब चुका था। वो एक लो इनकम वाले ब्लाइंड पीपल हेल्पसेंटर में रह रही थी, जहां उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई थी। उसके हाथ में एक सफ़ेद छड़ी थी, लेकिन उसके मन में एक ही सवाल गूंज रहा था, “क्या वो इस झूठ को निभा पाएगी? क्या वो हमेशा अंधी बनी रह सकती है?”

एक संकरी गली के कोने पर पुरानी ईंटों से बनी एक इमारत। भीतर हल्की सीलन की गंध, दीवारों पर ब्रेल लिपि में लिखे निर्देश और चारों ओर लोग जिनकी आँखें खुली थीं लेकिन दुनिया उनके लिए हमेशा के लिए बंद हो चुकी थी। नीना  एक लकड़ी की कुर्सी पर बैठी है उसके हाथ में एक सफेद छड़ी है। उसके सामने एक बुजुर्ग कोच मिस्टर रॉबर्ट्स उसकी ट्रेनिंग लेने वाले हैं।

मिस्टर रॉबर्ट्स ने समझाया, “छड़ी को हल्के से ज़मीन पर टैप करो, फिर अपने सामने वाले रास्ते को महसूस करने की कोशिश करो। धीमे चलो, हर कदम सोच-समझकर उठाओ।”

नीना  ने झिझकते हुए छड़ी उठाया और धीरे-धीरे उसे ज़मीन पर टैप करने लगी। लेकिन ये सब करना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। वो न अंधी है, न ही कमजोर—फिर भी उसे ये नाटक करना पड़ेगा।

नीना  मन ने चिढ़ कर बोली, “ये सब बेकार है। मैं हमेशा गिर जाऊंगी। ये मेरी ज़िंदगी नहीं हो सकती! मैं कैसे अंधी हो कर जी पाऊंगी?”

मिस्टर रॉबर्ट्स उसके एक्सप्रेशन को समझ कर शांत लहज़े में बोले, “हर कोई शुरुआत में यही सोचता है। लेकिन अगर तुम जीना चाहती हो तो सीखना ही होगा।”

नीना  के अंदर एक गहरी हताशा भर गई थी, वो यहां नहीं रहना चाहती थी लेकिन उसे अपनी एक्टिंग परफेक्ट करनी होगी। अगर वो गलती से भी देखकर कोई हरकत कर बैठी, तो उसका राज़ खुल सकता था। उस दिन के सेशन के बाद नीना  बाकी दिन की तरह ही अंधे लोगों की ज़िंदगी से जुड़े वीडियो और आर्टिकल देखने पढ़ने लगी. वो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी लेकिन कुछ ही देर बाद वो बोर हो गई थी उसने चिढ़ते हुए फोन एक तरफ पटक दिया और अपना सर अपने हाथों से दबाती हुई बोली, “एक झूठ को निभाना बहुत मुश्किल होता है।”  तभी उसके कानों में उसकी मां की आवाज़ गूंजी और आंखों के आगे फ्लैशबैक सा चलने लगा।

धूल भरी गलियां, दूर कहीं एक झोपड़ी के भीतर दस साल की नीना अपनी माँ के सामने बैठी है। उसकी माँ रोज़ा एक सख्त लेकिन चतुर महिला उसके सामने एक सिक्का रखती है।

रोज़ा ने कड़े लफ़्ज़ों में पूछा, “अगर कोई तुमसे पूछे कि ये तुम्हारा सिक्का है या नहीं तो क्या कहोगी?”

नीना  कंफ्यूज होकर बोली, “अगर मेरा नहीं है तो मैं कहूँगी नहीं…!”

रोज़ा उसे एक चांटा मारा नीना  चौंक कर अपनी माँ को देखने लगी। रोज़ा एक बार फिर बोली, “अगर तुमने ‘नहीं’ कहा, तो ये सिक्का तुम्हें कभी नहीं मिलेगा। लेकिन अगर तुम कहोगी ‘हाँ, ये मेरा है’ तो तुम्हें कुछ मिल सकता है। याद रखना इस दुनिया में ईमानदारी सिर्फ बेवकूफों के लिए होती है।”

नीना की आँखों में आँसू आ गए थे लेकिन वो सिर हिला कर रह गई मानों उसे समझ आ गया हो. उस दिन तो उसे अपनी मां की बात समझ नहीं आई थी लेकिन आज वो उस बात को बहुत अच्छे से समझ रही थी। वो पहला दिन था जब उसे झूठ बोलना उसकी खुद की मां ने सिखाया था और वो झूठ ही आज उसके जिंदा बचे रहने की वजह बन गई थी।

नीना अपने ख्याल से बाहर आई और उसने गहरी सांस ली, आंसू का कतरा उसके गाल पर लुढ़क आया। वो धीरे से बिस्तर से उठी और छड़ी हाथ में लेकर आइने के सामने खड़ी हो गई। वो अपनी आंखों को गौर से देख कर खुद से बोली, “झूठ ही मेरी ज़िंदगी बचा सकता है। मैं अंधी हूं… और यही सच है।”

एक साल बीत चुका था और अब वो पूरी तरह अंधी होने का नाटक करना सीख चुकी थी। उसकी चाल, उसकी हरकतें, उसकी आंखों का खालीपन, सब एक असली अंधे इंसान की तरह लगते थे। वो अब इस झूठ के साथ कॉन्फिडेंट थी। लेकिन उसे नहीं पता था कि आज का दिन उसकी सबसे बड़ी परीक्षा लेने वाला था। उस दिन जब नीना एक कैफे में बैठी कॉफी पी रही तब दो आदमी अंदर आए। उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला, बस इशारों में बातचीत कर रहे थे। नीना  ने उन्हें देखा लेकिन कोई रिएक्शंस नहीं दी। वे धीमी चाल में कैफे में आगे बढ़े, इधर-उधर नज़र दौड़ाई। किसी और ने उन पर ध्यान नहीं दिया लेकिन नीना  समझ गई थी कि वे नॉर्मल लोग नहीं थे।

उनमें से एक ने जैकेट की जेब से एक छोटा चाकू निकाला और टेबल के नीचे छुपा लिया। नीना  का शरीर तनाव में आ गया। वे लुटेरे थे, वे इस जगह को लूटने आए थे और वे किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते थे। लेकिन नीना  कुछ नहीं कर सकती थी। अगर उसने किसी को सतर्क करने की कोशिश की तो उसका राज़ खुल सकता था। अगर वो चुप रहती तो शायद कोई मारा जाता।

पहला आदमी एक टेबल के पास गया। वहां बैठी लड़की अपने फोन में व्यस्त थी उसने कुछ नोटिस नहीं किया। दूसरा आदमी काउंटर के पास खड़ा हो गया जहां कैश रजिस्टर रखा था। उनका प्लान साफ था एक आदमी ध्यान भटकाएगा दूसरा पैसे लेकर भागेगा।

नीना  के दिमाग में हलचल मच गई। उसे कुछ करना था लेकिन बिना खुद को उजागर किए। तभी पहले आदमी की नज़र उस पर पड़ी। वो ठहर गया। उसने अपने साथी की तरफ देखा और आहिस्ता से इशारा करता हुआ बोला, “टेक हर।”

नीना  का दिल तेजी से धड़कने लगा। वे उसे उठाने वाले थे। लेकिन क्यों? क्या उन्हें शक हो गया था? या क्या वे बस एक आसान शिकार ढूंढ रहे थे? वो अकेली थी, ‘अंधी’ थी उनके लिए परफेक्ट टारगेट।

दूसरा आदमी धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ा। उसकी उंगलियां नीना के कंधे को छू गईं। वो ठंडे लहज़े में बोला, “माफ करना लेडी लेकिन अब तुम्हें हमारे साथ चलना होगा।”

नीना अंदर ही अंदर कांप रही थी लेकिन उसने खुद को पूरी तरह काबू में रखा। उसने अपनी आंखों को वैसे ही रखा जैसा एक अंधे की होती हैं खाली, एक्सप्रेशलेस।

नीना ने लाचार आवाज़ में कहा, "क… क्या हो रहा है? कौन हो तुम?" 

दूसरा आदमी अब उसकी कुर्सी के पीछे खड़ा था। पहला आदमी काउंटर से पैसे निकाल चुका था लेकिन अब उनका प्लान बदल गई थी। अब वे नीना  को भी ले जाना चाहते थे।

नीना  को कुछ करना था। अगर वो यूं ही जाती तो शायद वे उसे मार देते। और अगर उसने कोई गलत हरकत की तो उसका झूठ पकड़ा जाता। उसे एक तरीका चाहिए था जिससे वो ध्यान आकर्षित कर सके बिना शक पैदा किए।

उसने धीरे से हाथ बढ़ाया और टेबल पर रखी मोमबत्ती के पास ले गई। जैसे ही उसकी उंगलियां लौ के करीब आईं उसने अचानक जोर से चीख मारी, “आग! मुझे आग लग गई! हेल्प मी प्लीज!”

कैफे में हर कोई चौंक गया। लोग घबरा गए। स्टाफ उसकी ओर दौड़ा। सिक्योरिटी गार्ड ने तुरंत रेडियो पर कॉल कर दी। चारों ओर हलचल मच गई। दोनों लुटेरे घबरा गए। वे बिना वक्त गवाए कैश और बैग उठाकर भाग गए।

स्टाफ ने नीना  पर पानी डाला हालांकि उसे कोई जलन नहीं हुई थी। लेकिन नाटक पूरा करना जरूरी था। कोई भी ये नहीं देख पाया कि उसने सब कुछ पहले से देख लिया था।

बाहर अंधेरी गली में दोनों लुटेरे तेजी से भाग रहे थे। उनका सांस फूल रहा था।

पहला आदमी अचानक रुक गया और उस ने कहा, "वो लड़की… कुछ अजीब थी।" 

दूसरे आदमी ने सोचते हुए  जवाब दिया, "हाँ… पता नहीं क्यों लेकिन ऐसा लगा जैसे वो हमें देख सकती थी।" 

पहला आदमी ठहर कर सोचने लगा। अगर वो वाकई अंधी थी तो उसने सही वक्त पर चीख कैसे मारी? और अगर वो देख सकती थी… तो उसने रिएक्ट क्यों नहीं किया?

पहले आदमी ने धीमे आवाज़ में कहा, "शायद हमें उसे फिर से देखना चाहिए। क्योंकि अगर उसने हमें सच में देखा है तो वो हमारे लिए खतरा बन सकती है। लेट्स गो इससे पहले देर हो जाए हमें उसे लड़की को पकड़ना होगा।”

और वो दोनों लुटेरे पैसों का बैग अपनी वैन में छुपा कर वापस कैफे की तरफ भागे, ठीक उसी वक्त नीना भी कैफे से निकल कर सड़क तक आ चुकी थी। दूर से ही नीना और लुटेरों ने की नजर एक दूसरे पर गई और नीना के कदम थम गए क्योंकि सामने का जो नजारा था उसे देख के नीना के प्राण हलक में आ गए थे। वो एड़ी से चोटी तक कांप गई थी। 

आखिर क्या देखा था नीना ने ऐसा? आखिर किस चीज़ से बचना चाहती थी नीना? क्या ये गुंडो उसे मारने आए थे? क्या वज़ह थी उसके कोलंबिया छोड़ने की? आखिर कौन थे ये गुंडे?

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