नीना अंधी है यह बात मेंटेन रखना ज़रूरी था। वह तेजी से अपनी स्टिक लिए भागी, बीच-बीच में गुंडों की तरफ देखने की कोशिश भी कर रही थी। गुंडे उसके बहुत करीब आ गए थे।

घबराई हुई नीना ने उन्हें महसूस किया और बिना कुछ सोचे अपनी डायरेक्शन बदलने की कोशिश की लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाती, वही गुंडे उसकी ओर दौड़ पड़े। कड़कती आवाज में बोले, “हेय! स्टॉप! कहाँ भाग रही है? मैं कहता हूं रुक जा वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।”

उसी वक्त किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। नीना घबराकर चीख पड़ी, “कौन हो तुम लोग? छोड़ दो मुझे! मैं कह रही हूँ छोड़ दो वरना अच्छा नहीं होगा!”

एक गुंडे ने झटके से उसका मुंह कसकर दबा दिया और गुस्से में बोला, “चुप हो जाओ! वरना आगे कभी कुछ बोलने लायक नहीं रहोगी!”

वो खुद को छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन एक झटके में उसे दरवाजे की तरफ खींच लिया। वैन का दरवाजा खोला और नीना को जोर से अंदर धकेल दिया।

नीना ने घबराकर पूछा,"तुम लोग मुझसे क्या चाहते हो?”

उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था लेकिन गुंडों ने उसकी बात को पूरी तरह नज़रअंदाज कर दिया। वे अपनी चर्चा में इतने मशगूल थे कि जैसे उसकी मौजूदगी का कोई मतलब ही ना हो।

एक गुंडे ने दूसरे से कहा, "इसे छोड़ने की गलती नहीं कर सकते।"

नीना के शरीर में अब बिल्कुल भी ताकत नहीं बची थी। उसकी आवाज़ डर और बेबसी से भरी थी।वो रिक्वेस्ट करती बोली, "प्लीज़... मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी, मुझे जाने दो!" लेकिन उसकी बातें जैसे हवा में घुल गईं।

तभी एक गुंडा आगे बढ़ा और उसकी आँखों पर काली पट्टी बांध दी। फिर उसने क्लोरोफॉर्म से भीगा हुआ कपड़ा उसकी नाक के पास लाकर कहा, "योर वर्ड्स डोंट मैटर टू अस।" नीना ने छटपटाने की कोशिश की लेकिन कुछ ही सेकंड्स में उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया।

जब उसे होश आया तो वह वैन की सीट पर बेजान सी पड़ी थी। उसका दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था कि जैसे अभी छाती से बाहर आ जाएगा। उसकी आँखों पर अभी भी वो काली पट्टी बंधी हुई थी। चारों तरफ़ सन्नाटा था लेकिन हर छोटी-छोटी आवाज़ पर वह चौंक रही थी।

वैन का इंजन गूँज रहा था और नीना के दिमाग़ में कई सवाल चल रहे थे। "क्या मुझे बेहोशी का नाटक करना चाहिए था? या फिर कोई और तरीका अपनाना चाहिए था?" लेकिन फिर खुद से ही बोली, "पर मैं इस वक्त कर भी क्या सकती हूँ? मुझे तो ये तक नहीं पता कि मैं शहर से कितना दूर आ चुकी हूँ।"

नीना हर छोटी-छोटी आवाज़ सुनने की कोशिश कर रही थी। एक पल के लिए उसने खुद को बिल्कुल शांत कर लिया। तभी गुंडों में से एक की आवाज़ आई, "तुझे लगता है इसके साथ हमें इतनी सख्ती करने की ज़रूरत है?"

नीना का दिल ज़ोर से धड़क उठा। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती दूसरे गुंडे ने जवाब दिया, "तू भी ना बहुत इमोशनल हो जाता है। भूल मत ये हमारा काम है।"

नीना ने उस आवाज़ पर पूरा ध्यान लगाया और मन ही मन सोचा, "तो क्या ये लोग मुझे मारने नहीं लाए?"

उसने धीरे-धीरे सांस ली और अपने शरीर को पूरी तरह से लूज़ छोड़ दिया, जैसे वह सच में बेहोश हो। उसे ज़रा भी शक नहीं होने देना था। जैसे ही उसने अपनी आँखें बंद कीं, उसने खुद को और भी कमज़ोर और लाचार महसूस किया। लेकिन तभी उसके दिमाग़ में सवाल आया, "क्या मैं सही कर रही हूँ? क्या ये लोग मेरे नाटक को पकड़ लेंगे?"

और अगले ही पल, उसकी उम्मीदें चकनाचूर हो गईं।

एक आवाज़ उसके बेहद करीब आई, "तुम सच में कुछ नहीं देख सकती?"

नीना के रोंगटे खड़े हो गए। वह उसका चेहरा नहीं देख सकती थी, लेकिन उसकी आवाज़ से साफ़ था कि वो अब भी शक कर रहा था।

वह फिर बोला, "क्या... क्या तुम कुछ सुन सकती हो?"

नीना का दिल ज़ोर से धड़कने लगा, लेकिन उसने कोई रिएक्शन नहीं दीया। वह बस और ढीली पड़ गई, जैसे पूरी तरह से बेहोश हो।

एक पल के लिए सब कुछ शांत हो गया। ऐसा लगा जैसे वह गुंडा नीना के हर मूवमेंट को ऑब्जर्व कर रहा हो, ये जानने की कोशिश कर रहा हो कि वह वाकई बेहोश थी या सिर्फ एक्टिंग कर रही थी।

वैन के अंदर सन्नाटा पहले से भी ज़्यादा भारी हो गया था।

नीना को खुद को शांत रखना था। किसी भी कीमत पर उसे पकड़ा नहीं जाना था।

टाइम बीतता गया, गुंडों ने बहुत कोशिश की नीना के मुंह से कुछ उगलवाने की लेकिन जब नीना बिल्कुल भी नहीं हिली तो आखिर में वह थक कर आपस में ही बातें करने लगे।नीना ने उनके बीच चल रही बातों को ध्यान से सुना, उसे समझने में देर नहीं लगी कि वह उसे कहां ले जा रहे थे। घंटों के बाद वैन अचानक रुकी और एक गहरी खामोशी छा गई। नीना के दिल की धड़कन तेज हो गई। फिर एक गेट खोलने की आवाज़ आई और उसके बाद एक हाथ ने उसे बाहर खींच लिया। और बहुत सारा पानी उसके चेहरे पर आकर पड़ा। नीना ने अभी भी कोई हरकत नहीं की बल्कि वह इंतजार करती रही गुंडों के रिएक्शन का। काफी देर बाद जब कोई हलचल नहीं हुई तब उसने ने धीरे से अपनी आंखों से पट्टी हटाई।

नीना ने देखा कि वैन अभी भी पास खड़ी थी लेकिन गुंडे अब कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। वह चारों तरफ देखती हुई आहिस्ता से बोली, “आई हैव टू डू समथिंग, मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं है यह मेरी जिंदगी का सबसे वर्स्ट टाइम है अगर मैंने जल्द ही कुछ नहीं किया तो शायद यह मेरी जिंदगी का आखिरी समय बन जाएगा।”

उसने उठने की कोशिश की हालांकि क्लोरोफॉर्म की वजह से अभी भी उसका सर चकरा रहा था लेकिन उसने हिम्मत दिखाई और चारों तरफ देखा कि वह कहां से निकल सकती थी। उसे थोड़ी ही दूर पर एक टेढ़ी-मेढ़ी कच्ची सड़क दिखाई दी।

वह आहिस्ता से बोली, “आखिर यह जगह है कौन सी और यह लोग मुझे यहां क्यों लेकर आए हैं?

 लेकिन फिर उसने बिना टाइम वेस्ट किए उस रास्ते पर आगे बढ़ना ही सही समझा। नीना ने एक गहरी सांस ली और तेजी से उसे कच्ची सड़क की तरफ बढ़ गई। 

नीना जब आगे बढ़ी थी तब चारों तरफ खामोशी थी, सिर्फ हवाओं की सरसराहट ही सुनाई दे रही थी लेकिन कुछ ही आगे जाकर उसे अहसास हुआ कि वह अकेली नहीं है, और ये  महसूस होते ही उसने बेतहाशा दौड़ना शुरू कर दिया।लेकिन जंगल की घनी झाड़ियों से जूझते हुए उसकी रफ्तार धीमी हो रही थी। उसने खुद को मोटिवेट किया और बोली, “भागो नीना तुम रुक नहीं सकती हो, यह लोग तुम्हें इतनी आसानी से नहीं छोड़ेंगे भागो।”

उन गुंडों के कदम भी उसके पीछे बढ़ रहे थे। एक गुंडे की आवाज आई, "हम उसे छोड़ नहीं सकतें हैं।" नीना का चेहरा डर से सफेद हो गया लेकिन फिर भी वह दौड़ती रही।

नीना का पैर एक सूखी लकड़ी से टकराया और वह धड़ाम से जमीन पर गिरी, उसके मुंह से चीख निकली लेकिन उसने तुरंत ही अपने हाथों से अपने मुंह को बंद कर लिया क्योंकि वह नहीं चाहती थी उसकी चीख उन गुंडो के कान तक पहुंचे। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह एक कदम और भाग सकेगी लेकिन गुंडो के नजदीक आते कदम उसे साफ महसूस हो रहे थे। धीरे-धीरे करके जंगल गहरा  होता जा रहा था और अब गुंडो के साथ-साथ जंगली जानवरों का डर भी उसे सता रहा था। लेकिन उसने हार नहीं मानी, नीना ने अपनी आखिरी ताकत लगा दी और फिर से दौड़ने लगी। वह जानती थी कि उसकी ज़िंदगी अब बस एक पल की दूरी पर है। लेकिन शायद उसकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था वह कुछ कम ही बढ़ पाई थी कि उसे एक कड़क आवाज सुनाई दी, “बहुत हो गया यहखेल चलो अब इसे यहीं खत्म करते हैं।”

नीना ने देखा वह तीनों गुंडे उसके सामने खड़े थे अब उसके पास भागने के लिए कोई भी रास्ता नहीं बचा था तब तक एक ने उसे दबोच लिया था नीना लगभग रोती हुई बोली, "कहाँ ले जा रहे हो मुझे?" 

 लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला। वह उसे खींचते हुए जंगल की ओर ले गए। नीना ने डरते-डरते कदम बढ़ाए लेकिन कुछ समझ नहीं आया। उसके मन में सिर्फ यही ख्याल था, "क्या यह मेरा अंत है?"

जैसे ही वह जंगल के बीचोंबीच पहुँची, उसने महसूस किया कि यह जगह किसी और दुनिया जैसी थी। घने पेड़, और चारों ओर अजीब सा सन्नाटा था। नीना को पकड़े हुए गुंडे ने चिल्लाते हुए कहा,"तू क्या समझती है? हमसे बच कर कहीं भाग पाएगी?" 

अचानक धरती हीली, नीना के साथ-साथ वह गुंडे भी हैरान थे कि यह क्या हुआ? कोई कुछ समझ पाता इससे पहले कुछ ही सेकंड के बाद दोबारा धरती हीली, भूकंप का एक तेज झटका आया। नीना के साथ-साथ वह गुंडे भी अपनी-अपनी जगह पर लड़खड़ा कर गिर गए। नीना को लगा जैसे ऊपर वाले ने उसे यह मौका दिया है वह फुर्ती से उठी और बिना कुछ सोचे समझे जंगल में अंदर की तरफ दौड़ पड़ी।

नीना के पैर थक चुके थे, सांसें तेज़ हो रही थीं। घने जंगल में गुंडों से जूझते हुए वह हर कदम पर बस यह उम्मीद कर रही थी कि कहीं से मदद का कोई रास्ता मिलेगा। पर जंगल की ख़ामोशी ने और भी खौफनाक माहौल बना दिया था। दौड़ते-दौड़ते एक खुली सी जगह में पहुंची, जहां उसकी नजरों के सामने एक पुरानी झोपड़ी दिखी। झोपड़ी के दरवाजे का रंग उड़ा हुआ था, लकड़ी की दीवारों पर काई और जाले लगे हुए थे। वह हैरानी से बोली, “ऐसी जगह पर यह झोपड़ी यह कैसे पॉसिबल है।” लेकिन कुछ था, कुछ ऐसा था जो उसे खींच रहा था। वह जानती थी कि इसे देखना खतरे से खाली नहीं होगा लेकिन उसके पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था इसलिए वह झोपड़ी की तरफ बढ़ गई। 

कुछ देर में वह झोपड़ी के दरवाजे के पास खड़ी थी उसके हाथ कहां पर रहे थे लेकिन फिर भी उसने

दरवाजे को हल्के से खोला, एक अजीब सी ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई। अंदर गहरा अंधेरा था। लेकिन तभी उसकी नजर उस कमरे में फैले उपकरणों पर पड़ी—हर तरफ अनजाने वैज्ञानिक उपकरण पड़े थे। कुछ टेबल पर चिथड़े पड़े थे, कुछ पर धूल की मोटी परत जमी थी। एक पुरानी लाइट बल्ब के नीचे की मेज पर कुछ डायरी, नोटबुक और कंप्यूटर स्क्रीन पड़ी थी जो कहीं से भी समझ में नहीं आ रही थीं।

नीना ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए यह सोचते हुए कि क्या यह सुरक्षित है या नहीं। लेकिन फिर उसकी आँखें कुछ और ढूंढने लगीं। तभी, झोपड़ी के अंधेरे कोने से कुछ हलचल हुई—एक धुंधली सी छाया, जो उसे बिल्कुल दिखाई नहीं दी थी, अचानक अपनी जगह से हिली।

उसकी धड़कन बढ़ गई। उसने आहिस्ता से पूछा, “कौन..कौन है यहां क्या कोई मुझे सुन रहा है?”

जब कोई जवाब नहीं आया तो उसने अपने आप से कहा क्या यह सिर्फ उसका भ्रम था? वह धीरे-धीरे पलटी, लेकिन कमरे के कोने में कोई नहीं था। फिर भी, उस छाया की हरकत ने उसे नर्वस कर दिया था। उसकी नजरें तेज़ी से इधर-उधर दौड़ीं।अचानक उसे पीछे से कुछ महसूस हुआ। उसे लग रहा था कि कोई उसके बिल्कुल पास खड़ा है। बिना कुछ देखे, नीना ने पलट कर दरवाजे की ओर दौड़ने की कोशिश की, लेकिन तभी उसके कानों में वह आवाज आई—एक धीमी सी, खौ़फनाक, फुसफुसाहट वाली आवाज़, जैसे कोई उसके कान में कह रहा हो, "कहीं मत जाना।"

नीना के दिल ने जोर से धड़कना शुरू किया। वह कांपते हुए मुड़ी, लेकिन सामने कुछ भी नहीं था। पूरा कमरा अब जैसे और भी घना और अंधेरा हो चुका था। अचानक, झोपड़ी की लाइट एक बार फिर फ्लिकर करते हुए बुझ गई। अब, पूरी झोपड़ी में अंधेरा छा गया।

उसकी आँखें पूरी तरह से अंधेरे में खो चुकी थीं। एक पल को उसे लगा कि वह बिल्कुल अकेली है, लेकिन फिर… एक हलकी सी खांसने की आवाज़ आई। वह चौंक गई। ये आवाज़ बिल्कुल पास थी, जैसे कोई पीछे खड़ा हो। उसने घबराते हुए धीरे से सिर घुमा कर देखा।

उसकी आँखों के सामने अचानक अंधेरे में एक कटा-कटा सा चेहरा आया। एक आदमी, जिसे नीना पहचान नहीं पाई। उसकी आँखें गहरी और मायूस थीं। उसके हाथ में लोहे का एक रॉड था। इससे पहले कि नीना कुछ समझ पाती, उसी पल उस आदमी का तेज़ी से घुमा और वो लोहे का रॉड नैना के सर से टकराया,वो चीख तक नहीं पाई और उसके आंखों के आगे अंधेरा छा गया, लेकिन बंद होती आंखों से उसने देखा सामने खड़ा आदमी उसे घसीटते हुए कहीं ले जा रहा है?

कौन था ये आदमी और कहां ले जा रहा था नीना को? 

क्या ये सब एक ट्रैप था नीना को फसाने के लिए? 

क्या नीना के बारे में कुछ ऐसे राज थे जिससे नीना खुद भी अनजान थी? 

जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'कर्सड आई!'

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