रोज़ी कमरें में लगे शीशे के सामने, अपने जिस्म की हवस मिटाने के लिए किसी को चुनने की planning कर रही थी। अपनी ज़रुरत को पूरा करने के लिए वो सारे नियम तोड़ने को तैयार थी। रणविजय की टीम में एक के बाद एक को reject करने के बाद रोज़ी के दिमाग में जैसे ही विक्की का नाम आया तो वो कुछ सोचने लगी। उसी सोच के साथ उसने खुद से बात करते हुए कहा:
रोज़ी : विक्की तो एक दम फिट है। उसके शरीर की बनावट भी अच्छी है। वो मुझे मिल जाये तो बस मज़ा आ जायेगा।
अपनी बात को रोज़ी जिस अंदाज़ से कह रही थी उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वह दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो और विक्की उसे देख कर तुरंत मान जायेगा। एक बार फिर उसने अपनी बात को दोहराते हुए कहा:
रोज़ी : वैसे भी वह अपनी पत्नी से दूर रहकर परेशान होगा। मुझे चल कर उसकी परेशानी को दूर करना चाहिए।
इसी सोच के साथ रोज़ी ने कमरे में लगी घङी की तरफ देखा तो बारह से ऊपर हो गए थे। वह जल्दी से bed की तरह गयी। उसने उसी नाईटी का गाउन उठाया और उसे पहन लिया। रोज़ी ने एक बार फिर रणविजय को हिलाया। वह रणविजय को चैक कर रही थी कि वह जागा हुआ तो नहीं है। उसे सोता पाकर अपने आप से बुदबुदायी :
रोज़ी : ये समय बिलकुल सही है। रात के समय आदमी को भी एक औरत की ज़रुरत होती है। आज विक्की मेरी ज़रुरत पूरी करेगा और मैं उसकी।
एक तरफ जहां रोज़ी दबे हुए पैरों से विक्की के कमरे में जाने के लिए निकल गयी थी वही दूसरी तरफ जैसे ही नवाब साहब की शानदार गाड़ी ध्रुव और बल्ली को लेकर अपनी हवेली के अंदर पहुंची तो हवेली का नज़ारा देख कर दोनों दंग रह गए थे। ध्रुव की नज़र हवेली से हट ही नहीं रही थी। तभी बल्ली ने पास बैठे ध्रुव से कहा:
बल्ली : भाई ये हवेली है या महल। इतना बड़ा और शानदार है।
जिस तरह आँखों को फाड़ कर बल्ली हवेली को देख रहा था उससे साफ़ पता चल रहा था कि उसने इससे पहले इतनी शानदार ईमारत कभी नहीं देखी। वह नवाब साहब की हवेली को देखने में इतना खो गया था कि उसे मालूम नहीं चल रहा था कि उसने अपने मुँह को खोला हुआ है। ध्रुव ने उसको कोहनी मारते हुए कहा:
ध्रुव : भाई, ज़रा अपना मुँह तो बंद कर ले।
ध्रुव के कोहनी मारने और बात को कहने पर बल्ली ने चौंक कर अपने मुँह को बंद कर लिया था। बल्ली ने अभी जो नज़ारा देखा था, बाहर से ही देखा था। ऐसा नहीं था कि बल्ली ने मुंबई शहर में ऊंची ऊंची इमारतें नहीं देखी थी। भले ही बल्ली का घर ईमारत में नहीं था मगर उनके बीच में तो था।
लेकिन जो खूबसूरती उसे हवेली में दिखी वह ऊँची बिल्डिंग में कहाँ । मुंबई में जगह की कमी होने की वजह से बिल्डिंग ऊंची होती है चौड़ी नहीं मगर नवाब साहब की हवेली ऊंची होने के साथ साथ इतनी चौड़ी थी कि एक कोने से दूसरे कोने तक जाने के लिए अच्छा खासा टाइम लगेगा। जैसे ही गाड़ी ने हवेली के main gate के अंदर entry की तो बल्ली ने हवेली का नाम पढ़ते हुए कहा:
बल्ली : शम्स हवेली।
gate के बाहर जिस पत्थर पर हवेली का नाम लिखा हुआ था वह कोई आम पत्थर नहीं, एक अलग किस्म का खास पत्थर था। उधर नवाब साहब ने देख लिया था कि बल्ली की नज़र हवेली के नाम पर है। भले ही बल्ली ने हवेली के नाम को आहिस्ता से कहा था मगर वो आवाज़ गाड़ी में बैठे नवाब साहब ने सुन ली थी। बल्ली की बात में अपनी बात मिलाते हुए नवाब साहब ने कहा:
नवाब साहब : बल्ली, ये खास पत्थर है। ये हमारे बुज़ुर्गो ने देश के बाहर से मंगवाया था।
जैसी ही बल्ली ने नवाब साहब की बात सुनी तो उसने सोचा कि नवाब साहब सब तरफ नज़र रखते है। दूसरे ही पल में उसके अंदर उस खास पत्थर के बारे में और ज़्यादा जानने की उत्सुकता ने जनम ले लिया था। इससे पहले वो कुछ सवाल करता, उधर से नवाब साहब की आवाज़ आयी:
नवाब साहब : इस पथ्थर की खास बात ये है कि ये रात में भी चमकता है। चाँद की रौशनी में इस पर लिखे अल्फाज़ो की चमक और बढ़ जाती है। इसपर जो अल्फ़ाज़ लिखे है उसे लिखवाने के लिए हमारे दादा के दादा ने राजस्थान के मशहूर नक़्क़ाश को बुलाया था।
नवाब साहब ने जिस तरह अपने दादा के दादा की बात की थी, उसे सुन कर बल्ली और ध्रुव चौंक गए थे। अभी तक उन्होंने नवाबो के किस्से किताबों में ही पढ़े थे, अब अपनी आँखों के सामने सुनने को मिल गए। ध्रुव में थोड़ा मज़ाकिया अंदाज़ में कहा:
ध्रुव : नवाब साहब, कहीं आपके दादा के दादा ने उस नक्काश के हाथ तो नहीं कटवा दिया थे।
बल्ली : ध्रुव के कहने का मतलब है जिस तरह शाहजहाँ ने ताजमहल बनाने वालों के हाथ क़लम करा दिए थे, इसी तरह कहीं ऐसा कुछ आपके दादा के दादा जी ने तो नहीं किया था।
ध्रुव और बल्ली की बात सुन कर नवाब शमसुद्दीन के चेहरे पर हंसी आ गयी। उन्हें हँसता हुआ देख कर ध्रुव और बल्ली भी हंसने लगे। ध्रुव की तो original हंसी थी मगर बल्ली की हंसी में बनावटीपन। वह नवाब साहब के ताल में ताल मिलाने के लिए हँसा था। नवाब साहब ने हँसते हुए कहा:
नवाब साहब : आप लोग मज़ाक अच्छा कर लेते है। वैसे बता दूँ कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। हाँ इतना ज़रूर था कि हमारे बुज़ुर्गो ने उस नक्काश को इनाम में अच्छी खासी रकम दी थी। नवाब साहब की बात सुन कर बल्ली से रहा नहीं गया। उसने तुरंत कहा:
बल्ली : जिस तरह आपने काम होने के बाद इनाम के तौर पर ये गाडी हमें देने का वादा किया है।
बल्ली ने ये बात जान बूझ कर कही थी। वह नवाब साहब को उनका वादा याद दिला रहा था। उसे डर था कि कही काम होने के बाद नवाब साहब अपनी ज़बान से मुकर ना जाये। नवाब साहब ने एक बार फिर बल्ली के मन में होने वाले सवाल का जवाब देते हुए कहा:
नवाब साहब : हमने एक बार जो वादा कर दिया उसे ज़रूर निभाते है। बस तुम अपने काम को सही से अंजाम दो।
तभी बल्ली ने मन में सोचा, अगर नवाब साहब से स्टैम्प पेपर पर एक एग्रीमेंट करा ले तो अच्छा होगा। अगले ही पल उसने अपने ख्याल को रद कर दिया। उसे नवाब साहब की ज़बान पर यकीन हो गया था। जैसे ही गाड़ी हवेली के एंट्री गेट पर पहुंची तो वहां खड़े नवाब साहब के ख़ादिमों को देख कर बल्ली एक बार फिर चौंक गया। उसने तुरंत कहा:
बल्ली : ये सब हमारे इस्तकबाक के लिए आये है ?
ध्रुव : इस्तकबाक नहीं होता बल्कि इस्तकबाल होता है। तुम रहने दो, तुमसे नहीं बोला जायेगा। तुम बस वेलकम ही बोल दो।
नवाब साहब के ख़ादिमों का dress-up किसी five star hotel में काम करने वाले मैनेजर से कम नहीं था। जैसे ही गाडी गेट पर रुकी, काफी सारे ख़ादिम आ कर गाड़ी के साइड में खड़े हो गए। एक ने नवाब साहब के उतरने के लिए गाड़ी का गेट खोला तो दूसरे ने ध्रुव और बल्ली के लिए गेट।
बल्ली ने जैसे ही गाड़ी से बाहर निकल कर ज़मीन पर अपना पैर रखा तो लाल शानदार कालीन देख कर उसे अलग ही feeling आने लगी। नवाब साहब जैसे ही उन दोनों को हवेली के अंदर लेकर गए तो हवेली के Hall में लगे झूमर को देख कर बल्ली ने कहा:
बल्ली : ये झूमर है या उसका बाप। इतना बड़ा झूमर मैंने अपनी life में कभी नहीं देखा।
हवेली के हॉल में लगा झूमर अपने आप में इतना अद्भुत और बड़ा था कि देखने वाले की आँखे खुली की खुली रह जाएँ। बल्ली और ध्रुव ने भी काफी देर तक उस झूमर को देखा। उस झूमर में लगी लाइट उसे और भी ज़्यादा खूबसूरत बना रही थी। हॉल में थोड़ी दूर चलने के बाद बल्ली की नज़र सामने बड़ी सीढ़ियों के बीच में लगे हिरन के कटे हुए सर पर गयी। वो उसे बड़ी हैरानी से देख रहे थे। इस बार ध्रुव ने नवाब साहब से सवाल करते हुए कहा:
ध्रुव : ये जो सामने जानवर है। उसे किसने मारा?
हॉल से होते हुए जो सीढ़ियां ऊपर जा रही थी वहा पर एक हिरन का कटा हुआ सर था और एक नील गाय का। उसके ठीक नीचे एक बड़ी सी तस्वीर लगी हुयी थी जिसमे एक आदमी शानदार नवाबी अंदाज़ में खड़ा हुआ था। उसका एक पैर मरे हुए शेर के ऊपर था। उन्होंने अपने एक हाथ में बन्दूक भी पकड़ी हुयी थी। नवाब साहब ने उस तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए कहा:
नवाब साहब : ये हमारे वालिद साहब के वालिद साहब है, यानि हमारे दादा नवाब शमशुद्दीन अकबर है। इन्हे शिकार का बड़ा शौक था। इन्होने ही इस शेर का शिकार किया था।
थोड़ी देर तक नवाब साहब उस तस्वीर को देखते रहे। उस तस्वीर को देख कर उनकी आँखों में जो चमक थी, उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने दादा के शिकार को लेकर गर्व महसूस कर रहे हो। बल्ली ने अपनी बात रखते हुए कहा:
बल्ली : सच में नवाब साहब, शौक भी बड़ी चीज़ होती है।
जैसे ही नवाब साहब ने बल्ली की बात सुनी तो तुरंत उसकी तरफ मुड़े और चेहरे पर smile लेकर हाँ में अपना सर हिला दिया। नवाब साहब ने अपने एक ख़ादिम को बुलाया और उससे कहा:
नवाब साहब : ये दोनों हमारे खास मेहमान है। इनकी मेहमान नवाज़ी में कोई कमी नहीं रेहनी चाहिए।
नवाब साहब का हुकुम पाकर उस ने अदब के साथ अपना सर झुका कर हाँ कहा। ये सब अनुभव बल्ली और ध्रुव के लिए बिलकुल नया था। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि दोनों को इतनी इज़्ज़त मिलेगी। अगली आवाज़ भी नवाब साहब की ही थी। उन्होंने इस बार बल्ली और ध्रुव से बात करते हुए कहा:
नवाब साहब : अब आप जाकर आराम कीजिये, सफर से आये है, थके हुए होंगे। हम कल मिलते है और अपने प्लान के बारे में बताते है।
नवाब साहब की इस बात पर दोनों ने हाँ में सर हिलाया। नवाब साहब अपनी बात कह कर वहां से जाने लगे। अभी भी नवाब साहब के आगे पीछे कई खादिम थे। बल्ली नवाब साहब को लगातार देखे जा रहा था। ध्रुव ने उसके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा:
ध्रुव : भाई, नवाब साहब को कहाँ तक छोड़ कर आने का इरादा है। बस वापस आ जा, वैसे भी हम थके हुए है, चल कर आराम करते है।
खादिम अभी भी ध्रुव और बल्ली के चलने का इंतज़ार कर रहा था। उधर ध्रुव और बल्ली सोच रहे थे कि पहले नवाब साहब का खादिम चले और उसके पीछे ध्रुव और बल्ली। जब काफी देर हो गयी। दोनों तरफ से कोई हिला नहीं तो ध्रुव ने कहा।
ध्रुव : ये पहले आप, पहले आप के चक्कर में गाड़ी छूट गयी थी। चलो हम ही पहले चलते है।
अपनी बात को कह कर ध्रुव और बल्ली ने पहले कदम बढ़ाया। खादिम उनके पीछे पीछे उन्हें कमरे का रास्ता बता रहा था। जैसे ही दोनों अपने कमरे में पहुंचे तो कमरे को देख कर दंग रह गए। बल्ली को तो लगा ही नहीं कि वह उनके रहने के लिए कमरा है। उसने खादिम से पूछते हुए कहा:
बल्ली : भाई हम लोगों के रहने के लिए कौन सा कमरा है?
इस पर खादिम ने बताया की यही उनके रहने का कमरा है। वो कमरा अपने आप में इतना बड़ा था जितनी एक छोटी सी हवेली हो। तभी खादिम ने खाने की टेबल की तरफ इशारा किया। जैसे ही दोनों ने उस टेबल की तरफ देखा तो चौंक गए। तभी बल्ली के मुँह से निकला:
बल्ली : ये तो वही बात हुयी, खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।
बल्ली ने डायनिंग टेबल पर ऐसा क्या देख लिया जिससे उसे दूर के ढोल सुहाने लगने लगा। आखिर नवाब साहब का प्लान क्या था? क्या नवाब साहब की मेहमान नवाज़ी में कोई कमी रह गयी थी? उधर क्या रोज़ी अपने मकसद में कामियाब होगी? क्या विक्की उसके झांसे में फँस जायेगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.