रोज़ी ने रणविजय के खिलाफ जितनी भी भड़ास निकालनी थी वह निकाल चुकी थी। जिस तरह हर बार रणविजय उसे अधूरा छोड़ देता था। वो अनुभव उसके लिए बड़ा ही दर्द भरा होता था। इस दर्द से उभरने के लिए उसे किसी ऐसी मर्द की ज़रुरत थी जिसे वह अपने रात का हमसफ़र बना सके।
रोज़ी रणविजय के पास से हट कर कमरे में लगे शीशे की तरफ आकर खड़ी हो गयी। ये वही शीशा था जिसमें वह रणविजय के लिए सजती और संवरती थी। अपने आप को शीशे में देख कर रोज़ी ने कहा:
रोज़ी : कितनी तो खूबसूरत हूँ। लगता है रणविजय के नसीब में इस ख़ूबसूरती का मज़ा चखना है ही नहीं।
रोज़ी जिस तरह अपने शरीर के एक एक अंग को देख कर गर्व महसूस कर रही थी उसका अंदाज़ा उसके चेहरे पर आने वाले भाव से साफ़ बता चल रहा था। उसने अपनी आँखों पर अपनी उँगलियों को फेरते हुए कहा:
रोज़ी : कितनी नशीली है ये आँखे। एक बार किसी को भी प्यार से देख ले तो सामने वाला उसमें डूबने को तुरंत तैयार हो जाये।
रोज़ी की आँखे बड़ी बड़ी थी। उसकी आँखों में जो कशिश थी, उसे देख कर कोई भी दीवाना हो जायेगा। वो थोड़ा इतरायी और अपनी आँखों की तारीफ करते हुए कहा:
रोज़ी : एक समय था जब रणविजय मेरी इन्ही आँखों पर मरता था मगर पता नहीं आज उसे क्या हो गया।
शीशे में देखते हुए रोज़ी ने अपने हाथो की उँगलियों को अपने गालों पर ला कर रोक दिया। वह उँगलियों से गालों को सहलाने लगी। रोज़ी के गाल उस समय सुर्ख थे। बिना मेक-उप के भी रणविजय ने उसके गालों की कई बार तारीफ की थी। इस समय रोज़ी का मन हो रहा था कि उसके गालों को कोई चूमे। रोज़ी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा:
रोज़ी : मैं ऐसे होंठों को ढूंढ कर लाऊंगी जो इन्हें एक बार फिर चूमेगा।
अपने गालों के साथ साथ जब रोज़ी ने अपने होंठो को हाथों से छुआ तो एक आह की आवाज़ उसके हलक से निकली । वो अपने आप को शीशे में बड़े गौर से देख रही थी। जिस तरह उसके हाथों को उसके होंठ गरम लगे, तो तुरंत रोज़ी की आवाज़ आयी।
रोज़ी : So Hot!!! कितने गरम है मेरे होंठ। वो कौन खुश नसीब होगा जो मेरे इन होंठो की प्यास बुझायेगा ।
इस समय रोज़ी अपने लिए कोई प्यार करने वाला नहीं बल्कि उसकी हवस को पूरा करने वाला शिकार ढूंढ रही थी। उसने शीशे में अपने गले के नीचे के हिस्से को देख कर कहा:
रोज़ी : कितने प्यारे लग रहे है। मुझे वो दिन अच्छे से याद है जब bar में रणविजय इन्हे ही देख कर मेरा दिवाना हो गया था। तभी रोज़ी ने अपने बालो को खोला और शीशे में उन्हें देख कर कहा:
रोज़ी : सच में, मैं खुले हुए बालों में बहुत अच्छी लगती हूँ। खुले हुए बालों में मेरा चेहरा चौदहवीं का चाँद की तरह हो जाता है।
रोज़ी ने अपने शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं छोड़ा था जिसकी खुद तारीफ ना की हो। रणविजय के शरीर की जितनी ज़रुरत होती थी वह रोज़ी तो पूरा कर देती थी मगर रोज़ी के शरीर की ज़रूरत पूरी होने से पहले ही रणविजय उसका साथ छोड़ देता था। वैसे रणविजय उसे प्यार तो बहुत करता था। रोज़ी ने खुद को शीशे में देखते हुए एक बार फिर कहा:
रोज़ी : सच में, भगवान् ने मुझे बड़ी फुर्सत से बनाया है। मुझ जैसे कमसिन लड़की इस दुनिया में कोई नहीं होगी।
रोज़ी ने शीशे में देख कर खुद की तारीफ इस तरह से की जैसे वो आसमान से आयी हुई कोई परी हो। वह भूल गयी थी कि एक छोटे से bar में काम करने वाली लड़की को, जिस आदमी ने रानी बनाया, वो कोई और नहीं बल्कि रणविजय ही था। उसने खुद से बात करते हुए कहा:
रोज़ी : और अगर मेरी ज़िन्दगी के बर्बाद होने के पीछे कोई है तो वो भी रणविजय ही है।
इस बार रणविजय का नाम लेते ही उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए थे। वह तुरंत शीशे के सामने से हटी और रणविजय के पास आकर खड़ी गयी। तभी रणविजय के कुछ बोलने की आवाज़ आयी। उसकी आवाज़ सुन कर वह घबरा गयी।
एक तरफ उसे डर था कि कही रणविजय ने उसकी सारी बात सुन तो नहीं ली। वही दूसरी तरफ विक्की ने जब पारो की बात सुनी तो घबरा गया। उसके पूछने पर पारो ने कहा:
पारो : हमारे मोहल्ले में शर्मा जी रहते है।
विक्की : वही शर्मा जी ना जो दो घर छोड़ कर रहते है।
पारो ने विक्की की बात का जवाब हां में दिया। उसने विक्की को बताया कि उनकी बेटी ने एक ऐसे ही लड़के से भाग कर शादी कर ली, जिसका कुछ अता पता नहीं था। जब वह लड़की pregnant हो गयी तो वो लड़का उसे छोड़ कर चला गया। अब उस लड़की के साथ साथ उसके घर वालों पर भी सब लानत भेज रहे हैं ।
विककी को समझ में नहीं आया कि पारो ने उससे ये बात क्यों कही मगर फिर भी अपनी बात रखते हुए विक्की ने कहा:
विककी : देखो पारो, दुनिया बहुत बड़ी है, इसमें हर तरह के लोग रहते है। हम अगर सब की बातें सुनेंगे तो जीना मुश्किन हो जायेगा।
पारो तो विक्की की बातों को समझ रही थी मगर उसके घर वालों की बातें बार बार उसे परेशान कर रही थी। सबसे ज़्यादा समय वो अपने माता पिता के साथ ही गुज़रती थी। आस पास के लोगो की बातें, उसकी सहेलियों की बातें, उसके रिश्तेदारों की बातें, उन सब बातों से पारो का मन विक्की के लिए गलत सोच बैठता था। विक्की ने पारो को समझाते हुए कहा:
विक्की : लोग क्या बोलते है, उससे मुझे फर्क नहीं पड़ता। वर्मा जी क्या बोलते है उससे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, यहाँ तक की तुम्हारे माता पिता क्या सोचते है, उससे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
विक्की को अगर फर्क पड़ता था तो वह पारो से पड़ता था। उसने पारो से प्यार किया था। पारो ने ही उसे हर जगह support किया था। जब सब कुछ पारो ने ही किया था तो दुसरो की परवाह विक्की क्यों करे। इस बार थोड़ा clear बात करते हुए विक्की ने पारो से कहा:
विक्की : इसलिए मैं अभी भी कहता हूँ, लोगों का काम कहना होता है, वो एक कान से सुनेंगे और अगले दिन दूसरे कान से निकाल देंगे। बस तुम्हे मेरे ऊपर भरोसा होना चाहिए।
पारो : और वह मुझे है। मैं ही थोड़ी कमज़ोर पड़ जाती हूँ। मेरी ही गलती है।
विक्की भी पारो को यही समझाने की कोशिश कर रहा था कि हमें एक दूसरे पर विश्वास रखना होगा। विश्वास ही तो एक ऐसी डोर होता है जो दो प्यार करने वालो को आपस में बांध कर रखता है। एक तरफ जहाँ विक्की और पारो के बीचे इस तरह की बातों के साथ साथ प्यार की बातें भी हुयी थीं । वही दूसरी तरफ रोज़ी ने bed पर लेटे हुए रणविजय को ऊंघते हुए देखा तो डर गयी।
उसे लगा कि रणविजय होश में है और उसने उसकी बातें सुन ली। मगर ऐसा बिलकुल भी नहीं था। वह रोज़ी का भरम था। रणविजय ने जिस हिसाब से whisky के पेग पिए, नहीं लगता था कि सुबह तक भी वो उठ पायेगा।
वह थोड़ी देर के लिए बुरी तरह घबरा गयी थी। उसके मन में तरह तरह के सवाल आने शुरू हो गए थे। वह तुरंत bar counter पर गयी। उसने विक्की के हाथ से जो whisky की बोतल को छिपा कर रखा था, उसे तुरंत मुँह से लगाया और दो घूँट whisky के पिए। पीने के बाद रोज़ी ने उस बोतल को वापस baar counter पर रख दिया।
दो घूंट पीने पर जो झनझनाहट रोज़ी को हुयी थी उससे उसका दिमाग पूरा का पूरा हिल गया था। वह हमेशा wine पीती थी मगर आज गुस्से में आकर उसने whisky के दो घूँट मार लिया थे। बोतल को हाथ में लिए वह रणविजय के पास आ गयी। थोड़ी देर बाद रोज़ी को तस्सली हो गयी थी कि रणविजय अभी बेहोश ही है।
इस बार तो उसने सारी हदों को पार कर दिया। उसने रणविजय के सीने पर पैर रख दिया था। उस whisky के दो घूँट ने रोज़ी का सर पूरी तरह से हिला दिया था। रणविजय के सीने पर पैर रखने के साथ साथ वह झूम भी रही थी। उसने झूमते हुए कहा:
रोज़ी: मैंने तुम्हे पूरी शिद्दत से चाहा था मगर तुमने अपनी ज़रुरत का सामान समझ कर इस्तेमाल किया। बस अब और नहीं।
रोज़ी ने अपनी बात को पूरा करते करते रोक दिया था। वह समझ गयी थी कि रणविजय से बात करके कोई फायदा नहीं। अब जो भी हल निकालना है वो उसे ही निकालना होगा। उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा:
रोज़ी : मैं तुम्हारी तरह पागल नहीं हूँ, मैंने व्हिस्की के सिर्फ दो घूँट पिए और मुझे समझ में आ गया कि इसमें कितना नशा होता है। तुम्हे भी खुद पर control करना होगा।
रोज़ी के कहने का साफ़ मतलब था कि अगर रणविजय ने whisky पीने में control नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब रणविजय या तो रास्ते या फिर किसी नाली के गटर में गिरा हुआ मिलेगा। रोज़ी ने रणविजय के बेहोश होने का फायदा उठा और इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया।
अपनी बात को कह कर रोज़ी ने रणविजय के सीने से पैर हटा लिया। वह वापस bar counter पर आयी और उस बोतल को वापस रख दिया।
बोतल रखने के बाद रोज़ी ने अपने दोनों हाथों को bar counter पर रख लिया था। जिस तरह उसने अपने सर को नीचे झुका रखा था वह अपने दिमाग को शांत करना चाह रही थी। उसने खुद से बात करते हुए कहा:
रोज़ी : जितनी जवानी रणविजय के साथ ख़राब करनी थी, कर ली, मगर अब और नहीं।
रोज़ी ने अपने सर को ऊपर उठाया और चेहरे पर confidence वाले expression दिए। वह तुरंत उसी भाव के साथ वापस शीशे के पास आ गयी। इस बार उसने सामने रखे मेकअप के सामान से अपना foundation निकाला और चेहरे को ठीक करने लगी। उसने अपने होंटो पर एक बार फिर लिप्स्टिक लगायी।
वो इस तरह अपने चेहरे को तैयार कर रही थी जैसे किसी से मिलने जा रही हो। अब वो पहले से सुन्दर लगने लगी थी। उसने अपने आपको शीशे में देखा और कहा:
रोज़ी : हसमुख, मुझसे बात करने की बहुत कोशिश करता है। अगर मैं उसे कहूँगी तो मेरे साथ सोने के लिए तुरंत तैयार हो जायेगा।
रोज़ी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हसमुख उसे पसंद करता है या नहीं। रोज़ी को भी तो वो पसंद आना चाहिए। रोज़ी ने हसमुख की नज़रो को पढ़ लिया था मगर रोज़ी उससे बहुत चिढ़ती थी। सवाल ही नहीं था कि रोज़ी हसमुख को अपने साथ सुलाती। रोज़ी ने सोचते हुए कहा:
रोज़ी : उसमान ने कभी मुझे गलत नज़र से नहीं देखा। उससे बात करने से कोई फायदा नहीं।
रोज़ी ने उसमान को भी अपना शिकार बनाने से मना कर दिया था। अब उसके सामने विक्की और चैंग था। उसने चैंग के बारे में सोचते हुए खुद से कहा:
रोज़ी: चैंग, लड़का देखने में तो ठीक है मगर उसकी गारंटी नहीं ले सकते। अगर वह भी रणविजय की तरह निकला तो।
रोज़ी ने जिस तरह अपनी बात को अधूरा छोड़ा था। इसका यही मतलब था कि चैंग भी reject हो गया। रोज़ी की ये सारी बातें ख़याली थी। अब रणविजय की team में अगर कोई बचा हुआ था तो वह था विककी। क्या रोज़ी विक्की को भी reject कर देगी? आखिर वह अपने लिए किसको चुनेगी? रोज़ी की इस ज़रुरत को पूरा करने के लिए कहानी में कोई नया किरदार आएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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