कुछ रातें भयानक सी होती है, जब आपको अंदर से महसूस होता है की आज कुछ ठीक नहीं है यह रात हर रोज़ वाली रात की तरह नहीं है बल्कि इसमें एक अजीब सा डर है , इस फीलिंग को कहते है गट फीलिंग। आज की रात की कुछ ऐसी ही मनहूस सी फीलिंग दे रही थी। आसमान में घने काले बादल ऐसे घुमड़ रहे थे जैसे कोई बड़ी अनहोनी होने वाली हो। चारों तरफ घुप्प अंधेरा, और बिजली भी किसी ख़राब ट्यूबलाइट की तरह बीच-बीच में चमक कर थोड़ी थोड़ी रौशनी की उम्मीद जगाये हुई थी सड़कों पर सन्नाटा पसरा था, जैसे हर किसी ने समझ लिया हो कि बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं। जानवर तक नदारद थे, इंसानों की तो बात ही छोड़ दो।
अचानक सिटी रोड पर एक गाड़ी की हेडलाइट अँधेरे को चीरते हुई दिखाई देने लगी , उसके इंजन के शोर ने जैसे रात को ही चौका दिया हो गाड़ी की स्पीड हर पल बढ़ती जा रही थी, मानो ड्राइवर को इस तबाही मचाते मौसम से कोई लेना-देना ही नहीं था। आदित्य, बिना किसी परवाह के, अपनी धुन में गाड़ी चला रहा था। उसकी नजरें बार-बार बगल में रखे मोबाइल फोन पर जा टिकतीं, जैसे किसी बहुत अहम कॉल का इंतजार हो। उस महँगी लक्ज़री गाडी में एसी चालु होने के बावजूद आदित्य के चेहरे पर पसीना साफ़ दिखाई दे रहा था।
जैसे-जैसे गाड़ी की रफ्तार बढ़ रही थी, वैसे ही आदित्य के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं। बाहर का तूफान जैसे उसकी अंदरूनी उथल-पुथल का प्रतिबिंब था। दिमाग में उलझे हुए ख्याल तेजी से दौड़ रहे थे, जैसे कुछ अनचाहा घटने वाला हो। उस बेचैनी को काबू में करने के लिए आदित्य ने रेडियो ऑन कर दिया, मानो बाहर के शोर से अपने अंदर के तूफान को शांत करना चाहता हो। रेडियो पर कौन सा गाना बज रहा था शायद उसके कानो तक पहुंच भी न रहा हो बस गाड़ी आगे बढ़ती जा रही थी और वह अपने ख्यालों में उलझा हुआ था।
फोन की घंटी बजते ही आदित्य जैसे चौंक गया और हड़बड़ी में उसने अपना फ़ोन नीचे गाड़ी में गिरा दिया, वह यह भूल गया की वो वह गाडी चला रहा है और तुरंत फ़ोन उठाने के लिए झुका , उसके झुकते ही गाडी थोड़ी डिस बैलेंस हुई और जैसे ही टायर्स ने चीखे मारी उसने गाडी को संभाला , खुद को किसी तरह संभालते हुए, उसने कांपते हाथों से फोन उठाया। "मैं... मैं आपके पास ही आ रहा था," उसने हड़बड़ाते हुए कहा। लेकिन दूसरी तरफ से उसे तीखी गालियों का सामना करना पड़ा। फोन के उस पार से पैसों की मांग हो रही थी। “अगर एक हफ्ते के अंदर मुझे पूरे पैसे नहीं मिले, तो मुझे तुम्हारे घर आकर अपनी वसूली खुद करनी पड़ेगी,” दूसरी तरफ से धमकी भरे लहजे में आवाज आई।
"अरे, मैंने तुझे 50 लाख तो पहले ही दे दिए हैं... बाकी के भी दे दूंगा," आदित्य ने थोड़ा झल्लाते हुए ये बात कही। लेकिन दूसरी तरफ से कड़ी आवाज आई, "हमारी बात सिर्फ पैसों की नहीं, कई और चीजों की भी हुई थी, लेकिन तुमने उन्हें पूरा नहीं किया। मुझे मेरे पैसे कल तक चाहिए, वरना अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहो।”
आदित्य ने गुस्से में फोन को सीट पर दे मारा। उसे आज तक इस तरह की बेइज्जती का सामना नहीं करना पड़ा था। आखिर वह खन्ना साहब का बड़ा बेटा था, शहर के नामचीन और रसूखदार बिजनेसमैन का वारिस। उनके कारोबार की गूंज करोड़ों तक फैली थी। पापा की याद आते ही आदित्य का दिल और भारी हो गया, गुस्से और तनाव का एक सैलाब उसके भीतर उमड़ पड़ा। उसने रेडियो की वॉल्यूम और तेज कर दी, जैसे शोर में अपने डर और गुस्से को दबाने की नाकाम कोशिश कर रहा हो।
बारिश इतनी तेज हो चुकी थी कि वाइपर भी बेअसर हो गए थे। ठीक जैसे उसकी ज़िंदगी में भी सब कुछ धुंधला हो चुका था, आदित्य को अपने सामने का रास्ता कुछ समझ नहीं आ रहा था। गाड़ी की रफ्तार सौ के पार निकल चुकी थी, और इंजन से अजीब आवाज़ें आने लगीं। अचानक, आदित्य का ध्यान टूटा, उसने घबराकर ब्रेक दबाया, लेकिन गाड़ी धीमी होने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसने फिर से ब्रेक पर जोर लगाया, लेकिन इस बार भी कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद क्या हुआ, उसे खुद समझ नहीं आया। जब सब कुछ थम चुका था, आदित्य की गाड़ी एक पब्लिक बाथरूम के भीतर धंसी हुई थी। चारों तरफ कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे, और उसके सिर से खून बह रहा था।
शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन के बेटे की हादसे में मौत हो जाना अखबारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्खिया बन चुके थे। इस खबर को बारीकी से अपने घर में बने आलिशान दफ्तर के अंदर बैठे राकेश माधवानी पढ़ रहे थे। उनके हाथ में ब्लैक कॉफ़ी थी। राकेश माधवानी केवल शहर ही नहीं बल्कि पूरे देश के जाने माने वकीलों में से एक थे। वकालत इनका जूनून है और इसी जूनून ने आज इन्हे इस मुकाम तक पहुंचाया है , ऐसा नहीं की इन्होने कोई केस नहीं हारा है पर इनकी जीत के क़िस्से हार से ज्यादा मशहूर है।
वैसे माधवानी साहब के केबिन का दृश्य ज़बरदस्त है। कमरे के बीचो बीच एक बड़ा कांच का टेबल , डेस्क पर एक लैपटॉप, कुछ फाइलें और एक सुंदर पेन स्टैंड जिसमे भारत का एंब्लेम है। डेस्क के पीछे है उनकी आलिशान लेदर चेयर जो उनके व्यक्तित्व को और भी प्रभावशाली बनाती है। दीवारों पर कई ट्रॉफीज और अवार्ड्स सजे हुए हैं, जो उनकी उपलब्धियों की कहानी बयां करते हैं।
ठीक सामने की दीवार पर कई पेपर कटिंग्स फ्रेम में लगी होती हैं, जो राकेश माधवानी के महत्वपूर्ण केसों और उनकी सफलता की गाथा को दर्शाती हैं। कमरे के एक कोने में एक बड़ी लाइब्रेरी है, जिसमें कानूनी किताबों का विशाल संग्रह है और उसी लाइब्रेरी के पास एक आरामदायक सोफे सेट है जहाँ क्लाइंट्स बैठकर उनसे चर्चा कर सकते हैं। कमरे में एक छोटी सी कॉफी मशीन भी है।
खन्ना साहब बिलख बिलख के रो रहे थे। उनके सामने उनके लाडले बेटे की लाश पड़ी थी। आदित्य को उन्होंने गले से लगा लिया। उनके कपड़े खून से सन गए पर खन्ना साहब को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। वह सिर्फ अपने बेटे को आखिरी बार गले लगाना चाह रहे थे।
राकेश का फ़ोन बजता है और फ़ोन पर एक व्यक्ति उनसे पियूष खन्ना के यहाँ आने की गुज़ारिश करता है। राकेश को पता है की खन्ना साहब उन्हें क्यों बुला रहे है पर इतनी जल्दी बुला लेंगे ये राकेश के लिए सवाल बन गया था।
पियूष खन्ना , ये बिल्डर भी है, इनकी फ़ैक्टरिया भी है और इनके दो बेटे है बड़ा बेटा आदित्य जो हादसे में अपनी जान गवाह बैठा और दूसरा बेटा है करण जो अभी अभी कॉलेज से पास आउट हुआ है। खन्ना साहब अपने बेटे को आखरी बार देख रहे थे, पर उनकी नज़रें दरवाज़े की ओर बार बार जा रही थी वो बेसब्री से राकेश का इंतज़ार कर रहे थे। पास में उनकी बीवी ओर छोटा बेटा ज़ोर ज़ोर से रो रहे थे शायद उनके कानो में इस वक़्त वो रोना सुनाई भी नहीं दे रहा था।
राकेश वहा पहुंचते है ओर उन्हें देखते ही खन्ना साहब खड़े हो जाते है , खन्ना साहब को अचानक खड़े होते देख बाकी लोग भी देखते है की ऐसा कौन है जिसके लिए खुद खन्ना साहब खड़े हो गए है। राकेश अपनी चप्पल उतार कर अंदर आते है ओर तभी राकेश को देख कर एक व्यक्ति वहा से जाने की कोशिश करता है जिसे राकेश अपनी तिरछी नज़र से देख लेता है पर फिलहाल कुछ नहीं कहता। खन्ना साहब ओर राकेश आमने सामने आते है ओर राकेश उन्हें हिम्मत रखने को कहते है
खन्ना साहब हामी भरते हुए राकेश को अपने केबिन की ओर आने का इशारा करते है जिससे राकेश और हैरान हो जाता है। राकेश उनसे कहता है की ये इतना ज़रूरी नहीं है पर खन्ना साहब राकेश की नहीं सुनते। खन्ना साहब का ऐसा रवैय्या देख कर उनकी बीवी और छोटा बेटा करण भी हैरान हो जाते है। आखिर ऐसा क्या ज़रूरी काम है इस वक़्त अपने मरे हुए बेटे से भी ज्यादा ज़रूरी ऐसा क्या है? उस हॉल में सबके मैं में प्रश्न होता है पर कोई कह नहीं पता
खन्ना साहब की आँखें नाम है पर चेहरे पर गुस्सा है जो राकेश को साफ़ दिखाई दे रहा है। राकेश उनसे फिर कहता है की यह सब बातें बाद में भी की जा सकती है पर राकेश को टोकते हुए खन्ना साहब बोलना शुरू करते है "उस रात तेज़ बारिश थी , आदित्य को बारिश से बहुत डर लगता था ज़रा से बदल गरजते ही वह अपने प्लान्स कैंसिल कर देता था। गाड़ी तेज़ चलाने के सख्त खिलाफ था वो उसे नफरत थी इससे पूरा शहर ये जानता है की आदित्य हमेशा अपनी किसी भी मीटिंग के लिए सबसे पहले पहुँचता था। उसे मारा गया है राकेश जी उसे मारा गया है।
ये सुनते ही राकेश खन्ना साहब को कहता है की पुलिस रिपोर्ट में साफ़ लिखा है यह एक्सीडेंट है। और खन्ना साहब चिल्ला उठते है की यही एक्सीडेंट नहीं है! उसे मारा गया है और अगर आपको एक बाप के विश्वास पर संदेह है तो बेशक कीजिये मैं किसी और वकील से बात कर लूंगा। मैं शहर का देश के सबसे बड़े वकील को हायर कर सकता हूँ पर मैं चाहता था की आप इसे लड़े , यह बात सुनते ही राकेश उनसे कहता है की यही जानने तो वह भी यहाँ आया है की आप ये केस मुझे ही क्यों देना चाहते है जिसे सुनकर खन्ना साहब राकेश को कहते है की केवल राकेश ही है जो इस केस के इमोशंस को समझ सकते है जिसने खुद ना इंसाफ़ी के कारन अपना बेटा खोया हो वह एक बाप का दर्द समझ सकता है। यह सुनते ही राकेश ठंडा पढ़ गया राकेश के बेटे की मौत का पूरा मंज़र उसके सामने आ गया। इन्साफ के लिए लड़ना एक जूनून बनकर तब ही राकेश के अंदर आया था जब उसके बेटे को इन्साफ नहीं मिला था पर ये बात बहुत काम लोगों को पता थी। राकेश वहा से जाने लगा और खन्ना साहब बड़े से शीशे से बाहर गार्डन की ओर देखने लगे। जाते जाते राकेश ने कहा की वो एक बार सभी फाइल्स देखेगा उसके बाद ही डिसाइड करेगा
राकेश सीधे इंस्पेक्टर विक्रम सिंह के पास पहुंचे। इंस्पेक्टर विक्रम सिंह और राकेश ने कई केस साथ में सुलझाए है इनकी दोस्ती और दुश्मनी दोनों के ही किस्से अनजान नहीं है। राकेश विक्रम को कई सालों से जानते थे, और उन पर गहरा भरोसा था। अगर कहीं कोई गलती हुई हो तो बात अलग है, लेकिन विक्रम सिंह का काम हमेशा सटीक और निष्पक्ष होता था, जो पुलिस विभाग में किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं था। यही वजह थी कि राकेश खन्ना साहब का केस लेने से अब तक हिचकिचा रहे थे। लेकिन अब जब बात आगे बढ़ ही गई थी, तो एक बार मामले को देख लेने में कोई हर्ज़ नहीं था, ऐसा सोचकर वो इंस्पेक्टर से मिलने पहुंचे थे।
राकेश मौके पर पहुंचते ही चारों ओर का जायज़ा लेने लगा। जैसा कि पुलिस रिपोर्ट में लिखा था, पब्लिक प्रॉपर्टी को गंभीर नुकसान हुआ था। टॉयलेट के दो हिस्से हो चुके थे, और मलबा अब भी जगह-जगह बिखरा पड़ा था। उसने मलबे को हाथ से छूकर देखा—ईंटें चूर-चूर हो चुकी थीं। हादसे की जगह को देखकर यह साफ था कि गाड़ी बहुत तेज़ रफ्तार में रही होगी। उस दिन तेज़ बारिश हो रही थी, और रिपोर्ट के अनुसार, गाड़ी की स्पीड और सड़क की फिसलन को इस हादसे का मुख्य कारण बताया गया था। हनुमान टॉयलेट की हालत देखकर अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि गाड़ी की स्पीड 100 किलोमीटर प्रति घंटे से ऊपर रही होगी। ऐसे भयानक मौसम में इतनी तेज़ रफ्तार किसी के लिए भी जानलेवा साबित हो सकती थी, और आदित्य का भी यही अंजाम हुआ था।
राकेश को लगा कि वह बेवजह ही यहां तक आया। उसे उसी वक्त कड़े शब्दों में खन्ना साहब को केस लेने से मना कर देना चाहिए था। वह इन्हीं विचारों में खोया हुआ सड़क के किनारे धीरे-धीरे चलता जा रहा था। कुछ 100-200 मीटर आगे बढ़ते ही उसकी नजर टूटी हुई डिवाइडर पर पड़ी। पहले तो उसके दिमाग में यही ख्याल आया कि खन्ना साहब को पब्लिक प्रॉपर्टी डैमेज केस में और पैसे भरने पड़ेंगे, लेकिन अगले ही पल उसकी आंखें चौड़ी हो गईं। उसने एक ऐसी चीज़ देखी जो पूरी तस्वीर बदल सकती थी। और उसी क्षण, उसने खन्ना साहब का केस लड़ने का पक्का फैसला कर लिया।
कोर्ट की तारीख आ गई थी। एक तरफ खन्ना साहब और राकेश माधवानी अपने पक्ष में बैठे थे।
विपक्षी वकील मानसी, जो कोर्ट के दूसरी ओर खड़ी थी, यह सब देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। मानसी शहर की तेज़ी से उभरती हुई वकील थी। लोग कहते थे कि उसमें राकेश माधवानी की वही झलक नजर आती है, जो उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में दिखाई थी—बेबाक, तेज़-तर्रार, और हर बारीकी को गहराई से समझने वाली। लेकिन मानसी के मन में एक ही ख्वाहिश थी—वह राकेश माधवानी को एक बार हराना चाहती थी, पर अब तक उसकी यह कोशिश नाकाम रही थी।
आज उसे पूरा यकीन था कि यह एक ओपन एंड शट केस है, और इस बार वह आसानी से जीत जाएगी।
जज मीरा के कोर्ट में दाखिल होते ही सभी लोग खड़े हो गए। जज ने हथौड़ा चलाकर बैठने का संकेत दिया। राकेश कुछ कह पाता, उससे पहले ही मानसी तेजी से खड़ी हो गई और पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी दलील रखी,
मानसी: “मी लॉर्ड, आपके सामने पुलिस रिपोर्ट मौजूद है, जिसमें साफ तौर पर लिखा है कि यह एक हादसा था, जिसमें पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचा है। अगर खन्ना साहब नुकसान की भरपाई कर दें, तो मामला यहीं समाप्त हो सकता है। इतनी सी बात के लिए कोर्ट का बहुमूल्य समय क्यों बर्बाद किया जा रहा है?”
मानसी की आवाज़ में आत्मविश्वास और एक हल्की मुस्कान थी, जैसे उसे अपनी जीत पहले से ही तय लग रही हो।
राकेश के चेहरे पर एक हलकी सी मुस्कान आई और वह खड़े हो गए मानो की उन्हें पहले से ही पता था मानसी क्या कहने वाली है। खड़े होकर उन्होंने कहा की पहली नज़र में तो आजकल प्यार भी नहीं होता है माय लार्ड तो यहाँ तो किसी इंसान की जान का सवाल है थोड़ा वक़्त तोह देना चाहिए ना। यह सुनते ही कोर्ट में सब मुस्कुरा दिए और मानसी ने ऐसा चेहरा बनाया जैसे कोई पेशेवर एक नौकसीखिये की बातों पर बनता है राकेश ने कहा की यह हमारा काम है की हम हर मामले की तह तक जाए। मैं इंस्पेक्टर विक्रम सिंह को रिपोर्ट की कुछ अहम बातें बताने के लिए कटघरे में बुलाना चाहूंगा।
इंस्पेक्टर विक्रम सिंह कटघरे में आ खड़े हुए। उन्होंने कोर्ट को बताया की हादसे के वक्त गाड़ी ने पब्लिक टॉयलेट से करीब 300-400 मीटर पहले अपना नियंत्रण खो दिया था। आदित्य ने गाड़ी को संभालने की पूरी कोशिश की, लेकिन गाड़ी की तेज रफ्तार और बारिश के कारण वह गाड़ी पर काबू नहीं पा सका। नतीजतन, गाड़ी सीधे पब्लिक बाथरूम में जा घुसी, और सिर पर गहरी चोट लगने और अत्यधिक खून बहने से आदित्य की मृत्यु हो गई।
इंस्पेक्टर की गवाही से कोर्ट में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। राकेश ने इस बात को आगे बढ़ाते हुए कहा की शायद गाड़ी के ब्रेक नहीं लगे और आदित्य उस वक़्त यह कोशिश कर रहा था की कैसे भी गाड़ी को रोक लिया जाए इसलिए दरवाज़ों पर खरोंचे है
इस बात को सुनते ही मानसी ने कहा की ये भी तो हो सकता है उससे गाड़ी काबू ही ना हो रही हो . जिसके जवाब में राकेश कहते है की अगर गाड़ी बेकाबू होती तो तुरंत ही डिवाइडर से टकराकर पलट जाती, गाड़ी बड़े ही नियंत्रित तरीके से डिवाइडर से छू कर चल रही थी जैसे कोई उसे रोक रहा हो ये तस्वीर इस बात का सबूत है। आप देख सकते है की गाड़ी में बड़ा डेंट कही नहीं है केवल खरोंचे है
मानसी ने राकेश की बात को बीच में ही काटते हुए कहा,
मानसी: “मी लॉर्ड! डिवाइडरों की कहानी काफी दिलचस्प है, लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य जो रिपोर्ट में दर्ज नहीं है, वह मैं आपके समक्ष रखना चाहूंगी। आदित्य के कपड़ो पर शराब के अंश मिले है और गाड़ी में एक टूटी हुई शराब की बोतल भी। डिवाइडर से टकराने की यह पूरी घटना आदित्य के नशे में होने की वजह से भी हो सकती है।
मानसी का आत्मविश्वास और तेज़ी साफ दिखाई दे रही थी, जैसे उसने अपनी तरफ से इस मामले को खत्म करने की आखिरी चाल चल दी हो। यह बात सुनते ही राकेश ने जवाब दिया की शराब के जो अंश मिले है वो केवल कपड़ों पर मिले है ना की आदित्य के ब्लड में , गाड़ी में शराब की बोतल की ये तस्वीर देखिये, बोतल का ढक्कन सील पैक्ड है और वह नीचे से टूटी हुई है तो कनेक्शन थोड़ा वीक है मानसी जी इस बात का की आदित्य ने उस वक़्त शराब पी रखी हो
राकेश ने अब सोचा की केस को एक नया मोड़ देने का वक़्त आ गया है वो जज मीरा की और मुड़ा और उसने कहा की मैं एक ऐसी बात अब कोर्ट के सामने कहने वाला हूँ जिससे शायद इस केस का रुख ही बदल जायेगा। उस रात जिस गाड़ी से आदित्य घर से निकला वो गाड़ी उसकी खुद की नहीं थी बल्कि मिस्टर खन्ना की थी। यह बात सुनते ही पूरे कोर्ट में खुसुर पुसुर चालु हो गयी। आदित्य की गाड़ी और मिस्टर खन्ना की गाड़ी एक ही मॉडल और एक ही कलर की है बस एक फरक है उनमे नंबर प्लेट का मिस्टर खन्ना की गाड़ी का नंबर है 1111 और आदित्य की गाड़ी का नंबर है 111। यानी की उस रात जिस भी वजह से आदित्य घर से हड़बड़ी में निकला उसे खन्ना साहब की गाड़ी से जाना पढ़ा क्योंकि उसकी अपनी गाड़ी मैकेनिक के पास थी। और खन्ना साहब की गाड़ी में वो मेहेंगी शराब की बोतल थी जो साइड में रखी हुई थी। यानी की यहाँ दो कहानिया है जज साहब, एक तो आदित्य क्यों अचानक रात के वक़्त घर से इतनी बेचैनी में निकला और दूसरा की वो कौन शख्स है जिसका टारगेट आदित्य नहीं बल्कि खन्ना साहब थे
ये सुनते ही कोर्ट में सन्नाटा छा गया और मानसी के चहरे का कॉन्फिडेंस चूर चूर हो गया। यह सुनते ही जज मीरा ने कोर्ट की अगली तारीख दी और इस मामले की छान बीन में पुलिस को राकेश माधवानी को सपोर्ट देने के लिए कहा। खन्ना साहब ये सब सुनते ही शॉकेड थे और उन्होंने राकेश से पुछा की ये इतनी बड़ी बात राकेश ने उन्हें क्यों नहीं बतायी ? जिसपे राकेश ने कहा की जब तक केस चालु है वह कोई भी बात उनसे शेयर नहीं करेंगे। मानसी ने अपने पाइरस उठाये और राकेश को फेक स्माइल देते हुए बाहर चली गयी तभी राकेश का फ़ोन बजा और सामने से किसी व्यक्ति ने इस केस को हत्या का रूप ना देने के लिए धमकी दी। आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये।
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