इंस्पेक्टर विक्रम ने राकेश की ओर देखा, उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी। उसने गहरी सांस ली और राकेश से अपनी कॉल डिटेल्स शेयर करने के लिए कहा उसने ये भी कहा की ये मामला अब अलग रूप ले रहा है यह कोई मामूली धमकी नहीं है राकेश ने उसकी बात सुनते ही हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया की विक्रम, अगर हम अभी इस इंसान की तलाश शुरू कर देंगे, तो हमारा ध्यान केस से हट जाएगा। शायद जिसने मुझे धमकी दी है, वो यही चाहता है। इसके बाद राकेश एक पल के लिए रुका, फिर थोड़ा झुक कर हलकी सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए बोला की जब तक मुझे ऐसे दो-चार धमकी भरे फोन न मिलें, तो ये लड़ाई का असली मज़ा ही कहां आता है?
राकेश की इस बात पर विक्रम के होंठों पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी चिंता थी। उसने गहरी नजरों से राकेश को देखा कहा की मजाक छोड़ो, राकेश। सतर्क रहना पड़ेगा। ये लोग सिर्फ धमकी तक सीमित नहीं रहते। राकेश ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में वही आत्मविश्वास झलक रहा था,
राकेश: "विक्रम, तुम मुझे जानते हो। मैं किसी धमकी से डरने वालों में से नहीं हूँ।"
विक्रम ने एक आखिरी बार उसे चेतावनी दी, "फिर भी, चौकन्ना रहना। ये मामला जितना दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है।” विक्रम ने जाते हुए एक आखिरी नजर राकेश पर डाली, और कमरे से बाहर चला गया। राकेश, अब अकेला, गहरे विचारों में डूबा, सोचता रहा कि अगला कदम क्या होना चाहिए।
कोर्ट में सन्नाटा छा गया था जब राकेश माधवानी ने खुलासा किया कि असली निशाना आदित्य नहीं, बल्कि उनके पिता पियूष खन्ना थे। यह खुलासा इतना अप्रत्याशित था कि स्टॉक मार्केट में भी हलचल मच गई। सभी के सामने सच था, लेकिन फिर भी कोई यकीन नहीं कर पा रहा था।
पियूष खन्ना को ये एहसास होते ही कि उनका बेटा गलती से मारा गया, उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने अपनी खुद की जांच शुरू करवाई, पुरानी दुश्मनी की हर कड़ी को खंगालना शुरू किया। वो हर उस इंसान की डिटेल्स निकलवाने लगे जिनसे उन्हें कभी भी खतरा हो सकता था। पर ऐसा लग रहा था कि कहानी के कुछ पहलू अब भी अंधेरे में हैं।
राकेश और इंस्पेक्टर विक्रम सिंह को पता था कि कार के ब्रेक्स फेल हुए थे। पर अब असली सवाल था — क्या ये ब्रेक्स जान-बूझकर फेल किए गए या ये सिर्फ एक हादसा था? राकेश ने विक्रम से गाड़ी के मैकेनिक के बारे में और जानकारी जुटाने को कहा। यही एक व्यक्ति था जो सच्चाई सामने ला सकता था। भले ही कोर्ट ने अब हत्या की आशंका को मान लिया था, लेकिन कातिल और हत्या की वजह अभी भी एक रहस्य बनी हुई थी।
अब मामला पूरी तरह से हत्या पर आ गया था, और पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाने का मुद्दा gul हो गया। लेकिन मानसी अब भी अपनी आखिरी उम्मीद पर कायम थी। आखिरकार, एक अच्छे वकील की पहचान यही होती है कि वो आखिरी समय तक हार नहीं मानते और अपने विरोधी को मुश्किल में डालते रहते हैं, चाहे केस कितना भी साफ क्यों न हो।
मानसी के चेहरे पर अभी भी एक गहरी सोच और रणनीति के संकेत थे। वो जानती थी कि अगर उसने सही वक्त पर सही दांव खेला, तो मामला पलट भी सकता है।
राकेश गहरे विचारों में डूबा हुआ था। एक खतरनाक साजिश, जो उसकी नज़रों के सामने होते हुए भी वो समझ नहीं पा रहा। उसे बार-बार यही महसूस हो रहा था कि कातिल कहीं छुपकर उस पर हंस रहा है। उसने फिर से सारे तथ्यों को खंगालना शुरू किया। कॉल रिकॉर्ड्स पर उसकी नज़र अटक गई, खासकर आखिरी कॉल पर। आदित्य की मौत और उस आखिरी कॉल का समय एक ही था।
“आखिरी बात किससे हो रही थी?” राकेश ने खुद से सवाल किया, उसकी आँखों में शक और बेचैनी थी। उसने कॉल रिकॉर्ड्स को और गहराई से खंगालना शुरू किया। उस नंबर से बार-बार कॉल आए थे।अचानक, उसकी निगाहें एक छोटे से डिटेल पर टिक गईं—कॉल करने वाला व्यक्ति लगातार आदित्य को कॉल कर रहा था, जैसे उसे किसी बड़े राज़ पर पकड़ मिली हो।
“कही आदित्य को कोई ब्लैकमेल तो नहीं कर रहा था???? ” राकेश बुदबुदाया। वो तुरंत अपने असिस्टेंट, आरव को बुलाता है। आरव कमरे में दाखिल होता है, हमेशा की तरह ध्यान से सुनने वाला और मुस्तैद। राकेश ने गहरी नज़रें आरव पर टिकाते हुए कहा,
राकेश: आरव, इस नंबर की पूरी जानकारी चाहिए मुझे, कौन है ये, क्यों आदित्य को बार-बार कॉल कर रहा था !!!
आरव ने बिना कोई सवाल किए सिर हिलाया और तुरंत काम पर लग गया।
कोर्ट में लोगों की खड़े होने तक की जगह नहीं थी | पूरा कोर्टरूम लबालब भरा हुआ था | सब जाने को आतुर थे कि हुआ तो क्या हुआ? लोगों की खुसर फुसर चालू थी| किसी को लगता कि मानसी जीतेगी तो किसी को राकेश | जज मीरा ने अपना हथौड़ा चलाया, और सभी को शांत होने के लिए बोला| कुछ लोग कोर्ट रूम के बाहर भी निकल दिए गए|
जैसे ही मानसी ने खड़े होकर बोला,
मानसी : "माय लॉर्ड, राकेश माधवानी जी ने केस को एक नया ही मोड़ दे दिया है कि टारगेट आदित्य नहीं बल्कि खन्ना साहब थे। पर सब जानते हैं कि आदित्य वास अ नोबडी, वो तो एक लूज़र था!"
मानसी के शब्द कोर्ट रूम में गूंजे, जैसे किसी ने आग में घी डाल दिया हो।
खन्ना साहब का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वे अचानक अपनी सीट से उठे और पूरे जोर से चिल्लाए, "हाऊ डेयर यू! मेरा बेटा लूज़र नहीं था!!" उनकी आवाज़ कोर्ट रूम के माहौल को काटने वाली थी।
जज मीरा ने फौरन हथौड़ा बजाते हुए कड़क आवाज़ में कहा, "मिस्टर खन्ना, अपनी सीट पर बैठिए। अगर आप शांति नहीं रख सकते, तो मुझे आपको बाहर निकलवाना पड़ेगा।" जज की आंखों में वही सख्ती थी जो उनके फैसलों में होती है।
राकेश ने अपने क्लाइंट की ओर झुककर धीरे से कहा,
राकेश : "शांत रहिए, खन्ना साहब। हमें भावनाओं पर काबू रखना होगा।"
खन्ना साहब, हालांकि गुस्से में थे, लेकिन राकेश की बात मानकर वापस बैठ गए।
मानसी की आँखों में एक हल्की मुस्कान उभरी। वो जानती थी कि उसका वार सही जगह लगा था। उसने फिर से कहना शुरू किया,
मानसी: “जज साहब, सच्चाई कड़वी होती है। मैं यहां किसी के कैरेक्टर को उछालने नहीं आई, लेकिन यह एक्सीडेंट का मामला है। गाड़ी बेकाबू हुई, जिससे पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचा। मेरे क्लाइंट को इसका हर्जाना मिलना चाहिए।”
राकेश ने बिना एक पल गंवाए अपने कोर्ट के बटन बंद करते हुए धीमी मुस्कान के साथ जवाब दिया,
राकेश: "माय लॉर्ड, सच्चाई हमेशा छुपी हुई होती है। उसे सामने लाना पड़ता है।"
उन्होंने एक फाइल निकाली और जज की ओर देखते हुए कहा,
राकेश: "मैं आपके सामने आदित्य की कॉल रिकॉर्ड पेश करता हूं। आप देख सकते हैं कि आखिरी कॉल उसी वक्त हुआ जब आदित्य की मौत हुई। और यह नंबर गुलाब सिंह का है। गुलाब सिंह, प्राइम बैंक के लिए वसूली का काम करता है।"
कोर्ट में सरसराहट शुरू हो गई। राकेश ने अपनी बात जारी रखी,
राकेश: "मानसी सही कह रही हैं, आदित्य के पास कोई खास संपत्ति नहीं थी। लेकिन उसने अपने पिता से छिपा कर एक छोटा सा फोटो बिजनेस शुरू किया था, जो असफल रहा। और इसी शर्मिंदगी के चलते वह परेशानी में था।"
खन्ना साहब की आँखों में बेबसी थी। हर शब्द जैसे उनके दिल पर वार कर रहा था। उनका बेटा इतनी बड़ी समस्या में था, और वो इसे कभी समझ ही नहीं पाए। उनकी सारी संपत्ति का क्या फायदा अगर वो अपने बेटे की मदद ही नहीं कर सके?
मानसी ने फौरन बात काटते हुए तीखे लहजे में कहा,
मानसी: "ओह, तो अब आप एक बैंक को आदित्य की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं? ये हास्यास्पद है। हर बैंक अपना पैसा वापस पाने के लिए वसूली करता है। और आपको ये भी ध्यान देना चाहिए, राकेश जी, कि एक युवा फोन चलाते हुए गाड़ी चला रहा था, जो कि कानून का उल्लंघन है। वैसे, शुक्रिया इस नई जानकारी के लिए—ये मेरे केस में मेरे ही काम आएगी।"
राकेश के पास कोई जवाब नहीं था और उसने जज साहब से कहा नो फरदर कमैंट्स। जज मीरा ने हथौड़ा चलाया और कहा की मिस्टर राकेश, मानसी की बात गलत नहीं है अगर आप अगली तारीख तक, कोई पुख्ता सबूत कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं कर पाए, तो खन्ना साहब को भुगतान के ऊपर जुर्माना देना होगा , राकेश ने सर नीचे किए हामी भर दी
राकेश का फोन बजा। दूसरी तरफ से विक्रम की आवाज़ आई, "राकेश, A1 मोटर्स आओ। यहाँ कुछ ऐसा मिला है जो तुम्हें देखना चाहिए।" A1 मोटर्स — वही जगह जहाँ खन्ना साहब जैसे बड़े लोग अपनी महंगी गाड़ियों की सर्विस करवाते थे। जब राकेश वहां पहुँचा, तो देखा कि विक्रम सिंह पहले से ही इंतजार कर रहे थे, और उनके सामने एक डरा हुआ मैकेनिक खड़ा था।
जैसे ही राकेश अंदर दाखिल हुआ, मैकेनिक की नज़रें राकेश से मिलीं और वो घबराहट में उसके पैरों पर गिर पड़ा। "साहब, माफ कर दो मुझे... मुझसे गलती हो गई! मैंने सिर्फ पैसों के लिए ये किया था। राकेश शांत रहा, बस उसकी गहरी निगाहें मैकेनिक पर जमी थीं। मैकेनिक ने कांपती आवाज़ में सच कबूलना शुरू किया, "मैंने एक खास तकनीक से गाड़ी के ब्रेक फेल किए थे। गाड़ी जैसे ही 50 किलोमीटर की स्पीड पार करती, उसका लॉक टूट जाता और ब्रेक्स काम करना बंद कर देते। स्क्रीन पर भी ब्रेक फेल का कोई इंडिकेशन नहीं आता।"
राकेश ने उसकी पूरी कहानी ध्यान से सुनी, एक भी शब्द बिना खोए। मैकेनिक की आवाज़ में डर था, और विक्रम शांत खड़ा सब देख रहा था। जब कहानी पूरी हो गई, राकेश ने एक गहरी सांस ली। उसने मैकेनिक की ओर देखा और ठंडे लहजे में बोला,
मानसी: “बरसों से इस गेराज पर भरोसा किया जाता था, लेकिन तुमने पैसे के लिए खेल खेला। और खन्ना साहब के सबसे करीबी इंसान ने भी कुछ ऐसा ही किया है!! अब मज़ा आएगा इस केस में, विक्रम साहब।”
कोर्ट के दिन, मानसी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ कोर्ट में खड़ी नजर आए| उसे पता था कि राकेश को हराने के बाद, उसका पद वकीलों में और भी ऊंचा उठ जाएगा| मगर राकेश भी कॉन्फिडेंट नजर आ रहा था, मानसी को लगा यह केवल दिखावा है, एक और नई चाल है|
जज मीरा के आते हैं | राकेश ने मैकेनिक को कटघरे में बुलाया | उसने कोर्ट के सामने कबूल किया की उसी ने ही ब्रेक के साथ छेड़छाड़ करी थी| मैकेनिक जैसे-जैसे बोलते गया, वैसे-वैसे मानसी की आंखें बड़ी होती रही| अगर मैकेनिक की बात सच थी तो यह पक्का था कि केस हत्या का है|
इससे की पहले देर हो जाए, मानसी खड़ी हुई|
मानसी: “मी लॉर्ड! मैं मैकेनिक को क्रॉस एग्जाम करना चाहूंगी|”
जज मीरा ने इजाजत दे दी |
मानसी: “तो मैकेनिक साहब, आप यह बताइए कि आपने ब्रेक से छेड़छाड़ कैसे करी? क्योंकि फोटो में साफ नजर आता है कि यह किसी आदमी का काम नहीं लगता|”
मैकेनिक ने राकेश की तरफ देखा| राकेश ने सच बोलने का इशारा किया| “ मी लॉर्ड, मैं बहुत सालों से गाड़ियों की मरम्मत कर रहा हूं| मेरे हाथ में भगवान ने बरकत दी है, मैं गाड़ी पर जो काम करता हूं बड़े सफाई से करता हूं| आप यह तो क्या मेरा कोई भी काम देख लीजिए, आपको पता ही नहीं लगेगा कि किसी इंसान ने कर हो|”
मानसी ने चढ़ते हुए कहा,
मानसी: “क्या बात क्या बात? … और यह जो आपके शरीर पर डंडे के निशान हैं| क्या यह भी आपने खुद ही करें हैं या फिर किसी पुलिस वाले ने, क्यों इंस्पेक्टर विक्रम सिंह मेरा सवाल सही है ना?”
“अब गलती करी है तो पुलिस का मारना तो लाजमी है|” मानसी ने मैकेनिक को जाने के लिए कहा| मानसी ने जज मीरा की तरफ देखा, “
मानसी: मी लॉर्ड! राकेश साहब इतना गिर जाएंगे| कभी सोचा ना था| वह एक गरीब मैकेनिक को मारपीट के कोर्ट में झूठी गवाही देने के लिए प्रस्तुत करते हैं…आपके पिछली बार अल्टीमेटम देने पर वह इस तरह घबरा गए कि उन्होंने झूठ का सहारा लिया| वैसे तो यह खुद को सच की मूर्ति बताते हैं?”
राकेश की चेहरे की मुस्कुराहट अभी तक बरकरार थी | वह उठ खड़े हुए, “
राकेश: मानसी! आप यह तो मानेंगे की मैकेनिक गरीब है?”
मानसी ने हां में गर्दन हिलाई|
राकेश: “अगर वह झूठ बोल रहा है तो हत्या के दिन उसके अकाउंट में दस लाख रुपए कहां से आए?”
कोर्ट में जैसे अचानक हलचल मच गई| 10 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं थी|
राकेश ने बात जारी करी,
राकेश: “इससे पहले कि मैं कातिल के बारे में बताओ, मुझे विक्टिम के बारे में कुछ बताना होगा| जिस रात आदित्य गाड़ी चला कर जा रहा था, वह काफी जल्दी में था| उसने अपनी गाड़ी छोड़कर, खन्ना साहब की गाड़ी उठा ली| कातिल का टारगेट, आदित्य नहीं बल्कि कंपनी के मालिक खन्ना साहब थे | “कातिल काफी होशियार था| मगर उसने एक गलती कर दी| उसने मैकेनिक को अपने ही नंबर से पैसे ट्रांसफर कर दिए| मैं अभी उस ही नंबर पर कॉल लगाने वाला हूं|”
राकेश ने अपना फोन निकाला और सबके सामने फोन घुमाया| पूरा कोर्ट की सांस थमे हुआ था | फोन की घंटी, कोर्ट में गूंज उठी| खन्ना साहब के पीछे बैठे मिस्टर गुप्ता का झन्ना रहा था| गुप्ता साहब शायद तक इस चीज के लिए तैयार न था| उसने भागने की कोशिश करी| इंस्पेक्टर विक्रम सिंह ने उसे धर दबोचा और कस के चांटा लगाया| गुप्ता साहब घूमकर जमीन पर गिर पड़ा| वह उठकर बैठ गया और रोने लगा|
“मी लॉर्ड| मैं आदित्य को बिल्कुल नहीं मारना चाह रहा था| इस बात का गम मुझे भी है| पर आप ही बताइए जिस इंसान का सब दाव पर लगा हो तो क्या करें?: खन्ना अगर कुछ और दिन जीवित रहता तो मेरे सारे घोटाले पकड़े जाते| फिर अपना मुंह मैं कहां-कहां छुपाता?...मैंने फैसला लिया या तो वह खुल के जीवन जिएगा या फिर मैं?....पर नियति को शायद, मैं ही ना पसंद हूं?...खन्ना! मैं आदित्य के लिए?” गुप्ता साहब बात पूरी कर ही रहे थे की खन्ना साहब उस पर कूद पड़े|
“अपनी काली जुबान से, उसका नाम मत ले|” दोनों के बीच में झड़प हो गई| इंस्पेक्टर विक्रम सिंह ने दोनों को अलग किया|
राकेश ने अपनी जगह से खड़े होकर गहरी सांस ली और पूरे कोर्ट की तरफ देखा। उसकी आंखों में एक अलग ही चमक थी—सचाई का आत्मविश्वास। उसने बोलना शुरू किया,
राकेश: “माय लॉर्ड, आज हम यहां सिर्फ एक हादसे की बात नहीं कर रहे हैं। हम यहां उस विश्वासघात की बात कर रहे हैं जो सालों से छुपा हुआ था। मिस्टर अशोक गुप्ता, केवल एक सीएफ़ओ नहीं थे, वह खन्ना परिवार का हिस्सा थे, एक ऐसा हिस्सा जिसे विश्वास के धागे से जोड़ा गया था। लेकिन जुए की लत ने इस धागे को चीर दिया।”
राकेश की आवाज़ में अब एक स्पष्ट गुस्सा और तैश था। वह आगे बढ़ा,
राकेश: “इन्होंने मार्केट से पैसा उठाया, और उसे गलत तरीके से शेयर बाजार में लगाया। जब हर जगह से नुकसान उठाया, तो अपनी गलती छुपाने के लिए इन्होंने आदित्य को टारगेट किया। एक फर्जी बिजनेस आईडिया दिया और उससे वो पैसे ले लिए, जो असल में खन्ना परिवार की मेहनत का नतीजा थे। लेकिन यहीं पर कहानी खत्म नहीं होती, जज साहब।”
कोर्ट में एक सन्नाटा छा गया था। राकेश ने आगे कहा,
राकेश: “आदित्य को सिर्फ एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया गया। इन्होंने वसूली करने वालों को बता दिया कि आदित्य से जितना मांगते रहोगे, वो देता रहेगा। और जब कर्ज करोड़ों में पहुंच गया, तो इनकी नज़र खन्ना साहब पर पड़ी। क्योंकि इन्हें पता था कि अगर खन्ना साहब को रास्ते से हटा दिया जाए, तो सारी कंपनी की कमान इन्हें मिल जाएगी। आदित्य को बिजनेस में दिलचस्पी नहीं थी, और करन... करन को तो सिंगर बनना था!”
राकेश ने अपने शब्दों को थोड़ी देर रुककर हवा में लहराया, जैसे हर एक बात को वजन दे रहा हो।
राकेश: “और मिस्टर गुप्ता ने खन्ना साहब के भरोसे का फायदा उठाया। उन्होंने सोचा, अगर खन्ना साहब नहीं रहेंगे, तो कोई उनके खिलाफ खड़ा नहीं होगा लेकिन सच कभी छुपता नहीं है, माय लॉर्ड। आज हम सबके सामने वही सच है। ब्रेक्स से छेड़छाड़ की गई, आदित्य का ब्लैकमेल हुआ, और अंत में खन्ना साहब को निशाना बनाया गया।”
अब राकेश का चेहरा और भी सख्त हो चुका था। उसने जज मीरा की तरफ देखा और कहा,
राकेश: “माय लॉर्ड, ये सिर्फ एक हत्या का मामला नहीं है, ये एक ऐसे इंसान का मामला है जिसने रिश्तों के साथ खेला, जो भरोसे का कत्ल करने से भी नहीं चूका। मिस्टर गुप्ता ने अपनी लालच और जुए की लत में खन्ना परिवार को बर्बाद करने की पूरी कोशिश की। अब फैसला आपके हाथ में है। क्या हम ऐसे विश्वासघात को बर्दाश्त कर सकते हैं?”
राकेश ने अपनी बात खत्म की, और पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा गया। जज मीरा की आंखों में गंभीरता और कड़कपन था, और मानसी चुपचाप बैठी रही, जैसे जान चुकी हो कि यह खेल खत्म हो चुका है।
जज मीरा के चले जाने के बाद मानसी ने राकेश को बधाई दी. खन्ना साहब ने राकेश को गले लगा लिया, “मेरा फैसला तुम्हें केस देने का सही रहा| आपकी वजह से ही यह सब कुछ हो पाया|” राकेश ने जवाब दिया,
राकेश: “मैं हमेशा सच के साथ खड़ा हूं| सच को उजागर करना कभी आसान नहीं होता, लेकिन मैं रुकने वाला नहीं हूं।
राकेश कोर्ट से बाहर निकलता है और तब ही उनका फ़ोन बजता है फ़ोन के उस ओर से भारत के एक मशहूर फिल्म स्टार रॉकी रघुवंशी के मैनेजर की आवाज़ आती है। मिस्टर माधवानी , आप प्लीज जल्दी से रॉकी रघुवंशी के घर अजाइये किसी ने इनका फ़र्ज़ी क्लिप वायरल कर दिया है। आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए
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