रक्षाबन्धन की छुटियाँ शुरू हो गयी थी। सारे बच्चे अपने घर चले गए थे।रक्षाबन्धन की छुट्टियों में युविका घर चली गयी वैसे तो उसका एक ही भाई था लेकिन ताऊ, चाचा, मौसी, मामा के बच्चों में बहनो में सबसे बड़ी थी युविका, इसलिए वह सबको राखी बांधती।
युविका तीन दिन पहले ही घर पहुच गयी। वह बाजार जाकर सबके लिए राखी ले आयी अगले तीन दिन कब घर में इधर उधर घूमते गुजर गए, उसे पता ही नही चला राखी वाले दिन सुबह जल्दी उठकर युविका ने गोलू , अर्पित और अपने दो भतीजों को राखी बांधी और उसके बाद कानपुर के लिए निकल गयी, उसके सारे रिश्तेदार कानपुर में ही रहते थे। शाम को युविका घर वापस लौट आयी।युविका की एक खास आदत थी वह किसी के यहां रात में रुकना पसन्द नही था, सिर्फ अपना घर अच्छा लगता और फिर उसे अगले दिन अपनी बेस्ट फ्रेंड से मिलने भी जाना था।सनाया युविका की स्कूल फ्रेंड, फ्रेंड नही बेस्ट फ्रेंड थी। वो दोनों दोस्त जरूर थी लेकिन उनमें बहनो जैसा प्यार था, दूर जाकर भी युविका का प्यार, सनाया के लिए कम नही हुआ था।वह जब भी घर आती सनाया से मिलने जरूर जाती और अगर नही जा पाती तो उसे अपने घर बुला लेती।
अगले दिन सुबह युविका तैयार होकर सनाया के घर के लिए निकल गयी। सनाया के घर पहुँचने पर सबसे पहले वह उसकी मम्मी से मिली क्योंकि सनाया उस वक्त कहीं बाहर गयी हुई थी, सनाया की मम्मी युविका को बहुत प्यार करती थी।
सनाया की माँ ने युविका से पूछा- "बिटिया बहुत दिन बाद आई हो।"
युविका ने जवाब दिया- "हाँ मम्मी, अब कॉलेज खुल गया है तो पढ़ाई चालू हो गयी है।"
"ठीक है तुम बैठो, सनाया बस आती ही होगी।" सनाया की मां ने कहा और फिर अपना काम करने लगीं।
युविका वही बैठ के अपना फ़ोन चलाने लगी। आजकल उसके फेसबुक पर कुछ नये दोस्त बने थे बस वह उन्ही से बात करने में लगी थी। थोड़ी देर तक जब सनाया नही आई तो युविका ने मम्मी से पूछा," माता राम,सनाया कहाँ गई है?"
सनाया की माँ ने जवाब दिया- "बिट्टी नीचे गयी रहे, पता नही कहाँ निकल गयी। शालू के हियाँ चली गयी हुई काहो।"
"ठीक है हम नीचे जाकर देखते है।" युविका मम्मी से बोली और नीचे जाकर सनाया सनाया चिल्लाने लगी। चूंकि युविका सनाया की बेस्ट फ्रेंड थी इसलिए उसे पूरे मोहल्ले में सब जानते थे और सबको पता था कि युविका अब कानपुर में पढ़ती है। इसलिए जो भी देखता वह उससे पूछ लेता-"और युविका, कानपुर से कब आयी?"
"बस रक्षाबन्धन में आयी थी।" युविका जवाब देते हुए आगे निकल गयी।
तभी उसे मोनी दिखाई दी जो सनाया के बड़े पापा की बेटी थी। युविका ने मोनी से पूछा-"सनाया को देखा है क्या?"
" अरे अभी तो यही थी शायद शालू के यहां होगी।"-मोनी ने जवाब दिया।
युविका बोली-"अरे यार जाकर बुला दो,हम बहुत देर से बैठे इन्तज़ार कर रहे।"
" ठीक है देखते है।"- इतना कहकर मोनी सनाया को बुलाने चली गयी और युविका वही पड़ी चारपाई में बैठ गयी।
थोड़ी देर बाद सनाया उधर से टहलते हुए आयी। सनाया को देखकर युविका के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गयी लेकिन उसने अपनी स्माइल छुपा ली और उसकी जगह नकली गुस्से ने ले ली।
सनाया ने आते हुए पूछा-"आज मैडम को हमारी याद कैसे आ गयी?"
"हमे तो तुम्हारी याद हमेशा आती है। बस तुम्हे ही नही आती और अगर याद न आती तो इतनी दूर तुमसे मिलने नही आते। तुमको तो टाइम नही है तुम बिजी प्राणी हो। हम ही हर बार तुमसे मिलने आते है। कभी तुम भी आ जाया करो,इस बार तो आ गए है लेकिन अगली बार नही आएंगे।" युविका थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली।
"अईसे कईसे नही आओगी, मार मार के तुमको भूत बना देंगे।" सनाया हंसते हुए बोली।
युविका दिखावटी गुस्से में बोली-"मारने के लिए पहले तुमको हमारे घर आना पड़ेगा मैडम ,और टाइम तो तुम्हारे पास है नही।"
"अरे उसके लिए हम आ जाएंगे। उसकी तुम चिंता न करो।" सनाया बोली और युविका के बगल में ही चारपाई पर बैठ गयी।
"मम्मी ने कुछ खिलाया पिलाया?"
"सब तुम्हारी तरह नहीं होते है, जिसको ये भी नही पता कि हम आधे घण्टे से उसके घर पर बैठें हैं। अरे हमारी भी मम्मी है। तुम भूल जाओगी तो का वह भी भूल जायेंगी और तो और मैडम राखी भी बांधना भूल गयी जिसके लिए हम इतनी दूर से आये है।"
सनाया स्कूल टाइम से ही युविका को राखी बांधती थी। युविका राखी के दूसरे दिन सनाया से राखी बंधवाने आयी थी क्योंकि राखी वाले दिन उसे टाइम नही मिलता था।
"भूली नही हूँ , यार! अभी थोड़ा जा रही हो तुम। अभी ऊपर जाउंगी तब बांध दूंगी। पहले ये जो मुँह फुलाये हो इसको पिचका लो और स्माइल करो। इस बार पक्का मैं तुम्हारे घर आउंगी।" सनाया ने युविका के गाल खीचते हुए कहा।
युविका अपने गाल दूर करते हुए बोली-"हाँ आ जाना, माँ याद कर रही थी कि बहुत दिन से सनाया नही आई.."
"अरे यार कोई जाने वाला नही मिलता और उतनी दूर अकेले जाना अच्छा नही लगता।"
"अच्छा और हम उतनी दूर से अकेले आते है उसका क्या?" युविका मुँह बनाते हुए बोली।
"अच्छा ठीक है।इस बार तुम मत आना हम ही आ जाएंगे।" इसके बाद दोनो ऊपर सनाया के कमरे में चली गई। वहां जाकर सनाया ने युविका को राखी बांधी और फिर बैठकर बातें करने लगीं। युविका सनाया को कॉलेज के बारे में बता रही थी, उसने पहले दिन से लेकर छुट्टियां होने तक की सारी बातें सनाया को बता डाली।
और सनाया युविका की बात सुनकर उसको चिढा रही थी-"मतलब बेटा, तुझसे कोई बच नही सकता। तूने वहां भी पंगा लेना शुरू कर दिया। स्कूल में भी तू दो चीजों के लिए फेमस थी एक तो पढ़ाई और दूसरे पंगे के लिए और अब कॉलेज में भी फेमस। वाह बेटा अब तो खैर नही।"
" किसकी मेरी या कॉलेज वालों की?"
"कॉलेज वालों की और किसकी?" सनाया ने जवाब दिया और फिर दोनों खिलखिला कर हंसने लगी।
सनाया से बात करते करते युविका को पता ही नही चला कि कब शाम हो गयी। टाइम ज्यादा होने पर युविका घर के लिए निकल गयी।
वो शाम को छः बजे घर पहुँची। माँ को सनाया के यहां की सारी बातें बताई और साथ ही राखी भी दिखाई।
पिछले तीन दिनों में युविका,माँ और गोलू को भी अपने कॉलेज की सारी बातें बता चुकी थीं। वह कोई भी बात अपनी माँ से नही छुपाती थी। वो कहीं घूमने जाना हो, किसी लड़के से बात करना हो या कोई भी दूसरी बात, उसकी माँ ही उसकी पहली बेस्ट फ्रेंड थी।
माँ ने युविका से पूछा-"तुम्हे कब जाना है कानपुर किट्टू?"
"अरे माँ जब मन होगा चले जायेंगे, वैसे भी अभी कोई आएगा नही कॉलेज में। कॉल करके पता करेंगे जब सब आ जाएंगे तब हम भी चले जाएंगे।"
युविका जब भी घर आ जाती। उसका मन नही करता था वापस जाने का, जबकि हर शनिवार को वह घर आती थी। अगले दिन रविवार था। सारे फ्रेंड्स मंडे से कॉलेज आने वाले थे इसलिए अब युविका को भी मंडे को कॉलेज जाना था। वो बेमन से कानपुर जाने की तैयारी करने लगी। और शाम को चार बजे वह कानपुर मासी के यहां के लिए निकल गयी।
कॉलेज अब पूरी तरह से खुल चुका था। सारे सीनियर्स भी कॉलेज आने लगे थे। युविका भी रेगुलर कॉलेज जाने लगी, प्रताप को देखकर उसे कुछ अजीब तरह का ही गुस्सा आता था। वह अब भी क्लास के किसी लड़के से बात नही करती थी,ये बात अलग है कि बहोत सारे लड़के उससे बात करने की कोशिश करते और वह सबको हड़का देती। इसलिए ज्यादातर सब उसे घमंडी बोलते थे।
अवि भी अब कानपुर आ गया, क्लासेज सही से स्टार्ट हो गईं, समीरा भी कॉलेज आने लगी। कॉलेज में चारो तरफ सीनियर्स और जूनियर्स की रैगिंग जोरो पर थी।
"ये मत पहन कर आना, ऐसे मत आना,वैसे मत आना।" ये बातें हर दूसरे कोने में सीनियर जूनियर को समझाते दिख ही जाते। युविका के कॉलेज की रैगिंग का चर्चे पूरे एरिया में थे। उसने भी जब एडमिशन लिया था तो लोगों ने उसे मना किया था।
इसी बीच कॉलेज के दो सीनियर गुट के बीच झगड़ा हो गया,ये झगड़ा इतना बढ़ गया कि बात पुलिस तक पहुँच गयी। कुछ लड़कों के नाम पहचाने गए उनमे अवि और अर्जुन का नाम भी शामिल था।
अवि और अर्जुन वहां पर नही थे लेकिन बिना मतलब ही उनका नाम उछला,पूरे कॉलेज में कर्फ्यू लग गया। क्लासेस फिर से बंद हो गयी। अवि भी कुछ दिन तक कॉलेज नही आया।
कुछ दिनों के बाद धीरे धीरे सब फिर से सही होने लगा, क्लासेज शुरू हो गयी। सारे बच्चे कॉलेज आने लगे।
युविका के भी कई सारे नए दोस्त बन गए। उनमे से एक था सिद्धार्थ उर्फ सिड, सिद्धार्थ और युविका बेस्ट फ्रेंड्स बन गए , लेकिन उनको देखकर बाकी क्लास के लड़कों को लगता कि वो गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड है। क्योंकि उनकी दोस्ती ही कुछ ऐसी थी, जिसे देखकर किसी की भी नजरें धोखा खा सकती थीं। लड़ाई झगड़ा तो उनकी दोस्ती का एक इम्पोर्टेन्ट रूल था।
समीरा अक्सर अवि को कॉल करती,अवि और समीरा की अच्छी दोस्ती हो गयी थी,वह कॉलेज में भी अक्सर एक दूसरे से मिलने गए। समीरा मन ही मन अवि को पसन्द करने लगी, लेकिन अवि के लिए वो सिर्फ उसकी एक दोस्त थी।
सब कुछ सही चल रहा था। पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। फिर एक दिन अचानक वो हुआ जिसने युविका को पूरे कॉलेज में फेमस कर दिया।
एक दिन सुबह युविका की मेन बिल्डिंग में फिजिक्स की क्लास थी। फिजिक्स वाली मैम अभी तक नही आयी थी पीएमटी और सिविल दोनो ब्रांच के बच्चे साथ ही बैठे आपस मे डिस्कशन कर रहे थे। तभी प्रताप अपने दो दोस्त विकास और रोहित के साथ आया और क्लास के लोकल लड़को से बतमीजी से बात करने लगा। चूंकि प्रताप हॉस्टलर् था इसलिए उसे सीनियर्स का शय प्राप्त था। वो तीनों सारे लोकल के लड़कों को बेल्ट उतारने के लिए बोले और जो नही उतार रहा था उसे गाली देकर बात कर रहे थे। थोड़ी देर तक तो युविका सुनती रही। लेकिन गालियां जब उसकी बर्दास्त के बाहर हो गयी,वह उठकर खड़ी हुई। युविका को गालियां बिल्कुल भी पसन्द नही थी। इन्फेक्ट वह उन लोगों से बात करना भी पसन्द नही करती थी जो गाली देते हों।
युविका गुस्से में बोली- "तुम्हे गाली देनी है तो क्लास के बाहर जाओ। ये कॉलेज है तुम्हारा घर नही।"
प्रताप ने युविका को घूरा और बोला-"तुम्हे दिक्कत हो रही तो तुम निकल जाओ न।"फिर वह खुद में कुछ बड़बड़ाया।
युविका चिल्लाते हुए बोली- "मैं क्यों जाऊं? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे गाली देने की?"
प्रताप बोला- "दी है गाली,तो क्या कर लोगी?"
"तुम सीनियर नही हो जो क्लास में रैगिंग लेते हो।" युविका फिर चिल्लाई।
प्रताप बोला- "लगता है अभी किसी सीनियर के पल्ले नही पड़ी हो तुम।"
युविका ने जवाब दिया- "डरती नही हूँ मैं किसी से समझे तुम।"
प्रताप फिर बोला- "अभी लगता है आकांक्षा मैम से नही मिली हो। बुला देते है एक बार मिल लो उनसे।"
युविका चिल्लाते हुए बोली- "बुला दो, हम किसी से नही डरते। मेरा कोई कुछ नही कर सकता, बहुत देखी हैं उनकी जैसी। ये धमकी किसी और को देना तुम।"
सच तो ये था कि युविका आकांक्षा मैम को नही जानती थी। आकांक्षा कॉलेज की गुंडी टाइप लड़की थी और सारे टीचर्स भी उससे डरते थे। इसलिए प्रताप ने युविका को उसकी धमकी दी थी। लेकिन वो मैकेनिकल ब्रांच की थी। युविका को पता था कि उसे डरने की कोई जरूरत नही है क्योंकि उससे वह कभी नही मिलने वाली है।
क्लास के बाकी सारे बच्चे प्रताप और युविका को झगड़ते हुए देख रहे थे। बीच बीच मे विकास और रोहित भी युविका को कुछ कह देते, युविका सबकी बातों का जवाब दे रही थी।
"बैठ जा यार क्यों मुहँ लगती है तू इन लोगों के।" अक्षरा ने युविका का हाथ पकड़ उसे लगभग नीचे बैठाते हुए कहा।अक्षरा भी सिद्धार्थ की तरह युविका की बेस्ट फ्रेंड थी।
युविका ने अक्षरा को देखा,फिर बोली-"नही यार आज इनको मैं इनकी औकात दिखा कर रहूंगी, इनकी हिम्मत कैसे हुई मुझे गाली देने की,आजतक मुझे किसी ने एक शब्द भी नही बोला और ये मुझे गाली दे रहा। समझता क्या है ये खुद को सीनियर का चमचा, इसे शायद आजतक मेरी जैसी कोई लड़की मिली नही है। आज बताऊंगी इसे।"
तभी विकास बोला-"क्या बताओगी तुम, हम भी किसी से नही डरते है। जब सीनियर से मिलोगी , तुम्हारी सारी हेकड़ी खुद ब खुद निकल जायेगी।"
"ठीक है फिर देखते है, किसकी हेकड़ी निकलती है?" इतना बोलकर युविका बैग उठाकर क्लास से बाहर निकल गयी।
अब क्या होगा और क्या करेगी अविका? क्या विकास और प्रताप फिर से अपना दबदबा कायम रखने में होंगे कामयाब या इस बार कुछ होगा ऐसा जो पहले कभी नहीं हुआ था? क्या अविका इनको सबक सिख पाएगी या पद जाएगी सारी चाल उलटी? जानने के लिए बने रहिए हमारे साथ और पढ़ते रहे ये कहानी....
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